hotaks444
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शादी सुहागरात और हनीमून--26
गतान्क से आगे…………………………………..
मेने उन रात की लड़ाई के निशानो को ऐसे ही छोड़ दिया और सम्हाल के बस आँचल ठीक से टक कर लिया. ननदो के आने का टाइम भी हो रहा था.
जैसे मैं बाहर निकली तैयार होके दरवाजे पे खाट खाट हुई. आ गयी थी वो...
जब मेने दरवाजा खोला तो आज गुड्डी और रजनी थी. गुड्डी एक छोटी सी फ्रॉक मे और रजनी एक टाइट टॉप और जीन्स मे. मैं धीमे धीमे चल रही थी और वो दोनो जान बुझ के लगता है तेज. रजनी रुकी और मेरा हाथ अपने कंधे पे रख के बोली,
"भाभी, लगता है आप को चलने मे तकलीफ़ हो रही है, कही चोट लग गयी क्या, आप मेरा सहारा ले लीजिए."
"अच्छा तो ये गौरैया भी चोच खोलने लगी." उसके कंधे पे रखे हाथ को मेने थोड़ा और नीचे कर, उसके छोटे छोटे उभारो को हल्के से टिप के पूछा,
"क्यो कल जीजू ने सिर्फ़ यहाँ सहलाया था कि दबाया भी था." ये कह के मेने कस के उस के किशोर, उभरते हुए जोबन दबा दिए.
"अरे भाभी जीजू ने छुआ भी था और बहुत हल्के से दबाया भी था लेकिन आपकी तरह नही. ये तो लगता है रात भर भैया से जैसा अपने दब्वाया है, उसी तरह से"
तब तक अंजलि दिखी. उसके हाथ मे 'वो गिफ्ट पॅक था' जो मेरे नेंदोई और ननदो ने कल रात दिया था.
"ये भाभी कल नीचे ही रह गया था, आपके कमरे मे छोड़ के आती हू. कही इसके बिना आपका कोई काम रुका तो नही." वो हंस के बोली और कहा, आप लोग रुकिये, मैं अभी आती हू.
"अरे मेरा तो कोई काम नही रुका, हाँ तुम्हे किसी काम के लिए इस्तेमाल करना हो तो करवा लेना. और हाँ ज़रा सम्हाल के जाना. कही मेरे धोखे मे तुम्ही को ना पकड़ ले वो और, भरतपुर लूट जाए."
अब मेरी भी धड़क खुल गयी थी. गुड्डी चुप चाप हम लोगो की बाते सुन रही थी और मुस्करा रही थी. जब अंजलि लौट के आई तो मैं ध्यान से उसके टॉप और स्कर्ट की घूर के देख रही थी. मेने हल्के से पूछा " क्यो, कही कुछ गड़बड़ तो नही हुआ."
"अरे भाभी आप ने सारा रस चूस लिया. वो बेचारे थके मम्दे बैठे है" हंस के वो बोली.
"च च मिस्टेक हो गया, आगे से ध्यान रखूँगी. कल से ही थोड़ा सा रस तुम्हारे लिए छोड़ दूँगी" मेने ठिठोली की.
पर वो दोनो और आज तो रजनी के भी पर निकल रहे थे. मेरी साड़ी ठीक करने के बहाने, उन्होने मेरा आँचल लुढ़का दिया, और फिर तो मेरे लो लो कट ब्लाउस से, न सिर्फ़ मेरी गोलाइयाँ बल्कि, गहरे निशान..और फिर तो उन दोनो को मौका मिल गया.
"अरे भाभी, आज तो और ज़्यादा मच्छर ने काटा है, लगता है उसे आप का खून बहुत पसंद आ गया है.' " अरे मच्छर बेचारे की क्या ग़लती, खाने खेलने की चीज़ो को ढक के रखना चाहिए.
"कहीं और तो नहीं..कच कचा के काटा है" रजनी बोली.
"मुझे लगता है जाँघो के आस पास भी तभी चलने मे तकलीफ़ हो रही है." अंजलि ने जोड़ा.
तब तक हम लोग बरांडे मे पहुँच गये थे जहाँ मेरी सास और बाकी औरते बैठी थी.
मेने झुक कर सास के फिर बाकी औरतो के पैर छुए.
ज़्यादातर मेहमान चले गये थे. सिर्फ़ घर के या बहुत क्लोज़ रिश्तेदार बचे थे,
इसलिए माहौल भी आज ज़्यादा खुला था.
और मेरी सास भी 'मूड मे' थी. पहले तो उन्होने आशीष दी और फिर अर्थ पूर्ण ढंग से पूछा,
"क्यो लगता है बहू, तुमको आज भी रात भर नींद नही आई, तेरी आँखे" मैं क्या बोलती चुप रही. 'इनकी' मौसी मेरे चेहरे पे हाथ फेरते हुए कहा,
"दो दिन मे चेहरा पीला पड़ गया है लगता है बहुत मेहनत पड़ रही है." तब तक मेरी ननद ने घूँघट ठीक करने के बहाने, मेरा आँचल फिर से ढलका दिया और अब मेरी सास देख मेरी ओर रही थी लेकिन उनकी निगाहे एक दम वही " अरे तुम रात मे टांगे फैला के आराम से सो पाती हो कि नही.कोई तुम्हे रात मे तंग तो नही करता." वो बोली " अरे सोने का तो पता नही पर टांगे ज़रूर फैली रहती है" एक ननद ने छेड़ा.
"अरे सुनो तुम अपनी देवरानी के सोने का इंतज़ाम कही और करो. बिचारी कितनी रात ऐसे जागेगी." सासू जी ने मुस्करा के मेरी जेठानी से कहा.
"अरे नही ऐसी कोई परेशानी मुझे नही है" घबडा के जल्दी से मेने कहा. और सब लोग एक साथ हंस दिए.
"अरे मेरी देवरानी तो सो जाएगी, लेकिन फिर मेरे देवर को कौन लोरी सुनेएगा." जेठानी जी ने मुस्करा के जवाब दिया. तब मेरी एक ननद और रजनी मुझे छेड़ने मे लग गयी.
वो सवाल करती और रजनी मेरी ओर से जवाब देती.
"क्यो बहुत तंग करता है." ननद ने अदा से पूछा " उहूँ" सर दाए से बाए हिला कर रजनी ने मना किया.
"सताता है."
"उँहू..उँहू" रजनी ने फिर मना किया.
"छेड़ता है."
"उँहू..उँहू" रजनी ने फिर वही इशारा किया.
"मज़े करवाता है" ननद ने पूछा.
"हाँ हम" सर उपर नीचे कर के, अब के मूह खोल के खुशी से वो बोली.
गतान्क से आगे…………………………………..
मेने उन रात की लड़ाई के निशानो को ऐसे ही छोड़ दिया और सम्हाल के बस आँचल ठीक से टक कर लिया. ननदो के आने का टाइम भी हो रहा था.
जैसे मैं बाहर निकली तैयार होके दरवाजे पे खाट खाट हुई. आ गयी थी वो...
जब मेने दरवाजा खोला तो आज गुड्डी और रजनी थी. गुड्डी एक छोटी सी फ्रॉक मे और रजनी एक टाइट टॉप और जीन्स मे. मैं धीमे धीमे चल रही थी और वो दोनो जान बुझ के लगता है तेज. रजनी रुकी और मेरा हाथ अपने कंधे पे रख के बोली,
"भाभी, लगता है आप को चलने मे तकलीफ़ हो रही है, कही चोट लग गयी क्या, आप मेरा सहारा ले लीजिए."
"अच्छा तो ये गौरैया भी चोच खोलने लगी." उसके कंधे पे रखे हाथ को मेने थोड़ा और नीचे कर, उसके छोटे छोटे उभारो को हल्के से टिप के पूछा,
"क्यो कल जीजू ने सिर्फ़ यहाँ सहलाया था कि दबाया भी था." ये कह के मेने कस के उस के किशोर, उभरते हुए जोबन दबा दिए.
"अरे भाभी जीजू ने छुआ भी था और बहुत हल्के से दबाया भी था लेकिन आपकी तरह नही. ये तो लगता है रात भर भैया से जैसा अपने दब्वाया है, उसी तरह से"
तब तक अंजलि दिखी. उसके हाथ मे 'वो गिफ्ट पॅक था' जो मेरे नेंदोई और ननदो ने कल रात दिया था.
"ये भाभी कल नीचे ही रह गया था, आपके कमरे मे छोड़ के आती हू. कही इसके बिना आपका कोई काम रुका तो नही." वो हंस के बोली और कहा, आप लोग रुकिये, मैं अभी आती हू.
"अरे मेरा तो कोई काम नही रुका, हाँ तुम्हे किसी काम के लिए इस्तेमाल करना हो तो करवा लेना. और हाँ ज़रा सम्हाल के जाना. कही मेरे धोखे मे तुम्ही को ना पकड़ ले वो और, भरतपुर लूट जाए."
अब मेरी भी धड़क खुल गयी थी. गुड्डी चुप चाप हम लोगो की बाते सुन रही थी और मुस्करा रही थी. जब अंजलि लौट के आई तो मैं ध्यान से उसके टॉप और स्कर्ट की घूर के देख रही थी. मेने हल्के से पूछा " क्यो, कही कुछ गड़बड़ तो नही हुआ."
"अरे भाभी आप ने सारा रस चूस लिया. वो बेचारे थके मम्दे बैठे है" हंस के वो बोली.
"च च मिस्टेक हो गया, आगे से ध्यान रखूँगी. कल से ही थोड़ा सा रस तुम्हारे लिए छोड़ दूँगी" मेने ठिठोली की.
पर वो दोनो और आज तो रजनी के भी पर निकल रहे थे. मेरी साड़ी ठीक करने के बहाने, उन्होने मेरा आँचल लुढ़का दिया, और फिर तो मेरे लो लो कट ब्लाउस से, न सिर्फ़ मेरी गोलाइयाँ बल्कि, गहरे निशान..और फिर तो उन दोनो को मौका मिल गया.
"अरे भाभी, आज तो और ज़्यादा मच्छर ने काटा है, लगता है उसे आप का खून बहुत पसंद आ गया है.' " अरे मच्छर बेचारे की क्या ग़लती, खाने खेलने की चीज़ो को ढक के रखना चाहिए.
"कहीं और तो नहीं..कच कचा के काटा है" रजनी बोली.
"मुझे लगता है जाँघो के आस पास भी तभी चलने मे तकलीफ़ हो रही है." अंजलि ने जोड़ा.
तब तक हम लोग बरांडे मे पहुँच गये थे जहाँ मेरी सास और बाकी औरते बैठी थी.
मेने झुक कर सास के फिर बाकी औरतो के पैर छुए.
ज़्यादातर मेहमान चले गये थे. सिर्फ़ घर के या बहुत क्लोज़ रिश्तेदार बचे थे,
इसलिए माहौल भी आज ज़्यादा खुला था.
और मेरी सास भी 'मूड मे' थी. पहले तो उन्होने आशीष दी और फिर अर्थ पूर्ण ढंग से पूछा,
"क्यो लगता है बहू, तुमको आज भी रात भर नींद नही आई, तेरी आँखे" मैं क्या बोलती चुप रही. 'इनकी' मौसी मेरे चेहरे पे हाथ फेरते हुए कहा,
"दो दिन मे चेहरा पीला पड़ गया है लगता है बहुत मेहनत पड़ रही है." तब तक मेरी ननद ने घूँघट ठीक करने के बहाने, मेरा आँचल फिर से ढलका दिया और अब मेरी सास देख मेरी ओर रही थी लेकिन उनकी निगाहे एक दम वही " अरे तुम रात मे टांगे फैला के आराम से सो पाती हो कि नही.कोई तुम्हे रात मे तंग तो नही करता." वो बोली " अरे सोने का तो पता नही पर टांगे ज़रूर फैली रहती है" एक ननद ने छेड़ा.
"अरे सुनो तुम अपनी देवरानी के सोने का इंतज़ाम कही और करो. बिचारी कितनी रात ऐसे जागेगी." सासू जी ने मुस्करा के मेरी जेठानी से कहा.
"अरे नही ऐसी कोई परेशानी मुझे नही है" घबडा के जल्दी से मेने कहा. और सब लोग एक साथ हंस दिए.
"अरे मेरी देवरानी तो सो जाएगी, लेकिन फिर मेरे देवर को कौन लोरी सुनेएगा." जेठानी जी ने मुस्करा के जवाब दिया. तब मेरी एक ननद और रजनी मुझे छेड़ने मे लग गयी.
वो सवाल करती और रजनी मेरी ओर से जवाब देती.
"क्यो बहुत तंग करता है." ननद ने अदा से पूछा " उहूँ" सर दाए से बाए हिला कर रजनी ने मना किया.
"सताता है."
"उँहू..उँहू" रजनी ने फिर मना किया.
"छेड़ता है."
"उँहू..उँहू" रजनी ने फिर वही इशारा किया.
"मज़े करवाता है" ननद ने पूछा.
"हाँ हम" सर उपर नीचे कर के, अब के मूह खोल के खुशी से वो बोली.