Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 21 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

अगले दिन 



अगले दिन मैं भाभी के घर नहीं जा पायी, हां उसको आने का बुलौवा मैंने जरूर भेजा था, मुझे “पढ़ाई” में कुछ हेल्प करने के लिये। 


शाम से ही मैं बेचैन थी, क्या पहनूं, क्या न पहनूं… कब तक आयेगा वो या कहीं ना अये… मैंने कई ड्रेसेज निकालकर पलंग पर रखीं, टाइट जीन्स, टाप, शर्ट स्कर्ट, सलवार सूट… लेकिन फिर कुछ सोचके मैं मुश्कुरायी और अपनी एक पुरानी फ्राक जिसे मैंने साल भर पहले से पहनना छोड़ दिया था, निकाली, पिंक कलर की।


फ्राक थोड़ी, सच कहूं तो काफी टाइट थी। 



मेरे उभार खुलकर पता चल रहे थे और जिस तरह से कल वह उन्हें घूर रहा था, मुझे लगा कि कुछ तो उसके नजरों की प्यास बुझा दूं। 





मेरी पिछली बर्थ-डे पर भाभी ने मुझे कुछ “नाटी” ब्रा पैंटी का सेट गिफ्ट किया था, उसमें से मैंने एक लेसी पतली पैंटी और लेसी हाफ ब्रा निकाली। जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो एकदम पता चल रहा था कि मेरे उभार टाइट फ्राक से बर्स्ट कर रहे थे। मुश्कुराते हुए मैंने हाथ डालकर थोड़ी अपनी ब्रा को एड्जस्ट किया और अब मेरे निपल ब्रा से बाहर थे और खुलकर मेरी फ्राक से रगड़ खा रहे थे। 


नीचे भी मेरी दूधिया जांघें खुलकर दिख रही थीं। मैंने हल्की सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली। 
बाहर घंटी बजी तो मैं बड़े जोर से बाहर निकली, पर वह दूध वाला था। 



अब मैं इंतजार में बेचैन हो रही थी। आयेगा, नहीं आयेगा, सामने रखे गुलदस्ते में से फूल निकालकर उसकी एक-एक पंखुड़ियां मैं, लव मी, लव मी नाट के अंदाज में तोड़ती रही। अचानक मैंने मुड़कर देखा तो वह खड़ा था, और मेरी बेचैनी निहार रहा था। मुझे देखते ही वह मुश्कुराने लगा। 


पेस्टल टी-शर्ट और टाइट जींस में वह बहुत डैशिंग और खूबसूरत लगा रहा था।


उसे देखते ही मैं खड़ी हो गयी और मुश्कुराकर बोली- “हे तुम कब …”
“अभी…” 
मैं उसे चुपचाप निहार रही थी। 

वह सामने पलंग पर बैठ गया। 

मैं बोली- “तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी है…” 
“और ड्रेस के अंदर जो है… पहनने वाला…” आज वह भी बोल रहा था। 


मैं भी उसी अंदाज में बोली- “वो भी बहुत अच्छा है। लेकिन जितना दिखेगा तारीफ तो उतने की होगी ना। बाकी का तो सिर्फ अंदाज लग सकता है…” मैं हँसकर बोली। 


उसकी निगाह, मेरी फ्राक के अंदर कबूतरों पर चिपकी थी। 


मैंने अपने हाथ उनके नीचे रखकर इस तरह क्रास किया की वह और उभरकर सामने आ गये। कबूतरों की चोंच मेरी फ्राक से रगड़ खा रही थी और साफ दिख रही थी। मैंने अपनी जांघें क्रास कर रखीं थीं। उसका असर उसके जीन्स पर हो रहा था।


“क्या पढ़ना है तुमको, तुम कह रही थी ना… कुछ पूछना है ना तुमको…” वह बोला। 


“जो तुम पढ़ाओ… लेकिन नहीं आयेगा तो मारोगे तो नहीं…” उसकी आँखों में आँखें डालकर शरारत से मैंने पूछा। 
“मार भी सकता हूं… बात नहीं मानोगी तो…” आज वह भी मूड में लगा रहा था। 


मैंने अब थोड़ी अपनी जांघें फैलायीं और बोली- 


“देखो मैं भी कितनी बुद्धू हूं… तुमसे पानी तक नहीं पूछा और पढ़ायी की बात शुरू कर दी। लेकिन सब तुम्हारी गालती है, जब तुम पास में रहते हो ना तब मैं सब कुछ भूल जाती हूं…” आँख नचाती हुई मैं बोली। 
“अच्छा जी… भूलें आप और गलती मेरी… ये अच्छी बात है…” 


अब तक मेरी जांघें काफी फैल चुकी थीं और अब उसकी निगाहें वहीं खेल रहीं थीं। 



उठते हुए मैं शोख अदा से बोली- “और क्या लड़कियां कुछ भी करें, गलती तो लड़कों की ही होती है, आखिर लड़की होने का फिर फायदा क्या हुआ…” 


उठते हुए जैसे मैं उससे टकरा गयी हुं, मैं कुछ लड़खड़ा गयी। उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था। 


जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था। 


“लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली। 
“और पूरी… कब होगी…” आज चिड़िया चहकने लगी थी। 


पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा…” 


खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…” 
“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…” 


उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…” मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी। 



“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं। वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी। 


“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…” उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये। 


“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है…” प्रशंसा से वो बोला। 


“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली। 
“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कीयों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी। 


मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो क्या चेंज होता है… साफ-साफ बताओ ना…” 


“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था। 
मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते है, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”


तब तक आवाज आयी खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई।


झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले। 


कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नज़ारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं। 






“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”
 
रविन्द्र मेरी भाभी का देवर 



View attachment 1young 2.jpg[/attachment]किचेन में खाना बना था, मैंने सलाद बनायी और उसके लिये खास तौर पे गाजर की खीर।


जब मैं खाना लेकर लौटी तो वह मेरी फोटुयें देखने में मगन था और उसके चेहरे से लग रहा था कि उसके ऊपर क्या बीत रही है। 


मैंउसने निगाहें उठायीं तो सामने मेरे जोबन का क्लीवेज़ साफ-साफ दिख रहा था। 


“खा लूं…” अब वह भी द्विअर्थी ढंग से बोलने लगा था और उसकी आवाज में भूख साफ-साफ दिख रही थी।


मैंने भी उसी तरह जवाब दिया और बल्की उसके पास सटकर-


“और क्या… तुम्हारे लिये ही तो है, और सामने इतना रसभरा खाना हो और कोई भूखा रहे तो उसे तो बुद्धू ही कहेंगे ना…”

“इसमें तुमने क्या बनाया है…” बात बदलकर उसने पूछा। 

“सलाद और गाजर की खीर, लो खाओ…” कहकर मैंने अपने हाथ से सलाद में से गाजर का एक पतला टुकड़ा निकाला और उसके मुँह पे लगा दिया। (बात यह थी कि मैं कामिनी भाभी का फार्मूला नहीं भूली थी, जब मैं उसके लिये पानी लेने गयी थी, तभी मैंने किचेन से एक लंबा और मोटा लाल गाजर ले लिया था और कमरें में घुसने से पहले, पैंटी सरकाकर अंदर… )


ने कुछ सोचके फ्राक की दो टाप बटन खोल लीं और उसके पास आकर टेबल पर खाना रखकर, झुक कर बोली- “खाना पेश है…”



और जितने देर मैं उसके पास बैठी रही, उसकी रसीली निगाहों से मैं गीली होती रही, वह वहीं और जब मैं खाना लगाने गयी तो उसी गाजर की सलाद और खीर बना ली)। अपने हाथों से मैं उसे पूरी गाजर की सलाद खिलाकर ही मानी। 



जब उसने खाने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने रोक दिया, अपने हाथ से कौर उसके मुँह में ले गयी-


“हे, जब मैं तुम्हारे पास हूँ तो तुम्हें हाथ इश्तेमाल करने की क्या जरूरत… मैं हूँ ना…” 


वह मेरा असली मतलब समझ गया और मेरे हाथ से खाते हुए बोला- 

“आगे से नहीं करूंगा…” 


एक-दो कौर खिलाने के बाद एक कौर मैं उसके मुँह के पास ले जाकर हटा ली और खुद गड़प ली। उसने जब मेरी ओर घूरा तो मैं हँस के आँख नचाके बोली- अरे मैं भी तो भूखी हूं…” 


इस तरह छेड़छाड़ के साथ एक दूसरे के हाथों के रस के साथ खाकर खाना खतम किया। गाजर की खीर तो मैंने उसी पूरी खिलायी, यहां तक की उसने जीभ से कटोरी तक चाट ली। 


“हाथ कहां साफ करूं…” वो बोला। 


“बताती हूं…” और उसके हाथ को मैंने पकड़ लिया और उसकी एक-एक उंगली मैंने चूस चाटकर साफ कर दी। मैं उसकी उंगली वैसे चाट रही थी जैसे कोई लड़की, किसी लड़के का लिंग… 


मैं उसके टिप को गुलाबी होंठों के बीच लेकर चूसती… फिर सारी उंगली गड़प कर लेती… उसे बाहर निकालकर मैं साईड को जीभ से चाटती… मेरी निगाहें उसके उभार की ओर थीं और उसकी हालत खराब हो रही थी। 

जब मैं थाली लेकर उठने लगी तो वो बोला कि कुछ बच गया है। 

“कोई बात नहीं…” कहकर मैं सब कुछ हाथ से समेटकर चट कर गयी और थाली लेकर चल दी। 

“हे वो मेरा जूठा था…” 


दरवाजे के पास से मुड़कर शोख अल से, जीभ होंठ पर फिराते मैं बोली- “तो क्या हुआ, जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है। और था भी बड़ा स्वादिष्ट…” 


लौट कर मैंने हिंदी की एक किताब उठायी, बिहारी की… और उसमें से मैंने एक दोहा निकाला- “ये देखिये… उन्नत कुच, पत्थर से कठोर, उल्टे कटोरे की तरह… क्या मतलब है इसका…”

“ये ये कहां से मिला ये तुम्हारे कोर्स में तो नहीं है…” वो बोला। 


“तो क्या हुआ, बिहारी तो कोर्स में हैं ना… मैंने सोचा की मूल पुस्तक पढ़नी चाहिये तो मैं लाइब्रेरी से ले आयी, पर ये जो अर्थ लिखा है… वह भी समझ में नहीं आ रहा है, तुम्हें मालूम है तो ठीक वरना मैं किसी और से पूछ लूंगी…” 

“नहीं नहीं… किसी और से मत पूछना… इसका मतलब है की… नायक को नायिका के उन्नत कुच… जो पत्थर की तरह कठोर हैं, पसंद हैं… मतलब…” 


मैं उससे और सट गयी और साफ-साफ जोबन को उभारकर अदा से बोली- “खुलकर साफ-साफ बताओ ना…” उसकी सांस मेरे सीने को देखकर तेज हो रही थी। 


“मतलब की नायक को नायिका के कुच, उसका सीना, सीने के उभार जो खूब…” 

तब तक लाईट चली गयी और मैंने उसके हाथ को अपने कंधे पे रख लिया, एकदम उभारों के पास खींच लिया और उसके चेहरे के पास चेहरे को ले जाकर मैंने धीरे से पूछा- “अच्छा तुम बताओ, तुम्हें कैसी लड़की पसंद है… कोई तो होगी जो तुम्हें पसंद होगी…” 



“हां पसंद है… है एक बहुत अच्छी है…” 

मैंने उसके हाथ को अब और कस के खींच लिया था और अब वह सीधे मेरे उभार पर था। मेरे गाल उसके गाल से सटे हुए थे। मैंने फिर पूछा- 


“बताओ ना कैसी है… कौन है… मैं भी तो जानूं…” 

“है एक तुम जानती हो उसको… बहुत सुंदर है, एकदम सेक्सी… प्यारी सी…” वह धीमे से बोला। 

“अगर एक बार मिल जाय ना मुझको…” मैंने फुस्फुसाहट में कहा। 

“क्यों मिल जाय तो क्या करोगी…” मुश्कुराकर वह बोला। 

“मुंह नोच लूंगी उसका… और क्या… लेकीन बड़ी किश्मत वाली होगी जिसे तुम चाहोगे…” 

“जलती हो उससे…” हँसकर वो बोला। 



तभी हवा तेज चली और खिड़की, दरवाजे खड़खड़ होने लगे। मैं उठकर गयी और दोनों की सिटकनी लगाकर बंद कर दी। लौटकर बैठते समय, मैं उसके पैरों से फँस गयी और गिरकर उसकी गोद में बैठ गयी। मैंने फिर उसका हाथ खींचकर अपने कंधे पर रख लिया और अपने उभार पर हल्के से दबा दिया। 


“जलूंगी ही… अगर मैं उसकी जगह होती…” हल्के से मैं बोली और उसके हाथ को सीने पे हल्के से दबा दिया।
अबकी उसने भी मेरे उभार को हल्के से सहलाते हुए, मेरे गाल से गाल रगड़कर पूछा- “अगर उसकी जगह तुम होती तो क्या करती…” 


मैं भी अपने गुलाबी गालों से उसके गाल रगड़कर बोली- “पहले मेरी तो इतनी किश्मत नहीं है… फिर करने को, वो तो शेर वाली बात होती, मिलने पर जो करेगा शेर ही करेगा, तो उसी तरह जो करते तुम ही करते… लेकिन तुम जो भी जितना भी जैसे भी करते… मैं सब करवा लेती… जरा भी चूं नहीं करती… पूर्ण समर्पण के साथ… लेकिन मैं इत्ती अच्छी नहीं हूँ कि तुम… मुझे…” मैं अब खुल के बोली। 


“नहीं… ये आज के बाद तुम कभी मत कहना ऐसा, तुमसे अच्छा कौन होगा…” वो बोला। 


अब मैं समझ गयी थी और मैं उसके दूसरे हाथ को अपने सीने के ऊपर ले गयी और उसे वहां कस के दबाते हुए कहा- 


“अच्छा तो तुम्हें मेरी कसम… खुलकर बताओ ना उसके बारें में कितनी उमर है कैसी लगती है…”


“**** सावन है उसका और बड़ी सेक्सी है… …” 


तेज सांसों के साथ अब मेरा सीना तेजी से ऊपर-नीचे हो रहा था। 


मैंने उसके दोनों हाथ अब कस के अपने सीने पे दबा लिये थे। और मैं बोली-

“और वह… तुम्हारे स्कूल में ही पढ़ती है, तुम्हारे क्लास में…” अब मैंने कस के उसके हाथ अपने सीने पे अपने हाथ से भींच दिये। 


वह भी अब खुलकर हल्के-हल्के मेरे रसीले जोबन दबा रहा था। उसका उत्तेजित लिंग लग रहा था कि, जीन्स फाड़ देगा। 


चन्दा की बात अब मुझे गलत लग रही थी। उसका उससे भी बड़ा लग रहा था जितना चन्दा ने बताया था। 


“और बोलो ना…” उसके खड़े लिंग को मैंने अपने नितंब से हल्के से दबाते हुये पूछा। 


उसने अब बिना किसी हिचक के कस के मेरे दोनों रसीले जोबनों को दबाकर, मजा लेते हुए कहा- “और वह इसी गली में रहती है…” 



तब तक लाईट आ गयी।
 
रविन्द्र ,... राखी ,... वादा 



View attachment 2boobs clothd 4.jpg[/attachment]तब तक लाईट आ गयी। हम दोनों उठ गये और मैंने सांकल खोल दी। जब वह जाते समय सबसे मिल रहा था तो उससे पूछा गया कि कल रक्षा बंधन में क्या प्रोग्राम है… 


उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं आ सकती हूँ… 


ठसके से मैं बोली- “जिसको राखी बंधवाना हो वो आये…” 

लेकिन मुझे डांट पड़ गयी और तय ये हुआ कि कल मैं उसके घर जाऊँगी। मैंने उससे पूछा की उसे कैसी राखी पसंद है…
तो वो मेरी ओर देखकर शैतानी से बोला- “बड़ी-बड़ी…” 


उस दिन रातभर मेरी हलत खराब थी। 


मेरा बहुत मन कर रहा था उंगली करने के लिये, पर कामिनी भाभी के बताये तरीके से जिस दिन से अयी, मैं पूरी तरह “उपवास” पर थी। 

उन्होंने बताया था की उनकी बूटी, कोई दो दिन तक चूत में डालकर कस के भींचे तो, वह एकदम कच्ची कली जैसी बन जायेगी। और मैं वैसे ही कर रही थी कि जब मैं रवीन्द्र से करवाऊँ तब… 



अगले दिन हालांकी छुट्टी थी, पर मेरी एक्स्ट्रा क्लास थी। तय यह हुआ कि मैं क्लास के बाद आफ्टरनून में सीधे, भाभी के घर चली जाऊँगी। 


उसी प्रोग्राम के मुताबिक, मैं क्लास के बाद सीधे भाभी के घर पहुँच गयी। 



भाभी ने सब तैयारी करके रखी थी। 

उनके पति, मेरे बड़े भैया को कहीं दो दिन के लिये टूर पर जाना था और वो मेरा इंतजार ही कर रहे थे। सबसे पहले उनको मैंने टीका लगाकर राखी बांधी और अपने हाथ से मिठाई खिलायी। उन्होंने मुझे 501 रूपये का लिफाफा दिया, और चले गये। 


मैंने भाभी से मजाक में कहा- “आज तो आप रात में सास बहू देख लेंगी…” मैं हँसकर बोलीं।


“ननद रानी आज शुक्रवार है, आज सास बहू नहीं आता, और तुम्हारे भैय्या इतने सस्ते में छोड़ने वाले नहीं आज दिन भर वो… रवीन्द्र घर में था तब भी, कमरा बंद करके चढ़े रहे… तीन-तीन बार और एक बार पीछे से भी… चला नहीं जा रहा है, बस मेरा तो मन कर है, बस जाकर सो जाऊँ… अच्छा है तुम आ गयी हो, आज रात का खाना भी तुम्ही बनाना…” 



“खाना तो मैं बना दूंगी भाभी, लेकीन… मेरे भैय्या को क्यों बदनाम करती हैं… आप हैं ही इतनी प्यारी, इस जोबन को देखकर कौन नहीं…” 


मेरी बात काटकर भाभी बोली- 


“अच्छा, अब ज्यादा मक्खन मत लगा, रवीन्द्र को बुलाती हूँ वह भी इंतेजार कर रहा है तुम्हारा…” 



तब तक रवीन्द्र सीढ़ियों से उतरता दिखाई दिया। 

“शैतान का नाम लो शैतान हाजिर…” मैं बोली। 

मेरी चोटी कस के खींचता वो बोला- “अभी शैतानी करूंग ना तो पता चलेगा…” 


मैंने इधर-उधर देखा, भाभी टीका की थाली लाने किचेन में गयीं थीं। 



मैं मुश्कुरा के बदमाशी से सीना उभार करके बोली- “करो ना… यहां डरता कौन है… तुम्ही पीछे हट जाओगे…”

मैं उसके लिये पूरा बाजार छानकर, सबसे बड़ी राखी ढूँढ़कर लायी थी। 


भाभी अभी भी किचेन में थी। मैंने उसे राखी निकालकर, अपनी दोनों चूचियों के क्लीवेज के बीच रखकर दिखाते हुए, धीरे से मुश्कुराकर पूछा- 


“क्यों पसंद है, साइज़…” 





J“करो ना… यहां डरता कौन है… तुम्ही पीछे हट जाओगे…”

मैं उसके लिये पूरा बाजार छानकर, सबसे बड़ी राखी ढूँढ़कर लायी थी। 


भाभी अभी भी किचेन में थी। मैंने उसे राखी निकालकर, अपनी दोनों चूचियों के क्लीवेज के बीच रखकर दिखाते हुए, धीरे से मुश्कुराकर पूछा- 


“क्यों पसंद है, साइज़…” 





“एकदम मेरे लिये परफेक्ट है, यही चाहिये मुझे…” शैतानी से मुश्कुराते हुये वो बोला। 


तब तक भाभी आ गयीं।


मैंने राखी को थाली में रखा। वह खूब बड़ी और चमकदार तो थी ही, आर्ची से मैंने एक बड़े साईज़ का लाल पेपर-हार्ट भी ले लिया और उसे उसमें स्टिच करा लिया था। पहले तो मैंने उसे टीका लगाया और शैतानी से थोड़ी सी लाल रोली उसके गोरे गाल पर भी लगा दी। 


और फिर उसकी कलायी में राखी बांध दी। 
 
ठसके से मैं बोली- “जिसको राखी बंधवाना हो वो आये…” 

लेकिन मुझे डांट पड़ गयी और तय ये हुआ कि कल मैं उसके घर जाऊँगी। मैंने उससे पूछा की उसे कैसी राखी पसंद है…
तो वो मेरी ओर देखकर शैतानी से बोला- “बड़ी-बड़ी…” 


उस दिन रातभर मेरी हलत खराब थी। 


मेरा बहुत मन कर रहा था उंगली करने के लिये, पर कामिनी भाभी के बताये तरीके से जिस दिन से अयी, मैं पूरी तरह “उपवास” पर थी। 

उन्होंने बताया था की उनकी बूटी, कोई दो दिन तक चूत में डालकर कस के भींचे तो, वह एकदम कच्ची कली जैसी बन जायेगी। और मैं वैसे ही कर रही थी कि जब मैं रवीन्द्र से करवाऊँ तब… 



अगले दिन हालांकी छुट्टी थी, पर मेरी एक्स्ट्रा क्लास थी। तय यह हुआ कि मैं क्लास के बाद आफ्टरनून में सीधे, भाभी के घर चली जाऊँगी। 


उसी प्रोग्राम के मुताबिक, मैं क्लास के बाद सीधे भाभी के घर पहुँच गयी








भाभी ने सब तैयारी करके रखी थी। 

उनके पति, मेरे बड़े भैया को कहीं दो दिन के लिये टूर पर जाना था और वो मेरा इंतजार ही कर रहे थे। सबसे पहले उनको मैंने टीका लगाकर राखी बांधी और अपने हाथ से मिठाई खिलायी। उन्होंने मुझे 501 रूपये का लिफाफा दिया, और चले गये। 


मैंने भाभी से मजाक में कहा- “आज तो आप रात में सास बहू देख लेंगी…” मैं हँसकर बोलीं।


“ननद रानी आज शुक्रवार है, आज सास बहू नहीं आता, और तुम्हारे भैय्या इतने सस्ते में छोड़ने वाले नहीं आज दिन भर वो… रवीन्द्र घर में था तब भी, कमरा बंद करके चढ़े रहे… तीन-तीन बार और एक बार पीछे से भी… चला नहीं जा रहा है, बस मेरा तो मन कर है, बस जाकर सो जाऊँ… अच्छा है तुम आ गयी हो, आज रात का खाना भी तुम्ही बनाना…” 



“खाना तो मैं बना दूंगी भाभी, लेकीन… मेरे भैय्या को क्यों बदनाम करती हैं… आप हैं ही इतनी प्यारी, इस जोबन को देखकर कौन नहीं…” 


मेरी बात काटकर भाभी बोली- 


“अच्छा, अब ज्यादा मक्खन मत लगा, रवीन्द्र को बुलाती हूँ वह भी इंतेजार कर रहा है तुम्हारा…” 



तब तक रवीन्द्र सीढ़ियों से उतरता दिखाई दिया। 

“शैतान का नाम लो शैतान हाजिर…” मैं बोली। 

मेरी चोटी कस के खींचता वो बोला- “अभी शैतानी करूंग ना तो पता चलेगा…” 


मैंने इधर-उधर देखा, भाभी टीका की थाली लाने किचेन में गयीं थीं। 



मैं मुश्कुरा के बदमाशी से सीना उभार करके बोली- “करो ना… यहां डरता कौन है… तुम्ही पीछे हट जाओगे…”

मैं उसके लिये पूरा बाजार छानकर, सबसे बड़ी राखी ढूँढ़कर लायी थी। 


भाभी अभी भी किचेन में थी। मैंने उसे राखी निकालकर, अपनी दोनों चूचियों के क्लीवेज के बीच रखकर दिखाते हुए, धीरे से मुश्कुराकर पूछा- 


“क्यों पसंद है, साइज़…” 



“एकदम मेरे लिये परफेक्ट है, यही चाहिये मुझे…” शैतानी से मुश्कुराते हुये वो बोला। 


तब तक भाभी आ गयीं।


मैंने राखी को थाली में रखा। वह खूब बड़ी और चमकदार तो थी ही, आर्ची से मैंने एक बड़े साईज़ का लाल पेपर-हार्ट भी ले लिया और उसे उसमें स्टिच करा लिया था। पहले तो मैंने उसे टीका लगाया और शैतानी से थोड़ी सी लाल रोली उसके गोरे गाल पर भी लगा दी। 


और फिर उसकी कलायी में राखी बांध दी। 

...


वो बोला- “चलो अब मिठाई खिलाओ…” 


मैं बोली- “नहीं पहले अपनी टेंट ढीली करो, गिफ्ट लाओ तब मिठाई मिलेगी…” मैं बोली। 


“नहीं पहले मिठाई…” उसने जिद की। 


मैं एक खूब बड़ा सा रसीला गुलाब जामुन उठाकर उसके होंठ के पास ले गयी और जब उसने मुँह खोला तो मैं उसे ललचाते हुए अपने मुँह में लेकर गड़प कर गयी। अपने होंठों में लगे रस को मैंने अपनी दो उंगलियों से पोंछा और उसके होंठों पर लगा दिया, उसने भी जीभ निकालकर सारा रस चाट लिया। 

तब तक भाभी कमरे से बाहर निकल के आयीं, वह उनसे बोला- “भाभी मैं कोचिंग जा रहा हूं…” 


“ठीक है, लेकीन तुम इससे इतना झगड़ा कर रहे हो, आज खाना यही बनायेगी…” भाभी बोलीं।


“अरे, तब तो मैं खाना बाहर खाकर आऊँगा…” 


“हां हां… ठीक है, हम लोगों के लिये भी पैक करा के ले आना…” मैं हँस के बोली। 



चलते समय उसके हाथ में बंधी राखी में लाल दिल चमका। 


भाभी ने शैतानी से मुझसे मुश्कुराकर कहा- “बहना ने भाई की कलायी में प्यार बांधा है…” 


भाभी ने मेरे घर पे कह दिया था कि बड़े भैया रात को बाहर जायेंगे तो रात को मैं वहीं रुकूंगी और अगले दिन यहीं से स्कूल चली जाऊँगी। 


मैंने भी कहा था कि मैं रवीन्द्र से कुछ पढ़ लूंगी। इसलिये कुछ किताबें और चेंज ड्रेस मैं ले आयी थी। 


मैं थोड़ी देर तक भाभी के साथ गप मारती रही और टीवी देखती रही, पर भाभी थक गयीं थीं और जल्द सो गयीं। अब किचेन पे पूरा मेरा राज था। और चम्पा और कामिनी भाभी के बताये फार्मूलों को ट्राई करने का पूरा मौका भी।
 
किचेन ,...तैयारी 







मैं थोड़ी देर तक भाभी के साथ गप मारती रही और टीवी देखती रही, पर भाभी थक गयीं थीं और जल्द सो गयीं। 


अब किचेन पे पूरा मेरा राज था। और चम्पा और कामिनी भाभी के बताये फार्मूलों को ट्राई करने का पूरा मौका भी। 


सबसे पहले तो मैंने फ्रूट सलाद की पूरी तैयारी की (मुझे मालूम था कि ये भाभी तो डाइटिंग के चक्कर में खायेंगी नहीं पर रवीन्द्र को ये बहुत पसंद था।) 





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आम, सेब, संतरे, सबके पीसेज काटकर, फिर मैंने पैंटी सरकाकर अपनी रसीली चूत के अंदर, एक साथ दो-दो… 


यहां तक की क्रीम भी मैंने “वहां” पहले खूब लिथेड़ी और फिर उसे बाकी क्रीम में मिलाकर… एक-एक करके मैंने सारी डिशेज बना ली। खाना तैयार करने के बाद फ्रेश होकर मैं भी तैयार हो गयी। 






...








मैं अपने लिये एक लेमन येलो स्ट्रिंग टाप ले आयी थी और एक स्कर्ट। 


स्ट्रिंग टाप में मेरी पीठ का उपरी भाग तो खुला ही था, सामने से भी वह काफी लो थी और मेरे टीन चूची का भी उपरी हिस्सा साफ दिखता था, और छोटी इतनी कि मेरी नाभी तक पहुँचती थी।





स्कर्ट छोटी तो थी पर घेरदार थी। ब्रा पहनने का तो सवाल ही नहीं था। मैंने हल्का सा मेकप भी कर लिया। 


जब तक मैं वापस किचेन में पहुँची तो भाभी जागकर वहां पहुँच चुकी थी और डिशेज टेस्ट कर रहीं थीं- 

“वाऊ… वाकई तुमने क्या खाना बनाया है सब एक से एक स्वादिष्ट…” 


पर मेरी और देख के उन्होंने मुझे पकड़ लिया और मेरी स्कर्ट उठाकर मेरे नितंबों को, मसलती हुई बोलीं- “और सबसे स्वादिष्ट… डिश तो तुम हो…” 



जब उन्होंने अपना हाथ मेरी जांघों के बीच किया, तो वह मेरी पैंटी से छू गयी- 


“हे यह क्या, ये क्या पहन रखा है तुमने…” 


ये कह के उन्होंने मेरी पैंटी खींच दी। एक बाउल में फ्रेश क्रीम और चेरी रखी थी। 


उन्होंने ढेर सारी क्रीम अपनी उंगलियों में लगाकर, मेरी चूत पर लपेट दिया और फिर उनकी क्रीम से लिपटी उंगलियां, मेरे अंदर-बाहर होने लगीं। 




हे भाभी ये क्या कर रही हैं… ओह ओह… कैसा लगा रहा है, रुकिये ना…” उत्तेजना में मेरी क्लिट फूल गयी और चूचुक भी खड़े हो गये। 


भाभी ने मेरा टाप उठाया और मेरे खड़े चूचुकों को अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से रोल करने लगीं तभी उन्हें एक बाउल में चाकलेट सास दिख गयी। उन्होंने उसे एक उंगली में लगाया और मेरे दोनों खड़े चूचुकों पर अच्छी तरह से कोट कर दिया। जो उंगली मेरे अंदर-बाहर हो रही थी, वह अब उनके होंठों के बीच थी-


“यमयम… यमयम… क्या स्वाद है…” वह चटखारे लेकर चाट रहीं थीं। 



क्रीम बाउल से उन्होंने क्रीम में लिपटी एक चेरी उठायी और उसे थोड़ी देर तक मेरे फूले क्लिट पर रगड़ने के बाद उन्होंने मेरे अंदर घुसा दिया। 



तब तक रवीन्द्र की आवाज सुनायी पड़ी। 


मैंने जल्दी से अपनी स्कर्ट और टाप नीचे किये और भाभी के साथ बाहर आ गयी। 


हम दोनों ने जल्दी से टेबल लगाया।


खाते समय रवीन्द्र की शामत थी। मैं और भाभी दोनों मिलकर उसको छेड़ रहे थे। 


एक तो मेरी कयामत ढाती ड्रेस, और ऊपर से छेड़छाड़, मैं कभी उसकी टांगों में चिकोटी काट लेती, कभी भाभी शुद्ध देहाती गारी सुना देतीं। 


मैंने उसे वो स्पेशल फ्रूट सलाद तो सारी सारी की सारी खिला दी।

मुझे अब याद आ रहा था की मेरी योनि के होंठ के अंदर एक चेरी है। 





मैंने उसे अपने एक हाथ से धीरे से निकाला, और जब भाभी पानी लेने अंदर गयीं तो उसे मैंने अपने होंठों के बीच दबाकर रवीन्द्र को आफर किया।




जब उसने हाथ बढ़ाया, तो मैंने उसे मुँह के अंदर करके सर से मना करने का इशारा किया। 


और फिर अपनी जुबान पर रखकर उसके एकदम पास जाकर शुष्क आवाज में कहा- “टेक माई चेरी…
 
“टेक माई चेरी…” 






और फिर अपनी जुबान पर रखकर उसके एकदम पास जाकर शुष्क आवाज में कहा- “टेक माई चेरी…” 





और अबकी उसने मेरा सर पकड़कर अपने होंठों से मेरी जीभ को पकड़ लिया और चेरी अंदर कर ली। 
भाभी ने रवीन्द्र से दूध के लिये पूछा, तो वो बोला-

“नहीं भाभी अभी जगह नहीं है, मुझे आज रात भर पढ़ना है…” 


बाद में मैं भाभी के साथ उनके कमरें में लेट गयी। उनके इरादे तो कुछ और थे, पर दिन भर भैय्या ने जो उनके साथ कुश्ती लड़ी थी, उनकी देह टूट रही थी। 


उन्होंने मुझसे कहा- “सुन बगल के ड्राअर में स्लीपिंग पिल्स रखी हैं, मुझे एक दूध में डालकर दे दे…” 


मैंने एक की जगह दो डालकर दे दी। 


थोड़ी देर में ही भाभी के खर्राटे गूंजने लगे। 

जब कुछ देर में, मैं निश्चिंत हो गयी कि भाभी गहरी नींद सो रही हैं तो मैंने नीचे के फ्लोर की सब बत्तियां बंद कर दीं और रवीन्द्र के लिये जो दूध भाभी ने रखा था, उसे लेकर ऊपर रवीन्द्र के कमरे के लिये चल दी। मैं दबे पांव उसके कमरे में घुसी।


दूध में कामिनी भाभी की दी हुयी स्पेशल किसमिस पड़ी थी , जिसके असर से कमजोर से कमजोर भी सांड हो जाता था ,रात भर। और पूनम के दिन तो ,... 


हरदम दम हिलाता रहता। 

आज पूनम ही तो थी। राखी की पूनम , जिसके लिए गाँव के मजे छोड़ के भागी मैं आयी थी। 

वह सिर्फ बनयान और शार्ट में बैठा पढ़ रहा था। मैंने मुड़कर कमरे की सांकल लगा दी। आहट सुनकर उसने गर्दन मोड़ी। 



बगल के स्टूल पर दूध रखकर, मैं दोनों ओर टांगें फैलाकर उसकी गोद में बैठ गयी। उसके होंठों के पास इंच से भी कम दूरी पर अपने होंठ रखकर मैं बोली- 

“शाम को मिठाई बाकी रह गयी थी ना। ले लो…” 


जब उसने अपने होंठ मेरी ओर बढ़ाये तो उसे चिढ़ाते हुए मैंने सर पीछे हटा लिया, और अपने उभार उसके चौड़े सीने पे रगड़ने लगी। 


वह अभी भी थोड़ा हिचक रहा था।

मैंने उसका एक हाथ, स्ट्रिंग टाप से बाहर दिख रहे जोबन पे लेकर कस के दबा दिया। मेरे नितंब अब उसके टेंट पोल को रगड़ रहे थे। 


“क्यों कैसी लगी मिठाई…” 




“ठीक से खाने तो दो, तुम तो सिर्फ ललचा रही हो…” वो बोला। 
“लो ना…” और अब जब मैंने होंठ पास किये तो वह तैयार था।


और उसने कस के मेरा सर पकड़कर मुझे चूम लिया। उसके हाथ ने भी अब मेरा टाप हटाकर मेरे रसीले जोबन पकड़ लिये और दबाने लगे। मैं क्यों पीछे रहती, मैंने भी अपने दोनों हाथों से, उसकी बनायन को पकड़कर उतार दिया और दूर फेंक दिया। 


बाहर बादल खूब गरज रहे थे, बिजली चमक रही थी। लग रहा था, जमकर बारिश होगी। 


थोड़ी देर में मेरा टाप भी वहीं पड़ा था। 


अब वह कस-कस के मेरा जोबन मर्दन कर रहा था। 





उसका बांस ऐसा खूंटा, शार्ट को फाड़ते हुए मेरे अंदर गड़ रहा था। 


“लो मिठाई खाओ…” कहकर मेरे निपल, जो भाभी ने चाकलेट कोटेड कर दिये थे, निकालकर उसके होंठों से सटा दिये। 



“अरे दूध तो मैं भूल ही गयी…” 

और अपने हाथों से मैंने उसे दूध पिलाना शुरू कर दिया। इसमें मैंने कामिनी भाभी की दी एक खास हर्ब मिलाई थी, जो एक कमजोर से कमजोर मर्द को भी रात भर के लिये सांड़ की ताकत दे देती थी। 

आधा ग्लास दूध खतम होने के बाद मुझे एक आइडिया आया- “रुको, तुम लेट जाओ, और मुँह खोलो…” 

और मैं उसके ऊपर इस तरह लेट गयी कि मेरे निपल ठीक उसके होंठों के ऊपर थे। 


और मैं दूध ग्लास से अपने टीन चूचियां पर इस तरह धीरे से गिरा रही थी की वो मेरे चूचुकों से होकर उसकी धार उसके मुँह में जाय। दूध खतम होने पर ग्लास में बची मलायी को मैंने उंगली से निकालकर कड़े मस्त जोबन पर लपेट लिया और उसे पास में खींचकर बोली- “लो चाटो…” 


जब तक वह मेरी मलायी लगी चूची चाट रहा था, मैंने उसके शार्ट नीचे सरका दिये और अपनी स्कर्ट को भी उठा दिया। 


उसका मूसल जैसा, मोटा सख्त लण्ड अब सीधे मेरी चूत पर रगड़ रहा था। 


अपनी चूत कस के उसके भूखे लण्ड पर रगड़ते हुए मैंने कहा- 

“मिठाई तो मैंने खिला दी। अब मेरी रक्षा बंधन की गिफ्ट…” 
“क्या चाहिये… तुम्हें बोलो…” 

“यही…” यह कहकर मैंने कसकर अपनी चूत उसके लण्ड पर रगड़ी। 



अभी लो…” और तुरंत मुझे पीठ के बल पटक कर वह मेरे ऊपर आ गया, जैसे बरसने के लिये तड़पता, सावन का बादल, प्यासी धरती के ऊपर छा जाय। उसका लण्ड अपनी प्यारी चूत को चूम रहा था। 





उसने अपने दोनों हाथों से मेरी मुलायम किशोर कलाईयां पकड़ रखीं थीं। बिजली की चमक में उसके दायें हाथ में मेरी बांधी राखी दमक रही थी। 


मैं जानती थी कि आज मेरी बुर की बुरी हालत होने वाली है। 
पर होनी है तो हो जाय
 
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