hotaks444
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- Nov 15, 2016
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गतान्क से आगे..
"ये जगन्नाथ जी हैं,कामिनी जी.",शिवा कामिनी को 1 बुज़ुर्ग से मिलवा रहा
था,"ये सहाय एस्टेट के खेतो का काम देखते हैं & मुझे इन्पर उतना ही भरोसा
है जितना खुद पे."
"जगन्नाथ जी,आप जानते हैं ना आपको क्या करना है?"
"जी हां.आप बेफ़िक्र रहें.मैं आपको अपने घर मे जगह दे दूँगा.मेरी बीवी &
बेटी को मैं सब समझा दूँगा.बाहर वालो के लिए आप मेरे भतीजे की बहू
हैं.भतीजा काम से बाहर गया है इसलिए आपको देख भाल के लिए मेरे परिवार के
साथ छ्चोड़ गया है."
"बहुत अच्छे.आपको मुझे एस्टेट के चप्पे-2 के बारे मे बताना है & हो सके
तो आप अपने मनेजर के बारे मे भी कुच्छ पता लगाइए मगर बिना उसे कोई भी शक़
दिलाए."
"ठीक है.अब मैं चलता हू,शाम ठीक 5 बजे मैं आपको लेने आऊंगा.".जगन्नाथ
जाने लगा,"..अरे हां..",वो पलटा जैसे की कुच्छ भूल गया था,"..शिवा
भाई,मेडम को कपड़ो का इंतेज़ाम करने को बोल देना."
"हां-2 ज़रूर.",शिवा मुस्कुराया.
"कपड़े?कैसे कपड़े?",जगन्नाथ के जाते ही कामिनी ने शिवा से पुचछा.
"कामिनी जी,आपको जगन्नाथ जी की बहू का भेस बदलना होगा & उसके लिए कपड़े
चाहिए जोकि मैने सुखी भाई को लाने के लिए बोला है.बस शाम का इंतेज़ार
कीजिए.",शिवा की असलियत जानने के बाद सुखी & उसकी काफ़ी छनने लगी थी.
"..& ये रखिए.",शिवा ने 1 चाभी कामिनी को थमाई,"..ये चाभी बंगले के पीछे
रसोई के दरवाज़े की है."
"थॅंक्स,शिवा मगर अभी भी 1 परेशानी है?"
"क्या?"
"इंदर के घर का ताला कैसे खुलेगा?"
"इस से मेडम.",मोहसिन जमाल & सुखी कमरे मे दाखिल हुए.
"ये लीजिए,कामिनी जी.",मोहसिन ने चाभियो का 1 बड़ा सा गुच्छा कामिनी को
थमाया,"दुनिया का शायद ही कोई ऐसा ताला हो जो इस गुच्छे की चाभियो से ना
खुले."
"मगर मोहसिन इस गुच्छे मे से चाभी ढूढ़ने मे तो बड़ा वक़्त लगेगा?"
"नही कामिनी जी,ये देखिए हर ताले के साइज़ के हिसाब से चाभीया हैं.सुखी
आपको ये बता देगा की कौन सी चाभीया गुच्छे मे कैसे लगी हैं.बस फिर आप
ताला देखिए & फिर गुच्छे मे से उसमे लग सकने वाली चाभीया अलग कीजिए & बस
मुझे 1 मिनिट से भी कम समय लगता है,आपको शायद 5 लगे."
"ओके,मोहसिन.थॅंक्स.",अब इंदर का बचना नामुमकिन था.कामिनी ने चाभीया अपने
बॅग मे डाली & शाम का इंतेज़ार करने लगी.
रात के 10 बजे से कामिनी सहाय एस्टेट के सर्वेंट क्वॉर्टर्स के सामने बनी
पार्किंग मे खड़ी 4 गाडियो मे से 1 मे च्छूपी बैठी थी.उसका इरादा था की
12 बजे के करीब वो कार से निकल के 1 बार बंगल के अंदर जाए.उसे उमीद नही
थी कि बंगल के अंदर से कोई सुराग मिलने वाला था मगर फिर भी वो 1 बार अंदर
जाके देखना चाहती थी.
कार की पिच्छली सीट पे लेटे-2 उसे नींद आ रही थी मगर किसी तरह उसने उसपे
काबू पाया & जैसे ही रात के 12 बजे वो कार से निकलने लगी मगर तभी आँखो के
कोने से उसे कुछ दिखा.उसने गर्दन घुमाई तो देखा इंदर अपने क्वॉर्टर से
निकल के बाहर आ गया था.कामिनी फ़ौरन झुक गयी & कार के शीशे से उसे देखने
लगी.
इधर-उधर देखता इंदर तेज़ी से बंगल की तरफ बढ़ा & थोड़ी ही देर मे वो बंगल
के पीछे था.कामिनी ने 1 पल इंतेज़ार किया & वो भी फुर्ती से कार से उतर
के उसके पीछे हो ली.
जब वो बंगल के पीछे पहुँची तो देखा की पीछे का रसोई का दरवाज़ा जिसकी
चाभी उसकी जेब मे थी बंद हो रहा था..इंदर के पास यहा की चाभी कैसे आई?..&
आख़िर वो इतनी रात गये घर के अंदर किस लिए गया था?..कही वो आज रात फिर
कुच्छ बुरा तो नही करने वाला?!
कामिनी ने किसी तरह 5 मिनिट इंतेज़ार किया & शिवा की दी चाभी से दरवाज़ा
खोल अंदर दाखिल हो गयी.घर मे इस वक़्त 4 लोग थे देविका,रोमा,इंदर & रोमा
का भाई संजय & चारो उपरी मंज़िल के कमरो मे थे. ये सब उसे जगन्नाथ ने
पंचमहल से आते वक़्त बता दिया था.
कामिनी दबे पाँव उपर गयी.वो पहले भी यहा आ चुकी थी & उसे पता था की
देविका का कमरा आख़िरी वाला है....कही इंदर & रोमा का कोई चक्कर तो
नही?..ख़याल आते ही उसने सबसे पहले उसी के कमरे का दरवाज़ा खोलने की
कोशिश की मगर दरवाज़ा अंदर से बंद था & कोई आवाज़ भी नही आ रही थी.अगले
कमरे मे संजय गहरी नींद मे सोया था & तीसरा कमरा खाली था.
चौथे कमरे के पास पहुँचते ही कामिनी ठिठक गयी-अंदर से रोने की आवाज़ आ
रही थी.कामिनी ने दरवाज़े को धकेला तो पाया कि वो खुला था.दरवाज़े को
थोड़ा सा खोल उसने अंदर देखा तो सन्न रह गयी.बिस्तर पे देविका इंदर की
बाहो मे सूबक रही थी & वो उसे दिलासा दे रहा था.
"चुप हो जाओ,देविका.बस..अब और मत रो.मैं हू ना तुम्हारे साथ. इस मनहूस
जगह से बहुत जल्दी छुट कारा दिलाउन्गा मैं तुम्हे."
"मगर कैसे इंदर?ये सब....",देविका रोते हुए कह रही थी,"..इस सारी जयदाद
का क्या होगा?"
"सब रोमा के नाम कर दो & हम दोनो यहा से चलते हैं."
"क्या?",देविका की सिसकिया अभी भी जारी थी,"..वो बेचारी कैसे संभाल पाएगी ये सब."
"संभाल लेगी. इस तरह ए क्यू नही सोचती.उसका गम तुमसे ज़्यादा नही तो कम
भी तो नही है.कारोबार चलाने से वो मसरूफ़ हो जाएगी & उसका मन भी इस हादसे
से उबर जाएगा."
"बात तो तुम्हारी ठीक लगती है.",देविका की रुलाई अब रुक गयी थी,"..मैं
कामिनी शरण से बात करती हू."
"वो तुम्हे मना कर देगी?"
"मगर क्यू?मेरी जयदाद मैं जिसे मर्ज़ी दू."
"वीरेन सहाय भी तो है,उसे कैसे भूल गयी.या तो बँटवारा हो या फिर वो
तुम्हारी बात मान जाए."
"वो क़ातिल है मेरे बच्चे का!",देविका की आवाज़ तेज़ हो गयी थी.
"& कामिनी शरण उसे ज़मानत दिलवा चुकी है.",इंदर ने अपनी बाहो को थोड़ा और
कसा तो देविका अब उस से पूरी तरह से चिपक गयी.काई दीनो बाद देविका को
अपने बदन मे वही सनसनी महसूस हुई जोकि किसी मर्द के करीब आने से होती
थी,"..& सभी जानते हैं की दोनो के बीच क्या रिश्ता है.ऐसे मे वो तुम्हारी
बात क्यू मानने लगी भला?!"
"तो क्या करू?वकील बदल लू?"
"नही मगर वसीयत तुम्हारी मर्ज़ी की चीज़ है.तुम चाहो सब कुच्छ दान कर
दो,चाहो सब बेच दो.अगर अदालत मे ये साबित हो जाए की वीरेन ने प्रसून का
क़त्ल किया है तो फिर उसे जयदाद से बेदखल करना कोई बड़ी बात नही.उसके बाद
तुम सबकुच्छ रोमा को दे देना & हम दोनो यहा से कही दूर चले जाएँगे..ऐसी
जगह जहा इस दुनिया का शोर-शराबा ना हो ना ही उलझने हो."
"ओह्ह,इंदर.",डेविका ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे अपना चेहरा
च्छूपा लिया.इंदर भी उसके बाल चूम रहा था.
ऐसी जगह तो 1 ही है & वो इस दुनिया मे नही है..कामिनी मन ही मन
बुदबुदाई..देविका,बेवकूफी मत करो..ये तुम्हे सच मे वाहा भेजेगा जहा
दुनिया की कोई तकलीफ़ नही होती-जन्नत!..कामिनी जैसे आई थी वैसे ही वापस
जाने लगी.उसका दिल कर रहा था की अंदर जाके इंदर का मुँह नोच उसे 4-5
तमाचे जड़ दे.उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे वो कुच्छ भी करती हो मगर अपने पेशे
मे वो कभी कोई समझौता नही करती थी & ये गलिज़ इंसान वीरेन को क़ातिल &
उसे बेईमान बना रहा था देविका की नज़रो मे!अब तो वो इसे सज़ा दिलवा के ही
रहेगी!
"ये जगन्नाथ जी हैं,कामिनी जी.",शिवा कामिनी को 1 बुज़ुर्ग से मिलवा रहा
था,"ये सहाय एस्टेट के खेतो का काम देखते हैं & मुझे इन्पर उतना ही भरोसा
है जितना खुद पे."
"जगन्नाथ जी,आप जानते हैं ना आपको क्या करना है?"
"जी हां.आप बेफ़िक्र रहें.मैं आपको अपने घर मे जगह दे दूँगा.मेरी बीवी &
बेटी को मैं सब समझा दूँगा.बाहर वालो के लिए आप मेरे भतीजे की बहू
हैं.भतीजा काम से बाहर गया है इसलिए आपको देख भाल के लिए मेरे परिवार के
साथ छ्चोड़ गया है."
"बहुत अच्छे.आपको मुझे एस्टेट के चप्पे-2 के बारे मे बताना है & हो सके
तो आप अपने मनेजर के बारे मे भी कुच्छ पता लगाइए मगर बिना उसे कोई भी शक़
दिलाए."
"ठीक है.अब मैं चलता हू,शाम ठीक 5 बजे मैं आपको लेने आऊंगा.".जगन्नाथ
जाने लगा,"..अरे हां..",वो पलटा जैसे की कुच्छ भूल गया था,"..शिवा
भाई,मेडम को कपड़ो का इंतेज़ाम करने को बोल देना."
"हां-2 ज़रूर.",शिवा मुस्कुराया.
"कपड़े?कैसे कपड़े?",जगन्नाथ के जाते ही कामिनी ने शिवा से पुचछा.
"कामिनी जी,आपको जगन्नाथ जी की बहू का भेस बदलना होगा & उसके लिए कपड़े
चाहिए जोकि मैने सुखी भाई को लाने के लिए बोला है.बस शाम का इंतेज़ार
कीजिए.",शिवा की असलियत जानने के बाद सुखी & उसकी काफ़ी छनने लगी थी.
"..& ये रखिए.",शिवा ने 1 चाभी कामिनी को थमाई,"..ये चाभी बंगले के पीछे
रसोई के दरवाज़े की है."
"थॅंक्स,शिवा मगर अभी भी 1 परेशानी है?"
"क्या?"
"इंदर के घर का ताला कैसे खुलेगा?"
"इस से मेडम.",मोहसिन जमाल & सुखी कमरे मे दाखिल हुए.
"ये लीजिए,कामिनी जी.",मोहसिन ने चाभियो का 1 बड़ा सा गुच्छा कामिनी को
थमाया,"दुनिया का शायद ही कोई ऐसा ताला हो जो इस गुच्छे की चाभियो से ना
खुले."
"मगर मोहसिन इस गुच्छे मे से चाभी ढूढ़ने मे तो बड़ा वक़्त लगेगा?"
"नही कामिनी जी,ये देखिए हर ताले के साइज़ के हिसाब से चाभीया हैं.सुखी
आपको ये बता देगा की कौन सी चाभीया गुच्छे मे कैसे लगी हैं.बस फिर आप
ताला देखिए & फिर गुच्छे मे से उसमे लग सकने वाली चाभीया अलग कीजिए & बस
मुझे 1 मिनिट से भी कम समय लगता है,आपको शायद 5 लगे."
"ओके,मोहसिन.थॅंक्स.",अब इंदर का बचना नामुमकिन था.कामिनी ने चाभीया अपने
बॅग मे डाली & शाम का इंतेज़ार करने लगी.
रात के 10 बजे से कामिनी सहाय एस्टेट के सर्वेंट क्वॉर्टर्स के सामने बनी
पार्किंग मे खड़ी 4 गाडियो मे से 1 मे च्छूपी बैठी थी.उसका इरादा था की
12 बजे के करीब वो कार से निकल के 1 बार बंगल के अंदर जाए.उसे उमीद नही
थी कि बंगल के अंदर से कोई सुराग मिलने वाला था मगर फिर भी वो 1 बार अंदर
जाके देखना चाहती थी.
कार की पिच्छली सीट पे लेटे-2 उसे नींद आ रही थी मगर किसी तरह उसने उसपे
काबू पाया & जैसे ही रात के 12 बजे वो कार से निकलने लगी मगर तभी आँखो के
कोने से उसे कुछ दिखा.उसने गर्दन घुमाई तो देखा इंदर अपने क्वॉर्टर से
निकल के बाहर आ गया था.कामिनी फ़ौरन झुक गयी & कार के शीशे से उसे देखने
लगी.
इधर-उधर देखता इंदर तेज़ी से बंगल की तरफ बढ़ा & थोड़ी ही देर मे वो बंगल
के पीछे था.कामिनी ने 1 पल इंतेज़ार किया & वो भी फुर्ती से कार से उतर
के उसके पीछे हो ली.
जब वो बंगल के पीछे पहुँची तो देखा की पीछे का रसोई का दरवाज़ा जिसकी
चाभी उसकी जेब मे थी बंद हो रहा था..इंदर के पास यहा की चाभी कैसे आई?..&
आख़िर वो इतनी रात गये घर के अंदर किस लिए गया था?..कही वो आज रात फिर
कुच्छ बुरा तो नही करने वाला?!
कामिनी ने किसी तरह 5 मिनिट इंतेज़ार किया & शिवा की दी चाभी से दरवाज़ा
खोल अंदर दाखिल हो गयी.घर मे इस वक़्त 4 लोग थे देविका,रोमा,इंदर & रोमा
का भाई संजय & चारो उपरी मंज़िल के कमरो मे थे. ये सब उसे जगन्नाथ ने
पंचमहल से आते वक़्त बता दिया था.
कामिनी दबे पाँव उपर गयी.वो पहले भी यहा आ चुकी थी & उसे पता था की
देविका का कमरा आख़िरी वाला है....कही इंदर & रोमा का कोई चक्कर तो
नही?..ख़याल आते ही उसने सबसे पहले उसी के कमरे का दरवाज़ा खोलने की
कोशिश की मगर दरवाज़ा अंदर से बंद था & कोई आवाज़ भी नही आ रही थी.अगले
कमरे मे संजय गहरी नींद मे सोया था & तीसरा कमरा खाली था.
चौथे कमरे के पास पहुँचते ही कामिनी ठिठक गयी-अंदर से रोने की आवाज़ आ
रही थी.कामिनी ने दरवाज़े को धकेला तो पाया कि वो खुला था.दरवाज़े को
थोड़ा सा खोल उसने अंदर देखा तो सन्न रह गयी.बिस्तर पे देविका इंदर की
बाहो मे सूबक रही थी & वो उसे दिलासा दे रहा था.
"चुप हो जाओ,देविका.बस..अब और मत रो.मैं हू ना तुम्हारे साथ. इस मनहूस
जगह से बहुत जल्दी छुट कारा दिलाउन्गा मैं तुम्हे."
"मगर कैसे इंदर?ये सब....",देविका रोते हुए कह रही थी,"..इस सारी जयदाद
का क्या होगा?"
"सब रोमा के नाम कर दो & हम दोनो यहा से चलते हैं."
"क्या?",देविका की सिसकिया अभी भी जारी थी,"..वो बेचारी कैसे संभाल पाएगी ये सब."
"संभाल लेगी. इस तरह ए क्यू नही सोचती.उसका गम तुमसे ज़्यादा नही तो कम
भी तो नही है.कारोबार चलाने से वो मसरूफ़ हो जाएगी & उसका मन भी इस हादसे
से उबर जाएगा."
"बात तो तुम्हारी ठीक लगती है.",देविका की रुलाई अब रुक गयी थी,"..मैं
कामिनी शरण से बात करती हू."
"वो तुम्हे मना कर देगी?"
"मगर क्यू?मेरी जयदाद मैं जिसे मर्ज़ी दू."
"वीरेन सहाय भी तो है,उसे कैसे भूल गयी.या तो बँटवारा हो या फिर वो
तुम्हारी बात मान जाए."
"वो क़ातिल है मेरे बच्चे का!",देविका की आवाज़ तेज़ हो गयी थी.
"& कामिनी शरण उसे ज़मानत दिलवा चुकी है.",इंदर ने अपनी बाहो को थोड़ा और
कसा तो देविका अब उस से पूरी तरह से चिपक गयी.काई दीनो बाद देविका को
अपने बदन मे वही सनसनी महसूस हुई जोकि किसी मर्द के करीब आने से होती
थी,"..& सभी जानते हैं की दोनो के बीच क्या रिश्ता है.ऐसे मे वो तुम्हारी
बात क्यू मानने लगी भला?!"
"तो क्या करू?वकील बदल लू?"
"नही मगर वसीयत तुम्हारी मर्ज़ी की चीज़ है.तुम चाहो सब कुच्छ दान कर
दो,चाहो सब बेच दो.अगर अदालत मे ये साबित हो जाए की वीरेन ने प्रसून का
क़त्ल किया है तो फिर उसे जयदाद से बेदखल करना कोई बड़ी बात नही.उसके बाद
तुम सबकुच्छ रोमा को दे देना & हम दोनो यहा से कही दूर चले जाएँगे..ऐसी
जगह जहा इस दुनिया का शोर-शराबा ना हो ना ही उलझने हो."
"ओह्ह,इंदर.",डेविका ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे अपना चेहरा
च्छूपा लिया.इंदर भी उसके बाल चूम रहा था.
ऐसी जगह तो 1 ही है & वो इस दुनिया मे नही है..कामिनी मन ही मन
बुदबुदाई..देविका,बेवकूफी मत करो..ये तुम्हे सच मे वाहा भेजेगा जहा
दुनिया की कोई तकलीफ़ नही होती-जन्नत!..कामिनी जैसे आई थी वैसे ही वापस
जाने लगी.उसका दिल कर रहा था की अंदर जाके इंदर का मुँह नोच उसे 4-5
तमाचे जड़ दे.उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे वो कुच्छ भी करती हो मगर अपने पेशे
मे वो कभी कोई समझौता नही करती थी & ये गलिज़ इंसान वीरेन को क़ातिल &
उसे बेईमान बना रहा था देविका की नज़रो मे!अब तो वो इसे सज़ा दिलवा के ही
रहेगी!