Kamukta Story पड़ोसन का प्यार - Page 4 - SexBaba
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Kamukta Story पड़ोसन का प्यार

अपनी जांघों के बीच मूह डालकर रस चूसाती अपनी जवान बेटी के बालों को प्रेम से सहलाकार शोभा बोली "अरे पगली, अपने कपड़े तो उतार ! मैं यहाँ सूखी सूखी पड़ी हूँ, मैं क्या करूँ? ज़रा ऐसे आ और सिक्सटी नाइन तो करने दे, मैं तो स्वाद ही भूल गयी अपनी लाडली के शहद का" नेहा के ऐसे उतावलेपन की उसे आदत थी, यह नेहा के मन मे उसके प्रति कितनी वासना और प्रेम है, उसकी निशानी थी इसलिए वह इसका बुरा नही मानती थी, बल्कि उसे नेहा की यह ज़बरदस्ती बहुत अच्छी लगती थी.

"तुम ही निकालो मा, मुझे फुरसत नही है, मैं ये अमृत वेस्ट नही करना चाहती, देखो कितनी तेज़ी से बह रह है अब!" नेहा शोभा की चूत मे से मूह निकाल कर बोली और फिर सिर नीचे करके जुट गयी. वह इतनी अधीरता से शोभा की बुर चाट रही थी कि लॅप लॅप लॅप ऐसी आवाज़ आ रही थी. शोभा ने किसी तरह उसका टॉप और स्कर्ट खींच कर निकाले और फिर उसे ज़बरदस्ती उलटा करके उसकी कमर मे हाथ डालकर उसकी जांघे अपनी ओर खींची. नेहा की मखमली चूत के चुंबन लेने को वह उत्सुक थी. 

असल मे शोभा का बस चलता तो वह हमेशा की तरह नेहा के कपड़े धीरे धीरे निकाल कर उसके मदमस्त यौवन की सुंदरता को देखती और फिर चखती, इतने दिनों के बाद भी नेहा के बदन की सुंदरता उसे पागल सा कर देती थी, पर आज नेहा इतनी गरम थी कि ऐसा करने का समय ही नही था. शोभा ने अपनी लाडली की टांगे अलग करके उस मुलायम चूत का चुंबन लिया और अपने काम मे जुट गयी. उसके बाद दस मिनिट कमरे मे शांति थी, सिवाय चाटने और चूमने की आवाज़े और वासना भारी सिसकारियों और किलकारियों के.


बाद मे वासना शांत होने पर जब नेहा अपनी मा को लिपट कर पड़ी थी तब उसने पूछा "मम्मी, ये तो बताओ कि अचानक प्राची आंटी मे ऐसा बदलाव कैसे हो गया? कैसी रहती थी पहले, अब एकदम सेक्सी लगने लगी है. मैं तो सोच रही हूँ कि क्या मज़ा आएगा उसके साथ दो दिन रहने मे" शोभा समझ गयी कि प्राची के साथ अकेले रहने की कल्पना से ही नेहा के मन मे गुदगुदी होनी शुरू हो गयी है. वह चुप रही, सिर्फ़ मुस्कराती रही "हां, बड़े अचरज की बात है, है ना नेहा? पर चलो अच्छा हुआ, तू हमेशा कहती थी कि कितनी सुंदर है प्राची आंटी, बस ठीक से रहे तो क्या बात है. पर तू करेगी क्या उसके साथ?"

नेहा ने अपने मन की फेंटसी शोभा को बताई "अरे मम्मी, मैं सब कुछ करूँगी, ज़रूर फँसा लूँगी उसे, आख़िर तुम्हारी ही बेटी हूँ. देखना कैसे प्राची मौसी की चूत से रस निकालती हूँ, पूरा निचोड़ दूँगी, मेरे हाथ आए तो एक बार. उसकी बुर का रस ज़रूर मस्त होगा, मुझे मालूम है. और निकलेगा भी खूब, मैं उसे अच्छी लगती हूँ. देखा जब मैने स्कर्ट ऊपर किया था तो कैसे देख रही थी मेरी तरफ? और मम्मी, उसकी वे चून्चिया, मुझे लगता था कि छोटी है पर कैसे तनी हुई थी उसकी कमीज़ मे? उसके निपल भी ज़रूर खूबसूरत होंगे"



शोभा बिना किसी शिकन के आराम से बोली "बात तो सच है, उसके निपल मस्त है, एकदम मूँगफली जैसे लंबे"

नेहा कोहनी के बल उठकर शोभा की ओर ताकती हुई बोली "तुझे क्या मालूम? तुम ऐसे कह रही हो जैसे देखे है. अब ये भी कहोगी कि उसकी चूत का रस भी चखा है"

शोभा उसकी ओर देखकर निर्विकार चहरे से बोली "हां देखे है, देखे ही नही, चूसे भी है मैने वे प्यारे निपल. और तू सच कह रही है, उसकी बुर का रस भी बड़ा टेस्टी है. पिछले कई दिनों से ताव मार रही हूँ उसपर"

नेहा उठकर उत्तेजना से और नकली गुस्से से उसे घूँसे मारने लगी. "मम्मी, कितनी बदमाश हो तुम! मुझे बताया तक नही, अब धीरे से कहती हो कि उसके निपल चूसे है और चूत चाटती है. वैसे मैं समझ गयी थी तुम्हारे तृप्त चेहरे से की ज़रूर मम्मी ने कोई नयी सहेली चुन ली है और मेरे पीछे खूब मज़े किए है. पर वो प्राची आंटी होगी मैने सपने मे भी नही सोचा
था. इतने दिन से उसके बारे मे बात कर रही थी तू, आख़िर तुमने उस बेचारी का शिकार कर ही लिया. बताओ ना ठीक से"
"अरे शिकार किया है पर इस शिकार को अपना शिकार करवाने मे शिकारी से ज़्यादा मज़ा आया, ये नही सोचती तू?" कहकर शोभा ने उसे विस्तार से पूरी कहानी सुनाई. सुनते सुनते नेहा ऐसी गरमाई की उठ कर झट से अलमारी से वह डिल्डो निकाल लाई और एक भाग अपनी बुर मे डालकर स्ट्रैप बाँधकर शोभा पर चढ़ बैठी. शोभा कुछ कहे इसके पहले ही नेहा ने घच्छ से अपनी सौतेली मा की बुर मे डिल्डो गाढ दिया और हचक हचक कर चोदने लगी. शोभा भी उसकी उत्तेजना देखकर चौंक गयी, उससे कहती रह गयी कि ज़रा रुक, दुखता है, आराम से चोद, पर नेहा कहाँ सुनने वाली थी, आज वह इतनी गरमी मे थी कि मा की बात अनसुनी करके वह उसे अपने पूरे ज़ोर से छोड़ती रही और तभी रुकी जब झाड़ गयी. शोभा ने लस्त पड़ी अपनी बेटी का चेहरा पकड़कर उसे चूम कर कहा "अरे क्या कर रही थी? मुझे लगा कि मेरी चूत फाड़ देगी आज, ऐसे चोदते है मा को? मैने क्या सिखाया है कि कैसे चोदते है?"
 
हाँफटे हुए नेहा बोली "मम्मी, तेरे जैसी बदमाश औरत को ऐसे ही चोदना चाहिए. कितनी शैतान है, तब से बतिया रही थी, प्राची के आगे भी ऐसे बैठी थी जैसे कीर्तन चल रहा हो. और वह प्राची मौसी, वो भी कम नही है, कैसे छुपा गयी कि तेरे साथ चार दिन क्या किया. अब देखो क्या हालत बनाती हूँ उसकी नासिक मे, सब नखरा भूल जाएगी"

शोभा को चोद कर नेहा थक गयी थी पर अब भी शांत नही हुई थी. शोभा को जाकड़कर फिर धक्के मारने लगी, पर थके होने की वजह से बेचारी को जम नही रहा था. आख़िर शोभा ने उसे प्यार से अपने नीचे लिया, स्ट्रैप उसकी कमर से खोल कर अपनी कमर मे बाँधे और आधे घंटे तक अपनी बेटी को सधी लय मे ढंग से मन लगाकर चोदा तब जाकर वह लड़की शांत हुई.

कुछ देर से शोभा ने उसके उरोजो की मालिश करते हुए उन्हे चूमते हुए कहा "हो गयी तेरी आग ठंडी? ऐसी कुश्ती और धरपकड़ प्राची मौसी के साथ नही करना नही तो बेचारी घबरा कर भाग लेगी. ज़रा प्यार से, बहुत गरम है वो पर थोड़ा शरमाती है. नयी नयी है ना अभी"

प्राची से रति का सपना देखती नेहा बोली "हां हां मम्मी, मालूम है, मैं कोई इतनी अनाड़ी नही हूँ. ये डिल्डो ले जाऊं क्या साथ मे? उसे भी अच्छा लगता है ना? आख़िर बेचारी को अब तक सिर्फ़ लंड से ही चुदने की आदत थी, अब नकली लंड ही सही"

शोभा अपनी बुर से डिल्डो निकालते हुई बोली "नही मेरी रानी, उसके साथ शुद्ध औरत औरत वाला प्यार करो, तू उसमे भी बहुत माहिर है, तुझ पर मर मिटेगी देखना. लंड का बाद मे देखेंगे. नकली क्यों, मैं उसे एक सच का अच्छा जवान लंड दिला दूँगी"

नेहा हँसने लगी. शोभा की चून्चि दबाकर बोली "मम्मी सच मे बड़ी हरामन हो तुम, मुझे पता चल गया किस लंड की बात कर रही हो. ऐसा दिमाग़ सिर्फ़ तेरा ही चल सकता है. पर यह बता, वो छोकरा दर्शन यहाँ रहेगा दो रात. उसके साथ क्या करने वाली हो तुम? मुझे लगता है कि कच्चा ही चबा जाओगी उसे. मुझे बेचारे पर तरस आता है. उसे पता नही है कि किस शेरनी के चंगुल मे फँस गया है वह बेचारा लड़का"

शोभा मुस्कराती हुए बोली "चल, कुछ अनाप शनाप मत बोल. वह सच मे बड़ा प्यारा चिकना लड़का है. मैं मन लगाकर उसे चखना चाहती हूँ, स्वाद ले ले कर"

"हां जैसे शेरनी खाती है हिरण के बच्चे को तड़पा तड़पा कर" नेहा फिर हँसने लगी.

"चल बदमाश, कुछ भी बोलती है. कोई इतना सीधा सादा हिरण का बच्चा भी नही है वो. मालूम है कि मैने परसों जब अपने मम्मे उसे अनजाने मे आधे खोल कर दिखाए तो क्या हालत हो गयी थी उसकी. इन लड़कों को औरतों की चून्चियो मे इतना इंटरेस्ट क्यों होता है भगवान जाने. पर मेरे लिए अच्छा है, मेरे मम्मों का इतना दीवाना है वो कि मेरे एक इशारे पर
मेरे कदमों मे लोट जाएगा वह बच्चा."


नेहा डिल्डो चाट रही थी. यह उसका प्रिय कार्यक्रम था. उसे बाहों मे लेकर शोभा बोली "नेहा बेटी, तू जानती है कि मुझे तो बस तेरे जैसी लड़किया और प्राची जैसी औरते ही पसंद है. मेरी मर्दों मे ज़्यादा दिलचस्पी नही है. कभी कभी स्वाद बदलने को ठीक है, पर दर्शन की बात और है. कितना प्यारा है, लगता नही है कि इंजिनियरिंग कर रह है, लगता है स्कूल मे है.
उसके उस मीठे कमसिन लंड का स्वाद मैं ज़रूर लूँगी. बहुत दिन हो गये किसी लंड को अपनी बुर मे लिए. जैसे तू प्राची आंटी के बारे मे कह रही थी, वैसे ही मैं उस छोकरे को पूरा निचोड़ कर हजम कर जाऊंगी. दो दिन मे देखना क्या हालत करती हूँ उसकी. पर प्यार से करूँगी जो भी करूँगी."



"मम्मी, उसके बाद? जब हम वापस आएँगे तब? हम सब साथ साथ है ... पिक्चर बनाने का इरादा है क्या? याने प्राची मौसी और दर्शन भी हमारे साथ? लंड की प्यासी उस भारतीय नारी की प्यासी चूत की प्यास शांत करेगा उसके प्यारे बेटे का लंड? मज़ा आ जाएगा मम्मी" बड़े उत्साह से उठ कर नेहा बोली.


शोभा ने उसे ज़बरदस्ती खींच कर सुला दिया "बहुत पाटर पाटर हो गयी तेरी, अब सो जा. एक बज गया. कल तुझे नासिक जाना है और कल रात भी जगाना है. ज़रा आराम कर, नही तो एन्जाय नही कर पाएगी" मा बेटी आने वाले रंगी कल के सपने देखते हुए एक दूसरी की बाहों मे सो गयी.
कंटिन्यूड…
भाग
2 समाप्त
 
पड़ोसन का प्यार – भाग 3
(लेखक – कथा प्रेमी)


रविवार दोपहर को प्राची और नेहा नासिक के लिए रवाना हुई. घर से निकलते समय नेहा ने एक आत्मीयता का अधिकार जताते हुए प्राची का हाथ पकड़कर रखा तो प्राची को बहुत अच्छ लगा. 'बड़ी स्मार्ट और अग्ग्रेसिव लड़की है, क्या करेगी आज रात क्या पता' उसके मन मे आया और वह रोमांचित हो गयी. 

शोभा ने सोसाइटी के गेट तक जाकर उन्हे विदा किया और फिर घर पर आकर दर्शन की राह देखने लगी. उसे भी एक अजीब बेचैनी और उत्तेजना हो रही थी. बहुत दिन के बाद उसे मौका मिला था कि किसी जवान छोकरे को फँसाए और उसका उपभोग ले. ऐसा उसने बस एक बार और किया था, बीस साल पहले, अपनी मौसी के लड़के के साथ. उन मीठी यादों मे वह खो गयी.


दर्शन प्राइवेट क्लास से वापस आया. बेल बजाकर जब वो शोभा के घर मे आया तो बहुत शरमाया हुआ था पर काफ़ी खुश
दिख रहा था. शोभा ने उसे चाय बना दी और कॉलेज के बारे मे पुछा. उसने बताया कि तीन दिन कॉलेज मे छुट्टि है इसलिए घर पर ही पढ़ाई करनी पड़ेगी. वह शोभा से ज़्यादा देर आँखे नही मिला पा रहा था. 

शोभा खुश थी 'बच्चे, मन मे चोर है तेरे, मुझसे इसी लिए आँख नही मिलाता' उसने सोचा. 'तीन दिन छुट्टि है याने यही रहेगा मेरे चंगुल मे'

दर्शन ने पुछा "आंटी, मैं पढ़ाई करने अपने घर जाउ? याने आप को यहाँ फालतू मे तकलीफ़ ...."

"तकलीफ़ वकलीफ़ कुछ नही, यही रहो, अपनी किताबे ले आ, नही तो मैं समझूंगी कि शोभा मौसी को तू पराया समझता है"
शोभा ने प्रेम की मीठी डान्ट लगाई. 

दर्शन मान गया, चाहता वह भी यही थी. जाकर किताबे ले आया. शोभा ने उसे स्पेर बेडरूम दे दिया, जो असल मे नेहा के डॅडी का था. 'तीन दिन मेरे साथ है मेरे बच्चे, देख क्या हाल करती हूँ, आज किसी भी हालत मे शुरुआत करनी ही पड़ेगी, आज की रात बेकार नही जानी चाहिए" वह सोच रही थी. शोभा उसे अब चुप चाप नज़र बचाकर घूर रही थी और उसकी
उस किशोर जवानी का अंदाज़ा ले रही थी. 'कितना प्यारा लड़का है, एकदम गोरा और चिकना, अब तक दाढ़ी मूँछ भी उगना नही शुरू हुई. इसे चबा चबा कर खाने मे वो मज़ा आएगा, जैसे अध पके अमरूद को खाने मे आता है' उसने सोचा. उसकी चूत गीली होनी शुरू हो गयी थी.

दर्शन कुछ देर के लिए बाहर घूमने आया, अपने दोस्तों से मिल कर आता हूँ, कहकर. शाम को वापस आया. नहा कर वह
पढ़ाई करने बैठ गया. शोभा ने उसे कहा कि आराम से पढ़ाई कर ले, वह बस नहा कर आती है और फिर खाना बनाती है.
दस मिनिट बाद शोभा ने उसे आवाज़ दी "दर्शन बेटे, देख, मैं फिर अपना गाउन भूल गयी, ज़रा ला दे ना प्लीज़! मेरे बेडरूम मे जो अलमारी है उसके बीच वाले शेल्फ पर होगा, हल्के सफेद रंग का होगा देखना"
 
ऐसा घर पर अक्सर होता था जब दर्शन या प्राची टवल भूल जाते थे तो एक दूसरे को कहते थे. इसलिए उसे इस बात मे कुछ ख़ास नही लगा. "अभी देता हूँ मौसी' कहकर वह उठकर शोभा के कमरे मे गया और अलमारी खोली. बीच के शेल्फ पर एक पतला पारदर्शक सफेद गाउन रखा था. देख कर उसे रोमाच हो आया. शोभा मौसी यह पहनेगी! इसमे से तो सब दिखता है! वह यह सोच ही रहा था तभी उसकी नज़र बाजू मे रखे शोभा के अंतर्वस्त्रों (अनडरवेर्ज़) पर गयी. ब्रेसियार और पैंटी की पाँच छः जोड़ियाँ पड़ी थी, काली सफेद, स्किन कलर की, नाइलॉन और पतले अच्छे कॉटन की एकदम बारीक कपड़े की लेस लगी हुई. दर्शन को ऐसा लग रहा था जैसा अली बाबा को खजाना देखने पर लगा होगा.


उसने कुछ ब्रा और पैंटी उठायी और नाक के पास लाकर उन्हे सूँघा. सेंट के साथ साथ उनमे शोभा के बदन की भी खुशबू थी. दर्शन का लंड खड़ा होने लगा. किसी तरह उसने अपने आप को संभाला. उसका मन तो यही हो रहा था कि एक दो
साथ मे ले जाए, रात के लिए पर शोभा मौसी को ज़रूर पता चल जाएगा. किसी तरह मन मारकर उसने उन्हे नीचे रखा. तभी उसकी नज़र उसी शेल्फ मे पीछे छुपाकर रखी एक मॅगज़ीन पर गयी. मॅगज़ीन पर पतले कागज का कवर था पर उसमे से आपस मे चूमा-चाटि करती दो नंगी औरतों की तस्वीर दिखी थी. एक क्षण का भी विचार ना करके उसने वह मॅगज़ीन उठा ली और अलमारी लगा दी.


जल्दी से अपने कमरे मे उसने मॅगज़ीन छिपाई और बाथरूम पर गया. ज़रा सा दरवाजा खुला था जिसमे से शोभा की बाँह निकली हुई थी. शोभा के हाथ मे उसने गाउन दिया. शोभा ने बड़े मीठे अंदाज मे "थॅंक यू" कहा और बाँह अंदर खींच ली.
दरवाजा वैसा ही ज़रा सा खुला रहा. पर दर्शन भाग कर "नो प्राब्लम आंटी" कहकर अपने कमरे मे आ गया. शोभा की मासल चिकनी बाँह को वह बार बार याद कर रहा था. 'क्या मस्त है मौसी का कंपेक्स्षन, सांवला है पर एकदम चिकना. जब उसने हाथ बाहर निकाला, तब मौसी ज़रूर नंगी होगी. कैसी लगती होगी शोभा मौसी, नंगी अवस्था मे? अगर मैं अंदर
घुस जाता तो मौसी क्या करती? चिल्लाति और डान्टति? या मुझे बाहों मे ले लेती, आख़िर मुझे हमेशा कैसे प्यार की नज़र से देखती है! उसने बाथरूम का दरवाजा भी बाद मे अंदर से बंद नही किया, बस उधका लिया था. कही ये इशारा तो नही था मेरे लिए अंदर आने का? और मैं मूरख जैसा वहाँ से भाग आया"

बेचारे दर्शन की यह सोच कर हालत खराब हो गयी, कुछ समझ मे नही आ रहा था. हां, वह बहुत उत्तेजित था, उसका लंड
अब शोभा की उस नंगी बाँह को याद करके खड़ा हो गया था. उसने अपने बेडरूम का दरवाजा लगाया और फिर वह मॅगज़ीन
देखने लगा. पढ़ाई तो अब होने से रही. दो मिनिट मे उसका लंड ऐसा खड़ा हो गया कि उसे लगने लगा कि अगर उसने मुठ्ठ नही मारी तो झाड़ जाएगा. मॅगज़ीन के अंदर सब लेस्बियान रति क्रीड़ा के चित्र थे.
 
उधर शोभा गाउन पहनकर अपने कमरे मे आई. अंदर उसने जान बूझकर काली ब्रा और पैंटी पहनी थी. साँवले रंग के
कारण वा इन्हें कम ही पहनती थी पर आज सफेद गाउन मे से वे उठ कर दिखे इसलिए जान बूझकर उसने उन्हे चुना था.नेहा को भी यह काम्बिनेशन बहुत अच्छ लगता था. गाउन के उपर के दो हुक उसने जानबूझकर खुले छोड़ दिए थे. 'दर्शन बड़ा भोला है' उसने सोचा 'मेरे इशारे को नही समझा, मैने गाउन लाने को कहा और फिर दरवाजा भी अंदर से नही बंद किया. बेचारा छोटा है, घबराता है, मुझे ही पहल करनी पड़ेगी आज रात. वैसे और मज़ा आएगा, ऐसे शर्मीले नौजवानों की आसक्ति भी ज़्यादा होती है'


जब उसने अपनी अलमारी खोली तो मुस्कराने लगी. उसके फैलाए जाल ने अपना काम बराबर किया था, पंछी फँस गया था. ब्रा और पैंटी का क्रम बदल गया था. "दर्शन बेटे, मेरी ब्रा और पैंटी से खेल लिया तूने लगता है आधे मिनिट मे, चिंता मत कर, खिलाउन्गि तो मैं तुझे आज रात को"

फिर शोभा ने देखा तो मॅगज़ीन गायब थी. उसे हँसी आ गयी. 'आख़िर बच्चे ने ढुन्ढ ही ली' उसने सोचा "मैने बड़ी सावधानी से छिपाई थी, एकदम अंदर भी नही और खुले मे भी नही. इसका मतलब है मेरी अलमारी मे सब देख रहा था, अपनी शोभा मौसी मे बहुत इंटेरेस्ट है बेचारे को. अच्छ है, आज उसे खुश कर दूँगी, अपना गुलाम बना लूँगी.' उसे याद आया कि नेहा क्या बोली थी 'मम्मी, तुम्हारे आगे बेचारा क्या टिकगा, शेरनी खरगोश के बच्चे का शिकार करे ये तो ऐसा ही हुआ'

उसे मालूम था कि दर्शन अब वह मॅगज़ीन देख रहा होगा. "मुठ्ठ ना मार ले वह लड़का, नही तो मज़ा नही आएगा" सोच
कर उसने दर्शन के बेडरूम का दरवाजा ख़टखटाकर उसे आवाज़ दी. उसकी कल्पना सही थी, दर्शन अपना लंड हाथ मे लेकर मॅगज़ीन के पन्ने पलट रहा था. शोभा की आवाज़ सुनकर बेचारे ने मॅगज़ीन छिपाई और किसी तरह अपने लंड को दबा कर
बैठाकर बाहर आया.

"अरे चावल ख़तम हो गया है, वहाँ उपर रखा है, ज़रा निकाल दे ना, मैं अब स्टूल पर नही चढ़ती बाबा, परसों गिरते
गिरते बची थी, तब नेहा ने कसम दी थी की मैं उपर नही चढ़ूंगी." उसने दर्शन को कहा.

दर्शन ने स्टूल पर चढ़ कर चावल का डिब्बा निकाल दिया. बाल बाल बचा, वह सोच रहा था. दो मिनिट और बाद मौसी बुलाती तो मैं मुठ्ठ मार रहा होता. उपर स्टूल पर से उसे शोभा के उपर से खुले गाउन मे से उसके स्तन दिख रहे थे. नज़र बचा कर किसी तरह वह कमरे मे वापस आया. कान को हाथ लगाकर खुद से बोला कि अब रात को ही मॅगज़ीन निकालेगा.
 
एक घन्टे के बाद शोभा ने उसे आवाज़ दी कि खाना तैयार है. दो बार बुलाने पर भी जब वह नही आया तो वह उसके कमरे का दरवाजा धकेल कर अंदर चली आई. बेचारे दर्शन की हालत खराब थी. मॅगज़ीन अंदर रखने के बावजूद उसे बार बार शोभा मौसी के गाउन मे से दिखती उसकी ब्रा और पैंटी याद आ रहे थे. वैसे ही स्टूल पर चढ़कर उपर से क्या व्यू देखा था मौसी के मम्मों का! उसका लंड पाजामे मे तंबू बनाता हुआ फिर कस कर खड़ा हो गया था. इसलिए शोभा ने आवाज़ दी तो वह तंबू को दबाने की कोशिश कर रहा था. शोभा को अंदर आया देखकर बेचारा कुर्सी पर से उठ कर खड़ा भी ना हो सका, मौसी को तंबू दिख जाएगा तो? "मौसी मैं आया, तुम चलो, ये एक चप्टर पूरा कर लूँ" किसी तरह शोभा को वहाँ से भगाने को वह बोला.


शोभा कमर पर हाथ रख कर खड़ी रही "कुछ नही, मैं नही सुनूँगी, चल मेरे साथ, कब से आवाज़ दे रही हूँ, इतनी क्या पढ़ाई करता है की खाने पीने की भी फुरसत नही है!" दर्शन की हालत देख कर उसे बड़ा मज़ा आ रहा था. 

बेचारे दर्शन ने किसी तरह से कुरते से अपने पाजामे के उभार को ढका और शोभा के साथ बाहर आया. शोभा मूह दबा कर हंस रही थी, दर्शन थोड़ा तिरछा चल कर किसी तरह अपने लंड के उभार को छिपाने की कोशिश कर रहा था. 

उसकी इस हालत को देख कर जहाँ शोभा को मज़ा आ रहा था वही वह भी काफ़ी उत्तेजित हो गयी थी. मेरे कारण इस बालक की यह हालत है, यह सोच कर उसे अपने मादक बदन पर बड़ा गर्व हो रहा था. शोभा की काली ब्रा और पैंटी अब उस सफेद गाउन मे आँख मिचौली खेल रहे थे. वह ज़रा भी हिलती डुलति तो उसके उन्मत्त उरोज गाउन के उपर के खुले हुक के कारण मानों आधे बाहर निकल आने को करते. उसका इस रूप की आँच उस कमसिन युवक को सहन नही हो रही थी.


शोभा डिनर टेबल पर उसके बाजू मे बैठी थी. बार बार उसे आग्रह करके खुद परोसती. परोसते समय जब वह हाथ लंबेकरके थोड़ा झुकती तो उसके विशाल स्तन लटक कर आधे गाउन मे से बाहर आ जाते. 

दर्शन बेचारा गर्दन झुकाए खाना खा रहा था. हां नही मे जवाब दे रहा था. शोभा जान बूझकर उससे उसकी गर्ल फ्रेंड्स के बारे मे पुछ रही थी. उसके जवाब देते समय दर्शन उसकी ओर देखता तो शोभा की आँखों मे दिखते कामुक आमन्त्रण से वह बेचारा और परेशान हो जाता. किसी तरह खाना ख़तम करके दर्शन वहाँ से भागा. जाते जाते भी उसके पाजामे मे से उसके खड़े लंड का उभार दिख रहा था.

शोभा ने समझ लिया कि अब ज़्यादा देर रुकना ठीक नही है. शोभा के मादक लावण्य का मारा वह छोकरा जाते ही क्या करेगा यह उसे मालूम था. उसे इस तरह ज़्यादा तरसाना भी ठीक नही है. उसने जल्दी जल्दी टेबल सॉफ किया और हाथ धोकर सब दरवाजे और खिड़कियाँ बंद की. फिर लाइट बुझाकर दर्शन के बेडरूम का दरवाजा बिना खटखटाये वह सीधे अंदर घुस गयी.
 
दर्शन बिस्तर पर बैठकर पीछे सिरहाने से टिक कर मॅगज़ीन देख रहा था. उसने कमर तक चादर ओढ़ रखी थी. उसका एक हाथ मॅगज़ीन पकड़े था और एक चादर के नीचे ज़ोर से चल रहा था. शोभा को देखते ही वह हड़बड़ा गया और अपना हाथ रोक कर उसकी ओर देखने लगा. उसका चेहरा लाल हो गया और मॅगज़ीन उसके हाथ से नीचे गिर पड़ी. जल्दी जल्दी मे
वह अंदर से लच लगाना भी भूल गया था.


शोभा ने अंदर आकर दरवाजे की सिटकनि लगाई और फिर धीरे धीरे चल कर उसके पास आई. उसके चेहरे पर मंद मंद
मुस्कान थी. पास आकर उसने चादर खींच कर हटा दी.

दर्शन हाथ मे लंड लेकर बुत सा बैठा था. कस के खड़े उस गोरे गोरे जवान शिश्न को देखकर उसके मूह मे पानी भर आया. दर्शन की आँखों मे आँखे डालकर उसने अपने गाउन के हुक खोले और उसे निकाल कर नीचे डाल दिया. सिर्फ़ काली ब्रा और पैंटी मे सजे उसके मासल जिस्म को देखकर दर्शन की आँखे चौड़ी हो गयी. कसी ब्रा मे तन कर खड़ी चूंचियाँ देखकर उसकी साँस और ज़ोर से चलने लगी. मौसी मुझे डान्टने नही बल्कि अपने आगोश मे लेकर कामवासना के स्वर्ग मे ले जाने आई है यह समझ मे आते ही उसके आनंद का ठिकाना ना रहा. उसे समझ मे नही आ रहा था कि वह अब क्या करे, मौसी क्या करवाना चाहती है उससे.

शोभा ने दर्शन की मुश्किल हल कर दी, वह बिस्तर पर चढ़कर उसके पास बैठ गयी और दर्शन को बाहों मे भर कर उसका एक चुंबन लिया.

दर्शन का यह पहला किस था, और वह भी उसकी मा से बड़ी, उसके रंगीन सपनों की मदमस्त नायिका शोभा आंटी का.

शोभा ने दर्शन का हाथ लंड पर से हटाया और खुद उस थरथराते लंड को अपनी मुठ्ठी मे पकड़ लिया "क्यों रे लड़के, शाम से ये हालत है ना तेरी? और मेरी अलमारी मे ढुन्ढ कर क्या क्या देखा तूने? मेरी ब्रा और पैंटी को भी हाथ लगाया ना?"


दर्शन चुप था, उसे समझ मे नही आया क्या कहे, सफाई दे या मान ले; वह शरमा भी रहा था और बहुत उत्तेजित भी था. शोभा ने फिर उसके होंठों का चुम्मा लिया और लंड को हथेली मे दबाते हुए बोली "हमेशा तू कैसी नज़रों से मेरी ओर देखता है, क्या मुझे मालूम नही है? अगर मौसी इतनी अच्छि लगती है तो पहले क्यों नही बोला? आज तो मैने तुझे इतने चांस दिए, बाथरूम मे घुस कर मेरे साथ नहाने का कितना अच्छ मौका गवा दिया तूने! बड़ा बुज दिल निकला रे तू" वह प्यार से बोली.


दर्शन अब तक लज्जा से चूर चूर हो गया था. बोला "शोभा आंटी, तुम ... मेरा मतलब है आप मुझे बहुत अच्छि लगती है. रात को सोते समय भी बस आपका ही रूप मेरी आँखों के सामने होता है"

"मुझे तुम कहो, आप नही, अब तो तू मेरा लाड़ला हो गया है ना! तो मैं तेरी आँखों के सामने होती हूँ सोते समय! और जब तू ये करता है जो अभी कर रहा था .." उसके लंड को हिलाते हुए वह बोली " .. वह भी मुझे याद करके करता है! हाउ स्वीट!"
 
दर्शन कुछ नही बोला, आख़िर मौसी ने पहचान ही लिया था तो अब क्या ज़रूरत थी. अब तक उसकी शरम काफ़ी कम हो गयी थी. उसने खुद ही शोभा के होंठों पर अपने होंठ रखे और ज़ोर से चूमने लगा. शोभा के होंठ चुसते हुए उसने अपना हाथ
शोभा की ब्रा के एक कप पर रखा और दबाने लगा. हाथ मे वह बड़ा मुलायम मम्मा उसे स्पंज के बड़े गोले सा लग रहा था, उसे दबाते हुए अनजाने मे वह अपनी कमर हिला कर शोभा की मुठ्ठी मे पकड़े हुए लंड को उपर नीचे करने लगा. लंड मे होती मीठी कसक अब उसे सही नही जा रही थी.

शोभा ने दर्शन का लंड छोड़ा और उसकी ओर पीठ करके बैठ गयी. "दर्शन बेटे, ज़रा हुक निकाल दे, टाइट है. कब से ये ब्रा
पहने हुए हूँ, रात को मैं निकाल देती हूँ" दर्शन ने हुक खोले. उस नौसिखिए लड़के को थोड़ा समय लगा, पहली बार थी, उपर से ब्रा सच मे टाइट थी, हुक पकड़ाई मे नही आ रहे थे. शोभा को मज़ा आ रहा था. "अरे मेरे भोन्दु बच्चे, कैसा होगा रे तेरा
आगे, ब्रा निकालना तो पहला कदम है, सबसे आसान, आगे के काम कैसे करेगा"


किसी तरह दर्शन ने हुक खोले. फिर से उसकी ओर मूह करके शोभा ने हाथ उपर करके ब्रा निकाली. हाथ उपर होने से उसके स्तन तन कर आगे आ गये थे. उन मास के बड़े बड़े गोलों और उनके उपर के निपलों को देखकर दर्शन की साँस तेज हो गयी. 'इतने मस्त मम्मे है मौसी के, चूसने मे क्या मज़ा आएगा! लगता है चबा कर खा जाउ'


दर्शन के मन की बात भाँप कर शोभा ने मुस्करा कर पूछा "अच्छे लगे मौसी के मम्मे तुझे बेटे? चुसेगा? चूस ना, ऐसे
क्या आँखे फाड़ कर देख रहा है" और प्यार से दर्शन को पास खींच कर उसका सिर अपनी छातियों पर दबा लिया. दर्शन ने एक निपल मुँह मे लिया और आँखे बंद करके चूसने लगा. बहुत सुख था इस स्तन पान मे; दर्शन भूल चुका था कि बचपन मे वह अपनी मा के स्तनों का कितना आदि था और तीन साल का होने तक उन्हे चुसता था. पर उसके सबकान्शस मे ज़रूर वह अनुभव था, इसलिए शोभा के स्तन की घुन्डि चुसते हुए वह एक अलग दुनिया मे पहुँच गया था.


शोभा अब भी दर्शन का लंड पकड़कर दबा रही थी, उसके कसे सुडौल आकार का मज़ा ले रही थी. अचानक दर्शन का लंड
उछलने लगा. वह समझ गयी कि लड़का झड़ने की कगार पर है. उसने दर्शन का सिर अपने स्तन से हटाया और झुक कर लंड पूरा मूह मे भरकर चूसने लगी. बरसों हो गये थे उसे ऐसे किसी खूबसूरत जवान लंड का स्वाद लिए. 

"ओह ओह आंटी & ... प्लीज़...ओह & मा & " कहते हुए दर्शन ने उसका सिर कस के अपने पेट पर दबा लिया और उपर नीचे होता हुआ शोभा का मूह चोदने की कोशिश करने लगा. अगले ही क्षण गरम वीर्य की फुहार शोभाके मूह मे छुटने लगी
 
पूरा वीर्य चूस कर ही शोभा ने लंड मूह से निकाला. 'क्या मलाई थी, जवानी का असली स्वाद उसमे था.' वह सोच रही थी. हान्फते हुए लास्ट पड़े दर्शन को उसने फिर बाहों मे लिया और अपना निपल उसके मूह मे दे दिया. "ले अब आराम से चूस. इतना गरम हो गया तू अपनी मौसी के आगोश मे? इतनी अच्छि लगी मैं तुझे मेरे बच्चे? और क्यों रे नटखट? बीच मे ओह मा & क्या बोल रहा था? मा की याद कैसे आ गयी तुझे बीच मे, वह भी ऐसे वक्त? वैसे तेरी मा सच मे बहुत सुंदर है"


मूह मे ठूँसे स्तन के कारण दर्शन कुछ बोल तो नही पाया, बस आँखे बंद करके चूंची चुसता रहा. 'क्या चुसती है मौसी, मुझे सीधा स्वर्ग पहुँचा दिया. पर ऐसे क्या कह रही थी मा के बारे मे.' सोचते हुए उसने नज़र उठाकर शोभा की ओर देखा. उसकी नज़र मे इतनी क्रितग्यता और समर्पण का भाव भरा था कि शोभा ने मचल कर उसे और कस के अपनी बाहों मे
भींच लिया मानों पीस डालेगी. शोभा की चूत अब इतनी गीली हो गयी थी कि टपकने को आ गयी थी. इस लड़के से अब अपनी सेवा कराउन्गि ऐसा वह सोच रही थी. उसके पहले दर्शन को फिर मस्त करना ज़रूरी था. उसने मॅगज़ीन उठाई और पीछे सिरहाने से टिक कर बैठ गयी "आ बेटे, मैने भी बहुत दिन से ये देखी नही है, चलो दोनो मिल कर देखते है"

मॅगज़ीन देखते देखते शोभा ने दर्शन के मुरझाए लंड को प्यार से हथेली मे पकड़ रखा था. जल्द ही उसकी हथेली मे पड़ा शिश्न सिर उठाने लगा. शोभा से अब रहा नही जा रहा था. उसने दर्शन को पन्ने पलटने को कहा और खुद अपने दूसरे हाथ की एक उंगली अपनी चूत मे डालकर हौले हौले हस्तमैंतुन करने लगी 'इतनी गीली है, जल्द इसका कुछ कर मेरे बच्चे. पर खुद ही कर, मैं नही ज़बरदस्ती करूँगी, उसमे क्या मज़ा है' उसने सोचा.

रति मे मग्न उन सुंदर स्त्रियों के चित्र देख कर दर्शन फिर से मस्ती मे आ गया था. एक क्लोज़प चित्र मे दिखती गुलाबी रसीली बुर और उसमे जीभ डालकर चाटति एक युवती को देखकर उससे नही रहा गया. "मौसी, क्या मज़ा ले रही है यह औरत. कितनी प्यारी है यह चू ... मेरा मतलब है ....."

"अरे बोल ना, क्या कहते है, शरमाता क्यों है" शोभा ने उसे उकसाया.

"चूत आंटी. बहुत अच्छि दिख रही है"

"तूने नही देखी क्या अब तक? अपनी गर्ल फ्रेंड की?" शोभा ने पूछा.

दर्शन ने सिर हिलाकर ना कहा. शोभा उसके गाल को चूमते हुए बोली. "मेरी देखेगा? बोल? पास से, बिल्कुल बालकनी सीट से. बहुत रस निकलता है इसमे से, मेरी उंगली देख" और उसने बुर से अपनी उंगली निकालकर दर्शन को दिखाई. उसपर सफेद शहद जैसा गाढ़ा रस लगा था. दर्शन उसे बड़े ध्यान से देख रहा था.
 
शोभा साँस रोके देख रही थी कि यह कमसिन युवक अब क्या करता है.

दर्शन ने उंगली को सूँघा और फिर मूह मे लेकर चूसने लगा. शोभा का दिल खिल उठ. 'इसे कहते है रसिक बालक! ज़रा भी नही हिचकिचाया पठ्ठा. लड़का हीरा है हीरा' "अच्छ लगा बेटे? और दूं?"

गर्दन दुलाकर दर्शन ने हां कहा. वह उंगली मूह से निकालने को ही तैयार नही था. शोभा ने तकिया नीचे रखा और उसे अपने चुतडो के नीचे रख कर लेट गयी "ले, मैने खजाना ही खोल दिया है तेरे लिए. अब तुझे जो करना है कर, उसे
देख, छू, चाट, चूस .. कुछ भी कर, मैं कुछ नही बोलूँगी. ये सिर्फ़ तेरे लिए है."

दर्शन लपक कर शोभा की जांघों के बीच झुक गया. पास से उस रसीली बुर का नज़ारा देखा. "मौसी ये बड़ा लाल अंगूर सा क्या है उपर की ओर? उस मॅगज़ीन मे नही है ऐसा" उसने हैरान हो कर पूछा.


"वह मेरा क्लिट है बेटे, मेरा ज़रा बड़ा है. सबका होता है पर ज़रा सा, अनार के दाने से छोटा इसलिए नही दिखता. तुझे सब
बताउन्गि, पहले तू मन भर के सब देख ले" शोभा ने उसके रेशमी बालों मे उंगलियाँ चलाते हुए प्यार से कहा.


दर्शन ने बाल बाजू मे करके एक उंगली डरते डरते अंदर डाली जैसे शेरनी के मूह मे डाल रहा हो, काटती तो नही है! उस
मखमली बुर के गीले तपते स्पर्ष से उसका हौसला और बढ़ गया. उसने दो उंगलियों से बुर खोली और अंदर देखने लगा.
'आंटी की बुर किसी मायने मे उस मॅगज़ीन वाली बुर से कम नही है, कितनी गुलाबी और गीली है! लगता है मूह मे भर लूँ और खा जाउ' उसके मन मे आया. अब तक वह अपनी शरम पूरी तरह से खो चुका था. नीचे झुक कर उसने जीभ निकाली और बुर को चाटने लगा.

दर्शन की जीभ चूत पर लगते ही शोभा ने राहत और सुख की साँस छोड़ी. 'इसे बोलना नही पड़ा, खुद ही मन लगाकर कितने
प्यार से चाट रहा है. बेचारा नौसीखिया है, सिखाना पड़ेगा पर इसी मे तो असली मज़ा है'

"बहुत अच्छ कर रहा है दर्शन बेटे, ऐसे ही चाट, ज़रा अपनी जीभ पूरी लगा, ऐसे सिर्फ़ नोक से मत चाट. पूरी जीभ से रगड़ कर
उपर से नीचे तक चला. ओह ओह हाईई बस ऐसे ही मेरे बच्चे. अब बीच बीच मे वो जो उपर लाल लाल अंगूर है ना, मेरा क्लिट, उसे चाट लिया कर प्यार से. यही तो सारे फ़साद की जड़ है बेटे, ये तेरी मौसी का जितना रसीलापन है, जितनी मस्ती है मेरे बदन मे, सब इस बदमाश की वजह से है. इसे खुश रखेगा तो बहुत मीठ फल पाएगा. चल, उसे छूना ज़रा, और चाहे तो जीभ मेरी बुर के अंदर घुसा सकता है बेटे. हां अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ऐसे ही. अब ऐसा कर ..."
शोभा अपने शागिर्द को सिखाने लगी. 

दर्शन ने अचानक उसके भगोष्ठ अपने मूह मे भर लिए और चुसते हुए उन्हे दाँतों से हल्के हल्के चबाने लगा, बिना सिखाए. शोभा मस्ती से सिसकारियाँ भरने लगी. "कितने प्यार से कर रहा है, मन से नये नये तरीके ढुन्ढ रहा है मेरी बुर की पूजा के.' इस विचार से कि इस चिकने किशोर को उसकी चूत इतनी प्यारी लगी कि वह अब उसे मूह मे लेकर खा जाने की कोशिश कर रहा है, शोभा का मन खुशी से भर उठ. 'है ही मेरी बुर इतनी रसीली, हज़ारों मे एक है' उसने गर्व से सोचा. दर्शन के सिर को अपनी बुर पर दबा कर वह अब हौले हौले धक्के मारने लगी. 'अभी इसे कटोरि भर रस पिलाती हूँ, कैसा बहकेगा देखना' अचानक उसके दिमाग़ मे यह बात आई कि उधर नासिक मे क्या हो रहा होगा! वह अपनी लाडली बेटि के कामुक स्वाभाव को अच्छि तरह से पहचानती थी. "अभी वो बदमाश लड़की इस बच्चे की
मा का रस निचोड़ रही होगी" उसके मन मे शैतानी भरा ख़याल आया.
कंटिन्यूड…
- भाग 3 समाप्त –
 
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