hotaks444
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गतान्क से आगे..
वो शत्रुजीत के दाए कंधे के उपर सर रखे उसकी गर्दन मे मुँह छिपाये पड़ी
थी.उसने अपना मुँह उपर उठाया & अपने प्रेमी के होंठो को चूमा & फिर उसके
सीने पे सर रख के लेट गयी.शत्रुजीत का सिकुदा लंड अभी भी उसकी चूत मे
पड़ा था & उसे वो बहुत भला लग रहा था.
उसने अपनी गर्दन घुमाई & उसकी नज़र खुले आल्बम पे गयी जहा से वीरेन सहाय
की तस्वीर झाँक रही थी.तस्वीर शायद किसी बीच पे ली गयी थी जहा की वीरेन
बस 1 स्विम्मिंग ट्रंक पहने खड़ा था जोकि बहुत फूला हुआ लग रहा था.उसके
सीने पे भी घने बॉल थे जैसे की कामिनी को पसंद थे.कामिनी को वो निहायत
बदतमीज़ इंसान लगा था मगर इसमे तो कोई शक़ नही था की वो 1 खूबसूरत मर्द
था.
इंसान का पाने दिल पे तो कोई इकतियार होता नही & वो पता नही कैसे-2 ख़याल
पैदा कर हमे उलझाता रहता है.कामिनी के दिल मे भी उस तस्वीर को देख के ऐसा
ही कुच्छ ख़याल आया....उसके दिल ने उस से पूचछा की वीरेन सहाय बिस्तर मे
कैसा होगा?..उन ट्रंक्स के पीछे छिपा उसका लंड कैसा होगा?..& वो..-
उसने अपना सर झटका..वो क्या सोचे जा रही थी..उसे थोड़ी शर्म आई & थोड़ी
हँसी भी....वो क्या चुदाई की इतनी दीवानी हो गयी है?..मगर ख़याल बुरा नही
था....अगर मौका मिले तो वीरेन सहाय उसे निराश नही करेगा..ऐसे जिस्म का
मालिक बिस्तर मे कमज़ोर हो ही नही सकता..लो!1 बार फिर वो उन्ही ख़यालो मे
खोई रही थी..उसने सर झटका & फिर उठ के थोड़ा उचक के शत्रुजीत को देखने
लगी.उसके ख़यालो से उसे हँसी आ गयी,"क्या हुआ?कौन सी ऐसी मज़ेदार बात है
जो इतनी हँसी आ रही है?",शत्रुजीत ने उसके बालो को उसके चेहरे से हटाया.
"कुच्छ नही.",वो 1 बार फिर उसके होंठो पे झुक गयी तो शत्रुजीत ने भी फिर
से उसे अपनी बाहो के घेरे मे ले लिया & दोनो 1 बार फिर से अपना मस्ती भरा
खेल खेलने मे लग गये.
"आअंह...आनन्न...आन्न्न्न्ह्ह...आआन्न्न्न्न....!",सुरेन जी देविका के
उपर सवार तेज़ी से धक्के लगा रहे थे.40 मिनिट पहले जो खेल उन्होने शुरू
किया था,वो अब अंजाम के करीब था मगर आज उन्हे थोड़ी बेचैनी महसूस हो रही
थी.उन्होने दवा तो खा ली थी फिर क्यू ऐसा हो रहा था.
देविका उनके नीचे उनसे लिपटी हुई बस झड़ने ही वाली थी.सुरेन जी ने भी उसे
जल्दी से उसकी मंज़िल तक पहुचने की गरज से धक्के और तेज़ कर
दिए,"..हाआआआआन्न......!",उनकी पीठ मे अपने नाख़ून धँसाती देविका बिस्तर
से कुच्छ उठ सी गयी.उसके झाड़ते ही सुरेन जी ने भी अपना पानी उसके अंदर
छ्चोड़ दिया.झाड़ते ही उन्हे भी उस अनोखे मज़े का एहसास हुआ जो इंसान
केवल झड़ने के वक़्त महसूस करता है मगर आज उस मज़े पे बेचैनी की हल्की सी
छाया पड़ गयी थी.
बीवी के जिस्म से उतर के वो बिस्तर पे लेट गये,उन्हे ये बात परेशान कर
रही थी..कही उनकी तबीयत ज़्यादा तो नही बिगड़ रही थी?
"क्या सोच रहे हैं?",उनके चेहरे पे प्यार से हाथ फेरती देविका उन्हे उनकी
सोच से बाहर लाई.
"ह्म्म...कुच्छ नही.."उन्होने अपनी बाई बाँह उसके बदन पे लपेट ली.
"सच?..फिर से मन ही मन चिंतित तो नही हो रहे?",देविका ने पति के बालो मे
उंगलिया फिराई.
"नही भाई.",सुरेन जी ने झूठा जवाब देके उसे आगोश मे भर उसका माथा चूम लिया.
"सुनिए,1 बात करनी थी आपसे?"
"तो बोलो ना.",वो देविका के चेहरे से उसकी लाते किनारे कर रहे थे.
"हमे प्रसून के बारे मे कुच्छ सोचना पड़ेगा..",सुरेन जी के चेहरे पे
चिंता की लकीरें खींच गयी,"..मैने कुच्छ सोचा भी है."
"क्या?"
"क्यू ना हम उसकी शादी कर दें."
"क्या?!!..पागल हो गयी हो देविका!",सुरेन जी उठ बैठे.
"देखो,ऐसे परेशान मत हो....मैने काफ़ी सोचा है....",देविका उठा बैठी &
अपनी दाई बाँह उनकी पीठ पे से ले जाते हुए उनके दाए कंधे पे रख दी & बाए
से उनका चेहरा थाम अपनी ओर घुमाया.
"हमने ये तो पहले ही सोचा है की अपनी सारी दौलत 1 ट्रस्ट बनके उसके नाम
कर देंगे.उस ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी होगी प्रसून की देखभाल & अगर इसमे
ज़रा भी कोताही हुई तो बात सीधे अदालत तक जाएगी..वो सब तो ठीक है मगर
हमारे बाद कोई तो ऐसा होना चाहिए ना जो उसे अपनो जैसा प्यार दे.."
सुरेन जी ने समझाने की कोशिश करते हुए देविका की आँखो मे झाँका....बात तो
ये ठीक थी....क़ानूनी देखभाल अपनी जगह मगर किसी भी इंसान का अपनो के
प्यार के बिना तो गुज़ारा मुश्किल है.
"..इसलिए शादी की बात सोची....अभी तो नौकर-चाकर भी उसे काफ़ी मानते हैं
मगर कल का क्या पता..फिर ये नौकर चाकर थोड़ा यही रहेंगे इस बात की भी कोई
गॅरेंटी नही है."
वो शत्रुजीत के दाए कंधे के उपर सर रखे उसकी गर्दन मे मुँह छिपाये पड़ी
थी.उसने अपना मुँह उपर उठाया & अपने प्रेमी के होंठो को चूमा & फिर उसके
सीने पे सर रख के लेट गयी.शत्रुजीत का सिकुदा लंड अभी भी उसकी चूत मे
पड़ा था & उसे वो बहुत भला लग रहा था.
उसने अपनी गर्दन घुमाई & उसकी नज़र खुले आल्बम पे गयी जहा से वीरेन सहाय
की तस्वीर झाँक रही थी.तस्वीर शायद किसी बीच पे ली गयी थी जहा की वीरेन
बस 1 स्विम्मिंग ट्रंक पहने खड़ा था जोकि बहुत फूला हुआ लग रहा था.उसके
सीने पे भी घने बॉल थे जैसे की कामिनी को पसंद थे.कामिनी को वो निहायत
बदतमीज़ इंसान लगा था मगर इसमे तो कोई शक़ नही था की वो 1 खूबसूरत मर्द
था.
इंसान का पाने दिल पे तो कोई इकतियार होता नही & वो पता नही कैसे-2 ख़याल
पैदा कर हमे उलझाता रहता है.कामिनी के दिल मे भी उस तस्वीर को देख के ऐसा
ही कुच्छ ख़याल आया....उसके दिल ने उस से पूचछा की वीरेन सहाय बिस्तर मे
कैसा होगा?..उन ट्रंक्स के पीछे छिपा उसका लंड कैसा होगा?..& वो..-
उसने अपना सर झटका..वो क्या सोचे जा रही थी..उसे थोड़ी शर्म आई & थोड़ी
हँसी भी....वो क्या चुदाई की इतनी दीवानी हो गयी है?..मगर ख़याल बुरा नही
था....अगर मौका मिले तो वीरेन सहाय उसे निराश नही करेगा..ऐसे जिस्म का
मालिक बिस्तर मे कमज़ोर हो ही नही सकता..लो!1 बार फिर वो उन्ही ख़यालो मे
खोई रही थी..उसने सर झटका & फिर उठ के थोड़ा उचक के शत्रुजीत को देखने
लगी.उसके ख़यालो से उसे हँसी आ गयी,"क्या हुआ?कौन सी ऐसी मज़ेदार बात है
जो इतनी हँसी आ रही है?",शत्रुजीत ने उसके बालो को उसके चेहरे से हटाया.
"कुच्छ नही.",वो 1 बार फिर उसके होंठो पे झुक गयी तो शत्रुजीत ने भी फिर
से उसे अपनी बाहो के घेरे मे ले लिया & दोनो 1 बार फिर से अपना मस्ती भरा
खेल खेलने मे लग गये.
"आअंह...आनन्न...आन्न्न्न्ह्ह...आआन्न्न्न्न....!",सुरेन जी देविका के
उपर सवार तेज़ी से धक्के लगा रहे थे.40 मिनिट पहले जो खेल उन्होने शुरू
किया था,वो अब अंजाम के करीब था मगर आज उन्हे थोड़ी बेचैनी महसूस हो रही
थी.उन्होने दवा तो खा ली थी फिर क्यू ऐसा हो रहा था.
देविका उनके नीचे उनसे लिपटी हुई बस झड़ने ही वाली थी.सुरेन जी ने भी उसे
जल्दी से उसकी मंज़िल तक पहुचने की गरज से धक्के और तेज़ कर
दिए,"..हाआआआआन्न......!",उनकी पीठ मे अपने नाख़ून धँसाती देविका बिस्तर
से कुच्छ उठ सी गयी.उसके झाड़ते ही सुरेन जी ने भी अपना पानी उसके अंदर
छ्चोड़ दिया.झाड़ते ही उन्हे भी उस अनोखे मज़े का एहसास हुआ जो इंसान
केवल झड़ने के वक़्त महसूस करता है मगर आज उस मज़े पे बेचैनी की हल्की सी
छाया पड़ गयी थी.
बीवी के जिस्म से उतर के वो बिस्तर पे लेट गये,उन्हे ये बात परेशान कर
रही थी..कही उनकी तबीयत ज़्यादा तो नही बिगड़ रही थी?
"क्या सोच रहे हैं?",उनके चेहरे पे प्यार से हाथ फेरती देविका उन्हे उनकी
सोच से बाहर लाई.
"ह्म्म...कुच्छ नही.."उन्होने अपनी बाई बाँह उसके बदन पे लपेट ली.
"सच?..फिर से मन ही मन चिंतित तो नही हो रहे?",देविका ने पति के बालो मे
उंगलिया फिराई.
"नही भाई.",सुरेन जी ने झूठा जवाब देके उसे आगोश मे भर उसका माथा चूम लिया.
"सुनिए,1 बात करनी थी आपसे?"
"तो बोलो ना.",वो देविका के चेहरे से उसकी लाते किनारे कर रहे थे.
"हमे प्रसून के बारे मे कुच्छ सोचना पड़ेगा..",सुरेन जी के चेहरे पे
चिंता की लकीरें खींच गयी,"..मैने कुच्छ सोचा भी है."
"क्या?"
"क्यू ना हम उसकी शादी कर दें."
"क्या?!!..पागल हो गयी हो देविका!",सुरेन जी उठ बैठे.
"देखो,ऐसे परेशान मत हो....मैने काफ़ी सोचा है....",देविका उठा बैठी &
अपनी दाई बाँह उनकी पीठ पे से ले जाते हुए उनके दाए कंधे पे रख दी & बाए
से उनका चेहरा थाम अपनी ओर घुमाया.
"हमने ये तो पहले ही सोचा है की अपनी सारी दौलत 1 ट्रस्ट बनके उसके नाम
कर देंगे.उस ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी होगी प्रसून की देखभाल & अगर इसमे
ज़रा भी कोताही हुई तो बात सीधे अदालत तक जाएगी..वो सब तो ठीक है मगर
हमारे बाद कोई तो ऐसा होना चाहिए ना जो उसे अपनो जैसा प्यार दे.."
सुरेन जी ने समझाने की कोशिश करते हुए देविका की आँखो मे झाँका....बात तो
ये ठीक थी....क़ानूनी देखभाल अपनी जगह मगर किसी भी इंसान का अपनो के
प्यार के बिना तो गुज़ारा मुश्किल है.
"..इसलिए शादी की बात सोची....अभी तो नौकर-चाकर भी उसे काफ़ी मानते हैं
मगर कल का क्या पता..फिर ये नौकर चाकर थोड़ा यही रहेंगे इस बात की भी कोई
गॅरेंटी नही है."