Long Sex Kahani सोलहवां सावन - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Long Sex Kahani सोलहवां सावन

hotaks444

New member
Joined
Nov 15, 2016
Messages
54,521
सोलहवां सावन, 



कोमल रानी 



सैयां जिन मांगो, ननदी, सैयां जिन मांगो, ननदी, सेज का सिंगार रे, 
अरे, सैयां के बदले, अरे, सैयां के बदले, भैया दूंगी, चोदी चूत तुम्हार रे, 
अरे, दिल खोल के मांगो, अरे बुर खोल के मांगो ननदी
अरे बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी।
 



सोहर (पुत्र जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गाने) में, भाभी के मायके में मुझे ही टारगेट किया जा रहा था, आखिर मैं उनकी एकलौती छोटी ननद जो थी। 

भाभी ने मुश्कुराते हुये पूछा- “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…” 

मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-

“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली। 
मैं शर्म से लाल हो गयी। 

हमारी हम उमर भाभी की छोटी कजिन, चन्दा ने मुझे फिर चिढ़ाया-

“मन-मन भाये, मूड़ हिलाये, मौका मिलते ही सटासट गप्प कर लोगी, अभी शर्मा रही हो…” 

तब तक चन्दा की भाभी, चमेली भाभी ने दूसरा सोहर शुरू कर दिया, सब औरतें उनका साथ दे रही थीं। 

कहां से आयी सोंठ, कहां से आया जीरा, 
अरे, कहां से आयी ननदी हो मेरी गुंइयां। 
अरे पटना से आयी सोंठ, बनारस से आया जीरा, 
अरे आज़मगढ़ से, अरे ऐलवल से आयीं ननदी, हो मेरी गुंइयां। 
क्या हुई सोंठ, क्या हुआ जीरा, 
अरे क्या हुई ननदी, ओ मेरी गुंइयां। 
अरे जच्चा ने खाई सोंठ, बच्चा ने, बच्चा ने खाया जीरा, 
अरे, मेरे भैय्या ने, अरे, मेरे भैय्या ने चोदी ननदी रात मोरी गुंइयां। 
अरे, मेरे देवर ने चोदी ननदी, हो मेरी गुंइयां, (भाभी ने जोड़ा।) 
अरे राकी ने चोदी ननदी, हो मेरी गुंइयां, (भाभी की भाभी, चम्पा भाभी ने जोड़ा।)
 



जब भाभी की शादी हुई थी, तब मैं 9वें पढ़ती थी, आज से करीब दो साल पहले, बस चौदह साल की हुई ही थी, पर बरात में सबसे ज्यादा गालियां मुझे ही दी गयीं, आखिर एकलौती ननद जो थी, और उसी समय चन्दा से मेरी दोस्ती हो गई थी। भाभी भी बस… गाली गाने और मजाक में तो अकेले वो सब पर भारी पड़ती थीं। पर शुरू से ही वो मेरा टांका किसी से भिड़वाने के चक्कर में पड़ गई। 


शादी के बाद चौथी लेकर उनके घर से उनके कजिन, अजय और सुनील आये (वह एकलौती लड़की थीं, कोई सगे भाई बहन नहीं थे, चन्दा उनकी कजिन बहन थी और अजय, सुनील कजिन भाई थे, रवी और दिनेश पड़ोसी थे, पर घर की ही तरह थे। वैसे भी गांव में, गांव के रिश्ते से सारी लड़कियां बहनें और बहुयें भाभी होती हैं)। उन दोनों के साथ भाभी ने मेरा नंबर… 

दोनों वैसे भी बरात से ही मेरे दीवाने हो गये थे, पर अजय तो एकदम पीछे ही पड़ा था। रात में तो हद ही हो गई, जब भाभी ने दूध लेकर मुझे उनके कमरे में भेजा और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। पर कुछ ही दिनों में भाभी अपने देवर और मेरे कजिन रवीन्द्र से मेरा चक्कर चलवाने के… 


रवीन्द्र मुझसे 4-5 साल बड़ा था, पढ़ाई में बहुत तेज था, और खूबसूरत भी था, पर बहुत शर्मीला था। पहले तो मजाक, मजाक में… हर गाली में मेरा नाम वह उसी के साथ जोड़तीं,

मेरी ननद रानी बड़ी हरजायी, 
अरे गुड्डी छिनार बड़ी हरजायी, 
हमरे देवर से नैना लड़ायें, 
अरे रवीन्द्र से जुबना दबवायें, अरे जुबना दबवायें, 
वो खूब चुदवायें।
 


पर धीरे-धीरे सीरीयसली वह मुझे उकसाती। अरे कब तक ऐसे बची रहोगी… घर का माल घर में… रवीन्द्र से करवाओगी तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। 
मुन्ने के होने पर जब मैंने भाभी से अपना नेग मांगा, तो उन्होंने बगल में बैठे रवीन्द्र की जांघों के बीच में मेरा हाथ जबर्दस्ती रखकर बोला-

“ले लो, इससे अच्छा नेग नहीं हो सकता…” 

“धत्त…” कहकर मैं भाग गई। और रवीन्द्र भी शर्मा के रह गया।
 
सोलहवां सावन, 



मुन्ने के होने पर, बरही में भाभी के मायके से, चन्दा भी आयी थी। हम लोगों ने उसे खूब चुन-चुन कर गाने सुनाये, और जो मैं सुनाने में शरमाती, वह मैंने औरों को चढ़ाकर सुनवाये- 

“मुन्ने की मौसी बड़ी चुदवासी, चन्दा रानी बड़ी चुदवासी…” 



एक माह बाद जब सावन लगा तो भाभी मुन्ने को लेकर मायके आयीं और साथ में मैं भी आयी। 

“अरे राकी ने चोदी ननदी, रात मोरी गुंइयां…” 

चम्पा भाभी जोर-जोर से गा रही थीं। 

किसी औरत ने भाभी से पूछा- 

“अरे राकी से भी… बड़ी ताकत है तुम्हारी ननद में नीलू…” 

“अरे, वह भी तो इस घर का मर्द है, वही क्यों घाटे में रह जाय…” चमेली भाभी बोलीं- “और क्या तभी तो जब ये आयी तो कैसे प्यार से चूम चाट रहा था, बेचारे मेरे देवर तरसकर रह जाते हैं…” चम्पा भाभी ने छेड़ा। 


“नहीं भाभी, मेरी सहेली बहुत अच्छी है, वह आपके देवरों का भी दिल रखेगी और राकी का भी, क्यों…” कहकर चन्दा ने मुझे जोर से पकड़ लिया। 


सावन की झड़ी थोड़ी हल्की हो चली थी। खूब मस्त हवा बह रही थी। छत से आंगन में जोर से पानी अभी भी टपक रहा था। किसी ने कहा एक बधावा गा दो फिर चला जाये। चम्पा भाभी ने शुरू किया- 


आंगन में बतासा लुटाय दूंगी, आंगन में… मुन्ने की बधाई। 
अरे जच्चा क्या दोगी, आंगन में… मुन्ने की बधाई। 
अरे मैं तो अपनी ननदी लुटाय दूंगी, मुन्ने की बधाई। 
अरे मुन्ने की बुआ क्या दोगी, मुन्ने की बधाई
अरे मैं तो दोनों जोबना लुटाय दूंगी, मुन्ने की बधाई
मुन्ने के मामा से चुदवाय लूंगी, मुन्ने की बधाई। 


बारिश खतम सी हो गई थी। सब लोग चलने के लिये कहने लगे। 

चमेली भाभी ने कहा- “हां, देर भी हो गई है…” 

मेरी भाभी ने हँसकर चुटकी ली- “और क्या… चमेली भाभी, वहां भैय्या भी बरसने के लिये तड़पते होंगे…” 

चमेली भाभी हँसकर बोली- “और क्या… बाहर बारिश हो, अंदर जांघों के बीच बारिश हो, तभी तो सावन का असली मजा है…” 

मैंने चन्दा से रुकने के लिये कहा।

पर वह नखड़ा करने लगी- “नहीं कल आ जाऊँगी। 

चम्पा भाभी ने उसे डांट लगायी- “अरे तेरी भाभी तो सावन में चुदवासी हो रही हैं पर तेरे कौन से यार वहां इंतजार कर रहे हैं…” 

आखिर चन्दा इस शर्त पर तैयार हो गई कि कल मैं उसके और उसकी सहेलियों के साथ मेला जाऊँगी। चन्दा, भाभी के साथ मुन्ने को सम्हालने चली गई और मैं कमरे में आकर अपना सामान अनपैक करने लगी। 


मेरे सामने सुबह से अब तक का दृश्य घूम रहा था… 


सुबह जब मैं भाभी के साथ उनके मायके पहुँची, तभी सायत अच्छी हो गई थी। सामने अजय मिला और उसने सामान ले लिया। 

चम्पा भाभी ने हँसकर पूछा- “अरे, इस कुली को सामान उठाने की फ़ीस क्या मिलेगी…” 


भाभी ने हँसकर धक्का देते हुये मुझे आगे कर दिया और अजय की ओर देखते हुए पूछा- “क्यों पसंद है, फीस…” 

अजय जो मेरे उभारों को घूर रहा था, मुश्कुराते हुए बोला- 

“एकदम दीदी, इस फीस के बदले तो आप चाहे जो काम करा लीजिये…” 

मुन्ना मेरी गोद में था। तभी किसी ने मुझे चिढ़ाया- 

“अरे, बिन्नो तेरी ननद की गोद में बच्चा… अभी तो इसकी शादी भी नहीं हुई…” 

मैं शर्मा गयी। पीछे से किसी का हाथ मेरे कंधे को धप से पड़ा और वह बोली-

“अरे भाभी, बच्चा होने के लिये शादी की क्या जरुरत… हां, उसके लिये जो जरूरी है, वो करवाने लायक यह अच्छी तरह हो गई है…” 

पीछे मुड़कर मैंने देखा तो मेरी सहेली, हम उमर चन्दा थी। भाभी अपनी सहेलियों और भाभियों के बीच जाकर बैठ गयीं। अजय मेरे पास आया और मुन्ने को लेने के लिये हाथ बढ़ाया। मुन्ने को लेने के बहाने से उसकी उंगलियां, मेरे गदराते उभारों को न सिर्फ छू गयीं बल्कि उसने उन्हें अच्छी तरह रगड़ दिया। जहां उसकी उंगली ने छुआ था, मुझे लगा कि मुझे बिज़ली का करेंट लगा गया है। 

मैं गिनिगना गई। 

चन्दा ने मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटते हुए कहा- 

“अरे गुड्डो, जरा सा जोबन पर हाथ लगाने पर ये हाल हो गया, जब वह जोबन पकड़कर रगड़ेगा, मसलेगा तब क्या हाल होगा तेरा…” 

मेरी आँख अजय की ओर मुड़ी, अभी भी मेरे जोबन को घूरते हुए वह शरारत के साथ मुश्कुरा रहा था। 

मैं भी अपनी मुश्कुराहट रोक नहीं पायी। भाभी ने मुझे अपने पास बुलाकर बैठा लिया। 

एक भाभी ने, भाभी से कहा- “बिन्नो… तेरी ननद तो एकदम पटाखा लगा रही है। उसे देखकर तो मेरे सारे देवरों के हिथयार खड़े रहेंगे…” 

मुझे लगा कि शायद, मुझे ऐसा ड्रेस पहनकर गांव नहीं आना चाहिये था। टाप मेरी थोड़ी टाइट थी उभार खूब उभरकर दिख रहे थे। स्कर्ट घुटने से ऊपर तो थी ही पर मुड़कर बैठने से वह और ऊपर हो गयी थी और मेरी गोरी-गोरी गुदाज जाघें भी दिख रही थीं। 

मेरी भाभी ने हँसकर जवाब दिया- 

“अरे, मेरी ननद तो जब अपनी गली से बाहर निकलती है तो उसे देखकर उसकी गली के गदहों के भी हिथयार खड़े हो जातें हैं…” 

तो चमेली भाभी उनकी बात काटकर बोलीं-

“अच्छा किया जो इसे ले आयीं इस सावन में मेरे देवर, इसके सारे तालाब पोखर भर देंगे…” 

“हां भाभी, इस साल अभी इसका सोलहवां सावन भी लगा है…” 

उन लोगों की बात सुनकर मेरे तन बदन में सिहरन दौड़ गयी।

“अरे सोलहवां सावन। तब तो दिन रात बारिश होगी, कोई भी दिन सूखा नहीं जायेगा…” चम्पा भाभी खुश होकर बोलीं। 

तभी राकी आ आया और मेरे पैर चाटने लगा। डरकर, सिमटकर मैं और पीछे दीवाल से सटकर बैठ आयी। राकी बहुत ही तगड़ा किसी विदेशी ब्रीड का था। 
चम्पा भाभी ने कहा- “अरे ननद रानी डरो नहीं वह भी मिलने आया है…” 
चाटते-चाटते वह मेरी गोरी पिंडलियों तक पहुँच गया। मैं भी उसे सहलाने लगी। तभी उसने अपना मुँह खुली स्कर्ट के अंदर तक डाल दिया, डर के मारे मैं उसे हटा भी नहीं पा रही थी। 

मेरी भाभी ने कहा- “अरे गुड्डी, लगाता है इसका भी दिल तेरे ऊपर आ आया है जो इतना चूम चाट रहा है…” 

चम्पा भाभी बोलीं- “अरे बिन्नो, तेरी ननद माल ही इतना मस्त है…” 
चमेली भाभी कहां चुप रहतीं, उन्होंने छेड़ा- “अरे घुसाने के पहले तो यह चूत को अच्छी तरह चूम चाटकर गीली कर देगा तब पेलेगअ। बिना कातिक के तुम्हें देख के ये इतना गर्मा रहा है तो कातिक में तो बिना चोदे छोड़ेगा नहीं। लेकिन मैं कह रही हूँ कि एक बार ट्राई कर लो, अलग ढंग का स्वाद मिलेगा…” 

मैंने देखा कि राकी का शिश्न उत्तेजित होकर थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल रहा था। 

बसंती जो नाउन थी, तभी आयी। सबके पैर में महावर और हाथों में मेंहदी लगायी गयी। 

मैंने देखा कि अजय के साथ, सुनील भी आ गया था और दोनों मुझे देख-देखकर रस ले रहे थे। मेरी भी हिम्मत भाभियों का मजाक सुनकर बढ़ गयी थी और मैं भी उन दोनों को देखकर मुश्कुरा दी। 
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सोलहवां सावन 

भाग २ , झूले पर मजा 



हम लोग फिर झूला झूलने गये। 

भाभी ने पहले तो मना किया कि मुन्ने को कौन देखेग। भाभी की अम्मा बोलीं कि वह मुन्ने को देख लेंगी। बाहर निकलते ही मैंने पहली बार सावन की मस्ती का अहसास किया। हिरयाली चारों ओर, खूब घने काले बादल, ठंडी हवा… हम लोग थोड़ा ही आगे बढे होंगे कि मैंने एक बाग में मोर नाचते देखे, खेतों में औरतें धान की रोपायी कर रहीं थी, सोहनी गा रहीं थी, जगह जगह झूले पड़े थे और कजरी के गाने की आवाजें गूंज रहीं थीं। 

हम लोग जहां झूला झूलने गये, वह एक घनी अमरायी में था, बाहर से पता ही नहीं चल सकता था कि अंदर क्या हो रहा है। एक आम के पेड़ की मोटी धाल पर झूले में एक पटरा पड़ा हुआ था। 


झूले पे मेरे आगे चन्दा और पीछे भाभी थीं। पेंग देने के लिये एक ओर से चम्पा भाभी थीं और दूसरी ओर से भाभी की एक सहेली पूरबी थी जो अभी कुछ दिन पहले ससुवल से सावन मनाने मायके आयी थीं। चन्दा की छोटी बहन ने एक कजरी छेड़ी, 



अरे रामा घेरे बदरिया काली, लवटि आवा हाली रे हरी। 
अरे रामा, बोले कोयलिया काली, लवटि आवा हाली रे हरी, 
पिया हमार विदेशवा छाये, अरे रामा गोदिया होरिल बिन खाली, 
लवटि आवा हाली रे हरी, 


भाभी ने चम्पा भाभी को छेड़ा- “क्यों भाभी रात में तो भैया के साथ इत्ती जोर-जोर से धक्के लगाती हैं, अभी क्या हो गया…” 

चम्पा भाभी ने कस-कसकर पेंग लगानी शुरू कर दिया। कांपकर मैंने रस्सी कसकर पकड़ ली। 

भाभी ने चमेली भाभी से कहा- “अरे जरा मेरी ननद को कसके पकड़े रिहयेगा…” और चमेली भाभी ने टाप के ऊपर से मेरे उभारों को कस के पकड़ लिया। भाभी ने और सबने जोर से गाना शुरू कर दिया- 



कैसे खेलन जैयो कजरिया, सावन में, बदरिया घिर आयी ननदी, 
गुंडा घेर लेहिंयें तोर डगरिया, सावन में बदरिया घिर आयी ननदी, 
चोली खोलिहें, जोबना दबइहें, मजा लुटिहें तोर संग, बदरिया घिर आयी ननदी
कैसे खेलन जैयो कजरिया, सावन में, बदरिया घिर आयी ननदी



तब तक चमेली भाभी का हाथ अच्छी तरह मेरे टाप में घुस गया था, पहले तो कुछ देर तक वह टीन ब्रा के ऊपर से ही मेरे उभारों की नाप जोख करती रहीं, फिर उन्होंने हुक खोल दिया और मेरे जोबन सहलाने मसलने लगीं। 

झूले की पेंग इत्ती तेज चल रही थी कि मेरे लिये कुछ रेजिस्ट करना मुश्किल था। और जिस तरह की आवाजें निकल रहीं थी कि मैं समझ गयी कि मैं सिर्फ अकेली नहीं हूँ जिसके साथ ये हो रहा है। 

कुछ देर में बिन्द्रा भाभी और चन्दा की छोटी बहन कजली पेंग मारने के काम में लगा गयीं, पर उन्होंने स्पीड और बढ़ा दी। 

इधर चमेली भाभी के हाथ, अब मेरे जोबन खूब खुलकर मसल, रगड़ रहे थे और आगे से चन्दा ने भी मुझे दबा रखा था। मैं भी अब खुलकर मस्ती ले रही थी। अचानक बादल एकदम काले हो गये और कुछ भी दिखना बंद हो गया। हवा भी खूब ठंडी और तेज चलने लगी। चम्पा भाभी ने छेड़ा- 


अरे रामा, आयी सावन की बाहर
लागल मेलवा बजार, 
ननदी छिनार, चलें जोबना उभार,
लागें छैला हजार, रस लूटें, बार-बार, 
अरे रामा, मजा लूटें उनके यार, आयी सावन की बाहर



मेरी स्कर्ट तो झूले पर बैठने के साथ ही अच्छी तरह फैलकर खुल गयी थी। तभी एक उंगली मेरी पैंटी के अंदर घुसकर मेरी चूत के होंठों के किनारे सहलाने लगी। घना अंधेरा, हवा का शोर, जोर-जोर से कजरी के गाने की आवाज। अब कजरी भी उसी तरह “खुल” कर होने लगी थी। 



रिमझिम बरसे सवनवां, सजन संग मजा लूटब हो ननदी, 
चोलिया खोलिहें, जोबना दबईहें, अरे रात भर चुदवाईब हो ननदी। 
तोहार बीरन रात भर सोवें ना दें, कस-कस के चोदें हो ननदी। 
अरे नवां महीने होरिल जब होइंहें, तोहे अपने भैया से चुदवाइब हो ननदी। 



जब उंगली मेरे निचले होंठों के अंदर घुसी तो मेरी तो सिसकी निकल गयी। 


अब धीरे-धीरे सावन की बूंदे भी पड़ने लगी थीं और उसके साथ उंगली का टिप भी अब तेजी से मेरी योनी में अंदर-बाहर हो रहा था। ऊपर से चमेली भाभी ने अब मेरे टाप को पूरी तरह खोल दिया था और ब्रा ने तो कब का साथ छोड़ दिया था। किसी ने कहा कि अब घर चलते हैं पर मेरी भाभी ने हँसकर कहा कि अब कोई फायदा नहीं, रास्ते में अच्छी तरह भीग जाएंगे , यहीं सावन का मजा लेते हैं।

तेज होती बरसात के साथ, मेरी चूत में उंगली भी तेजी से चल रही थी। कपड़े सारे भीग गये और बदन पर पूरी तरह चिपक गये थे। चूत में उंगली के साथ अब क्लिट की भी अंगूठे से रगड़ाई शुरू हो गयी और थोड़ी देर में ही मैं झड़ गयी और उसी के साथ बरसात भी रुक गयी।
[/font]

[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]

komaalraniGold MemberPosts: 1031Joined: 15 May 2015 07:37Contact: 
Contact komaalrani

Re: सोलहवां सावन,[/font]


[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Post by komaalrani » 19 Jun 2015 14:14[/font]
लौटते समय भाभी, चमेली भाभी के घर चली गयी और मैं चम्पा के साथ लौट रही थी कि रास्ते में अजय और सुनील मिले। 


भीगे कपड़ों में मेरा पूरा बदन लगभग दिख रहा था, ब्रा हटने से मेरे उभार, सिंथेटिक टाप से चिपक गये थे और मेरी स्कर्ट भी जांघों के बीच चिपकी थी। चन्दा जानबूझ कर रुक कर उनसे बात करने लगी और वो दोनों बेशर्मी से मेरे उभारों को घूर रहे थे। 


मैंने चन्दा से कहा- “हे चलो, मैं गीली हो रही हूं…” 

चन्दा ने हँसकर कहा- “अरे, बिन्नो देखकर ही गीली हो रही हो तो अगर ये कहीं पकड़ा-पकड़ी करेंगे तो, तुम तो तुरंत ही चिपट जाओगी…” 

सुनील और अजय दोनों ने कहा- “कब मिलोगी…” 
मैं कुछ नहीं बोली। 

चन्दा बोली- “अरे, तुमसे ही कह रहे हैं…” 
हँसकर मैंने कहा- “मिलूंगी…” और चन्दा का हाथ पकड़कर चल दी। 

पीछे से सुनील की आवाज सुनाई पड़ी- “अरे, हँसी तो फँसी…”
 
सोलवां सावन भाग ३ 



रात.… चंदा के साथ 


चन्दा की आवाज ने मुझे वापस ला दिया। उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था और साड़ी उतार रही थी। 

मैंने उसे छेड़ा- “क्यों मेरे चक्कर में घाटा तो नहीं हो गया…” 

“और क्या, लेकिन अब तेरे साथ उसकी भरपायी करूंगी…” 

और उसने मेरे उभारों को फ्राक के ऊपर से पकड़ लिया। हम दोनों साथ-साथ लेटे तो उसने फिर फ्राक के अंदर हाथ डालकर मेरे रसभरे उभारों को पकड़ लिया और कसकर मसलने लगी। 

“हे, नहीं प्लीज छोड़ो ना…” मैंने बोला।


पर मेरे खड़े चूचुकों को पकड़कर खींचते हुए वह बोली- 

“झूठी, तेरे ये कड़े कड़े चूचुक बता रहें हैं कि तू कित्ती मस्त हो रही है और मुझसे छोड़ने के लिये बोल रही है। लेकीन सच में यार असली मजा तो तब आता है जब किसी मर्द का हाथ लगे…” 

मेरी चूचियों को पूरे हाथ में लेकर दबाते हुए वो बोली कि कल मेले में चलेगी ना, देख कित्ते छैले तेरे जोबन का रस लूटेंगे। 

उसने मेरे हाथ को खींचकर अपने ब्लाउज़ के ऊपर कर दिया और उसकी बटन एक झटके में खुल गयीं। 


“मैं अपने यारों को ज्यादा मेहनत नहीं करने देना चाहती, उन्हें जहां मेहनत करना है वहां करें…” चन्दा बोली। 

उसका दूसरा हाथ मेरी पैंटी के अंदर घुसकर मेरे भगोष्ठों को छेड़ रहा था। थोड़ी देर दोनों भगोष्ठों को छेड़ने के बाद उसकी एक उंगली मेरी चूत के अंदर घुस गयी और अंदर-बाहर होने लगी। 


चन्दा बोली-

“यार, सुनील का बड़ा मोटा है, मैं इत्ते दिनों से करवा रही हूँ पर अभी भी लगता है, फट जायेगी और एक तो वह नंबरी चोदू भी है, झड़ने के थोड़ी देर के अंदर ही उसका मूसल फिर फनफना कर खड़ा हो जाता है…” 

उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को भी रगड़ रहा था और मैं मस्ती में गीली हो रही थी। 

" यार सुनील का बहुत मोटा है। " चंदा ने मेरी कलाई पकड़ के दबाते हुए फिर कहा " आलमोस्ट इत्ता "

मैं सिहर गयी लेकिन उसे उकसाती बोली , 

" झूठी , इतना मोटा कहीं हो सकता है और… ऑलमोस्ट मतलब ,"

" बिन्नो घबड़ाओ मत जल्दी ही तेरे इसी हाथ में पकडाउंगी उसका , आलमोस्ट मतलब , तेरी इस कलाई इत्ता मोटा या एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा ने चिढ़ाया

"मेरी माँ , तुझे ही मुबारक , मुझे मरना नहीं है "मैंने उसके गाल पे जोर से चिकोटी काटी। 

" सच कहती है यार तू , एकदम जान निकल जाती है। आज तक नहीं हुआ की उसका सुपाड़ा घुसा हो और मेरे आंसू न निकले हों , जब की इत्ते दिनों से करवा रही हूँ उससे। उसके बिना चैन नहीं मिलता ,लेकिन जब डालता है न , दरेरता ,रगड़ता ,फाड़ता ,छीलता घुसता है उस का मूसल , जान निकल जाती है।

और बेरहम भी इतना है , चाहे जित्तना चीखो चिल्लाओ , रोओ ,उसके हाथ पैर जोड़ो , लेकिन बिना पूरा ठेले रुकता नहीं है। ऐसे परपराती है अपनी सहेली की ,… " चंदा ने हाल खुलासा बयान किया। 

लेकिन चंदा की आवाज से लग रहा था की जैसे सोच सोच के उसकी सहेली गीली हो रही हो। 


" न बाबा न , मुझसे नहीं होगा , तू घोंट " 

मैंने अपना फाइनल फैसला सुना दिया। 

एक पल के लिए चंदा ने कुछ सोचा , फिर जैसे पैंतरा बदल रही हो ,बोला ,

" दिन में तू दीपा से मिली थी न ,जिसे कामिनी भाभी और चंदा भाभी , … "

" हाँ हाँ एकदम याद है मुझे , मुझसे दो साल छोटी , नौवें में पढ़ती है , वही न। " मुझे याद आ गया , और चंदा ने भी ताकीद की ,

" हाँ वही " 

और मुझे दिन की छेड़छाड़ याद आगयी , जब हम झूले पे गए थे उसके पहले की।

दीपा , कामिनी भाभी के बगल में बैठी थी और गाँव के रिश्ते से उनकी ननद लगती थी।
 
कच्चे टिकोरे 




दीपा , कामिनी भाभी के बगल में बैठी थी और गाँव के रिश्ते से उनकी ननद लगती थी। 


दीपा, मुझसे थोड़ी छोटी लम्बाई में और उम्र में दो साल , जैसे कहते हैं जो बचपन और जवानी की के बीच में खड़े हों एकदम उसी तरह की। 

चेहरा गोल ,हंसती तो बड़े बड़े गड्ढे पड़ते गालों में , और नमक बहुत ज्यादा। 

उभार बस आ रहे थे ,हाँ उनका पता उसको भी था और देखने वालों को भी और इत्ते कम भी नहीं , उसकी उमर वालियों से २० नहीं २१ से ज्यादा रहे होंगे। २८ सी होंगे।

और फिर भौजाई के लिए ननद की उमर नहीं रिश्ता इम्पोरटेंट है और मैं भी तो इसी उमर की थी , जब भाभी की शादी में यहाँ आई थी , एकलौती ननद तो सारी गालियाँ मेरे खाते में ही पड़ीं और एक से एक,… 


बस कामिनी भाभी ने फ्रॉक के ऊपर से उसके उभारों पर हाथ लगाया और दबाते बोली ," ये कच्चे टिकोरे किसी को चखाए की नहीं "

कुछ शरमा के कुछ घबड़ा के उसने भाभी का हाथ हटाने की कोशिश की , और भाभी कौन इत्ते आसानी से हाथ आई कच्ची कली को छोड़ देतीं , उनका हाथ सीधे से ऊपर से फ्राक के अंदर ,

और जिस तरह से दीपा ने सिसकी भरी , और हलके से होंठ काट के चीखी , उईई ईई 

साफ था कामिनी भाभी ने , उसके उठान को न सिर्फ दबाया था। बल्कि जोर से अंगूठे और तरजनी से उसके आ रहे निपल को भी जोर से मसल दिया। 

मूंगफली के दाने ऐसे खड़े खड़े फ्राक के ऊपर से साफ दिख रहे थे। 

और फिर चंपा भाभी भी मैदान में आ गयीं , क्यों कैसे हैं टिकोरे। पूछ लिया उन्होंने। 

कामिनी भाभी ने फिर जोर से मूंगफली के दाने मसले और दीपा से ही पूछा , बोल , किस किस लडके को गाँव में चखाया। 

पीछे से किसी भौजाई ने घी डाला , 

" अरे सब लौंडे तो इसके भाई ही लगेंगे ". 

" अरे हमारे सारे देवर हैं ही बहनचोद। " कामिनी भाभी ने दीपा के फ्राक में आते हुए उठान को दबाते मसलते बोला। 

" एकदम मेरे देवर की तरह। " मेरी भाभी क्यों मौका छोड़ती , मुझे देख के मुस्कराते हुए उन्होंने भी तीर छोड़ा। 

" देवर की क्या गलती , साल्ली ननदें ही छिनार हैं , जुबना उभार के ललचाती फिरती हैं " चंपा भाभी ( मेरी भाभी की भाभी ) ने मेरी भाभी ( और अपनी ननद ) की ओर देख कर मुस्करा के बोला। 

और उनका अगला निशाना दीपा थी , उसके गाल पे चिकोटी काटती बोलीं ,

" अरे हमारी ननदें तो चौदह होते होते चुदवासी हो जाती हैं। तुझे चौदह पार किये कित्ते महीने हो गए , अब तक तो कब की चुद जानी चाहिए थी। सीधे से किसी को पता के घोंट ले वरना अबकी होली में मैं और कामिनी भाभी मिल के तेरी नथ इसी आँगन में उतरवाएंगी। "

" जब रतजगा होगा न तो हो जाय मुकाबला , जंगी कुश्ती , देखे हमारी ननद ज्यादा छिनार है या बिन्नो तेरी " किसी ने भाभी को चैलेन्ज दिया। 

और भाभी ने मुझे मुस्कराकर देखते हुए बोला , "एकदम मंजूर है लेकिन जीतने वाले को इनाम क्या मिलेगा। "

चम्पा भाभी ने अपनी गोद ,भाभी के बच्चे को हलराते ,दुलराते बोला। 

" मुन्ने के सारे मामा "

" और हारने वाली पे मुन्ने के सारे मामा अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर चढ़ेंगे। " कामिनी भाभी ने पूरी स्कीम अनाउंस कर दी। 


हम लोगों को झूला झूलने जाना था इसलिए बात वहीँ रुक गयी। 

दीपा भी हम लोगों के साथ चलने वाली थी , लेकिन चंदा ने उसका हाथ दबा के बोला , तुझे तो कहीं और जाना था न , और फिर जैसे उसे कुछ याद आ गया हो , वो बजाय हमलोगों के साथ जाने के वो जल्दी जल्दी अपने घर की ओर चल दी।
चंदा ने फिर बोला दीपा , 

और मैं फ्लैश बैक से वापस आ गयी। 


" हाँ क्या हुआ दीपा को यार बोल न "

" जानती है वो तुझसे पूरी दो साल छोटी है " चंदा ने बोला। 

"मालूम है ,कच्चे टिकोरे वाली ,कच्ची कली ,…अभी " मैंने ऐसे ही बोला लेकिन आगे जो चंदा ने बताया तो मेरी ,

" और उसने सुनील का घोंटा है। " चंदा ने राज खोला। 

और अब चौंकने की बारी मेरी थी। 

" क्या,……… " मेरी बिन चोदे फट गयी। 

" उस छुटकी ने , " मुझे विश्वास नहीं हो रहा था " उस सुनील ने तुझे कहानी सुनाई होगी " मैंने फिर बोला। 

" जी नहीं , और उस कच्ची कली की सिर्फ ली ही नहीं बल्कि उसकी फाड़ने वाला वही है , और मैं इस लिए कह रही हूँ की मेरे सामने उसने ली है दीपा की। "

मुझे न समझ में आया न विश्वास हुआ। 

लेकिन कैसे , मैंने फिर पूछा। 

' लम्बी कहानी है। " जिस अंदाज से चंदा बोली , साफ था वो सस्पेंस बिल्ड कर रही है। 


" सुना न , अगर तू अपने को मेरी सच्ची सहेली मानती है , बता न यार। "

मैं सुनने के लिए बेचैन थी , ये कच्चे टिकोरे वाली कैसे , कलाई इतना मोटा , 

"लेकिन तुझे मेरी सारी बातें माननी होंगी ' चंदा ने ब्लैकमेल किया। 

" मानूंगी यार , देख तेरे साथ मेला देखने की बात मान गयी न आगे भी जो बोलेगी तू , …यार अब तेरे गाँव में हूँ तो तेरे हवाले हूँ , अब ज्यादा भाव न दिखा " मैंने बोला 

और चंदा चालू हो गयी।


बात सिम्पल भी थी और उलझी हुयी भी। 

चंदा एक बार गन्ने के खेत से निकल रही थी , और दीपा स्कूल से वापस आ रही थी और दीपा ने उसे आलमोस्ट रंगे हाथो पकड़ लिया। चंदा ने उसे पटाने की बहुत कोशिश की लेकिन दीपा उसे लगा 'गाएगी ' जरूर। रात भर वो परेशान रही। 

अगले दिन आम के बाग़ में सुनील से उसे मिलना था। मिली वो लेकिन उसके मन में डर घर किये हुए था। सुनील बहुत डिंग हांकता था की वो किसी भी लड़की को पटा सकता है। बस उसके दिमाग आइडिया आया और सुनील को चिढ़ाके वो बोली , 


" हे तुझे कच्चे टिकोरे पसंद है "


सुनील उसका मतलब समझ रहा था और मुस्करा के बोला, 

" एकदम ,किसके दिलवा रही है। " 

और चांस की बात तभी दीपा वहीँ से गुजरी। जिस तरह दीपा ने चंदा को देखा ,चंदा काँप गयी। अब ये बात साफ थी की ये तोता मैना की कहानी जग जाहिर होने वाली है और वो भी बहुत जल्द। उसके गुजरते ही चंदा ने सुनील को पकड़ लिया और बोली ,

" कैसे लगे कच्चे टिकोरे , अब इसे पटा के दिखा। " 

थोड़ी देर सुनील ना नुकुर करता रहा , फिर मान गया , और दो दिन बाद उस ने खुशखबरी दी , दीपा गन्ने के खेत में आने के लिए राजी हो गयी है। 

पहले तो चंदा को विश्वास नहीं हुआ , फिर जब सुनील मान गया की 'शो ' शुरू होने के बाद चंदा भी ज्वाइन कर सकती है तो फिर चंदा ने उसे पूरी बात बताई की कैसे दीपा उन दोनों के बारे में ,…

और अगले दिन शाम को , दीपा स्कूल से कुछ बहाना बना के एक घंटे पहले ही कट ली। 

सुनील उस की राह देख रहा था और उसे सीधे गन्ने के खेत में ले गया , जहाँ रोज मैं और वो ,… सुनील ने थोड़ी देर बाद अपनी स्पेशल सीटी बजाई ,वही जो बजा के मुझे वो बुलाता था। 

मैं पास में गन्ने के बीच से देख रही थी , दीपा की टाँगे उठी थीं और चड्ढी दूर पड़ी थी , सुनील अपना मोटा खूंटा उसकी चुनमुनिया पे रगड़ रहा था और वो मस्ती से चूतड़ पटक रही थी। मुझे भी मुश्किल लग रहा था की ये कच्चे टिकोरे वाली , कैसे इतना मोटा गन्ना घोंटेगी। मैंने वहीँ से सुनील को इशारा किया की उसे कूल्हे के बल कुतिया वाली पोज में कर दे। 

और सुनील ने उसे उसके घुटनो के बल कर दिया , फायदा ये हुआ की जो मैं वहां पहुंची तो दीपा देख नहीं सकती थी मुझे। और बस पहुँचते ही उसका कन्धा दोनों हाथों से पकड़ के मैंने पूरी ताकत से झुका दिया ,उसका सर खेत में झुका था। वो मुझे देख नहीं सकती थी और न अब हिल डुल सकती थी।


उसकी कमर सुनील ने पकड़ रखी थी और उसका हथियार , उसकी प्रेमपियारी से सटा था। एक हाथ से निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाकर जोर से उसने ठोंक दिया। दोचार धक्के में सुपाड़ा अंदर था। दीपा अब लाख गांड पटकती , लंड निकाल नहीं सकती थी। 

एक पल के लिए सुनील को भी लगा , कही ज्यादा फट वट गयी , और इतना मोटा कैसे घोंट पाएगी। लेकिन मैंने उसे चढ़ाया की एक बार जब प्रेम गली में सुपाड़ा घुस गया है तो बाकी का रास्ता बना लेगा। और फिर सुनील का एक हाथ उसके चूतड़ पे और दूसरा टिकोरे पे , और वो धक्के लगाए उसने की दीवाल में छेद हो जाता , १५-२० धक्को में आधा से ज्यादा लंड अंदर। 

चंदा की बात सुन सुन के सोच सोच के मैं गीली हो रही थी। लेकिन उसे रोक के मैंने अपना डर जाहिर किया। 

" हे वो कच्चे टिकोरे वाली इत्ता मोटा घोंट रही थी , तो रो गा तो नहीं रही थी , कहीं कोई सुन लेता तो?"


चंदा जोर खिलखिलाई , 

" अरे यार यही तो ख़ास बात है उस गन्ने के खेत की। खूब बड़ा लम्बा चौड़ा खेत है ,और उसके एक ओर आम की बाग़ है , वो भी बहुत गझिन। खेत के बगल में एक पगडंडी है पतली सी जिसपे दूसरे ओर सरपत के बड़े बड़े झुरमुट और बँसवाड़ी है। खेत खत्म होने के बाद एक खुला मैदान है जहाँ मेले मेला लगता है बाकी टाइम ऊसर है और एक पोखर है। कई एकड़ तक किसी के आने जाने वाले का जल्दी सवाल नहीं। खेत और आम का बाग़ तो सुनील का ही है। और उसमें लगे गन्ने भी स्पेशल वैरायटी के हैं , २५ से ३० फिट के।

और एक बात और सुनील को मजा आता है , कोई लड़की जितना चीखती चिल्लाती है उसे वो उतनी ही ज्यादा बेरहमी से पेलता है, और फिर इतना मोटा औजार बिना बेरहमी के घुसेगा भी नहीं। "

मेरा चेहरा एकदम फ्लश्ड था। मुश्किल से थूक घोंटते मैंने पुछा तो क्या , उस टिकोरे वाली ने पूरा ,… 

हँसते हुए चंदा बोली ," एकदम। थोड़ी देर बाद जब पूरा घोंट लिया था तो सुनील ने फिर उसको पीठ के बल लिटा दिया , और हचक हचक के , जबतक चूतड़ गन्ने के खेत में मिटटी के ढेले पे रगड़े न जाय तो क्या मजा , और अब वो मुझे देख भी रही थी। मैं उसको चिढ़ा रही थी ,और उसकी चड्ढी मैंने जब्त कर ली।"


मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था , मैंने रुक रुक के चंदा से पुछा , वो गुस्सा तो नहीं हुयी , कही किसी से जा के ,शिकायत विकायत। 

चंदा जोर से खिलखिलाने लगी। बड़ी देर तक हंसती रही फिर मुझे जोर से भींच के चूम के बोली , " यार तू सच में बच्ची है , मम्मे बड़े हो जाने से कुछ नहीं होता। अरे दो दिन बाद वो खुद सुनील के पीछे पड़ गयी। एक बार इस चुन्मुनिया में औजार घुस जाए न तो खुद चींटे काटने लगते हैं। "

मैं चुप हो गयी। 

चंदा ही बोली " अच्छा , चल तू अपनी नथ अजय से उतरवा लेना। बहुत सम्हाल सम्हाल के लेगा तेरी। और तेरा दीवाना भी एक नंबर का है। "
"धत्त , तू भी न।" मैं जिस तरह शरमाई वो शर्माहट कम थी , हामी ज्यादा।


“ “अच्छा, तो गुड्डो रानी, अजय से चुदवाना चाहती हैं…” चन्दा ने कसकर मेरी क्लिट को पिंच कर लिया और मेरी सिसकी निकल गयी।
 
अजय 




“अच्छा, तो गुड्डो रानी, अजय से चुदवाना चाहती हैं…” चन्दा ने कसकर मेरी क्लिट को पिंच कर लिया और मेरी सिसकी निकल गयी।

“तुम्हारी पसंद सही है, मुझे भी सबसे ज्यादा मजा अजय के ही साथ आता है, और उसे सिर्फ चोदने से ही मतलब नहीं रहता, वह मजा देना भी जानता है, जब वह एक निपल मुँह में लेकर चूसते और दूसरा हाथ से रगड़ते हुए चोदता है ना तो बस मन करता है कि चोदता ही रहे। तुम्हारा तो वह एकदम दीवाना है, और वैसे दीवाने तो सभी लड़के हैं तुम पर…”

चन्दा की उंगली अब फुल स्पीड में मेरा चूत मंथन कर रही थी और उसने मेरा भी हाथ खींच कर अपनी चूत पर रख लिया था।
चंदा रानी बोल रही थीं ,लेकिन मेरा मन अजय के पीछे लगा था। 

भाभी का कजिन , मुझसे ४-६ साल बड़ा रहा होगा , खूब लम्बा , तगड़ा लेकिन बहुत सीधा। भाभी की चौथी लेके आया था और उसके बाद भी एक दो बार कभी भाभी को लेने कभी भाभी को छोड़ने। 


और हर बार उस की मैं वो रगड़ाई करती थी की दूसरा कोई लड़का होता तो बुरा मान जाता। 

चाय बिचारे को हर बार सिर्फ नमक या मिर्च मिली मिलती थी , और वो भी ऐसा , जो कभी एक बूँद भी छोड़ा हो उसने। 

एक बार जब कोई नहीं था तो मैंने उससे पूछा की चाय कैसी थी , वो मुस्करा के बोला , तुम्हारा नमक और चाय का नमक मिल के शहद से भी मीठा हो जाता है। बस। 

एक बार वो सो रहा था की मैं चुपके से उसके कमरे में गयी , जनाब घोड़े बेच के सो रहे थे। 

मैंने चुटकी भर सिन्दूर उनके भर माँग लगा दिया और एक बड़ी सी गोल लाल लाल बिंदी , माथे पर। 

अजय खूब गोरा है ,एकदम चिकना और उसके गोरे माथे पे बड़ी बड़ी बिंदी खूब फब रही थी। 

मैं दोनों ऊँगली पे लिपस्टिक लगा के अजय के होंठों पे लगा के उसका सिंगार पूरा करना चाहती थी। 

तभी उसने अपने मजबूत हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली , और भाभी की भी एंट्री हो गयी। 

घबड़ा के उसने कलाई छोड़ दी। 

" सिंदूर दान हो गया तो बिन्नो सुहागरात भी मनाना पडेगा, पीछे मत हटना तब । " भाभी ने मुझे चिढ़ाया। 

' अरे भाभी , आपकी एकलौती ननद हूँ , पीछे नहीं हटने वाली। हाँ आपका ये छोटा भैय्या ही शर्मा के भाग जाएगा। 

और हुआ भी यही ,अजय एकदम बीरबहूटी बन गया था। 


इधर मैं अजय के बारे में सोच रही थी , चंदा रवी के गुन गाये जा रही थी। 


“और रवी तो… वह चाटने और चूसने में एक्सपर्ट है, नंबरी चूत चटोरा है, वह…” 


मैं खूब मस्त हो रही थी। मेरी एक चूची चन्दा के हाथ से मसली जा रही थी और उसके दूसर हाथ की उंगली मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी। 


ऐसा नहीं था कि मेरी चूत रानी को कभी किसी उंगली से वास्ता न पड़ा हो, पिछली होली में ही भाभी ने जब मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरी चूत पर गुलाल रगड़ा मसला था तो उन्होंने उंगली भी की थी और वह तो ऐसे भांग के नशे में थीं की कैंडलिंग भी कर देतीं पर भला हो कि रवीन्द्र, उनका देवर आ आया तो, मुझे छोड़कर उसके पीछे पड़ गयीं। 



पर जैसे चन्दा एक साथ, चूची, चूत और क्लिट कि रगड़ाई कर रही थी वैसे पहले कभी नहीं हुई थी और एक रसीले नशे से मेरी आँखें मुदी जा रही थीं। 
चन्दा साथ में मुझे समझा भी रही थी- 


“सुन, मेरी बात मान ले, यहां जमकर मजा लूट ले, देखो यहां दो फ़ायदे हैं। अपने शहर में किसी और से करवायेगी तो ये डर रहेगा की बात कहीं फैल ना जाय, वह फिर तुम्हारे पीछे ना पड़ जाय, पर यहां तो तुम हफ्ते दस दिन में चली जाओगी फिर कहां किससे मुलाकात होगी। 

और फिर शहर में चांस मिलना भी टेढ़ा काम है, जब भी बाहर निकलोगी कोई भी टोकेगा की कहां जा रही हो, जल्दी आना, और फिर अगर किसी ने किसी के साथ देख लिया और घर आके शिकायत कर दी तो अलग मुसीबत, 

और यहां तो दिन रात चाहे जहां घूमो, फिरो, मौज मस्ती करो, और फिर तुम्हारी भाभी तो चाहती ही हैं कि तेरी ये कोरी कली जल्द से जल्द फूल बन जाये…” 


ये कह के उसने कस के मेरी क्लिट को दबा दिया। 

मैं मस्ती से कांप गयी- 

“पर… मैंने सुना है कि पहली बार दर्द बहुत होता है…” मस्ती ने मेरी भी शर्म शत्म कर दी थी। 

“अरे मेरी बिन्नो… बिना दर्द के मजा कहां आता है, और कभी तो इसको फड़वाओगी, जब फटेगी… तभी दर्द होगा… वह तो एक बार होना ही है… आखिर तुमने कान छिदवाया, नाक छिदवायी कित्ता दर्द हुआ, पर बाद में कित्ते मजे से कान में बाला और नाक में कील पहनती हो। ये सोचो न कि मेरी उंगली से जब तुम्हें इतना मजा आ रहा है… तो मोटा लण्ड जायेगा तो कित्ता मजा आयेगा।

और अगर तुम्हें इतना डर लगा रहा है तो मैं तो कहती हूँ तुम सबसे पहले अजय से चुदवाओ, वह बहुत सम्हाल-सम्हाल कर चोदेगा…” 


सेक्सी बातों और उंगली के मथने से मैं एकदम चरम के पास पहुँच गयी थी, पर चन्दा इत्ती बदमाश थी… वह मुझे कगार तक ले जाकर रोक देती और मैं पागल हो रही थी। 


“हे चन्दा प्लीज, रुको नहीं हो जाने दो… मेरा…” मैंने विनती की। 

“नहीं पहले तुम प्रामिस करो कि अब तुम सब शर्म छोड़कर…” 

“हां हां मैं अजय, रवी, सुनील, दिनेश, जिससे कहोगी, करवा लूंगी… बस प्लीज़ रुको नहीं…” उसे बीच में रोककर मैंने बोला। 




“नहीं ऐसे थोड़े ही… साफ-साफ बोलो और आगे से जैसे खुलकर चम्पा भाभी बोलती हैं ना तुम भी बस ऐसे ही
बोलोगी…” चन्दा ने धीरे-धीरे, मेरी क्लिट रगड़ते हुए कहा। 

“हां… हां… हां… मैं अजय से, सुनील से तुम जिससे कहोगी सबसे चुदवाऊँगी… ओह… ओह्ह्ह्ह…” मैं एकदम कगार पर पहुँच गयी थी। 


चन्दा ने अब तेजी से मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और मेरी क्लिट कसकर पिंच कर ली और मैं बस… झड़ती रही… झड़ती रही… मेरी आँखें बहुत देर तक बंद रहीं। जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि चन्दा ने मुझे अपनी बाहों में भर रखा है और वह धीरे-धीरे मेरे उभारों को सहला रही है। मैंने भी उसके जोबन को जो मेरे जोबन से थोड़े बड़े थे, को हल्के-हल्के दबाने शुरू कर दिया। थोड़ी देर में ही हम दोनों फिर गर्म हो गये। अबकी चन्दा मेरी दोनों टांगों को फैलाकर, किसी मर्द की तरह, सीधे मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे सख्त मम्मों को दबाना शुरू कर दिया। 


“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…” चन्दा ने कहा। 
 
कजिन मेरा , .... भाभी का देवर 


अबकी चन्दा मेरी दोनों टांगों को फैलाकर, किसी मर्द की तरह, सीधे मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे सख्त मम्मों को दबाना शुरू कर दिया। 


“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…” चन्दा ने कहा। 

“किसका…” उत्सुकता से भरकर मैंने पूछा। 

मेरी चूत पर अपनी चूत हल्के से रगड़ते हुये, चन्दा बोली-

“तुम्हारे कजिन कम आशिक का… रवीन्द्र का…” 



“उसका… पर वह तो बहुत सीधा… शर्मीला… और तुमने उसका कैसे देखा… फिर वह मेरा आशिक कहां से हो गया…” 


“बताती हूं…” 

मेरी चूत की रगड़ाई अपनी चूत से करते हुए उसने बताना शुरू किया- 

“तुम्हें याद है, अभी जब मैं मुन्ने के होने पे गयी थी, मैंने रवीन्द्र पे बहुत डोरे डालने की कोशिश की… मुझे लगाता था कि भले ही वह सीधा हो पर बहुत मस्त चुदक्कड़ होगा, उसका बाडी-बिल्ड मुझे बहुत आकर्षक लगता था… पर उसने मुझे लिफ्ट नहीं दी… मैं समझ गयी कि उसका किसी से चक्कर है…

पर एक दिन दरवाजे के छेद से मैंने उसे मुट्ठ मारते देखा… मैं तो देखती ही रह गयी, कम से कम बित्ते भर लंबा लण्ड होगा और मोटा इतना कि मुट्ठी में ना समाये… और वह किसी फोटो को देखकर मुट्ठ मार रहा था… कम से कम आधे घंटे बाद झड़ा होगा… और बाद में अंदर जाकर मैंने देखा तो… जानती हो वह फोटो किसकी थी…” 




“किसकी… विपाशा बसु या ऐश की…” मेरी आँखों के सामने तो उसकी मुट्ठ मारती हुई तस्वीर घूम रही थी। 


“जी नहीं… तुम्हारी… और मुझे लगा की पहले भी वह तुम्हारी फोटो के साथ कई बार मुट्ठ मार चुका है… यहां मैं अपनी चूत लिये लिये घूम रही हूँ वहां वह बेचारा… तुम्हारी याद में मुट्ठ मार रहा… अगर तुम दे देती तो…” 

मुझे याद आ रहा था कि कई बार मैं उसको अपने उभारों को घूरते देख चुकी हूँ और जैसे ही हमारी निगाहें चार होती हैं वह आँखें हटा लेता है… और एक बार तो मैं सोने वाली थी कि मैंने पाया कि वह हल्के-हल्के मेरे सीने के उभारों को छू रहा है… मैं आँख बंद किये रही और वह हल्के-हल्के सहलाता रहा… पर उसे लगा कि शायद मैं जगने वाली हूँ तो उसने अपना हाथ हटा लिया। 

मुझे भी वह बहुत अच्छा लगाता था। 


“क्यों नहीं चुदवा लेती उससे…” मेरी चूत पर कसकर घिस्सा मारते हुये, चन्दा ने पूछा। 

“आखिर… कैसे… मेरा कजिन है…” 


“अरे लोग सगे को नहीं छोड़ते… तुम कजिन की बात कर रही हो, तुम्हें कुछ ख्याल है कि नहीं उसका, अगर कहीं इधर-उधर जाना शुरू कर दिया… कोई ऐसा वैसा रोग लगा बैठा…” 


चन्दा ने फिर मुझे पहली बार की तरह कगार पे ले जाके छोड़ना शुरू कर दिया, और जब मैंने खुलके कसम खाकर ये प्रामिस किया कि न मैं सिर्फ रवीन्द्र से चुदवाऊँगी बलकी रवीन्द्र से उसकी भी चूत चुदवाऊँगी तभी उसने मुझे झड़ने दिया। जब सुबह होने को थी तब जाकर हम दोनों सोये। 



बाहर बारिश बंद हो गयी थी ,लेकिन आम के पेड़ों से झरकर बूंदे अभी भी धीरे धीरे टप टप गिर रही थीं। 
 
सोलहवां सावन भाग ४ 



मेले की तैयारी 





अगले दिन दोपहर के पहले से ही मेले जाने की तैयारियां शुरू हो गयी थीं।


पहले एक चूड़ी वाली आयी और मैंने भी सबके साथ, कुहनी तक हरी-हरी चूड़ीयां पहनी।

आज भाभी और चम्पा भाभी ने तय किया था कि वो मुझे शहर की गोरी से गांव की गोरी बनाकर रहेंगी। पावों में महावर और हाथों में रच-रच कर मेंहदी तो लगायी ही, नाखून भी खूब गाढ़े लाल रंगे गये, पावों में घुंघरु वाली पाजेब, कमर में चांदी की कर्धनी पहनायी गयी। 

भाभी ने अपनी खूब घेर वाली हरे रंग की चुनरी भी पहना दी, लेकिन उसे मेरी गहरी नाभी के खूब नीचे ही बांधा, जिससे मेरी पतली बलखाती कमर और गोरा पेट साफ दिख रहा था। लेकीन परेशानी चोली की थी, चन्दा के उभार मुझसे बड़े थे इसलिये उसकी चोली तो मुझे आती नहीं पर रमा जो भाभी की कजिन थी और मुझसे एक साल से थोड़ी ज्यादा छोटी थी, की चोली मैंने ट्राई की। पर वह बहुत कसी थी। 


चम्पा भाभी ने कहा- 

“अरे यहां गांव में चड्ढी बनयान औरतें नहीं पहनती…” 

और उन्होंने मुझे बिना ब्रा के चोली पहनने को मजबूर किया। भाभी ने तो ऊपर के दो हुक भी खोल दिये, जिससे अब ठीक तो लग रहा था पर मैं थोड़ा भी झुकती तो सामने वाले को मेरे चूचुक तक के दर्शन हो जाते और चोली अभी भी इत्ती टाइट थी कि मेरे जोबन के उभार साफ-साफ दिख रहे थे।

हाथ में तो मैंने चूड़ियां, कलाई भर-भरकर तो पहनी ही थीं, भाभी ने मुझे कंगन और बाजूबंद भी पहना दिये। चन्दा ने मेरी बड़ी-बड़ी आँखों में खूब गाढ़ा काजल लगाया, माथे को एक बड़ी सी लाल बिंदी और कानों में झुमके पहना दिये। 

चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये।

काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत, हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था। हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो। और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।
 
कजरी ने तान छेड़ी- “अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…” और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे। 

तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी- “अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…” 

वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे। 

पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा- “अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…” 


मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे। 

“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…” सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया। 

“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…” चन्दा कहां चुप रहने वाली थी। 

“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…” उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया। 

“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…” अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी। 

चन्दा ने फ़ुसफुसाया- “अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…” 

“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा। 

“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा। 

वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े। मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज… भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी। 

कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…” 

“और क्या… चलो ना…” गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी। 


“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…” खिलखिलाते हुये पूरबी बोली। 


मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये। मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी। 

जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया। मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था, और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी। 


कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं।




तभी भीड़ का एक और धक्का आया और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।

भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी। 

अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी। पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था। तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था। चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। 



मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी। 
चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। 

उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा। 

बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…” 

बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…” 


पर तब तक मैंने देखा की गीता, पास के गन्ने के खेत में जा रही है।
 
भाग ५ 

मेले में




भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी। अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी। पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था। तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था। चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। 

मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी। 


चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा। 


बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…” 
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…” 
………
पर तब तक मैंने देखा की गीता, पास के गन्ने के खेत में जा रही है। मैंने पूछा- “अरे… ये गीता कहां जा रही है…” 


चन्दा ने आँख मारकर, अंगूठे और उंगली के बीच छेद बनाकर एक उंगली को अंदर-बाहर करते हुए इशारे से बताया चुदाई करवाने। और मुझे दिखाया की उसके पीछे रवी भी जा रहा है। 

“पर तुम कहां रुकी हो, तुम्हारा कोई यार तुम्हारा इंतेजार नहीं कर रहा क्या…” चन्दा को मैंने छेड़ा। 

“अरे लेकिन तुम्हें कोई उठा ले जायेगा तो मैं ही बदनाम होऊँगी…” चन्दा ने हँसते हुए मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटी। 

“अरे नहीं… फिर तुम्हें खुश रखूंगी तो मेरा भी तो नंबर लगा जायेगा। जाओ, मैं यही रहूंगी…” मैं बोली। 

“अरे तुम्हारा नंबर तो तुम जब चाहो तब लग जाये, और तुम न भी चाहो तो भी बिना तुम्हारा नंबर लगवाये बिना मैं रहने वाली नहीं, वरना तुम कहोगी कि कैसी सहेली है अकेले-अकेले मजा लेती है…” और यह कह के वह भी गन्ने के खेत में धंस गयी। 


मैंने देखा की सुनील भी एक पगडंडी से उसके पीछे-पीछे चला गया। गन्ने के खेत में सरसराहट सी हो रही थी। मैं अपने को रोक नहीं पायी और जिस रास्ते से सुनिल गया था, पीछे-पीछे, मैं भी चल दी। एक जगह थोड़ी सी जगह थी और वहां से बैठकर साफ़-साफ़ दिख रहा था। 


चन्दा को सुनील ने अपनी गोद में बैठा रखा था और चोली के ऊपर से ही उसके जोबन दबा रहा था। चन्दा खुद ही जमीन पर लेट गयी और अपनी साड़ी और पेटीपेट को उठाकर कमर तक कर लिया। मुझे पहली बार लगा की साडी पहनना कित्ता फायदेमंद है। 

उसने अपनी दोनों टांगें फैला लीं और कहने लगी- “हे जल्दी करो, वो बाहर खड़ी होगी…” 

सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये। उफ… कित्ता गठा मस्कुलर बदन था, और जब उसने अपना… वाउ… खूब लंबा मोटा और एकदम कड़ा लण्ड… मेरा तो मन कर रहा था कि बस एक बार हाथ में ले लूं। सुनील ने उसकी चोली खोल दी और सीधे, फैली हुई टांगों के बीच आ गया।


उसके लण्ड का चूत पर स्पर्श होते ही चन्दा सिहर गयी और बोली- “आज कुछ ज्यादा ही जोश में दिख रहे हो क्या मेरी सहेली की याद आ रही है…” 


“और क्या… जब से उसे देखा है मेरी यही हालत है, एक बार दिलवा दो ना प्लीज…” सुनील अपने दोनों हाथों से चन्दा के मम्मे जमकर मसल रहा था। 


चन्दा जिस तरह सिसकारी भर रही थी, उसके चेहरे पे खुशी झलक रही थी, उससे साफ लग रहा था की उसे कितना मजा आ रहा था। मेरा भी मन करने लगा कि अगर चन्दा की जगह मैं होती तो… 

सुनील अपना मोटा लण्ड चन्दा की बुर पर ऊपर से ही रगड़ रहा था और चन्दा मस्ती से पागल हो रही थी- “हे डालो ना… आग लगी है क्यों तड़पा रहे हो…” 

सुनील ने उसके एक निपल को हाथों से खींचते हुए कहा- “पहले वादा करो… अपनी सहेली की दिलवाओगी…” 

चन्दा तो जोश से पागल हो रही थी और मुझे भी लगा रहा था कि कितना अच्छा लगता होगा। वह चूतड़ उठाती हुई बोली- 

“हां, हां… दिलवा दूंगी, चुदवा दूंगी उसको भी, पर मेरी चूत तो चोदो, नशे में पागल हुई जा रही हूं…” 


सुनील ने उसकी दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रखा और उसकी कमर पकड़कर एक धक्के में अपना आधा लण्ड उसकी चूत में ठेल दिया। मैं अपनी आँख पर यकीन नहीं कर पा रही थी, इतनी कसी चूत और एक झटके में सिसकी लिये बिना, लण्ड घोंट गयी। 

अब एक हाथ से सुनील उसकी चूची मसल रहा था, और दूसरे से उसकी कमर कसकर पकड़े था। 

थोड़ी देर में ही, चन्दा फिर सिसकियां लेने लगी- “रुक क्यों गये… डालो ना प्लीज… चोदो ना… उहुह… उह्ह्ह…” 

सुनील ने एक बार फिर दोनों हाथ से कमर पकड़कर अपना लण्ड, सुपाड़े तक निकाल लिया और फिर एक धक्के में ही लगभग जड़ तक घुसेड़ दिया। अब लगा रहा था कि चन्दा को कुछ लग रहा था। 

चन्दा- “उफ… उह फट गयी… लग रहा है, प्लीज, थोड़ा धीरे से एक मिनट रुक… हां हां ऐसे ही बस पेलते रहो हां, हां डालो, चोद दो मेरी चूत… चोद दो…” 

चन्दा और सुनील दोनों ही पूरे जोश में थे। सुनील का मोटा लण्ड किसी पिस्टन की तरह तेजी से चन्दा की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था। चन्दा की मस्ती देखकर तो मेरा मन यही कह रहा था कि काश… उसकी जगह मैं होती और मेरी चूत में सुनील का ये मूसल जैसा लण्ड घुस रहा होता… 


थोड़ी देर में सुनील ने चन्दा की टांगें फिर से जमीन पर कर दीं और वह उसके ऊपर लेट गया, उसका एक हाथ, चन्दा के चूचुक मसल रहा था और दूसरा उसकी जांघों के बीच, शायद उसकी क्लिट मसल रहा था। चन्दा का एक चूचुक भी सुनील के मुँह में था। अब तो चन्दा नशे में पागल होकर अपने चूतड़ पटक रही थी। उसने फिर दोनों टांगों को उसके पीठ पर फंसा लिया।

मैं सोच भी नहीं सकती थी कि चुदाई में इत्ता मजा आता होगा, अब मैं महसूस कर रही थी कि मैं क्या मिस कर रही थी। 

सटासट, सटासट… सुनील का मोटा लण्ड… उसकी चूत में अंदर-बाहर… चन्दा का शरीर जिस तरह से कांप रहा था उससे साफ था कि वो झड़ रही है। पर सुनील रुका नहीं, जब वह झड़ गई तब सुनील ने थोड़ी देर तक रुक-रुक कर फिर से उसके चूचुक चूसने, गाल पर चुम्मी लेना, कसकर मम्मों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया और चन्दा ने फिर सिसकियां भरना शुरू कर दिया। एक बार फिर सुनील ने उसकी टांगों को मोड़कर उसके चूतड़ों को पकड़ के जमके खूब कस के धक्के लगाने शुरू कर दिये।

क्या मर्द था… क्या ताकत… चन्दा एक बार और झड़ गयी। तब कहीं 20-25 मिनट के बाद वह झड़ा और देर तक झड़ता रहा। वीर्य निकलकर बहुत देर तक चन्दा के चूतड़ों पर बहता रहा। अब उसने अपना लण्ड बाहर निकाला तब भी वह आधा खड़ा था। 

मैं मंत्रमुग्ध सी देख रही थी, तभी मुझे लगा कि अब चन्दा थोड़ी देर में बाहर आ जायेगी, इसलिये, दबे पांव मैं गन्ने के खेत से बाहर आकर इस तरह खड़ी हो गई जैसे उसके इंतेजार में बोर हो रही हूं। 


चन्दा को देखकर उसके नितंबों पर लगी मिट्टी झाड़ती मैं बोली- “क्यों ले आयी मजा…” 



“हां, तू चाहे तो तू भी ले ले, तेरा तो नाम सुनकर उसका खड़ा हो जाता है…” चन्दा हँसकर बोली। 
“ना, बाबा ना, अभी नहीं…”


“ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…” साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी।
 
Back
Top