hotaks444
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दामिनी--6
गतान्क से आगे…………………..
हाँ तो सलिल मेरा चहेता था ..हम दोनों हमेशा साथ रहते , उसे भी चालू टाइप लड़कियाँ पसंद नहीं थी ..क्लास में भी हम दोनों साथ ही बैठते .लड़कियाँ जलती थी मुझ से और लड़कों का खून खौलता था सलिल को देख कर ..के साले ने कॉलेज की सब से फाटका माल पटा रखी है ...और हम दोनों इन सब बातों की परवाह किए बगैर अपने में मस्त रहते .
तो ये सलिल था हमारी लिस्ट में तीसरा .... कभी कभी मैं जब मूड में रहती तो उस दिन क्लास में मैं सलिल पीछे की बेंच पर जा कर बैठ जाते ..और सलिल को मालूम पड जाता के अब क्या होनेवाला है उसके साथ .
सलिल हमेशा मुझ से कहता " दामिनी ..यार ये क्या है..? तुम्हें मेरे लौडे से खेलना ही है ना..? चलो ना कहीं और चलते हैं ...पिक्चर हॉल है..पार्क है ..मेरा घर है ..हम कहीं भी जा सकते हैं ..पर तुम भी ना ...बस तुम्हें तो क्लास रूम में मेरे लौडे को छेड़ना है..कभी किसी दिन सर ने देख लिया तो फिर क्या होगा ..??"
"येई तो मज़ा है सलिल ....जो थ्रिल मुझे यहाँ मिलता है ..किसी और जागेह नहीं ...इतने सारे लोगों के बीच ..फिर पकड़े जाने का डर ..ऊओह सलिल ,सलिल ये थ्रिल कहीं और नहीं मिलेगा ...तुम मुझे इतना भी थ्रिल नहीं दे सकते ? सलिल प्ल्ज़्ज़ ..आइ लव यू बेबी ..लव यू सो मच.." और फिर एक सेक्सी लुक उसकी ओर काफ़ी होता उसे हथियार डालने को .
मेरी चूतड़ पिंच करते हुए वो बोल उठता " अरे मेरी अम्मा ...तुम ना ....ठीक है बाबा तुम और तुम्हारा थ्रिल ...अब चलो जल्दी चलो क्लास शुरू होनेवाला है..."
और फिर हम दोनों पीछे की बेंच में सब से किनारे बैठ जाते ...सलिल सामने देखता रहता जैसे ध्यान से सर का लेक्चर सुन रहा हो..और मेरे हाथ बिज़ी हो जाते ...
वैसे थ्रिल के अलावा एक और कारण था मेरा उसके लंड से क्लास रूम में ही खेलने का ...पिक्चर हॉल के अंधेरे में थ्रिल नहीं रहता और किसी दूसरी जागेह मैं उसके मोटे लंड से अपने आप को शायद चुद्ने से रोक नहीं पाती .... सलिल इस बात से अंजान था ..मैने कभी बताया नहीं...
क्लास में लेक्चर चालू था और इधर मेरे हाथों का कमाल ....मैने सलिल के पॉकेट में अपनी हथेली डाल दी ..उसके अंडरवेर की साइड की फाँक से उसका लौडा फुन्कारता हुआ बाहर आ गया था ..पॉकेट में उसके हमेशा एक बड़ा सा होल रहता था...मेरी स्पेशल फरमाइश ... ...और उस होल से उंगलियाँ अंदर घुसा कर मैं उसका लंड पकड़ लेती और मुट्ठी में जाकड़ धीरे धीरे सहलाती रहती ..सलिल ..आँखें बंद कर मज़ा लेता रहता ...अगर कोई देखे तो समझेगा वो आँखें बंद कर बड़े ध्यान से लेक्चर सुन रहा है..पर ध्यान तो उसका मेरी उंगलियों की हरकत पे होता ..मुझे भी कड़क और मोटा लंड हाथ से सहलाने में बड़ा मज़ा आता है...मैं कभी सहलाती ... .भींचती ..कभी अपने नाइल्स से उसके सुपाडे को हल्के हल्के कुरेदती ..दूसरा हाथ मेरा अपनी चूत में हरकतें करता ..और थोड़ी देर बाद सलिल अपनी लंड से पिचकारी मेरे हाथ में छोड़ देता ...मेरे दोनों हाथ गीले हो जाते ...जिन्हें मैं बाद में पूरे का पूरा चाट जाती ...स्वाद के साथ...!
अब ऐसे लंड को चूत में लेने की मुझे बहुत जल्दी थी ..और भैया का लंड तो पहले से दस्तक मार रहा था ..उफफफफफफफफ्फ़ ..और सब कुछ पापा पर डिपेंड था ..मैने अब मन बना लिया था इस बार पापा के टूर में जाने से पहले ही उन से चुद्ना ही है ..बस अब और देर नहीं कर सकती..पापा अब और नहीं ..तुम चोदो यह फिर मैं चोद्ति हूँ आप को ....
कहते हैं ना अगर दिल से कुछ करो तो भगवान भी मदद करते हैं ....हाँ मैने भी अपने दिल से पापा के लंड की ख्वाहिश की थी , और शायद अब पूरा होनेवाला था ..पापा का लंड अंदर लेते ही मेरे लिए लंड लेने के सारे दरवाज़े खूल जाते ..ये ख़याल आते ही मेरे पूरे शरीर में झूरजूरी सी होने लगी थी...ऊहह भैया ...अब आपका लंड मेरी टाइट चूत में दस्तक दे कर आकड़ेगा नहीं ..टूटेगा नहीं , पूरे का पूरा अंदर जाएगा ....सलिल डार्लिंग अब क्लास रूम में मैं तुम्हें परेशान नहीं करूँगी मेरे राजा ...बेड रूम में सीधा चुदवाउन्गि ...अयाया ..ऊवू ..पापा ..पापा ..
और मैने अपना मन बना लिया था ....
मेरी चूत भी अब भैया के लंड की घिसाई और अपनी उंगलियाँ मसल्ने से उतनी टाइट नहीं थी ..एक पतली सी फाँक बन गयी थी मेरे चूत के होंठों के बीच ..उसके अंदर का गुलाबी देखते ही बनता ..
अब मैं तैय्यार थी और बस मौके की तलाश थी मुझे ... बस एक मौका ...और फिर....ऊवू ...आआआआः पापा का मदमस्त लौडा होगा और मेरी फुद्दि ....हाँ फुद्दि .....पापा तो इसे चोद कर चूत बनाएँगे ना ...
जैसे जैसे दिन निकलते जाते मेरा उतावलापन बढ़ता जाता ....मेरी प्यास बढ़ती जाती ...मुझे जब भी मौका मिलता मैं पापा से लिपट जाती ..उन्हें चूमने लग जाती ... पर अभी तक उन्होने इसे सेक्स की नज़रों से नहीं देखा था ...वो इसे सिर्फ़ एक बेटी का प्यार और आकर्षण समझते ..जब के उनकी पॅंट के अंदर भी हलचल होता था ...पर वो उसे नज़र अंदाज़ कर देते ..पर इस से साफ ज़ाहिर था मैं उनमें सेक्स की भावना जगा सकती थी , और जागता भी था ..पर उनमें एक बाप और बेटी के रिश्ते की लक्ष्मण रेखा लाँघने की हिम्मत नही थी...
मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ..मुझे ही पहेल करनी पडेगि ..वरना मेरी फुद्दि , फुद्दि ही रह जाएगी ...
और एक दिन :
मैं जब शाम को कॉलेज से वापस आई..देखा घर में एक सन्नाटा सा है ...पापा ड्रॉयिंग रूम में सोफे पर लेटे कुछ पढ़ रहे थे ... उन से पूछा तो पता चला मम्मी गयीं हैं अपने सहेली के साथ किटी पार्टी में ..और उनकी पार्टी का मतलब रात 8-9 बजे तक आने की कोई गुंजाइश नहीं ..और भैया के तो एक्सट्रा क्लास चल ही रहे थे ..उनका भी आना देर सी ही होता .....मैं झूम उठी ....आज का मौका जाने नहीं देना दामिनी ..बस आज अपनी फुद्दि की चुदाई करवा लो ..चूत बनवा लो फुद्दि का..
मैं फ़ौरन अपने बेड रूम में गयी ..ब्रा और पैंटी निकाल दी...सिर्फ़ शॉर्ट्स और टॉप में थी मैं ...पापा भी सिर्फ़ शॉर्ट्स में ही थे .गर्मियों में घर में हमेशा शॉर्ट्स ही पेहेन्ते ..मेरा काम आसान था...
मैं अपनी कमर लचकाते , चूतड़ मटकाते सोफे के पास आई अओर पापा के बगल लेट गयी ,और बड़े प्यार और रोमॅंटिक अंदाज़ में उन से कहा:
"पापा ..आपको अपनी बेटी का ज़रा भी ख़याल नहीं.." और मैने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया..
पापा मुस्कुराने लगे और मेरे चेहरे को अपनी तरफ बड़े प्यार से खींचते हुआ कहा:
"ज़रा मैं भी तो सुनू मेरी प्यारी बेटी ने ये इल्ज़ाम मुझ पर क्यूँ लगाया..? " और मेरे गालों को चूम लिया ..मैं सिहर उठी ...मैने अपने पैर उनके पैर पर रख दिया और हल्के हल्के उनके पैर घिसना शुरू कर दिया ...फिर अपने हाथों को उनके सीने पर रख दिया और सीना सहलाते हुए कहा :
"पापा ..एक तो आप हमेशा टूर पे रहते हो ....हम लोग आपको कितना मिस करते हैं ..ख़ास कर मैं ..और जब आते हो तो यह टीवी यह फिर किताब ....ये क्या है ...?? आइ रियली मिस यू सो मच पापा ..कभी तो मेरी तरफ भी देखा करो ना .." और मैं उनके हाथ से किताब छीनते हुए उन से लिपट गयी ...उनके होंठ चूमने लगी ... मेरे होंठों में अजीब भूख ..ललक , लालसा , बेचैनी थी ...पापा चौंक पड़े ...
उन्होने मुझे अपनी बाहों में ले कर बड़े प्यार से अलग किया ..और मेरी आँखों में देखते हुए कहा :
"दामिनी बेटी ..मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ..तू क्या समझती है मैं मिस नहीं करता ..बताओ मैं क्या करूँ के तुम्हें ये फील हो मैं भी तुम से उतना ही प्यार करता हूँ..बोलो ..." उनकी आवाज़ भर्राई थी ..मेरे पैर लगातार उनकी जंघें घिस रहे थे ..उसका असर साफ दीखलाई पड रहा था पापा के पॅंट के उभार से ..तंबू काफ़ी उँचा था ..मैं सिहर उठी ..मेरी फुद्दि गीली हो रही थी..
"ओओह्ह पापा यू आर सो स्वीट ... सो स्वीट " और मैने अब और ज़्यादा समय गँवाना ठीक नहीं समझा ...मैं उठ कर उनके कमर के पास बैठ ते हुए एक झट्के में उनके पॅंट की एलास्टिक खींचते हुए उनके घूटनो से नीचे कर दिया ,,उनका लौडा तनतनाता हुआ सलामी दे रहा था ...
मैने अपने दोनों हाथों से उसे जाकड़ते हुए कहा
"पापा आप जान ना चाहते हो ना मुझे क्या चाहिए ...मुझे ये चाहिए ..हाँ हाँ मुझे ये चाहिए ..."
गतान्क से आगे…………………..
हाँ तो सलिल मेरा चहेता था ..हम दोनों हमेशा साथ रहते , उसे भी चालू टाइप लड़कियाँ पसंद नहीं थी ..क्लास में भी हम दोनों साथ ही बैठते .लड़कियाँ जलती थी मुझ से और लड़कों का खून खौलता था सलिल को देख कर ..के साले ने कॉलेज की सब से फाटका माल पटा रखी है ...और हम दोनों इन सब बातों की परवाह किए बगैर अपने में मस्त रहते .
तो ये सलिल था हमारी लिस्ट में तीसरा .... कभी कभी मैं जब मूड में रहती तो उस दिन क्लास में मैं सलिल पीछे की बेंच पर जा कर बैठ जाते ..और सलिल को मालूम पड जाता के अब क्या होनेवाला है उसके साथ .
सलिल हमेशा मुझ से कहता " दामिनी ..यार ये क्या है..? तुम्हें मेरे लौडे से खेलना ही है ना..? चलो ना कहीं और चलते हैं ...पिक्चर हॉल है..पार्क है ..मेरा घर है ..हम कहीं भी जा सकते हैं ..पर तुम भी ना ...बस तुम्हें तो क्लास रूम में मेरे लौडे को छेड़ना है..कभी किसी दिन सर ने देख लिया तो फिर क्या होगा ..??"
"येई तो मज़ा है सलिल ....जो थ्रिल मुझे यहाँ मिलता है ..किसी और जागेह नहीं ...इतने सारे लोगों के बीच ..फिर पकड़े जाने का डर ..ऊओह सलिल ,सलिल ये थ्रिल कहीं और नहीं मिलेगा ...तुम मुझे इतना भी थ्रिल नहीं दे सकते ? सलिल प्ल्ज़्ज़ ..आइ लव यू बेबी ..लव यू सो मच.." और फिर एक सेक्सी लुक उसकी ओर काफ़ी होता उसे हथियार डालने को .
मेरी चूतड़ पिंच करते हुए वो बोल उठता " अरे मेरी अम्मा ...तुम ना ....ठीक है बाबा तुम और तुम्हारा थ्रिल ...अब चलो जल्दी चलो क्लास शुरू होनेवाला है..."
और फिर हम दोनों पीछे की बेंच में सब से किनारे बैठ जाते ...सलिल सामने देखता रहता जैसे ध्यान से सर का लेक्चर सुन रहा हो..और मेरे हाथ बिज़ी हो जाते ...
वैसे थ्रिल के अलावा एक और कारण था मेरा उसके लंड से क्लास रूम में ही खेलने का ...पिक्चर हॉल के अंधेरे में थ्रिल नहीं रहता और किसी दूसरी जागेह मैं उसके मोटे लंड से अपने आप को शायद चुद्ने से रोक नहीं पाती .... सलिल इस बात से अंजान था ..मैने कभी बताया नहीं...
क्लास में लेक्चर चालू था और इधर मेरे हाथों का कमाल ....मैने सलिल के पॉकेट में अपनी हथेली डाल दी ..उसके अंडरवेर की साइड की फाँक से उसका लौडा फुन्कारता हुआ बाहर आ गया था ..पॉकेट में उसके हमेशा एक बड़ा सा होल रहता था...मेरी स्पेशल फरमाइश ... ...और उस होल से उंगलियाँ अंदर घुसा कर मैं उसका लंड पकड़ लेती और मुट्ठी में जाकड़ धीरे धीरे सहलाती रहती ..सलिल ..आँखें बंद कर मज़ा लेता रहता ...अगर कोई देखे तो समझेगा वो आँखें बंद कर बड़े ध्यान से लेक्चर सुन रहा है..पर ध्यान तो उसका मेरी उंगलियों की हरकत पे होता ..मुझे भी कड़क और मोटा लंड हाथ से सहलाने में बड़ा मज़ा आता है...मैं कभी सहलाती ... .भींचती ..कभी अपने नाइल्स से उसके सुपाडे को हल्के हल्के कुरेदती ..दूसरा हाथ मेरा अपनी चूत में हरकतें करता ..और थोड़ी देर बाद सलिल अपनी लंड से पिचकारी मेरे हाथ में छोड़ देता ...मेरे दोनों हाथ गीले हो जाते ...जिन्हें मैं बाद में पूरे का पूरा चाट जाती ...स्वाद के साथ...!
अब ऐसे लंड को चूत में लेने की मुझे बहुत जल्दी थी ..और भैया का लंड तो पहले से दस्तक मार रहा था ..उफफफफफफफफ्फ़ ..और सब कुछ पापा पर डिपेंड था ..मैने अब मन बना लिया था इस बार पापा के टूर में जाने से पहले ही उन से चुद्ना ही है ..बस अब और देर नहीं कर सकती..पापा अब और नहीं ..तुम चोदो यह फिर मैं चोद्ति हूँ आप को ....
कहते हैं ना अगर दिल से कुछ करो तो भगवान भी मदद करते हैं ....हाँ मैने भी अपने दिल से पापा के लंड की ख्वाहिश की थी , और शायद अब पूरा होनेवाला था ..पापा का लंड अंदर लेते ही मेरे लिए लंड लेने के सारे दरवाज़े खूल जाते ..ये ख़याल आते ही मेरे पूरे शरीर में झूरजूरी सी होने लगी थी...ऊहह भैया ...अब आपका लंड मेरी टाइट चूत में दस्तक दे कर आकड़ेगा नहीं ..टूटेगा नहीं , पूरे का पूरा अंदर जाएगा ....सलिल डार्लिंग अब क्लास रूम में मैं तुम्हें परेशान नहीं करूँगी मेरे राजा ...बेड रूम में सीधा चुदवाउन्गि ...अयाया ..ऊवू ..पापा ..पापा ..
और मैने अपना मन बना लिया था ....
मेरी चूत भी अब भैया के लंड की घिसाई और अपनी उंगलियाँ मसल्ने से उतनी टाइट नहीं थी ..एक पतली सी फाँक बन गयी थी मेरे चूत के होंठों के बीच ..उसके अंदर का गुलाबी देखते ही बनता ..
अब मैं तैय्यार थी और बस मौके की तलाश थी मुझे ... बस एक मौका ...और फिर....ऊवू ...आआआआः पापा का मदमस्त लौडा होगा और मेरी फुद्दि ....हाँ फुद्दि .....पापा तो इसे चोद कर चूत बनाएँगे ना ...
जैसे जैसे दिन निकलते जाते मेरा उतावलापन बढ़ता जाता ....मेरी प्यास बढ़ती जाती ...मुझे जब भी मौका मिलता मैं पापा से लिपट जाती ..उन्हें चूमने लग जाती ... पर अभी तक उन्होने इसे सेक्स की नज़रों से नहीं देखा था ...वो इसे सिर्फ़ एक बेटी का प्यार और आकर्षण समझते ..जब के उनकी पॅंट के अंदर भी हलचल होता था ...पर वो उसे नज़र अंदाज़ कर देते ..पर इस से साफ ज़ाहिर था मैं उनमें सेक्स की भावना जगा सकती थी , और जागता भी था ..पर उनमें एक बाप और बेटी के रिश्ते की लक्ष्मण रेखा लाँघने की हिम्मत नही थी...
मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ..मुझे ही पहेल करनी पडेगि ..वरना मेरी फुद्दि , फुद्दि ही रह जाएगी ...
और एक दिन :
मैं जब शाम को कॉलेज से वापस आई..देखा घर में एक सन्नाटा सा है ...पापा ड्रॉयिंग रूम में सोफे पर लेटे कुछ पढ़ रहे थे ... उन से पूछा तो पता चला मम्मी गयीं हैं अपने सहेली के साथ किटी पार्टी में ..और उनकी पार्टी का मतलब रात 8-9 बजे तक आने की कोई गुंजाइश नहीं ..और भैया के तो एक्सट्रा क्लास चल ही रहे थे ..उनका भी आना देर सी ही होता .....मैं झूम उठी ....आज का मौका जाने नहीं देना दामिनी ..बस आज अपनी फुद्दि की चुदाई करवा लो ..चूत बनवा लो फुद्दि का..
मैं फ़ौरन अपने बेड रूम में गयी ..ब्रा और पैंटी निकाल दी...सिर्फ़ शॉर्ट्स और टॉप में थी मैं ...पापा भी सिर्फ़ शॉर्ट्स में ही थे .गर्मियों में घर में हमेशा शॉर्ट्स ही पेहेन्ते ..मेरा काम आसान था...
मैं अपनी कमर लचकाते , चूतड़ मटकाते सोफे के पास आई अओर पापा के बगल लेट गयी ,और बड़े प्यार और रोमॅंटिक अंदाज़ में उन से कहा:
"पापा ..आपको अपनी बेटी का ज़रा भी ख़याल नहीं.." और मैने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया..
पापा मुस्कुराने लगे और मेरे चेहरे को अपनी तरफ बड़े प्यार से खींचते हुआ कहा:
"ज़रा मैं भी तो सुनू मेरी प्यारी बेटी ने ये इल्ज़ाम मुझ पर क्यूँ लगाया..? " और मेरे गालों को चूम लिया ..मैं सिहर उठी ...मैने अपने पैर उनके पैर पर रख दिया और हल्के हल्के उनके पैर घिसना शुरू कर दिया ...फिर अपने हाथों को उनके सीने पर रख दिया और सीना सहलाते हुए कहा :
"पापा ..एक तो आप हमेशा टूर पे रहते हो ....हम लोग आपको कितना मिस करते हैं ..ख़ास कर मैं ..और जब आते हो तो यह टीवी यह फिर किताब ....ये क्या है ...?? आइ रियली मिस यू सो मच पापा ..कभी तो मेरी तरफ भी देखा करो ना .." और मैं उनके हाथ से किताब छीनते हुए उन से लिपट गयी ...उनके होंठ चूमने लगी ... मेरे होंठों में अजीब भूख ..ललक , लालसा , बेचैनी थी ...पापा चौंक पड़े ...
उन्होने मुझे अपनी बाहों में ले कर बड़े प्यार से अलग किया ..और मेरी आँखों में देखते हुए कहा :
"दामिनी बेटी ..मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ..तू क्या समझती है मैं मिस नहीं करता ..बताओ मैं क्या करूँ के तुम्हें ये फील हो मैं भी तुम से उतना ही प्यार करता हूँ..बोलो ..." उनकी आवाज़ भर्राई थी ..मेरे पैर लगातार उनकी जंघें घिस रहे थे ..उसका असर साफ दीखलाई पड रहा था पापा के पॅंट के उभार से ..तंबू काफ़ी उँचा था ..मैं सिहर उठी ..मेरी फुद्दि गीली हो रही थी..
"ओओह्ह पापा यू आर सो स्वीट ... सो स्वीट " और मैने अब और ज़्यादा समय गँवाना ठीक नहीं समझा ...मैं उठ कर उनके कमर के पास बैठ ते हुए एक झट्के में उनके पॅंट की एलास्टिक खींचते हुए उनके घूटनो से नीचे कर दिया ,,उनका लौडा तनतनाता हुआ सलामी दे रहा था ...
मैने अपने दोनों हाथों से उसे जाकड़ते हुए कहा
"पापा आप जान ना चाहते हो ना मुझे क्या चाहिए ...मुझे ये चाहिए ..हाँ हाँ मुझे ये चाहिए ..."