hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
ललित के चेहरे के भाव देखकर शान्ताबाई जोर से सांस लेते हुए बोलीं "लगता है ... ललित राजा ने ... जीजाजी के असली कारनामे देखे नहीं हैं ... एक नंबर के खिलाड़ी हैं राजा वे ... न जाने कहां से सीखे हैं ... लीना बाई घर में ना हों तो आधे घंटे में मुझे ऐसे ठोक देते हैं कि दो तीन दिन के लिये मेरी ये बदमाश बुर ठंडी हो जाती है"
"अब लीना जैसी अप्सरा ... बीवी हो तो ... आदमी बहुत कुछ ... सीख जाता है ... ललित ... पर जरा संभालना पड़ता है ... पटाखा है पटाखा ... कब फूट जाये पता भी नहीं चलता ..." मैंने चोदते हुए कहा.
"हां ललित बेटा ... तुम्हारी दीदी याने एकदम परी है ... हुस्न की परी ...." शान्ताबाई चूतड़ उछालते हुए बोली "जब से वे यहां ... रहने आयीं ... तब से मैं देखती थी हमेशा ... फ़िर मेरे यहां से सब्जी भाजी खरीदने लगीं ... मैं तो बस टक लगाकर देखती रहती थी उनका रूप. और तू जानता है- उसको देखकर मेरी चूत गीली हो जाती थी जैसे किसी मर्द का लंड खड़ा हो जाता होगा. अब उसके सामने मैं क्या हूं , फ़िर भी मेरे पास थोड़ा बहुत माल तो है ना ... " अपने ही स्तनों को गर्व से देखती हुई शान्ताबाई बोली " ... सो मैं भी दिखाती थी उसको अपनी पुरानी टाइट चोली पहन पहन कर. उनकी आंखों को देखकर लगता था कि वे भी मुझे पसंद करती हैं इसलिये बड़ी तमन्ना से रोज राह देखती थी उनकी. और जब एक दिन लीना बाई खुद बोली कि शान्ताबाई, अब भाजी का ठेला छोड़ो और मेरे यहां काम करने को आ जाओ, मेरे को लगा जैसे मन्नत मिल गयी हो"
"वैसे आप भी कम खूबसूरत नहीं हैं शान्ताबाई, बस यह फरक है कि लीना जरा नाजुक और स्लिम है और आप के जलवे एकदम खाये पिये मांसल किस्म के हैं. ये पपीते जैसे स्तन ... या ये कहो कि झूलते नारियल जैसी चूंचियां, ये जामुन या खजूर जैसे निपल, ये नरम नरम डनलोपिलो जैसा पेट, ये घने रेशमी घुंघराले बालों से भरी - घनी झांटों के बीच खिली हुई लाल लाल गीली चिपचिपी गरमागरम चूत ... अब वो रंभा और उर्वशी के पास भी इससे ज्यादा क्या होगा बाई?" मैंने तारीफ़ की. हमेशा करता हूं, बाई ऐसे खिल जाती हैं कि रस का बहाव दुगना हो जाता है. अब भी ऐसा ही हुई, उनमें ऐसा जोर आया कि डबल स्पीड से नीचे से चोदने लगीं.
अब मस्ती में उन्होंने ललित को बैठने को कहा और फ़िर कमर में हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसका लंड मुंह में ले लिया. जब तक ललित ने उनको अपनी क्रीम खिलाई तब तक वे एकदम सर्र से झड़ गयीं. ऐसी झड़ीं कि तीन चार हल्की हल्की चीखें उनके मुंह से निकल गयीं. झड़ने के बाद फ़िर उनको मेरे लंड के धक्के जरा भारी पड़ने लगे. "बस बाबूजी ... भैयाजी अब रुक जाओ ... हो गया मेरा ... " वे कहती रह गयीं पर मैंने उनके होंठ मुंह में लेकर उनकी बोलती बंद कर दी और ऐसा कूटा कि वे तड़प कर अपना सिर इधर उधर फ़ेकने लगीं.
जब वे पांच मिनिट में उठीं तो पूरी लस्त हो गयी थीं. कपड़े पहनते पहनते ललित से बोलीं "तेरे जीजाजी से चुदवा कर मैं एकदम ठंडी हो जाती हूं बेटा ... क्या कूटते हैं ... बड़ा जुलम करते हैं ... मेरे और तुम्हारी दीदी जैसी गरम चूत को ऐसा ही लंड चाहिये नहीं तो जीवन नरक हो जाता है बेटा. खैर, अब मैं चलती हूं, तुम आराम करो"
"मौसी ... तुमने प्रॉमिस किया था" ललित उठकर चिल्लाया.
"अरे भूल ही गयी, चलो बेटा, उस कमरे में चलते हैं" फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "अब ऐसे ना देखो, कुछ ऐसा वैसा नहीं करने वाली इस छोरे के साथ, करना हो तो सरे आम आप के सामने करूंगी. इतनी भयंकर चुदाई के बाद किसी में इतना हौसला नहीं है कि अंदर जाकर शुरू हो जायें. ललित को कुछ सिखाना है, आप बाहर बैठ कर अपना काम करो अब"
मैं बाहर जाकर बैठ गया. मन हो रहा था कि अंदर जाकर देखूं कि क्या चल रहा है पर फ़िर रुक गया.
करीब डेढ़ घंटे बाद शान्ताबाई बाहर आयीं. मुड़ कर बोलीं "आओ ना ललिता रानी, शरमाओ मत"
और अंदर से साड़ी पहनी, पूरी तरह से तैयार हुई एक खूबसूरत लड़की के भेस में ललित बाहर आया. क्या बला का हुस्न था. मैंने सोचा कि ललित बाकी कैसे भी कपड़े पहने, लीना की तरह की सुंदरता उसकी साड़ी में ही निखरती थी.
मेरी आंखों में के प्रशंसा के भाव देखकर शान्ताबाई गर्व से बोलीं "ये खुद पहनी है इसने, आखिर सीख ही गया, एक घंटे में चार पांच बार प्रैक्टिस करवाई मैंने, वैसे सच में शौकीन लड़का है भैयाजी हमारा ललित, नहीं तो लड़कियों को भी आसानी से नहीं आता साड़ी बांधना."
ललित को सीने से लगाकर वे बोलीं "ललित राजा ... अरे अब तुझे ललिता कहने की आदत डालना पड़ेगी, अब मैं परसों आऊंगी, तब तक जो इश्क विश करना है, कर ले जीजाजी के साथ." ललित वहां आइने में खुद को निहारने में जुट गया था, बड़ा खुश नजर आ रहा था.
बाहर जाते जाते मेरे पास आकर शान्ताबाई बोलीं "भैयाजी, जरा बुरा मत मानना, आप को कह कर गयी थी कि कुछ नहीं करूंगी पर अभी मैंने अंदर साड़ी पहनाते पहनाते फ़िर से ललित का लंड चूस लिया, आप को बुरा तो नहीं लगेगा भैयाजी?"
"मुझे क्यों बुरा लगेगा बाई? आप को मौसी कहता है आखिर. पर अभी फिर से याने ... अभी एक घंटा पहले ही तो चोदते वक्त आपने चूसा था फ़िर ... "
"अरे साड़ी पहनाते पहनाते मुझसे नहीं रहा गया, और लड़के का शौक तो देखो, साड़ी पहनने के शौक में फ़िर लंड खड़ा हो गया उसका. ऊपर से कहता है कि गोटियां दुखती हैं. असल का रसिक लौंडा है लगता है. मुझसे नहीं रहा गया. याने आज रात को ज्यादा मस्ती नहीं कर पायेगा बेचारा, तीन चार बार तो मेरे साथ ही झड़ा है छोकरा. आप ऐसा करो कि आज सच में आप दोनों आराम कर लो भैयाजी, कल नये दम खम से अपनी प्यार मुहब्बत होने दो"
"ठीक है बाई, मैं आज ललित को तकलीफ़ नहीं दूंगा"
"और मैंने बादमा का हलुआ बहुत सारा बनाया है रात को भी खा लेना, अच्छा होता है सेहत के लिये, खास कर नौजवान मर्दों के लिये. और भैयाजी .... बुरा मत मानना ... एक बात कहनी है ..." वे बोलीं. अब तक हम बाहर ड्राइंग रूम में आ गये थे, ललित अंदर ही था.
"अब मैं क्यों बुरा मानूंगा?" मैंने पूछा.
"अरे आप भरे पूरे मर्द हो, और अधिकतर मर्दों को मैं जो कहने जा रही हूं, वो बात ठीक नहीं लगेगी, पर आप उसको इतना प्यार करते हो इसलिये कह रही हूं. ललित को आप बहुत अच्छे लगते हैं, याने जैसा आपने आज उसके साथ किया, शायद उसको भी आपके साथ वैसा ही करना है. आज उसे साड़ी पहनना सिखाते वक्त मैं जब उसके इस लड़कियों के कपड़े के शौक के बारे में बातें कर रही थी तो वो बोला कि जीजाजी भी अगर ऐसे ... बन जायें तो बला के सेक्सी लगेंगे."
"याने ऐसे लड़कियों के कपड़े पहनकर? ..." मैं अचंभे में आ गया.
"... और भैयाजी ..."
"क्या शान्ताबाई?"
आंख मार कर वे बोलीं "ऐसा मत समझो आप कि उसको बस आपका लंड ही अच्छा लगता है, पूरे बदन पर फिदा है आपके, शरमा कर कह नहीं पाता पर ...’ मेरे चूतड़ को दबा कर शान्ताबाई बोली "इसमें भी बड़ा इन्टरेस्ट लगता है छोरे का"
"ऐसा?" मैंने चकराकर कहा "बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ठीक है, मैं देख लूंगा उसको"
"डांटना मत. वो आपका दीवाना है" कहकर वे दरवाजा खोल रही थीं तो मैंने कहा "परसों जरूर आइये शान्ताबाई. मैं अब रोज रोज तो छुट्टी नहीं ले सकता, आप आयेंगी तो मन बहला रहगा उसका"
कमर पर हाथ रखकर शान्ताबाई बड़ी शोखी से बोलीं "सिर्फ़ मन ही नहीं, तन भी बहला रहेगा मेरे साथ. अब देखो भैयाजी, सिर्फ़ गपशप करने को तो मैं आऊंगी नहीं, इतना हसीन जवान है, खेले निचोड़े बिना नहीं रहा जायेगा मेरे को"
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Read my other stories [/font]
"अब लीना जैसी अप्सरा ... बीवी हो तो ... आदमी बहुत कुछ ... सीख जाता है ... ललित ... पर जरा संभालना पड़ता है ... पटाखा है पटाखा ... कब फूट जाये पता भी नहीं चलता ..." मैंने चोदते हुए कहा.
"हां ललित बेटा ... तुम्हारी दीदी याने एकदम परी है ... हुस्न की परी ...." शान्ताबाई चूतड़ उछालते हुए बोली "जब से वे यहां ... रहने आयीं ... तब से मैं देखती थी हमेशा ... फ़िर मेरे यहां से सब्जी भाजी खरीदने लगीं ... मैं तो बस टक लगाकर देखती रहती थी उनका रूप. और तू जानता है- उसको देखकर मेरी चूत गीली हो जाती थी जैसे किसी मर्द का लंड खड़ा हो जाता होगा. अब उसके सामने मैं क्या हूं , फ़िर भी मेरे पास थोड़ा बहुत माल तो है ना ... " अपने ही स्तनों को गर्व से देखती हुई शान्ताबाई बोली " ... सो मैं भी दिखाती थी उसको अपनी पुरानी टाइट चोली पहन पहन कर. उनकी आंखों को देखकर लगता था कि वे भी मुझे पसंद करती हैं इसलिये बड़ी तमन्ना से रोज राह देखती थी उनकी. और जब एक दिन लीना बाई खुद बोली कि शान्ताबाई, अब भाजी का ठेला छोड़ो और मेरे यहां काम करने को आ जाओ, मेरे को लगा जैसे मन्नत मिल गयी हो"
"वैसे आप भी कम खूबसूरत नहीं हैं शान्ताबाई, बस यह फरक है कि लीना जरा नाजुक और स्लिम है और आप के जलवे एकदम खाये पिये मांसल किस्म के हैं. ये पपीते जैसे स्तन ... या ये कहो कि झूलते नारियल जैसी चूंचियां, ये जामुन या खजूर जैसे निपल, ये नरम नरम डनलोपिलो जैसा पेट, ये घने रेशमी घुंघराले बालों से भरी - घनी झांटों के बीच खिली हुई लाल लाल गीली चिपचिपी गरमागरम चूत ... अब वो रंभा और उर्वशी के पास भी इससे ज्यादा क्या होगा बाई?" मैंने तारीफ़ की. हमेशा करता हूं, बाई ऐसे खिल जाती हैं कि रस का बहाव दुगना हो जाता है. अब भी ऐसा ही हुई, उनमें ऐसा जोर आया कि डबल स्पीड से नीचे से चोदने लगीं.
अब मस्ती में उन्होंने ललित को बैठने को कहा और फ़िर कमर में हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसका लंड मुंह में ले लिया. जब तक ललित ने उनको अपनी क्रीम खिलाई तब तक वे एकदम सर्र से झड़ गयीं. ऐसी झड़ीं कि तीन चार हल्की हल्की चीखें उनके मुंह से निकल गयीं. झड़ने के बाद फ़िर उनको मेरे लंड के धक्के जरा भारी पड़ने लगे. "बस बाबूजी ... भैयाजी अब रुक जाओ ... हो गया मेरा ... " वे कहती रह गयीं पर मैंने उनके होंठ मुंह में लेकर उनकी बोलती बंद कर दी और ऐसा कूटा कि वे तड़प कर अपना सिर इधर उधर फ़ेकने लगीं.
जब वे पांच मिनिट में उठीं तो पूरी लस्त हो गयी थीं. कपड़े पहनते पहनते ललित से बोलीं "तेरे जीजाजी से चुदवा कर मैं एकदम ठंडी हो जाती हूं बेटा ... क्या कूटते हैं ... बड़ा जुलम करते हैं ... मेरे और तुम्हारी दीदी जैसी गरम चूत को ऐसा ही लंड चाहिये नहीं तो जीवन नरक हो जाता है बेटा. खैर, अब मैं चलती हूं, तुम आराम करो"
"मौसी ... तुमने प्रॉमिस किया था" ललित उठकर चिल्लाया.
"अरे भूल ही गयी, चलो बेटा, उस कमरे में चलते हैं" फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "अब ऐसे ना देखो, कुछ ऐसा वैसा नहीं करने वाली इस छोरे के साथ, करना हो तो सरे आम आप के सामने करूंगी. इतनी भयंकर चुदाई के बाद किसी में इतना हौसला नहीं है कि अंदर जाकर शुरू हो जायें. ललित को कुछ सिखाना है, आप बाहर बैठ कर अपना काम करो अब"
मैं बाहर जाकर बैठ गया. मन हो रहा था कि अंदर जाकर देखूं कि क्या चल रहा है पर फ़िर रुक गया.
करीब डेढ़ घंटे बाद शान्ताबाई बाहर आयीं. मुड़ कर बोलीं "आओ ना ललिता रानी, शरमाओ मत"
और अंदर से साड़ी पहनी, पूरी तरह से तैयार हुई एक खूबसूरत लड़की के भेस में ललित बाहर आया. क्या बला का हुस्न था. मैंने सोचा कि ललित बाकी कैसे भी कपड़े पहने, लीना की तरह की सुंदरता उसकी साड़ी में ही निखरती थी.
मेरी आंखों में के प्रशंसा के भाव देखकर शान्ताबाई गर्व से बोलीं "ये खुद पहनी है इसने, आखिर सीख ही गया, एक घंटे में चार पांच बार प्रैक्टिस करवाई मैंने, वैसे सच में शौकीन लड़का है भैयाजी हमारा ललित, नहीं तो लड़कियों को भी आसानी से नहीं आता साड़ी बांधना."
ललित को सीने से लगाकर वे बोलीं "ललित राजा ... अरे अब तुझे ललिता कहने की आदत डालना पड़ेगी, अब मैं परसों आऊंगी, तब तक जो इश्क विश करना है, कर ले जीजाजी के साथ." ललित वहां आइने में खुद को निहारने में जुट गया था, बड़ा खुश नजर आ रहा था.
बाहर जाते जाते मेरे पास आकर शान्ताबाई बोलीं "भैयाजी, जरा बुरा मत मानना, आप को कह कर गयी थी कि कुछ नहीं करूंगी पर अभी मैंने अंदर साड़ी पहनाते पहनाते फ़िर से ललित का लंड चूस लिया, आप को बुरा तो नहीं लगेगा भैयाजी?"
"मुझे क्यों बुरा लगेगा बाई? आप को मौसी कहता है आखिर. पर अभी फिर से याने ... अभी एक घंटा पहले ही तो चोदते वक्त आपने चूसा था फ़िर ... "
"अरे साड़ी पहनाते पहनाते मुझसे नहीं रहा गया, और लड़के का शौक तो देखो, साड़ी पहनने के शौक में फ़िर लंड खड़ा हो गया उसका. ऊपर से कहता है कि गोटियां दुखती हैं. असल का रसिक लौंडा है लगता है. मुझसे नहीं रहा गया. याने आज रात को ज्यादा मस्ती नहीं कर पायेगा बेचारा, तीन चार बार तो मेरे साथ ही झड़ा है छोकरा. आप ऐसा करो कि आज सच में आप दोनों आराम कर लो भैयाजी, कल नये दम खम से अपनी प्यार मुहब्बत होने दो"
"ठीक है बाई, मैं आज ललित को तकलीफ़ नहीं दूंगा"
"और मैंने बादमा का हलुआ बहुत सारा बनाया है रात को भी खा लेना, अच्छा होता है सेहत के लिये, खास कर नौजवान मर्दों के लिये. और भैयाजी .... बुरा मत मानना ... एक बात कहनी है ..." वे बोलीं. अब तक हम बाहर ड्राइंग रूम में आ गये थे, ललित अंदर ही था.
"अब मैं क्यों बुरा मानूंगा?" मैंने पूछा.
"अरे आप भरे पूरे मर्द हो, और अधिकतर मर्दों को मैं जो कहने जा रही हूं, वो बात ठीक नहीं लगेगी, पर आप उसको इतना प्यार करते हो इसलिये कह रही हूं. ललित को आप बहुत अच्छे लगते हैं, याने जैसा आपने आज उसके साथ किया, शायद उसको भी आपके साथ वैसा ही करना है. आज उसे साड़ी पहनना सिखाते वक्त मैं जब उसके इस लड़कियों के कपड़े के शौक के बारे में बातें कर रही थी तो वो बोला कि जीजाजी भी अगर ऐसे ... बन जायें तो बला के सेक्सी लगेंगे."
"याने ऐसे लड़कियों के कपड़े पहनकर? ..." मैं अचंभे में आ गया.
"... और भैयाजी ..."
"क्या शान्ताबाई?"
आंख मार कर वे बोलीं "ऐसा मत समझो आप कि उसको बस आपका लंड ही अच्छा लगता है, पूरे बदन पर फिदा है आपके, शरमा कर कह नहीं पाता पर ...’ मेरे चूतड़ को दबा कर शान्ताबाई बोली "इसमें भी बड़ा इन्टरेस्ट लगता है छोरे का"
"ऐसा?" मैंने चकराकर कहा "बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ठीक है, मैं देख लूंगा उसको"
"डांटना मत. वो आपका दीवाना है" कहकर वे दरवाजा खोल रही थीं तो मैंने कहा "परसों जरूर आइये शान्ताबाई. मैं अब रोज रोज तो छुट्टी नहीं ले सकता, आप आयेंगी तो मन बहला रहगा उसका"
कमर पर हाथ रखकर शान्ताबाई बड़ी शोखी से बोलीं "सिर्फ़ मन ही नहीं, तन भी बहला रहेगा मेरे साथ. अब देखो भैयाजी, सिर्फ़ गपशप करने को तो मैं आऊंगी नहीं, इतना हसीन जवान है, खेले निचोड़े बिना नहीं रहा जायेगा मेरे को"
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Read my other stories [/font]