kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 8 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

मेरे लिए खाना कमरे मे ही गुड्डी और अंजलि ले आई. उन्होने और उनकी सहेलियो ने भी मेरे साथ ही खाया.

खाने के बाद हम सब, मैं, मेरी जेठानी, कुछ ननदे, गुड्डी अंजलि और उसकी सहेलिया उसी कमरे मे आराम करने लगे कि 'वो' आए और जेठानी जी से बोले,

भाभी मेरा कुर्ता वो उठ के गयी तो किसी ने टोका कि अर्रे इन्हे जो चाहिए वो जब तक नही मिलेगा तो और हुआ यही. थोड़ी देर मे वो फिर दरवाजे पे पानी चाहिए था. गुड्डी गयी बाहर उन्हे पानी देने और फिर कमरा हँसी से भर गया. सब ने मुझे छेड़ा कि तुम जाओ उपर वारना ना तुम्हे आराम होगा और न हम लोगो को वो आराम करने देगा. मुझे शरम भी आ रही थी और अच्छा भी लग रहा था.

थोड़ी देर मे मुझे बैठे बैठे, जुम्हाई आ गयी. मेने लाख हाथ से रोका लेकिन मेरी एक ननद ने देख लिया, और बोला,

"क्यो भाभी रात को नींद नही आई क्या"

"अर्रे नींद कैसी आएगी रात भर कबड्डी खेल रही थी."दूसरी बोली.

"कबड्डी या बेड पोलो क्यो भाभी कितने गोल हुए."अंजलि की एक सहेली बोली.

"अर्रे सोने दो ना भाभी को आज रात मे फिर मॅच होगा."अंजलि बोली.

"चलो तुमको मैं उपर तुम्हारे कमरे मे छोड़ आती हू, ये सब यहा तंग ही करती रहेगी."मेरी जेठानी बोली.

"तो क्या भाभी वहाँ तंग नही होगी."एक ननद ने छेड़ा. मैं उठ के जेठानी जी के साथ जाने लगी.

"अर्रे बुद्धू, भैया वहाँ तंग नही ढीला करेंगे."

"अर्रे जाओ जाओ. कम से कम बेचारी वहाँ थोड़ी देर टांग तो फैला लेगी. यहाँ तो तुम सब"मेरी एक और जेठानी बोली, तो उनकी बार काट के किसी औरत ने कहा "हां ये तो ठीक है, टाँग तो फैलाएँगी ही."

"जाइए जाइए भाभी वहाँ शेर मिलेगा, वो भी भूखा."उपर चढ़ते समय मेने किसी ननद की आवाज़ सुनी और मुस्काराए बिना नही रह सकी.

उपर चढ़ते समय मेरी जेठानी ने समझाया कि दो बजरहे है, छे, साढ़े छे बजे तक तैयार हो जाना रिसेप्षन के लिए. बाहर एक होटेल मे जाना है.

उपर कमरे मे घुसते ही, 'उनसे' मेरी जेठानी बोली, हे दुल्हन को तो ले आई हू लेकिन इसे ज़्यादा तंग मत करना.

फिर उन्होने उनके पास आके हल्के से कहा (जिसे मैं आराम से सुन सकती थी), हे कल तुमने पूरे कमरे मे टहाला टहाला के, फर्श वाले बिस्तर पे टूटी चूड़िया मिली थी, जिसे मेने सम्हाल के उसके वॅनिटी मे रख दिया है, और एक दिन मे ही आधी वैसलीन की शीशी ख़तम कर दी. खैर तुम्हारा दोष नही है,

मेरी देवरानी है ही इतनी प्यारी.

मुस्करा के वो बोली और फिर हल्के से कहा, तकिये के नीचे वैसलीन की नेई शीशी रखी है. जैसे ही वो बाहर निकली, मेने दरवाजा बंद कर दिया और चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे चली गयी.

मेने तुरंत साड़ी उतार फेंकी. अभी भी साड़ी मे मुझे उलझन होती थी. मैं सोचने लगी कि अभी घर की तो नही पर इस कमरे की तो रानी मैं हू ही, जैसे चाहे वैसे पहन सकती हू, रह सकती हू. और कमरे मे बाहर इंतजार कर रहा वो लड़का, 'वो' मेरी केर करता है, चाय अच्छी बनाता है, बेड भी ठीक कर लेता है, सुबह मम्मी भाभी से मेरी बात करवाता है, 'और बाकी सब' अब उतना तो करेगा ही. मेने एक कॉटन की नाइटी पहन ली थी. जब मैं बाहर निकली तो बेबस, बेकरार 'वो'. उन्होने रज़ाई उठाई और मैं झट से अंदर.

फिर तो जैसे कोई बाज झपते कस के उन्होने बाहो मे भिच लिया. और लगे चूमने. कभी गालो को कभी होंठो को. कभी मुझे अपने उपर ले लेते,

क्रमशः……………………….

शादी सुहागरात और हनीमून--20
 
शादी सुहागरात और हनीमून--21

गतान्क से आगे…………………………………..

कभी नीचे. दस मिनट के बाद जब उन्होने दम लिया तो मैं उनके नीचे थी और मेरी नाइटी के सारे बटन खुले. मेने उनसे शिकायत की, कि भाभी ने कहा था कि वो मुझे तंग नही करेंगे तो वो हंस के बोले, तंग करने के लिए थोड़ी मना किया था. ज़्यादा तंग करने के लिए मना किया था तो वो ज़्यादा तंग नही करेंगे.

वह ब्रा के उपर से ही मेरे क्लीवेज को, सीने के खुले हिस्से को चूम रहे थे.फिर तो उन्होने अति ही कर दी. इतने बेसबरे, ब्रा के उपर से ही मेरे निपल कस कस के चूसने लगे. कपड़ो के उस दुश्मन ने 5-6 मिनट के अंदर ही मेरे और अपने सारे कपड़े उतार दिए. मैं सिर्फ़ ब्रा पैंटी मे रह गयी. और ब्रा भी मेरी सारी ऐसी थी वो मेरे किशोर उभारो को छिपाती कम थी और उभारती ज़्यादा. उसे उन्होने ज़रा सा सरकाया तो मेरे एरेक्ट, रसीले निपल बाहर और अगले ही पल उनके होंठो के अंदर. वो चुसते भी इस तरह से थे कि बस जान निकल जाती थी मस्ती से साथ ही साथ उनका हाथ कस कस मेरे जोबन मसल भी रहा था. मेरा मन कर रहा था, कि बस अब वो खोल भी दे, छलक जाने दे मेरे इन मस्ती के पैमानो को. उनके मन ने मेरी बात सुन ली और मेरे मद मस्त उरोज मुक्त हो गये, उनके हाथो और होंठो मे गिरफ्तार होने के लिए. वो क़ैद जिसके लिए मैं खुद बेकरार थी. और उनकी अब अनुभवी हो चुकी उंगलियो ने मेरी पतली सी पैंटी को सरका के, मेरे गीले हो रहे योनि द्वार मे घुसा के अंदर बाहर करना, गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया. थोड़ी देर मे पैंटी भी अलग हो गयी और मेरी 'चुनमुनिया' उनके हाथ मे थी, रगड़ी मसली जा रही थी और उनका 'खुन्टा' भी बेताब हो के मेरी जाँघो पे टक्कर मार रहा था.

अबकी बार जब वो मेरी जाँघो के बीच आए तो मेने खुद ही अपनी जांघे फैला दी. फिर क्या था स्वागत मे फैली टाँगो के बीच, कमर पकड़ के जो उन्होने धक्का मारा तो वो मिनट भर मे अंदर था. मैं चीख रही थी, सिसक रही थी,और वो कभी मेरी कमर पकड़ के, कभी मेरे नितंबो को कभी मेरे उरोजो को दबाते हुए कस कस के धक्के मार रहे थे. मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था. जब उनकी चौड़ी छाति से मेरे जोबन कस के दब जाते, बस मन करता वह इसी तरह कुचलते रहें, रगड़ते रहें. और वो भी मस्ती मे,

कभी मेरे गालो पे कभी उरोजो पे कच कचा के काट लेते. 4-5 धक्के कस कस के लगाते, फिर कुछ रुक के 8-10 धीमे धीमे. जब उनका मोटा लिंग मेरी कसी किशोर योनि मे रगड़ते, घिसटते जाता दर्द और मस्ती से मेरी जान निकल जाती. बस मन करता वो इसी तरह करते रहे, करते रहे. और आधे घंटे से भी ज़्यादा वो इसी तरह..पहले मैं और फिर वो झाडे. देर तक मेरी योनि मे उनका मोटा कड़ा शिश्न, रस छोड़ता रहा बरसाता रहा. हम लोग फिर उसी तरह एक दूसरे की बाहो मे सो गये.

जब मैं उठी तो वो गहरी नींद सो रहे थे, लेकिन उनका 'वो'अभी भी सेमी एरेक्ट स्टेट मे था. मैं बहुत सम्हल के उठी की अगर कही उनकी नींद खुल गयी तो सुबह की तरह वो फिर दुबारा चालू हो जाएँगे. सोते मे उनका चेहरा इतना प्यारा लग रहा था कि मैं अपने को उनकी एक बहुत हल्की सी चुम्मि लेने से रोक नही पाई. और चुम्मि के साथ ही वो सोते सोते मुस्कराने लगे.

मैं उठ के दीवाल मे लगे ढेर सारे कबार्ड देखने लगी. सब के सब कोडेड लॉक से खुलते थे. जब उन्होने उनका कोड बताया तो मैं खुशी से उछल पड़ी थी कि कितना चाहते है वो मुझे. कोड था, मेरे नाम के इंशियल्स और मेरी बर्थ डे. दो कबार्ड उन्होने बताया कि पूरी तरह प्राइवेट है और उनके कोड सिर्फ़ उन्हे मालूम है या मुझे. वो मेरे इंशियल्स के साथ मेरी 'फिगर' थी. शरारती.
 
सबसे पहले मेने वही खोला. उसमे ढेर सारी किताबे थी. जो एक बड़ी सी हार्ड बाउंड मेने निकाली तो वो सचित्र काम सुत्र थी. जो मुझे भाभी ने दी थी,

उससे भी बड़ी और खूब ढेर सारी फोटो, सारे आसनो के और कयि मे तो क्लोज़ अप भी थे. उसके अलावा अनन्ग रंग, प्र्फ्यूम्ड गार्डेन, और भी वैसी ढेर सारी उसको मेने हटाया तो उसके नीचे, प्लेबाय, हस्लर, ह्यूमन डाइजेस्ट और फिर ढेर सारी पिक्चर अलबम जैसी जिसमे खूब अच्छे कागज पे रंगीन फोटो, ढेर सारी फोटो मे कोई लड़की, लिंग चूस रही थी, और काई संभोग की अलग अलग पोज़ की, किसी मे झुकी, और मर्द पीछे डाल रहा है, किसी मे वो गोद मे बैठ के ले रही है, किसी मे औरत उपर मर्द नीचे, उसके दोनो जोबन पकड़े और वो लिंग घोंट रही है. मेरी तो फिर से तभी मेने देखी कि बगल मे ढेर सारी पतली पतली किताबे उनके पन्नो से लग रहा था कि खूब पढ़ी गयी है. मेने एक को खोला, मटमैले पन्ने, प्रिंट भी वैसा और सब की सब 'मस्त राम' की लिखी.

ज़्यादातर पतली वाली 64 पेज की थी पर कुछ मोटी भी थी. मेने एक मोटी वाली उठा के खोली. उसका नाम था, 'भांग की पकौड़ी.' सरसरी तौर पे मैं देखने लगी, पहले तो जीजा साली की कहानी लगी. शादी के बाद एक आदमी आता है तो उसकी साली उससे मिलने आती है अपने बहन की ओर से. उसके जीजा के दोस्त की पत्नी दोनो को भांग की पकौड़ी खिला देती है..उसके बाद जो लिखा था मेने पन्ने पलट दिए. फिर मेने जब आगे उलटा तो कुछ जगहो पे धब्बे..गाढ़े दाग और आगे एक दो पन्ने तो एक दम चिपक गये थे. मैं बच्ची तो थी नही जो नही समझ पाती कि किस चीज़ के दाग है और किसके है. जो पन्ने दाग से चिपक गये थे,

उसे बड़े सम्हल के मेने खोला. उसमे वो लड़की अपने पति से पहले पहल मिल रही होती है और उसको भी उसके पति ने भांग की पकौड़ी खिला दी थी.

उनके मिलन का दृश्य था. और पूरी तरह 'दाग' से गीला. मेने पढ़ना शुरू किया कि क्या था जिसने 'इन्हे' इतना उत्तेजित कर दिया. उसमे लिखा था,

वो जम के उसे चोद रहा था. उस की दोनो मस्त रसीली गदराई चुचियो को दबाते हुए. उसका मोटा लंबा लंड, उसकी कसी चूत मे कस कस के जा रहा था (मेने सोचा एकदम 'इनके' जैसा.) और वो भी नीचे से अपने भारी चुतड उठा उठा के धक्के का जवाब दे रही थी, चुदवा रही थी. फिर उसने पोज़ बदल कर एक टाँग कंधे पे रखी और दूसरी कस के फैला दी. उसकी नई चूत कस के खुल गयी थी. अचानक उसने अपने लंड बाहर सुपाडे तक निकाला और चोदना रोक दिया. उसी तरह उसके हाथ भी चुचियो से अलग हो गये. वो चीखी.

"हे दबाओ ना रुक क्यो गये". हंस के उसने पूछा "क्या..क्या दबाऊ पहले नाम बोलो जो दबावाने है.

मस्ती से पागल वो उसका हाथ खिच के अपनी छाति पे रख के बोली, "इसे.."पर वो नही माना."नही बोलो क्या मसलवाने रगड़वाने है."अब उसकी हालत खराब थी वो बोली "मेरा जोबन मेरी रसीली चुचियाँ मसल दो रगड़ दो. उसने चुचि तो मसलाना शुरू कर दिया और बोला और ( मेरे हाथ मेरे जोबन पे अपने आप चले गये, वो मस्ती से पत्थर हो रहे थे और मेरे निपल भी कड़े हो गये थे.)वो अपने चुतड पटकती बोली, तुम मुझे बेशरम बना के रहोगे. ओह ओह चोद दोचोद दो मेरी बुर ..मेरी ये रसीली बुर अपने इस मोटे हलब्बी लंड से कस कस के चोदो हा हा हा और ज़ोर से चोदो फाड़ दो मेरी बुर. उधर उसने अपना लंड सूपदे तक बाहर निकाल के उसकी दोनो टाँगे कस के दुहरा दी और फिर एक झटके मे अपना मूसल जैसा लंड पेल के बोला,

"ले रानी ले अपनी मस्त कसी चूत मे मेरा मोटा लंड ले, चुदवा अपनी चूत.

घोंट मेरा लंड' "हा राजा हा दे मुझे चोद अपनी रानी को..और कस के पेल दे अपने लंड मेरी बुर मे .फाड़ दे फाड़ दे इसे बहुत चुदासि हू मैं."

वो कस कस के उसकी गदरती मस्त चुचियाँ पकड़ के दबा के मसलते हुए चोद रहा था और वो भी..चुतड उठा के चुदवा रही थी.

क्यो रानी मज़ा आ रहा है चुदवाने मे, वो बोला. हा राजा हा हा और ज़ोर से चोद..कस के चोद मेरी बुर.

सतसट सतसट मोटा सख़्त लंड उसकी बुर मे जा रहा था और वो उसी तरह मस्त हो के चुदवा रही थी.

(वहाँ एक बड़ा सा 'दाग' था. मेरी उंगली उसी जगह पे थी. अचानक वो मेरे गुलाबी होंठो पे लग गयी और मेने अन जाने मे उसे चाट लिया.) हां राजा चोद और कस के चोद मेरी बुर पेल दे अपना लंड मसल दे मेरी चुचि.
 
वो बोल रही थी और चुतड उठा उठ के गपगाप गपगाप अपने पति का मोटा लंड अंदर ले रही थी,चुदवा रही थी. ( मेरा शरीर सिहर रहा था. मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी. मेरी 'वो' गीली हो रही थी.मैं सोच रही थी बस मैं भी ऐसे ही चुदवा खुल के शरम लिहाज छोड़ के) तब तक कोई आहट हुई, शायद उन्होने करवट बदली होगी, और मेने झट से वो किताब कबार्ड मे डाल के उसे बंद कर दिया.

वो फिर सो गये थे. अगर वो उठते तो शायद उस हालत मे मैं खुद उस हालत मे जा के उनसे कहती 5 बजने वाले थे. बात रूम मे जा के मैं तैयार होने लगी. मेने नीचे देखा तो मेरी दोनो 'पंखुड़ियो' के बीच मे एकदम 'गीला' लिसा-लिस हो रहा था और मेरी दोनो जाँघो पे सफेद वीर्य के गाढ़े थक्के.

मुझे एक भाभी ने कहा था वो बात याद आई "दुल्हन की माँग मे हर दम सिंदूर दमकना चाहिए और बुर मे हरदम वीर्य"और मेने वहाँ नही साफ किया.

मैं ड्रेसिंग टेबल पे मेक अप कर रही थी कि बाहर से आवाज़ आई चाय, और मेने कहा यही लेते आइए. हम दोनो चाय पीके साथ साथ तैयार होने लगे. भाभी ने कहा था मैं कुंदन वाला कॉरसेट पहनु, रिसेप्षन के लिए और साथ मे मॅचिंग लहंगा और चुनेरी थी. वो एक बहुत खूबसूरत सी कढ़ाई वाला जामवरी जोधपुरी पहन रहे थे और उस पे भी मेरे ड्रेस से मॅचिंग कुंदन का काम था.

तब तक बाहर ख़त खाट की आवाज़ हुई मेने ब्लाउस और लहंगा पहने ही दरवाजा खोल दिया. बाहर गुड्डी और वो लड़की जिसका मेने दिन मे दुपट्टा ठीक किया था, खड़ी थी. वो दोनो अंदर आई और बताया कि भाभी ने बोला कि तैयार होके हम लोग सीधे होटेल पहुँचे और वो दोनो भी हमारे साथ आएँगी. उस लड़की का नाम रजनी था. मेने उन दोनो को कमरे मे बिठाया. तब तक वो तैयार हो के बाहर आए और बोले कि मैं नीचे से आधे घंटे मे आता हू तब तक तुम तैयार हो जाओ.

मैं अंदर ड्रेसिंग रूम मे जा के तैयार होने लगी. लहंगा पहनेने और मेक अप करने के बाद जब मैं कॉरसेट पहनने लगी तो एक सवाल उठ खड़ा हुआ, उसे बाँधने का. घर पे तो ये काम भाभी या मेरी सहेलिया ये काम कर देती थी पर यहाँ मेने बाकी सब कुछ पहन लिया था, मेक अप कर लिया था और कॉरसेट मे घुस भी गयी थी पर. मेने गुड्डी को आवाज़ लगाई. उसके साथ रजनी भी आ गयी. गुड्डी से मेने कहा बाँधने को, उसके पहले साँस खींच के मेने पेट को एक दम सिकोडा और फिर वो किसी तरह अंदर घुसा. बाँधते समय गुड्डी बोली अभी और टाइट करना है और मेने कहा हन. उसे विश्वास नही हो रहा था लेकिन वो फिर एकदम टाइट फिट हो गया.

जब मेने शीशे मे देखा तो मेरे दोनो उरोज जैसे बाहर छलक रहे हों मेरी कमर तो एकदम मुट्ठी मे भर के साइज़ की और, 'वो'मेरे उभार सिर्फ़ खूब उभर के ही नही दिख रहे थे बल्कि मेरा क्लीवेज भी पूरी गहराई मे और पीठ भी खूब डीप (बस, यू समझ लीजिए कजरारे कजरारे मे जैसे ऐश दिख रही थी ना, बस उतना क्लीवेज). मेने कंधे पे थोड़ा पाउडर लगाया और जैसा 'ग्रूयिंग क्लास मे बताया था, क्लीवेज पे भी हल्का सा मेक अप कर, गहराई को थोड़ा और प्रोइनेंट तक तक मेने देखा कि मेरे दोनो उरोजो पे, उनके 'निशान' थोड़े गाढ़े से, पहले मेने सोचा कि उसे 'कवर' करू, फिर रहने दिया. गले मे मंगल सुत्र, कुंदन का जड़ाऊ हार और कुंदन के सेट पहन रखे थे. फिर कुछ सोच के उन्होने कल रात जो डाइमंड का सॉलिटेर दिया था, उसे भी पहन लिया. वो बड़ा सा चमकदार प्रिन्सेस डाइमंड अब सीधे मेरे क्लीवेज की गहराई मे. अब अगर कोई अपने ध्यान हटाना भी चाहे तो 'वहाँ' से नही हटा सकता था.

वो दोनो मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी. मुस्करा के मैं बोली, चलो अब तुम दोनो का भी मेक अप कर दू. गुड्डी तो बेचारी प्लेन जेन की तरह दिख रही थी और रजनी बच्ची की तरह. दोनो के ना ना करते भी, मेने मास्कारा, आइ लॅशस, चीक बोन्स को हाइलाइट कर के थोड़ा सा रूज लगा दिया. और फिर उंगली मे लिपस्टिक ले के होंठो पे स्मॅज कर के ग्लास लगा एकदम वेट लुक दे दिया और होंठ अब थोड़ा भारी और ज़्यादा रसीले लग रहे थे. रजनी ने लाचा और शरारा पहन रखा था. मेने उसके रोकते, क्लीवेज को थोड़ा हाइलाइट कर दिया. मैं वैनिटी बॉक्स से उनके लिए कुछ इमिटेशन जेवलरि देख रही थी, कि मेरी निगाह कुछ 'पुश अप पॅड्स' पे पड़ गयी. मैनें दो निकाल के गुड्डी को दिए और ज़बरदस्ती, उसकी ब्रा के नीचे और दो उसे दिए रजनी को लगाने को. रजनी पहले तो ना नुकुर करती रही लेकिन जब हम दोनो ने बोला कि सीधे से खुद लगा ले, वरना उसके सारे कपड़े उतार के हम लोग लगाएँगे तो वो तैयार हो गयी. और जब उन दोनो ने खुद को शीशे मे देखा तो जोबन गजब के उभर के आ रहे थे और रूप भी. मेने गुड्डी से कहा कि तुम्हे सुबह की दुलारी की बात याद रखनी चाहिए, शादी का घर और मौके वाली और उसका दुपट्टा सिर्फ़ एक कंधे पे सेट कर दिया कि वो सिर्फ़ एक उभार चुपरे और रजनी का भी खींच के गले से चिपका दिया. मैं हंस के बोली, कि तुम लोगो के बिजली गिराने के दिन है.
 
आज सारे पतंगे सिर्फ़ तुम दोनो पे गिरेन्गे देख लेना.

मुझे अपनी भाभी की याद आई और मुझे लगा कि अब मैं सच मे भाभी बन गयी हू.

जब हम बाहर कमरे मे आए, तो मेने देखा कि बिस्तर पे मेरी ब्रा, पैंटी खुली हुई वैसलीन की शीशी .और सफेद चादर पे बड़ा सा धब्बा और ये दोनो लड़कियाँ यही बैठी थी. मेने झट से उन्हे हटाया.

रजनी मुस्करा के बोली, "भाभी हम लोगो ने कुछ नही देखा."

तब तक दरवाजा खुला और वो दाखिल हुए. क्रीम कलर की जोधपुरी मे वो बहुत हॅंडसम लग रहे थे. मैने उन्हे मुस्करा के 'न्यू पिंच' किया. रजनी बोली,

भैया भाभी का भी ड्रेस भी न्यू है. बेचारे उन दोनो के सामने क्या बोलते.

उन्होने हम लोगो को बताया कि सब लोग चले गये है और अब बस हम लोगो को पहुँचना है.

कार मे गुड्डी आगे बैठी और रजनी, हम लोगो के साथ पीछे. और इस लिए हम एक दम सॅट के बैठे. रास्ते मे उन्होने ऐसा 'न्यू पिंच' किया कि सारे रिसेप्षन, मेरे दोनो निपल एरेक्ट रहे.

दूसरी रात ...

जब हम लोग रिसेप्षन मे पहुँचे तो सारे लोग पहुँच गये थे. एक बड़े होटेल के लॉन मे रिसेप्षन हो रहा था. मैं सोच रही थी कि कही 'सिंहासन' ऐसे स्टेज पे ना हम लोगो को बैठना हो. पर एक दम अलग ढंग का इंतज़ाम था, इनफॉर्मल. एक एलकोव सा था जहा हम लोगो को खड़ा होना था और वही रिसेप्षन मे आए लोग हम लोगो से मिलते. सामने खाने का इंतज़ाम था और जेठानी जी ने बता दिया था कि 7 बजे से शुरू होके ठीक साढ़े 9 बजे ख़तम हो जाना था और 10 बजे तक घर. पूरा लॉन लगभग भर सा गया था. मेरे एक साइड मे चाट और स्नेक्क्स का इंतज़ाम था, सामने बैठने और खाने का. मेरे एक साइड मे मेरी जेठानी जी थी जो मुझे गेस्टो से इंट्रोड्यूस करा रही थी और उनके साथ अंजलि गिफ्ट कलेक्ट कर रही थी और रख रही थी.

पहले कुछ उनके पाइवरिक मित्र, सोएबोड़ी आए और जेठानी जी ने मुझे उनसे इन्त्रोडयूस कराया. मुझे ये सिस्टम ठीक लगा कि बार बार उठना नही पड़ रहा था.

कुछ देर बाद उनके ढेर सारे मित्र, कुछ उनके साथ के प्रोबेशनर्स, कुछ उनके साथ कॉलेज मे पढ़े, ज़्यादातर कुंवारे. और सबकी प्रशंसा भरी नज़र मेरी बड़ी बड़ी रतनेरी कजरारी आँखो से उतर के मेरे चिकने गुलाबी गालो से होते हुए, गहरे चिबुक तक और जो कुछ ज़्यादा 'बोल्ड' थे उनकी और ज़्यादा फिसल कर, मेरे कॉरसेट से बाहर छलकते उभारो पे रुकते हुए, गहरी घाटी मे. मैं मुस्करा के सबसे मिल रही थी,

बाते कर रही थी, गिफ्ट आक्सेप्ट कर रही थी, पर मुझे अपने आप पता चल रहा था कि कहते है कि जवानी मे लड़की की एडी मे आँख निकल आती है, बस वही बात. और ये तारीफ़ भरी निगाहे, उन्हे भी बहुत अच्छा लग रहा था, ओनर्स प्राइड आंड नेयभौर्स एन्वी वाली बात. और मैं कैसी लग रही थी, उसके लिए मुझे दूसरे की निगाहो की कोई ज़रूरत नही थी. मेरे 'वो' भी, सामने देखते, बात करते भी कैसे चोरी से, उनकी निगाहे मेरी देह पे फिसल जा रही थी. लेकिन तारीफ़ भरी निगाहे सिर्फ़ मुझे मिले ऐसी बात नही थी,

क्रमशः……………………….


शादी सुहागरात और हनीमून--21
 
शादी सुहागरात और हनीमून--22

गतान्क से आगे…………………………………..

वो बहुत ही हॅंडसम लग रहे थे. मेरी कुछ सहेलिया जो रिसेप्षन मे आई थी, ऐसे ललचा रही थी कि. उनका बस चलता तोसब ने मुझे कोंग्रथस किया कि मुझे इतने अच्छा हॅंडसम हज़्बेंड मिला है. और उनके साथ फोटो भी खिचवाई, वो भी ना सिर्फ़ कंधे पे हाथ रख के बल्कि खूब लिपट चिपेट के. उनके एक सीनियर भी आए थे,

किसी बड़ी इंपॉर्टेंट पोस्ट पे थे और साथ मे उनकी वाइफ. उन्होने हम दोनो को बधाइया दी और खास तौर पे उनको, मुझे पाने के लिए. उनकी वाइफ मेरी दून मे बोरडिंग मे 2*3 साल सीनियर निकल आई. उनकी निगाह मेरे 'सॉलिटेर' पे जमी थी. उन्होने हल्के से इशारा कर के पूछा, क्यो 'इन्होने' दिया है. मेने हामी भर दी. तो फिर धीमे से वो मुस्काराकर बोली, " एंट्री फीस" और जब मेने हाँ कहा तो फिर हम दोनो खिलखिला के हंस दिए. देर तक ऐसे ही मिलने वालो का ताँता लगा रहा.

मेरी निगाह बगल मे गयी तो चाट स्टॉल पे गोलगप्पे के स्टॉल पे लोग जमा थे. लेकिन उससे ज़्यादा वहाँ खड़ी गुड्डी और रजनी के पास. रजनी के पास तो मेरे ननदोयि, अश्विनी एकदम चिपके थे. उसे अपने हाथो से गोल गप्पे खिला रहे थे और साथ मे जब मेने कान पर सुने तो उनके मजेदार द्विअर्थि डायलाग भी चल रहे थे. " हे पूरा खोलो, ठीक से, " "हाँ अब ठीक है" "बस, एक बार और ले लो अंदर" "पूरा डालने दो", और वह भी मज़े से 'डलवाए जा रही' थी. उसके सुंदर किशोर चेहरे से लट हटाने के बहाने, उन्होने उसके गाल छू लिए. और जब वो नही बोली तो अगली बार कुछ सॉफ करने के बहाने से उनके हाथ कच्चे उरोजो पे. उसने 'उह' कर के उनका हाथ तो हटा दिया लेकिन और पास मे सॅट गई. गुड्डी जो अब तक लड़को से अलग थलग ही रहती थी, 4*5 लड़के उसके आस पास घेरे खड़े और वो भी गजब की जैसा मेने सेट किया था, एक उभार तो सॉफ दिख रहा था और जो दुपट्टे के अंदर था उसका भी उभार साइड से, और 'पॅड के चलते' 30 से सीधे 32 हो गया था.

किसी ने कहा था, कि जैसे जोबन पे उभार आता है लड़कियो मे अदा अपने आप आ जाती है. एक को वो अपने दोने से, चाट चाटाती और जैसे वो मूह आगे बढ़ता खुद चट कर जाती, दूसरा उससे सटा खड़ा था हाथ उसके पीठ पे, तीसरे के हाथ कंधे पे, और वह दुपट्टा एडजस्ट करने के बहाने बार बार अपने कभी छिपाती कभी दिखाती. और उसका क्या, सभी लड़कियो का यही हाल था, सभी एक से एक ड्रेस मे सजी धजी, कोई झिझक रही थी, कोई खुल रही थी. कोई सॅट रही थी, कोई पट रही थी. पार्टी पूरे शबाब पे थी. मिलने वाले लगभग ख़तम हो गये थे, बस खाने पीने का काम चल रहा था. ( ये बात अलग थी कि ये लोग पूरे वैष्ञेव 'टाइप' थे इसलिए नोन वेज और ड्रिंक्स का सवाल ही नही था. ). तभी उन्होने इशारा किया और मेरा ध्यान उधर से हटा. एक बुजुर्ग कपल बैठे थे, वो उठ के हम लोगो से मिलने आ रहे थे. उन्होने मुझसे कहा कि हम लोग ही चल के मिल लें, वो बुजुर्ग कहाँ उठ के आएँगे. मैं उन के साथ, जहाँ वो लोग बैठ थे चल दी.

लौटते समय मेरा पैर कुछ फँस सा गया. कुछ तो मेरी 3 इंच की हाइ हील का कमाल, और कुछ मेरा पैर उलझ गया. मैं लड़खड़ा सी गयी, लेकिन उन्होने मुझे स्महाल लिया. पर मेरे पाव से पायल कही सरक गयी थी. मेने झुकने की कोशिश की पर कॉरसेट के मारे झुक तो सकती नही थी. वो ही झुक के मेरे पाओ के पास पायल ढूंड रहे थे. मेरी एक शैतान सहेली ने देख लिया और पूछा,

" हे जीजू, मेरी सहेली के पैरो के बीच क्या ढूंड रहे है. "

" अरे तुम्हे नही मालूम, आपकी सहेली के पैरो के बीच मे जन्नत है, कहिए तो आप के पैरो के बीच भी ढूंड दू. "

वो बेचारी शरमा गयी. पायल ढूंड के, मेरे लाख ना नुकुर करने के बाद भी घुटनो के बल बैठ उन्होने उसे मेरे पाओ मे बाँध दी. और मेरी सहेली ने उनकी ऐसे करते फोटो खींच ली.

कुछ लड़खड़ाने के कारण और कुछ झुकने की कोशिश मेरे पैर मे मोच तो नही आई थी पर एक टीस सी हो रही थी. मैं क्या कहती लेकिन जैसे उन्होने बिना मेरे कुछ बोले मेरी बात सुन लेने क़ी कला सीख ली थी. गुड्डी से उन्होने मेरे लिए एक कुर्सी लाने को कहा और मेरे मना करने पे भी, मुझे उस पे बैठा दिया. कुछ लोग मिलने आए तो मेरे पीछे खड़े हो के उन्होने मेरे कंधे दबा के इशारा किया कि मैं बैठी ही रही हू. कुछ देर मे मिलने वाले लगभग ख़तम हो गये और भीड़ भी कम होने लगी थी.

जो बचे खुचे लोग तो वो फुड स्टालों की ओर ही थे. हम दोनो अकेले थे. तब तक वहाँ अश्विनी, मेरे नेंदोई, और उनके साथ, रजनी, गुड्डी, अंजलि, मेरी मझली ननद, रवि और कुछ ननदे आई. अंजलि और मझली ननद बोली, अश्विन जीजा और हम लोग भाभी को जॉइंट गिफ्ट देने आए है. मेने वो गिफ्ट अश्विनी, रवि, अंजलि और ननदो के हाथ से ले लिया.

तब तक इन्हे किसी ने बुला लिया.

अंजलि बोली, " भाभी, खोल के दिखाइए ना. " तो मेरी मझली ननद बोली, " क्या यही सबके सामने खुलावाएगी. " मुझे लगा कुछ गड़बड़ है. मैं भी अब बोलने लगी थी. मेने कहा "जो गिफ्ट दे रहा है वही खोले. "

अश्विनी तुरंत तैयार होके बोले "अगर सलहज खोलने को कहे और नेन्दोयि ना खोले"

और गिफ्ट खोलने लगे. अब मुझे अहसास हुआ कि, वो किस लिमिट तक जा सकते है और मेने मूह खोल के कितनी ग़लती की. वो बड़े धीमे धीमे गिफ्ट रॅप पॅकेट खोल रहे थे.
 
मेरी एक ननद ने उन्हे चिढ़ाया, अरे जीजू आप तो इतने सम्हाल के खोल रहे हैं जैसे भाभी की गिफ्ट नही उनका लहंगा खोल रहे है.

सब हंस पड़े. तब तक मेरी जेठानी और एक दो और औरते खाने के लिए बोलने के लिए आ गयी थी.

पॅकेट मे 1 दर्जन कॉंडम के पॅकेट, वैसलीन की एक शीशी, एक लेसी ब्रा और पैंटी तथा एक बच्चे के लिए चूसने के लिए निपल था. सब खूब ज़ोर से हंस पड़े और मैं भी मुस्कराने लगी.

अंजलि ने पूछा, " क्यो भाभी पसंद आया, सब ज़रूरत की चीज़े है ना. "

" देखो, " कॉंडम की ओर इशारा करके मैं बोली, ये तो तुम्हारे भैया के काम की चीज़ है. तुम अपने हाथ से उनके हाथ मे दे के पूच्छ लो. हाँ मैं ये ज़रूर कह सकती हू कि कल सब लोग कह रहे थे ना कि तुम्हे उल्टिया आ रही थी, कुछ गड़बड़ हो गयी है. तो अगली बार इन्हे तुम इस्तेमाल कर सकती हो. मज़े का मज़ा और उल्तियो से भी बचत.

जहाँ तक ब्रा का सवाल है ये मेरी साइज़ से बहुत छोटी है. लगता है, अश्विनी नेंदोई जी को तुम्हारी नाप याद रही होगी. " मेरी जेठानी ने मेरी पीठ ठोकी कि मेने सही जवाब दिया. लेकिन वही मैं ग़लती कर बैठी. मेने ततैया के छत्ते को छेड़ दिया.

अश्विनी नेंदोई जी को छेड़ के, मैं गिफ्ट पॅक मे रखे निपल की ओर इशारा कर के बोली,

" और मुझ ये नही मालूम था कि अभी भी आप" मेरी बात पूरी करते वो मुस्करा के बोले,

" क्या कि मैं अभी भी निपुल चूसता हू यही ना. वास्तव मे मुझे निपल चूसना बहुत अच्छा लगता है तो क्या मेरे साले ने अभी तक आपकी नही. चलिए कोई बात नही,

वो कमी मैं पूरी कर दूँगा. तो बोलिए यही या घर चल के. और ये मैं गारंटी देता हू कि अगर एक बार आपने चुसवा लिया ने तोफिर कभी मना नही करेंगी" कॉरसेट से मेरे छलकते उभारो की ओर घुरते हुए वो मुस्काराकार बोले. और फिर तो सब के ठहाके गूँज गये.

ये रसीले मज़ाक मुझे भी अच्छे लगते थे. लेकिन मैं समझ गई कि मुझे अश्विनी को अपनी टीम मे शामिल करना पड़ेगा अगर ननदो को छकाना है तो. थोड़ी देर मे ये भी आ गये और हम सब खाने के लिए उठ गये.

खाने के समय भी मेरे ननदोयि चालू रहे लेकिन उनका एक हाथ अभी भी रजनी के कंधे पे थे. उसी बीच मेने अपना संधी प्रस्ताव पेश किया और वो तुरंत मान गये. फिर तो हम लोगो ने मिल के अंजलि और बाकी ननदो को.

दस बजते बजते हम लोग घर लौट आए. 'वो'तो तुरंत उपर चले गये कमरे मे और मैं अपनी सास का पैर छूने के लिए रुक गयी. काई लोगो ने उनसे कहा कि रिसेप्षन मे जो लोग भी आए थे, सब उनकी बहू की तारीफ़ कर रहे थे. और एक दो ने तो ये भी बोल दिया कि आज इसे नज़र ज़रूर लगी होगी. मेरी सास का तो सीना फूल के चौड़ा हो गया.

उन्होने तुरंत राई नोन मंगाई नज़र उतारने के लिए. और जब तक मेरी नज़र सासू जी उतार रही थी, दुलारी को मौका मिल गया. उसने मेरे पैरो मे खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर रच दिया. 10*15 मिनेट मे मेरी जेठानी जी मुझे पहुँचाने उपर आई. रास्ते मे मेने उनसे पूछा कि कल सुबह कितने बजेतो वो हंस के बोली, जितने बजे तुम चाहो, फिर उन्होने कहा कि साढ़े आठ के आस पास मेरी ननद कोई आ जाएगी मुझे लेने.

उन्होने ये भी कहा कि कल चूल्हा छूने की रसम होगी दिन मे और शाम को गाने गाने की. उन्होने जोड़ा कि शादी मे तुम्हारे यहा मुझे अंदाज लगा कि तुम्हे भी तो 'अच्छे वाले गाने ' अच्छी तरह आते होंगे तो कल ज़रा अपनी ननदो को सुना देना कस के. हाँ दूध, पान सब रख दिया है, सबसे पहले उनको दूध पीला देना, ये कह के वो वो कमरे के बाहर से ही चली गयी. अंदर घुस के मेने तुरंत दरवाजा बंद किया.

कमरा आज भी कल की तरह सज़ा था. फ़र्क सिर्फ़ ये था कि आज गुलाब की जगह चाँदनी और चमेली के फूल थे. उनकी लड़ियो से चारो ओर.. और बिस्तर पे भी चमेली और बेला के फुलो की पंखुड़िया साथ की साइड टेबल पे उसी तरह चाँदी की ग्लास मे दूध, तश्तरी मे चाँदी के बर्क मे पान और दूसरी तश्तरी मे मिठाइया. सिर्फ़ कल की तरह साइड मे ज़मीन पे बिस्तर नही था.

ये पहले से ही चेंज करके कुर्ते पाजामे मे बैठे थे. इन्होने मुझे स्टूल पे बैठने का इशारा किया और बोले कि अपने पैर इसमे डाल दो. गुनेगुने पानी और नेमक के साथ उसमे लगता है, और कुछ पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरे पैरो की सारी थकान और दर्द ( जो पैर मुड़ने, इतनी देर खड़े रहने और हाइ हील के चक्कर मे हो रहा था. ) गायब हो गया. फिर वो भी मेरे पैरो के पास बैठ के, एडी के उपर से घुटने तक दबाने लगे. बड़े ज़ोर से मना करते हुए मैं बोली,

" हे आप क्या करते है, मुझे कितने पाप पड़ेगा, मेरे पैर छू रहे है आप. " "और मेने पैर खींचने की कोशिश की. और जब मैं तुम्हारा पैर पकड़ के 'उस समय'कंधे पेरखता हू तो उस समय पाप नही लगता. दबाने दो, ये देह अब तेरी नही मेरी है और मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगा. " दबाते हुए, हंस के वो बोले.

उन्हे लगता है मेरी देह के सारे प्रेशर पायंट्स पता थे. क्षॅन भर मे सारा दर्द घुल के निकल गया. अब मुझे दूसरी चिंता सता रह थी, कॉरसेट के खोलने की. पहनेते समय तो गुड्डी थी परवो काम भी उन्ही से करवाया. पूरे समय गुनेगुने पानी मे पैर डाल के बैठी रही. जब मैं चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे पहुँची थी तक तक सारा दर्द छू मंतर हो गया था.
 
चेंज करते समय मैं सोच रही थी, शाम के बारे मेकैसे वो सारे समय मेरे साथ थे और फिर झुक के मेरी पायल पहनाई, मेरे लिए कुर्सी म्‍मगवाई और फिर. . अब ये.. सो कियरिन्ग. मैं सोच रही थी कि मैं क्या कर सकती हू, और फिर मेने सोच लिया उनकी चीज़ उनको देने मे क्या शरम आज मेने तय किया कि और फिर मेने अपने सारा मेक अप उतार दिया, भारी गहने भी और बाल भी खोल दिए. अब मैं एक दम रिलेक्स महसूस कर रही थी. एक सेक्सी सी ऑलमोस्ट ट्रॅन्स्परेंट सिल्क, स्लिव लेस लो काट नाइटी जो भाभी ने दिल्ली मे खरीदी थी, मेने निकाली और साथ मे मैनचिंग, शियर, लेसी हाफ़ कप ब्रा और एक ठग लेसी पैंटी. पैंटी का पिछला हिस्सा तो मेने अपने नितंबो के बीच मे और आगे का भाग भी बेस्ब्रा सिर्फ़ नीचे से सपोर्ट कर रही, बल्कि और उभार रही थी. जब मेने शीशे मे देखा तो मन किया कि उनके सामने जा के बोल दूँगी, एक ट्वर्ल कर के, बोलो राजा मैं कैसी लगती हू.

लिपस्टिक और काजल को ज़रा और फ्रेश कर मैं बाहर निकली.

वो बेचारे उतावले, बेसबर जैसे ही मैं बैठी (बैठने का मतलब उनकी गोद मे ये मेने पहले दिन ही समझ लिया था) आज मेने कल की ग़लती नही की. चाँदी का दूध से भरा ग्लास उठा के.. पहले उनकी ओर बढ़ा के जैसे ही उन्होने मूह आगे बढ़ाया, मेने ग्लास पीछे खींच लिया और उसे अपने गुलाबी गालो से लगा के सहलाने लगी. फिर उन्हे दिखा के अपने होंठो से लगा के सीप कर लिया. और फिर ग्लास जो हटाया तो उन्हे दिखा के ग्लास पे चार पाँच बार किस कर लिया. जब ग्लास मेने उनके होंठो पे लगाया तो,

ठीक वही जहाँ मेरे होंठ लगे थे और गुलाबी लिपस्टिक के गाढ़े गाढ़े निशान थे. उनके तो दोनो हाथ 'व्यस्त' थे, एक मेरी पतली कमर पे और दूसरा नाइटी के अंदर से झलकते, ललचते मेरे उरोजो पे. और जब उनके पीने के बाद मेने पिया तो, उनके होंठ दूध के साथ मेरे अधर रस पीने को ज़्यादा व्याकुल थे. किसकी हिम्मत थी, जो 'किस' को मना करे. जब तक मेरे अधर उनके अधरो के बीच उलझे थे, मेरे हाथ ग्लास को बड़े साजेस्टिवली मेरे दोनो उभारो के बीच 'रोल'कर रहे थे. जब तक दूध ख़तम हुआ, हम दोनो की हालत खराब थी. कुछ दूध का असर, हम दोनो एक दम ताजदम हो गये थे. और कुछ छेड़खानी का असर, और उन पर असर तो मैं सॉफ साफ महसूस कर रही थी. उनका'वो' पूरी तरह उत्थित हो के मेरे नितंबो के नीचे से, इतने बेताब कि लग रहा था उनके पाजामे और मेरी नाइटी को फाड़ कर सीधे अंदर. मैं भी कम नही थी आँखे मुदि जा रही थी, सिर्फ़ उनकी उंगलियो की छुअन से मेरे उरोज पत्थर हो रहे थे.

जब उन्होने अपनी बाहो मे पकड़ के मुझे बिस्तर पे लिटाया तो नाइटी कमर तक सरक चुकी थी. मेने इशारे से बेड लाइट बंद करने को कहा, लेकिन उससे कोई खास फरक नही पड़ा. आज पूनो की रात थी और खिड़की पूरी तरह से खुली. छितकी चाँदनी से मेरा, पूरा बदन नहाया था. उनके होंठो ने मेरे लजाए, कजरारे नेनो से,

थोड़े से सपने चुराए, कुछ मिठास मेरे रसीले होंठो से ली और यौवन शिखरो पे चढ़ने के पहले, दम लेने के लिए घाटी मे बैठ गये. छोटे छोटे पग भरते,

उनके रस के प्यासे होंठ मेरे रस कलशो को छूते, उनका रस ढलकते धीरे धीरे पहुँच गये शिखर पे. अधीर उंगलियो ने पहले ही ब्रा के हल्के से पर्दे को थोड़ा खिसका दिया था. उनके होंठो ने पहले हल्के से छुआ, सहलाया, चूमा और फिर एक दम से गप्प से भर लिया, जैसे ना जाने कब के प्यासे हो. मेरे रस के प्याले छलकते रहे और वो पीता रहा. छक के पी के मेरे पिया के चुंबनो ने देह यात्रा शुरू की.

उरोजो की परिक्रमा कर, नीचे उतर कर सीधे, थोड़ी देर वो मेरी नेभी कूप मे सुस्ताये और फिर, मेरी पैंटी के किनारे किनारे उसकी जीभ ने जैसे लाइन खींच दी हो और फिर सीधे पैंटी के उपर से ही एक खूब तगड़ा सा चुंबन.. लेकिन जैसे कोई यात्री बहुत लालच के भी कही रुक ना पड़े, वो आगे बढ़ गये. मेरी रसीली कदली स्तम्भ सी चिकनी सरस जाँघो का रस लेते, उस पर फिसलते सीधे मेरे पैरो तक. मुझे डर था कि मेरे जिन पैरो को छूने से उन्हे पाप लगेगा, उन पाओ को तलुओ, को.. इतने चुंबन लिए कि मुझे लगा अब इन पाओ को मैं अब कभी ज़मीन पे नही रख पाउन्गि.
 
मेरे पाओ के किनारे किनारे ऐईडी से लेकर, उनके होंठो ने इस तरह से महावर रचा, मेरी पूरी देह गुलाल हो गयी. दुलारी ने जो महावर रचा था उससे भी गाढ़ा, नेह के रंग का महावर. मैं तड़प रही थी, मचल रही थी. लेकिन उसके होंठो की मेरी देह प्रदक्षिणा अभी पूरी नही हुई थी. अब मेरा हर अंग उनका जाना पहचाना था.

अब जब वह मेरी जाँघो की नसेनी पे चढ़, मेरे रस कूप तक पहुँचे, उसकी ज़ुबान पहले पैंटी के बाहर से, और फिर मेरी लेसी दो अंगुल की ठग को सरका के उसके अंदर वह मुझे तड़पाटा रहा, सुलगाता रहा. सहसा, उसके दोनो होंठो ने मिलके मेरे प्रेम के होंठो को ढकने का मात्र प्रयास कर रही पैंटी को मेरी शरीर से अलग कर दिया. मेरी जांघे अपने आप शरम से सॅट गयी, आँखे मूंद गयी.

लेकिन अब वो रुकने वाले नही थे. उसने कस के मेरे अनाव्रत गुलाबी पंखुड़ियो पे कस कस के हज़ार चुंबन ले लिए.

और मेरी सारी देह मे गुलाब उग आए. मेरी पूरी देह एक उपवन हो गयी.

उसके दोनो हाथो ने मेरी जाँघो को अलग कर रखा था. उसके रस के प्यासे होंठ मेरे निचले होंठो पे रस बरसा रहे थे.

जो काम कल उसकी अँगुलिया कर रही थी, गुलाबी पंखुड़ियो को छेड़ने काम. आज उसके होंठ कर रहे थे. मैं तड़प रही थी, मेरे नितंब उपर उठ रहे थे और मेरे हाथ कस के उसके सर पे थे. थोड़ी देर मे जब उसे लगा मैं पिघल जाउन्गि उसके होंठो की गरमी से.. . वह ठिठक गया और कुछ देर रुक कर कुचो की ओर बढ़ चला. मेरी गोलाईयो, मेरे कटाओं का रस लेता, स्वाद लेता जब वह मेरे रसीले जोबन तक पहुँचा तो वह अभी भी मेरी ब्रा मे बंद तड़फदा रहे.

"होंठवा से सैंया चोलिया के बंद खोलेला" कैसे होता है, उसके होंठो ने मुझे समझा दिया.

हम दोनो अब किसी भी बंदन से मुक्त थे सिवाय एक दूसरे की बाहो के बंधन के.

चुंबन, आलिंगन, रगड़ने मसलने, दांतो और नाखूनों के निशान, बस कभी वो उपर होते कभी मैं. बाहों मे एक दूसरे के हमारे जाने कितने हाथ उग आए थे कितने होंठ, एक साथ मेरे होंठो के, रस कलश के, और नीचे, रस बरस रहा था.

क्रमशः……………………….

शादी सुहागरात और हनीमून--22
 
शादी सुहागरात और हनीमून--23

गतान्क से आगे…………………………………..

जब उसने कस कस के मेरे जोबन को चूमा, मेरे मन सागर के मनोज उरोज खिल उठे.

बस मेरा मन कर रह था अब वो 'करें' और ना तड़पाये उनके हाथो और होंठो का स्पर्श पा के मेरे पैरो की हिम्मत ज़रा ज़्यादा ही बढ़ गयी थी. वो अपने आप ही उनके कंधो के आसान पे सवार हो गये. पहले बिछुए की झनेकार , फिर पायल की झनेक और थोड़ी देर मे मेरी पूरी देह से संगीत झड़ने लगा था. जब उसने मेरी कलाई पकड़ी तो चूड़ियो की चूर मूर और चुम्मा लेना साथ,

झूमर का झनझन, हर के हिलने की आवाज़ भी इसमे शामिल हो गयी. और जब वह मेरी कमर उठा के धक्का देता तो मेरी करधनि की रुन झुन भी इसमे शामिल हो जाती. और सिर्फ़ मेरे बिछुए, पायल, करधन, चूड़िया, झूमर और हर ही नहिजाब वो मेरे नितंबो को पकड़ के कस के, लगभग पूरी तरह बाहर निकाल के धक्का देता, और उसका मोटा सख़्त लिंग मेरी कसी, किशोर, 24 घंटे पहले तक अक्षत योनि मे उसे कस कस के रगड़ते, फैलाते घुसतातो मेरी चीख निकल जाती. कभी चीख कभी सिसकिया, कभी उह कभी आहा मेरी देह का संगीत लगातार. लग रहा था बहुत दिनो से पड़े हुए सितार को किसीने उठा लिया हो और उसे छेड़ दिया हो. आज मैं भी शरमाते हुए ही सही, उसके सुर मे सुर मिलने की कोशिश कर रही थी. वो मुखड़े पे तो मैं अंतरे पे. और वो भी कभी द्रुत तो कभी विलंबित, कभी मेरे रसीले जोबन को पकड़ के दबाते सहलाते,

कुचलते मसलते, कस कस के तेज़ी से धक्के लगाते, मेरी चीखो और सिसकियो की परवाह किए बिना और कभी खूब धीरे, धीरे मेरे योनि के अंदर सहलाते वो घुसता और मज़े से मेरी जान निकल जाती. सच मे इससे बड़ा सुख कोई नही हो सकता सब कुछ भूल के. और आज वो भी कभी मेरी कमर पकड़ के, कभी कलाई थाम के, कभी कस के नितंबो को पकड़ के और कभी कस कस के मेरे मद मस्त रसीले किशोर उभारो का रस लेते. और जब उन्हे लगता कि संगीत अपने शीर्ष पे पहुँच रहा है तो थोड़ी देर कमर को आराम देउनेके होंठ और उंगलिया मोर्चा समहाल लेते. कभी वो मेरे रसीले होंठो, गालो को चूमते, चूसाते और कभी कच कचा के काट लेते. और उनके हाथ जो इस के लिए न जाने कब से भूखे थे, मेरे किशोर जोबन सहलाते, प्यार करते,

उसे कस कस के दबा देते, मसल देते, मेरे कड़े खड़े चूचुक पिंच कर देते. और इतने देर मे ही मैं कभी अपने नितंबो को उचका के, कभी कस के उन्हे अपनी ओर खींच के कभी उनके कंधो मे नाख़ून गढ़ा के इशारा करती और हमारे देह संगीत की सरिता फिर से बहने लगती. बहुत देर तक इसी तरह सुख लेने के बाद कब हम किनारे की ओर पहुँचने वाले थे तो धीरे धीरे बजने वाले सुर तेज हो गये झाला बजने लगा, देर तक और जब हम झाडे भी तो साथ साथ देर तक हर 'बूँद' मैं अपने अंदर महसूस करती रही. मेरी देह इतनी शिथिल पड़ गयी बहुत देर तक हम दोनो एक दूसरी की बाहो मे लिपटे पड़े रहे.

कुछ देर बाद उन्होने मुझे सहारा देके उठाया और बिस्तर के सिरहाने के सहारे अध लेता बैठा दिया. आज मुझे इसकी फिकर नही थी कि मेरी देह रज़ाई से धकि नही है, या मेरी जाँघो के बीच मेरे उनके रस की बूंदे अभी तक बह रही है.

थोड़ी देर तक हम ऐसे ही बैठे रहे फिर अचानक उन्हे कुछ याद आया और उन्होने पलंग की साइड टेबल सेमेरी आँखे उन्होने बंद करा दी थी. जब मेने आँखे खोली तो खुशी से मेरा मन भर आया.. कितने प्यारा कुंदन का सेट, बहुत ही इंट्रिकेट मिनेकारी,

डायम्मड के साथ इमेरल्ड, रूबी और सब मोर की डिजाइन के, हर, टॅप्स, अंगूठी, जाड़ाउ कंगन छितकी चाँदनी मे वो और भी अच्छे लग रहे थे. हर तो उन्होने उसी समय पहने दिया. मारे खुशी के मेने उन्हे अपनी बाहो का हार पहना दिया और कस कस के चूम लिया. कितनी अच्छी पसंद है आपकी, मैं बोल पड़ी.

"तभी तो तुम्हे पसंद किया. "वो हंस के बोले.
 
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