मनिका को इस पोज़ में देख जयसिंह और बेकाबू हो गए थे. मनिका वापस अपने ईयरफोंस ढूँढने में लग गई थी. जयसिंह ने ध्यान दिया की मनिका के इस तरह झुके होने की वजह से उसकी लेग्गिंग्स का महीन कपड़ा खिंच कर थोड़ा पारदर्शी हो गया था और केबिन में इतनी रौशनी थी कि उन्हें उसकी सफ़ेद लेग्गिंग्स में से गुलाबी कलर का अंडरवियर नज़र आ रहा था. उन पर एक बार फिर जैसे बिजली गिर पड़ी. उन्होंने अपनी नज़रें अपनी बेटी मनिका के नितम्बों पर पूरी शिद्दत से गड़ा लीं, वे सोच रहे थे कि पहली बार में उन्हें उसकी अंडरवियर क्यूँ नहीं दिखाई दी थी, और उन्हें एहसास हुआ की मनिका जो अंडरवियर पहने थी वह कोई सीधी-सिम्पल अंडरवियर नहीं थी बल्कि एक थोंग था, जो कि एक प्रकार का मादक (सेक्सी) अंडरवियर होता है जिससे पीछे का अधिकतर भाग ढंका नहीं जाता. जयसिंह पर गाज पर गाज गिरती चली जा रही थी. ट्रेन के हिचकोलों से हिलते मनिका के नितम्बों ने उनके लिए वचन की धज्जियाँ उड़ा दीं थी.
आज तक जयसिंह ने किसी को इस तरह की सेक्सी अंडरवियर पहने नहीं देखा था, अपनी बीवी मधु को भी नहीं. उनके मन में अनेक ख्याल एक साथ जन्म ले रहे थे, 'ये मनिका कब इतनी जवान हो गई? पता ही नहीं चला, आज तक इसकी माँ ने भी कभी ऐसी पैंटी पहन कर नहीं दिखाई जैसी ये पहने घूम रही है...ओह्ह मेरे से पैसे ले जा कर ऐसी कच्छियाँ लाती है ये...’जयसिंह जैसे सुध-बुध खो बैठे थे, 'ओह्ह क्या...क्या कसी हुई गांड है साली की...ये मैं क्या सोच रहा हूँ? सच ही तो है...साली कुतिया कैसे अधनंगी घूम रही है देखो जरा. साली चिनाल के बोबे भी बहुत बड़े हो रहे हैं...म्म्म्म्म्म्म...हे प्रभु...’जयसिंह के दीमाग में बिजलियाँ कौंध रहीं थी.
जयसिंह के कई दोस्त ऐसे थे जिनके शादी के बाद भी अफेयर्स रहे थे लेकिन उन्होंने कभी मधु के साथ दगा नहीं की थी, उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी कामिच्छा भी मंद पड़ने लगी थी और अब वे कभी-कभार ही मधु के साथ संभोग किया करते थे. लेकिन आज अचानक जैसे उनके अन्दर सोया हुआ मर्द फिर से जाग उठा था उन्होंने पाया की उनकी पेंट में उनका लिंग तन के खड़ा हो गया था. अब तक मनिका को उसके ईयरफोंस मिल चुके थे और वह सामने की बर्थ पर बैठी गाने सुन रही थी, उसने मुस्का कर अपने पिता की ओर देखा, उसे नहीं पता था कि सामने बैठे उसके पापा किस कदर उस के जिस्म के दीवाने हुए जा रहे थे.
जयसिंह ने पाया कि उनका लिंग खड़ा होकर उन्हें तकलीफ दे रहा था क्यूंकि उनके बैठे होने की वजह से लिंग को जगह नहीं मिल पा रही थी, उन्हें ऐसा लग रहा था मानो एक दिल उनके सीने में धड़क रहा था और एक उनके लिंग में, 'साला लौड़ा भी फटने को हो रहा है और ये साली कुतिया मुस्कुरा रही है सामने बैठ कर...ओह क्या मोटे होंठ है साली के, गुलाबी-गुलाबी...मुहं में भर दूँ लंड इसके...आह्ह्ह...’जयसिंह भूल चुके थे कि मनिका उनकी बेटी है. पर सच से भी मुहं नहीं फेरा जा सकता था, थोड़ी देर बाद जब उनका दीमाग कुछ शांत हुआ तो वे फिर सोच में पड़ गए, 'मनिका...मेरी बेटी है...साली कुतिया छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है...उफ़ पर वो मेरी बेटी...साली का जिस्म ओह्ह...उसकी फ्रेंड्स मुझे उसका बॉयफ्रेंड कहती हैं...ओह मेरी ऐसी किस्मत कहाँ...काश ये मुझसे पट जाए...कयामत आ जाएगी...पर वो मेरी प्यारी बिटिया...रांड है.'
जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगे थे जब मनिका ने अपनी सैंडिल खोली और पैर बर्थ पर करके लेट गई, एक बार फिर उनके कुछ शांत होते बदन में करंट दौड़ गया. मनिका उनकी तरफ करवट ले कर लेटी हुई थी और उसकी डीप-नेक टी-शर्ट में से उसका वक्ष उभर कर बाहर निकल आया था, इससे पहले की जयसिंह का दीमाग इस नए झटके से उबर पाता उनकी नज़र मनिका की टांगों के बीच बन रही 'V' आकृति पर जा ठहरी. वे तड़प उठे, 'ओह्ह्ह मनिकाआआ...’और उसी क्षण जयसिंह ने फैसला कर लिया कि ये आग मनिका के जिस्म से ही बुझेगी, जो भी हो उन्हें किसी तरह अपनी बेटी के साथ हमबिस्तर होने का रास्ता खोजना होगा वरना शायद उन्हें ज़िन्दगी भर चैन नहीं मिलेगा.
जयसिंह भी अब अपनी बर्थ पर लेट गए और मनिका पर से नज़रें हटा लीं. वे जानते थे कि अगर वे उसकी तरफ देखते रहे तो उनका दीमाग सोचने-समझने के काबिल नहीं रहेगा और इस वक्त उन्हें दिल से ज्यादा दीमाग की जरूरत थी, 'मैं और मनिका इस ट्रिप पर अकेले जा रहे हैं, इस को पटाने के लिए इससे ज्यादा सुनहरा मौका शायद ही फिर मिले, सो मुझे दीमाग से काम लेना होगा. अगर प्लान में थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो मामला बहुत बिगड़ सकता है इसलिए बहुत सोच समझ कर कदम उठाने होंगे ताकि अगर बात न बनती दिखे तो पीछे हटा जा सके.' जयसिंह अब मनिका के स्वाभाव और स्कूल कॉलेज के ज़माने के अपने अनुभव का मेल करने की कोशिश करने लगे, 'हम्म लड़कियों के बारे में मैं क्या जानता हूँ..? हमेशा से ही लड़कियां पैसे वाले लौंडों के चक्करों में जल्दी आती हैं, सो पहली समस्या का हल तो मेरे पास है और दूसरा लड़कियों को पसंद है अपनी तारीफ करवाना, वो भी कोई दिक्कत नहीं है और लड़कियाँ स्वाभाव से सीक्रेटिव भी होतीं है, उन्हें चुपके-चुपके शरारत करना बहुत भाता है, सो साली की इस कमजोरी पर भी ध्यान देना होगा. फिर आती है भरोसे की बात;एक बार अगर लड़की को आपने भरोसे में ले लिया तो उस से कुछ भी करवाया जा सकता है, मनिका मुझ पर भरोसा तो करती है लेकिन अपने पैरेंट के रूप में सो वहाँ दिक्कत आने वाली है और लास्ट स्टेप है मनिका की जवानी, उसमें भी आग लगानी होगी. वैसे इन मामलों में लडकियाँ मर्दों से कम तो नहीं होती बस वे जाहिर नहीं होने देती, लेकिन यहाँ सबसे बड़ी दिक्कत आने वाली है. मनिका के तन में इतनी हवस जगानी होगी कि वह सामाज के नियम तोड़ कर मेरी बात मान लेने पर मजबूर हो जाए. यह आखिरी काम सबसे मुश्किल होगा, लेकिन अब मैं पीछे नहीं हट सकता, या तो आर है या पार है.' जयसिंह ने इसी तरह सोचते हुए दो घंटे बिता दिए, मनिका को लगा कि वे सो रहे हैं.
उनका प्लान बन चुका था, पहले वे अपने पैसे और तारीफों से मनिका को दोस्ती के ऐसे जाल में फँसाने वाले थे ताकि वह उनको अपने पिता के रूप में देखना कुछ हद तक छोड़ दे. फिर वे धीरे-धीरे अपना चँगुल कसने वाले थे और मनिका के साथ बिलकुल किसी अच्छे दोस्त की तरह पेश आ कर उसका भरोसा पूरी तरह जीतने की कोशिश करने वाले थे ताकि उन दोनों के बीच कुछ ऐसे अन्तरंग वाकये हों जो मनिका को उनके और करीब ले आए. उसके इतना फंस जाने के बाद जयसिंह हौले-हौले उसकी कमसिन जवानी की आग को हवा देने का काम करने वाले थे. जयसिंह का मन अब शांत था, वे हमेशा से ही अपने बिज़नस के क्षेत्र में एक मंजे हुए खिलाड़ी माने जाते थे क्यूंकि एक बार जो वे ठान लेते थे उसे पा कर ही दम लेते थे और उसी एकाग्रता के साथ वे अपनी बेटी को अपनी रखैल बनाने के अपने प्लान पर अमल लाने वाले थे.
शाम होते-होते वे लोग दिल्ली पहुँच गए, स्टेशन से बाहर आ कर उन्होंने एक कैब ली और जब ड्राईवर ने पूछा कि वे कहाँ जाना चाहते हैं तो जयसिंह बोले,
'मेरियट गुडगाँव.' और कनखियों से मनिका की तरफ देखा. मनिका के चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी.
'वाओ पापा हम मेरियट में रुकेंगे?' मनिका ने खुश हो कर पूछा.
'और नहीं तो क्या? अब तुम साथ आई हो तो किसी अच्छी जगह ही रुकेंगे ना.' जयसिंह उसे हवा देते हुए बोले.
'ओह गॉड पापा आई एम सो हैप्पी.'
'हाहा...थेट्स व्हाट आई वांट फॉर यू मनिका.' जयसिंह ने कहा. मनिका यह सुन और खुश हो गई लेकिन उसने मन ही मन नोटिस किया कि जयसिंह सुबह से उसे उसके निकनेम मणि की बजाय 'मनिका' कह कर पुकार रहे थे जो उसे थोड़ा अटपटा लगा.
कुछ देर के सफ़र के बाद वे हॉटेल पहुँच गए. मेरियट दिल्ली-गुडगाँव बेहद आलिशान हॉटेल है, अन्दर पहुँचने पर मनिका वहाँ के डेकोर को देख बहुत खुश हुई. जयसिंह ने उसे सामान के पास छोड़ा और चेक-इन काउंटर पर पहुंचे. वहाँ बैठे फ्रंट-ऑफिस क्लर्क ने उनका अभिवादन किया,
'वेलकम टू द मेरियट सर. डू यू हैव अ रिजर्वेशन?'
'एक्चुअली नो. आई ऍम लुकिंग फॉर अ स्टे.'
'ओह वैरी वेल सर, आर यू अलोन?'
'नो आई एम हेयर विद माय वाइफ.' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.
'वेल सर हाओ लॉन्ग विल यू बी स्टेइंग विद अस?'
'आई डोंट क्नो एक्चुअली सो कैन यू पुट अस डाउन फॉर अ वीक फॉर नाओ?' जयसिंह ने जरा सोच कर कहा.
'वैरी वेल सर. हेयर आर योर की-कार्ड्स सर थैंक यू फॉर चूजिंग द मेरियट. हैव अ प्लीजेंट स्टे.'
जयसिंह रूम बुक करा कर मनिका के पास लौटे. तभी हेल्पर भी आ गया और उनका रूम नंबर पूछ कर उनका लगेज रखने चल दिया. वे भी एलीवेटर से अपने रूम की तरफ चल पड़े.