desiaks
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अनु की गाण्ड पहली बार लण्ड ले रही थी, और अनु की गाण्ड का छेड़ थोड़ा कसा हआ भी था। मैंने अनु के चूतड़ों का हाथ से पकड़कर फैलाते हुए धक्के मारने शुरू कर दिए। इससे अनु की गाण्ड का छेद घोड़ा और फैल गया। अब अनु की गाण्ड को भी मेरे लौड़े की चोट अच्छी लगने लगी। अनु की सिसकियों में जो दर्द था, वो अब मजे में बदल गया।
अनु अब "आहह... मेरा बाबू उईईई... आह्ह.." करने लगी।
अनु की गाण्ड पर जब मैं चोट मारता था तब उसकी भुलभुले चूतड़ों पर शिरकन आ जाती थी, और उसके चूतड़ों पर चोट पड़ने से पट-पट की आवाज आ रही थी। मुझे ऐसा मजा कभी नहीं आया था। अनु की गरम और टाइट गाण्ड में मेरा लौड़ा खुद को ज्यादा देर तक रोक नहीं पाया और फिर मैंने अनु की गाण्ड में अपने माल को छोड़ दिया। अनु की गाण्ड में मेरा लण्ड झड़ने के बाद भी ऐसे ही तना रहा, जैसे झाड़ा ही ना हो।
मेरा मन नहीं हआ की में उसकी गाण्ड से अपने लण्ड को बाहर निकालूं। मैंने अपने लण्ड को अंदर ही पड़े रहने दिया जब तक की लण्ड टीला नहीं पड़ गया। अनु भी घोड़ी बनी रही। जब अनु की गाण्ड में लौड़ा टीला पड़ गया
तो मैंने अनु की गाण्ड में अपने लौड़े को बाहर खींचा, तो पुच्च की आवाज हुई। अनु बैंड पर झटके से पेंट के बाल लेट गई। मैं अपने लण्ड को पकड़कर सीधा बाथरूम में चला गया। वहां जाकर मैंने अपने लण्ड को देखा तो मेरे माल और अनु की शिट का मिक्स्चर लगा हुआ था। मैंने जल चला दिया और लण्ड नीचे रख दिया। लण्ड धोने के बाद मैं तौलिया से पोंछता हुआ बाहर आ गया।
अनु अभी तक वैसे ही लेटी थी। ऋतु उसके चूतड़ों को सहला रही थी।
मुझे देख कर ऋतु ने कहा- "पता है दीदी को अभी तक दर्द हो रहा है.."
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मैं अनु के पास जाकर लेट गया। मैंने उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए कहा- "अनु डियर सारी... मुझे माफ कर दो। मैंने जानबूझ कर तुम्हें दर्द नहीं दिया.."
अनु पहले तो कुछ नहीं बोली। फिर एकदम से मुझे चिपक गई और मुझे चूमने लगी। बेहतशा चमने के बाद अनु ने मेरे सीने में अपना मुँह छुपा लिया। उसके गरम औंस मुझे सीने पर महसूस हुए।
मैंने अनु का चेहरा ऊपर किया और कहा- "अनु मेरी जान प्लीज... रोना नहीं, नहीं तो मुझे लगेगा की मैंने तुम्हें सलाया है। मैं तो तुम्हें यहां खुशियां देने के लिए लाया हूँ। अगर तुमको मेरी वजह से कोई तकलीफ हुई तो मुझं दोषी महसूस होगा..."
अनु ने सिसकते हए कहा- "नहीं-नहीं, मैं उस वजह से नहीं रो रही। मेरा तो मन वैसे ही भारी हो गया था..."
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मैंजे अनु के आँसू पोंछे और उसके गाल को चूमते हुए कहा- "गुड़ अब जरा स्माइल दो.."
अनु ने स्माइल दी। मैंने उसको अपने गले से लगा लिया और कहा- "तुम सिर्फ मकराती हई अच्छी लगती हो। रोए तुम्हारे दुश्मन ..."
अनु फिर से मेरे गले से लगकर बोली- "मेरा बाबू कितना स्वीट है."
मैंने अनु को कहा- "अब दर्द कुछ कम हुआ?"
अनु ने कहा- "हो तो अब भी रहा है, पर उतना नहीं जितना पहले था..."
मैंने अनु को कहा- "चलो तुम्हारा बाकी दर्द भी दूर करता हैं... उठकर खड़ी हो जाओ..."
अनु थोड़ा सा मुश्किल से खड़ी हुई।
अनु अब "आहह... मेरा बाबू उईईई... आह्ह.." करने लगी।
अनु की गाण्ड पर जब मैं चोट मारता था तब उसकी भुलभुले चूतड़ों पर शिरकन आ जाती थी, और उसके चूतड़ों पर चोट पड़ने से पट-पट की आवाज आ रही थी। मुझे ऐसा मजा कभी नहीं आया था। अनु की गरम और टाइट गाण्ड में मेरा लौड़ा खुद को ज्यादा देर तक रोक नहीं पाया और फिर मैंने अनु की गाण्ड में अपने माल को छोड़ दिया। अनु की गाण्ड में मेरा लण्ड झड़ने के बाद भी ऐसे ही तना रहा, जैसे झाड़ा ही ना हो।
मेरा मन नहीं हआ की में उसकी गाण्ड से अपने लण्ड को बाहर निकालूं। मैंने अपने लण्ड को अंदर ही पड़े रहने दिया जब तक की लण्ड टीला नहीं पड़ गया। अनु भी घोड़ी बनी रही। जब अनु की गाण्ड में लौड़ा टीला पड़ गया
तो मैंने अनु की गाण्ड में अपने लौड़े को बाहर खींचा, तो पुच्च की आवाज हुई। अनु बैंड पर झटके से पेंट के बाल लेट गई। मैं अपने लण्ड को पकड़कर सीधा बाथरूम में चला गया। वहां जाकर मैंने अपने लण्ड को देखा तो मेरे माल और अनु की शिट का मिक्स्चर लगा हुआ था। मैंने जल चला दिया और लण्ड नीचे रख दिया। लण्ड धोने के बाद मैं तौलिया से पोंछता हुआ बाहर आ गया।
अनु अभी तक वैसे ही लेटी थी। ऋतु उसके चूतड़ों को सहला रही थी।
मुझे देख कर ऋतु ने कहा- "पता है दीदी को अभी तक दर्द हो रहा है.."
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मैं अनु के पास जाकर लेट गया। मैंने उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए कहा- "अनु डियर सारी... मुझे माफ कर दो। मैंने जानबूझ कर तुम्हें दर्द नहीं दिया.."
अनु पहले तो कुछ नहीं बोली। फिर एकदम से मुझे चिपक गई और मुझे चूमने लगी। बेहतशा चमने के बाद अनु ने मेरे सीने में अपना मुँह छुपा लिया। उसके गरम औंस मुझे सीने पर महसूस हुए।
मैंने अनु का चेहरा ऊपर किया और कहा- "अनु मेरी जान प्लीज... रोना नहीं, नहीं तो मुझे लगेगा की मैंने तुम्हें सलाया है। मैं तो तुम्हें यहां खुशियां देने के लिए लाया हूँ। अगर तुमको मेरी वजह से कोई तकलीफ हुई तो मुझं दोषी महसूस होगा..."
अनु ने सिसकते हए कहा- "नहीं-नहीं, मैं उस वजह से नहीं रो रही। मेरा तो मन वैसे ही भारी हो गया था..."
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मैंजे अनु के आँसू पोंछे और उसके गाल को चूमते हुए कहा- "गुड़ अब जरा स्माइल दो.."
अनु ने स्माइल दी। मैंने उसको अपने गले से लगा लिया और कहा- "तुम सिर्फ मकराती हई अच्छी लगती हो। रोए तुम्हारे दुश्मन ..."
अनु फिर से मेरे गले से लगकर बोली- "मेरा बाबू कितना स्वीट है."
मैंने अनु को कहा- "अब दर्द कुछ कम हुआ?"
अनु ने कहा- "हो तो अब भी रहा है, पर उतना नहीं जितना पहले था..."
मैंने अनु को कहा- "चलो तुम्हारा बाकी दर्द भी दूर करता हैं... उठकर खड़ी हो जाओ..."
अनु थोड़ा सा मुश्किल से खड़ी हुई।