Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान - Page 2 - SexBaba
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Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान

बिन बुलाया मेहमान-4

गतान्क से आगे……………………

"एक बार कॉसिश की थी मैने इसकी गान्ड में डालने की पर बहुत कॉसिश करने पर भी नही गया था."बब्बन ने कहा.

"आज जाएगा तू चिंता मत कर. देखता हूँ ये गान्ड मेरे लंड को रास्ता कैसे नही देती." मैने फिर से ज़ोर से चाँटा मारा कोयल की गान्ड पर.

"तू इधर आ और इसकी गान्ड को फैला मेरे लंड के लिए."मैने बब्बन से कहा.

बब्बन ने पास आकर कोयल की गान्ड को मेरे लिए फैला दिया.

"तू इसके छेद पर थूक गिरा दे जितना हो सके. मैं अपने लंड को चिकना करता हूँ." मैने कहा.

बब्बन ने ढेर सारा थूक गिरा दिया कोयल की गान्ड के छेद पर. मैने भी अपने लंड को खूब चिकना कर लिया.

अपने चिकने लंड को मैने कोयल की गान्ड के चिकने छेद पर रख दिया और ज़ोर से धक्का मारा.

"ऊओय्य्यीई माई मर गयी निकालूऊओ बाहर इसे." कोयल चिल्लाई.

"चुप कर अभी तो तुझे पूरा लंड लेना है" मैने एक और धक्का मारते हुए कहा.

कोयल चिल्लाति रही और मैं लंड अंदर घुसाता रहा. जब अंडकोस तक लंड उसकी गान्ड में उतर गया तो मैने कहा, "अरे वाह कोयल. तूने तो पूरा ले लिया गान्ड में हहेहहे."

"ऊओह मुझे ही पता है कैसे लिया है."कोयल ने कहा.

"बब्बन तू फैला कर रख इसकी गान्ड अब मैं इसे मारने जा रहा हूँ हहेहहे." मैने कहा

मैने कोयल की गान्ड मारनी सुरू कर दी. पूरा निकाल कर मैं वापिस अंदर डाल रहा था. कोयल अब मस्ती मे झूम रही थी. उसकी सिसकिया खेत में गूँज रही थी. बहुत देर तक मैं यू ही मारता रहा कोयल की गान्ड.

"अब बस भी कर मेरे हाथ थक गये हैं."बब्बन ने कहा.

"तू हट जा. अब मेरे लंड ने अच्छा रास्ता बना दिया है." मैने कहा और अपने लंड के धक्के लगाता रहा.

मुझे बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा था. ये मज़ा किसी मायने में भी चूत से कम नही था. उस दिन मुझे आश्चर्य हुआ कि गान्ड मारने में भी इतना मज़ा आता है. कोयल की गान्ड बहुत टाइट थी. लंड बहुत मुस्किल से घुसा था उसमे और वो मेरे लंड को बहुत अच्छे से पकड़ रही थी. भीड़े रास्ते में लंड को घुमाने का अपना ही मज़ा है ये मैं जान गया था.

जब मज़ा बर्दस्त से बाहर हो गया तो मैने अपनी स्पीड बहुत तेज कर दी और तेज तेज धक्के लगाते हुए कोयल की गान्ड को अपने पानी से भर दिया. जब मेरा पानी छूटा तो मैने पाया कि बब्बन बड़ी ललचाई नज़रो से कोयल की गान्ड को निहार रहा है. मैने कोयल की गान्ड से लंड बाहर निकाल लिया. मेरे निकालते ही बब्बन ने एक ही झटके में अपना लंड कोयल की गान्ड में डाल दिया. उसने भी थोड़ी देर में अपना पानी कोयल की गान्ड में छ्चोड़ दिया.

इस तरह मुझे पहली बार गान्ड मारने का मोका मिला. पहली गान्ड की चुदाई मुझे हमेशा याद रहेगी.

...............................

मैं डाइयरी पढ़ कर हटी तो मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी. कब मेरी योनि गीली हो गयी थी मुझे पता ही नही चला था. मैं शरम और ग्लानि से भर गयी थी.

"वहाँ से सेक्स करता है क्या कोई छी. ये देहाती सच में बहुत गंदा है."

मैं फॉरन बिस्तर से उठी और उठ कर डाइयरी को वापिस टाय्लेट में रख आई.

मैं वापिस कमरे में आई तो अंजाने में ही मेरे हाथ मेरे नितंबो पर चले गये. "क्या इन्हे सेक्स के लिए यूज़ कर सकते हैं. गगन से बात करूँगी इस बारे में. मुझे तो ये बहुत गंदी और भद्दी बात लगती है"

...........चाचा की डाइयरी में अनल सेक्स के बारे में पढ़ कर मन में अजीब सी हलचल हो रही थी. अचानक मन में ख्याल आया कि अगर गगन ने कभी मेरे साथ अनल सेक्स करने की कॉसिश की तो क्या मैं उन्हे करने दूँगी?

मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था. गगन सेक्स के दौरान मेरे नितंबो के गुम्बदो से खूब खेलते थे और उन्हे भरपूर मसल्ते थे मगर अभी तक उन्होने कभी भी वहाँ अपना लिंग डालने की कॉसिश नही की थी. मगर जब भी गगन मेरे नितंब के गुम्बदो को मसल्ते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था.

रात को मैने गगन से बातो बातो में पुछा,"गगन क्या कोई अनल सेक्स भी करता होगा"

"हां मेरा दोस्त राजीव खूब अनल सेक्स करता है अपनी बीवी के साथ उसकी मर्ज़ी के बिना और खुश हो कर बताता भी है इस बारे में.मुझे बिल्कुल पसंद नही अनल सेक्स क्योंकि वो मुझे गंदा लगता है और लड़कियों को पसंद भी नही आता क्योंकि बहुत पेनफुल रहता है. वैसे तुम ये सब क्यों पूछ रही हो."

"यू ही पूछ रही थी." मैने कहा.

"तुम डरो मत तुम्हे वो सब नही सहना पड़ेगा. मुझे अनल सेक्स बिल्कुल पसंद नही है." गगन ने कहा.

आगे मैने इस बारे में कोई बात नही की.

चाचा को 2 हफ्ते हमारे साथ ही रुकना था. डॉक्टर ने उन्हे 2 हफ्ते बाद फिर से बुलाया था. ये खबर मेरे लिए बहुत दुखदायी थी. मैं जल्द से जल्द चाचा को घर से दफ़ा कर देना चाहती थी. गगन के जाने के बाद मुझे उसकी हवस भरी निगाहों का सामना करना पड़ता था.

डाइयरी वो रोज टाय्लेट में ही छोड़ने लगा था. 3 दिन में मैने पूरी डायरी पढ़ ली. डायरी आधी भरी हुई थी. चौथे दिन जब मैने उत्सुकता में डाइयरी उठाई तो मेरे पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी. मेरा सर घूमने लगा. चाचा ने मेरे बारे में लिख रखा था.
 
डाइयरी के पन्नो से:

निधि बहुत सुंदर है. इतनी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी. भगवान ने बहुत फ़ुर्सत से बनाया लगता है निधि को. मैं तो निधि की सूरत देखते ही उस पर फिदा हो गया था. इतना सुंदर चेहरा हर किसी को नही मिलता.

होन्ट बहुत प्यारे हैं निधि के. हर वक्त कामुक रस टपकता रहता है उसके होंटो से. ख़ुसनसीब है गगन जो कि उसे इतने रसीले होन्ट चूसने को मिलते हैं.

निधि की चुचियों की तो बात ही निराली है. जब वो चलती है तो दोनो चुचियाँ कामुक अंदाज़ में उपर नीचे हिलती हैं. दिल बैठ जाता है मेरा उन्हे यू हिलते देख कर. चुचियों की मोटाई और गोलाई एक दम मस्त है. जो भी उन्हे देखता होगा उसके मूह में पानी आ जाता होगा. जैसे मेरे मूह में आ जाता है.

निधि की गान्ड के बारे में क्या लिखूं कुछ समझ नही आ रहा. कातिल गान्ड है निधि की. मेरे दिल का कतल कर दिया निधि की गान्ड ने. इतनी मस्त गान्ड मैने आज तक नही देखी. जब वो चलती है तो गान्ड के दोनो गोल गोल तरबूज बहुत कामुक अंदाज में हिलते हैं. नपुंसक के लंड को भी खड़ा कर सकती है निधि की गान्ड. मेरा तो निधि की गान्ड के बारे में सोच कर ही बुरा हाल हो जाता है. लंड बिठाए नही बैठता.

मुझे पूरा यकीन है कि इस अप्सरा की चूत भी कम कातिल नही होगी. बल्कि वो तो सबसे ज़्यादा कयामत ढाती होगी.

लेना चाहता हूँ एक बार निधि की पर जानता हूँ कि ये मुमकिन नही है. गगन की बीवी है वो और मेरी बेटी के समान है. इसलिए उसकी लेने का ख्वाब हमेशा ख्वाब ही रहेगा. पर मुझे ख़ुसी है कि ऐसी सुंदर अप्सरा के साथ मुझे एक ही घर की छत के नीचे रहने का मोका मिला.

डाइयरी पढ़ने के बाद मुझे समझ में नही आ रहा था कि कैसे रिक्ट करूँ. मेरे बारे में बहुत गंदी गंदी बाते लिख रखी थी चाचा ने डाइयरी में.

"इसका मतलब ये देहाती हर वक्त मुझे घूरता रहता है. कितना बेशरम है ये." मैने सोचा.

डाइयरी टाय्लेट में ही रख कर मैं बाहर आ गयी. मैं बहुत गुस्से में थी. लेकिन चाह कर भी मैं चाचा को कुछ नही कह सकती थी. मैं अपने बेडरूम में घुस ही रही थी कि चाचा ने पीछे से आवाज़ दी.

"बेटी आज का अख़बार नही मिल रहा. क्या तुम्हारे पास है."

"आप यहाँ अख़बार पढ़ने आए हैं या इलाज कराने. मुझे नही पता की अख़बार कहाँ है."मैने गुस्से में कहा.

"गुस्सा क्यों कर रही हो. तमीज़ से बात करो. घर आए मेहमान से क्या ऐसे बात की जाती है." चाचा ने कहा.

"हे दफ़ा हो जाओ यहाँ से जल्द से जल्द वरना इस से भी बुरा बर्ताव करूँगी मैं. हमारा ही घर मिला था तुम्हे...पूरी देल्ही में." मैं चिल्लाई.

चाचा बिना कुछ कहे मेरी तरफ बढ़ा. उसकी आँखे गुस्से से लाल हो रखी थी.

मैं अपनी जगह खड़ी रही. मैं खुद बहुत गुस्से में थी. जानती थी कि मेहमान के साथ ऐसा बर्ताव नही करना चाहिए पर उसने मुझे मजबूर कर दिया था.

"तुम्हे तमीज़ नही सीखाई क्या तुम्हारे मा बाप ने."चाचा ने कहा.

"उस से तुम्हे कोई मतलब नही है. मेरे मा बाप को बीच में मत लाओ और जल्द से जल्द यहाँ से दफ़ा हो जाओ." मैने गुस्से में कहा.

चाचा ने तुरंत आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और उसे मरोड़ दिया. मैं दर्द से कराह उठी पर वो नही रुका. जैसे जैसे वो हाथ मरोड़ रहा था मैं घूमती जा रही थी और जब वो रुका तब मेरी पीठ उसकी तरफ हो गयी थी.

"छ्चोड़ो मुझे...ये क्या कर रहे हो?" मैने कहा.

"तुम्हे तमीज़ सीखा रहा हूँ. बोलो दुबारा बोलोगि इस तरह मुझसे." चाचा ने कहा.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...छ्चोड़ो मुझे." मैं छटपटा रही थी. मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था.

अचानक चाचा का दूसरा हाथ मुझे मेरे नितंबो पर महसूस हुआ. मेरे रोंगटे खड़े हो गये.

"छ्चोड़ो मुझे...क्या कर रहे हो."

"बहुत मुलायम है...रोज देखता था इसे प्यार से आज हाथ लगाने का मोका मिला हहेहहे."

"हाथ हटा लो अपना वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा." मैं चिल्लाई.

पर वो नही रुका. वो बारी बारी से मेरे नितंबो की दोनो गोलाइयों को दबोच रहा था. मैं सूट और सलवार पहनी हुई थी जिस कारण वो बहुत अच्छे से मेरे नितंबो को महसूस कर रहा था. अचानक जब मेरे नितंबो की दरार में उसने अपनी उंगली डाली तो मैं सिहर उठी. मैं थर थर काँपने लगी.

क्रमशः………………………
 
बिन बुलाया मेहमान-5

गतान्क से आगे……………………

"तुम हटते हो कि नही. मैं गगन को बता दूँगी हट जाओ." मैने चेतावनी दी.

"बता देना. नुकसान तुम्हारा ही होगा. हर कोई मेरी तरह गान्ड से नही खेल सकता."

"शट अप. कुछ तो शरम करो मैं तुम्हारी बेटी के समान हूँ." मैने कहा.

"तुमने बड़ा सम्मान दिया है मुझे. जबसे यहाँ आया हूँ तुम्हारी आँखो में तिरस्कार ही देखा है."

"आहह...छ्चोड़ो मुझे...तुम मुझे यहाँ नही छू सकते." मैने कहा.

मेरे नितंबो के उपर सलवार के कपड़े को अंदर धकेलते हुए चाचा की उंगली मेरे नितंब के छिद्र तक जा पहुँची थी. आज तक किसी ने भी मुझे वहाँ नही छुआ था. मैं थर थर काँपने लगी थी.

"ह्म...बहुत मस्त गान्ड है तुम्हारी. गगन इसके साथ खेलता है कि नही."चाचा ने घिनोनी आवाज़ में पूछा.

"तुम्हे उस से क्या मतलब. छ्चोड़ो मुझे."

चाचा ने मेरी बात अनसुनी करके मेरे नितंब के छिद्र को रगड़ना शुरू कर दिया.

मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था चाचा पर मगर जब वो मेरे पिछले छिद्र को उंगली से रगड़ रहा था तो मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही थी. सबसे बड़ा झटका मुझे तब लगा जब मुँझे अपनी जाँघो के बीच गीला गीला महसूस हुआ.

मेरे पीछले छिद्र पर हो रही रगड़ के कारण मेरी योनि ने पानी छ्चोड़ दिया था. उस वक्त मैं बिल्कुल खामोस हो गयी थी.

"क्या हुआ अच्छा लग रहा है ना तुम्हे निधि बेटी." चाचा ने बेशर्मी से कहा.

"तुम्हे शरम आनी चाहिए ये सब करते हुए."

"आ रही है पर दिल के हाथो मजबूर हूँ. क्या करूँ तुम्हारी गान्ड ही ऐसी है."

"शट अप."

अचानक चाचा ने कुछ अजीब तरीके से मेरे पिछले छिद्र को रगड़ा जिसके कारण मेरे मूह से खुद ब खुद सिसकी निकल गयी. "आहह..."

चाचा ने मेरे नितंब से अपना हाथ हटा लिया और मेरे मरोड़े हुए हाथ को भी छ्चोड़ दिया.

"आगे से तमीज़ से बात करना मेरे साथ समझी."चाचा ने कहा.

"मैं शाम को गगन को सब बताउन्गि. देखना शाम को तुम्हारी खैर नही." मैं चिल्लाई और भाग कर अपने बेडरूम में घुस गयी. बेडरूम में आते ही मैने कुण्डी लगा ली और बिस्तर पर गिर गयी. मेरा शरीर थर थर काँप रहा था. आज तक कभी भी किसी ने मेरे साथ ऐसी हरकत नही की थी.

मैं अपने बिस्तर पर पड़ी हुई थर थर काँप रही थी. मेरे पिछले छिद्र पर मुझे अभी भी चाचा की उंगली महसूस हो रही थी. मैं विस्वास नही कर पा रही थी कि मेरे साथ मेरे ही घर में ऐसा हुआ है. मैं चाचा को बुरी तरह कोस रही थी.

"आज गगन के सामने इसकी पॉल खोल दूँगी मैं. बड़ा बाल ब्रह्म चारी बना फिरता है. आज इसकी खैर नही." मैने निस्चय किया.

शाम को गगन ने डोर बेल बजाई तो मुझसे पहले चाचा ने दरवाजा खोल दिया.

"कुछ भी करले देहाती आज तू बचेगा नही"मैने मन ही मन कहा.

गगन चाचा के साथ उसके कमरे में चला गया. मैं टाय्लेट में गयी तो मेरी आँखे चमक उठी. टाय्लेट टॅंक पर चाचा की डाइयरी पड़ी थी. मैने वो तुरंत उठाई और चाचा के कमरे में घुस गयी. मैने डायरी गगन को थमा दी और बोली,"

गगन ये चाचा जी की डाइयरी है. देखो इन्होने कितना अच्छा अच्छा लिखा है अपने बाल ब्रहचारी जीवन के बारे में.

गगन ने तुरंत डाइयरी ले ली.
 
चाचा ने तुरंत गगन से डाइयरी ले ली और बोला, "नही बेटा कुछ ख़ास नही है इसमे रहने दो बाद में इतमीनान से पढ़ना."

"नही चाचा जी पढ़ने दीजिए ना इन्हे. गगन पढ़ो बहुत अच्छी अच्छी बाते लिखी है इसमे."मैने तुरंत गगन को उकसाया. चाचा मेरी तरफ गुस्से में घूर रहा था.

"निधि इतना कह रही है तो पढ़ ही लेता हूँ चाचा जी" गगन ने चाचा के हाथ से डाइयरी वापिस ले ली.

चाचा की हालत पतली होती दिख रही थी. गगन ने डाइयरी पढ़नी शुरू कर दी. मैं वही दीवार से सॅट कर खड़ी हो गयी.

डाइयरी के 2 पेज पढ़ने के बाद गगन ने मेरी तरफ देखा और बोला, "सच में बहुत अच्छी अच्छी बाते लिखी हैं इस डायरी में. ब्रह्म्चर्य के बारे में बहुत अच्छा लिखा है चाचा जी ने. थॅंक्स निधि मैं ये डाइयरी आज रात को पूरी पढ़ लूँगा."

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गये. मैने तुरंत गगन के हाथ से डायरी खींच ली और पढ़ने लगी. उसमे सच में ब्रह्म्चर्य के बारे में लिखा था. मेरा तो सर घूमने लगा.

"क्या हुआ बेटी. गगन को पढ़ने दो ना. तुम तो पढ़ ही चुकी हो."चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा.

"हां निधि मुझे दो. चाचा जी शायद ये दुबारा पढ़ना चाहती है. पर निधि अब पहले मैं पढ़ुंगा तब तुम दुबारा पढ़ना ओक."गगन डाइयरी हाथ में लिए वहाँ से उठ गया और कमरे से बाहर चला गया.

मैं इतने सदमे में थी कि समझ ही नही पा रही थी कि क्या हो रहा है. चाचा बेड से उठ कर मेरे पास आया और धीरे से बोला, "क्या हुआ तुम इतनी हैरान और परेशान सी क्यों हो गयी अचानक निधि बेटी. सब ठीक तो है ना."

"देख लूँगी तुम्हे मैं. छ्चोड़ूँगी नही तुम्हे मैं." मैने कहा.

मैं कमरे से जाने लगी तो चाचा ने मेरे नितंबो पर ज़ोर से हाथ मारा और बोला, "बहुत मस्त गान्ड है तुम्हारी. मज़ा आ गया आज."

मैं दाँत भींच कर रह गयी और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर आ गयी. मैं सीधा अपने बेडरूम में आई. गगन डाइयरी पढ़ने में मगन था.

"गगन चाचा जी वैसे नही हैं जैसे दिखते हैं." मैने कहा.

"हां ये पढ़ कर अब मुझे भी यही लग रहा है. बहुत उँची और गहरी बाते लिखी है जीवन के बारे में चाचा जी ने. थॅंक्स आ लॉट डार्लिंग फॉर गिविंग दिस डाइयरी टू मी. और हां मैं बताना भूल गया. तुम तैयार हो जाओ. हम मूवी देखने जा रहे हैं."

सुनते ही मैं झूम उठी. और तुरंत सब कुछ भूल कर तैयार होने लगी. जब हम निकलने लगे तो मुझे बहुत बड़ा शॉक लगा. गगन ने मुझे नही बताया था कि चाचा भी हमारे साथ मूवी देखने चल रहा है. वो तैयार खड़ा था दरवाजे के पास. मेरा उसे देखते ही सारा मूड खराब हो गया.हम ने मेट्रो स्टेशन के लिए ऑटो किया और 5 मिनिट में स्टेशन पहुँच गये. मेट्रो में बहुत भीड़ थी. लोग एक दूसरे से सॅट कर खड़े थे. बैठने को सीट नही थी सभी भरी हुई थी. मैं गगन और चाचा एक साथ खड़े हो गये थे. गगन मेरे बाई तरफ था और चाचा मेरे पीछे. मुझे पूरा यकीन था कि चाचा ज़रूर कोई ना कोई छेड़खानी करेगा. मैने प्लान बनाया कि जैसे ही वो मुझे कही छुएगा मैं गगन को बोल दूँगी देखने को कि देखो कॉन छू रहा है मुझे. कुछ देर तक कुछ नही हुआ.

अचानक मुझे मेरे नितंबो पर हाथ महसूस हुआ. मैने धीरे से गगन के कान में कहा कि कोई मेरी बॅक को टच कर रहा है. गगन ने मुझे चुप रहने को कहा ताकि टच करने वाले को रंगे हाथो पकड़ा जा सके. मैने आँखो से इशारा किया कि हाथ अभी वही है तो गगन ने तुरंत वो हाथ पकड़ लिया. हैरत की बात ये थी कि वो हाथ चाचा का नही बल्कि मेरे दाहिनी तरफ खड़े आदमी का था. जैसे ही गगन ने उस आदमी का हाथ पकड़ा वो घबरा गया. चाचा ने मोका देख कर उसके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दिया. वो माफी माँगने लगा. बाकी लोगो ने भी उसे खरी खोटी सुनाई. मगर मेरा प्लान फिरसे फैल हो गया था. चाचा फिर से बच गया था.
 
“सिनिमा में बहुत भीड़ थी. मैने जानबूझ कर चाचा से दूर बैठी थी. चाचा को गगन की साइड वाली सीट पर बैठा दिया था. मुस्किल से 15 मिनिट ही बीते थे कि गगन का मोबाइल बज उठा. गगन ये बोल कर बाहर चला गया कि बॉस का फोन है. गगन के बाहर जाते ही चाचा मेरे पास आ गया और मेरे कान में बोला,

"हर कोई तुम्हारी गान्ड के पीछे पड़ा है. पड़े भी क्यों ना गान्ड ही ऐसी है तुम्हारी."

"चुपचाप मूवी देखो मुझे डिस्टर्ब मत करो." मैने कहा.

गगन आता दीखाई दिया तो चाचा वापिस अपनी सीट पर चला गया. गगन ने आकर मुझे बहुत बड़ा शॉक दिया.

"हनी मुझे जाना होगा. बॉस ने तुरंत ऑफीस बुलाया है कुछ अर्जेंट काम है. तुम लोग मूवी देख कर मेट्रो से ही वापिस चले जाना."

"मैं चाचा के साथ मूवी कैसे देखूँगी."मैने धीरे से कहा.

"वो तो एक सीट छ्चोड़ कर बैठे हैं. वैसे भी कॉमेडी मूवी है. प्लीज़ मुझे जाना ही होगा."गगन चाचा की तरफ बढ़ गया बोल कर और उनके कान में कुछ बोल कर थियेटर से बाहर निकल गया.

मैं अपना सा मूह लेकर रह गयी. गगन के जाते ही चाचा मेरे पास वाली सीट पर आ गया.

"अब हम दोनो साथ में सिनिमा देखेंगे." चाचा ने कहा.

"तुम्हारे गाँव में तो सिनिमा नाम की चीज़ भी नही होगी है ना. बड़ी मुस्किल से नसीब हुई है ये सिनिमा देखने की ऑपर्चुनिटी तुम्हे. इसलिए चुपचाप मूवी देखो बैठ कर." मैने कठोरता से कहा.

"सच सच बताओ क्या कल तुम्हे मज़ा नही आया था. मेरा हाथ लगते ही औरत का अंग अंग थिरकने लगता है. तुम्हारी गान्ड के छेद को बहुत अच्छे से रगड़ा था मैने. कहो तो आज फिर सेवा कर दूं तुम्हारी थोड़ी सी."

"तुम देखो मूवी बैठ कर मैं जा रही हूँ." मैं उठने लगी तो चाचा ने हाथ पकड़ कर बैठा दिया मुझे वापिस.

"नही देखो तुम भी. मैं अब चुप रहूँगा."

क्रमशः…………………………………
 
बिन बुलाया मेहमान-6

गतान्क से आगे……………………

थोड़ी देर चाचा चुपचाप रहा. उसने कोई हरकत नही की. अचानक मुझे मेरी जाँघ पर उसका हाथ महसूस हुआ तो मैं सिहर उठी. मैं चिल्ला कर उसे हाथ हटाने को कहना चाहती थी पर मेरे बाजू में भी सीट पर एक लेडी बैठी थी अपने पति के साथ. मैने चाचा का हाथ पकड़ कर चुपचाप मेरी जाँघ से हटा दिया. मैं समझ गयी कि चाचा मुझे परेशान करने वाला है. मैं बिना कुछ कहे वहाँ से उठ कर बाहर आ गयी.

मैं जल्द से जल्द थियेटर से निकलना चाहती थी. मेरी नज़र टाय्लेट पर पड़ी तो मुझे प्रेशर महसूस हुआ और मैं टाय्लेट में घुस गयी. मैं खुद को रिलीव करके दरवाजा खोल कर बाहर निकली ही थी कि मेरे होश उड़ गये. मेरे सामने चाचा खड़ा था. मैं कुछ बोलने ही वाली थी कि उसने मेरे मूह पर हाथ रख दिया और मुझे टाय्लेट में खींच लिया वापिस और कुण्डी लगा दी. मैं बुरी तरह छटपटा रही थी. मुझे किसी के बोलने की आवाज़ आई तो मैं एक दम चुप हो गयी. आख़िर मेरी इज़्ज़त का सवाल था.

चाचा ने मेरे मूह से हाथ हटा लिया और मुझे चुप रहने का इशारा किया. मैं गुस्से से उसकी तरफ घूर रही थी. चाचा मुझे उपर से नीचे तक घूर रहा था. एक तरफ मुझे गुस्सा आ रहा था और एक तरफ मैं घबरा रही थी कि किसी ने मुझे चाचा के साथ टाय्लेट में देख लिया तो क्या होगा. मेरा दिमाग़ बुरी तरह घूम रहा था. चाचा मेरी तरफ देख कर मध्यम मध्यम मुस्कुरा रहा था. मुझसे सहा नही गया और मैने घुमा कर एक थप्पड़ जड़ दिया चाचा के मूह पर. चाचा बोखला गया और दोपहर की तरह उसने मेरा हाथ मरोड़ दिया और मुझे टाय्लेट के दरवाजे से सटा दिया. मेरी पीठ उसकी तरफ थी.

"ये कैसी आवाज़ थी." बाहर से आवाज़ आई.

"पता नही शायद कोई टाय्लेट में है. लगता है हम ही बोर नही हो रहे मूवी से. बड़ी बेकार मूवी है यार."

"हां सही कहा."

मैं बिल्कुल खामोश दीवार से सटी खड़ी थी. मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था. चाचा ने हाथ बड़ी बेरहमी से मरोड़ रखा था. फिर जैसा कि दोपहर को हुआ था. चाचा के हाथ मेरे नितंबो से खेलने लगे. मगर एक मिनिट बाद ही चाचा का हाथ उपर बढ़ता गया और उसने मेरे उभारो को मसलना शुरू कर दिया.

"तुम्हारे संतरे बहुत बड़े बड़े हैं निधि बेटा. कैसे इतने बड़े किए तुमने." चाचा ने मेरे कान में कहा.

मैं शरम से पानी पानी हो गयी. उसे ज़ोर से गाली देना चाहती थी पर अपनी इज़्ज़त के कारण मजबूर थी.

चाचा ने अचानक बहुत ज़ोर से मेरे उभारों को दबाया. मेरी चीन्ख निकलते निकलते बची. मेरे उभारो को मसलते हुए मेरे बहुत नज़दीक आ गया. मुझे मेरे नितंबो पर कुछ हार्ड सी चीज़ महसूस हुई तो मेरी साँस अटक गयी.

"तेरी गान्ड को छू रहा है मेरा लंड. बता कैसा लग रहा है." चाचा ने मेरे कान में कहा.

"तुम एक नंबर के कमिने हो."मैने धीरे से कहा.

अचानक चाचा का हाथ मेरे उभारों से नीचे की ओर बढ़ा. मैं समझ गयी कि उसका क्या इरादा है.

"खबरदार मेरे वहाँ हाथ लगाया तो."

"क्या कर लोगि. चिल्लाओगी. चिल्लाओ. हहेहहे." चाचा ने मेरी योनि पर हाथ रख दिया और हाथ रख कर मुझे पीछे को धक्का दिया. मेरे नितंब चाचा के लिंग के और ज़्यादा नज़दीक पहुँच गये. अब उसका लिंग बहुत ज़्यादा फील हो रहा था मुझे मेरे नितंबो पर. पहले गगन के लिंग के अलावा कोई दूसरा लिंग मेरे इतने नज़दीक था. मुझे बहुत ही अजीब सी बेचैनी हो रही थी.

चाचा ने कपड़े के उपर से ही मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया. मैं चाह कर भी कुछ नही कर सकती थी. मेरा हाथ अभी भी बहुत ज़ोर से मरोड़ रखा था उसने और दर्द के कारण मैं खुद को असहाय महसूस कर रही थी.

चाचा मेरी योनि को बुरी तरह से रगड़ रहा था. कपड़े के उपर से ही उसने मेरी योनि की पंखुड़ियों को उँगुलियों के बीच जाकड़ लिया था और उन्हे बुरी तरह रगड़ रहा था. ना चाहते हुए भी मेरे शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ रही थी. कब मेरी योनि गीली हो गयी और कब उसने पानी छोड़ दिया मुझे पता भी नही चला.

अचानक चाचा हट गया और मेरे कान में बोला, "चलो घर चलते हैं. कब तक यहाँ टाय्लेट में खड़ी हुई अपनी चूत रगडवाती रहोगी. किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी."

मैने बिना कुछ कहे चाचा को घूर कर देखा.

"पहले तुम जाओ. मैं बाद में आता हूँ."चाचा ने धीरे से कहा.

मैं दरवाजा खोल कर तुरंत बाहर आ गयी और बाहर आते ही थियेटर के एग्ज़िट की तरफ लपकी. मैने मेट्रो से जाने की बजाए ऑटो पकड़ा और सीधा घर आ गयी. चाचा से मुझे कोई लेना देना नही था कि वो अंजान शहर में कैसे घर तक आएगा.

"अच्छा हो कि कही मर जाए कमीना."मैने मन में बहुत गालिया दी चाचा को.

ऑटो में बैठते वक्त मुझे ख्याल भी नही आया था कि मैं एक नयी मुसीबत

में फँस सकती हूँ. ऑटो वाला हर स्टॉप पर पीछे मूड कर मुझे देखता था.

मुझसे रहा नही गया तो मैने पूछ ही लिया कि क्या बात है है. वो दाँत निकाल

कर हँसने लगा.

"आपने मुझे पहचाना नही क्या. मैं गंगू का भाई हूँ."
 
मुझे तुरंत याद आ गया. गंगू हमारे घर रोज सुबह दूध देने आता था. एक

दिन वो बीमार था तो उसकी जगह ऑटो वाला दूध देने आया था.

उसकी उमर कोई 31 या 32 साल थी.

"मेरा नाम पार्कश है. शायद मैने बताया था आपको?"

"ओके...ज़रा जल्दी करो मैं लेट हो रही हूँ."

"क्या करू मेडम जी हर तरफ ट्रॅफिक ही ट्रॅफिक है. देल्ही में ये सबसे बड़ी

दिक्कत है."

मैं उसकी बातों पर रिएक्ट नही कर रही थी. मगर कुछ ना कुछ बोले जा रहा

था. अचानक उसने ऑटो रोक दिया.

"क्या हुआ?"

"मेडम जी आपकी इजाज़त हो तो एक पान ले लूँ."

"ठीक है...जल्दी करो"

5 मिनिट बाद वो पान चबता हुआ ऑटो की तरफ आ रहा था. मेरी नज़र उस पर

पड़ी तो उसने बड़े अश्लील तरीके से अपनी पॅंट में तने हुए लिंग को मेरी तरफ

देखते हुए मसला. मैने तुरंत अपना सर घुमा लिया.

"क्या आपने कभी पान खाया है मेडम जी."

"नही...ज़रा जल्दी करो."

"मेडम जी साहिब क्या काम करते हैं?"

"तुमसे मतलब...तुम ऑटो चलाने पर ध्यान दो."

उसने मुझे घर के बाहर उतार दिया. मैने पैसे पुच्छे तो उसने मना कर दिया.

"रहने दीजिए मेडम जी. आपके यहा दूध देते हैं हम"

"वो तो तुम्हारा भाई देता है ना."

"अगले महीने वो कुछ काम से बाहर जा रहा है. फिर मैं ही देने आउन्गा."

"जो भी हो पैसे तो तुम्हे लेने ही पड़ेंगे. बताओ कितने हुए?"

"आप इतना कह रही हैं तो 100 दे दीजिए."

100 मुझे ज़्यादा लगे मगर फिर भी मैने तुरंत उसे पर्स से निकाल कर दे

दिए.

मगर जाते जाते वो कुछ अजीब बोल गया.

"मेडम जी मेरे लिए लड़की ढूंढी जा रही है. काश आपके जैसी लड़की मुझे मिल

जाए."

मैं उसे देखती रह गयी और बिना कुछ कहे घर की तरफ चल दी. मैने पीछे

मूड कर देखा तो वो ऑटो लिए वही खड़ा था. कमीना हिलते हुए मेरे नितंबो को

घूर रहा था.

घर में घुसते ही मुझे एक प्लान सूझा. मैने किचन में एक कॅमरा फिट कर

दिया ताकि जब भी चाचा मुझे छेड़े उसकी करतूत कॅमरा में रेकॉर्ड हो जाए.

जैसे ही मैं कॅमरा फिट करके हटी डोर बेल बज उठी. मैने दरवाजा खोला तो

चाचा मेरे सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.

"तुम सिनिमा से अकेली भाग आई. हम साथ आते तो अच्छा रहता. चलो कोई बात

नही."

मन तो कर रहा था की उसके मूह पर दरवाजा पटक दूं और उसे घर में ना घुसने दूं पर अपने प्लान का ख्याल आने पर मैने खुद को थाम लिया.

मैं चुपचाप बिना कुछ कहे किचन में आ गयी और कॅमरा ऑन कर दिया. प्लान

के मुताबिक मुझे किचन में ही रुकना था. मुझे पूरा यकीन था कि वो किचन

में आकर छेड़खानी ज़रूर करेगा. मैं किचन के छोटे मोटे कामों में लग

गयी.

"गगन कब तक आएगा निधि?"

मैने मूड कर देखा तो चाचा किचन के दरवाजे पर खड़ा था.

क्रमशः…………………………………
 
बिन बुलाया मेहमान-7

गतान्क से आगे……………………

"मुझे नही पता. उन्होने फोन नही किया. शायद देर हो जाएगी उन्हे आने में.

आप बैठिए मैं खाना तैयार करके आपको बुला लूँगी." मैने जानबूझ कर

शालीनता से जवाब दिया क्योंकि सब कुछ रेकॉर्ड हो रहा था और ये रेकॉर्डिंग

मुझे गगन को दिखानी थी.

मैं वापिस अपने काम में लग गयी. मैं आलू काट रही थी. अचानक मुझे

चाचा के कदम अंदर की और आते महसूस हुए तो मेरे दिल की धड़कन तेज हो

गयी. मेरे पूरे शरीर में अजीब सी हलचल होने लगी.

"बस अब ये मेरे नितंबो को छुएगा और सब कुछ रेकॉर्ड हो जाएगा. जैसे ही ये

मेरे नितंबो को छुएगा मैं घूम कर इसे चाँटा मारूँगी. फिर ये और ज़्यादा

बदतमीज़ी करेगा तो सब कुछ रेकॉर्ड होता जाएगा." मैं एक साथ बहुत सारी

बाते सोच रही थी. मगर जैसा मैं सोच रही थी वैसा कुछ नही हुआ. वो

पानी पी कर चुपचाप बिना कुछ कहे किचन से बाहर चला गया.

मैं असमंजस में पड़ गयी कि आख़िर उसने मुझे छेड़ा क्यों नही.

गगन रात को 12 बजे वापिस आए. इस दौरान मैने कयि बार किचन में

चक्कर लगाए पर चाचा ने कोई ऐसी वैसी हरकत नही की.

अगले दिन मैने कॅमरा ड्रॉयिंग रूम में फिट कर दिया. गगन के जाने के बाद

मैं मॅग्ज़िमम बाहर ही घूमती रही. चाचा मुझे घूरता था मगर मुझे छेड़ने की कॉसिश नही करता था. मुझे समझ नही आ रहा था कि हो क्या रहा है.

मुझे ये भी लगा कि कही उसे मेरे प्लान का पता तो नही चल गया. मैं उसे हर हाल में सबक सिखाना चाहती थी पर ना जाने क्यों वो जाल में फँस ही नही रहा था.

मैं दोपहर को बेडरूम में सोने की बजाए ड्रॉयिंग रूम में ही फॅमीना मॅग्जीन लेकर बैठ गयी. चाचा कुछ देर बाद अपने कमरे से निकला और टाय्लेट में घुस गया. मैं तुरंत उठ कर खिड़की पर आकर खड़ी हो गयी और बाहर देखने का नाटक करने लगी. चाचा कुछ देर बाद टाय्लेट से निकला और सोफे पर आकर बैठ गया. उसने फॅमीना मगज़ीन उठा ली. अब मुझे कुछ ना कुछ होने की आसंका होने लगी थी. मेरे दिमाग़ में कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे थे.

मैं सोच रही थी कि अभी चाचा उठेगा और मेरे नितंबो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगेगा और मेरे नितंबो के बीच में उंगली भी डालेगा ताकि मेरे छिद्र को अच्छे से रगड़ सके. ये सब ख्याल आते ही मेरी योनि नम हो गयी. जब मुझे मेरी जाँघो में गीला गीला महसूस हुआ तब मुझे अहसास हुआ कि मैं कितनी बेहूदा बाते सोच रही हूँ. मैं हैरान थी कि चाचा की हरकतों को सोच कर ही मेरी योनि गीली हो गयी थी. मैं खुद को कोसने लगी कि मैं कैसे इस देहाती के बारे में सोच कर उत्तेजित हो सकती हूँ.

मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि चाचा मॅग्जीन में खोया था. वो पन्ने पलट पलट कर बड़े गौर से हर पेज को देख रहा था. अचानक उसने मगजीन टेबल पर वापिस रख दी. मैने तुरंत अपनी गर्दन खिड़की की तरफ घुमा ली.

"अब ये उठेगा और मेरे नितंबो को दोनो हाथो में थाम लेगा और सब कुछ कॅमरा में रेकॉर्ड हो जाएगा. आज इसकी खैर नही."

चाचा उठ कर मेरे पीछे आ गया और बोला, "क्या देख रही हो बाहर निधि बेटी."

मैने कोई जवाब नही दिया और अपनी आँखे बंद कर ली. मेरी टांगे काँपने लगी थी और मेरी योनि फिर से पानी छोड़ने लगी थी. ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं चाचा के हाथो की छुअन के लिए मरी जा रही हूँ.

"क्या हुआ निधि बेटी. तुम कुछ परेशान सी हो." चाचा ने पूछा.

"आप क्यों कर रहे हैं ये सब मेरे साथ" मैने चिल्ला कर कहा.

"अब तो मैं कुछ भी नही कर रहा. अब क्या दिक्कत है तुम्हे?" चाचा ने बहुत धीरे से कहा और कह कर अपने कमरे में चला गया. मैं ठगी सी उसे जाते हुए देखती रही.चाचा के जाने के बाद मैं कॅमरा ऑफ करके ड्रॉयिंग से अपने बेडरूम में आ गयी. मुझे समझ में नही आ रहा था कि आख़िर चाचा ने अचानक मेरे साथ छेड़खानी करनी क्यों बंद कर दी. मुझे बार बार यही लग रहा था कि उसे मेरे प्लान की भनक लग गयी है. हो सकता है उसने कॅमरा लगा देख लिया हो. पर मुझे ये भी लग रहा था कि उस देहाती को कॅमरा के बारे में जानकारी कहाँ होगी.
 
लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये परेशान कर रही थी कि ड्रॉयिंग रूम में चाचा की छेड़खानी को सोचने भर से ही मेरी योनि नाम हो गयी थी. ऐसा क्यों हुआ मुझे समझ में नही आ रहा था. अचानक मुझे ख्याल आया.

"क्या मुझे उसकी छेड़खानी पसंद आने लगी है. हाउ डिज़्गस्टिंग... ऐसा नही हो सकता. कहाँ वो बदसूरत देहाती और कहाँ मैं." मैं बोखला उठी. मैने मन ही मन ठान लिया की गगन के सामने हर हाल में उसका पर्दाफाश करके रहूंगी. मैं इन विचारो में खोई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

"आज फिर ये चाय माँगेगा. दे देती हूँ इसे चाय. क्या पता ये मेरे जाल में फँस जाए." सोचते हुए मैने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला.

"बेटी मेरे लिए एक कप चाय बना दोगि." चाचा ने कहा.

"जी हां बिल्कुल आप ड्रॉयिंग रूम में बैठिए मैं अभी चाय लेकर आती हूँ."मैने जान बुझ कर उसे ड्रॉयिंग रूम में बैठने को बोल दिया.

"ठीक है निधि बेटी." वो हंसता हुआ वहाँ से चला गया.

किचन में जाते वक्त उसे टाय्लेट में जाते देखा तो मैने तुरंत कॅमरा ऑन कर दिया और फुर्ती से किचन में घुस्स गयी ताकि उसे शक ना हो. चाय बना कर मैं ड्रॉयिंग रूम में आई तो चाचा सोफे पर बैठा फॅमीना मगजीन लिए बैठा था. वो लॅडीस अंडरगार्मेंट्स की अड्वर्टाइज़्मेंट वाले पेज को खोले बैठा था. उसमे एक खूबसूरत मॉडेल सिर्फ़ ब्रा और पॅंटीस में एक पेड़ के सहारे खड़ी थी. चाचा उसके उभारों पर हाथ फेर रहा था. मैने बिना कुछ कहे चाचा की तरफ चाय बढ़ाते हुए कहा, "लीजिए चाचा जी चाय."क्योंकि सब रेकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं उसे कुछ ज़्यादा ही इज़्ज़त दे रही थी.

"कितनी सुंदर चुचियाँ हैं इस लड़की की. गान्ड भी एक दम मस्त है. मगर तुम्हारे आगे ये कुच्छ भी नही है. तुम्हारी चुचियाँ और गान्ड तो जबरदस्त हैं."

"आपको ऐसी बाते सोभा नही देती चाचा जी."मैने शालीनता से कहा

"जब से तुम्हारी गान्ड पकड़ कर मसली है तुम्हे तमीज़ आ गयी है. ऐसा ही होना चाहिए. हमेशा तमीज़ से बात करनी चाहिए तुम्हे."

"चाचा जी आपको मेरे साथ ऐसी बाते नही करनी चाहिए."

"कैसी बाते निधि बेटी हहेहहे." वो हंसते हुए बोला.

"आपको मेरे साथ ऐसा बर्ताव नही करना चाहिए."

"देखो तुम्हारे जैसा शरीर बहुत कम लड़कियों को मिलता है. इसका भरपूर आनंद लो. वक्त दुबारा नही आएगा. आओ मेरी गॉडी में बैठ जाओ और प्रेम से अपने अंगों को मेरे हाथों से मसलवाओ. तुम्हे भरपूर आनंद आएगा."

"चाचा जी ज़ुबान संभाल कर बात कीजिए. आप होश में तो हैं. आप अपने भतीजे की पत्नी से बात कर रहे हैं."

"छोड़ भी ये नाटक. तू भी खूब मज़े करती है मेरे साथ. सिनिमा के टाय्लेट में तूने बड़ी जल्दी अपना पानी छोड़ दिया था. ऐसा तभी होता है जब छोकरी मज़े लूटती है. मान ले मेरी बात तुझे मुझसे अपनी गान्ड और चूत मसलवाना अच्छा लगता है."

मैं ये सुनते ही आग बाबूला हो गयी.

"शट अप यू बस्टर्ड... ऐसा कुछ नही है. मैं कोई मज़े नही लूटती हूँ. शरम आनी चाहिए तुम्हे ऐसी बाते करते हुए."

"अगर मज़े नही लूटती हो तो फिर ये बताओ तुम्हारी चूत क्यों पानी बहा रही थी सिनिमा के टाय्लेट में"

"फ़िजूल की बाते मत करो देहाती ऐसा कुछ नही है जैसा तुम सोच रहे हो. एक तो यहाँ ज़बरदस्ती हमारे घर में घुस गये हो उपर से इतनी गिरी हुई हरकते करते हो."

चाचा ने फुर्ती से सोफे से उठ कर मेरा हाथ पकड़ लिया. मैने बहुत जद्दो जहद की पर फिर से उसने मेरा हाथ मरोड़ ही दिया.

"छोड़ो मेरा हाथ देहाती." मैं छटपटाते हुए बोली.

"चलो अभी देख लेते हैं कि तुम्हारी चूत पानी छोड़ती है कि नही." चाचा ने मेरे नितंबों को मसल्ते हुए कहा.

"ऐसा कुछ नही होगा...छोड़ो मेरा हाथ."

"देखने तो दो मेरी रानी."चाचा ने अब मेरी योनि पर हाथ रखते हुए कहा.

"हाथ हटा लो अपना."

"रूको तो मेरी रानी. आज तो ये और ज़्यादा गरम लग रही है. मेरा हाथ लगते ही फड्क रही है. तुम्हारी चूत को मेरे हाथो की छुअन अच्छी लगती है."
 
"ऐसा कुछ नही है. छोड़ो मुझे." मैं उसकी पकड़ से छूटने की पूरी कोशिस कर रही थी. पर उसने पूरी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था. उसके बायें हाथ ने मेरे एक हाथ को मरोड़ रखा था और उसका दायां हाथ अश्लीलता से योनि पर घूम रहा था.

कुछ देर तक वो सलवार के उपर से ही मेरी योनि को तरह तरह से मसलता रहा और मैं छटपटाती रही. अचानक उसके हाथ मेरे नाडे की तरफ बढ़ा.

"अंदर हाथ मत डालना." मैं तुरंत चिल्लाई.

"क्यों ना डालूं. तुम्हारी चूत खुद मेरे हाथ को बुला रही है."

"शट अप यू पिग."

"इंग्लीश मुझे समझ नही आती हिन्दी में बोलो."

"तुम सूअर हो."

"कोई बात नही ये सूअर तुम्हारी चूत को खूब मज़े देगा हहहे. बस थोड़ा सा इंतेज़ार करो." चाचा ने मेरे कान में धीरे से कहा.

क्रमशः…………………………………
 
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