hotaks444
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मेरे लिए खाना कमरे मे ही गुड्डी और अंजलि ले आई. उन्होने और उनकी सहेलियो ने भी मेरे साथ ही खाया.
खाने के बाद हम सब, मैं, मेरी जेठानी, कुछ ननदे, गुड्डी अंजलि और उसकी सहेलिया उसी कमरे मे आराम करने लगे कि 'वो' आए और जेठानी जी से बोले,
भाभी मेरा कुर्ता वो उठ के गयी तो किसी ने टोका कि अर्रे इन्हे जो चाहिए वो जब तक नही मिलेगा तो और हुआ यही. थोड़ी देर मे वो फिर दरवाजे पे पानी चाहिए था. गुड्डी गयी बाहर उन्हे पानी देने और फिर कमरा हँसी से भर गया. सब ने मुझे छेड़ा कि तुम जाओ उपर वारना ना तुम्हे आराम होगा और न हम लोगो को वो आराम करने देगा. मुझे शरम भी आ रही थी और अच्छा भी लग रहा था.
थोड़ी देर मे मुझे बैठे बैठे, जुम्हाई आ गयी. मेने लाख हाथ से रोका लेकिन मेरी एक ननद ने देख लिया, और बोला,
"क्यो भाभी रात को नींद नही आई क्या"
"अर्रे नींद कैसी आएगी रात भर कबड्डी खेल रही थी."दूसरी बोली.
"कबड्डी या बेड पोलो क्यो भाभी कितने गोल हुए."अंजलि की एक सहेली बोली.
"अर्रे सोने दो ना भाभी को आज रात मे फिर मॅच होगा."अंजलि बोली.
"चलो तुमको मैं उपर तुम्हारे कमरे मे छोड़ आती हू, ये सब यहा तंग ही करती रहेगी."मेरी जेठानी बोली.
"तो क्या भाभी वहाँ तंग नही होगी."एक ननद ने छेड़ा. मैं उठ के जेठानी जी के साथ जाने लगी.
"अर्रे बुद्धू, भैया वहाँ तंग नही ढीला करेंगे."
"अर्रे जाओ जाओ. कम से कम बेचारी वहाँ थोड़ी देर टांग तो फैला लेगी. यहाँ तो तुम सब"मेरी एक और जेठानी बोली, तो उनकी बार काट के किसी औरत ने कहा "हां ये तो ठीक है, टाँग तो फैलाएँगी ही."
"जाइए जाइए भाभी वहाँ शेर मिलेगा, वो भी भूखा."उपर चढ़ते समय मेने किसी ननद की आवाज़ सुनी और मुस्काराए बिना नही रह सकी.
उपर चढ़ते समय मेरी जेठानी ने समझाया कि दो बजरहे है, छे, साढ़े छे बजे तक तैयार हो जाना रिसेप्षन के लिए. बाहर एक होटेल मे जाना है.
उपर कमरे मे घुसते ही, 'उनसे' मेरी जेठानी बोली, हे दुल्हन को तो ले आई हू लेकिन इसे ज़्यादा तंग मत करना.
फिर उन्होने उनके पास आके हल्के से कहा (जिसे मैं आराम से सुन सकती थी), हे कल तुमने पूरे कमरे मे टहाला टहाला के, फर्श वाले बिस्तर पे टूटी चूड़िया मिली थी, जिसे मेने सम्हाल के उसके वॅनिटी मे रख दिया है, और एक दिन मे ही आधी वैसलीन की शीशी ख़तम कर दी. खैर तुम्हारा दोष नही है,
मेरी देवरानी है ही इतनी प्यारी.
मुस्करा के वो बोली और फिर हल्के से कहा, तकिये के नीचे वैसलीन की नेई शीशी रखी है. जैसे ही वो बाहर निकली, मेने दरवाजा बंद कर दिया और चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे चली गयी.
मेने तुरंत साड़ी उतार फेंकी. अभी भी साड़ी मे मुझे उलझन होती थी. मैं सोचने लगी कि अभी घर की तो नही पर इस कमरे की तो रानी मैं हू ही, जैसे चाहे वैसे पहन सकती हू, रह सकती हू. और कमरे मे बाहर इंतजार कर रहा वो लड़का, 'वो' मेरी केर करता है, चाय अच्छी बनाता है, बेड भी ठीक कर लेता है, सुबह मम्मी भाभी से मेरी बात करवाता है, 'और बाकी सब' अब उतना तो करेगा ही. मेने एक कॉटन की नाइटी पहन ली थी. जब मैं बाहर निकली तो बेबस, बेकरार 'वो'. उन्होने रज़ाई उठाई और मैं झट से अंदर.
फिर तो जैसे कोई बाज झपते कस के उन्होने बाहो मे भिच लिया. और लगे चूमने. कभी गालो को कभी होंठो को. कभी मुझे अपने उपर ले लेते,
क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--20
खाने के बाद हम सब, मैं, मेरी जेठानी, कुछ ननदे, गुड्डी अंजलि और उसकी सहेलिया उसी कमरे मे आराम करने लगे कि 'वो' आए और जेठानी जी से बोले,
भाभी मेरा कुर्ता वो उठ के गयी तो किसी ने टोका कि अर्रे इन्हे जो चाहिए वो जब तक नही मिलेगा तो और हुआ यही. थोड़ी देर मे वो फिर दरवाजे पे पानी चाहिए था. गुड्डी गयी बाहर उन्हे पानी देने और फिर कमरा हँसी से भर गया. सब ने मुझे छेड़ा कि तुम जाओ उपर वारना ना तुम्हे आराम होगा और न हम लोगो को वो आराम करने देगा. मुझे शरम भी आ रही थी और अच्छा भी लग रहा था.
थोड़ी देर मे मुझे बैठे बैठे, जुम्हाई आ गयी. मेने लाख हाथ से रोका लेकिन मेरी एक ननद ने देख लिया, और बोला,
"क्यो भाभी रात को नींद नही आई क्या"
"अर्रे नींद कैसी आएगी रात भर कबड्डी खेल रही थी."दूसरी बोली.
"कबड्डी या बेड पोलो क्यो भाभी कितने गोल हुए."अंजलि की एक सहेली बोली.
"अर्रे सोने दो ना भाभी को आज रात मे फिर मॅच होगा."अंजलि बोली.
"चलो तुमको मैं उपर तुम्हारे कमरे मे छोड़ आती हू, ये सब यहा तंग ही करती रहेगी."मेरी जेठानी बोली.
"तो क्या भाभी वहाँ तंग नही होगी."एक ननद ने छेड़ा. मैं उठ के जेठानी जी के साथ जाने लगी.
"अर्रे बुद्धू, भैया वहाँ तंग नही ढीला करेंगे."
"अर्रे जाओ जाओ. कम से कम बेचारी वहाँ थोड़ी देर टांग तो फैला लेगी. यहाँ तो तुम सब"मेरी एक और जेठानी बोली, तो उनकी बार काट के किसी औरत ने कहा "हां ये तो ठीक है, टाँग तो फैलाएँगी ही."
"जाइए जाइए भाभी वहाँ शेर मिलेगा, वो भी भूखा."उपर चढ़ते समय मेने किसी ननद की आवाज़ सुनी और मुस्काराए बिना नही रह सकी.
उपर चढ़ते समय मेरी जेठानी ने समझाया कि दो बजरहे है, छे, साढ़े छे बजे तक तैयार हो जाना रिसेप्षन के लिए. बाहर एक होटेल मे जाना है.
उपर कमरे मे घुसते ही, 'उनसे' मेरी जेठानी बोली, हे दुल्हन को तो ले आई हू लेकिन इसे ज़्यादा तंग मत करना.
फिर उन्होने उनके पास आके हल्के से कहा (जिसे मैं आराम से सुन सकती थी), हे कल तुमने पूरे कमरे मे टहाला टहाला के, फर्श वाले बिस्तर पे टूटी चूड़िया मिली थी, जिसे मेने सम्हाल के उसके वॅनिटी मे रख दिया है, और एक दिन मे ही आधी वैसलीन की शीशी ख़तम कर दी. खैर तुम्हारा दोष नही है,
मेरी देवरानी है ही इतनी प्यारी.
मुस्करा के वो बोली और फिर हल्के से कहा, तकिये के नीचे वैसलीन की नेई शीशी रखी है. जैसे ही वो बाहर निकली, मेने दरवाजा बंद कर दिया और चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे चली गयी.
मेने तुरंत साड़ी उतार फेंकी. अभी भी साड़ी मे मुझे उलझन होती थी. मैं सोचने लगी कि अभी घर की तो नही पर इस कमरे की तो रानी मैं हू ही, जैसे चाहे वैसे पहन सकती हू, रह सकती हू. और कमरे मे बाहर इंतजार कर रहा वो लड़का, 'वो' मेरी केर करता है, चाय अच्छी बनाता है, बेड भी ठीक कर लेता है, सुबह मम्मी भाभी से मेरी बात करवाता है, 'और बाकी सब' अब उतना तो करेगा ही. मेने एक कॉटन की नाइटी पहन ली थी. जब मैं बाहर निकली तो बेबस, बेकरार 'वो'. उन्होने रज़ाई उठाई और मैं झट से अंदर.
फिर तो जैसे कोई बाज झपते कस के उन्होने बाहो मे भिच लिया. और लगे चूमने. कभी गालो को कभी होंठो को. कभी मुझे अपने उपर ले लेते,
क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--20