Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास - Page 9 - SexBaba
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Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास

चेतन शन्नो की चूत के बालो पर अपना लंड रगडे जा रहा था ताकि उसकी चूत की गर्मी बरकरार रहे... वो बोला

"हमारा दिल्ली का टिकेट कॅन्सल करदो... सिर्फ़ डॉली और ललिता को जाने दो.. ताकि हम दोनो यहाँ कुच्छ दिन रह सके"

अभी को देखते हुए शन्नो की चूत की प्यास के सामने ये बात कुच्छ मायने नहीं रखती थी और उसने चेतन से वादा कर दिया.... चेतन ये सुनकर ही शन्नो की चूत को फिर से ठोकने लगा... और उसने अपने सिर को नीचे करा और दोनो मा बेटे

ने एक दूसरे के होंठो को चूम लिया... दोनो की ज़ुबान एक दूसरे से पेच लगाने लगी और चेतन को पता भी नहीं

चला कि उसने अपनी मा की चूत में ही सारा पानी डाल दिया.... शन्नो को इस बात से कोई ख़तरा नहीं था क्यूंकी और बच्चे पैदा ना करने की वजह से उसने अपनी चूत को सील करवा रखा था.... शन्नो ये हसीन पल रखते हुए अपने कमरे

में जाकर सो गयी...

कल रात की चुदाई के कारण शन्नो बहुत ही गहरी नींद में सोई पड़ी थी... घर की घंटी बजे जा रही थी मगर उसको

कुच्छ होश नहीं था.... शोर से परेशान ललिता अपने बिस्तर से उठी और दरवाज़ा खोलने गयी...

ललिता की आँखें नींद के मारे खुल भी नहीं पा रही थी उसने दरवाज़ा खोला तो उसकी नज़रो के सामने दूध वाला

खड़ा था.... ललिता को पता नहीं चला था कि उसने फिलहाल एक टाइट सफेद रंग का टॉप पहेन रखा था जोकि उसके

स्तनो से बुर्री तरह चिपकी हुई थी जिस कारण उसकी चुचियाँ दूध वालो की नज़रे के सामने थी....

दूधवाला वाला चाह के भी अपने आपको रोक नहीं पाया और ललिता की चुचियाँ को देख कर बोला "दूध.....

लाया हूँ पतीला लेके आओ"

ललिता मूड के किचन की तरफ बढ़ी तो दूधवाला उसकी पीठ को लग गया कि छोरि ने अंदर कुच्छ नहीं पहेन रखा....

ललिता पतीला ढूँढ के वापस दूधवाले के पास गयी और वो बंदा पतीले में दूध डालने लगा मगर उसकी तिर्छि

निगाहें ललिता के दूध पर थी.... उसका इतना मन कर रहा था उनको महसूस करने का कि वो उसके लिए 200 रुपये

भी देदेता मगर ऐसा कुच्छ हुआ नहीं... ललिता दूध का पतीला लेके उस दूधवाले के मुँह पे दरवाज़ा मारके फिर

से सोने चली गयी.... दूधवाले ने अपने तने हुए लंड को ठीक करा और वहाँ से चलता बना....

सुबह एक एक करके सब जाते गये और घर खाली होता गया सिर्फ़ शन्नो घर पे अकेली रह गयी....

वो अपने कल किए गये वादे के बारे में सोच रही थी जो उसने अपने बेटे से किया था मगर उसको पूरा करने

में उसे डर लग रहा था.... वो चाहती तो थी अपने बेटे के साथ कुच्छ दिन अकेले गुज़ारने की मगर उसे नही लगता

था कि उसका पति ऐसा कुच्छ होने देगा.... उसने फोन उठाके कयि बारी कॉल करने की कोशिश करी मगर उसे समझ

नही आ रहा था कि वो क्या बहाने बनाए जिससे नारायण उसकी बात मान जाए... पूरे दिन उसके दिमाग़ में

बस यही चल रहा था और फिर चेतन अपना एग्ज़ॅम देकर घर लौटा.... घर में घुसते ही उसने अपनी मम्मी से पूछा

"टिकेट करा दिया दीदी और ललिता का??" शन्नो के पास इस सवाल का कुच्छ जवाब नही था और चेतन गुस्से में अपने कमरे में चला गया.... काफ़ी देर तक शन्नो ने उसे मनाने की कोशिश करी मगर चेतन अपने कमरे का दरवाज़ा बंद

करके बैठ गया था... हारकर शन्नो घर का समान लेने के लिए बाहर चली गयी.... उसने सोच लिया था कि ये सिलसिला

ज़्यादा दिन तक चल नही पाएगा क्यूंकी एक ना एक दिन तो उसे अपने पति के पास जाना ही होगा और उसके बाद इन

सब चीज़ो को रोकना होगा और सबके लिए बेहतर यही था कि जितना जल्दी हो सके ये रुक जाए....

शन्नो ने घर का सारा समान ले लिया था और पूरी हिम्मत से वो अपने घर की तरफ मूडी...

क्रमशः…………………..
 
गतान्क से आगे……………………………………

घर पहूचकर जब उसने घंटी बजाई तो दरवाज़ा किसी ने नही खोला... शन्नो को लगा कि चेतन सो ना गया हो तो उसने

उसके मोबाइल पर कॉल करा मगर उसने फोन भी नहीं उठाया... कुच्छ 10 सेक बाद दरवाज़ा खुला और दरवाज़ा खोलकर

ही वो सीधा अपने कमरे में चला गया.... शन्नो ने दरवाज़ा बंद करा और चेतन को प्यार से पुकारती हुई उसके

पीछे पीछे गयी और कमरे के दरवाज़े के पास पहूचकर ही उसके पाओ रुक गये....

चेतन के बिस्तर पे उसकी बहन आकांक्षा बैठी हुई थी और वो भी उपर से नंगी... उसके स्तनो को मसलता हुआ चेतन

आकांक्षा की चुचिओ से उसके मम्मो का दूध पीने लगा.... आकांक्षा ने उस वक़्त अपनी आँखें बंद कर रखी थी

लेकिन उसके चेहरे से सॉफ अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चेतन अपना काम बहुत अच्छे से कर रहा था...

शन्नो की नज़रे उसकी बहन के हाथ पे पड़ी जो चेतन के बदन पे लहराता हुआ उसके लंड तक पहुच गया...

चेतन का लंड उसकी जीन्स में था मगर आकांक्षा उससे तब भी खेल रही थी... चेतन फिर अपनी मौसी के स्तनो को

छोड़कर उसके होंठो की तरफ बढ़ा और दोनो एक दूसरे को चूमने लगे... शन्नो वही खड़ी ये सब देख रही थी...

जब चुंबन टूटा आकांक्षा ने आँखे खोली तो शन्नो को देख कर बोली " चेतन यहा बड़ी दखलंदाज़ी हो रही है...

तुम मेरे साथ चलो"

आकांक्षा ने चेतन का हाथ थामा और शन्नो की आँखों के सामने से उसे अपने साथ लेकर घर से चली गयी....

ये देख कर शन्नो फर्श पे गिर के मन ही मन रोने लगी....

उधर नारायण की हालत बहुत ज़्यादा खराब थी... उसे रश्मि की बातों में बहुत ज़्यादा दम लग रहा था और अगर

वो वाली बात सबके सामने आ गयी तो उसकी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी... नौकरी के साथ साथ बीवी बच्चे पूरा समाज

उसपे थू थू करेगा... ऑफीस में रश्मि नारायण के काम में ज़रा सा भी अड़ंगा नहीं लगाती मगर उसको किसी ना किसी

तरह एहसास दिलाती रहती कि वो कितनी बड़ी मुसीबत में फसा हुआ था... कल रात रश्मि ने बना हुआ म्‍मस क्लिप नारायण के मोबाइल पे भेजा था जिसको देख कर वो हक्का बक्का रह गया था.... और आज ही डर के कारण उसने रश्मि को 20000 रुपय कॅश में दे दिए थे ताकि उसका मुँह बंद रहे.... उसे एक बात समझ नही आ रही थी कि वो स्कूल की लड़की रीत भी इस प्लान में शामिल थी या फिर उसको भी रश्मि ने इस्तेमाल करा था... स्कूल ख़तम होने के पहले रश्मि

एक बार फिर से नारायण के कॅबिन में आई... वो नारायण की तरफ चलकर गयी और अपने सीधे हाथ से उसका

लंड बड़ी क्रूरता सा दबोच लिया और हंस पड़ी... उसी वक़्त उसका मोबाइल बज गया और रश्मि वहाँ से चली गयी....

नारायण ने फोन पे नाम देखा तो वो उसकी बीवी शन्नो का था.....

नारायण ने घबराकर पूछा " हेलो... हां बोलो शन्नो"

शन्नो भी घबराकर बोली "अच्च्छा सुनिए ऐसा हो सकता कि मैं बच्चो का टिकेट कर्वादु और खुद थोड़ा लेट आ जाउ"

"क्यूँ?? क्या हो हो गया" नारायण ने पूछा

शन्नो बहुत सोच समझकर बोली "नहीं हुआ कुच्छ नहीं... वो मेरी बहन आकांक्षा है ना वो आएगी देहरादून से कुच्छ दिन के लिए मुझसे मिलने के लिए तो इसलिए लेट हो जाउन्गि.. और बच्चे आपके पास आना चाह रहे है"

ये सुनके नारायण को भी राहत मिली की उसको भी थोड़ा समय मिल जाएगा रश्मि का इलाज करने के लिए और वो बोला

"ठीक है मगर एक काम करो कि चेतन को वही रोक लो ताकि तुम यहाँ अकेली ना आओ... और ललिता और डॉली का टिकेट करदो"

दोनो ने फोन रखा और शन्नो को हद्द से ज़्यादा खुशी हुई कि नारायण ने बिना गुस्सा करें उसकी बात मान ली....

उसने तुर्रंत दोनो बेटिओ का टिकेट बुक करवा दिया जोकि परसो की ट्रेन का ही मिल गया था... नारायण भी अब सोचने लग गया था

कि इस रश्मि वाली बात को जड़ से उखाड़ना ही पड़ेगा...

ललिता का आखरी एग्ज़ॅम था ये और जैसे कि सभी दोस्तो में होता है सबने एग्ज़ॅम के बाद ही एक आखरी बारी कुच्छ वक़्त साथ गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया... ललिता को इस बात की खुशी थी कि वो आखरी बारी अपने दोस्तो के साथ मज़े करेगीमगर झिझक इस बात की थी कि उन्न दोस्तो में एक रिचा भी थी...

सभी दोस्तो ने मिलके मूवी देखने का प्लान बनाया और एक साथ रोक्क्स्टार पिक्चर देखने चले गये... बीच में रिचा4 ने ललिता से बात करने की कोशिश भी करी मगर ललिता ने उसको एक बार भी कुच्छ भी जवाब नहीं दिया...

हारकर वो भी अब ललिता से दूर दूर रहने लगी... पिक्चर कुच्छ 5:30 बजे तक ख़तम हो गयी थी और एक-दो को

छोड़कर बाकी सबको पिक्चर बहुत ही ज़्यादा बकवास लगी... सब पिक्चर का मज़ाक बनाने लगे थे... मगर सारे लड़के

नरगिस की आदाओ के दीवाने हो चुके थे,... फिर अचानक एक लड़के ने बोला " यारो मुझे जनपथ की तरफ कुच्छ काम है

तो अगर चाहो हम CP घूम सकते है साथ में"
 
रिचा ने ये सुनकर ही सॉफ इनकार कर दिया कि उसे घर जाना होगा और यही सुनके ललिता ने एक दम से हां कर दी...

रिचा को समझ आ गया था कि ललिता ने हां क्यूँ करी थी और रूठ कर वो अपने घर के लिए चली गयी...

साथ ही साथ एक और लड़की और दो लड़के उनके भी अपने घर चले गये थे.... अब सिर्फ़ ललिता के साथ उसकी दोस्त पायल,

अमित, सुमित सिद्धार्थ (सिड) बचे थे.... सबने दिल्ली मेट्रो पकड़ी और राजीव चोव्क के लिए रवाना हो गये...

ललिता ने कयि बारी सुना था कि मेट्रो में लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ होती है मगर उसको ऐसा कुच्छ भी नहीं लगा... शायद उसके साथ 3 लड़के खड़े थे तो शायद किसी ने हिम्मत नही करी होगी... खैर मेट्रो से उतरते वक़्त ललिता

को उसकी कमर पर एक हाथ ज़रूर महसूस हुआ जिसका उसने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया... पाँचो दोस्त राजीव चोव्क से निकले

और जनपथ की तरफ बढ़े... सिड का काम पूरा होकर ही अमित बोला "यार पालिका बेज़ार भी चलो मैं कपड़े ले लूँगा अपने लिए"

ललिता बोली "हां बेटा मेरे जाने से पहले मुझे दिल्ली दर्शन करवा दो पूरा" ये सुनके सब हंस पड़े और सिड के साथ

पालिका बाज़ार चले गये...

ललिता पालिका बाज़ार काई सालो के बाद आई थी.. पहले वो अपने पापा और शायद भाई के साथ आई थी मगर अकेले कभीनहीं आई थी क्यूंकी यहा का माहौल ही बड़ा ख़तरनाक हुआ करता था लड़कियों के लिए...

रात के कुच्छ 7 बजे जब वो पालिका पहुचे तो ललिता वहाँ लगे मेटल डिटेक्टर को देख कर चौक गयी...

उसे नहीं लगता कि पालिका बाज़ार में भी सेक्यूरिटी चेक होने लग गयी है.... जब वो अपने पर्स को चेक करवाकर

निकली तो तीनो को लड़को ने 2 मिनट माँगे और साथ में लड़को के टाय्लेट में चले गये.... पायल और ललिता वही खड़े

थे और जो भी आदमी वहाँ से आता जाता उन दो लड़कियों पे नज़र पड़ते ही मचल जाता.... फिर पायल भी टाय्लेट जाने के

लिए ललिता को कहने लगी शायद वो इन्न गंदे आदमियो की वजह से परेशान हो गयी थी तो ललिता और वो दोनो लड़कियों

के टाय्लेट चले गये.... ललिता जब पायल के साथ वाले टाय्लेट में घुसी तो उसे बड़ा अचम्बा हुआ कि उस दरवाज़े पे

कयि सारे फोन नंबर. और गंदी चीज़े लिखी हुई थी.... ललिता को अचम्बा इसलिए हुआ कि ये सारी चीज़े लड़को ने यहाँ

घुसकर कैसे लिख दी क्यूंकी ये तो लड़कियों का टाय्लेट है..... उधर एक चित्र भी बनाया हुआ था जिसमे एक लंबा सा लंड एक लड़की की चूत में घुसा हुआ था और इसके नीचे लिखा हुआ था "अगर ऐसा लंड चाहिए तो कॉल करें इस नंबर. पर"

इन चीज़ो को पढ़कर ललिता को हल्की सी नमी महसूस होने लगी.... ना चाहते हुए भी उसने अपनी जीन्स का बटन खोला और अपनी

चड्डी समैत उसको उतारा और एक गंदे से हुक में टाँग दिया.... उस इंडियन टाय्लेट के उधर बैठ गयी जिसका आलसी रंग

तो सफेद था मगर पेशाब की वजह से पीला हो पड़ा था... उसकी चूत में से धार की तरह पानी आने लगा और

उस सफेद टाय्लेट पर पड़ कर शोर मचने लगा.... ललिता पूरी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा आवाज़ ना आए मगर

उसका कोई फरक नही पड़ रहा था.... उस तरह बैठने में भी उसकी टाँगो में दर्द होने लगा क्यूंकी कयि साल हो गये

थे उसे इंडियन टाय्लेट इस्तेमाल करें हुए.... उसने अपने पर्स में से टिश्यू निकाला और अपनी चूत को सॉफ करते

हुए अपनी जीन्स को पहना और वहाँ से निकल गयी.... जब वो टाय्लेट के बाहर आई तो तीनो लड़को के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी... जब वो पालिका के अंदर की तरफ गयी तो इतने सालो के बाद कुच्छ बदलाव नहीं आया था...

हां थोड़ा सॉफ सुथरा लग रहा था, एस्कलाटेर्स लगा रखके थे मगर वहाँ की जनता वैसी की वैसी ही थी...

मुँह में पान गंदे कपड़े, दाढ़ी बढ़ी हुई अपनी पॅंट को खुजाते हुए जितनी भी लड़किया थी उनको कुत्तो की तरह ललचा रहे

थे... ललिता को हँसी इस बात पे आ रही थी कि उसकी दोस्त पायल और उसने जीन्स और टी-शर्ट पहेन रखी थी तब भी

वहाँ के लोग आँखो से उन दोनो का बलात्कार कर रहे थे...

खैर कपड़े लेते हुए अमित को कयि साल लग गये और बाकी दोनो लड़के भी उसकी मदद करने लग गये...

पायल और ललिता इतना बोर हो गये थे कि अब और वहाँ रुकना उनके बॅस की नहीं थी.... लड़को को बताकर वो वहाँ से

चले गये... दोनो ने सोचा तो यही था कि वो पालिका से निकलके बाहर घूमेंगे मगर कुच्छ देर में ही पायल ने ललिता

को रोक लिया.... ललिता को बिना कुच्छ बताए पायल उसे फर्स्ट फ्लोर पे ले गयी जाहान नीचे से कुच्छ कम भीड़ थी

मतलब कुच्छ कम आदमी थे... अब दो लड़कियों के देखकर कुच्छ लड़के उनके आगे पीछे मंडराने लगे थे और

काफ़ी आदमी उनके पास कुच्छ ना कुच्छ बेचने के समान ला रहे थे... पायल ललिता को लेके चलती रही और फिर

एक खाली दुकान में जाके रुक गयी... वो दुकान काफ़ी छोटी सी थी और वहाँ एक 30-35 साल का हरयान्वी आदमी बैठा हुआ था... एक साधारण सी शर्ट और पॅंट में में एक कुर्सी पे बैठा हुआ न्यूसपेपर पढ़ रहा था...

"हेलो" पायल की आवाज़ सुनकर ही उसने न्यूसपेपर झट से हटाया और दो जवान और खूबसूरत लड़कियों के देखकर

एक बड़ी सी मुस्कान उसके चेहरे पे छा गयी... ललिता की नज़र उस आदमी के पेट पर पड़ी जोकि उसके दुकान के

कोने कोने पर टक्कर खा रहा था...
 
पायल ने भी मुस्कुरकर बोला "मुझे कुच्छ मूवीस की सीडीज़ चाहिए"

वो आदमी बोला "जी कौनसी चाहिए मेडम हिन्दी वाली या अँग्रेज़ी"

पायल बोली "फिलहाल हिन्दी दिखा दो"

वो आदमी ने एक बड़ा सा बंड्ल निकाला और उसमें काई सारी पिक्चरो की सीडीज़ दिखाने लग गया....

ललिता भी पायल के साथ उनको देखने लगी... ललिता की नज़र कयि सारी बी-ग्रेड मूवीस पर पड़ी और उनके नाम

पढ़कर मन ही मन हंस पड़ी... उनमें से एक का नाम पढ़कर वो हंस ही पड़ी वो नाम था "खेत में गुटार गू"

पायल ने दो-तीन मूवीस रखली और बोली "और भी है क्या"

वो आदमी बोला "नहीं और तो हिन्दी में नहीं होगी... साउत इंडियन ही होंगी"

पायल अपना सिर हिलाके बोली "नहीं वो नहीं चाहिए और कुच्छ"

ललिता को क्यूँ लग रहा था कि वो आदमी बार बार उसके मम्मो पे नज़रे घूमाए जा रहा था...

पायल के मम्मो उससे छोटे थे शायद इस बात का मज़ा ललिता को मिल रहा था... वो आदमी बोला

"बाकी तो भोज पुरी ही होंगी... या फिर डबल क्ष या ट्रिपल क्ष" ये बोलने में वो आदमी काफ़ी झिझक रहा था मगर

जब उसने पायल के मुँह से सुना "हां वो दिखाना" उसकी तो हवा ही निकल गयी... वो ही हाल ललिता का भी था..

उसे नहीं पता था कि उसकी दोस्त उसको खीचकर अडल्ट मूवी खरीदने आई है... ललिता भी अब उसको छोड़के

जा नहीं सकती थी या फिर जाना नहीं चाहती थी...

उस आदमी ने अपनी ड्रॉयर में काई सारी मूवीस निकालके दोनो लड़कियों के सामने रख दी... उसके चेहरे से

सॉफ ज़ाहिर हो गया कि मुश्किल से ही कभी लड़किया ऐसी मूवी खरीदने आती होंगी और वो शाम के सात बजे तो

नामुमकिन ही था... हर एक सीडी के कवर पे गंदी सी लड़किया आधे आधे कपड़ो में थी... पायल सीडीज़ को छाँटने लग

गयी और वो आदमी बड़ा उत्सुक्त होकर उसको बताने लगा कि "मेडम ये वाली अच्छी है.. इसको लीजिए आप...

इससे बेहतर तो पिच्छली वाली थी"

दोनो लड़किया समझ गयी थी कि ये हर रोज़ नयी पॉर्न देखता होगा घर लेजाकर तभी साले को इतना पता है...

पायल भी अब उस आदमी से काफ़ी खुल के बात कर रही थी जिससे ललिता को भी जोश आ गया... रिचा के घर इतनी

सारी पॉर्न देखने के बाद वो भी उन्हे पसंद करने लग गयी थी और उसने भी 2-3 सीडीज़ अपने लिए अलग से निकाल ली...

उस बंदे ने सीडीज़ को एक पोलिथीन में डालके एक भूरा पेपर बॅग में डालते हुए कहा 'मेडम एक बात बोलू...

बुर्रा ना मानना.. इन सीडीज़ में ज़्यादा कुच्छ रखा नहीं है... असली में करने में जो बात है वो इनमे नही है"

उस आदमी की इस बात को सुनके दोनो लड़कियों ने एक शर्मिंदगी वाली मुस्कुराहट मारी मगर अंदर ही अंदर वो

हंस पड़े थे... ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ललिता और पायल ने उन्न सीडीज़ को अपने पर्स में डाला और

अपने दोस्तो के पास चले गये...

ललिता को छोड़के बाकी सारे एक साथ एक मेट्रो में चढ़ गये... ललिता अपने घर जाने के लिए मेट्रो में

चढ़ गयी और खड़ी रहकर उस बंदे की गंदी बात पे ध्यान देने लगी की असली में जो करने में मज़े है वो

इन्न सीडीज़ में नहीं है.... अगला स्टेशन बारहखंबा था और ललिता ने एक बहुत अजीब सा काम कर दिया...
 
वो उस स्टेशन पे उतरके वापस उस ट्रेन में चढ़ि मगर इस बार एक नॉर्मल वाले डिब्बे में जहाँ 3-4

औरतो को छोड़के दूर दूर तक सिर्फ़ आदमी ही दिखाई दे रहे थे... इतनी छ्होटी उम्र की लड़की के बदन

पर इतने बड़े खरबूजो को देख कर सभी लड़को आदमियों का मन खराब हो रहा था... उन आदमियो को धक्का

दे दे कर कहीं सुरक्षित खड़ा होना बड़ा ही मुश्किल काम था और ललिता वो करने भी नहीं आई थी....

वो सीधे दरवाज़े से थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गयी पोल को पकड़ कर... उसके आगे पीछे लड़के आदमी का

ही घेरा बँधा हुआ था... ललिता को वो पॉर्न याद आगाई जो उसने रिचा के घर पे देखी थी जिसमें एक स्कूल

की लड़की को कयि लोगो ने मिलके बस में चोदा था... वो सोचके ही ललिता को मस्ती चढ़ गयी...

ट्रेन के चलते ही ललिता का बदन कई लोगो के बदन से टकराया... ललिता के आगे दो लड़के खड़े थे जो उसी की

उम्र के थे.. दोनो दोस्त लग रहे थे जोकि शायद ललिता के बारे में ही कानापूसी कर रहे थे...

उनकी नज़रो के सामने ललिता के मम्मे थे जिन्हे छूने का उनका बड़ा मन कर रहा था मगर उनमे हिम्मत

नहीं थी... ललिता को इन महीनो में इतना पता था बड़े, लो क्लास लोगो में असली गुर्दा होता है और चोद्ने की

ताक़त भी और कहीं ना कहीं वो उन्ही का इंतेज़ार कर रही थी.... मगर अगले स्टेशन्स पे भीड़ बढ़ी ललिता धक्के

खा खा कर उन दोनो लड़को के बीच में खड़ी हो गयी... साइड से देखने में ललिता के मम्मे और

भी रोमांचक लग रहे थे... दोनो दोस्त बात करने के बहाने ललिता के स्तनो पे नज़रे घुमा रहे थे जिससे

ललिता को ज़रा भी दिक्कत नहीं थी...फिर ट्रेन पे हल्के सा झटका लगा और उल्टे हाथ पे खड़े लड़के

के कंधे ने ललिता के उल्टे स्तन को च्छू लिया... उस लड़के के चेहरे पे इतनी खुशी छ्छा गयी थी कि जैसे ओलिमपिक्स

में गोल्ड मेडल मिल गया.....ललिता दोनो के बीच खड़े हुए काफ़ी बोर हो गयी थी तब उसको लगा कि अब

उसे कुच्छ करना पड़ेगा तो ललिता ने अपना पर्स खोला और उसमें से उन खरीदी हुई सीडीज़ को निकाला और

बड़ी शान से उन्हे देखने लगी... उसे नहीं मालूम था कि कितने लोग उस सीडी पे बने कवर को देख पा

रहे थे मगर इतना पक्का था कि उन दोनो लड़को की आँखें फॅटी की फॅटी रह गयी थी...

ललिता के हाथो से एक सीडी नीचे गिर गयी तो दोनो लड़के उत्साहित होके नीचे झुके और उनमें से एक ने उस

सीडी को पकड़के ललिता को दे दिया... ललिता दोनो के बच्पने को देखकर अंदर ही अंदर हंस पड़ी...

फिर आनंद विहार स्टेशन भी आ गया और उन लड़को ने कुच्छ भी नही करा... ललिता मन मारकर स्टेशन से उतरी

और वहाँ से बाहर निकलने लगी... उसको एक एहसास सा हो गया था कि वो दो लड़के उसके पीछे ही आ रहे है...

ललिता स्टेशन के बाहर भी निकल गयी और तब भी वो उसके पीछे ही आते गये और फिर उन में से एक लड़के ने

ललिता की कमर पे झपट्टा मारा... ललिता ने उस लड़के का हाथ हटा दिया और आगे चलने लगी...

क्रमशः…………………..
 
गतान्क से आगे……………………………………

घर पहूचकर जब उसने घंटी बजाई तो दरवाज़ा किसी ने नही खोला... शन्नो को लगा कि चेतन सो ना गया हो तो उसने

उसके मोबाइल पर कॉल करा मगर उसने फोन भी नहीं उठाया... कुच्छ 10 सेक बाद दरवाज़ा खुला और दरवाज़ा खोलकर

ही वो सीधा अपने कमरे में चला गया.... शन्नो ने दरवाज़ा बंद करा और चेतन को प्यार से पुकारती हुई उसके

पीछे पीछे गयी और कमरे के दरवाज़े के पास पहूचकर ही उसके पाओ रुक गये....

चेतन के बिस्तर पे उसकी बहन आकांक्षा बैठी हुई थी और वो भी उपर से नंगी... उसके स्तनो को मसलता हुआ चेतन

आकांक्षा की चुचिओ से उसके मम्मो का दूध पीने लगा.... आकांक्षा ने उस वक़्त अपनी आँखें बंद कर रखी थी

लेकिन उसके चेहरे से सॉफ अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चेतन अपना काम बहुत अच्छे से कर रहा था...

शन्नो की नज़रे उसकी बहन के हाथ पे पड़ी जो चेतन के बदन पे लहराता हुआ उसके लंड तक पहुच गया...

चेतन का लंड उसकी जीन्स में था मगर आकांक्षा उससे तब भी खेल रही थी... चेतन फिर अपनी मौसी के स्तनो को

छोड़कर उसके होंठो की तरफ बढ़ा और दोनो एक दूसरे को चूमने लगे... शन्नो वही खड़ी ये सब देख रही थी...

जब चुंबन टूटा आकांक्षा ने आँखे खोली तो शन्नो को देख कर बोली " चेतन यहा बड़ी दखलंदाज़ी हो रही है...

तुम मेरे साथ चलो"

आकांक्षा ने चेतन का हाथ थामा और शन्नो की आँखों के सामने से उसे अपने साथ लेकर घर से चली गयी....

ये देख कर शन्नो फर्श पे गिर के मन ही मन रोने लगी....

उधर नारायण की हालत बहुत ज़्यादा खराब थी... उसे रश्मि की बातों में बहुत ज़्यादा दम लग रहा था और अगर

वो वाली बात सबके सामने आ गयी तो उसकी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी... नौकरी के साथ साथ बीवी बच्चे पूरा समाज

उसपे थू थू करेगा... ऑफीस में रश्मि नारायण के काम में ज़रा सा भी अड़ंगा नहीं लगाती मगर उसको किसी ना किसी

तरह एहसास दिलाती रहती कि वो कितनी बड़ी मुसीबत में फसा हुआ था... कल रात रश्मि ने बना हुआ म्‍मस क्लिप नारायण के मोबाइल पे भेजा था जिसको देख कर वो हक्का बक्का रह गया था.... और आज ही डर के कारण उसने रश्मि को 20000 रुपय कॅश में दे दिए थे ताकि उसका मुँह बंद रहे.... उसे एक बात समझ नही आ रही थी कि वो स्कूल की लड़की रीत भी इस प्लान में शामिल थी या फिर उसको भी रश्मि ने इस्तेमाल करा था... स्कूल ख़तम होने के पहले रश्मि

एक बार फिर से नारायण के कॅबिन में आई... वो नारायण की तरफ चलकर गयी और अपने सीधे हाथ से उसका

लंड बड़ी क्रूरता सा दबोच लिया और हंस पड़ी... उसी वक़्त उसका मोबाइल बज गया और रश्मि वहाँ से चली गयी....

नारायण ने फोन पे नाम देखा तो वो उसकी बीवी शन्नो का था.....

नारायण ने घबराकर पूछा " हेलो... हां बोलो शन्नो"

शन्नो भी घबराकर बोली "अच्च्छा सुनिए ऐसा हो सकता कि मैं बच्चो का टिकेट कर्वादु और खुद थोड़ा लेट आ जाउ"

"क्यूँ?? क्या हो हो गया" नारायण ने पूछा

शन्नो बहुत सोच समझकर बोली "नहीं हुआ कुच्छ नहीं... वो मेरी बहन आकांक्षा है ना वो आएगी देहरादून से कुच्छ दिन के लिए मुझसे मिलने के लिए तो इसलिए लेट हो जाउन्गि.. और बच्चे आपके पास आना चाह रहे है"

ये सुनके नारायण को भी राहत मिली की उसको भी थोड़ा समय मिल जाएगा रश्मि का इलाज करने के लिए और वो बोला

"ठीक है मगर एक काम करो कि चेतन को वही रोक लो ताकि तुम यहाँ अकेली ना आओ... और ललिता और डॉली का टिकेट करदो"

दोनो ने फोन रखा और शन्नो को हद्द से ज़्यादा खुशी हुई कि नारायण ने बिना गुस्सा करें उसकी बात मान ली....

उसने तुर्रंत दोनो बेटिओ का टिकेट बुक करवा दिया जोकि परसो की ट्रेन का ही मिल गया था... नारायण भी अब सोचने लग गया था

कि इस रश्मि वाली बात को जड़ से उखाड़ना ही पड़ेगा...

ललिता का आखरी एग्ज़ॅम था ये और जैसे कि सभी दोस्तो में होता है सबने एग्ज़ॅम के बाद ही एक आखरी बारी कुच्छ वक़्त साथ गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया... ललिता को इस बात की खुशी थी कि वो आखरी बारी अपने दोस्तो के साथ मज़े करेगीमगर झिझक इस बात की थी कि उन्न दोस्तो में एक रिचा भी थी...

सभी दोस्तो ने मिलके मूवी देखने का प्लान बनाया और एक साथ रोक्क्स्टार पिक्चर देखने चले गये... बीच में रिचा4 ने ललिता से बात करने की कोशिश भी करी मगर ललिता ने उसको एक बार भी कुच्छ भी जवाब नहीं दिया...

हारकर वो भी अब ललिता से दूर दूर रहने लगी... पिक्चर कुच्छ 5:30 बजे तक ख़तम हो गयी थी और एक-दो को

छोड़कर बाकी सबको पिक्चर बहुत ही ज़्यादा बकवास लगी... सब पिक्चर का मज़ाक बनाने लगे थे... मगर सारे लड़के

नरगिस की आदाओ के दीवाने हो चुके थे,... फिर अचानक एक लड़के ने बोला " यारो मुझे जनपथ की तरफ कुच्छ काम है

तो अगर चाहो हम CP घूम सकते है साथ में"
 
रिचा ने ये सुनकर ही सॉफ इनकार कर दिया कि उसे घर जाना होगा और यही सुनके ललिता ने एक दम से हां कर दी...

रिचा को समझ आ गया था कि ललिता ने हां क्यूँ करी थी और रूठ कर वो अपने घर के लिए चली गयी...

साथ ही साथ एक और लड़की और दो लड़के उनके भी अपने घर चले गये थे.... अब सिर्फ़ ललिता के साथ उसकी दोस्त पायल,

अमित, सुमित सिद्धार्थ (सिड) बचे थे.... सबने दिल्ली मेट्रो पकड़ी और राजीव चोव्क के लिए रवाना हो गये...

ललिता ने कयि बारी सुना था कि मेट्रो में लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ होती है मगर उसको ऐसा कुच्छ भी नहीं लगा... शायद उसके साथ 3 लड़के खड़े थे तो शायद किसी ने हिम्मत नही करी होगी... खैर मेट्रो से उतरते वक़्त ललिता

को उसकी कमर पर एक हाथ ज़रूर महसूस हुआ जिसका उसने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया... पाँचो दोस्त राजीव चोव्क से निकले

और जनपथ की तरफ बढ़े... सिड का काम पूरा होकर ही अमित बोला "यार पालिका बेज़ार भी चलो मैं कपड़े ले लूँगा अपने लिए"

ललिता बोली "हां बेटा मेरे जाने से पहले मुझे दिल्ली दर्शन करवा दो पूरा" ये सुनके सब हंस पड़े और सिड के साथ

पालिका बाज़ार चले गये...

ललिता पालिका बाज़ार काई सालो के बाद आई थी.. पहले वो अपने पापा और शायद भाई के साथ आई थी मगर अकेले कभीनहीं आई थी क्यूंकी यहा का माहौल ही बड़ा ख़तरनाक हुआ करता था लड़कियों के लिए...

रात के कुच्छ 7 बजे जब वो पालिका पहुचे तो ललिता वहाँ लगे मेटल डिटेक्टर को देख कर चौक गयी...

उसे नहीं लगता कि पालिका बाज़ार में भी सेक्यूरिटी चेक होने लग गयी है.... जब वो अपने पर्स को चेक करवाकर

निकली तो तीनो को लड़को ने 2 मिनट माँगे और साथ में लड़को के टाय्लेट में चले गये.... पायल और ललिता वही खड़े

थे और जो भी आदमी वहाँ से आता जाता उन दो लड़कियों पे नज़र पड़ते ही मचल जाता.... फिर पायल भी टाय्लेट जाने के

लिए ललिता को कहने लगी शायद वो इन्न गंदे आदमियो की वजह से परेशान हो गयी थी तो ललिता और वो दोनो लड़कियों

के टाय्लेट चले गये.... ललिता जब पायल के साथ वाले टाय्लेट में घुसी तो उसे बड़ा अचम्बा हुआ कि उस दरवाज़े पे

कयि सारे फोन नंबर. और गंदी चीज़े लिखी हुई थी.... ललिता को अचम्बा इसलिए हुआ कि ये सारी चीज़े लड़को ने यहाँ

घुसकर कैसे लिख दी क्यूंकी ये तो लड़कियों का टाय्लेट है..... उधर एक चित्र भी बनाया हुआ था जिसमे एक लंबा सा लंड एक लड़की की चूत में घुसा हुआ था और इसके नीचे लिखा हुआ था "अगर ऐसा लंड चाहिए तो कॉल करें इस नंबर. पर"

इन चीज़ो को पढ़कर ललिता को हल्की सी नमी महसूस होने लगी.... ना चाहते हुए भी उसने अपनी जीन्स का बटन खोला और अपनी

चड्डी समैत उसको उतारा और एक गंदे से हुक में टाँग दिया.... उस इंडियन टाय्लेट के उधर बैठ गयी जिसका आलसी रंग

तो सफेद था मगर पेशाब की वजह से पीला हो पड़ा था... उसकी चूत में से धार की तरह पानी आने लगा और

उस सफेद टाय्लेट पर पड़ कर शोर मचने लगा.... ललिता पूरी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा आवाज़ ना आए मगर

उसका कोई फरक नही पड़ रहा था.... उस तरह बैठने में भी उसकी टाँगो में दर्द होने लगा क्यूंकी कयि साल हो गये

थे उसे इंडियन टाय्लेट इस्तेमाल करें हुए.... उसने अपने पर्स में से टिश्यू निकाला और अपनी चूत को सॉफ करते

हुए अपनी जीन्स को पहना और वहाँ से निकल गयी.... जब वो टाय्लेट के बाहर आई तो तीनो लड़को के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी... जब वो पालिका के अंदर की तरफ गयी तो इतने सालो के बाद कुच्छ बदलाव नहीं आया था...

हां थोड़ा सॉफ सुथरा लग रहा था, एस्कलाटेर्स लगा रखके थे मगर वहाँ की जनता वैसी की वैसी ही थी...

मुँह में पान गंदे कपड़े, दाढ़ी बढ़ी हुई अपनी पॅंट को खुजाते हुए जितनी भी लड़किया थी उनको कुत्तो की तरह ललचा रहे

थे... ललिता को हँसी इस बात पे आ रही थी कि उसकी दोस्त पायल और उसने जीन्स और टी-शर्ट पहेन रखी थी तब भी

वहाँ के लोग आँखो से उन दोनो का बलात्कार कर रहे थे...

खैर कपड़े लेते हुए अमित को कयि साल लग गये और बाकी दोनो लड़के भी उसकी मदद करने लग गये...

पायल और ललिता इतना बोर हो गये थे कि अब और वहाँ रुकना उनके बॅस की नहीं थी.... लड़को को बताकर वो वहाँ से

चले गये... दोनो ने सोचा तो यही था कि वो पालिका से निकलके बाहर घूमेंगे मगर कुच्छ देर में ही पायल ने ललिता

को रोक लिया.... ललिता को बिना कुच्छ बताए पायल उसे फर्स्ट फ्लोर पे ले गयी जाहान नीचे से कुच्छ कम भीड़ थी

मतलब कुच्छ कम आदमी थे... अब दो लड़कियों के देखकर कुच्छ लड़के उनके आगे पीछे मंडराने लगे थे और

काफ़ी आदमी उनके पास कुच्छ ना कुच्छ बेचने के समान ला रहे थे... पायल ललिता को लेके चलती रही और फिर

एक खाली दुकान में जाके रुक गयी... वो दुकान काफ़ी छोटी सी थी और वहाँ एक 30-35 साल का हरयान्वी आदमी बैठा हुआ था... एक साधारण सी शर्ट और पॅंट में में एक कुर्सी पे बैठा हुआ न्यूसपेपर पढ़ रहा था...

"हेलो" पायल की आवाज़ सुनकर ही उसने न्यूसपेपर झट से हटाया और दो जवान और खूबसूरत लड़कियों के देखकर

एक बड़ी सी मुस्कान उसके चेहरे पे छा गयी... ललिता की नज़र उस आदमी के पेट पर पड़ी जोकि उसके दुकान के

कोने कोने पर टक्कर खा रहा था...
 
पायल ने भी मुस्कुरकर बोला "मुझे कुच्छ मूवीस की सीडीज़ चाहिए"

वो आदमी बोला "जी कौनसी चाहिए मेडम हिन्दी वाली या अँग्रेज़ी"

पायल बोली "फिलहाल हिन्दी दिखा दो"

वो आदमी ने एक बड़ा सा बंड्ल निकाला और उसमें काई सारी पिक्चरो की सीडीज़ दिखाने लग गया....

ललिता भी पायल के साथ उनको देखने लगी... ललिता की नज़र कयि सारी बी-ग्रेड मूवीस पर पड़ी और उनके नाम

पढ़कर मन ही मन हंस पड़ी... उनमें से एक का नाम पढ़कर वो हंस ही पड़ी वो नाम था "खेत में गुटार गू"

पायल ने दो-तीन मूवीस रखली और बोली "और भी है क्या"

वो आदमी बोला "नहीं और तो हिन्दी में नहीं होगी... साउत इंडियन ही होंगी"

पायल अपना सिर हिलाके बोली "नहीं वो नहीं चाहिए और कुच्छ"

ललिता को क्यूँ लग रहा था कि वो आदमी बार बार उसके मम्मो पे नज़रे घूमाए जा रहा था...

पायल के मम्मो उससे छोटे थे शायद इस बात का मज़ा ललिता को मिल रहा था... वो आदमी बोला

"बाकी तो भोज पुरी ही होंगी... या फिर डबल क्ष या ट्रिपल क्ष" ये बोलने में वो आदमी काफ़ी झिझक रहा था मगर

जब उसने पायल के मुँह से सुना "हां वो दिखाना" उसकी तो हवा ही निकल गयी... वो ही हाल ललिता का भी था..

उसे नहीं पता था कि उसकी दोस्त उसको खीचकर अडल्ट मूवी खरीदने आई है... ललिता भी अब उसको छोड़के

जा नहीं सकती थी या फिर जाना नहीं चाहती थी...

उस आदमी ने अपनी ड्रॉयर में काई सारी मूवीस निकालके दोनो लड़कियों के सामने रख दी... उसके चेहरे से

सॉफ ज़ाहिर हो गया कि मुश्किल से ही कभी लड़किया ऐसी मूवी खरीदने आती होंगी और वो शाम के सात बजे तो

नामुमकिन ही था... हर एक सीडी के कवर पे गंदी सी लड़किया आधे आधे कपड़ो में थी... पायल सीडीज़ को छाँटने लग

गयी और वो आदमी बड़ा उत्सुक्त होकर उसको बताने लगा कि "मेडम ये वाली अच्छी है.. इसको लीजिए आप...

इससे बेहतर तो पिच्छली वाली थी"

दोनो लड़किया समझ गयी थी कि ये हर रोज़ नयी पॉर्न देखता होगा घर लेजाकर तभी साले को इतना पता है...

पायल भी अब उस आदमी से काफ़ी खुल के बात कर रही थी जिससे ललिता को भी जोश आ गया... रिचा के घर इतनी

सारी पॉर्न देखने के बाद वो भी उन्हे पसंद करने लग गयी थी और उसने भी 2-3 सीडीज़ अपने लिए अलग से निकाल ली...

उस बंदे ने सीडीज़ को एक पोलिथीन में डालके एक भूरा पेपर बॅग में डालते हुए कहा 'मेडम एक बात बोलू...

बुर्रा ना मानना.. इन सीडीज़ में ज़्यादा कुच्छ रखा नहीं है... असली में करने में जो बात है वो इनमे नही है"

उस आदमी की इस बात को सुनके दोनो लड़कियों ने एक शर्मिंदगी वाली मुस्कुराहट मारी मगर अंदर ही अंदर वो

हंस पड़े थे... ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ललिता और पायल ने उन्न सीडीज़ को अपने पर्स में डाला और

अपने दोस्तो के पास चले गये...

ललिता को छोड़के बाकी सारे एक साथ एक मेट्रो में चढ़ गये... ललिता अपने घर जाने के लिए मेट्रो में

चढ़ गयी और खड़ी रहकर उस बंदे की गंदी बात पे ध्यान देने लगी की असली में जो करने में मज़े है वो

इन्न सीडीज़ में नहीं है.... अगला स्टेशन बारहखंबा था और ललिता ने एक बहुत अजीब सा काम कर दिया...

वो उस स्टेशन पे उतरके वापस उस ट्रेन में चढ़ि मगर इस बार एक नॉर्मल वाले डिब्बे में जहाँ 3-4

औरतो को छोड़के दूर दूर तक सिर्फ़ आदमी ही दिखाई दे रहे थे... इतनी छ्होटी उम्र की लड़की के बदन

पर इतने बड़े खरबूजो को देख कर सभी लड़को आदमियों का मन खराब हो रहा था... उन आदमियो को धक्का

दे दे कर कहीं सुरक्षित खड़ा होना बड़ा ही मुश्किल काम था और ललिता वो करने भी नहीं आई थी....

वो सीधे दरवाज़े से थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गयी पोल को पकड़ कर... उसके आगे पीछे लड़के आदमी का

ही घेरा बँधा हुआ था... ललिता को वो पॉर्न याद आगाई जो उसने रिचा के घर पे देखी थी जिसमें एक स्कूल

की लड़की को कयि लोगो ने मिलके बस में चोदा था... वो सोचके ही ललिता को मस्ती चढ़ गयी...

ट्रेन के चलते ही ललिता का बदन कई लोगो के बदन से टकराया... ललिता के आगे दो लड़के खड़े थे जो उसी की

उम्र के थे.. दोनो दोस्त लग रहे थे जोकि शायद ललिता के बारे में ही कानापूसी कर रहे थे...

उनकी नज़रो के सामने ललिता के मम्मे थे जिन्हे छूने का उनका बड़ा मन कर रहा था मगर उनमे हिम्मत

नहीं थी... ललिता को इन महीनो में इतना पता था बड़े, लो क्लास लोगो में असली गुर्दा होता है और चोद्ने की

ताक़त भी और कहीं ना कहीं वो उन्ही का इंतेज़ार कर रही थी.... मगर अगले स्टेशन्स पे भीड़ बढ़ी ललिता धक्के

खा खा कर उन दोनो लड़को के बीच में खड़ी हो गयी...
 
साइड से देखने में ललिता के मम्मे और

भी रोमांचक लग रहे थे... दोनो दोस्त बात करने के बहाने ललिता के स्तनो पे नज़रे घुमा रहे थे जिससे

ललिता को ज़रा भी दिक्कत नहीं थी...फिर ट्रेन पे हल्के सा झटका लगा और उल्टे हाथ पे खड़े लड़के

के कंधे ने ललिता के उल्टे स्तन को च्छू लिया... उस लड़के के चेहरे पे इतनी खुशी छ्छा गयी थी कि जैसे ओलिमपिक्स

में गोल्ड मेडल मिल गया.....ललिता दोनो के बीच खड़े हुए काफ़ी बोर हो गयी थी तब उसको लगा कि अब

उसे कुच्छ करना पड़ेगा तो ललिता ने अपना पर्स खोला और उसमें से उन खरीदी हुई सीडीज़ को निकाला और

बड़ी शान से उन्हे देखने लगी... उसे नहीं मालूम था कि कितने लोग उस सीडी पे बने कवर को देख पा

रहे थे मगर इतना पक्का था कि उन दोनो लड़को की आँखें फॅटी की फॅटी रह गयी थी...

ललिता के हाथो से एक सीडी नीचे गिर गयी तो दोनो लड़के उत्साहित होके नीचे झुके और उनमें से एक ने उस

सीडी को पकड़के ललिता को दे दिया... ललिता दोनो के बच्पने को देखकर अंदर ही अंदर हंस पड़ी...

फिर आनंद विहार स्टेशन भी आ गया और उन लड़को ने कुच्छ भी नही करा... ललिता मन मारकर स्टेशन से उतरी

और वहाँ से बाहर निकलने लगी... उसको एक एहसास सा हो गया था कि वो दो लड़के उसके पीछे ही आ रहे है...

ललिता स्टेशन के बाहर भी निकल गयी और तब भी वो उसके पीछे ही आते गये और फिर उन में से एक लड़के ने

ललिता की कमर पे झपट्टा मारा... ललिता ने उस लड़के का हाथ हटा दिया और आगे चलने लगी...

क्रमशः…………………..
 
जिस्म की प्यास--25

गतान्क से आगे……………………………………

वो दोनो लड़के उनके साथ ही चल रहे थे और ललिता को कुच्छ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा

और फिर उसे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी...

"हां जी मेमसाहिब कहाँ जाना है आपको" ये तो वोई आदमी था जिसके रिक्शा में ललिता कयि बारी बैठके घर

जा चुकी थी... ललिता दोनो लड़को की झंड करते हुए उस रिक्शा में बैठ गयी.... रिक्शा हमेशा की

तरह बहुत तेज़ चल रहा था और ललिता अब तीसरी बारी इसी रिक्शा में बैठी हुई थी... पिच्छली दो बारी उस आदमी

ने उस सुनसान सड़क (जोकि एक शॉर्ट कट था) पे जाके उस रिक्शा से उतर करके झाड़ियों में जाके मूता था

और शायद इस बारी भी वो यही करेगा ऐसा ललिता सोचके बैठी थी.... और जब वो रिक्शा उस सुनसान सड़क की

तरफ पहुचा तो तब ललिता बोली "एक मिनट रुकना भैया..."

ललिता रिक्शा से अपना पर्स लेकर उतरी और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए उन झाड़ियों की तरफ बढ़ी...

उसे नहीं पता था कि वो रिक्शा वाला भैया क्या रहा है और वो पिछे मुड़ना भी नहीं चाहती थी...

उस सड़क पर हमेशा की तरह अंधेरा छाया हुआ था और जब तक ललिता उन झाडियो तक बढ़ी वो अंधेरे में

गुम हो गयी मगर झाडियो की आवाज़ आती रही और फिर पूरी शांति हो गयी.... ललिता इतने अंधेरे में

सहम कर वही खड़ी रही और उस रिक्शा वाले का बेसब्री से इंतजार करने लगी... वो झाडिय सामने दिखने

में काफ़ी भयानक लगती थी मगर अभी ऐसा कुच्छ नहीं लग रहा था...उन झाडियो के उधर हद से ज़्यादा

पेशाब की बू आ रही थी जो अब ललिता की नाक में फेल गयी थी... कहीं वो भैया ये तो नहीं सोच रहा कि मैं

भी यहाँ मूतने ही आई हूँ?? ऐसा ख़याल ललिता के दिमाग़ मैं आया मगर कुच्छ देर बाद ललिता को चलने की

आवाज़ आई और फिर झाड़ियों को हटाकर उसके सामने वोई आदमी खड़ा हो गया.... अंधेरे में दोनो

एक दूसरे को देख नहीं पाए मगर उस रिक्शा वाले के हाथ सीधा ललिता के स्तनो को दबाने लगे.....

इस एहसास के लिए नज़ाने ललिता कितने दिनो से बेताब थी... उस रिक्शा वाले ने ललिता को मम्मो से ही खीचा

और उसके होंठो पे एक गीली चुम्मि करी....रिक्शा वाला अच्छी तरह जानता था कि यहा खड़ा रहना ख़तरे से

खाली नही है और यहाँ वो इस अमीर लड़की को चोद भी नही पाएगा तो उसने जल्दी से अपनी पॅंट को नीचे

उतारा और अपना लंड ललिता के हाथो में थमा दिया... ललिता समझ गयी थी कि ये रिक्शा वाले भैया क्या

चाह रहे है और उन झाडियो में बैठ गयी... उस लंड के उधर की बू इन झडियो की बू में कुच्छ फरक

नहीं था... ललिता ने उस लंड को पकड़ा जो कि ज़्यादा बड़ा नहीं था मगर सख़्त हो गया था और अपना

मुँह खोलके उसको चूसने लगी..... उस भैया ने अपना हाथ ललिता के सिर पे रखा और उसको अपनी रफ़्तार से

आगे पीछे करने लगा....

क्या सही है या ग़लत ये अब ललिता के दिमाग़ ने सोचना ज़रूरी नही समझा और वो उन झाडियो के अंधकार

में रॅंडियो की तरह एक रिक्शा वाले के गंदे लंड को चूसे जा रही थी.... उस भैया ने अपना

सीधा हाथ बढ़ाया और ललिता के मम्मो को उसकी टी-शर्ट के उपर से ही मसल्ने लग गया.... उसे कभी नही

लगा था की ये ज़िंदगी उसे ऐसे मौके भी देगी... ललिता ने भी आगे बढ़ के रिक्शा वाले के अंडे को आहिस्ते

आहिस्ते से दबाने लग गयी.... देखते ही देखते उस भैया ने अपना सारा वीर्य ललिता के गाल माथे होंठो पे छिड़क दिया.... ललिता की चूत चुद्ने के इंतजार में लगी हुई थी मगर उससे पहले वो कुच्छ कह पाती

वो आदमी अपना लंड हिलाता हुआ वहाँ से चला गया.... ललिता ने अपने पर्स में से हॅंकी निकाला और

अपने चेहरे को ढंग से सॉफ करके उस हॅंकी को वही फेंक दिया... ललिता नीचे ज़मीन को देखती हुई रिक्शा

में बैठ गयी... उसके बाद किसी ने भी अपना मुँह तक नही खोला और जब ललिता ने उस रिक्शा वाले को

पैसे दिए तो उसने मना कर दिया और पूछा "अब कब मिलोगि" .... ललिता पीछे मूड गयी और बोली "जल्द ही"

ललिता जानती थी कि अब वो दिल्ली में कुच्छ ही दिनो की मेहमान है और इसके बाद शायद ही वो मयंक,

उस चौकीदार, रिचा के नौकर और इस रिक्शा वाले से मिलेगी.... उसे खुशी इस बात की थी कि जाने से पहले

दिल्ली ने उसे एक छोटी बच्ची से एक जवान लड़की बना दिया था... घर पहूचके ही उसने सबसे पहले नहाना

ज़रूरी समझा तो वो अपने कपड़े ले के टाय्लेट में चली गयी... उसको अपने बदन में से उस रिक्शा वाले की बदबू सी आने लगी थी... उसने अपनी पैंटी को देखकर ही अंदाज़ा लगा लिया था कि उस रिक्शा के वाले लंड में

कितना दम था जो उसकी चूत को काफ़ी गीला कर चुका था.... आज उसने नहाने में हद्द से ज़्यादा देर करदी थी

क्यूंकी वो अपने बदन को वो ज़रूरते पूरी कर रही थी जो वो रिक्शा वाला नहीं कर सका...

अपने मम्मो को दबा कर अपनी चुचियो को मसल कर अपनी चूत में उंगली घुसाती हुई नज़ाने वो अपनी इस

रोमांचक दुनिया में कितना खो चुकी थी....
 
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