Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड - Page 4 - SexBaba
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Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड

दोस्तों, मेरी छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी थी और आज रात को मेरी रवानगी थी. छुट्टियों के यह चंद दिन मेरी जिंदगी के सबसे सुनहरे दिन थे. मैं एक साधारण, आज्ञाकारी, सुशील लड़का से सेक्स का पुजारी बन चूका था. हालाँकि सोमलता के साथ 4/5 दिन ही गुजरे थे, लेकिन मेरे जैसे लड़के के लिए किसी जन्नत से कम नहीं थे. सारा दिन सफ़र की तैयारी में ही बीता. दोपहर के बाद मैं विवेक और नेहा से मिलने उनकी पार्लर पर गया. दोनों वहीँ मिल गए, लेकिन मेरा असली मकसद तो सोमा से मिलना था. पार्लर से निकलने वक़्त सोमलता से कुछ बात हुई. हम दोनों ही उदास थे.

मैंने उसको एक मोबाइल देने का प्रस्ताव दिया ताकि हम बीच-बीच में बात कर सके, लेकिन वह साफ़ मन कर दी. यार! औरतों के यह नखरे मुझे समझ में नहीं आते. एक तरफ तो अपनी उम्र से कम लड़के के साथ जिस्मानी सम्बन्ध रखती हो, दिन-रात जानवरों की तरफ सेक्स करती हो, लेकिन एक फ़ोन लेने में दुनिया-भर की दिक्कत आ जाति है. खैर, मैं कुछ तो नहीं कर सकता. मै उसको अपना ख्याल रखने और अगले महीने वापस आने की कह दी और घर आ गया.

शाम को ट्रेन में बैठ मैं सिर्फ सोमलता और उसके साथ गुजरे पल को याद कर रहा था. रात हो गयी और सोमलता के बारे में सोचते-सोचते मैं गहरी नींद में सो गया. देर रात को किसी के कदमो की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा की एक औरत धीरे कदमो से मेरे पास चली आ रही है. ट्रेन के कमरे में हल्की रौशनी के कारण उसका चेहरा ठीक से समझ में नहीं आ रहा. वह आई और मेरे दोनों टांगो के बीच में बैठ गयी. उसकी हाथ मेरे पैंट पर चलने लगा. अहिस्ते से उसने मेरी पैंट को कमर से निचे खिसका दी. मेरा लिंग अंडरवियर में उछल रहा था.

वह अंडरवियर को भी नीचे खिसका के लंड को हाथ में ले ली. अपनी लाल लपलपाती जीभ निकल मेरे लंड की ओर बढ़ रही थी. मेरा लंड खुद उछल-उछालकर उसकी मुँह में सामना चाहता था. फिर उसकी गर्म जीभ का अहसास हुआ और वह औरत बड़ी बेसब्री से मेरा लिंग चूमने-चूसने लगी. वह लंड ऐसे चूस रही थी जैसे दिन-भर के प्यासे को आइसक्रीम हाथ लग गयी हो. उसकी तूफानी चुसाई के सामने मेरा लंड ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और फव्वारा मरते हुए उसकी मुँह में ढेर हो गया. वह फिर भी मेरा लंड चुसे जा रही थी. मेरा रस उसकी होंठो के किनारे से बह रहा था.

अब मेरा लंड छोड़ वह एक ऊँगली से बाहर रिस रहे बीर्य को वापस मुँह के अन्दर ले रही थी. पूरा मुँह साफ़ हो जाने के बाद वह अनजान औरत मेरे ऊपर आ रही थी जैसे की मुझे चुम्मा देने वाली हो. उसकी होंठ जैसे ही मेरे सामने आये तो मुझे उसका चेहरा साफ़ दिखा. वह सोमलता थी. मुझे झटका सा लगा और मैं उठकर बैठ गया. कमरे में रौशनी हल्की थी लेकिन उस औरत का कहीं पता नहीं था. मैं निचे देखा तो मेरी पैंट जैसे-के-जैसे कमर में थे, लेकिन अंडरवियर गीला-सा लग रहा था. अब मुझे समझ में आया की मैंने सपना देखा था और सपने ने मुझे अंडरवियर में ही झड़ा दिया. मैं मन मसोरकर रह गया और फिर से सोने की कोशिश में लेट गया. सुबह करीब 8 बजे नींद खुली तो गाड़ी मेरे स्टेशन में पहुँचने वाली ही थी. मैं सामान ले उतरने को तैयार था, लेकिन मैं नहीं जनता था की ऑफिस में एक नई मुसीबत मेरे गले पड़ने वाली थी.

मैं रविबार की शाम को पहुंचा. ऑफिस से 8 किमी की दुरी पर पर एक अपार्टमेंट में मैं और मेरा सहकर्मी एक फ्लैट में रहते है. हमदोनो को साथ में रहते करीब ढाई साल हो गए है. हमउम्र और कुंवारा होने के कारण हमारी खूब फबती थी. जैसे ही मैं फ्लैट में दाखिल हुआ, मुकेश उछलते हुए बोला, “भाई तू आ गया? तेरे लिए एक अच्छी और एक बुरी खबर है. बता कौन सा पहले सुनाऊ?”

मेरा मन तो पहले से उखड़ा हुआ था. इस कमीने ने जले पर नमक छिड़क दिया. मैंने बैग पटकते हुए बोला, “जो तेरा दिल करे सुना दे बे”

मुकेश बड़ी बेशर्मी से हँसते हुए बोला, “लगता है बड़ा परेशान है. घर वालों ने कहीं तेरी शादी तो नहीं तय कर दी?”

मैं बैठते हुए कहा, “यार, सफ़र से थका हुए हूँ. क्यों दिमाग की माँ-बहन कर रहा है? बोल ना क्या हुआ?”

उसने पानी की बोतल आगे करते हुए कहा, “भाई, तेरा प्रमोशन हो गया है. नॉएडा के बाहर हमारे एक क्लाइंट की फैक्ट्री में ऑटोमेशन का काम शुरू हुआ है. बॉस ने तुझे सॉफ्टवेयर एनालिस्ट के तौर पर वहां भेजने को बोला है. तू वहां जायेगा और हार्डवेयर वालों के साथ उनलोगों के काम को मॉनिटर करेगा. बढ़िया है साले! हम यहाँ कीबोर्ड और माउस में सर खपायेंगे और तू वहां आराम से छुट्टी मनायेगा.”

अब मेरा सर चकराने लगा. पता नहीं कहाँ रहना पड़ेगा अजनबियों के साथ. हार्डवेयर का डिपार्टमेंट भले अपने ऑफिस का ही है लेकिन हम सॉफ्टवेयर वालों से कोई मतलब ही नहीं है.

मैं पूछा, “सॉफ्टवेयर डिपार्टमेंट से और कौन जा रहा है? कितने दिन का प्रोजेक्ट है?”

मुकेश बोला, “सिर्फ तू अकेला. शायद एक-डेढ़ महीने का प्रोजेक्ट है. ज्यादा भी लग सकता है.”

बॉस ने मेरी पुरी मार ली थी. एक महीने शहर से दूर अनजानी जगह बिना दोस्तों के. यह सोच कर ही मेरा सर चकराने लगा. मैं धड़ाम से बिस्तर पर शहीद हो गया. मुकेश ने चाय बनायीं और हम ऑफिस के बारे में गप्पे मरने लगे. आज पहली बार मुझे इस नौकरी को छोड़ने का मन कर रहा था. खैर तन और मन की थकन से रात तो गुजर गयी. सुबह ऑफिस में सब मुझे प्रमोशन की बधाई दे रहे था, लेकिन मैं ही जनता था की यह मेरे लिए मुसीबत से कम नहीं. मैं प्रोग्रामर ही ठीक था. खैर दो दिन के बाद मुझे रवाना होना था. हार्डवेयर की टीम पहले ही जा चुकी थी. दो हार्डवेयर के बन्दे भी मेरे साथ जाने वाले थे.

अगले शनिवार को हमलोग रवाना होने वाले थे, ताकि रविबार को हमलोग साईट को अच्छी तरह से देख ले. ऑफिस की कार हमे पहुचने वाली थी. तय समय पर हम रवाना हुए. मेरा दिल किसी चीज में नहीं लग रहा था. समझ में नहीं आ रहा था की किस झंझट में आ फंसा. खैर तीन घन्टे के सफ़र के बाद हम फैक्ट्री के जगह पर पहुंचे. फैक्ट्री काफी फैला हुआ था. बड़ी-बड़ी मशीन लगी हुई थी. सब काम पर लगे हुए थे. ऑफिस की बाकी टीम से भी मुलाकात हुई. फिर मैंने जगह का जायजा लेने के लिए काम कर रहे एक आदमी को बुलाया जो वहां का स्थानीय था. उसने बताया की यह जगह 20-25 साल पहले बिल्कुल वीरान था, कुछ गाँव वाले ही रहते थे. बाद में हाईवे के नजदीक होने के कारण यूपी-एमपी के ड्राईवर काफी तादाद में बस गए है. जमीन हालाँकि अभी भी बंजर ही है. खेती-बारी कुछ होती नहीं है. लोग या तो गाड़ी चलाते है या किसी फैक्ट्री में काम करते है. आस-पास कई फैक्ट्री, कारखाने है. इस पिछड़े जगह में एक महीने रहने की बात सोचकर ही मेरा दिल बैठ गया. लेकिन मरता क्या ना करता. अब रहना है तो रहना है.

मैंने अपना बैग रखा और ऑफिस के एक बन्दे को बुलाकर पूछा, “हमलोगों के ठहरने का क्या इन्तेजाम हुआ है?”

वह बंदा थोड़ा घबराया सा लग रहा था. डरते-डरते बोला, “वो सर यहाँ कोई होटल बगैरह तो है नहीं इसलिए क्लाइंट ने ऑफिस के ही उपरी माले हो हमारे रहने के लिए तैयार किया है.”

“सारा इन्तेजाम किया हुआ है ना?” मैंने पूछा.

वह थोड़ी देर मेरी और देखा फिर जबाब दिया, “हाँ सर” जैसे अपनी बात पर खुद को ही भरोसा नहीं है. मै किसी अच्छी खबर का इंतज़ार तो नहीं कर रहा था. जो भी हो, ये एक महीने तो गुजरने ही है.
 
मैंने अपना बैग रखा और ऑफिस के एक बन्दे को बुलाकर पूछा, “हमलोगों के ठहरने का क्या इन्तेजाम हुआ है?”

वह बंदा थोड़ा घबराया सा लग रहा था. डरते-डरते बोला, “वो सर यहाँ कोई होटल बगैरह तो है नहीं इसलिए क्लाइंट ने ऑफिस के ही उपरी माले हो हमारे रहने के लिए तैयार किया है.”

“सारा इन्तेजाम किया हुआ है ना?” मैंने पूछा. वह थोड़ी देर मेरी और देखा फिर जबाब दिया,

“हाँ सर” जैसे अपनी बात पर खुद को ही भरोसा नहीं है.

मै किसी अच्छी खबर का इंतज़ार तो नहीं कर रहा था. जो भी हो, ये एक महीने तो गुजरने ही है.

लगभग शाम के 5 बजे मैं हमारे ठहरने का इन्तेजाम देखने और अपना सामान रखने के लिए ऊपर की मंजिल में गया. वहां जाकर तो मुझे एक धक्का सा लगा. कम्पनी और खुद पर काफी गुस्सा आ रहा था. हरामियों ने हमे भेड़-बकरी समझ लिया था. एक बड़े से कमरे में आठ-दस आदमियों के रहने और सोने का इन्तेजाम था. मैं तो वैसे ही अकेले रहना ज्यादा पसंद करता था. भीड़ मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है. मैं गुस्से में नीचे गया और लगभग चिल्लाते हुए कहा, “यह क्या घोड़ो का अस्तबल है या हमलोग भेड़-बकरी है?”

सारे लोग मेरी और घूरने लगे. मेरा दिमाग का पारा लगातार चड़ता जा रहा था. मैंने उस बन्दे को बुलाया जो मुझे कुछ देर पहले इन्तेजाम बता रहा था. वह बेचारा डरते हुए आ रहा था. मैंने शांत होकर पूछा, “यहाँ तो मैं नहीं रह सकता. आस-पास कहीं और रहने का इन्तेजाम करो. मैं अकेला ही रहूँगा.”

वह धीरे से सर हिलाकर कहा, “जी सर!”

तभी एक आदमी जो ढलती उम्र का था और शायद यहीं का रहने वाला था, मेरी और आया और कहा, “साहब, हम यहीं के रहने वाले है. हमारा नाम पवन सिंह है और यहाँ का इन्तेजाम देखते है. हम आपके रहने का इन्तेजाम कर देंगे. यहाँ पास में एक ठाकुर का हवेली है जहाँ भाड़े पर मकान मिलता है. आपको कोई दिक्कत नहीं होगा. हम बात करेंगे.”

“अभी चलो भैया!” मैं तो जैसे घोड़े पे सवार था.

वह भी तैयार था, शायद उसको मकान मालिक से कमिसन मिलता होगा. रस्ते भर मैं पवन जी से ठाकुर की हवेली के बारे में पूछता रहा. उससे पता चला की इस वीरान इलाके में सबसे पहले बसने वाला यह ठाकुर ही था. ठाकुर एक जमींदार था लेकिन उसका पुश्तेनी घर बनारस के पास कहीं था. ठाकुर को ढलती उम्र में एक बंगाली नाचनेवाली के साथ इश्क हो गया था. वह उससे शादी करना चाहता था लेकिन उसका पूरा खानदान इश्क के आड़े आ गया था. जिसके चलते ठाकुर अपनी जमींदारी और घर छोड़कर यहाँ आ वसा था. वैसे यह इलाका भी उसके जमींदारी में ही आता था लेकिन बिल्कुल वीरान था. ठाकुर ने बंगालन से शादी किया और अपने कुछ वफादारों के साथ यहाँ आ वस गया. लगभग पंद्रह साल हो गए ठाकुर को गुजरे हुए. जमींदारी तो अब रही नहीं लेकिन अभी भी लोग ठाकुराइन की और हवेली की इज्जत करते है. ठाकुराइन के पुरी हवेली को अलग-अलग मकानों में बदल उसमे भाड़े लगा दी है. मकानों के भाड़े से जो आय होती है उससे ही खर्चा चलता है. पवनजी से यह भी पता चला की ठाकुर का बंगालन के साथ कोई औलाद नहीं हुआ. बंगालन अभी अपनी एक नौकरानी के साथ रहती है. पवनजी ने यह भी बताया की यह औरत काफी कड़क और गुस्सेवाली है.

भीड़-भाड़ वाले रास्तो से गुजरते हुए कोई बीस मिनट चलने के बाद हमलोग ठाकुर की हवेली पहुंचे. हवेली जैसा कुछ नहीं था, बस एक बड़े जगह में फैला मकान था. घुसने के लिए एक बड़ा-सा गेट था. चारदीवार काफी ऊँचा था जिसकी दीवारों पे ना जाने कितने सालो से रंग नहीं लगा था. लोहे से गेट से हम अन्दर गए. अन्दर काफी फैला हुआ जगह था जो लम्बाई में ज्यादा था. दोनों और एक मंजिला महान बने हुए थे जो अलग-अलग थे लेकिन सबके छत एक ही थे. इन अलग-अलग मकानों में परिवार भाड़े पर रहते थे. यह मेरे लिए और मुसीबत थी. मैं किसी भी हाल में इस परिवारों के बीच में नहीं रहना चाहता था. बीच के हिस्सा दोनों तरफ से कुछ कटा-सा था. यह वाला मकान तीन मंजिला था और काफी खुबसूरत भी. वक़्त के साथ-साथ खूबसूरती में थोड़ी कमी आ गयी थी लेकिन फिर भी शानदार दिख रहा था. पवनजी ने बताया की यह हिस्सा ही असल में हवेली है. बाकी मकान तो नौकरों और कर्मचारियों के लिए बनाया गया था.

हमलोग चलते हुए मुख्य हवेली के सामने आये. सामने काफी बड़ा बरामदा था, जहाँ कुर्सियां लगी थी. पवनजी ने मुझे एक कुर्सी पर बैठाया और दरवाजे पर आवाज दिया, “मालकिन जी, मालकिन जी है क्या?”

कुछ देर के बाद एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर आई. औरत की उम्र लगभग ४५ के आस-पास होगी. नाटा कद, गहरा सांवला रंग, भरा हुआ शरीर, बड़ी गोल तेज़ आँखें और पहनावे में बैंगनी चटकदार साड़ी. आकर सबसे पहले मुझे सर से लेकर पांव तक तेज़ नज़रों से घूरने के बाद पवनजी की और देख बोली, “क्या सिंहजी, बड़े दिन बाद हमारी याद आई? यह किसको साथ में लाये है?”

पवनजी उसकी सवालो से थोड़ा सकपका गए. मेरी और देखते हुए फिर बोले, “लाली, यह हमारे कम्पनी के साहब है. एक-आध महीने के लिए यहाँ मकान भाड़े पर चाहते है.”

वह औरत फिर मेरी ओर गौर से देख बोली, “साहब कहाँ से आये हो?”

मैं बोला, “दिल्ली से.”

लाली थोड़ा सोचने के बाद फिर बोली, “शादीशुदा हो या कुंवारे हो?”

मैं पवनजी की ओर देखा और बोला, “नहीं जी, मैं कुंवारा ही हूँ. कंपनी के काम से आया हूँ. एक-आध माह के बाद चला जाऊंगा.”

कुछ देर दरवाजे के अन्दर झाँकने के बाद लाली बोली, “लेकिन मालकिन तो कुंवारे लोगो को मकान भाड़े पर नहीं देते है.”

यह सुनकर मेरा दिल बैठ गया. किस मनहूस जगह पर आ गया हूँ जहाँ रहने को भी अच्छी जगह नहीं है. पवनजी मेरी बैचनी समझ गए. जल्दी से बोले, “लाली, तुम मालकिन को खबर दो. हम बात करेंगे ठाकुराइन से.”

लाली तेज़ नज़र से हम दोनों को देखने के बाद अपने मोटे-मोटे चूतड़ हिलाते हुए अन्दर कमरे में चली गयी. दस मिनट इंतज़ार करने के बाद किसी के पायल की झंकार सुनाई दी. शायद ठाकुराइन आ रही थी.
 
जल्दी से बोले, “लाली, तुम मालकिन को खबर दो. हम बात करेंगे ठाकुराइन से.” लाली तेज़ नज़र से हम दोनों को देखने के बाद अपने मोटे-मोटे चूतड़ हिलाते हुए अन्दर कमरे में चली गयी. दस मिनट इंतज़ार करने के बाद किसी के पायल की झंकार सुनाई दी. शायद ठाकुराइन आ रही थी.

किसी औरत के चलने की आवाज अब नजदीक आ चुकी थी. अचानक से दरवाजे का पर्दा हटा और एक सुन्दरी मेरे सामने थी. जी हाँ, अगर पवनजी नहीं बताते तो मेरी मजाल नहीं की मैं सोंचू की इसकी उम्र चालीस साल होगी. ठाकुराइन को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.

अचानक पवनजी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा. “साहब जी, यह ठाकुराइन है. इस हवेली की मालकिन.”

मैंने हड़बड़ी में नमस्ते किया. उसने भी जवाब में हाथ जोड़े. मुझे बैठने का ईशारा कर खुद एक कुर्सी पर बैठ गयी. मैं एकटक उसको देख रहा था. इस उम्र में भी चेहरे की चमक सिर्फ एक बंगाली औरत ही रख सकती है. ठाकुराइन ज्यादा लम्बी नहीं लेकिन नाटी भी नहीं थी. रंग बिल्कुल साफ़ था. छातियाँ फूली हुई और बड़ी थी. उसकी सबसे कातिल चीज तो उसकी कमर और पेट थी. इस उम्र में भी उसका पेट बिल्कुल सपाट और गहरा था, जिसके कारण छाती ज्यादा ऊँची लग रही थी. ठाकुराइन एक गुलाबी रंग की साड़ी और काले रंग की लंबे बाजु वाला ब्लाउज पहने थी. ब्लाउज बंद गले का था लेकिन साड़ी काफी निचे बंधी हुए थी जिससे उसकी गहरी नाभि दिख रही थी.

अचानक मुझे सोमलता की याद आ गयी और जी खट्टा हो गया. ठाकुराइन की आवाज ने मुझे सोमलता की यादों से बाहर निकाला.

“हाँ, पवन! बताओ तुम मुझसे क्यों मिलना चाहतो हो?”

क्या आवाज़ है! इसकी आवाज तो बिल्कुल एक 19 साल की लड़की जैसे है. पवनजी कुर्सी को थोड़ा सरकाते हुए बोला, “ठकुराईन, यह हमारे फैक्ट्री के साहब है, दिल्ली से आये है. फैक्ट्री में रहने का कोई अच्छा साधन नहीं है इसलिए हम आपके यहाँ लेके आये. आप एक-आध महीने के लिए कोई मकान या कमरा दे दीजिये.”

ठाकुराइन मेरी ओर देखी फिर बोली, “लेकिन पवन, यहाँ तो सब परिवार वाले रहते है और कोई मकान अभी खाली भी नहीं है.”

पवन बोला, “ठाकुराइन जरा देखिये ना, कहीं कोई खाली कमरा भी चलेगा.” थोड़ा सोचने के बाद ठाकुराइन अपने नौकरानी की ओर देखी, फिर बोली, “अरे लाली, ऊपर का बरसाती कमरा कैसा है?”

लाली थोड़ा चौंकी ठाकुराइन के सवाल से. फिर धीरे से बोली, “बीवीजी, वो कमरा तो बहुत दिनों से बंद पड़ा है. अच्छा ही होगा, सफाई करना पड़ेगा.”

फिर मेरी ओर देखते हुए बोली, “आप कल आ जाना, मैं साफ़ करने के लिए बोल देती हूँ. भाड़ा हर हफ्ता हजार रूपये लगेगा.” यह कह ठाकुराइन उठी और बिना कुछ बोले अन्दर चल दी.

मैं बेवकूफ जैसे देख रहा था. लाली मेरे और देख बोली, “साहब, आप अकेले रहोगे ना?”

मैंने हाँ में सर हिलाया.

“तब ठीक है. लेकिन हर हफ्ते सौ रूपये देने होंगे. कमरे की सफाई तो मुझे ही करना होगा. जोरू तो आपकी है नहीं.”

मैं बोला, “अच्छा ठीक है.”

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मैं और पवनजी हवेली से निकल लिए. रास्ते किनारे एक दुकान पर नास्ता करते-करते पवनजी से और जानकारी लेने लगा. उसने बताया की ठाकुराइन की कोई औलाद नहीं है. यहाँ आने के एक साल बाद एक बेटा हुआ था लेकिन वह गायब हो गया. शायद ठाकुर की पहली बीवी ने अगवा कर मर दिया होगा. तब से वह यहाँ अकेले रहती है. आजतक किसी ने किसी रिश्तेदार या दोस्त को यहाँ आते नहीं देखा. लाली ठाकुराइन की पुरानी साथिन है जो उसके नाचने वाले दिनों से साथ है. पवनजी ने बताया की लाली बहुत चालाक, बदमिजाज और शक्की किस्म की औरत है.

“मुझे इससे क्या? बस रहने को जगह मिल जाये ताकि शांति से यह कुछ दिन बीत जाये और क्या!” यह सोच मैं वापस फैक्ट्री को चल पड़ा. पवनजी घर निकल लिए. आज रात तो मुझे फैक्ट्री के उपरी मंजिल में ही रहना पड़ेगा. रात को सबके साथ खाना खाया और सो गया.
 
गली सुबह काफी दौड़-भाग से शुरू हुई. पुरे फैक्ट्री में कंप्यूटर लग रहे थे. मुझे अपने सारे बन्दों को गाइड करना था, कहाँ कैसे क्या करना है. इसी व्यस्तता में कब शाम हुई पता ही नहीं चला. शाम के लगभग सात बजे पवनजी आये और बोले, “साहब, हवेली में नहीं जाना है क्या? कितना सामान है आपका?”

“ह्म्म्मम्म!!!” जाना तो पड़ेगा ही. मैंने उसे एक रिक्शा लाने को बोला और अपना सामान बाँधने लगा. सामान ज्यादा कुछ था नहीं. एक बड़ी ट्राली, एक बैग और एक बड़ा बैग थे जिसमे जरूरी सामान था काम का. यह सब रिक्शा में लादकर हमलोग हवेली की तरफ चल दिए.

शाम घनी हो चुकी थी, रास्तो में घर वापस आने वालो की भीड़ भी बढ़ गयी थी. हवेली के अन्दर जब पहुंचा तो घडी आठ बजा रही थी. पवन जी आवाज देने पर लाली बाहर निकली. आज लाली काफी शांत और चुप लग रही थी. हमलोगों को देखते ही वह कमर में बंधी साड़ी के अन्दर से चाभी निकली और चलते हुए आगे निकली. हम दोनों भी चुपचाप उसके पीछे हो लिए. चलते हुए लाली का पिछवाड़ा क़यामत लग रहा था. उसकी गांड इतनी चौड़ी थी की पांच मीटर कपड़ा उसकी ढकने में लग जाये. मोटे गांड की दरार में फांसी साड़ी बता रही थी की गांड की घाटी की गहराई कितनी होगी. मेरे साथ साथ पवनजी भी एकटक उसकी गांड को घूरते हुए चल रहे थे.

थोड़ी दूर चलने के बाद हम रुक गए. हवेली के बाये हिस्से की शुरुआत में एक लोहे की घुमावदार सीढ़ी है जो सीधे ऊपर छत में बने एक कमरे वाले बरसाती तक जाती है. लाली के पीछे पीछे हमलोग भी ऊपर गए. पुरे छत में इस कमरे के आलावा कुछ नहीं था. हाँ, मुख्य हवेली जरूर दो मंजिला थी. ऊपर मंजिल में ठाकुराइन लाली के साथ रहती है. उसके हवेली से बरसाती लगभग २०० मीटर की दुरी पर है लेकिन सारे छत एक साथ लगे हुए है. बरसाती एक बड़े कमरे के मकान था जिसके चारो तरफ बालकोनी बना हुआ था. अन्दर एक छोटा बाथरूम और रसोई भी था. यह शायद किसी मेहमान के लिए बना हुआ था. सोने के कमरे में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थी जिससे पुरे गाँव का नज़ारा दीखता था.

मुझे यह बरसाती काफी पसंद आया. लाली ने घुम-घूमकर सारा मकान दिखा बता रही थी की कहाँ कहाँ क्या है. कमरे में पलंग, एक टेबल, दो कुर्सियां, दीवाल से लगी अलमारी सब कुछ था. जाते-जाते लाली बता गयी की ठाकुराइन ने इस कमरे को पुरे 15 साल के बाद खोलने की इजाजत दी. लाली के जाने के बाद मैंने पवनजी को विदा किया और बैग से सामान को निकाल अपने-अपने जगह पर रखना शुरू किया. दिन घर के थकान के कारण बाज़ार से लाये खाने को खा बिस्तर पर ढेर हो गया. खिडकियों से आती ठण्डी हवा के कारण जल्दी ही गहरी नीदं की आगोश में चला गया.

रात नींद काफी अच्छी हुई थी जिसके कारण मुझे उठने में देर हो गयी. सुबह की धुप के कारण पूरा कमरा रोशन हो गया. फैक्ट्री में आज भी मुझे रहना काफी जरूरी था. मैं नहाने के लिए बाथरूम गया. बाथरूम छोटा लेकिन सारी अंग्रेजी सुविधायों से लैस था. बाथरूम की खिड़की से हवेली की उपरी मंजिल दीख रही थी लेकिन मुझे कोई हलचल नज़र नहीं आया. हलचल भी क्या हो जब दो औरत ही रहती है. मैंने जल्दी से नहाया, कपड़े पहने और फैक्ट्री की तरफ भागा. वहां सब मेरी रह देख रहे थे. आज फिर एक भाग-दौड़ वाला दिन था. शाम को खाना पैक कर आठ बजे अपने कमरे में आया.
 
रात नींद काफी अच्छी हुई थी जिसके कारण मुझे उठने में देर हो गयी. सुबह की धुप के कारण पूरा कमरा रोशन हो गया. फैक्ट्री में आज भी मुझे रहना काफी जरूरी था. मैं नहाने के लिए बाथरूम गया. बाथरूम छोटा लेकिन सारी अंग्रेजी सुविधायों से लैस था. बाथरूम की खिड़की से हवेली की उपरी मंजिल दीख रही थी लेकिन मुझे कोई हलचल नज़र नहीं आया. हलचल भी क्या हो जब दो औरत ही रहती है. मैंने जल्दी से नहाया, कपड़े पहने और फैक्ट्री की तरफ भागा. वहां सब मेरी रह देख रहे थे. आज फिर एक भाग-दौड़ वाला दिन था. शाम को खाना पैक कर आठ बजे अपने कमरे में आया.

हवेली में मेरा मन को भले शुकून मिल गया था लेकिन मेरे जिस्म को आराम नहीं मिला था. हर रात को सोने के वक़्त सोमलता की याद आती थी. बीच में उससे बात करने का भी ख्याल आया लेकिन उसके पास कोई फ़ोन तो था नहीं और विवेक या नेहा के जरिये बात करने पर शक होने का डर भी था. इसी तरह से पूरा हफ्ता निकल गया.

रविवार होने के कारण सुबह देर से उठा. नित्य कर्म करने के बाद नाश्ता करने बाहर बाज़ार में गया. आते वक़्त अख़बार लेते आया, रविवार है पूरा दिन पड़ा है. दिन तो काटना ही पड़ेगा. हवेली में काफी चहल पहल थी. रविवार के कारण सभी किरायेदार के परिवार हवेली में ही थे. सब मुझे ऐसी देख रहे थे जैसे मैं किसी दुसरे ग्रह से आया हूँ. मै जल्दी जल्दी सीढ़ी चढ़ अपने कमरे में आ गया. लेकिन अकेलापन मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था. घर बात की. नहीं चाहते हुए भी विवेक को फोन लगाया. फोन नेहा ने उठाया. फिर उससे लम्बी बात हुई. विवेक से भी बात हुई. चाहते हुए भी मैं सोमलता के बारे में पूछ नहीं पाया. मन मसोरकर मैंने फ़ोन रखा.

सोमलता की याद मेरे इस अकेलेपन को काटने लगी. उसके साथ गुजरे हुए दिन खासकर चुदाई के दिन बार-बार याद आ रहे थे. मन नहीं मान रहा था. उसकी कसक बदन, कसी चूचियाँ, सपाट पेट और रसदार बुर की याद मेरा लंड को बड़ा परेशान कर रही थी. हारकर काफी दिनों के बाद मैंने मुठ मरने का मन बनाया. सोमलता की याद काफी नहीं थी इसलिए मैंने लैपटॉप में एक ब्लू फिल्म चलाया और पेंट अंडरवियर उतार कर लंड सहलाने लगा. ब्लू फिल्म की उम्रदराज अदाकारा सोमलता की याद दिला रही थी.

पोर्न फिल्म और सोमलता की जिस्म की याद ने मेरे लंड को कड़क बनाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा. ट्रेन यात्रा के दौरान सपने में झड़ने के बाद इन 4-5 दिनों में मैंने कभी मूठ नहीं मारी थी. काश मैं सोमलता की कुछ नंगी तस्वीरें या कोई विडियो बना लिया होता इन अकेले दिनों के लिए! खैर जो हो गया उसपे रोने से कोई फायदा तो होने वाला है नहीं.

सुबह की तेज धुप ने कमरे को गर्म कर दिया था. पंखा पुरी स्पीड में चल रहा था और मैं बिल्कुल बेफिक्र होकर अपने कड़क लंड को हलके हाथो से आगे पीछे पर रहा था. पोर्न फिल्म में अदाकारा लंड को अपनी बड़ी-बड़ी मम्मो के बीच पीस रही थी. उसकी मस्ती भरी सिसिकारी मेरे कानो को बहरा किये हुए थी. अब मेरे लिंग में वीर्य भर चूका था. चंद मिनटों में पानी की धार निकलने वाली ही थी की मेरे पीछे किसी के खांसने की आवाज आई. मैंने पीछे मुड़कर देखा, एक छोटी बाल्टी लिए लाली दरवाजे पर खड़ी थी. उसके चेहरे पर हैरानी के भाव थे जैसे कोई भूत देख लिया हो.

मेरे दिल की धड़कन रुक सी गयी. एक तो लंड झड़ने के कगार पर था और दूसरी तरफ लाली के देखे जाने का डर और शर्मिंदगी. दिमाग ने काम करना बंद ही कर दिया था. लाली ने देखा की मैं अभी भी खुले लंड में बैठा हूँ, वह दुबारा खांसकर मुँह पीछे घुमा ली. मैं होश में आया, जल्दी से पेंट पहनी और बाथरूम की तरफ भागा. लेकिन लंड तो लंड होता है. एक बार खड़ा हो जाये और पानी भर जाये हो किसी की नहीं सुनता, पानी बाहर निकाले नहीं मानता.

बाथरूम में जल्दी से हाथ चलाया और खुद हो झाड़ा. इतनी तेज झड़ा की पैरों में खड़े होने की ताकत तक नहीं थी. दीवार के सहारे खुद को सम्हाला और सोचने लगा की यह औरत कितनी देर से मुझे मूठ मारते हुए देख रही थी. ये इस वक्त यहाँ आई ही क्यों थी?
 
बाहर से लाली की आवाज आई, “साहब, कमरा साफ़ हो गया. मैं जा रही हूँ. दरवाजा लगा लो!”

अच्छा, तो यह कमरा साफ़ करने आई है. रोज़ इसी वक़्त आती हैं लेकिन मैं तो काम पे निकल जाता हूँ. आज रविवार के कारण इससे भेंट हो पाई. वाबजूद शर्म के मुझे बाहर निकलना पड़ा. पता नहीं मैं उसका सामना कैसे करूँगा.

लाली पोंछा वगैरह लगाकर खड़ी थी. मुझे कमरे में आते देख बाल्टी उठाई और जाने लगी. दरवाजे के पास रुक गयी, पीछे मुड़ कर बोली, “दरवाजा बंद कर लो साहब!” फिर मुस्कुराते हुए भारी-भरकम गांड हिला-हिलाकर चल दी.

मैं बिल्कुल चूतिये जैसा खड़ा था. शायद यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी नादानी थी.

आज का दिन काफी लम्बा लग रहा है. मारे शर्म के मै बाहर नहीं निकला. दोपहर को गर्मी भी बढ़ गयी. अकेले बोरियत भी हो रही है. नहा कर लैपटॉप में मूवी देखने लगा. मूवी देखते-देखते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला. अचानक दरवाजा ठोकने की आवाज से नींद खुली. मैंने देखा शाम घनी हो चुकी थी. दिन की रौशनी लगभग जा चुकी थी. दरवाजा पीटने की आवाज तेज़ हो गयी. शायद कोई काफी देर से दरवाजा पीट रहा था.

हडबडा के मैं ने दरवाजा खोला तो पवनजी खड़े थे. मुझे देख मुस्कुराते हुए बोले, “साहबजी सो रहे थे क्या?”

अधखुली आखों को पूरा खोला के देखा तो पवनजी मुँह में पान चबाते हुए मुस्कुरा रहे थे. “हाँ, पवनजी. अकेले बैठे बैठे नींद आ गयी.” उनको अन्दर बैठाया और मैं मुँह-हाथ धोने चला गया. देखा पवनजी खिड़की से सामने ठकुराईन के मकान को देख रहे थे.

मैंने टोका, “क्या हाल है पवनजी?”

वह थोड़ा झेपते हुए बोला, “बस ऐसे ही साहब जी. मैं सोचा की आप आज अकेले बोर हो रहे होंगे, इसलिए चला आया. चलिए बाहर थोड़ा हवा खाते है.”

मैंने उससे 5 मिनट माँगा और जल्दी से कपड़े बदल साथ हो लिए. हवेली से बाहर निकल ही रहे थे कि सामने से लाली एक बड़े थैले लिए आती दीखी. सामने आते ही मैं शर्म से पानी-पानी हो रहा था. मेरी ओर एक नज़र देने के बाद लाली पवनजी से बोली, “क्या सिंहजी! बड़ा मुँह लाल किये घुम रहे हो?”

मैंने देखा की पवनजी लाली के सामने थोड़ा असहज लगते है. यह क्या माज़रा है? पता तो लगाना ही पड़ेगा.

पवनजी बोले, “कुछ नहीं लाली. साहब जी से मिलने आये थे.”

लाली ने फिर मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखी ओर बोल पड़ी, “हाँ. साहबजी को गाँव घुमाओ. यहाँ की हरियाली के दर्शन कराओ. अकेले बेचारे का मन नहीं लगता होगा. मैं चलती हूँ.” और लाली आगे से होते हुए हवेली के अन्दर चली गयी. लाख मना करने के बावजूद मैं खुद को लाली की कातिल गांड को हिलते हुए देखने से रोक नहीं सका.

हम दोनों हवेली के मुख्य गेट से निकल बाज़ार की तरफ निकल पड़े. अँधेरा हो चूका था और बाज़ार की दुकानों में रौशनी हो चुकी थी. हमने एक चाय की दुकान देखी और वहां बैठ गए. दिन भर की गर्मी के बाद शाम की ठंडी हवा दिल खुश कर रही थी. बिस्कुट के साथ चाय लेते हुए मैंने पवनजी से वह सवाल किये जो मैं काफी देर से पूछना चाहता था. “अच्छा पवनजी, आप तो काफी दिनों से है. ठाकुर से जाने के बाद उसके या ठकुराईन के परिवार से कोई यहाँ नहीं आया?”
 
पवनजी चाय का घूंट लेते हुए बोले, “नहीं साहब, ठाकुर साब को तो उसके पुरे खानदान ने बिरादरी से बेदखल कर दिया था और नाचनेवाली का कोई परिवार तो होता नहीं है. हाँ, ठाकुर साब का एक भतीजा आया था साब के गुजरने के बाद. कुछ डेढ़ दो महीने रहा भी था. लेकिन बेनचोद की नज़र ठाकुर साब की दौलत और ठकुराईन पर थी. साले को लात मारकर निकाल दिया हमलोगों ने.”

अच्छा इसका मतलब यह बंगालन पिछले सालों से मर्द के बगैर है. “अपने और परिवार के बारे में बताओ” चाय का दाम चुकाते हुए पवनजी से पूछा.

“साहब जी क्या बताऊँ? हम रहनेवाले बिहार के है. दाना-पानी के चक्कर में यहाँ-वहां भटक रहे थे. बगल के रेलवे स्टेशन पर तांगा गाड़ी चलाते थे. इसके बाद तो तांगा का जमाना ख़त्म हो गया. ठाकुर साहब जब यहाँ आये तो उनको तांगा चलाने वाले की जरूरत हुई. सो हम यहाँ हवेली में तांगा चलाने लग गये. तब से इधर ही बस गये. ठाकुर साहब के गुजरने के बाद कुछ दिन इधर-उधर काम किया. फिर फैक्ट्री शुरू हुई तो हम यहाँ आ गए.”

टहलते हुए हमलोग बाज़ार के अंदर आ चुके थे. “घर-परिवार से कभी मिलने जाते नहीं है?”

पवनजी थोड़ा उदास होते हुए बोले, “घर में माँ का स्वर्गवास हो गया है. एक भाई है, वह भी दिल्ली में बस गया है. अब वहां कौन है जिससे मिलने जाएँ?”

मुझे पवनजी की दुखभरी कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो ठकुराईन के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानना था. पिछली छुट्टी में मुझे चोदन-क्रिया की ऐसी लत लग गयी थी की मैं बिना चूत और चूची के बेचैन हो रहा था.

शाम काफी हो चुकी थी. बाज़ार के एक छोटे से ढाबे पर हमने खाना खाया और पवनजी को विदा कर मैं वापस हवेली में आ गया. बाज़ार लगभग सुनसान हो चूका था. जब मैं हवेली में आया तो बिजली कट गयी. आज उमस भरी गर्मी थी. मैं काफी देर तक छत पर टहलता रहा. रह रह कर मेरी नज़र हवेली पर जा रही थी. अचानक बिजली वापस आ गयी. कमरे के अन्दर रौशनी हो जाने के कारण अन्दर का पूरा नज़ारा दिख रहा था. हवेली के उपरी मजिल के एक कमरे से दो औरतो की परछाई नज़र आ रही थी. ये ज़रूर ठकुराईन और उसकी साथिन लाली होगी. दोनों आपस में कुछ बात कर रहे थे लेकिन धीमी आवाज़ में. पता नहीं मेरे दिमाग में क्या सुझा मैं खुद को बिना दिखाई दिए बचते-बचाते उनके कमरे की ओर बढ़ने लगा. जिस कमरे में दोनों थे,

मैं उसकी दीवार से चिपक गया. खिड़की खुली हुई थी. मैं अन्दर झाँका, अन्दर एक बड़ा बड़े सोफे पर ठकुराईन बैठी थी और उसके बगल में एक कुर्सी पर लाली बैठी थी. ठकुराईन सिर्फ एक साड़ी लपेट कर बैठी हुई थी, बिना ब्लाउज के और शायद पेटीकोट भी नहीं था. सोफ़ा पर बदन को लादकर पड़ी थी जैसे कि काफी थक गयी हो. लाली अब धीरे से ठकुराईन के पीछे गयी और उसकी माथे को सहलाने लगी. आराम से ठकुराईन की आँखें बंद थी. लाली थोड़ी देर तो अपने मालकिन के माथे को सहलाती रही, फिर धीरे से बोली, “बीवीजी”

ठकुराईन आंख बंद किये ही बोली, “हाँ बोल!”

लाली और धीमी आवाज में बोली, “बीबीजी हमलोग वापस बनारस चलते है यहाँ का सब कुछ बेच कर”

ठकुराईन आँखों को बिना खोले लगभग झल्लाते हुए बोली, “तेरा दिमाग ख़राब है क्या लाली? जहाँ के लोग हमारी जान के पीछे हाथ धोकर पड़े है. जिन लोगों ने मेरी इज्जत तक नही छोड़ी, वहां किसके लिए वापस जाना.”

जबाब सुन लाली थोड़ा सहम गयी. दो-चार मिनट दोनों चुप रहे. इसके बाद ठकुराईन बोली, “अच्छा, यह जो नया आदमी रहने आया है ऊपर तूने उससे इस हफ्ते का भाड़ा लिया?”

लाली थोड़ा डरते-डरते बोली, “नहीं बीबीजी, मैंने माँगा नहीं. लेकिन लड़का अच्छा है.”

अब ठकुराईन खुली आँखों से ताकते हुए सवाल की, “अच्छा! तेरा उसपर दिल आ गया है क्या?”
 
लाली नज़र नीची करते हुए बोली, “क्या बीबीजी आप भी ना! हाव-भाव से किसी अच्छे घर का लगता है. मेरी क्या अब उम्र है दिल लगाने की?”

अब ठकुराईन सीधी बैठ गयी. लाली को बगल में बिठाते हुए बोली, “बहुत छुईमुई बन रही है लाजो! इस उम्र में भी तुझे कोई जवान छोरा मिले तू उसको कच्चा चबा जाएगी और उम्र की बात करती है.”

लाली हँसते हुए बोली, “क्या करूँ बीबीजी? हमलोग नाचनेवालियां है. भले पेट की भूख मिट जाती है यहाँ, लेकिन शरीर की भूख कैसे मिटे. आप भी हर तीन-चार दिन में अपने बदन की मालिश के बहाने अपना पानी झाड़ती है. इसलिए मैं बोलती हूँ बनारस जाने के लिए.”

ठकुराईन लाली के माथे पे हाथ फेरते हुए गहरी साँस ले बोली, “अब यही अपनी किस्मत है लाली.”

लाली कुछ बोलना चाहती थी लेकिन चुप रही. हवेली का सारा नज़ारा देखने-सुनने के बाद मैं काफी खुश हुआ. सिर्फ मैं ही नहीं यह लोग भी सेक्स के आकाल में जी रहे है. यहाँ बात बन सकती है लेकिन मुझे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ेगा. थोड़ी सी मायूसी भी हुई कि अगर मैं एक घन्टे पहले आता तो ठकुराइन की बदन की मालिश देख पाता. कोई नहीं, अभी काफी दिन यहाँ ठहरना है. ऐसे मौक़े बहुत आएंगे. मैं चुपचाप वहां से अपने कमरे में चला आया.

इसके बाद चार-पांच दिन बिना किसी हलचल के निकल गया. मैं रोज़ रात को छत से हवेली को झांकता था लेकिन कोई नज़र नहीं आता. शायद यह दोनों मालिश का कार्यक्रम अन्दर बंद कमरे में करते होंगे. तो क्या सचमुच में बंगालन को मेरी जासूसी का पता चल गया? मैं बिल्कुल हताश हो गया. अगर किसी को उम्मीद दिखाकर नाउम्मीद कर दिया जाये तो बेचारे का दिल टूट ही जायेगा. मैं ऑफिस और कमरे दोनों जगह खोया खोया सा रहता था.

एक दिन आधी रात नीचे के मकानों में हो-हंगामा शुरू हुआ. मैं जाग ही रहा था. हडबडा कर नीचे उतरा. मैंने देखा की हवेली के चौकीदार ने एक आदमी को पकड़ रखा था जिसे एक किरायेदार के मकान में चोरी से घुसते पकड़ा था. पकड़ा गया चोर 25-26 साल का लड़का था जो देखने से किसी खाते-पीते घर का लग रहा था, मेरा मतलब चोर बिल्कुल नहीं लग रहा था. जिस किरायेदार के घर से पकड़ा गया था उसका कमरा बिल्कुल मेरे कमरे के नीचे था. चौकीदार ने बताया की इस मकान का किरायेदार अपनी बीवी और साली के साथ रहता है. हालाँकि वह मुंबई में काम करता है और साल में ३-४ बार ही आता है. मकान में बीवी और साली अकेली रहती है. चोर ने शायद इसी बात का फायदा उठाकर चोरी करने के इरादे से मकान में घुसा था लेकिन रात को पहरेदारी करते चौकीदार ने पकड़ लिया. काफी हंगामे के बाद उस लड़के ने सबसे माफ़ी मांगी और दुबारा ऐसा नहीं करने की कसम ली तो उसे छोड़ दिया गया. सब अपने-अपने मकानों में चले गये और मैं भी कमरे में आकर सो गया.

अगली सुबह मैं तेज़ सिरदर्द के साथ उठा. ऑफिस जाने का दिल नहीं कर रहा था लेकिन दिन भर कमरे में बैठ करता भी क्या, यह सोचकर मैं ऑफिस चला गया. ऑफिस में जल्दी काम निपटाकर मैं वापस हवेली आ गया. और दिन की अपेक्षा आज मैं जल्दी आ गया था. हवेली के आंगन में काफी चहल-पहल थी. मैं जैसे ही घुमावदार सीढ़ी के पास आया एक औरत जो पहले से वहां खड़ी थी, मुझे देख बोली, “नमस्ते साहब!”

मैंने जबाव में नमस्ते किया. मुझे यह बहुत अजीब लग रहा था. मैंने उसको गौर से देखा. साफ़ रंग और औसत लम्बाई, उम्र ३२-३५ के आसपास की होगी. फिर मुझे याद आया यह वही है जिसके घर में कल रात चोर घुसने की कोशिश कर रहा था. मैंने कहा, “कल रात चोर ने कुछ नुकसान तो नहीं किया था ना?”

वह कुछ अकचका गयी. सम्हलते हुए अपने पल्लू में हाथ झाड़ते हुए बोली, “नहीं साहब”

मैं जवाब में मुस्कुराया और सीढ़ी चढ़ते हुए अपने कमरे में आ गया. उपर से देखा वह अब भी वही खड़ी थी. मैं सोच में पड़ गया, क्या वह कुछ कहना चाहती थी मुझसे या बस एक पडोसी के नाते मुझसे बात की?
 
मैं कमरे के अन्दर दाखिल हुआ. कपड़े उतार कर जब मैं बाथरूम गया. नहाने के बाद अचानक खिड़की पर नज़र गयी तो पाया कि लाली छत के किनारे खड़ी मेरे कमरे की तरफ देख रही थी. मुझे बात कुछ समझ में नहीं आया. घन्टे दो घन्टे आराम करने के बाद मैं बाज़ार की तरफ निकला. आज पवनजी नहीं आये थे, मैं अकेला ही था. बगल के एक ढाबे पे खाना खाया और वापस आया. सीढ़ी के पास मैंने देखा की वह औरत खड़ी है लेकिन उसके साथ एक लड़की थी जो शायद उसकी बहन होगी. इस बार मैं बिना देखे अपने कमरे में चला आया.

आज दिन भर में जो घटा मुझे कुछ समझ में नहीं आया. खैर मैं कमरे में आया तो पाया की विवेक ने मुझे ६ बार फ़ोन किया था. मैं अपना फ़ोन कमरे में ही छोड़ गया था. मैंने वापस फ़ोन किया. पहली घन्टी में ही विवेक ने फ़ोन उठाया, “कहाँ था यार? इतनी बार तुझे फ़ोन किया.”

“माफ़ करना भाई! मैं बाहर निकला था खाने के लिए. फ़ोन कमरे में ही भूल गया था. कोई खास बात करनी थी?”

“यार, आज पार्लर से निकलने के वक़्त सोमलता तुमसे बात करना चाहती थी. इसलिए मैंने फ़ोन किया था. लगभग आधे घन्टे इंतज़ार करने के बाद वह चली गयी.”

यह सुनने के बाद मैंने जोर से एक घुंसा दीवार पर दे मारा की मेरे मुँह से “आह्ह” की आवाज़ निकल पड़ी.

“क्या हुआ यार?” उधर से विवेक ने पूछा.

मैं सदमे से बाहर आया, “भाई आज तबियत ठीक नहीं है. सोमलता को कहना मैं कल शाम ६ बजे फ़ोन करूँगा. बाय!” मैं फ़ोन रख धम्म से बिस्तर पर बैठ गया. अगर मेरे हाथ में हो तो इसी वक़्त मैं सोमलता के पास चला जाऊ. मन थोड़ा शांत होने के बाद मैं सोच में पड़ गया, “आखिर सोमलता मुझसे क्या जरूरी बात करना चाहती थी?” आज सुबह से ही मेरा दिमाग भन्ना रहा था. थक-हार कर मैं जल्दी ही सो गया.

अगले दिन जल्दी ही नींद खुल गयी. उठने के बाद याद आया कि आज रविबार है. फिर से बिस्तर पर लेट गया लेकिन नींद नहीं आ रही थी. रह-रहकर सोमलता की याद आ रही थी. आखिर ऐसी क्या बात है जो बताने के लिए सोमलता ने फ़ोन किया था? बहुत सोचने के बाद भी जब कोई सुराग नहीं मिला तो हारकर सोचना छोड़ मैं बाथरूम में मुँह-हाथ धोया, चाय बनायीं और कुछ पुरानी मैगज़ीन देखने लगा. कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई. “कौन है?” मै बिस्तर पर बैठे-बैठे चिल्लाया.

“मैं हूँ, लाली” बाहर से एक भारी आवाज आई.

मैंने घडी देखी, 7 बज रहे थे. “लाली और इतनी सुबह?” मैंने दरवाजा खोला तो लाली हाथ में बाल्टी और झाड़ू लिए खड़ी है. मुझे मुठ मारते देखने के बाद से मैं लाली से बात करने से कतराता था लेकिन उस रात को दोनों की बात सुनने के बाद मैं थोड़ा चौड़ा हो गया था.

अन्दर आकर दरवाजा बंद कर मुस्कुराते हुए बोली, “साहब, मैंने आपको नींद से जगाया तो नहीं?”

मैं सोच में पड़ गया की आज यह इतनी मीठी बात क्यों कर रही है.

“नहीं, नहीं. मैं काफी पहले उठ गया हूँ.” फिर से मैं मैगज़ीन देखने में ब्यस्त हो गया. लाली पहले कमरे में झाड़ू लगायी फिर कमरे को पोंछने लगी. मैं बिस्तर के किनारे दोनों पैर समेट बैठा था. पोंछते हुए लाली बिस्तर के पास आ गयी. उसका चेहरा मेरे सामने था. साड़ी पर पल्लू पूरा थल गया जिसके कारण ब्लाउज सामने आ गया था. मैं मेगाज़िन के ऊपर से उसकी छाती को घुर रहा था. ब्लाउज का उपरी बटन खुला था और ऊपर बैठने के कारण मैं दोनों चुचिओं के बीच की घाटी को पूरा देखा पा रहा था.

सुबह-सुबह इस नज़ारे को देख मेरा छोटा सरदार सर उठा खड़ा हो गया. जिस तरह से लाली बैठी थी, उसके कारण उसकी छाती का निचला हिस्सा दब गया और चूचियां और उभर गयी. उसके मोटे-मोटे मम्मे ब्लाउज से बाहर निकलने को उतारू थे. यहाँ तक की चूचियों की गहरी गोलाई भी नज़र आ रही थी. यह नज़ारा देख मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.
 
अचानक लाली उपर गर्दन उठाई और मुझे अपनी मम्मो को घूरते हुए पाई. लेकिन वह कुछ नहीं बोली और उसी हालत में पोंछा लगाती रही. शायद वह मुझे दिखाना चाहती थी. फर्श साफ़ करने के बाद वह बाथरूम में चली गयी. दीवार पर लगी शीशे पर मैंने देखा कि वह मुस्कुरा रही थी. अब मुझे पक्का यकीं हो गया की यह सब जान-बुझकर किया गया था मुझे अपनी और खींचने के लिए, और उसमे वह कामयाब भी हुई. लेकिन अब आगे क्या?

मैं इसी सोच में खोया था कि बाथरूम के दरवाजे की खुलने की आवाज हुई. लाली मुस्कुराते हुए आ रही थी. उसने अपनी साड़ी घुटनों तक समेटी थी ताकि पैर धोने से गीली ना हो जाए. वह आकर बिल्कुल मेरे करीब बिस्तर पर बैठ गयी. मैं हैरान था, आज तक वह मेरे इतने करीब नहीं आई. मुझसे पूछा, “साहब चाय बनाऊ?”

मै बड़ी मुश्किल से बोला, “नहीं, मैंने बनाया था सुबह.”

अब लाली मेरे ओर करीब आकर मेरी और घूमके बैठ गयी. वह एक पैर को बिस्तर के ऊपर घुटने से मोड़कर बैठी जबकि उसकी दूसरी टांग बिस्तर से लटक रही थी. बैठने के कारण साड़ी घुटनों से और ऊपर उठ गयी. उसकी चिकनी केले के तने जैसे मोटे रान देख मेरी धड़कन तेज हो गयी. मेरा मन कर रहा था कि उसकी रानो को कस के मसल दूँ.

मेरी नज़रों में झांकते हुए बोली, “अच्छा साहब, कल शाम हो नीचे की कुसुम आपको क्या कह रही थी?”

“कौन कुसुम??” मैं पूछा.

“वह जो आपके मकान के नीचे रहती है ना. जिसके घर रात को चोर घुसा था.”

मुझे समझ में आया की लाली उस औरत के बारे में पूछ रही है.

“कुछ नहीं पूछी, बस नमस्ते की.” मैंने जबाव दिया. लेकिन ये क्यों जानना चाहती है.

अब लाली मेरे पास और सटकर फुसफुसाने के अंदाज़ में बोली, “बाबु, उससे दूर रहना. एक नंबर की छिनाल है साली. मर्दों को फँसाना उसका पेशा है.”

यह बात सुनकर मैं सकते में आ गया. “मतलब मैं कुछ समझा नहीं.” मैं बोला.

लाली आँख गोल-गोल बनाते हुए बोली, “अरे साहब, वह मर्दों को फँसाकर उससे पैसे ऐंठती है. उसका पति तो परदेस में ऐश कर रहा है. यहाँ ये अपनी बहन के साथ धंधा करती है. रात को जो लड़का आया था ना वह इसी दोनों का आशिक था. कोई चोर-वोर नहीं था. आप जरा बच के रहना. बात नहीं करना उस रांड से. पैसा तो गलाएगी, बदनाम करेगी सो अलग. मैं आपको आगाह कर देती हूँ.”

बात सुनकर तो मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. और जानने के लिए मैंने पूछा, “लेकिन ठकुराईन से कहकर इसको यहाँ से निकाला क्यों नहीं?”

लाली गहरी साँस छोड़ते हुए बोली, “एक बार मैं ठाकुर साहब के साथ बनारस गयी हुई थी. उस वक़्त बीवीजी बहुत तेज़ बीमार पड़ी थी. इसने काफी सेवा की थी इसलिए ठकुराईन इसको बहुत चाहती है. मैं क्यों किसी की कान भरने जाऊ?”

मैं थोड़ा सहज हुआ. अच्छा हुआ इसने बता दिया. “लेकिन लाली, इसको मुझसे क्या मिलेगा? मैं तो उसकी तरफ देखता ही नहीं?” मैं सफाई देते हुए बोला. जबकि अभी मैं लाली की मोटी-मोटी मुम्मो को घुर रहा था.

लाली हँसते हुए बोली, “साहब, आप बड़े निरे हो. इसके जैसी औरतों की करतूत नहीं समझते हो. यह पहले आपको नमस्ते करेगी. फिर अपनी बदन की नुमाइश कर आपको अपना दीवाना बनाएगी. फिर आपको अपने जाल में फ़साएगी फिर आपना सारा फ़रमाइश निकालेगी. आप जैसी मर्दों की तलाश रहती है इनको. आप अच्छा पैसा कमाते हो, परदेसी हो, जवान हो और अकेले रहते हो. अकेले रहने पर आदमी को ठरक ज्यादा चढ़ती है. हमेशा औरत के बदन की चाहत रहती है.”

लाली के मुँह से ये बातें सुनकर मै शर्म से लाल हो गया. जो भी हो यह औरत मर्दों की हर चाल समझती है. मुझे चुप देख आंख मटकाकर बोली, “वैसे साहब, शादी तो नहीं हुई है आपकी. कोई माशूका है क्या?”

मेरी जबान से आवाज नहीं निकल रहा था. “नहीं”, बड़ी मुश्किल से मैं बोल पाया.

लाली अपना हाथ मेरे बाएं जांघ के ऊपर रख दी. मैं अन्दर ही अन्दर सिसककर रह गया. धीरे-धीरे सहलाते हुए बोली, “तो फिर उस दिन किसके नाम मुठ मार रहे थे? अपनी किसी चाची या मौसी के नाम पर?”

अब मेरी हालत हलाल होने वाले बकरे की तरह हो गयी. “धत, नहीं मैं तो ........” और कुछ बोल ही नहीं पाया. लेकिन लाली इतनी जल्दी मुझे छोड़ने वाली नहीं थी. मै बनियान और बॉक्सर पहना हुआ था. उसने बॉक्सर के अन्दर से दोनों जांघो को सहलाना शुरू किया. सहलाते हुए साथ अन्दर कमर तक ले गयी और अचानक मेरे नंगे लिंग महाराज को पकड़ ली. “

आह्ह्ह... लाली.... क्या कर रही ... हो .....” मैं झुकते हुए सिसकारी मारने लगा. लाली मेरी आँखों में देखते हुए बोली, “साहब आज लाली के नाम पर मुठ निकाल लो. सारी चाची, मौसी को भूल जाओगे. चिंता मत करो, मैं तुमसे पैसे नहीं मांगूंगी.” उसने मुझे धक्का दे बिस्तर पे लेटा दी और खुद मेरी दोनों पैरो के बीच आ गयी. मेरी बनियान को ऊपर उठाई और बॉक्सर को नीचे खिसका दी. मेरा लंड किसी स्प्रिंग के जैसे उछल कर बाहर आ गया जो लाली की चुचियों को देख एकदम कड़क हो गया था. लंड को देख लाली ने होंठो पे जीभ फेरी और अपनी मुँह को लंड के पास ले गयी जैसे की चूसने वाली हो. मैं मस्ती में आंख बंद कर लेटा था. लेकिन लाली ने ना तो लंड को चूमा ना चूसा. बल्कि ढेर सारा थूक निकाल कर लंड पर मलने लगी. दोनों हाथो से गीले लंड को आगे पीछे कर रही थी.

मैं आँख खोला तो देखा लाली बड़ी मस्ती में मेरा मुठ मर रही थी. मुझे देख बोली, “साहब, कैसा लग रहा है?”

मैं मस्ती में सातवे आसमान में तैर रहा था. “बहुऊऊऊतत मज़ा आ रहा है” मै गांड उछालते हुए बोला.

लाली मुस्कुराते हुए मुठ मारने लगी. मुझे आज तक मुठ मारने या मराने में इतना मज़ा नहीं आया था. मारे मस्ती के मैं ज्यादा देर तक अपने रस को रोक नहीं पाया और तेज़ सिसकारी के साथ झड गया. मेरे लंड की पिचकारी इतनी ऊपर उछली कि कुछ बुँदे मेरे चेहरे पर आ गिरी. लाली का गला और छाती पूरा नहा गया था मेरे लिंग के रस से जो बहते हुए उसकी मुम्मों की घाटी में बह रहा था.

कुछ सेकंड के बाद जब मैं आँख खोला तो लाली को मेरे पैरों के बीच पाया. मुझे देखते देख वह साड़ी के पल्लू से मेरा लंड साफ़ कर दी और अपना हाथ भी. फिर साड़ी ठीक कर उठ खड़ी हुई. तभी दरवाजे पर किसी की आहट हुई. मैं चौंक गया. लाली दौड़ कर दरवाजा खोली तो बाहर कोई नहीं था. लाली छत पर भागी. बापस आई तो मैं पूछा, “कौन था?”

लाली गुस्से में लाल थी. “और कौन? वही छिनाल थी. मैंने उसको सीढ़ी से नीचे उतरते देख लिया. आप फ़िक्र मर करो साहब. कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी. आराम करो मैं जाती हूँ.” कहते हुए बाल्टी, झाड़ू लिए दनदनाते हुए निकल गयी.

मैं नंगा लंड लिए बिस्तर पर लेटा रहा और सोचने लगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है? काफी देर तक मैं इसी तरह लंड खोले बिस्तर पर पड़ा रहा. फिर बाथरूम नहाने गया. बार-बार मेरे दिमाग में लाली की तंग ब्लाउज मै कैद मम्मो की तस्वीर घूम रही थी. अब तक इन नारगियों को दबाने की बात तो दूर सही से देख तक नहीं पाया था. लेकिन जब बगीचे की मालकिन हाथ में है तो नारंगी का स्वाद कभी ना कभी मिल ही जायेगा!
 
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