hotaks444
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अगले दिन
अगले दिन मैं भाभी के घर नहीं जा पायी, हां उसको आने का बुलौवा मैंने जरूर भेजा था, मुझे “पढ़ाई” में कुछ हेल्प करने के लिये।
शाम से ही मैं बेचैन थी, क्या पहनूं, क्या न पहनूं… कब तक आयेगा वो या कहीं ना अये… मैंने कई ड्रेसेज निकालकर पलंग पर रखीं, टाइट जीन्स, टाप, शर्ट स्कर्ट, सलवार सूट… लेकिन फिर कुछ सोचके मैं मुश्कुरायी और अपनी एक पुरानी फ्राक जिसे मैंने साल भर पहले से पहनना छोड़ दिया था, निकाली, पिंक कलर की।
फ्राक थोड़ी, सच कहूं तो काफी टाइट थी।
मेरे उभार खुलकर पता चल रहे थे और जिस तरह से कल वह उन्हें घूर रहा था, मुझे लगा कि कुछ तो उसके नजरों की प्यास बुझा दूं।
मेरी पिछली बर्थ-डे पर भाभी ने मुझे कुछ “नाटी” ब्रा पैंटी का सेट गिफ्ट किया था, उसमें से मैंने एक लेसी पतली पैंटी और लेसी हाफ ब्रा निकाली। जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो एकदम पता चल रहा था कि मेरे उभार टाइट फ्राक से बर्स्ट कर रहे थे। मुश्कुराते हुए मैंने हाथ डालकर थोड़ी अपनी ब्रा को एड्जस्ट किया और अब मेरे निपल ब्रा से बाहर थे और खुलकर मेरी फ्राक से रगड़ खा रहे थे।
नीचे भी मेरी दूधिया जांघें खुलकर दिख रही थीं। मैंने हल्की सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली।
बाहर घंटी बजी तो मैं बड़े जोर से बाहर निकली, पर वह दूध वाला था।
अब मैं इंतजार में बेचैन हो रही थी। आयेगा, नहीं आयेगा, सामने रखे गुलदस्ते में से फूल निकालकर उसकी एक-एक पंखुड़ियां मैं, लव मी, लव मी नाट के अंदाज में तोड़ती रही। अचानक मैंने मुड़कर देखा तो वह खड़ा था, और मेरी बेचैनी निहार रहा था। मुझे देखते ही वह मुश्कुराने लगा।
पेस्टल टी-शर्ट और टाइट जींस में वह बहुत डैशिंग और खूबसूरत लगा रहा था।
उसे देखते ही मैं खड़ी हो गयी और मुश्कुराकर बोली- “हे तुम कब …”
“अभी…”
मैं उसे चुपचाप निहार रही थी।
वह सामने पलंग पर बैठ गया।
मैं बोली- “तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी है…”
“और ड्रेस के अंदर जो है… पहनने वाला…” आज वह भी बोल रहा था।
मैं भी उसी अंदाज में बोली- “वो भी बहुत अच्छा है। लेकिन जितना दिखेगा तारीफ तो उतने की होगी ना। बाकी का तो सिर्फ अंदाज लग सकता है…” मैं हँसकर बोली।
उसकी निगाह, मेरी फ्राक के अंदर कबूतरों पर चिपकी थी।
मैंने अपने हाथ उनके नीचे रखकर इस तरह क्रास किया की वह और उभरकर सामने आ गये। कबूतरों की चोंच मेरी फ्राक से रगड़ खा रही थी और साफ दिख रही थी। मैंने अपनी जांघें क्रास कर रखीं थीं। उसका असर उसके जीन्स पर हो रहा था।
“क्या पढ़ना है तुमको, तुम कह रही थी ना… कुछ पूछना है ना तुमको…” वह बोला।
“जो तुम पढ़ाओ… लेकिन नहीं आयेगा तो मारोगे तो नहीं…” उसकी आँखों में आँखें डालकर शरारत से मैंने पूछा।
“मार भी सकता हूं… बात नहीं मानोगी तो…” आज वह भी मूड में लगा रहा था।
मैंने अब थोड़ी अपनी जांघें फैलायीं और बोली-
“देखो मैं भी कितनी बुद्धू हूं… तुमसे पानी तक नहीं पूछा और पढ़ायी की बात शुरू कर दी। लेकिन सब तुम्हारी गालती है, जब तुम पास में रहते हो ना तब मैं सब कुछ भूल जाती हूं…” आँख नचाती हुई मैं बोली।
“अच्छा जी… भूलें आप और गलती मेरी… ये अच्छी बात है…”
अब तक मेरी जांघें काफी फैल चुकी थीं और अब उसकी निगाहें वहीं खेल रहीं थीं।
उठते हुए मैं शोख अदा से बोली- “और क्या लड़कियां कुछ भी करें, गलती तो लड़कों की ही होती है, आखिर लड़की होने का फिर फायदा क्या हुआ…”
उठते हुए जैसे मैं उससे टकरा गयी हुं, मैं कुछ लड़खड़ा गयी। उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था।
जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।
“लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली।
“और पूरी… कब होगी…” आज चिड़िया चहकने लगी थी।
पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा…”
खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…”
“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…”
उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…” मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी।
“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं। वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी।
“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…” उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये।
“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है…” प्रशंसा से वो बोला।
“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली।
“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कीयों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी।
मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो क्या चेंज होता है… साफ-साफ बताओ ना…”
“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था।
मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते है, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”
तब तक आवाज आयी खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई।
झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले।
कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नज़ारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं।
“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”
अगले दिन मैं भाभी के घर नहीं जा पायी, हां उसको आने का बुलौवा मैंने जरूर भेजा था, मुझे “पढ़ाई” में कुछ हेल्प करने के लिये।
शाम से ही मैं बेचैन थी, क्या पहनूं, क्या न पहनूं… कब तक आयेगा वो या कहीं ना अये… मैंने कई ड्रेसेज निकालकर पलंग पर रखीं, टाइट जीन्स, टाप, शर्ट स्कर्ट, सलवार सूट… लेकिन फिर कुछ सोचके मैं मुश्कुरायी और अपनी एक पुरानी फ्राक जिसे मैंने साल भर पहले से पहनना छोड़ दिया था, निकाली, पिंक कलर की।
फ्राक थोड़ी, सच कहूं तो काफी टाइट थी।
मेरे उभार खुलकर पता चल रहे थे और जिस तरह से कल वह उन्हें घूर रहा था, मुझे लगा कि कुछ तो उसके नजरों की प्यास बुझा दूं।
मेरी पिछली बर्थ-डे पर भाभी ने मुझे कुछ “नाटी” ब्रा पैंटी का सेट गिफ्ट किया था, उसमें से मैंने एक लेसी पतली पैंटी और लेसी हाफ ब्रा निकाली। जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो एकदम पता चल रहा था कि मेरे उभार टाइट फ्राक से बर्स्ट कर रहे थे। मुश्कुराते हुए मैंने हाथ डालकर थोड़ी अपनी ब्रा को एड्जस्ट किया और अब मेरे निपल ब्रा से बाहर थे और खुलकर मेरी फ्राक से रगड़ खा रहे थे।
नीचे भी मेरी दूधिया जांघें खुलकर दिख रही थीं। मैंने हल्की सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली।
बाहर घंटी बजी तो मैं बड़े जोर से बाहर निकली, पर वह दूध वाला था।
अब मैं इंतजार में बेचैन हो रही थी। आयेगा, नहीं आयेगा, सामने रखे गुलदस्ते में से फूल निकालकर उसकी एक-एक पंखुड़ियां मैं, लव मी, लव मी नाट के अंदाज में तोड़ती रही। अचानक मैंने मुड़कर देखा तो वह खड़ा था, और मेरी बेचैनी निहार रहा था। मुझे देखते ही वह मुश्कुराने लगा।
पेस्टल टी-शर्ट और टाइट जींस में वह बहुत डैशिंग और खूबसूरत लगा रहा था।
उसे देखते ही मैं खड़ी हो गयी और मुश्कुराकर बोली- “हे तुम कब …”
“अभी…”
मैं उसे चुपचाप निहार रही थी।
वह सामने पलंग पर बैठ गया।
मैं बोली- “तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी है…”
“और ड्रेस के अंदर जो है… पहनने वाला…” आज वह भी बोल रहा था।
मैं भी उसी अंदाज में बोली- “वो भी बहुत अच्छा है। लेकिन जितना दिखेगा तारीफ तो उतने की होगी ना। बाकी का तो सिर्फ अंदाज लग सकता है…” मैं हँसकर बोली।
उसकी निगाह, मेरी फ्राक के अंदर कबूतरों पर चिपकी थी।
मैंने अपने हाथ उनके नीचे रखकर इस तरह क्रास किया की वह और उभरकर सामने आ गये। कबूतरों की चोंच मेरी फ्राक से रगड़ खा रही थी और साफ दिख रही थी। मैंने अपनी जांघें क्रास कर रखीं थीं। उसका असर उसके जीन्स पर हो रहा था।
“क्या पढ़ना है तुमको, तुम कह रही थी ना… कुछ पूछना है ना तुमको…” वह बोला।
“जो तुम पढ़ाओ… लेकिन नहीं आयेगा तो मारोगे तो नहीं…” उसकी आँखों में आँखें डालकर शरारत से मैंने पूछा।
“मार भी सकता हूं… बात नहीं मानोगी तो…” आज वह भी मूड में लगा रहा था।
मैंने अब थोड़ी अपनी जांघें फैलायीं और बोली-
“देखो मैं भी कितनी बुद्धू हूं… तुमसे पानी तक नहीं पूछा और पढ़ायी की बात शुरू कर दी। लेकिन सब तुम्हारी गालती है, जब तुम पास में रहते हो ना तब मैं सब कुछ भूल जाती हूं…” आँख नचाती हुई मैं बोली।
“अच्छा जी… भूलें आप और गलती मेरी… ये अच्छी बात है…”
अब तक मेरी जांघें काफी फैल चुकी थीं और अब उसकी निगाहें वहीं खेल रहीं थीं।
उठते हुए मैं शोख अदा से बोली- “और क्या लड़कियां कुछ भी करें, गलती तो लड़कों की ही होती है, आखिर लड़की होने का फिर फायदा क्या हुआ…”
उठते हुए जैसे मैं उससे टकरा गयी हुं, मैं कुछ लड़खड़ा गयी। उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था।
जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।
“लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली।
“और पूरी… कब होगी…” आज चिड़िया चहकने लगी थी।
पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा…”
खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…”
“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…”
उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…” मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी।
“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं। वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी।
“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…” उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये।
“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है…” प्रशंसा से वो बोला।
“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली।
“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कीयों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी।
मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो क्या चेंज होता है… साफ-साफ बताओ ना…”
“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था।
मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते है, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”
तब तक आवाज आयी खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई।
झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले।
कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नज़ारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं।
“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”