hotaks444
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चेतन शन्नो की चूत के बालो पर अपना लंड रगडे जा रहा था ताकि उसकी चूत की गर्मी बरकरार रहे... वो बोला
"हमारा दिल्ली का टिकेट कॅन्सल करदो... सिर्फ़ डॉली और ललिता को जाने दो.. ताकि हम दोनो यहाँ कुच्छ दिन रह सके"
अभी को देखते हुए शन्नो की चूत की प्यास के सामने ये बात कुच्छ मायने नहीं रखती थी और उसने चेतन से वादा कर दिया.... चेतन ये सुनकर ही शन्नो की चूत को फिर से ठोकने लगा... और उसने अपने सिर को नीचे करा और दोनो मा बेटे
ने एक दूसरे के होंठो को चूम लिया... दोनो की ज़ुबान एक दूसरे से पेच लगाने लगी और चेतन को पता भी नहीं
चला कि उसने अपनी मा की चूत में ही सारा पानी डाल दिया.... शन्नो को इस बात से कोई ख़तरा नहीं था क्यूंकी और बच्चे पैदा ना करने की वजह से उसने अपनी चूत को सील करवा रखा था.... शन्नो ये हसीन पल रखते हुए अपने कमरे
में जाकर सो गयी...
कल रात की चुदाई के कारण शन्नो बहुत ही गहरी नींद में सोई पड़ी थी... घर की घंटी बजे जा रही थी मगर उसको
कुच्छ होश नहीं था.... शोर से परेशान ललिता अपने बिस्तर से उठी और दरवाज़ा खोलने गयी...
ललिता की आँखें नींद के मारे खुल भी नहीं पा रही थी उसने दरवाज़ा खोला तो उसकी नज़रो के सामने दूध वाला
खड़ा था.... ललिता को पता नहीं चला था कि उसने फिलहाल एक टाइट सफेद रंग का टॉप पहेन रखा था जोकि उसके
स्तनो से बुर्री तरह चिपकी हुई थी जिस कारण उसकी चुचियाँ दूध वालो की नज़रे के सामने थी....
दूधवाला वाला चाह के भी अपने आपको रोक नहीं पाया और ललिता की चुचियाँ को देख कर बोला "दूध.....
लाया हूँ पतीला लेके आओ"
ललिता मूड के किचन की तरफ बढ़ी तो दूधवाला उसकी पीठ को लग गया कि छोरि ने अंदर कुच्छ नहीं पहेन रखा....
ललिता पतीला ढूँढ के वापस दूधवाले के पास गयी और वो बंदा पतीले में दूध डालने लगा मगर उसकी तिर्छि
निगाहें ललिता के दूध पर थी.... उसका इतना मन कर रहा था उनको महसूस करने का कि वो उसके लिए 200 रुपये
भी देदेता मगर ऐसा कुच्छ हुआ नहीं... ललिता दूध का पतीला लेके उस दूधवाले के मुँह पे दरवाज़ा मारके फिर
से सोने चली गयी.... दूधवाले ने अपने तने हुए लंड को ठीक करा और वहाँ से चलता बना....
सुबह एक एक करके सब जाते गये और घर खाली होता गया सिर्फ़ शन्नो घर पे अकेली रह गयी....
वो अपने कल किए गये वादे के बारे में सोच रही थी जो उसने अपने बेटे से किया था मगर उसको पूरा करने
में उसे डर लग रहा था.... वो चाहती तो थी अपने बेटे के साथ कुच्छ दिन अकेले गुज़ारने की मगर उसे नही लगता
था कि उसका पति ऐसा कुच्छ होने देगा.... उसने फोन उठाके कयि बारी कॉल करने की कोशिश करी मगर उसे समझ
नही आ रहा था कि वो क्या बहाने बनाए जिससे नारायण उसकी बात मान जाए... पूरे दिन उसके दिमाग़ में
बस यही चल रहा था और फिर चेतन अपना एग्ज़ॅम देकर घर लौटा.... घर में घुसते ही उसने अपनी मम्मी से पूछा
"टिकेट करा दिया दीदी और ललिता का??" शन्नो के पास इस सवाल का कुच्छ जवाब नही था और चेतन गुस्से में अपने कमरे में चला गया.... काफ़ी देर तक शन्नो ने उसे मनाने की कोशिश करी मगर चेतन अपने कमरे का दरवाज़ा बंद
करके बैठ गया था... हारकर शन्नो घर का समान लेने के लिए बाहर चली गयी.... उसने सोच लिया था कि ये सिलसिला
ज़्यादा दिन तक चल नही पाएगा क्यूंकी एक ना एक दिन तो उसे अपने पति के पास जाना ही होगा और उसके बाद इन
सब चीज़ो को रोकना होगा और सबके लिए बेहतर यही था कि जितना जल्दी हो सके ये रुक जाए....
शन्नो ने घर का सारा समान ले लिया था और पूरी हिम्मत से वो अपने घर की तरफ मूडी...
क्रमशः…………………..
"हमारा दिल्ली का टिकेट कॅन्सल करदो... सिर्फ़ डॉली और ललिता को जाने दो.. ताकि हम दोनो यहाँ कुच्छ दिन रह सके"
अभी को देखते हुए शन्नो की चूत की प्यास के सामने ये बात कुच्छ मायने नहीं रखती थी और उसने चेतन से वादा कर दिया.... चेतन ये सुनकर ही शन्नो की चूत को फिर से ठोकने लगा... और उसने अपने सिर को नीचे करा और दोनो मा बेटे
ने एक दूसरे के होंठो को चूम लिया... दोनो की ज़ुबान एक दूसरे से पेच लगाने लगी और चेतन को पता भी नहीं
चला कि उसने अपनी मा की चूत में ही सारा पानी डाल दिया.... शन्नो को इस बात से कोई ख़तरा नहीं था क्यूंकी और बच्चे पैदा ना करने की वजह से उसने अपनी चूत को सील करवा रखा था.... शन्नो ये हसीन पल रखते हुए अपने कमरे
में जाकर सो गयी...
कल रात की चुदाई के कारण शन्नो बहुत ही गहरी नींद में सोई पड़ी थी... घर की घंटी बजे जा रही थी मगर उसको
कुच्छ होश नहीं था.... शोर से परेशान ललिता अपने बिस्तर से उठी और दरवाज़ा खोलने गयी...
ललिता की आँखें नींद के मारे खुल भी नहीं पा रही थी उसने दरवाज़ा खोला तो उसकी नज़रो के सामने दूध वाला
खड़ा था.... ललिता को पता नहीं चला था कि उसने फिलहाल एक टाइट सफेद रंग का टॉप पहेन रखा था जोकि उसके
स्तनो से बुर्री तरह चिपकी हुई थी जिस कारण उसकी चुचियाँ दूध वालो की नज़रे के सामने थी....
दूधवाला वाला चाह के भी अपने आपको रोक नहीं पाया और ललिता की चुचियाँ को देख कर बोला "दूध.....
लाया हूँ पतीला लेके आओ"
ललिता मूड के किचन की तरफ बढ़ी तो दूधवाला उसकी पीठ को लग गया कि छोरि ने अंदर कुच्छ नहीं पहेन रखा....
ललिता पतीला ढूँढ के वापस दूधवाले के पास गयी और वो बंदा पतीले में दूध डालने लगा मगर उसकी तिर्छि
निगाहें ललिता के दूध पर थी.... उसका इतना मन कर रहा था उनको महसूस करने का कि वो उसके लिए 200 रुपये
भी देदेता मगर ऐसा कुच्छ हुआ नहीं... ललिता दूध का पतीला लेके उस दूधवाले के मुँह पे दरवाज़ा मारके फिर
से सोने चली गयी.... दूधवाले ने अपने तने हुए लंड को ठीक करा और वहाँ से चलता बना....
सुबह एक एक करके सब जाते गये और घर खाली होता गया सिर्फ़ शन्नो घर पे अकेली रह गयी....
वो अपने कल किए गये वादे के बारे में सोच रही थी जो उसने अपने बेटे से किया था मगर उसको पूरा करने
में उसे डर लग रहा था.... वो चाहती तो थी अपने बेटे के साथ कुच्छ दिन अकेले गुज़ारने की मगर उसे नही लगता
था कि उसका पति ऐसा कुच्छ होने देगा.... उसने फोन उठाके कयि बारी कॉल करने की कोशिश करी मगर उसे समझ
नही आ रहा था कि वो क्या बहाने बनाए जिससे नारायण उसकी बात मान जाए... पूरे दिन उसके दिमाग़ में
बस यही चल रहा था और फिर चेतन अपना एग्ज़ॅम देकर घर लौटा.... घर में घुसते ही उसने अपनी मम्मी से पूछा
"टिकेट करा दिया दीदी और ललिता का??" शन्नो के पास इस सवाल का कुच्छ जवाब नही था और चेतन गुस्से में अपने कमरे में चला गया.... काफ़ी देर तक शन्नो ने उसे मनाने की कोशिश करी मगर चेतन अपने कमरे का दरवाज़ा बंद
करके बैठ गया था... हारकर शन्नो घर का समान लेने के लिए बाहर चली गयी.... उसने सोच लिया था कि ये सिलसिला
ज़्यादा दिन तक चल नही पाएगा क्यूंकी एक ना एक दिन तो उसे अपने पति के पास जाना ही होगा और उसके बाद इन
सब चीज़ो को रोकना होगा और सबके लिए बेहतर यही था कि जितना जल्दी हो सके ये रुक जाए....
शन्नो ने घर का सारा समान ले लिया था और पूरी हिम्मत से वो अपने घर की तरफ मूडी...
क्रमशः…………………..