Indian Porn Kahani मेरे गाँव की नदी - Page 2 - SexBaba
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Indian Porn Kahani मेरे गाँव की नदी

मेरा लंड माँ के भारी उठे हुए चूतडो की मतवाली थिरकन देख कर खड़ा हो गया और मै चुपके से बाथरूम के पीछे चला गया, माँ के भरे चूतङ मेरी तरफ थे तभी माँ ने अपने घाघरे को ऊपर चढ़ाया और जब मैंने माँ के चौड़े चौड़े मस्त चूतडो को देखा तो लगा पानी निकल जाएगा।
आज पहली बार मैंने माँ के गोरे गोरे चौड़े चौड़े चूतडो के दर्शन किये थे, माँ वही मुतने बैठ गई और रात के सन्नाटे में मुतने की तेज आवाज ने मुझे पागल कर दिया, माँ काफी देर तक मुतती रही फिर खड़ी होकर अपने घाघरे से चुत पोछती हुई बाहर आ गई।

मै वापस खटिया पर जाकर लेट गया, थोड़ी देर बाद गीतिका मेरे बगल में आकर बैठ गई और उसकी गुदाज गाण्ड मेरे कमर से टच होने लगी।
गीतिका : क्या भैया सो गए क्या।
कालू : अरे नहीं अभी कहा नींद आएगी, और बता तुझे तो शहर में अच्छा लगता होगा।
गीतिका : हाँ भैया बड़ा मजा आता है काश आप भी मेरे कॉलेज में होते तो मस्त मजा आता।

कल्लु : हाँ मजा तो आता लेकिन गांव में खेती का काम भी तो सम्भालना पड़ता है। इसीलिए तो मै पढने नहीं गया।
गीतिका : भैया रात को आप बाहर यही खटिया पर ही सोते हो क्या।
कालू : हाँ गर्मी में बाहर ठण्डी हवा में सोने का मजा ही कुछ और है।
गीतिका : भैया मै भी यही सो जाउ।
कालू : नहीं तू अंदर ही सो बाबा ग़ुस्सा होंगे, तभी गीतिका के मोबाइल पर कोई फ़ोन आया और वह बातें करने लगी और मै उसकी बात सुनने लगा।
 
गीतिका : हेलो
मोनिका : क्यों राजकुमारी पहुच गई अपने गाँव।
गेटिका : हाँ यार बड़ा मस्त माहौल है गांव में बड़ी सुहानी हवा चल रही है।
मोनिका : क्या यार तू वहाँ चलि गई यहाँ अब मुझे अकेले ही टाइम पास करना पड़ रहा है, आज एक मस्त डीवीडी ले कर आई हूँ, एक निग्रो एक गोरी को मस्त चोद रहा है।
उस निग्रो का लंड तो बड़ा मस्त है।
गीतिका : अरे यार अभी नहीं बाद में बात करते है।
मोनिका : क्यों क्या हुआ।
गीतिका : मै भैया के पास बेठी हूँ।
मोनिका : मुस्कुराते हुये, भैया के पास बेठी है या भैया की गोद में बेठी है।
गीतिका : चुप कर जो मुह में आया बक देति है।
मोनिका : सच कह रही हु रानी, एक बार अपने भैया की गोद में बैठ कर देख ले तेरे जवान चौड़े चूतडो के वजन से तेरे भैया का लंड न डगमगा जाए तो कहना।
गीतिका : मंद मंद मुस्कुराते हुये, मै फ़ोन रख रही हु।
मोनिका : अच्छा मेरी बात तो सुन।
गीतिका :क्या।
मोनिका : अच्छा तो कुछ मत बोल मै तुझे मूवी का लाइव शो बताती हूँ।
गीतिका : चल तेरे पास ज्यादा बैलेंस है तू बोल मै तो चुपचाप यही बेठी हु।
मोनिका : वो गोरी उस निग्रो के काले काले मस्त मोटे लंड को लोलीपोप की तरह चूस रही है, तू देखति तो तेरा भी मन चुसने का होने लगता।
गीतिका : और वह निगरो।
मोनिका : वह निग्रो उस गोरी की चुत की तरफ मुह करके लेटा हुआ है और अपनी लम्बी जीभ निकाल कर उस गोरी की मस्त चुत को चाट रहा है दोनों ६९ की पोजीशन में एक दूसरे के लंड और चुत को खूब कस कस कर चूस चाट रहे है।
गीतिका : बस कर मोनिका मै अब फ़ोन रख रही हूँ। तुझसे बाद में बात करती हूँ।
मोनिका : अच्छा चल जब फ्री हो तो मिस कॉल कर देना।

कल्लु : तेरी दोस्त थी क्या गुडिया।
गीतिका : हाँ भैया मेरी सबसे पक्की सहेली है
मै केवल धोती पहने हुए था और गीतिका की नजरे मेरे चौड़े सिने की तरफ बार बार चलि जाती थी लेकिन मै कुछ समझ नहीं पाया फिर रात को सब सो गए और
सूबह वही दिनचर्या।

सूबह सुबह गीतिका मस्त घाघरा चोली पहन कर नजर आई मै तो उसकी गोरी गोरी टाँगो को देखता ही रह गया।
जीतिका : भैया मै भी आपके साथ खेतो में चल रही हु।
कालू : ठीक है चल पर खेत दुर है तू थक जायेगी तो।
गीतिका : निकालो न अपनी खटारा साईकल उसी पर बैठ कर चलते है।
कालू : ठीक है चल और मैंने अपनी साईकल निकाली और गीतिका को फिर से कहा चल बैठ डण्डे के उपर, मेरे इतना कहने पर गीतिका मुस्कुराते हुए डण्डे पर
बैठ गई और कहने लगी, भैया आराम से चलाना आपका डंडा मुझे बहुत चुभता है।
गीतिका की बात सुन कर मेरा लंड अकडने लगा था, पर मजा भी बहुत आ रहा था।
कालू : तू क्यों तैयार हो गई सुबह।
गीतिका : भैया कल के रसीले आमो ने बड़ा मजा दिया, आज फिर मुझे ऐसे ही रसीले आम खाना है।
कालू : हाँ हाँ क्यों नहीं अपने खेतो के पास तो बहुत बड़ा बगीचा है वैसे तुझे आम खाता देख मेरा भी मन आम चुसने का होने लगा था नहीं तो मैं
वेसे आम चुसता नहीं हूँ।

गीतिका ; मुस्कुराते हुये, भैया जब आपको अच्छे मस्त रसीले आम चुसने को मिलेँगे तो आप भी नहीं छोडोगे।
कालू : गांव में आम तो बहुत है पर चुसने का समय कहा मिलता है।
गीतिका : फिकर न करो भैया मै आ गई हु न अब मस्त आम चुसाउंगी आपको।
कालू : तू तो दो चार दिन रहेगी और फिर चलि जाएगी, अगली बार कुछ ज्यादा दिनों की छुटटी लेकर आ तो मजा आएगा तब तक शायद बारिश भी हो जाये तो नदी में पानी भी आ जायेगा और फिर मस्त नदी में नहाने का मजा ही अलग होगा।
जीतिका : भैया आपको तैरना आता है।
कालू : हाँ मै तो एक साँस में इस छोर से उस छोर तक तैर कर जा सकता हूँ।
गीतिका : भैया मुझे भी तैरना सीखा दोगे क्या।
कालू : क्यों नहीं पर पहले नदी में पानी तो आने दे।
गीतिका : अगली बार जब आउंगी तब तक बारिश हो ही जायेगी।
कालू : हाँ वह तो है।

जब हम खेतो में पहुच गए तो कुछ देर मैंने काम किया और फिर गीतिका ने रट लगा दी की चलो भैया आम के बगीचे में।
उधर बाबा उसकी रट सुन रहे थे और फिर मुझसे कहने लगे अरे बेटा कल्लु दो दिनों के लिए बिटिया आई है जाता क्यों नहीं उसे मस्त मीठे आमो का रस तो चखा दे।
मै वहाँ से गीतिका को लेकर पास के बगीचे में चल दिया और फिर गीतिका आम देखने लगी तभी वह चिल्लाइ वाह भैया क्या मस्त बड़ा सा पका हुआ आम लगा है।
उसको तोड़ो न, मैंने कहा गुड़िया वह तो बहुत ऊपर है।
गीतिका : तो मुझे उठाओ न अपनी गोद में, मैंने गीतिका के पीछे आकर उसकी कमर पकड़ कर उसे उठाया और जब उसके गुदाज चोदने लायक चूतडो का स्पर्श मेरे लंड से हुआ तो वह गीतिका के घाघरे में घूसने को तैयार हो गया, लेकिन गीतिका को ऊपर उठाने पर भी आम उसके हाथो से थोड़ी दुर ही रह गया और मैंने गीतिका को थक कर निचे उतार दिया
 
कल्लु : गुड़िया वह बहुत ऊपर है कोई दुसरा देख ले
गीतिका : पैर पटकते हुए नहीं भैया मुझे तो वही वाला चहिये, आप कैसे उठा रहे हो मुझे आपको तो सचमुच कुछ नहीं आता।
कालू : तो तू ही बता कैसे उठाऊ तुझे।
गीतिका : मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और मेरे नंगे चौड़े सिने को और मेरी बाजुओ को हाथ लगा कर कहने लगी, मेरा भाई इतना बलिश्त है और अपनी कमसिन सी बहन को अपनी गोद में नहीं उठा पा रहा है।

मैने गीतिका के खूब मोटे मोटे कसे हुए दूध पर नजर डालते हुए अपनी नज़रो को निचे फिसलाया और गीतिका के भारी चूतडो और मोटी मोटी गदराई जांघो को देखते हुए कहा ।अब तू कमसीन कहा रही अब तो भरपूर जवान हो गई है 55 के जी तो वजन होगा तेरा फिर कैसे मै तुझे आसानी से उठा लु।
गीतिका : क्या भैया आपके बराबर मरद तो बड़ी बड़ी औरतो को उठा लेते है मै तो फिर भी लड़की हूँ।
कालू : अच्छा बता कैसे उठाऊ तुझे।
गीतिका मेरे सामने आकर मेरे हाथो को पकड़ कर अपनी कमर में रखते हुए कहने लगी पहले झुक कर मेरी जांघो पर अपने हाथ का घेरा डालो और मुझे
उपर उठाओ।
मैने गीतिका की मोटी जांघो को अपनी बांहो में भर कर उसे ऊपर उठाया अब उसके मोटे मोटे चोली में कसे दूध मेरे मुह से टकराने लगे और मै अपने आपको रोक न सका और मैंने अपने मुह को गीतिका के मोटे मोटे बोबो में दबा दिया और उसकी मस्त सुगंध लेने लगा, हाय क्या मतवाली मस्त महक थी मेंरा
लंड तो ऐसा लग रहा था की धोती फाड कर बाहर आ जाएगा।

गीतिका ने अपनी बांहे मेरी गर्दन पर डाले हुए एक हाथ ऊपर बढ़ाया लेकिन आम उसकी पहुच से दुर था,
गीतिका : भैया ऐसे ही उठाये रहना उतारना मत, बस थोड़ा सा और ऊपर उठाओ, अब की बार मैंने अपने हाथो से गीतिका के चौड़े चौड़े मोटे चूतडो को
दबोचते हुए अपने पंजो को उसकी मस्त गुदाज गाण्ड में भर कर और भी ऊपर उठाया।लकिन गीतिका का हाथ आम तक नहीं पहुच रहा था, गीतिका भैया बस
थोड़ा सा और ऊपर करो न, गीतिका का घाघरा ऊपर हो गया और मेरे हाथ गीतिका की नंगी जांघो से होते हुये, जैसे ही उसकी गाण्ड की दरार में पहुचे मै चौक गया और मेरा लंड झटके देने लगा। 
 
गीतिका घाघरे के अंदर पूरी नंगी थी जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मै तो एक दम से मस्त हो गया और न जाने कहा से मेरे हांथो में इतनी ताकत आ गई की मैंने गीतिका को और ऊपर करते हुए उठा दिया और गीतिका की चुत वाला हिस्सा मेरे मुह के सामने आ गया।
मैने अपनी आँखे बंद कर ली और गीतिका की चुत को अपने मुह पर दबाने लगा, लेकिन घाघरे का अगला हिस्सा चुत को ढके हुए था और मै गीतिका की बुर को
सूँघने की कोशिश कर रहा था, और फिर अचानक मैंने अपने मुह को गीतिका की चुत के ऊपर दबाते हुए उसकी फुली चुत को घाघरे के ऊपर से ही पप्पी लेनी
शुरु कर दी, तभी गीतिका के मुह से आवाज निकली यस और मैंने जब ऊपर देखा तो उसके हाथ में आम आ चूका था।

गीतिका : भैया अब उतारो भी लेकिन आराम से मैंने गीतिका पर पकड़ ढिली की और वह धीरे धीरे निचे की तरफ फ़िसलने लगी, जब वह निचे फ़िसलने लगी तो पहले उसका नंगा पेट मेरे मुह के सामने आया और मैंने भरपूर उसके नंगे पेट पर अपने होठो को फेरा और फिर जब वह और निचे सरकी तो उसके मोटे मोटे दूध मेरे
मुह के सामने आ गये।

लेकिन मुझे यह ध्यान नहीं था की गीतिका जब और निचे सरकेगी तो मेरा खड़ा लंड उसकी चुत को रोक लेगा और जैसे ही गीतिका की चुत मेरे लंड के पास पहुची लंड से उसकी बुर घिस गई और मेरे डण्डे की वजह से शायद गीतिका की फाँके एक बार खुल कर बंद हो गई या फिर उसके भग्नाशे से मेरे लंड
का घर्षण हो गया और गीतिका के मुह से आह जैसे शब्द निकल पड़े और गीतिका अब जमीन पर खड़ी थी।

उसकी नजर मेरी नज़रो से बच कर मेरे खड़े लंड
पर जा रही थी जो धोती के अंदर से तम्बू बनाये खड़ा था और गीतिका के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान फैल गई थी लेकिन उसका चेहरा कुछ लाल हो गया था और
सच कहु तो गीतिका मुझे बहुत चुदासी चुत नजर आ रही थी उसका चेहरा देख कर ही लग रहा था की उसकी बुर जरुर लंड के लिए पानी छोड़ रही होगी, फिर भी मै जानना चाहता था और ऊपर से वह अपनी चड्डी भी पहन कर नहीं आई थी मतलब उसके अंदर कुछ चल जरुर रहा था, गीतिका ने उस आम को चुसना शुरू कर दिया और मै उसके रसीले होठो को देखने लगा फिर जब उसने मेरी ओर नजरे उठा कर देखि तो उसकी नशीली आँखे ऐसी लग रही थी जैसे कह रही हो की भइया अपनी बहन की कुंवारी चुत में अपना मस्त लंड पेल दोगे क्या।
 
कल्लु : गुड़िया तू आम चूस तब तक मै और दूसरे आम देखता ह, गुड़िया पेड़ के निचे बैठ गई और मै इधर उधर के पेडो पर आम देखने लगा तभी गुड़िया ने आवाज देकर मुझे बुलाया और एक दुसरा आम दीखाते हुए कहने लगी भैया वो वाला तोड़ो देखो कितना मस्त पका है, मै गुड़िया की बात सुन कर उसके मोटे मोटे चोली में कसे उरोजो को देखने लगा, फिर मैंने कहा गुड़िया वह भी बहुत ऊपर है, तब गुड़िया ने झट से अपना हाथ मेरी ओर लम्बा करते हुए कहा तो फिर उठाओ अपनी बहन को अपनी गोद में।

गुडिया की बात सुन कर मेरे लंड की नशे और भी तन गई और गुड़िया जैसे ही मेरे पास आई उसकी मादक ख़ुश्बू ने अलग पागल कर दिया मै झुका और गुड़िया के भारी भरकम चूतडो को अपनी बांहो में कस कर
उसे ऊपर उठा दिया, जब गुड़िया का चिकना पेट मेरे मुह के पास पहुच गया तब गुड़िया ने मेरे सर को पकड़ते हुए कहा भैया और ऊपर करो न अभी तो आम
बहुत दुर है।
मैने गुड़िया की मोटी जांघो को पकड़ा और दुसरा हाथ गुड़िया की गुदाज चौड़ी गाण्ड के निचे लगा दिया, मुझे ऐसा लग रहा था की मेरा लंड फट जाएग, गुड़िया क
गुदाज चूतडो के नरम नरम माँस को दबोचने में बड़ा मजा आ रहा था, तभी मेरी ऊँगली गुड़िया की गाण्ड के जडो में घुस गई और मै तब चौक गया जब गुड़िया की गाण्ड के गैप में उसका घघरा गीला हो रहा था, मै समझ गया की गुड़िया की रसीली बुर खूब पानी छोड़ रही है, मै बिना घबराये गुड़िया की दोनों जांघो की जडो में अपने हाथ को भर कर गुडिया को और ऊपर उठाने लगा।

मेरे हाथ का पूरा जोर गुड़िया की जांघो की जडो में यानि उसकी फुली हुई बुर और गाण्ड के छेद पर लगा हुआ था, जहा से मैंने गुड़िया को दबा रखा था वही उसका घाघरा काफी गीला लग रहा था, अब मुझे गुड़िया की नीयत पर शक होने लगा था, क्या गुड़िया जानबूझ कर चड्ढी पहन कर नहीं आई थी, क्या गुड़िया भी लंड लेने के लिये तडपने लगी है, पर मै तो उसका भाई हु फिर वह.
मैं सोच में डूबा हुआ था तभी गुड़िया ने कहा भैया अब उतारो भी और मैंने फिर से उसे नीचे उतारा और इस बार फिर उसका गुदाज रसीला बदन मेरे बदन से रगड खाता हुआ निचे आया और फिर से गुड़िया की चुत में मेरे खड़े लंड का एह्सास हुआ, गुड़िया के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान
थी। जिसे वह दबाते हुए कहने लगी वाह भैया क्या मस्त आम है, उसके बाद एक दो आम और तोड़ने के बाद मैं और गुड़िया खेत में आ गये, गुड़िया खाट पर बैठ कर आम चुस्ने लगी और मै बाबा के साथ काम में
लग गया, मै दुर से गुड़िया को देख रहा था लेकिन वह मोबाइल में न जाने क्या कर रही थी, तभी मुझे ध्यान आया की मैं किताब झोपड़ी में ही मै भूल गया था
जाकर उसे कही छुपा देता हु नहीं तो गुड़िया के हाथ न लग जाए, जब मै गुड़िया की ओर जाने लगा तब गुड़िया को मैंने फ़ोन पर यह कहते सुना की चल रंडी मै तुझसे बाद में फ़ोन करती हूँ।।
 
गुडिया : मुस्कुराते हुए क्या हुआ भैया काम में मन नहीं लग रहा क्या या फिर भूख लगी है, अगर भूख लगी हो तो आम चूस लो काफी पके और बड़े बड़े है,
मैने गुड़िया के तने हुए आमो को देखते हुए कहा
हाँ भुख तो लगी है पर तू अपने आम मुझे कहा चुसने देगी। 
गुडिया : मुस्कुराते हुये, तुम मुझसे कहते ही नहीं।
नहीं तो मै क्या अपने भाई को अपने आम न चुसा दूँ।
कालू : चल ठीक है जब मुझे चुसना होगा मै तुझसे कह दुँगा।, इतना कह कर मै झोपड़ी के अंदर गया लेकिन जहा मैंने किताब रखी थी वह वहाँ नहीं थी, अब तो
मै पक्का समझ गया की किताब गुड़िया ने ली है, तभी आज वह पूरी रंडी की तरह मेरे ऊपर चढ़ चढ़ कर मजे ले रही थी, जरुर उसने भाई और बहन की चुदाई वाली कहानी पढ ली थी इसीलिए आज उसकी चुत इतनी गरमा रही है।

मै बाहर आया और गुड़िया की ओर देखा तो वह मुसकुराकर मुझे देखते हुए पहले आम को दबा कर उसका रस बाहर निकाली और फिर मुझे देखते हुए अपनी रसीली जीभ बाहर निकाल कर उसे चाटने लगी, मेरा मन तो किया की अपनी रंडी बहना को वही नंगी करके खूब कस कस कर उसकी मस्त फुली चुत में लंड पेल दू लेकिन मै मन मार कर रह गया और गुड़िया कहने लगी, आओ भइया बैठो।

कल्लु : नहीं गुड़िया बाबा अकेले काम कर रहे है मुझे भी उनकी मदद करना होगा। 
गुडिया : माँ कब आएगी खाना खाने का टाइम तो हो गया बड़ी भुख लगी है।
कालू : बस आती ही होगी थोड़ी देर और राह देख ले और फिर मै बाबा के साथ काम में लग गया, कुछ देर बाद माँ नजर आई, और फिर मै और बाबा हाथ मुह धोकर पेड़ की छाँव मै बैठ गए सामने गुड़िया और माँ बैठी थी और उनके सामने मै और बाबा, हमने खाना खाया और फिर बाबा कहने लगे की भाई मेरी तो आज तबियत ठीक नहीं लग रही है इसलिए मै तो घर जाकर आराम करुँगा, निर्मला तु और कल्लु वो सामने की घास बची है उसे मिल कर काट लेना और उधर गट्ठर बना कर रख देना।
 
बाबा के जाने के बाद वह बिरजु आ गया और माँ के पैर छुता हुआ कहने लगा पाय लागूं बड़ी माँ।
निर्माला : क्यों रे बिरजु आज कल तो तू इधर का रास्ता ही भूल गया, कहा है तेरी माँ।
बीरजु : बड़ी माँ वहाँ खेत में है, संतोष चाची का खेत नदी के उस पार था और चूँकि नदी में पानी न के बराबर था इसलिए माँ ने गुड़िया से कहा चल गुडिया
तूझे चाची के खेत दिखा कर लाती हु और फिर माँ ने मेरी ओर देखते हुये कहा कल्लु मै अभी एक घंटे में आती हु तब तक तू वहाँ की घास काटना शुरू कर दे फिर मै भी आकर कटवाती हु और माँ गुड़िया के साथ जाने लगी।,
बीरजु बराबर गुड़िया के बोबो को देख रहा था और जब गुड़िया जाने लगी तो वह उसके चूतडो को घुरने लगा, मैंने बिरजु को देखा और जब मैंने गुड़िया के चूतडो
को देखा तो वह बहुत मटक रहे थे, लेकिन तभी मेरी नजर माँ के चूतडो पर पडी तो मुझे मजा आ गया माँ के चूतड़ गुड़िया से काफी बड़े और हैवी नजर आ रहे थे, जिन्हे देखते ही लंड अकड गया था।

कल्लु : क्यों रे आज कल दिन भर अपने खेतो में ही घुसा रहता है गांव में भी कम नजर आता है।
बीरजु : तुझे क्या करना है दादा मै घर में रहु या बाहर।
कालू : अच्छा बिरजु मैंने सुना है तू चुदाई की कहानी की किताब पढता है।
बीरजु : सकपकाते हुये, तुम ।।।।तुमसे किसने कह दिया, मै ऐसे काम नहीं करता हूँ।
कालू : झूठ न बोल मुझे सुख लाल ने सब बता दिया है जब तुम दोनों शहर गए थे और वह तुमने किताब ख़रीदी थी
बीरजु : अरे दादा तुम उसकी बात कहा मान गए वह तो पक्का मादरचोद है।
कालू : अच्छा सुख लाल तो तेरा दोस्त है ना।
बीरजु : अरे दोस्त तो है दादा लेकिन है पक्का मादरचोद।
कालू : वह भला क्यो।
बीरजु : अरे दादा एक दिन मै उसके घर गया तो उसकी माँ ऑंगन में नंगी होकर नहा रही थी और सुख लाल छूप कर अपनी माँ को पूरी नंगी देख रहा था और अपना लंड मुठिया रहा था।
कालू : इस हिसाब से तो तू भी पक्का मादरचोद है।
बीरजु : मुझे देख कर सकपकाते हुये, मै क्यों मादरचोद होने लगा।
कालू : अच्छा कल तो नदी के अंदर झाड़ियो के पास चाची के साथ क्या कर रहा था।

मेरी बात सुन कर बिरजु का गला सूखने लगा और वह हकलाने लगा और कहने लगा वो तो ।।।। वो तो दादा माँ के पांव में काँटा लगा था मै उसे ही निकाल रहा था।
कालू : झूठ न बोल तू समझता है मै कुछ जानता नही, मैंने सब देखा था की तो काँटा निकालने के बहाने क्या देख रहा था।
बीरजु : अपने माथे का पसीना पोछते हुये, नहीं तुम्हे धोखा हुआ है दादा मै कुछ नहीं देख रहा था मै तो बस माँ के पैर में लगे काँटे को निकाल रहा था।
 
कल्लु : अबे भोसडी के मुझसे नखरे न चोद, नहीं तो समझ लो मै कहा कहा ढिंढोरा पिटूंगा।
बीरजु : तुम गलत सोच रहे हो दादा।
कालू : ज्यादा होशियारी नहीं बेटा, खा जा अपनी माँ की कसम की तू चाची की मस्त फुली हुई चुत नहीं देख रहा था।
बीरजु : बिना कुछ बोले अपने मुह को निचे झुकाये खड़ा था।
कालू : अब क्यों बोलति बंद हो गई।
बीरजु : दादा मुझे माफ कर दो आगे से ऐसा नहीं करुँगा।
कालू : मुस्कुराते हुये, एक शर्त पर माफ़ कर सकता हूँ।
बीरजु : वह क्या।
कालू : तो मुझे वचन दे की आज से मै जो कहुंगा मेरी हर बात मानेगा।
बीरजु : मेरे पांव पकड़ते हुये, दादा तुम तो वैसे भी बड़े भाई हो, आज से यह बिरजु तुम्हरा दास हो गया पर दादा तुम यह बात किसी को नहीं बताओगे ना।
कालू : नहीं बताउंगा, लेकिन तुझे मेरा एक काम करवाना पडेगा।
बीरजु : कौन सा काम।
कालू : मुझे भी चाची की फुली हुई चुत देखना है।
बीरजु : लेकिन दादा यह सब मुझसे कैसे होगा वो तो उस दिन इतफ़ाक़ से मुझे माँ की चुत के दर्शन हो गये, नहीं तो माँ तो मुझे छोटा बच्चा ही समझती है।
और बापु तो शहर में नौकरी करता है और महिने भर में आता है और माँ अपनी चुत कभी कभी खुद ही रगड लेती है।

कल्लु : अच्चा यह बता तेरा मन भी होता है न अपनी माँ संतोष को नंगी करके चोदने का।
बीरजु : मुस्कुराते हुये, अरे दादा मन होने से माँ चोदने को थोड़े ही मिल जयेगी ।
कालू : अगर तू मेरी मदद कर दे तो मै तुझे तेरी माँ को चोदने की व्यवश्था कर सकता हूँ।
बीरजु : लेकिन कैसे।
कालू : कल दोपहर को मै तेरे खेतो में आउंगा तब वही बात करेगे लेकिन यह बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिये।
बीरजु : ठीक है दादा लेकिन तुम भी वह नदी वाली बात किसी से न कहना।
कालू : हाँ ठीक है चल अब तो यहाँ से कट ले कल मिलेगे उसके जाने के बाद मै खेतो में जमी घास काटने लगा और उधर माँ और गीतिका चाची के खेतो की ओर
पहुच गई थी।
 
संतोष चाची : और सुनाओ दीदी तुम्हे तो आजकल मेरे पास बेठने की भी फुर्सत नहीं है।
निर्माला : नहीं रे ऐसी बात नहीं है, बस काम में ही लगी रहती हूँ।
संतोष : गीतिका को सामने टहलते हुए उसके मोटे मोटे लहराते चूतडो को देख कर, क्यों दीदी अब तो गीतिका भी बड़ी हो गई है, इसकी शादी वादी के बारे मे
सोचा है की नही।
निर्माला : अरे अभी तो वह और आगे पढना चाहती है कहती है अभी तो मै छोटी हूँ।
सन्तोष : अरे कहा छोटी है उसके चूतडो का उठाव तो देख, इसकी उम्र में तुम और मै तो बच्चे जन चुकी थी और वह कहती है की छोटी है, अच्छा तुम ही
बाताओ अभी बुढों के सामने नंगी करके खड़ी कर दो तो उनका लंड खड़ा हो जाए।
निर्माला : चुप कर रंडी, अभी वो सुन लेगी तो क्या सोचेगी।
संतोष : अरे दीदी सुन लेगी तो कुछ न सोचेगी, आज कल तो लड़किया आपस में यही सब बाते करती ही है, और सुनाओ जब से भैया ने तुम्हे चोदना बंद किया है तब से तुम कुछ ज्यादा ही गदरा गई हो, अब तो चलने पर भी तुम्हारे चूतड़ खूब मटकने लगे है।
निर्मला : तू भी तो लंड के लिए तरसती रहती है, तेरा आदमी भी तो शहर में ही पड़ा रहता है, इसीलिए तुझे दिन रात यह सब बाते ही सूझती है।
संतोष: अरे दीदी, सुबह से घाघरे से चुत का पानी पोछना शुरू करती हु तो घाघरा पूरा गीला हो जाता है, कई बार तो बिरजु भी कहने लगता है, माँ तेरा घघरा
कहा से गीला हो गया।
निर्माला : लो तो अब हालत इतनी ख़राब है की बेटा खुद माँ को बता रहा है की तेरे चुत से रस बह बह कर तेरे घाघरे को गीला कर रहा है, कही तेरे घाघरे की
गंध सूँघ कर तेरा बेटा समझ न जाये की यह पानी तो उसकी अपनी माँ की फुली चुत से रह रह कर रिस रहा है।
 
संतोष : अरे दीदी आज कल के लोंडो का कोई भरोषा नहीं हम उन्हें बच्चा समझते है और वह हमें नंगी करके चोदने का सोचने लगते है।
निर्माला : ऐसा क्या हो गया।
संतोष : अरे क्या बताऊ दीदी कल नदी पार करते हुए मेरे पेरो में काँटा लग गया तब मैंने बिरजु से कहा बेटा देख जरा काँटा कहा लगा है तो उसने मेरी टाँगो
को उठा कर देखना शुरू किया और फिर मैंने उसे ध्यान से देखा तो मुआ मेरे घाघरे के अंदर से मेरी चुत देखने की कोशिश कर रहा था।
निरमला : तूने कुछ कहा नही।
संतोष : मैंने कहा क्या कर रहा है जल्दी निकाल, तो कहने लगा माँ निकाल तो रहा हु बहुत गहरा लगा है थोड़ा पैर और ऊपर उठाओ, मुझे तो लगता है उसने मेरी पुरी फटी हुई चुत को खूब अच्छे से देखा है।
निर्माला : वह तो मस्त हो गया होगा तेरी फुली चुत देख कर।
संतोष : हाँ दीदी वह तो मेरा पैर छोड़ ही नहीं रहा था और मेरी टांगो को कस कर पकडे हुए ऊपर उठा रहा था।
निर्माला : तेरा बेटा अब जवान हो गया है उसे भी चोदने का मन करता होगा अब उसके लिए लुगाई का बंदोबस्त कर ले नहीं तो वह कही तुझे ही न छोड़ दे,
यह कहते हुए निर्मला हँस पडी।
संतोष : हसो मत दीदी, जिसके घर खुद शीशे के होते है उसे दूसरो के घरो में पथ्थर नहीं फ़ेकना चहिये।
निर्माला : क्या मतलब।
संतोष : मतलब की केवल मेरे ही घर जवान बेटा नहीं है, तुम्हारे भी एक जवान बेटा है और वह तो और भी मुस्टंडा हो गया है, कही ऐसा न हो की तुम
मुझ पर हसो और वह तुम्हे ही चोद दे।
निर्माला : नहीं मेरा बेटा बड़ा भोला है वह ऐसी नजरे मुझ पर डाल ही नहीं सकता।
संतोष : अरे दीदी ऐसे भोले ही तो ज्यादा खुराफ़ाती होते है, कभी गौर करना अपने बेटे की नज़रो पर, जरुर तुम्हारे चूतडो को घूरता होगा।

निर्माला : चुप कर गीतिका आ रही है।
गीतिका : कहो चाची कैसी हो।
संतोष : मै तो ठीक हु गीतिका तू बता जब से शहर पढने गई है अपनी चाची को तो भूल ही गई।
गीतिका : अरे चची भूली होती तो माँ को ले कर यहाँ क्यों आती, अब तो कभी आप आ जाओ तो आपको शहर घुमा देति हूँ।
सन्तोष : अरे बिटिया अपने ऐसे भाग्य कहा, तेरे चाचा रहते तो है पर मुझे ले जाने की उनको फुर्सत कहा है।
गीतिका : अरे वो नहीं ले जाते तो क्या हुआ आप ही चलो मेरे साथ।
संतोष : देख कभी मोका लगा तो जरुर चलुंगि।
निर्माला : चल संतोष अब मै चलती हु बड़ा काम पड़ा है और कल्लु अकेले लगा होगा आज तो उसके बाबा की भी तबियत ठीक नहीं लग रही थी तो वह भी घर
चले गए है।

थोड़ी देर बाद माँ वहाँ से वापस आ गई और फिर गुड़िया आराम से खटिया पर लेट गई और माँ अपनी गुदाज मोटी गाण्ड मेरे मुह की ओर करके निचे बेठी और घास काटने लगी।
थोड़ी देर बाद घास काटते काटते हम दोनों एक दूसरे के सामने आ गए तभी मेरी नजर माँ की दोनों जांघो की गैप में पड़ी तो मेरी आँखे खुली रह गई, मेरी माँ की मस्त फुली हुई चिकनी चुत अपनी फांके
फैलाये मेरी और देख रही थी, माँ की भोसडी पर एक भी बाल नहीं था और बहुत चिकनी लग रही थी, उसकी चुत की फाँके बहुत फुली हुई नजर आ रही थी, और माँ का ध्यान जमीन पर घास काटने में लगा हुआ था।

मा की मस्त बुर देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया था और धोती में बड़ा भारी तम्बू बनाये हुए था, मै टक टकी लगा कर माँ की मस्त चुत देख रहा था, घास
काटते हुए माँ जब बैठे बैठे आगे बढ़ती तो उसकी फुली चुत की फाँके और भी खुल जाती और माँ की चुत का गुलाबी रसीला छेद भी नजर आ रहा था, तभी माँ ने मुझे अपनी मस्त चूत को घुरते हुए देख लिया और पहले तो माँ ने ध्यान नहीं दिया फिर जब उसे मेरे लंड का तम्बू नजर आया तो उसकी नजरे मेरी नज़रो से मिली और मा मंद मंद मुस्कुराते हुए दूसरी ओर घुम गई और घास काटने लगी, मेरा लंड अकड़ा जा रहा था और मैंने अपने लंड को धोती के ऊपर से मसलते हुए माँ की चूत की कल्पना करने लगा।
 
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