hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
बसंती
हम लोग घर वापस आगये , पूरबी ने कहा था की वो कल मुझे नदी ले चलेगी नहाने , लेकिन थोड़ी देर में फिर बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी।
कहीं भी निकलना मुश्किल था।
और मैं भी दो रात लगातार जग चुकी थी , एक रात अजय के साथ और कल रतजगे में।
दोपहर तक मैं सोती रही , बसंती ने खाने के लिए जगाया तब नींद खुली।
कल रात के रतजगे का फायदा ये हुआ की अब हम सब लोग एकदम खुल गए थे , चंदा, पूरबी के साथ गाँव की बाकी लड़कियां और सारी भाभियाँ। किसी से अब किसी की 'कोई चीज ' छुपी ढकी नहीं थी।
और सबसे बढ़कर बसंती से मेरी दोस्ती एकदम पक्की हो गयी थी , वैसे भी वो एकदम खुल के मजाक करती थी ,लेकिन कल जैसे मैंने बसंती के साथ मिलकर मंजू की रगड़ाई की , सबके सामने खुलकर ,उसकी ऊँगली की , चूंचियां मसली और दो बार झाड़ा था , बसंती और मैं दोनों एक दूसरे के फैन हो गए थे।
मुश्किल से उठते हुए मैंने बसंती से पहला सवाल दागा ,
" भाभी कहाँ है। "
मुस्कराती बसंती ने अपने अंदाज में जवाब दिया ,
" अपने भैया से चोदवाने गयी हैं। "
पता चला वो अजय के घर ,मुन्ने के साथ गयी हैं। शाम तक लौटेंगी।
और चंपा भाभी ,कामिनी भाभी के घर गयी थीं , मैं गहरी नींद में सो रही थी तो बसंती को ये काम सौंपा गया था की मुझे उठा के खाना खिला दे।
और खाना खाने में मैं बसंती से डरती थी ,वो इतने प्यार से , और इतनी जबरदस्ती खिलाती थी की यहाँ आने के बाद मेरा खाना दूना हो गया था।
और आज फिर यही हुआ , जैसे मैंने मना किया , बस वो चालू हो गयी ,
" अरे खाना नहीं खाओगी तो मेहनत कैसे करोगी। गाँव में इतने लडके हैं सबका बोझ उठाना होगा , गन्ने के खेत में , अमराई में हर जगह टांग उठाये रहना पडेगा। "
" देख नहीं रही हो ,मेरा वजन कैसे बढ़ रहा है " मैंने हँसते हुए अपनी देह की ओर इशारा किया , तो बसंती ने सीधे अपने हाथ से मेरे उभार दबा दिए और घुंडी मरोड़ के बोली,
" अरे मेरी बिन्नो जब यहां से लौटोगी तो इसका वजन जरूर बढ़जाएगा , कुछ तुम्हारी भाभी के भैया , मीज मीज के, दबा दबा के बढ़ा देंगे और कुछ मैं खिला पिला के , लेकिन शहर में जो तेरे यार होंगे न उनका तो मजा दूना हो जायेगा न , एकदम जिल्ला टॉप माल बनोगी। "
बंसती की बात का जवाब मेरे पास नहीं थी , लेकिन जब मैंने थाली से कुछ कम करने की कोशिश की तो उसने और डाल दिया ,और बोली ,
" बिन्नो खाना तो खाना ही पडेगा , ऊपर के छेद से नहीं खाओगी तो नीचे के छेद से खिलाऊँगी , तेरी गांड में घुसेड़ूँगी। "
मैं और बंसती साथ साथ खा रहे थे। बरामदे में।
हलकी हलकी सावन की झड़ी कच्चे आँगन में बरस रही थी। मिटटी की मादक महक बारिश की बूंदो के पड़ने से उठ रही थी।
" नहीं पीछे का छेद तुम माफ करो मैं ऊपर वाले से ही खा लुंगी " हँसते हुए मैं मान गयी। वैसे भी बंसती से कौन जीत सकता था।
“वैसे जानती हो भरपेट बल्कि भरपेट से भी थोड़ा ज्यादा खाने से ,गांड मरवाने वाली और मारने वाले दोनों को मजा मिलता है। "
बसंती ने ज्ञान दिया , जो मेरे सर के ऊपर गूजर गया।
हम दोनों हाथ धुल रहे थे , मैंने बिना शर्माए बसंती से पूछ ही लिया , कैसे।
जोर से उसने मेरा गाल पिंच किया और बोली ,
“अच्छा हुआ तुम गाँव आगयी वरना शहर में तो,… अरे गांड में लबालब मक्खन मिलता है , गांड मारने वाले को सटासट जाता है. और मरवाने वाली को भी खाली पहली बार घुसवाते दर्द होता है , एक बार गांड का मक्खन लग गया फिर तो फचाफच,अंदर बाहर।“
मैं समझ गयी थी वो किस गांड के मक्खन की बात कर रही थी। लेकिन एक बार बसंती चालू हो गयी तो उसको रोकना मुश्किल था।
और रोकना चाहता भी कौन था , मुझे भी अब खूब मजा आता था ऐसी बातों में।
मैंने बसंती को और उकसाया और अपनी मुसीबत मोल ले ली ,
" अरे पिछवाड़े कौन मजा आएगा, .... " मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया ये बोल कर।
और ऊपर से आज कहीं जाना नहीं था , मैं अपनी एक छोटी सी स्कर्ट और स्कूल की टॉप पहने थी।
ब्रा और पैंटी तो वैसे भी गांव में पहनने का रिवाज नहीं था तो मैं भी बिना ब्रा पैंटी के ,… बस बसंती को मौका मिल गया ,
सीधे उसने मेरे स्कर्ट के पिछवाड़े हाथ डाल दिया और मेरा भरा भरा नितम्ब उसकी मुट्ठी में।
हम लोग घर वापस आगये , पूरबी ने कहा था की वो कल मुझे नदी ले चलेगी नहाने , लेकिन थोड़ी देर में फिर बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी।
कहीं भी निकलना मुश्किल था।
और मैं भी दो रात लगातार जग चुकी थी , एक रात अजय के साथ और कल रतजगे में।
दोपहर तक मैं सोती रही , बसंती ने खाने के लिए जगाया तब नींद खुली।
कल रात के रतजगे का फायदा ये हुआ की अब हम सब लोग एकदम खुल गए थे , चंदा, पूरबी के साथ गाँव की बाकी लड़कियां और सारी भाभियाँ। किसी से अब किसी की 'कोई चीज ' छुपी ढकी नहीं थी।
और सबसे बढ़कर बसंती से मेरी दोस्ती एकदम पक्की हो गयी थी , वैसे भी वो एकदम खुल के मजाक करती थी ,लेकिन कल जैसे मैंने बसंती के साथ मिलकर मंजू की रगड़ाई की , सबके सामने खुलकर ,उसकी ऊँगली की , चूंचियां मसली और दो बार झाड़ा था , बसंती और मैं दोनों एक दूसरे के फैन हो गए थे।
मुश्किल से उठते हुए मैंने बसंती से पहला सवाल दागा ,
" भाभी कहाँ है। "
मुस्कराती बसंती ने अपने अंदाज में जवाब दिया ,
" अपने भैया से चोदवाने गयी हैं। "
पता चला वो अजय के घर ,मुन्ने के साथ गयी हैं। शाम तक लौटेंगी।
और चंपा भाभी ,कामिनी भाभी के घर गयी थीं , मैं गहरी नींद में सो रही थी तो बसंती को ये काम सौंपा गया था की मुझे उठा के खाना खिला दे।
और खाना खाने में मैं बसंती से डरती थी ,वो इतने प्यार से , और इतनी जबरदस्ती खिलाती थी की यहाँ आने के बाद मेरा खाना दूना हो गया था।
और आज फिर यही हुआ , जैसे मैंने मना किया , बस वो चालू हो गयी ,
" अरे खाना नहीं खाओगी तो मेहनत कैसे करोगी। गाँव में इतने लडके हैं सबका बोझ उठाना होगा , गन्ने के खेत में , अमराई में हर जगह टांग उठाये रहना पडेगा। "
" देख नहीं रही हो ,मेरा वजन कैसे बढ़ रहा है " मैंने हँसते हुए अपनी देह की ओर इशारा किया , तो बसंती ने सीधे अपने हाथ से मेरे उभार दबा दिए और घुंडी मरोड़ के बोली,
" अरे मेरी बिन्नो जब यहां से लौटोगी तो इसका वजन जरूर बढ़जाएगा , कुछ तुम्हारी भाभी के भैया , मीज मीज के, दबा दबा के बढ़ा देंगे और कुछ मैं खिला पिला के , लेकिन शहर में जो तेरे यार होंगे न उनका तो मजा दूना हो जायेगा न , एकदम जिल्ला टॉप माल बनोगी। "
बंसती की बात का जवाब मेरे पास नहीं थी , लेकिन जब मैंने थाली से कुछ कम करने की कोशिश की तो उसने और डाल दिया ,और बोली ,
" बिन्नो खाना तो खाना ही पडेगा , ऊपर के छेद से नहीं खाओगी तो नीचे के छेद से खिलाऊँगी , तेरी गांड में घुसेड़ूँगी। "
मैं और बंसती साथ साथ खा रहे थे। बरामदे में।
हलकी हलकी सावन की झड़ी कच्चे आँगन में बरस रही थी। मिटटी की मादक महक बारिश की बूंदो के पड़ने से उठ रही थी।
" नहीं पीछे का छेद तुम माफ करो मैं ऊपर वाले से ही खा लुंगी " हँसते हुए मैं मान गयी। वैसे भी बंसती से कौन जीत सकता था।
“वैसे जानती हो भरपेट बल्कि भरपेट से भी थोड़ा ज्यादा खाने से ,गांड मरवाने वाली और मारने वाले दोनों को मजा मिलता है। "
बसंती ने ज्ञान दिया , जो मेरे सर के ऊपर गूजर गया।
हम दोनों हाथ धुल रहे थे , मैंने बिना शर्माए बसंती से पूछ ही लिया , कैसे।
जोर से उसने मेरा गाल पिंच किया और बोली ,
“अच्छा हुआ तुम गाँव आगयी वरना शहर में तो,… अरे गांड में लबालब मक्खन मिलता है , गांड मारने वाले को सटासट जाता है. और मरवाने वाली को भी खाली पहली बार घुसवाते दर्द होता है , एक बार गांड का मक्खन लग गया फिर तो फचाफच,अंदर बाहर।“
मैं समझ गयी थी वो किस गांड के मक्खन की बात कर रही थी। लेकिन एक बार बसंती चालू हो गयी तो उसको रोकना मुश्किल था।
और रोकना चाहता भी कौन था , मुझे भी अब खूब मजा आता था ऐसी बातों में।
मैंने बसंती को और उकसाया और अपनी मुसीबत मोल ले ली ,
" अरे पिछवाड़े कौन मजा आएगा, .... " मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया ये बोल कर।
और ऊपर से आज कहीं जाना नहीं था , मैं अपनी एक छोटी सी स्कर्ट और स्कूल की टॉप पहने थी।
ब्रा और पैंटी तो वैसे भी गांव में पहनने का रिवाज नहीं था तो मैं भी बिना ब्रा पैंटी के ,… बस बसंती को मौका मिल गया ,
सीधे उसने मेरे स्कर्ट के पिछवाड़े हाथ डाल दिया और मेरा भरा भरा नितम्ब उसकी मुट्ठी में।