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मास्टर वापस सरदार के झोंपड़े में पहुँचा और वहीं बिस्तर पर जाकर गिरा, जो सरदारनी का बिस्तर था ।
कितनी ही देर वो आँख बंद किये बुरी तरह हांफता रहा ।
उसकी कनपटी धधक रही थी । गर्दन की नसें तन गयी थी । दिमाग में लहू ऐसे खोल रहा था, जैसे किसी ने उसे गैस की भट्टी पर पकने के लिए रख दिया हो, मुट्ठी जकड़ गयी थीं । गुस्से से उसका बुरा हाल था ।
मास्टर कितनी ही देर उसी पोजिशन में पकड़ा हांफता रहा ।
तभी हल्की आहट की आवाज सुनकर मास्टर की आँख खुली ।
उसने सामने देखा ।
सरदारनी अभी-अभी झोंपड़े का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुई थी ।
मास्टर को वहाँ देखकर वो धीरे से चौंकी । जबकि मास्टर अपलक उसके रूप का नजारा करता रहा ।
कितनी खूबसूरत थी हरामजादी ।
जिस्म का एक-एक पुर्जा सांचे में ढला हुआ ।
पता नहीं भगवान चरित्रहीन औरतों को ही इतना खूबसूरत क्यों बनाता है ?
या फिर एक दूसरी बात भी मुमकिन है ।
यह भी हो सकता है कि खूबसूरत औरतें ही चरित्रहीन होती हैं ।
आखिर उसी खूबसूरती में ही तो वो मखनातीसी (चुम्बकीय) आकर्षण होता है, जिसके बलबूते पर वो अपने जिस्म की बड़ी दिलकश नुमायश करती हैं । जिसके बलबूते पर वो अपने आगे-पीछे अंधे-काने भिखारियों का मेला लगाये रखती हैं । जिसके पास कुछ होता ही नहीं, वो नुमायश क्या लगायेगा ? बांटेगा क्या ?
“इस तरह घूरकर क्यों देख रहे हो ?” सरदारनी मुस्कुराते हुए बोली- “क्या आज आँखों हीं आँखों में हजम करने का इरादा है ।”
“हाँ ।” मास्टर बिस्तर छोड़कर खड़ा हो गया- “आज तुम्हें हजम करने का इरादा है ।”
“फिर तो आज तुम्हारी यह तमन्ना पूरी होने वाली नहीं है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि इस वक्त मैं पूरी तरह थकी हुई हूँ ।” वो इठलाते हुए बोली- “फिलहाल तो मेरी बस एक ही तमन्ना हो रही है । मैं धड़ाम से बिस्तर पर जाकर गिरूं और सो जाऊं ।”
“इस समय कहाँ से आ रही हो ?”
“तुम्हें पता नहीं, बस्ती में एक बूढ़े आदमी की मौत हो गयी है । उसी को जरा देखने गयी थी ।”
झूठ भी कितना सफाई से बोल रही थी साली !
अगर मास्टर ने उस छिनाल औरत की स्याह-सफेद करतूते खुद अपनी आँखों से न देखी होतीं, तो क्या वह उसकी बात पर यकीन न कर लेता ?
“अब तुम जाओ यहाँ से ।” वह धम्म से अपने बिस्तर पर जाकर ढेर हो गयी- “और मुझे सोने दो ।”
“सोओगी तो तुम जरूर, लेकिन उससे पहले एक काम करोगी ।”
“क्या ?”
सरदारनी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“अपने जिस्म से यह तमाम कपड़े उतारोगी ।”
“कैसी बात कर रहे हो, कपड़े उतारकर भी कहीं कोई सोता है ?”
“जंगली सोते हैं ।”
“मैं दूसरे जंगलियों जैसी नहीं हूँ ।” सरदारनी बोली ।
“आज तुम भी वैसी ही बनोगी ।”
“लेकिन... ।”
“बहस में वक्त बर्बाद मत करो ।” मास्टर थोड़ी सख्त जबान में बोला- “जो मैं कह रहा हूँ, करो ।”
“आज तुम्हारे इरादे कुछ नेक नजर नहीं आते ।” सरदारनी दिलकश अंदाज में ही मुस्कुराई ।
“ठीक कहा तुमने ।”
“अरे बाबा, मैंने कहा न, आज मैं बहुत थकी हुई हूँ ।”
“मैं आज तुम्हारी सारी थकान दूर कर दूंगा ।”
“कमाल है ! अगर मेरे कपड़े उतारते ही सरदार लौट आया तो ?”
“वो नहीं लौटेगा ।” मास्टर पहले जैसे ही जिद्दी लहजे में बोला- “वो कहकर गया है, सुबह तक उसकी वापसी होगी ।”
“यानि तुम आज मानने वाले नहीं हो ?”
“नहीं ।”
“ठीक है बाबा ।” सरदारनी ने हथियार डाले- “तो लो, तुम भी अपने दिल की हसरत पूरी करो ।”
फिर सरदारनी ने एक-एक करके अपने जिस्म से कपड़े उतारने शुरू किये ।
जल्द ही वो बिल्कुल निर्वस्त्र हो गयी ।
उसकी कंचन सी काया से कपड़े जुदा हुए, तो वह और भी ज्यादा हुस्न की मल्लिका नजर आने लगी ।
अब उसके रूप-लावण्य की वो पूरी खुली दुकान मास्टर के सामने थी, जिसके बल पर वो सारा खेल, खेलती थी । जिसकी वजह से मर्द उसके सामने घुटनों-घुटनों तक लार टपकाते थे ।
मास्टर ने फौरन अपनी कमर के साथ बंधा ‘हंसिया’ खींचकर बाहर निकाल लिया ।
“इस हंसिये से क्या करोगे ?” वो शरारती ढंग से हंसी- “क्या अब तुम्हारे पास कुछ करने के लिए हंसिया ही बचा है ?”
फौरन वो हंसिया बड़ी द्रुतगति के साथ चला ।
सरदारनी की वीभत्स चीख निकल गयी ।
कितनी ही देर वो आँख बंद किये बुरी तरह हांफता रहा ।
उसकी कनपटी धधक रही थी । गर्दन की नसें तन गयी थी । दिमाग में लहू ऐसे खोल रहा था, जैसे किसी ने उसे गैस की भट्टी पर पकने के लिए रख दिया हो, मुट्ठी जकड़ गयी थीं । गुस्से से उसका बुरा हाल था ।
मास्टर कितनी ही देर उसी पोजिशन में पकड़ा हांफता रहा ।
तभी हल्की आहट की आवाज सुनकर मास्टर की आँख खुली ।
उसने सामने देखा ।
सरदारनी अभी-अभी झोंपड़े का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुई थी ।
मास्टर को वहाँ देखकर वो धीरे से चौंकी । जबकि मास्टर अपलक उसके रूप का नजारा करता रहा ।
कितनी खूबसूरत थी हरामजादी ।
जिस्म का एक-एक पुर्जा सांचे में ढला हुआ ।
पता नहीं भगवान चरित्रहीन औरतों को ही इतना खूबसूरत क्यों बनाता है ?
या फिर एक दूसरी बात भी मुमकिन है ।
यह भी हो सकता है कि खूबसूरत औरतें ही चरित्रहीन होती हैं ।
आखिर उसी खूबसूरती में ही तो वो मखनातीसी (चुम्बकीय) आकर्षण होता है, जिसके बलबूते पर वो अपने जिस्म की बड़ी दिलकश नुमायश करती हैं । जिसके बलबूते पर वो अपने आगे-पीछे अंधे-काने भिखारियों का मेला लगाये रखती हैं । जिसके पास कुछ होता ही नहीं, वो नुमायश क्या लगायेगा ? बांटेगा क्या ?
“इस तरह घूरकर क्यों देख रहे हो ?” सरदारनी मुस्कुराते हुए बोली- “क्या आज आँखों हीं आँखों में हजम करने का इरादा है ।”
“हाँ ।” मास्टर बिस्तर छोड़कर खड़ा हो गया- “आज तुम्हें हजम करने का इरादा है ।”
“फिर तो आज तुम्हारी यह तमन्ना पूरी होने वाली नहीं है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि इस वक्त मैं पूरी तरह थकी हुई हूँ ।” वो इठलाते हुए बोली- “फिलहाल तो मेरी बस एक ही तमन्ना हो रही है । मैं धड़ाम से बिस्तर पर जाकर गिरूं और सो जाऊं ।”
“इस समय कहाँ से आ रही हो ?”
“तुम्हें पता नहीं, बस्ती में एक बूढ़े आदमी की मौत हो गयी है । उसी को जरा देखने गयी थी ।”
झूठ भी कितना सफाई से बोल रही थी साली !
अगर मास्टर ने उस छिनाल औरत की स्याह-सफेद करतूते खुद अपनी आँखों से न देखी होतीं, तो क्या वह उसकी बात पर यकीन न कर लेता ?
“अब तुम जाओ यहाँ से ।” वह धम्म से अपने बिस्तर पर जाकर ढेर हो गयी- “और मुझे सोने दो ।”
“सोओगी तो तुम जरूर, लेकिन उससे पहले एक काम करोगी ।”
“क्या ?”
सरदारनी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“अपने जिस्म से यह तमाम कपड़े उतारोगी ।”
“कैसी बात कर रहे हो, कपड़े उतारकर भी कहीं कोई सोता है ?”
“जंगली सोते हैं ।”
“मैं दूसरे जंगलियों जैसी नहीं हूँ ।” सरदारनी बोली ।
“आज तुम भी वैसी ही बनोगी ।”
“लेकिन... ।”
“बहस में वक्त बर्बाद मत करो ।” मास्टर थोड़ी सख्त जबान में बोला- “जो मैं कह रहा हूँ, करो ।”
“आज तुम्हारे इरादे कुछ नेक नजर नहीं आते ।” सरदारनी दिलकश अंदाज में ही मुस्कुराई ।
“ठीक कहा तुमने ।”
“अरे बाबा, मैंने कहा न, आज मैं बहुत थकी हुई हूँ ।”
“मैं आज तुम्हारी सारी थकान दूर कर दूंगा ।”
“कमाल है ! अगर मेरे कपड़े उतारते ही सरदार लौट आया तो ?”
“वो नहीं लौटेगा ।” मास्टर पहले जैसे ही जिद्दी लहजे में बोला- “वो कहकर गया है, सुबह तक उसकी वापसी होगी ।”
“यानि तुम आज मानने वाले नहीं हो ?”
“नहीं ।”
“ठीक है बाबा ।” सरदारनी ने हथियार डाले- “तो लो, तुम भी अपने दिल की हसरत पूरी करो ।”
फिर सरदारनी ने एक-एक करके अपने जिस्म से कपड़े उतारने शुरू किये ।
जल्द ही वो बिल्कुल निर्वस्त्र हो गयी ।
उसकी कंचन सी काया से कपड़े जुदा हुए, तो वह और भी ज्यादा हुस्न की मल्लिका नजर आने लगी ।
अब उसके रूप-लावण्य की वो पूरी खुली दुकान मास्टर के सामने थी, जिसके बल पर वो सारा खेल, खेलती थी । जिसकी वजह से मर्द उसके सामने घुटनों-घुटनों तक लार टपकाते थे ।
मास्टर ने फौरन अपनी कमर के साथ बंधा ‘हंसिया’ खींचकर बाहर निकाल लिया ।
“इस हंसिये से क्या करोगे ?” वो शरारती ढंग से हंसी- “क्या अब तुम्हारे पास कुछ करने के लिए हंसिया ही बचा है ?”
फौरन वो हंसिया बड़ी द्रुतगति के साथ चला ।
सरदारनी की वीभत्स चीख निकल गयी ।