desiaks
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लेखक:- अज्ञात/सतीश
भाइयो यह मेरी कहानी नही है अच्छी लगी तो पोस्ट कर रहा हु, अगर यह कहानी किसी और नाम से इस फोरम पर हो तो बता दे...सतीश
पिशाच की वापसी – 1
रात का अंधेरा काला साया, खामोशी से भरा, हल्की हल्की गिरती बारिश की बूँदें. एक पतली सी सड़क और उस सड़क के दोनों तरफ घना जंगल, बारिश की वजह से सड़क गीली हो चुकी थी, तभी उस सुनसान सड़क पे एक इंसान नज़र आया जो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.
काले अंधेरे के साये में वह आदमी धीरे धीरे उस सड़क पे आगे बढ़ रहा था, उसने ब्लैक कलर का लंबा सा कोट पहना हुआ था, गर्दन में मोटा सा मफ्लर, हाथों में ब्लैक कलर के ग्लव्स पहन रखे थे और बारिश से बचने के लिए उसने छतरी ली हुई थी.. सड़क गीली होने की वजह से एक अजीब सी आवाज़ उस आदमी के चलने की वजह से आ रही थी, अजीब सी आवाज़ … पकच..पकचह… पकचह……पकचह, उस जगह पे इतनी शांति थी की वह इंसान इस आवाज़ को साफ साफ सुन पा रहा था, अचानक वह आदमी चलते चलते रुक गया और उसने अपनी गर्दन पीछे की तरफ घुमाई, उस इंसान ने आधे चेहरे पे कपड़ा बाँध रखा था, उसकी आँखों से देख के ऐसा लग रहा था मानो वह कुछ ढूँढ रहा हो, धीरे धीरे उसने अपने हाथ से चेहरे पे पहना मास्क हटाया, लेकिन पीछे देखने का कोई फायदा नहीं मिल रहा था क्यों की पीछे सिर्फ़ अंधेरा था और कुछ नहीं, उस आदमी ने फिर से अपनी नज़रे सामने की और की फिर वह सामने चलने लगा.
बारिश अब काफी धीमी हो चुकी थी, और ठंडी हवा धीरे धीरे चलने लगी, वह आदमी चलते चलते कभी अपने लेफ्ट देखता तो कभी राइट, उसके चेहरे पे हल्की सी घबराहट दिखाई दे रही थी.
माहौल ही कुछ ऐसा था, काला अंधेरा, सुनसान जगह, जहाँ सिर्फ़ एक इंसान के अलावा कोई ना हो ऐसे में अगर इंसान डरा हुआ हो तो ये पल काफी होता है किसी की भी दिल की धड़कने तेज करने के लिए, यही हुआ इस इंसान के साथ भी, आगे तो वह धीरे धीरे बढ़ रहा था पर उसके दिल की धड़कने उसके चलने से कई ज्यादा गुना तेज चल रही थी.
“11 बज गये, मुझे जल्दी पहुंच के सारेी बात अच्छे से बतानी पड़ेगी"
उसने टाइम देखते हुए अपने आप से कहा और बोलते हुए फिर आगे बढ़ने लगा की तभी उसे ऐसा आभास हुआ मानो उसके पीछे कोई हो और उसके साथ साथ उसके पीछे चल रहा हो, उस आदमी की दिल की धड़कने और तेज हो गयी, चेहरे पे घबराहट की लकीरें और फैल गयी, उसके माथे की शिकन फैल गयी, उसकी साँसें तेज चल रही थी, पर फिर भी वह चले जा रहा था, लेकिन कुछ ही सेकेंड वह आगे चला था की वह रुक गया, क्यों की उसके दिमाग और उसके मन से अभी तक वह डर नहीं गया था, उस अभी तक लग रहा था की कोई उसके पीछे चल रहा है, वह रुकते ही पीछे घूम गया और एक बार फिर से उस काले अंधेरे में देखने की कोशिश करने लगा, लेकिन जब उसे लगा की कोई नहीं है वह वापिस घूमके चलने लगा.
धीरे धीरे चल रही हवा तेज होने लगी, हवा चलने की वजह से पेड़ों की आवाज़ ने उस जगह को खामोशी से बाहर निकल लिया.
वह आदमी कुछ बड़बड़ाते हुई आगे बढ़ रहा था, उसके चेहरे पे घबराहट अभी तक बननी हुई थी..
"कौन है"
अचानक वह चलते चलते रुक गया और एक दम से चिल्ला पड़ा,
“कौन है"
इधर उधर देखते हुए वह फिर से एक बार चिल्लाया. लेकिन कुछ नहीं था, हवा के चलने की वजह से वहां पेड़ों के पत्ते हिल रहे थे और उसके अलावा कुछ नहीं.
उस आदमी ने अपने चेहरे को अपने हाथों से सहलाया,
"क्या हो गया मुझे, ये सब सिर्फ़ उन सब चीज़ों की वजह से हो रहा है जो 2 दिन से में सुन रहा हूँ, देख रहा हूँ, ये सब उसी का असर है"
अपने आप से कहते हुए एक बार फिर वह चलने लगा और कुछ सोचने लगा ….
दूसरी तरफ……
घर के हॉल में बहुत से आदमी ज़मीन पे बैठे थे और आपस में बातें कर रहे थे, उनकी आवाज़ से उस हॉल में अजीब सा शोर गूँज रहा था की तभी..
"अरे साहब आ गये"
एक आदमी हाथ जोड़ के खड़े होते हुए बोला, उसके साथ में सभी खड़े हो गये.
उन सब के सामने एक आदमी खड़ा था जो देखने में करीब 30-35 साल का नॉर्मल सा इंसान लग रहा था, गर्म कपड़े पहन रखे थे, वह सीधा चलता हुआ आया और कुर्सी पे आकर बैठ गया.
"छोटू ज़रा आग को थोड़ा और बड़ा दे, ठंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है"
उस आदमी ने अपने नौकर से अपनी वज़नदार आवाज़ में कहा, और फिर सामने सभी को देखने लगा.
"जी साहब, लकड़ियाँ पीछे वाले कमरे में है, में अभी लेकर आता हूँ"
बोल के वह निकल गया.
“आप लोग खड़े क्यों है बैठ जाइये"
उस आदमी ने सामने खड़े लोगों को बैठने के लिए कहा, सभी ज़मीन पे बिछे कार्पेट पे बैठ गये.
"कहिए ऐसी क्या जरूरी बात करनी थी जो आप सब यहाँ तक आए वह भी इस ठंड में"
"हम वहां काम नहीं कर सकते"
एक आदमी थोड़ा गुस्से में खड़े होते हुई बोला.
“काम नहीं कर सकते पर क्यों, क्या वजह है"
कुर्सी पे बैठे आदमी ने जवाब बड़ी नर्मी से दिया.
"वजह नहीं पता आपको, पिछले 2 दीनों में क्या क्या हुआ है वहां उसके बारे में आपको कुछ नहीं पता है,या फिर पता होते हुए भी हमसे छुपाने का नाटक कर रहे हैं"
फिर से वह आदमी थोड़ी ऊंची आवाज मैं बोला.
भाइयो यह मेरी कहानी नही है अच्छी लगी तो पोस्ट कर रहा हु, अगर यह कहानी किसी और नाम से इस फोरम पर हो तो बता दे...सतीश
पिशाच की वापसी – 1
रात का अंधेरा काला साया, खामोशी से भरा, हल्की हल्की गिरती बारिश की बूँदें. एक पतली सी सड़क और उस सड़क के दोनों तरफ घना जंगल, बारिश की वजह से सड़क गीली हो चुकी थी, तभी उस सुनसान सड़क पे एक इंसान नज़र आया जो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.
काले अंधेरे के साये में वह आदमी धीरे धीरे उस सड़क पे आगे बढ़ रहा था, उसने ब्लैक कलर का लंबा सा कोट पहना हुआ था, गर्दन में मोटा सा मफ्लर, हाथों में ब्लैक कलर के ग्लव्स पहन रखे थे और बारिश से बचने के लिए उसने छतरी ली हुई थी.. सड़क गीली होने की वजह से एक अजीब सी आवाज़ उस आदमी के चलने की वजह से आ रही थी, अजीब सी आवाज़ … पकच..पकचह… पकचह……पकचह, उस जगह पे इतनी शांति थी की वह इंसान इस आवाज़ को साफ साफ सुन पा रहा था, अचानक वह आदमी चलते चलते रुक गया और उसने अपनी गर्दन पीछे की तरफ घुमाई, उस इंसान ने आधे चेहरे पे कपड़ा बाँध रखा था, उसकी आँखों से देख के ऐसा लग रहा था मानो वह कुछ ढूँढ रहा हो, धीरे धीरे उसने अपने हाथ से चेहरे पे पहना मास्क हटाया, लेकिन पीछे देखने का कोई फायदा नहीं मिल रहा था क्यों की पीछे सिर्फ़ अंधेरा था और कुछ नहीं, उस आदमी ने फिर से अपनी नज़रे सामने की और की फिर वह सामने चलने लगा.
बारिश अब काफी धीमी हो चुकी थी, और ठंडी हवा धीरे धीरे चलने लगी, वह आदमी चलते चलते कभी अपने लेफ्ट देखता तो कभी राइट, उसके चेहरे पे हल्की सी घबराहट दिखाई दे रही थी.
माहौल ही कुछ ऐसा था, काला अंधेरा, सुनसान जगह, जहाँ सिर्फ़ एक इंसान के अलावा कोई ना हो ऐसे में अगर इंसान डरा हुआ हो तो ये पल काफी होता है किसी की भी दिल की धड़कने तेज करने के लिए, यही हुआ इस इंसान के साथ भी, आगे तो वह धीरे धीरे बढ़ रहा था पर उसके दिल की धड़कने उसके चलने से कई ज्यादा गुना तेज चल रही थी.
“11 बज गये, मुझे जल्दी पहुंच के सारेी बात अच्छे से बतानी पड़ेगी"
उसने टाइम देखते हुए अपने आप से कहा और बोलते हुए फिर आगे बढ़ने लगा की तभी उसे ऐसा आभास हुआ मानो उसके पीछे कोई हो और उसके साथ साथ उसके पीछे चल रहा हो, उस आदमी की दिल की धड़कने और तेज हो गयी, चेहरे पे घबराहट की लकीरें और फैल गयी, उसके माथे की शिकन फैल गयी, उसकी साँसें तेज चल रही थी, पर फिर भी वह चले जा रहा था, लेकिन कुछ ही सेकेंड वह आगे चला था की वह रुक गया, क्यों की उसके दिमाग और उसके मन से अभी तक वह डर नहीं गया था, उस अभी तक लग रहा था की कोई उसके पीछे चल रहा है, वह रुकते ही पीछे घूम गया और एक बार फिर से उस काले अंधेरे में देखने की कोशिश करने लगा, लेकिन जब उसे लगा की कोई नहीं है वह वापिस घूमके चलने लगा.
धीरे धीरे चल रही हवा तेज होने लगी, हवा चलने की वजह से पेड़ों की आवाज़ ने उस जगह को खामोशी से बाहर निकल लिया.
वह आदमी कुछ बड़बड़ाते हुई आगे बढ़ रहा था, उसके चेहरे पे घबराहट अभी तक बननी हुई थी..
"कौन है"
अचानक वह चलते चलते रुक गया और एक दम से चिल्ला पड़ा,
“कौन है"
इधर उधर देखते हुए वह फिर से एक बार चिल्लाया. लेकिन कुछ नहीं था, हवा के चलने की वजह से वहां पेड़ों के पत्ते हिल रहे थे और उसके अलावा कुछ नहीं.
उस आदमी ने अपने चेहरे को अपने हाथों से सहलाया,
"क्या हो गया मुझे, ये सब सिर्फ़ उन सब चीज़ों की वजह से हो रहा है जो 2 दिन से में सुन रहा हूँ, देख रहा हूँ, ये सब उसी का असर है"
अपने आप से कहते हुए एक बार फिर वह चलने लगा और कुछ सोचने लगा ….
दूसरी तरफ……
घर के हॉल में बहुत से आदमी ज़मीन पे बैठे थे और आपस में बातें कर रहे थे, उनकी आवाज़ से उस हॉल में अजीब सा शोर गूँज रहा था की तभी..
"अरे साहब आ गये"
एक आदमी हाथ जोड़ के खड़े होते हुए बोला, उसके साथ में सभी खड़े हो गये.
उन सब के सामने एक आदमी खड़ा था जो देखने में करीब 30-35 साल का नॉर्मल सा इंसान लग रहा था, गर्म कपड़े पहन रखे थे, वह सीधा चलता हुआ आया और कुर्सी पे आकर बैठ गया.
"छोटू ज़रा आग को थोड़ा और बड़ा दे, ठंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है"
उस आदमी ने अपने नौकर से अपनी वज़नदार आवाज़ में कहा, और फिर सामने सभी को देखने लगा.
"जी साहब, लकड़ियाँ पीछे वाले कमरे में है, में अभी लेकर आता हूँ"
बोल के वह निकल गया.
“आप लोग खड़े क्यों है बैठ जाइये"
उस आदमी ने सामने खड़े लोगों को बैठने के लिए कहा, सभी ज़मीन पे बिछे कार्पेट पे बैठ गये.
"कहिए ऐसी क्या जरूरी बात करनी थी जो आप सब यहाँ तक आए वह भी इस ठंड में"
"हम वहां काम नहीं कर सकते"
एक आदमी थोड़ा गुस्से में खड़े होते हुई बोला.
“काम नहीं कर सकते पर क्यों, क्या वजह है"
कुर्सी पे बैठे आदमी ने जवाब बड़ी नर्मी से दिया.
"वजह नहीं पता आपको, पिछले 2 दीनों में क्या क्या हुआ है वहां उसके बारे में आपको कुछ नहीं पता है,या फिर पता होते हुए भी हमसे छुपाने का नाटक कर रहे हैं"
फिर से वह आदमी थोड़ी ऊंची आवाज मैं बोला.