hotaks444
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दामिनी
मैं दामिनी हूँ..जी हाँ ऑफ कोर्स दामिनी नाम है तो ये बताने की ज़रूरत नहीं के मैं एक स्त्री ही हूँ..हाँ ये और बात है के अभी एक कमसिन लड़की हूँ...एक सेक्सी औरत हूँ ..या फिर जवानी की सीढ़ियों से उतरती एक अधेड़ औरत ... खैर जो भी हूँ ..अभी
मैं एक मालदार , जानदार और ईमानदार औरत हूँ..हा! हा! हाँ ईमानदार ..मेरा ईमान है मेरी चूत और मेरा धर्म है मेरी खूबसूरती ..इन दोनों का हम ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी ईमानदारी से इस्तेमाल किया ..जी हाँ बड़ी ईमानदारी से..और ज़िंदगी के इस मुकाम पे आ पहुचि हूँ...तो मैं ईमानदार हूँ ना ?
आज मेरे पास बड़ा बॅंक बॅलेन्स है ..बंगला है ,लेटेस्ट मॉडेल्स की कार है ..नौकर हैं और हाँ याद आया एक पति भी है..... जिसकी ज़रूरत मुझे उसके लौडे के लिए नहीं ..बिल्कुल नहीं ..मेरी जिंदगी में मुझे लौडे की कभी कमी नहीं हुई ..बचपन से आज तक .... हाँ तो पति की ज़रूरत सिर्फ़ दिखावे के लिए है ....कितनी सहूलियत है ..एक छोटे से लंड का ठप्पा चूत में लगते ही और माथे पे सिंदूर की चुटकी लगते ही कितने सारे लौन्डो को अंदर लेने का लाइसेन्स मिल जाता है ..कोई उंगली नहीं उठा सकता ....मैं ठीक बोल रही हूँ ना ..?
आक्च्युयली बचपन से ही मेरे घर का माहौल कुछ ऐसा था के मेरी चूत में हलचल मची रहती थी .. लौडे की हमेशा प्यासी.....और इसी प्यास ..इसी चाह का बखूबी इस्तेमाल किया मैने ...और आज इस मुकाम पर हूँ.
तो चलें फिर मेरी कहानी की शुरुआत करें ..शुरू से ..याने जहाँ से मेरी ज़िंदगी शुरू होती है ...मेरे घर से ....
तो चलें मेरे घर की ओर...हाँ वो घर जहाँ से मेरी कहानी की शुरुआत हुई...जहाँ से आज की दामिनी की पैदाइश हुई...
मेरे पापा अभय माथुर , एक प्राइवेट फर्म में अच्छी ख़ासी मार्केटिंग की जॉब थी ...जिस समय की बात मैं कर रही हूँ ..उम्र थी उनकी 43 वर्ष ...हमेशा टूर पर रहते ..बहोत हॅंडसम ...रंग गेहुआ...5'10" हाइट और गठिला बदन..कॉलेज में बॅडमिंटन चॅंपियन ..अभी भी लड़कियाँ उन्हें घूरती .. जाहिर है मैं भी...
पर पापा को मेरी मम्मी ने ऐसा जाकड़ रखा था अपनी चूत में ,उनका लौडा कहीं और भटकता ही नहीं ...
नाम था मेरी मम्मी का कामिनी ...और थी भी कामिनी.. उन्होने अपने शरीर को अच्छी तरह संभाला था ...पूरे का पूरा 5'6" का लंबा क़द को उन्होने सही जागेह पे सही उभार से संवार रखा था ...रंग गोरा ..... सेक्स की गुलाबी खुश्बू उनके चारों ओर हमेशा छाई रहती ...पापा को मदमस्त रखने के लिए काफ़ी ...और सिर्फ़ पापा ही नहीं शायद मेरे भैया भी मदमस्त थे ....पर उन्हें अभी तक मदमस्त रहने से आगे की सीढ़ी चढ़ने की सफलता हासिल नहीं हुई थी ... बेचारे भैया ...
पापा ने मम्मी को फँसाया या मम्मी ने पापा को ..कहना ज़रा मुश्किल था ..पर दोनों एक दूसरे की जाल में फँसे ज़रूर और बुरी तरह ..पापा थे माथुर और मम्मी पंजाबी ... मम्मी के परिवार वाले राज़ी नही थे शादी के लिए ..पापा ने मम्मी को कर दिया पार ...एक दिन मम्मी जो कॉलेज के लिए घर से निकलीं ...फिर वापस घर नहीं गयीं ..सीधा पापा के साथ घर बसा लिया ... हाँ काफ़ी सालों बाद उनके पेरेंट्स ने उन्हें अपनाया .
ये किस्सा मम्मी बड़े फक्र से कभी कभी हमें सुनाती थीं ... खास कर तब जब क्लब से वापस आने पर एक दो पेग उनके गले के नीचे उतर चुका होता था ... और हम सब खाने के टेबल पर बातें करते ... और भैया उनकी तरफ नज़रें गढ़ाए उनकी ओर एक टक देखते रहते ...शायद मम्मी को भैया का इस तरह देखना अच्छा लगता ..और भैया की निगाहें और दो पेग मिल कर उन्हें अपनी जवानी के दिनों की ओर खींच लेता...
हाँ मेरे भैया बिल्कुल मेरे पापा के यंगर वर्षन ..पर क़द पापा से कुछ ज़्यादा ..उम्र 20 वर्ष ...रंग मम्मी का ..और गठिला बदन पापा का...वेरी डेड्ली कॉंबिनेशन ...पापा के बाद मेरी लिस्ट में उन्हीं का नंबर था ..हे ! हे! हे! ..... इंजिनियरिंग कॉलेज में आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहे थे ...उन्हें घर के नक्शों से फुरसत मिलती तो सिर्फ़ मम्मी के नयन नक्श घूरते ..नाम था अभिजीत ..
और हाँ मैं थी उस समय सिर्फ़ 18 साल की ... जवानी की देहली पर पहला कदम था हमारा .. भैया पापा के यंगर वर्षन थे तो मैं थी मम्मी की फोटो कॉपी ...वोई रूप , वोई रंग वोई क़द और वोई खुश्बू ..फ़र्क सिर्फ़ इतना के इन सब खूबियों से मैं खुद ही मदमस्त रहती ..डूबी रहती एक अजीब नशे में ...और पापा को याद कर अपनी चूत उंगलियों से सहलाती मूठ मारती ..और बुरी तरह काँपती हुई झाड़ जाती और उनकी याद लिए मधुर सपने में खो जाती....
कॉलेज में लड़के मेरे आगे पीछे घूमते , पर मैं किसी को घास नहीं डालती ..मेरे उपर तो बस पापा का भूत सवार था ...जब तक मेरे भगवान को प्रसाद नहीं चढ़ता ..इस पर किसी और के हक़ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता...मैं ठीक बोल रही हूँ ना..??? ??
उस दिन सुबह जब मेरी आँखें खुली तो देखा मम्मी के चेहरे पे एक लंबी मुस्कान थी ...और वो अपना फ़ेवरेट गाना गुनगुनाते हुए किचन की ओर जा रहीं थीं सब के लिए चाइ बनाने..हमारे यहाँ खाना बनाने के लिए एक कुक थी ..पर सुबह की चाइ हमेशा मम्मी ही बनाती और सब को उठाते हुए बड़े प्यार से चाइ देती ...ये रोज का सिलसिला था ...हाँ पर इस सिलसिले में गुनगुनाना कभी कभी ही शामिल होता .... हे ! हे ! हे! आप समझ गये होंगे के उनके गुनगुनाने के पीछे क्या राज हो सकता है....जी हाँ आप ने सही समझा ....कल शाम को ही पापा अपने 10 दिनों के टूर से वापस आए थे और जाहिर है रात में मम्मी की बड़े प्यार और जोश के साथ चुदाई हुई थी ...जिसका असर था उनके होठों पे सुबह सुबह ये गाना . पापा मम्मी की चुदाई ,मामूली चुदाई नहीं होती उनके चोदने का ढंग इतना प्यार और अपनापन लिए होता ..के मम्मी का अंग अंग फडक उठता ..कांप उठता ..सिहर उठता ....और सुबह उसकी याद आते ही उनके होंठ गुनगुनाने लगते.
मैं दामिनी हूँ..जी हाँ ऑफ कोर्स दामिनी नाम है तो ये बताने की ज़रूरत नहीं के मैं एक स्त्री ही हूँ..हाँ ये और बात है के अभी एक कमसिन लड़की हूँ...एक सेक्सी औरत हूँ ..या फिर जवानी की सीढ़ियों से उतरती एक अधेड़ औरत ... खैर जो भी हूँ ..अभी
मैं एक मालदार , जानदार और ईमानदार औरत हूँ..हा! हा! हाँ ईमानदार ..मेरा ईमान है मेरी चूत और मेरा धर्म है मेरी खूबसूरती ..इन दोनों का हम ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी ईमानदारी से इस्तेमाल किया ..जी हाँ बड़ी ईमानदारी से..और ज़िंदगी के इस मुकाम पे आ पहुचि हूँ...तो मैं ईमानदार हूँ ना ?
आज मेरे पास बड़ा बॅंक बॅलेन्स है ..बंगला है ,लेटेस्ट मॉडेल्स की कार है ..नौकर हैं और हाँ याद आया एक पति भी है..... जिसकी ज़रूरत मुझे उसके लौडे के लिए नहीं ..बिल्कुल नहीं ..मेरी जिंदगी में मुझे लौडे की कभी कमी नहीं हुई ..बचपन से आज तक .... हाँ तो पति की ज़रूरत सिर्फ़ दिखावे के लिए है ....कितनी सहूलियत है ..एक छोटे से लंड का ठप्पा चूत में लगते ही और माथे पे सिंदूर की चुटकी लगते ही कितने सारे लौन्डो को अंदर लेने का लाइसेन्स मिल जाता है ..कोई उंगली नहीं उठा सकता ....मैं ठीक बोल रही हूँ ना ..?
आक्च्युयली बचपन से ही मेरे घर का माहौल कुछ ऐसा था के मेरी चूत में हलचल मची रहती थी .. लौडे की हमेशा प्यासी.....और इसी प्यास ..इसी चाह का बखूबी इस्तेमाल किया मैने ...और आज इस मुकाम पर हूँ.
तो चलें फिर मेरी कहानी की शुरुआत करें ..शुरू से ..याने जहाँ से मेरी ज़िंदगी शुरू होती है ...मेरे घर से ....
तो चलें मेरे घर की ओर...हाँ वो घर जहाँ से मेरी कहानी की शुरुआत हुई...जहाँ से आज की दामिनी की पैदाइश हुई...
मेरे पापा अभय माथुर , एक प्राइवेट फर्म में अच्छी ख़ासी मार्केटिंग की जॉब थी ...जिस समय की बात मैं कर रही हूँ ..उम्र थी उनकी 43 वर्ष ...हमेशा टूर पर रहते ..बहोत हॅंडसम ...रंग गेहुआ...5'10" हाइट और गठिला बदन..कॉलेज में बॅडमिंटन चॅंपियन ..अभी भी लड़कियाँ उन्हें घूरती .. जाहिर है मैं भी...
पर पापा को मेरी मम्मी ने ऐसा जाकड़ रखा था अपनी चूत में ,उनका लौडा कहीं और भटकता ही नहीं ...
नाम था मेरी मम्मी का कामिनी ...और थी भी कामिनी.. उन्होने अपने शरीर को अच्छी तरह संभाला था ...पूरे का पूरा 5'6" का लंबा क़द को उन्होने सही जागेह पे सही उभार से संवार रखा था ...रंग गोरा ..... सेक्स की गुलाबी खुश्बू उनके चारों ओर हमेशा छाई रहती ...पापा को मदमस्त रखने के लिए काफ़ी ...और सिर्फ़ पापा ही नहीं शायद मेरे भैया भी मदमस्त थे ....पर उन्हें अभी तक मदमस्त रहने से आगे की सीढ़ी चढ़ने की सफलता हासिल नहीं हुई थी ... बेचारे भैया ...
पापा ने मम्मी को फँसाया या मम्मी ने पापा को ..कहना ज़रा मुश्किल था ..पर दोनों एक दूसरे की जाल में फँसे ज़रूर और बुरी तरह ..पापा थे माथुर और मम्मी पंजाबी ... मम्मी के परिवार वाले राज़ी नही थे शादी के लिए ..पापा ने मम्मी को कर दिया पार ...एक दिन मम्मी जो कॉलेज के लिए घर से निकलीं ...फिर वापस घर नहीं गयीं ..सीधा पापा के साथ घर बसा लिया ... हाँ काफ़ी सालों बाद उनके पेरेंट्स ने उन्हें अपनाया .
ये किस्सा मम्मी बड़े फक्र से कभी कभी हमें सुनाती थीं ... खास कर तब जब क्लब से वापस आने पर एक दो पेग उनके गले के नीचे उतर चुका होता था ... और हम सब खाने के टेबल पर बातें करते ... और भैया उनकी तरफ नज़रें गढ़ाए उनकी ओर एक टक देखते रहते ...शायद मम्मी को भैया का इस तरह देखना अच्छा लगता ..और भैया की निगाहें और दो पेग मिल कर उन्हें अपनी जवानी के दिनों की ओर खींच लेता...
हाँ मेरे भैया बिल्कुल मेरे पापा के यंगर वर्षन ..पर क़द पापा से कुछ ज़्यादा ..उम्र 20 वर्ष ...रंग मम्मी का ..और गठिला बदन पापा का...वेरी डेड्ली कॉंबिनेशन ...पापा के बाद मेरी लिस्ट में उन्हीं का नंबर था ..हे ! हे! हे! ..... इंजिनियरिंग कॉलेज में आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहे थे ...उन्हें घर के नक्शों से फुरसत मिलती तो सिर्फ़ मम्मी के नयन नक्श घूरते ..नाम था अभिजीत ..
और हाँ मैं थी उस समय सिर्फ़ 18 साल की ... जवानी की देहली पर पहला कदम था हमारा .. भैया पापा के यंगर वर्षन थे तो मैं थी मम्मी की फोटो कॉपी ...वोई रूप , वोई रंग वोई क़द और वोई खुश्बू ..फ़र्क सिर्फ़ इतना के इन सब खूबियों से मैं खुद ही मदमस्त रहती ..डूबी रहती एक अजीब नशे में ...और पापा को याद कर अपनी चूत उंगलियों से सहलाती मूठ मारती ..और बुरी तरह काँपती हुई झाड़ जाती और उनकी याद लिए मधुर सपने में खो जाती....
कॉलेज में लड़के मेरे आगे पीछे घूमते , पर मैं किसी को घास नहीं डालती ..मेरे उपर तो बस पापा का भूत सवार था ...जब तक मेरे भगवान को प्रसाद नहीं चढ़ता ..इस पर किसी और के हक़ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता...मैं ठीक बोल रही हूँ ना..??? ??
उस दिन सुबह जब मेरी आँखें खुली तो देखा मम्मी के चेहरे पे एक लंबी मुस्कान थी ...और वो अपना फ़ेवरेट गाना गुनगुनाते हुए किचन की ओर जा रहीं थीं सब के लिए चाइ बनाने..हमारे यहाँ खाना बनाने के लिए एक कुक थी ..पर सुबह की चाइ हमेशा मम्मी ही बनाती और सब को उठाते हुए बड़े प्यार से चाइ देती ...ये रोज का सिलसिला था ...हाँ पर इस सिलसिले में गुनगुनाना कभी कभी ही शामिल होता .... हे ! हे ! हे! आप समझ गये होंगे के उनके गुनगुनाने के पीछे क्या राज हो सकता है....जी हाँ आप ने सही समझा ....कल शाम को ही पापा अपने 10 दिनों के टूर से वापस आए थे और जाहिर है रात में मम्मी की बड़े प्यार और जोश के साथ चुदाई हुई थी ...जिसका असर था उनके होठों पे सुबह सुबह ये गाना . पापा मम्मी की चुदाई ,मामूली चुदाई नहीं होती उनके चोदने का ढंग इतना प्यार और अपनापन लिए होता ..के मम्मी का अंग अंग फडक उठता ..कांप उठता ..सिहर उठता ....और सुबह उसकी याद आते ही उनके होंठ गुनगुनाने लगते.