Kamukta Story पड़ोसन का प्यार - Page 2 - SexBaba
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Kamukta Story पड़ोसन का प्यार

प्राची शोभा से लिपट गयी "ऐसा मत कहो शोभा, अब मुझे अपने से कभी दूर नही करना. एक बार इस सुख को चखने के बाद मैं तुमसे अलग नही रह पाऊँगी. और तुम जा रही हो? और रूको ना!" 

शोभा उस एक बार चूम कर उसे अलग करती हुई बोली "काफ़ी समय हो गया, शाम होने को है, अब मुझे जाना चाहिए. और शाम को कांचुकी मे भी जाना है, तेरे लिए ब्रा और पैंटी लेनी हैं. देखना कैसी सुंदर लगेगी उनमे, बिलकुल दुल्हन जैसी!"

प्राची ने अपने कपड़े पहने और एक बार शोभा से लिपट कर उसे चूम कर उसे विदा किया. कुछ देर आराम करके वह बाहर जाने की तैयारी करने लगी. आज उसके कदम जमी पर नही पड़ रहे थे, उसे ऐसा लग रह था कि वह बादलों पर चल रही है. शोभा के उस मादक रूप को याद करके वह फिर उत्तेजित हो रही थी. अब शोभा के साथ के एकांत के लिए उसे कल दोपहर तक रुकना पड़ेगा यह बात उसे खाए जा रही थी.

एक घन्टे के बाद दोनो शॉपिंग को निकलीं. कांचुकी दुकानमे शोभा ने सेल्सगर्ल को सब तरह की ब्रा और पैंटी दिखाने को कहा. प्राची उन सुंदर अंतर्वस्त्रों को देख कर चकरा गयी कि कौन सी लूँ. सब एक से एक नाज़ुक और खूबसूरत थी. उसकी दुविधा देखकर शोभा उसे चून्टि काटकर उसके कान मे बोली "मेरी पसंद की ले तो ठीक रहेगा, है ना? आख़िर मैं ही तो उन्हे
सबसे ज़्यादा देखूँगी!" प्राची शरमा गयी पर हां कर दी.


शोभा ने चौंतीस बी कप साइज़ की दो सफेद, दो काली और एक एक स्किन कलर की, गुलाबी और मोतिया रंग की ब्रा और पैंटी के सेट लिए. सब एक से एक ब्रांड थे, लवबल, एनामोर, जाकी! वापस आते समय शोभा बोली "प्राची, मेरे पास भी काफ़ी कलर के सेट हैं पर मैं तो बस अधिकतर सफेद ही पहनती हूँ, मेरे इस काले शरीर पर बस वही फबते हैं, मैं क्या करूँ ऐसे सब कलर ले कर. तू गोरी है, तुझ पर कोई भी रंग खिलेगा. और भी रंग आते हैं, ले लेंगे एक एक करके. और तेरा नाप भले ही पैंतीस कप सी हो, मैने चौंतीस कप बी लिए तेरे लिए. एकदम फिट बैठेगि तेरे बदन पर, तेरे इन स्तनों को मस्त ऊँचा करके रखेगी ये ब्रा."


वापस आ कर दोनो प्राची के यहाँ चाय पी रही थी. प्राची को एक दो बार लगा था कि फिर शोभा से लिपट जाए पर शरमा रही थी. शोभा भी पूरी घाघ थी, जान बूझ कर प्राची से दूर ही बैठी थी कि थोड़ा तड़पेगी तो और अच्छे से फँसेगी. कॉलेज से दर्शन के आने का भी समय हो गया था.
 
शोभा उसे अब समझा रही थी कि ये महँगी ब्रा और पैंटी कैसे धोयि जाती हैं कि खराब ना हों. तभी दर्शन का फोन आया. प्राची ने फोन उठाया.

"मा, आज मैं नही आ रह हूँ, यहाँ कॉलेज मे बहुत काम है. यही होस्टल मे रुक जाऊँगा. कल सुबह आऊंगा. ठीक है ना? तुम अकेली परेशान तो नही होगी?"

प्राची का दिल उत्तेजना से धड़कने लगा. "ठीक है दर्शन बेटे, मैं देखती हूँ. वैसे अकेली कभी रही नही हूँ इस घर मे"

"मा, ऐसा करो, शोभा मौसी को बुला लो, या तुम उसके यहाँ आज रात सो जाओ"

दर्शन के कहने पर प्राची का चेहरा गुलाबी हो गया. अपने आप को संभाल कर वह बोली "ठीक है, मैं ऐसा ही करती हूँ, शोभा मौसी के यहाँ सो जाऊंगी, तू सुबह अगर जल्दी आया तो बेल बजा देना" और फोन रख दिया.


शोभा समझ गयी थी कि फोन पर क्या बाते हुई हैं. उसकी आँखों मे एक नटखट चमक आ गयी. प्राची का हाथ पकड़कर वह बोली "दर्शन नही आ रहा है ना? चलो हम दोनो अकेली हैं. तैयार हो जा प्राची, बाहर चलते हैं घूम कर. मज़ा करेंगे, मस्त डिनर लेंगे कहीं. फिर वापस आकर मेरे यहाँ रत जगा करेंगे. सिर्फ़ गप्पें मारेंगे रात भर और कुछ नही, समझ गयी
ना?" और उसने प्राची को आँख मार दी. फिर मूह पर हाथ रखकर हँसने लगी.

प्राची को समझ मे नही आ रह था कि क्या कहे. शोभा की आँखों मे झलक रही अथाह कामना को देख कर वह फिर शरमा उठी थी.

शोभा तैयार होने अपने घर चली गयी. यहाँ प्राची ने भी तैयारी की. नहाया, नहाकर नई वाली काली ब्रा और पैंटी पहनी. ब्रा टाइट ज़रूर थी पर उसके उरोजो को ऐसा निखार रही थी जैसे बीस साल की युवती हो. आईने मे अपने अर्धनग्न रूप को देख वह खुद से ही शरमा उठी. उसने नया ब्लाउस पहना, साड़ी शोभा ने सिखाया था वैसे बाँधी. एक मोटि वेणि बाँधी, उसमे फूल लगाए. हल्के गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली. आईने मे खुद के रूप को देखकर वह चौंक गयी, यह क्या वही प्राची है, हमेशा की दबी दबी बहनजी प्राची? वह कितनी सुंदर लग रही थी इसका उसे अहसास हुआ.


एक और विचार उसके मन मे चमक गया. आज वह ऐसे तैयार हुई थी जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति के लिए तैयार होती है, या कोई प्रेमिका अपने प्रेमी से अभिसार करने को जाते समय सिंगार करती है. खुद से ही शरमाते हुए प्राची मन ही मन मे बुदबूदाई "असल मे यही तो बात है, आख़िर मैं अपने चाहने वाले ... वाली ... के लिए तो कर रही हूँ यह सब. 

बेल बजाने पर उसने दौड़ कर दरवाजा खोला. शोभा भी पूरी बन ठन कर आई थी. शिफानकी साड़ी, लो काट स्लीवलेस ब्लाउस और पैरों मे ऊँची आईडी के सैंडल्स. आँचल के नीचे से उसके उरोज दो पर्वतों जैसे गर्व से सीना तान कर खड़े थे. शायद शोभा ने ख़ास ब्रा पहनी थी. शोभा का वह रूप देखकर प्राची के मन मे अजीब सी गुदगुदी हो उठी.


उधर प्राची का बदला रूप देखकर शोभा भी दहलीज पर ही खड़ी रह गयी. आज रात को होने वाली रति की कल्पना कर कर के शाम से ही उसकी बुर गीली थी. अब प्राची का मादक सौंदर्य देखकर उसे लगा कि अब पानी तो नही चुहुने लगेगा! पैंटी और साड़ी खराब हो जाएँगी. किसी तरह अपने आप को संभाल कर बोली "प्राची, आज अगर तेरे पति होते तो उनकी खैर नही थी. वे तो बाहर ही नही जाने देते तुझे. खैर वे नही हैं तो ना सही, मैं देखती हूँ कि उनकी जगह मैं तुझे कुछ दिलासा दे सकती हूँ क्या"
 
दोनो रात को दस बजे घर लौटीं. शाम कैसे निकल गयी प्राची को पता ही नही चला. उसके मन मे एक अजीब सी उत्सुकता, मादकता और डर भरी हुई थी. घर वापस आकर जब वह कपड़े बदलने को अपने घर का दरवाजा खोलने
लगी तो शोभा बोली "प्राची, अब घर क्यों खोल रही है? मेरे यहाँ ही सोने वाली है ना? फिर कपड़े बदलने की क्या ज़रूरत है. चाहिए तो मैं एक गाउन देती हूँ तुझे. पर तुझे उसकी ज़रूरत नही पड़ेगी." और प्राची की ओर देखकर मुस्करा दी.


शोभा ने अपने फ्लॅट का दरवाजा खोला. धड़कते दिल से प्राची शोभा के पीछे पीछे गयी. अंदर से दरवाजा बंद करके लाक करके शोभा उसे हाथ पकड़कर अंदर ले गयी. शोभा के गरम हाथ के स्पर्ष से और शोभा की ज़ोर से चलती साँसों से उसने अंदाज़ा लगाया कि उसकी सहेली कितनी उतावली हो रही थी. चुपचाप सुहागरात मे दूल्हे द्वारा किसी दुल्हन जैसी खिंचीखिंची वह शोभा का हाथ पकड़कर उसके बेडरूम मे दाखिल हुई. दो नारियों के उत्कट प्रेम का खेल अब शुरू होने वाला था.


बेडरूम मे जाकर शोभा ने अंदर से दरवाजा लगा लिया. फिर घूम कर उसने प्राची को बाहों मे भर लिया और उसका एक दीर्घ चुंबन लिया. प्राची ने भी शरमाते शरमाते चुंबन का जवाब दिया और फिर अपनी जीभ शोभा के होंठों पर लगा दी.

शोभा ने मूह खोल कर प्राची की जीभ अपने मूह मे खींच ली और चूसने लगी. उसके हाथ अब प्राची के लो कट ब्लाउस मे से दिखती चिकनी पीठ को सहला रहे थे. चुंबन खतम होने पर शोभा धीरे धीरे प्राची के कपड़े उतारने लगी. शरमाती हुई प्राची आँखे बंद करके चुपचाप खड़ी रही. जल्द ही उसके बदन पर सिर्फ़ ब्रा और पैंटी भर बचे थे. शोभा ने उन्हे हाथ नही
लगाया, वैसे ही रहने दिया. फिर दो कदम पीछे होकर शोभा प्राची के उस अर्धनग्न रूप को देखने लगी.

"क्या दिखती है तू मेरी रानी, वारी जाऊं तुझपर! ये गोरा गोरा बदन और उसपर ये काली ब्रा और पैंटी. देख, टाइट ब्रेसियर की वजह से तेरी चून्चिया कैसी मस्त तन कर खड़ी हैं. आगे उभर आई हैं. अब कोई इन्हें कहेगा क्या कि छोटि हैं? मेरी जान, अब ज़रा गोल गोल घूम, फैशन माडल की तरह और मुझे अपना पूरा बदन दिखा. अगर मैं मर्द होती तो अब तक तुझे पटककर कब की तुझ पर चढ़ गयी होती. पर मुझे तेरे इस कुंदन से बदन का भोग लेना है आराम से, मज़े ले लेकर"
 
प्राची धीरे धीरे . और शोभा ने भूखी नज़रों से उसके मादक रूप को चारों ओर से देखा. जब प्राची की पीठ शोभा की ओर थी तब उसकी वह चिकनी पीठ, उसपर टाइट बँधे ब्रा के काले स्ट्रैप और हुक, नाज़ुक कमर और उनके नीचे काली तंग पैंटी मे से बाहर आने की कोशिश करते हुए उसके बड़े बड़े नितंब देखकर शोभा ने दो उंगलियाँ अपने मूह मे डाली और
मजनुओ जैसी एक सीटि बजाने की कोशिश की.

सीटी तो नही बजी पर प्राची का मन प्रसन्न हो उठा कि उसकी सुंदरता शोभा को इतनी भा गयी है. पर सामने के आईने मे अपने चौड़े कूल्हे और मोटे तरबूज जैसे नितंब देखकर उसने निराशा भरे स्वर मे कह "वो तो ठीक है शोभा दीदी पर इन कूल्हों का क्या करूँ, देखा कितने चौड़े हैं और इतने भारी भरकम हिप्स. बाकी बदन ठीक है पर मेरे इन फूले हुए हिप्स की
मुझे बहुत शरम आती है"


"अरी पगली, ये तो तेरे ट्रंप कार्ड्स हैं. किसी भी मर्द का इन्हें देख कर कैसा तन्ना कर खड़ा हो जाएगा देखना. मुझे भी बहुत अच्छे लगे. लगता है इनमे मूह छुपा दूं. अब तू यहाँ बैठ सोफे पर और मुझे देख. मैं खुद अपने कपड़े निकालती हूँ. ज़रा आराम से देख कि तुझे अपनी यह सहेली, अपनी दीदी कैसी लगती है. अब तक तो तूने सिर्फ़ एक झलक देखी है" शोभा ने गर्व से कहा. उसकी आवाज़ मे एक सेक्सी औरत का कॉन्फिडेन्स था, जिसे मालूम है कि वह कितनी सेक्सी है.


धड़कते दिल से प्राची शोभा का यह स्ट्रीप टीज़ देखने लगी. आज उसे शोभा के उस ऊँचे पूरे मासल शरीर के पूरे दर्शन होने वाले थे. उसे बहुत देर रुकना पड़ा, शोभा इस मामले मे उस्ताद थी. उसने इतने धीरे धीरे और प्राची को तरसा तरसा कर अपने कपड़े निकाले कि कोई प्रोफेशनल स्ट्रीप टीज़ डाँसर भी क्या निकालती.
 
पहले उसने अपनी साड़ी निकाली और ठीक से फोल्ड की. उसे अलमारी मे रखा. ऐसा करते करते वह बार बार इधर उधर घूम रही थी और झुक रही थी जिससे लो कट ब्लाउस मे से उसकी सफेद ब्रा की झलक दिख रही थी. ब्लाउस के आगे
के कट मे से उफान कर निकलते हुए स्तनों और उनके बीच की खाई को देख देख कर प्राची के मन की बेचैनी धीरे धीरे और बढ़ रही थी. पेटीकोट के नाडे के नीचे की छोटि स्लिट मे से शोभा की पैंटी दिख रही थी और पैंटी के अंदर की फूली हुई बुर का उभार बीच बीच मे दिखता था.

फिर उसने अपना ब्लाउस निकाला. प्राची उसके स्तन एक बार देख चुकी थी पर फिर भी सफेद ब्रा मे कस के बँधे उन उरोजो को देखकर उसकी उत्तेजना फिर तेज हो गयी. शोभा की इस ब्रा के कप गोलाकार नही बल्कि शंकु जैसे थे जिससे उसकी तो बड़ी बड़ी चून्चिया दो भॉम्पुओं जैसी तन कर खड़ी थी. ब्रा की नोक एकदम नुकीली थी. प्राची सोचने लगी कि कैसा लगेगा अगर वे नोकें उसके स्तनों मे गड़ें!

अंत मे शोभा ने अपना पेटीकोट निकाला. अपने पैर उठाकर उसने पेटीकोट अलग किया और रख दिया. केले के तने जैसी मोटि मोटि मजबूत और चिकनी जांघों को देखकर प्राची का मन हुआ कि अभी जा कर उनके बीच मे अपना सिर फँसा ले या उन्हे चूम ले. पैंटी एकदम तंग थी, जरी सी थी. उसके बीच की पट्टि से बस शोभा की बुर की लकीर और पीछे उसके उन विशाल नितंबों के बीच की लकीर भर छुपा पा रही थी, आधे चूतड़ नंगे थे. सामने से बुर पर की काली घनी झांतें पैंटी के पाते के दोनो ओर से झाँक रही थी.


उस मतवाली नारी का वह रूप, सिर्फ़ एक सफेद ब्रा और पैंटी मे ढके उस साँवले मासल शरीर को देखकर प्राची के मूह से एक सिसकी निकल पड़ी. उसकी वासना अब चरमा सीमा पर थी. उससे नही रह गया और अनजाने मे उसका हाथ अपनी चूत पर चला गया, कि अपनी चूत को रगाडकर किसी तरह से इस मीठी अगन से वह छुटकार पा ले. शोभा ने वह देख लिया और उसे आँखे दिखा कर मना किया कि क्या कर रही है, खबरदार! प्राची की लाज लज्जा अब पूरी तरह से खतम हो चुकी थी. शोभि के उस मतवाले शरीर का उपभोग करने को वह मरी जा रही थी. "शोभा दीदी, ऐसे मुझे मत तरसाओ,
निकालो ना ये ब्रा और पैंटी, मुझे अपने शरीर का कुछ तो रस चखने दो"


शोभा आकर उसके पास बैठ गयी और उसे बाहों मे ले लिया. प्राची को चूमते हुए बोली "मेरी रानी यही तो मज़ा है सेक्स का. अर्धनग्न नारी शरीर कितना लुभावना होता है, यह मैं तुझे समझाना चाहती थी. ब्रेसियर और लिंगरी का बिज्निस फालतू मे ही नही चलता, उसका कारण है. चाकलेट खाने का आधा मज़ा तो उसके उस लुभावने रैपर मे होता है. इसका मज़ा लेना सीख. सारी रात पड़ी है. इन लम्हों का लुत्फ़ प्यार से आराम से लो मेरी प्यारी बहना"
 
अगले आधे घन्टे तक दोनो औरतों मे प्रखर रति हुई पर वह सिर्फ़ सूखी रति थी. एक दूसरे के चुंबन लिए गये, एक दूसरे की चून्चियो को ब्रा के ऊपर से सहलाया और दबाया गया, कभी ब्रा के ऊपर से ही घून्डिया चूसी गयीं. एक दूसरे की बुर को पैंटी के ऊपर से रगड़ने की क्रिया तो निरंतर चालू थी. अपूर्व असहनीय सुख प्राची के अंग अंग मे भर गया था.


शोभा भी आख़िर अपनी इस पड़ोसन को अपने बेडरूम मे लाने मे सफल हुई थी, इसलिए अच्छि मस्त थी पर वह अनुभवी खिलाड़ी थी, अपनी वासना पर उसका अच्छ कंट्रोल था. प्राची अब कामोत्तेजना से रोने को आ गयी थी. उसकी आँखों मे वासना की वह पीड़ा देखकर आख़िर शोभा ने समझ लिया कि इसे अब और तरसाना ठीक नही है. उसने प्राची की गीली पैंटी उतारी और खुद उठ कर प्राची के सामने फर्श पर बैठ गयी. उसे प्राची की चूत पास से ठीक से देखने और उसे प्यार करने की बहुत इच्छा थी पर प्राची की महकती चूत की सुगंध ने उसका मन भी डाँवाडोल कर दिया. इसलिए बिना कुछ समय नष्ट किए उसने प्राची की टांगे फैलाई और अपना मूह प्राची की चूत मे डाल दिया. चूत से बहते छिपचिपे रस को वह चाटने लगी.


उसकी जीभ मे वह जादू था कि इतनी देर तरसति हुई प्राची बस दो मिनिट मे झाड़ गयी. "उई माआआआआआअ मा उईईईईईईईईई ओह ओह्हीईईईईईईईईई " की एक किलकारी के साथ उसने अपने हाथों से शोभा का मूह अपनी चूत पर दबा लिया और अपनी जांघों मे शोभा के सिर को जाकड़ कर आगे पीछे होती हुई कमर हिला हिला कर धक्के मारने लगी. उसकी योनि से अब रस की धार बह रही थी. शोभा ने पूरा फ़ायदा उठाया और मन भर कर उस कामरस का स्वाद लिया.


प्राची का स्खलन इतना तीव्र था कि वह रोने को आ गयी. शोभा ने उसे चुप कराया. सिसकती हुई प्राची बोली "कितना सुख है शोभा तेरी इस जीभ मे, मैं मर जाऊंगी ऐसा लग रह था. आई लव यू शोभा दीदी, अब मुझे अलग मत करना" शोभा ने उसे पुचकार कर चुप कराया और जब वह शांत हुई तो फिर से नीचे बैठकर उसकी चूत देखने लगी. "अब ज़रा ठीक से बैठ प्राची, मुझे देखने दे, आख़िर जिस चीज़ का स्वाद इतना मस्त है वह दिखने मे कैसी है"

शोभा ने उंगलियों से प्राची की चूत के भागोष्ठों को सहलाया और फिर उन्हे खोल कर बड़े गौर से देखा. चूत पर के बाल ठीक से कटे हुए और छोटे थे. भगोष्ठ छोटे थे और उनके ऊपर बीच का क्लिट भी ज़रा सा था, अनार के दाने से छोटा. शोभा बार बार प्राची की बुर को चूम लेती और प्राची के मन मे एक सुख और प्रेम की लहर दौड़ जाती. कितना प्यार करती है शोभा मुझे! 
 
शोभा ने उसकी चूत खोल कर एक उंगली अंदर डाली और अंदर बाहर करते हुए बोली "प्राची डार्लिंग, बड़ी टाइट है तेरी ये चूत, मुझे लगा था कि तेरे पति ने पूरी ढीली कर दी होगी"

प्राची ने अपनी चूत को सिकोड़कर शोभा की उंगली पकड़ ली. उसे मज़ा आ रहा था. "दीदी, ये यहाँ है ही कहाँ, साल मे दो तीन बार आते हैं. पहले भी जब यहाँ थे, इनका ज़्यादा इंटरेस्ट नही था. सो जाते थे थक कर, मुझे तो बरसों हो गये ठीक से चुदवाये हुए. उई ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआआअ अच्छा लगता है! और करो ना शोभा"


शोभा ने एक दो मिनिट उंगली की और जब प्राची फिर से उत्तेजित होने लगी तो उंगली निकाल कर चाट ली. "मस्त शहद है रानी. एकदम प्योर्, कितना गाढ़ा है!"

प्राची बोली "शोभा, अब ज़रा मुझे भी चखा अपना शहद, बस खुद ही मज़े लेगी क्या?"

शोभा उठकर प्राची की ब्रेसियर निकालने लगी. "अब ज़रा अपने मम्मे दिखा फिर से. छोटे हैं पर बड़े प्यारे हैं, कश्मीरी सेब जैसे. और ये घून्डिया, ये मूँगफली, उन्हे चूसे बिना मैं तुझे अपना शहद नही चखाने वाली"


प्राची के स्तनों को उसने दबा कर इकठ्ठ किया और बारी बारी से उसके लंबे लंबे स्तनाग्र चूसने लगी. बीच मे ही वह उन्हे दाँतों मे दबा लेती और हल्के से काट लेती. मचल कर प्राची ने शोभा का सिर अपनी छाती पर दबा लिया और अपने स्तन उसके मूह मे घुसेड़ने की कोशिश करने लगी. शोभा का हाथ अब भी प्राची की चूत पर था, उसे वह प्यार से सहला रही थी.
प्राची को फिर कामुकता के शिखर पर लाकर शोभा उठ खड़ी हुई. "चल, अब तुझे अपने रस का खजाना दिखाती हूँ. तेरी प्यास बुझाती हूँ, तैयार है ना मेरा सोमरस पीने को?"

प्राची की आँखे चमक रही थी. उसने सिर हिला कर हां कहा. शोभा ने धीरे धीरे अपनी ब्रा और पैंटी उतारी. उसकी वे बड़ी बड़ी चून्चिया प्राची दोपहर को देख चुकी थी फिर भी उन लटके हुए पपीतों को देखकर उसका मन डोलने लगा. और जब शोभा ने पैंटी नीचे की तो जांघों के ऊपर के घने काले रेशमी बालों के त्रिकोण को वह देखती रह गयी. इतनी घनी झान्ट!

"
मेरे बड़े बाल देख रही है ना? अरे मेरी झान्ट बहुत ज़्यादा घनी हैं. पर मुझे अच्छ लगता है इन्हें ऐसा ही रखना. और इनका दीवाना और भी कोई है, मैं बहुत प्यार करती हूँ उससे, उसीके कहने पर मैने इन्हें नही काटा" आकर शोभा सोफे पर बैठ गयी और प्राची को एक बार चूम कर उसे हौले से सोफे के नीचे उतारती हुई बोली "अब बैठ यहाँ मेरे सामने, मेरी
टाँगों के बीच और ताव मार ले मेरे खजाने पर, जितना मान चाहे. जितना देखना है, छूना है, मन भर के सब कर ले. कोई जल्दी नही है. मैं खुद मियाँ मिठ्ठु नही बनती पर मुझे मालूम है कि मेरा खजाना एकदम रसीला और स्वादिष्ट है. टेस्ट करके देख, जितना पीना है पी, खाली नही होगा"
 
प्राची ने धीरे से वे घने बाल अपनी उंगली से बाजू मे किए; शोभा के दो बड़े भगोष्ठ दिखने लगे, साँवले ही रंग के थे, अच्छे चौड़े और मोटे. प्राची ने झुक कर उनका चुंबन लिया. अपनी उंगलियों से उसने चूत खोली, अब अंदर का गुलाबी छेद दिखने लगा. बिलकुल गीला था, उसमे से सफेद चिपचिपा रस निकल रह था. ऊपर के कोने पर अंगूर जितना बड़ा क्लिट था. प्राची
उसे देखती रह गयी, उसे विश्वास नही हो रह था कि इतना बड़ा क्लिट हो सकता है. उसने उसे धीरे से पकड़ा और दबाया. शोभा के बदन मे एक कपकपि सी दौड़ गयी.


"क्लिट देख रही है? पसंद आया?" शोभा ने पूछा.

"कितना बड़ा है शोभा, मेरा तो इतना सा है, दिखता भी नही है"

"आख़िर तेरी शोभा दीदी का है, सब मे अलग, मुझे बहुत सुख देता है. देख क्या रही है, मूह मे ले कर चूस ना" शोभा के कहने पर प्राची ने उस अंगूर को अपने होंठों मे दबाया और चूसने लगी. शोभा कराहकर मस्ती मे आगे पीछे होने लगी. अब उसकी चूत मे से पानी बाहर आना शुरू हो गया था. प्राची ने अब तक कभी चूत नही चूसी थी पर फिर भी ज़रा भी ना रुक कर उसने उस रस मे जीभ लगा दी. उस रस की सौंधी तेज गंध से और खारे कसैले स्वाद ने उसे बेपनाह मस्त कर दिया.

अपने पति का वीर्य उसने कई बार चखा था, यह स्वाद उससे बहुत अलग था. प्राची भूखे की तरह उस रसीले खजाने पर
टूट पड़ी और जीभ से चाटने लगी.

शोभा ने उसे कुछ देर मन मानी करनी दी फिर वा अपनी शिष्य को सिखाने लगी कि चूत कैसे चाटि जाती है. हर तरह के तरीके उसने बताए और प्राची से करवा लिए. प्राची अच्छि स्टूडेंट थी, फटाफट सीख गयी, इतना कि शोभा जैसी घाघ औरत भी पंद्रह मिनिट से ज़्यादा नही टिक सकी और एक हूंकार के साथ स्खलित हो गयी. हान्फते हुए उसने प्राची को आखरी कला सिखाई "रा नि बहुत अच छी चाटति है.. तू.. ओह.. ओह.. अब मेरे होंठ मूह मे ले ले और चूस ... अम्म्म्म ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जैसे आम चूसते हैं"

प्राची ने उसके भगोष्ठ मूह मे भर लिए और चूसने लगी. उसे ऐसा ही लग रहा था जैसे कोई रसीला आम चूस रही है, रस के घून्ट उसके मूह मे जा रहे थे. उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि वह खुद कभी इतना रस नही छोड़ती थी, शोभा की बुर से निकलने वाला रस करीब करीब किसी पुरुष के स्खलन से निकलने वाले वीर्य से भी ज़्यादा मात्रा मे था.पूरा झड़ने के बाद शोभा पाँच मिनिट बैठ कर साँस थमने तक रुकी और फिर प्राची को पलंग पर ले गयी "आ जा रानी, कितना मस्त चूसा मुझे तूने, लगता नही है कि पहली बार कर रही थी. सच बता, कोई यारिन है क्या तेरी?"
 
प्राची ने शरम कर कहा कि स्त्री स्त्री संभोग का यह उसका पहला मौका है.

"अच्छ लगा? या मुझे खुश करने को चूस रही थी?" अपनी बाहों मे प्राची को लेकर बिस्तर पर लेटते हुए शोभा ने पूछा.

"बहुत अच्छ लगा दीदी. कैसा स्वाद है, अजीब सा पर मन को भा जाता है. ऐसा लगता है कि चूसति रहूं. और खूब सारा रस था, मुझे लगा कि औरते इतना रस नही ...." प्राची ने शोभा की बाहों मे अपने आप को समर्पित करते हुए कहा.

"हां, अधिकतर औरते कम रस छोड़ती हैं, बस आधा एक चम्मच पर कई औरते बहुत सारा इज़ाकुलेशन करती हैं. उनमे से मैं भी एक हूँ. अच्छा है ना? मेरे चाहने वालों को मन भर के रस पिला सकती हूँ" और शोभा ने प्राची को कस के भींचा और उसके होंठ चूमने लगी. उसके विशाल भरे पूरे साँवले शरीर पर पड़ी हुई उससे कम कद और आकार की प्राची ऐसी
लगती थी जैसे किसी मा ने अपनी बेटि को आगोश मे लिया हुआ हो.

प्राची झुक कर शोभा का एक निपल मुँह मे लेने की कोशिश करने लगी. उसने अपने दोनो हाथों मे एक चून्चि पकड़ ली थी जैसे कि किसी बड़े नारियल का पानी पीने की कोशिश कर रही हो.

शोभा ने मुस्कराकर कहा "मेरा स्तन पान करने का मूड है तेरा प्राची? ले मैं कराती हूँ तुझे स्तनपान" उसने पलटकर प्राची को नीचे सुलाया और खुद उसपर सो गयी. प्राची का मूह खोल कर उसने उसमे एक घून्डि घुसेड दी और प्राची का सिर अपनी छाती पर भींच कर उसपर वजन देते हुए सो गयी. प्राची की एक टाँग को अपनी जांघों मे क़ैद करके उसपर अपनी बुर रगड़ते हुए वह धक्के मारने लगी जैसे चोद रही हो. उसके वजन से उसके स्तन का अगला भाग प्राची के मूह मे घुस गया. उसका दम सा घुटने लगा पर उसपर ध्यान ना देकर शोभा ने उसे और भींचा और अपना उरोज और उसके मूह मे ठूँसने की कोशिश करते हुए उसने धक्के मारना चालू रखा प्राची को अपना दम घुटता सा लगा पर मूह मे खचाखच भरा स्तन का मुलायम मास भी उसे मदहोश कर रह था. शोभा का यह ज़बरदस्ती का अंदाज भी उसे बहुत प्यारा लगा. आख़िर शोभा बड़ी थी, उसकी दीदी थी, उसे इतना सुख दिया था, और उसको पूरा हक था कि वो जो चाहे जो करे. चुपचाप पड़े
पड़े वह शोभा की चून्चि चूसति रही और उसके धक्के सहन करती रही.
 
शोभा की वासना अब धधक रही थी. उठ कर वह प्राची से बोली. "प्राची चल, अब स्त्रियों का ख़ास आसान करते हैं, सिक्सटी नाइन. मुझे अब नही रह जाता. तू है ऐसी मीठी कि तेरा फिर से रस पीने का मन हो रह है. मेरी खजाने मे भी काफ़ी रस जमा हो गया है लगता है तेरे लिए" प्राची कुछ नही बोली पर उसकी आँखों के भाव से सॉफ था कि कुछ भी करने को वह तैयार है.

अपनी करवट पर उलटि बाजू से लेट कर शोभा ने प्राची की कमर मे हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसकी टाँग उठाकर अपना मूह उनके बीच डाल दिया. खुद उसने अपनी एक टाँग उठायि और प्राची के सिर को अपनी बुर से सटा दिया. प्राची के सिर को अपनी जांघों मे जकाड़कर उसने उसके मूह पर धक्के मारने शुरू कर दिए.

यह आसन प्राची के मन को लुभा गया. उसने सुना बहुत था पर किया कभी नही था. शोभा बड़ी कुशलता से उसके नितंब पकड़कर अपनी जीभ से उसे चोद रही थी और बीच बीच मे अपनी उंगली से उसकी गुदा को टटोल देती थी. प्राची भी मन लगाकर शोभा की चूत चूसने मे लगी थी. उसने अपनी बाहों मे शोभा के भारी भरकम चूतड़ भर लिए थे और उन्हे दबाते हुए पूरे ज़ोर से अपनी सहेली की बुर का पानी पीने मे लगी थी. वह रात कैसे और कब गुज़री, प्राची को समझ मे ही नही आया. वह एक अलग दुनिया मे थी, उत्तेजना और कामना के स्वर्ग मे ऐसी खो गयी थी कि समय का कोई एहसास नही बचा था.


शोभा ने अपनी साथिन का पूरा उपभोग किया. उसे हस्तमैथुन के नये तरीके सिखाए, कैसे दो उंगली से बुर खोदी जाती है, कैसे क्लिट को अंगूठे से रगड़ते हुए जीभ को चम्मच की तरह चूत मे डालकर रस निकाला जाता है आदि आदि. अपनी वासना पूर्ति मे शोभा ने कोई कमी नही होने दी. बराबर अपनी बुर प्राची से चुसवाई. जीभ से पूरी चूत चटवायि और चुदवायि. बीच मे जब शोभा की बुर मे जीभ करते करते प्राची की जीभ दुखने लगी और वह रुक गयी तो शोभा ने उसे नीचे पटककर अपनी जांघें जकाड़कर उसके सिर को पकड़ लिया और ज़बरदस्ती अपनी बुर उसके मूह पर रगड़ने लगी. 

आख़िर रात को जब प्राची पूरी लास्ट हो गयी और सिमटकर सोने की कोशिश करने लगी तो शोभा ने अपना आखरी तीर छोड़ा. उसने निश्चय किया कि प्राची की चूत के रस की बूँद बूँद जबतक वह नही निचोड़ लेती तबतक उसे नही छोड़ेगी.
थकि हुई प्राची को उसने बिस्तर पर सीधा सुलाया और खुद उसपर उलटि बाजू से सो गयी. अपनी बुर उसने प्राची के मूह पर जमाई और खुद झुक कर प्राची की बुर भागोष्ठों समेत अपने मूह मे भर ली. फिर उसे चूसते हुए, प्राची के क्लिट को अपने अंगूठे से रगड़ते हुए वह प्राची के मूह को चोदने लगी
 
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