desiaks
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20A
कीर्ति की बात सुनने के बाद छोटी माँ ने मुझे जाने की इजाज़त देते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “ठीक है बेटा, तू जा मगर शाम को जल्दी घर आ जाना.”
मैं बोला “ठीक है छोटी माँ.”
इतना कह कर मैं बाहर आ गया. मैने अपनी बाइक उठाई और मेहुल के घर चला गया. मेहुल के घर पहुच कर मैने बेल बजाई तो आंटी ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर आंटी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने अंदर आकर सोफे पर बैठते हुए आंटी से पुछा.
मैं बोला “आंटी मेहुल कहाँ है. आज स्कूल क्यो नही आया.”
आंटी ने मेरे सामने वाले सोफे पर बैठते हुए कहा.
आंटी बोली “वो तो अपने मामा के घर गया है. क्या उसने तुझे कॉल नही किया.”
मैं बोला “नही आंटी, मैने उसे कॉल भी लगाया तो, उसका मोबाइल बंद बता रहा था.”
आंटी बोली “कोई बात नही, रात को उसका फोन आएगा तो, मैं उसे बोल दुगी. तू बैठ, मैं अभी तेरे खाने के लिए कुछ लाती हू.”
मैं बोला “नही आंटी, मैं अभी अभी घर से खाना खाकर आता जा रहा हूँ. अब मैं चलुगा.”
आंटी बोली “जब से तेरी छोटी माँ से, तेरी बनने लगी है. तब से तो तू अपनी आंटी को भूलता ही जा रहा है और अब तो तुझे अपनी आंटी के हाथ का खाना भी अच्छा नही लगता.”
आंटी की बात सुनकर मैं सोफे से उठा और आंटी के पास आकर नीचे ही, घुटनो के बल बैठ गया. मैने उनके हाथो को अपने हाथो मे थाम और उन से कहा.
मैं बोला “आंटी, आप ये कैसी बात कर रही है. मैने कभी आपको अपनी माँ से कम नही समझा. मेरी माँ के बाद, यदि मुझे आपका ये प्यार नही मिला होता तो, मेरे संबंध ना तो छोटी माँ से इतने अच्छे होते और ना ही अमि निमी का प्यार मुझे मिल रहा होता. मैं जब कभी भी अपनी जनम देने वाली माँ को याद करता हूँ तो, मेरे सामने आपका ममता भरा चेहरा आ जाता है और आप कह रही हो, मैं आपको भूल गया हूँ.”
ये कहते कहते मेरी आँखो मे आँसू आ गये और मैने अपना मूह उनकी गोद मे छिपा लिया. आंटी को भी शायद इस बात का अहसास नही था कि, उनकी इस बात का मुझ पर इतना गहरा असर पड़ेगा कि, मेरी आँखें भीग जाएगी.
उन्हों ने प्यार से मेरे सर पर अपना हाथ फेरते हुए, अपनी साड़ी के आँचल से, मेरे आँसू पोन्छे और मुझे समझाते हुए कहा.
आंटी बोली “अरे बेटा, मैं तो मज़ाक कर रही थी. मुझे नही मालूम था कि, मेरा पुन्नू अभी भी छोटा सा बच्चा ही है. जो मेरे इतने से मज़ाक से रो देगा.”
मैं बोला “नही आंटी, अब मैं बच्चा नही हूँ. अब मैं सब समझता हूँ. मगर जब आपने ये बोला कि, मैं आपको भूल गया. तब मुझे ना जाने क्यो ऐसा लगा कि, आपने मुझे अपने से दूर कर दिया और मेरी आँखों मे अपने आप आँसू आ गये.”
आंटी बोली “एक माँ अपने बच्चों को कभी खुद से दूर नही करती. फिर तू तो मेरा सबसे प्यारा बेटा है. मैं भला तुझे अपने से दूर कैसे कर सकती हूँ. लेकिन अब ये सब बातें छोड़ और ये बता कि, अब तुझे भूख लगी है या नही.”
मैं बोला “आप के हाथ से कुछ खाने के लिए, मुझे किसी भूक की ज़रूरत नही है. लेकिन आज आपको अपने हाथों से खिलाना पड़ेगा, क्योकि आज आपने मुझे रुलाया है.”
आंटी बोली “ठीक है तू बैठ. मैं अभी तेरे मनपसंद, आलू के पराठे बनाती हूँ.”
ये कह कर आंटी किचन मे चली गयी और मैं टीवी चालू करके, टीवी देखने लगा. मैं अभी टीवी देख ही रहा था कि, तभी डोरबेल बजती है. आंटी किचन से ही आवाज़ लगा कर कहती है.
आंटी बोली “पुन्नू बेटा, ज़रा देखना कि कौन आया है.”
मैं बोला “जी आंटी.”
ये बोल कर मैं दरवाजा खोलने चला जाता हूँ. दरवाजा खोलते ही, मैं एक पल को तो, दंग ही रह जाता हूँ. मेरे सामने दो लड़कियाँ खड़ी थी, और मैं दोनो को ही जानता था. इस से पहले कि मैं कुछ भी बोल पाता. अंदर से आंटी की आवाज़ लगाकर पूछती है.
आंटी बोली “पुन्नू बेटा, कौन आया है.”
आंटी की आवाज़ सुनकर आने वाली लड़की कहती है.
लड़की बोली “आंटी, मैं हूँ नितिका.”
आंटी बोली “बेटी तुम बैठो, मैं अभी आती हू.”
ये सुनकर दोनो मेरे सामने के सोफे पर बैठ जाती है. मुझे खामोश देख नितिका कहती है.
नितिका बोली “शायद आपने मुझे पहचाना नही.”
मैं बोला “मैने आपको पहचान तो लिया था. लेकिन आपके साथ इनको देख कर थोड़ा ताज्जुब हुआ, इसलिए कुछ बोल नही पाया.”
मेरी बात से नितिका को हैरत हुई. उसने मुझसे पुछा.
नितिका बोली “आप शिल्पा को जानते है.”
मैं बोला “हाँ जानता हूँ. ये मेरी ही स्कूल मे पढ़ती है, पर शायद ये मुझे नही पहचानती.”
शिल्पा जो अभी तक चुप थी. मेरी बात सुनने के बाद कहती है.
शिल्पा बोली “मैं भी आपको पहचानती हूँ. मगर कभी स्कूल मे आप से कोई बात नही हुई, इसलिए आप से कुछ कहने मे झीजक हो रही थी.”
हुमारी बात चल ही रही थी की, तभी आंटी आलू के पराठे के साथ साथ, चाय और बिस्कट भी लेकर आ गयी. उन ने चाय बिस्कट नितिका लोगो को देते हुए, उन से कहा.
आंटी बोली “बेटी तुम लोग पराठे खओगि.”
नितिका बोली "नही आंटी, हम लोग खाना खा कर आ रहे है. हुमारा कबेल नही चल रहा है और मेरा मनपसंद सीरियल आ रहा है, इसलिए हम यहाँ देखने आ गये."
आंटी बोली “अच्छा किया तुमने. क्या ये तुम्हारी सहेली है.”
नितिका बोली “जी आंटी, ये मेरी सहेली नितिका है. ये मुझसे मिलने आई थी तो, मैं इसे भी अपने साथ ही यहाँ ले आई.”
आंटी बोली “तुमने अच्छा किया. अरे तुम लोग ये चाय बिस्कट तो लो.”
नितिका बोली “आंटी, ये चाय तो आप इनके लिए लाई थी ना.”
आंटी बोली “नही, ये तुम दोनो के लिए ही है. पुन्नू तो आलू के पराठे खाएगा. क्या तुम पुन्नू को जानती हो.”
नितिका बोली “जी आंटी, मैं कल ही इनसे अपने स्कूल मे मिली थी.”
आंटी ने मेरी तरफ घूर कर देखा और पुछा.
आंटी बोली “क्यो रे, कल तू तो अपनी मौसी के यहाँ था, फिर इनके स्कूल कैसे पहुच गया.”
आंटी की बात सुनकर, मैं सकपका गया. मैने उसको अपनी सफाई देते हुए कहा.
मैं बोला “अरे आंटी मैं इनके स्कूल नही गया था. वो तो कल कीर्ति मुझे अपने स्कूल लेकर गयी थी और ये कीर्ति की ही सहेली है. आप चाहो तो इनसे पुच्छ लो.”
मेरे इस तरह डर कर जबाब देने से नितिका और शिल्पा दोनो हँसने लगी. उनको हंसते देख आंटी ने उनसे कहा.
आंटी बोली “तुम लोग हँसो मत. ये बचपन से ही शर्मीला है.”
आंटी की बात सुनते दोनो ने अपनी हँसी रोक ली. लेकिन नितिका ने आंटी से सवाल करते हुए पुछा.
नितिका बोली “लेकिन आंटी, आपने ये नही बताया कि, ये आपके कौन लगते है.”
ये सुनकर आंटी मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए नितिका की बात का जबाब देते हुए कहा.
आंटी बोली “ये मेरे बेटे मेहुल का दोस्त और मेरा दूसरा बेटा है.”
ये कह कर आंटी ने, टीवी पर नितिका का सीरियल लगा दिया और उन्हे चाय पीने को बोल कर, मुझे अपने हाथों से परान्ठे खिलाने लगी. दोनो चाय पीते हुए सीरियल देखने लगी.
मगर बीच बीच मे मुझे आंटी के हाथों से पराठे खाते देख रही थी. ये देख कर, जहाँ नितिका का चेहरे पर मुस्कुराहट आ रही थी, तो वही शिल्पा का चेहरा ना जाने क्यो उतर गया था.
पराठे खिलते खिलते आंटी ने मुझे बताया कि, नितिका अभी कुछ समय पहले ही उनके पड़ोस मे रहने आई है. वही नितिका ने भी मौका देख कर, आंटी से पुछा.
नितिका बोली “आंटी, मेहुल कहाँ है, दिखाई नही दे रहा.”
आंटी बोली “वो अपने मामा के घर गया है. कुछ दिन बाद आएगा.”
जब मेरा पराठे खाना हो गया तो, आंटी ने मुझसे कहा.
आंटी बोली “अब आगे से ध्यान रखना. जब भी आना मुझे ये सुनने को ना मिले की, तुम्हे भूक नही है.”
मैं बोला “जी आंटी.”
शिल्पा जो अभी तक चुप थी. उसको ना जाने क्या हुआ कि उसने आंटी से कहा.
शिल्पा बोली “आंटी, ये इतने छोटे तो नही है कि, आपको अपने हाथों से खिलाना पड़े.”
आंटी बोली “बच्चे तो माँ बाप के लिए हमेशा ही छोटे होते है और ये पुन्नू तो अभी भी बच्चा ही है. इसे मेरे हाथ से खाना इतना अच्छा लगता है कि, भूक ना होते हुए भी देखो पूरे चार पराठे खा गया. आलू के पराठे इसे बहुत पसंद है, इसलिए ये जब भी आता है, मैं इसे आलू के पराठे ही बना कर खिलाती हूँ.”
शिल्पा बोली “आप इसे अपने हाथ से खिलाती है तो, आपका बेटा मेहुल इस बात का बुरा नही मानता.”
शिल्पा की बात ना जाने क्यो, मुझे अच्छी नही लगी थी. ये ही हाल आंटी और नितिका का भी था. नितिका को भी शायद शिल्पा से ऐसी बात की उम्मीद नही थी. शिल्पा की बात से एक पल के लिए आंटी के चेहरे पर गुस्सा आ गया. लेकिन अगले ही पल उन ने अपना गुस्सा छिपा कर, मुस्कुराते हुए, शिल्पा से कहा.
आंटी बोली “अभी तुम ने मेरे बेटे और इसको एक साथ नही देखा है, इसलिए ऐसा सवाल किया है. वरना तुम इनका आपस मे प्यार देख कर, ये ही बोलती कि, ये दोस्त नही बल्कि सगे भाई है. बचपन मे एक बार, मेहुल की तबीयत खराब हो गयी थी. तब ये 3 दिन तक अपने घर नही गया था. बस मेहुल के पास ही दिन रात रहता था. हम ने इसे लाख कहा कि तू घर जा, यहा मेहुल का ख़याल रखने के लिए सब है. मगर ये तब तक नही गया, जब तक कि मेहुल की तबीयत ठीक नही हो गयी. अब तू खुद ही बता कि, क्या इस के बाद भी मेहुल को, मेरा इसको अपने हाथों से खिलाना बुरा लगना चाहिए.”
शिल्पा बोली "सॉरी आंटी, यदि आपको बुरा लगा हो तो.”
आंटी बोली “नही बेटी, तुमने बुरा मानने वाली तो, ऐसी कोई बात नही की है. मगर जब कोई किसी माँ के, दो बेटो मे भेद करता है तो, उस माँ को तो खराब लगता ही है. लेकिन इस बात को तुम अभी नही समझ सकती. ये बात तुम्हे खुद वक्त आने पर समझ मे आ जाएगी.”
मैं अभी तक सारी बात चुप चाप सुन रहा था, फिर मैने सोचा कि ये बातें तो यू ही चलती रहेगी, अब मुझे घर निकलना चाहिए. इसलिए मैने आंटी से कहा.
मैं बोला “आंटी, अब मैं चलता हूँ. मेहुल का कॉल आए तो, उस से बोल देना कि, वो मुझसे ज़रूर बात कर ले.”
आंटी बोली “ठीक है. तू भी अपनी छोटी माँ से भी बोल देना कि, मैं उसे याद कर रही थी.”
मैं बोला “जी आंटी.”
इसके बाद मैं आंटी को बाइ कह कर वहाँ से आ गया. लेकिन घर से मैं ये बोल कर निकला था कि, मैं शाम तक वापस आउगा. यदि मेहुल से मिलता तो शाम होना ही थी. लेकिन मेहुल के ना मिलने से, मैं वहाँ से जल्दी आ गया था.
अभी सिर्फ़ 5 ही बजे थे और यदि मैं अभी घर चला जाता तो, इस बात को लेकर कीर्ति मेरा मज़ाक उड़ाए बिना नही रहती. इसलिए मैं किसी भी हालत मे 7 बजे के पहले घर नही जाना चाहता था.
यही सोच कर मैं एक गार्डेन मे जाकर बैठ गया. मैं वहाँ बैठे आते जाते लोगों को देख रहा था. जब भी कोई लड़की मेरे सामने से जीन्स टी-शर्ट मे गुजरती तो, ना चाहते हुए भी कीर्ति का चेहरा मेरे सामने आ जाता.
क्योकि मैने कीर्ति को ज़्यादा से ज़्यादा, जीन्स टी-शर्ट मे ही देखा था. उसे बेसिक ड्रेसस बिल्कुल भी पसंद नही थे. एक बार पापा ने उसे सलवार सूट गिफ्ट किया था. मगर उसने ये बोल कर उसे लेने से मना कर दिया कि, वो ये सब नही पहनती है.
बाद मे मौसा जी के समझाने पर, उसने वो सूट ले तो लिया था. लेकिन उसने कभी उस सूट को पहना नही. वो बहुत जिद्दी ज़्यादा जिद्दी थी और कोई भी उस से ज़बरदस्ती कुछ करवा नही सकता था.
कीर्ति की ये सब सोचते सोचते मुझे ख़याल आया कि, अभी कीर्ति मुझसे नाराज़ है और हो सकता है कि, वो मेरे गिफ्ट के साथ भी ऐसा ही कुछ करे. अभी तक की हुई सभी बातें भी, इसी बात की तरफ इशारा कर रही थी और मुझे पक्का यकीन हो गया था कि, कीर्ति मुझे अपने बर्तडे मे भी, परेशान करने से बाज नही आएगी.
इन बातों को सोचते ही अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा आने लगा और अब मैं उसे सबक सिखाने की तरकीब सोचने लगा. जल्दी ही मुझे वो तरकीब भी समझ मे आ गयी और तरकीब के समझ मे आते ही, मैं वहाँ से उठ खड़ा हुआ.
कीर्ति की बात सुनने के बाद छोटी माँ ने मुझे जाने की इजाज़त देते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “ठीक है बेटा, तू जा मगर शाम को जल्दी घर आ जाना.”
मैं बोला “ठीक है छोटी माँ.”
इतना कह कर मैं बाहर आ गया. मैने अपनी बाइक उठाई और मेहुल के घर चला गया. मेहुल के घर पहुच कर मैने बेल बजाई तो आंटी ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर आंटी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने अंदर आकर सोफे पर बैठते हुए आंटी से पुछा.
मैं बोला “आंटी मेहुल कहाँ है. आज स्कूल क्यो नही आया.”
आंटी ने मेरे सामने वाले सोफे पर बैठते हुए कहा.
आंटी बोली “वो तो अपने मामा के घर गया है. क्या उसने तुझे कॉल नही किया.”
मैं बोला “नही आंटी, मैने उसे कॉल भी लगाया तो, उसका मोबाइल बंद बता रहा था.”
आंटी बोली “कोई बात नही, रात को उसका फोन आएगा तो, मैं उसे बोल दुगी. तू बैठ, मैं अभी तेरे खाने के लिए कुछ लाती हू.”
मैं बोला “नही आंटी, मैं अभी अभी घर से खाना खाकर आता जा रहा हूँ. अब मैं चलुगा.”
आंटी बोली “जब से तेरी छोटी माँ से, तेरी बनने लगी है. तब से तो तू अपनी आंटी को भूलता ही जा रहा है और अब तो तुझे अपनी आंटी के हाथ का खाना भी अच्छा नही लगता.”
आंटी की बात सुनकर मैं सोफे से उठा और आंटी के पास आकर नीचे ही, घुटनो के बल बैठ गया. मैने उनके हाथो को अपने हाथो मे थाम और उन से कहा.
मैं बोला “आंटी, आप ये कैसी बात कर रही है. मैने कभी आपको अपनी माँ से कम नही समझा. मेरी माँ के बाद, यदि मुझे आपका ये प्यार नही मिला होता तो, मेरे संबंध ना तो छोटी माँ से इतने अच्छे होते और ना ही अमि निमी का प्यार मुझे मिल रहा होता. मैं जब कभी भी अपनी जनम देने वाली माँ को याद करता हूँ तो, मेरे सामने आपका ममता भरा चेहरा आ जाता है और आप कह रही हो, मैं आपको भूल गया हूँ.”
ये कहते कहते मेरी आँखो मे आँसू आ गये और मैने अपना मूह उनकी गोद मे छिपा लिया. आंटी को भी शायद इस बात का अहसास नही था कि, उनकी इस बात का मुझ पर इतना गहरा असर पड़ेगा कि, मेरी आँखें भीग जाएगी.
उन्हों ने प्यार से मेरे सर पर अपना हाथ फेरते हुए, अपनी साड़ी के आँचल से, मेरे आँसू पोन्छे और मुझे समझाते हुए कहा.
आंटी बोली “अरे बेटा, मैं तो मज़ाक कर रही थी. मुझे नही मालूम था कि, मेरा पुन्नू अभी भी छोटा सा बच्चा ही है. जो मेरे इतने से मज़ाक से रो देगा.”
मैं बोला “नही आंटी, अब मैं बच्चा नही हूँ. अब मैं सब समझता हूँ. मगर जब आपने ये बोला कि, मैं आपको भूल गया. तब मुझे ना जाने क्यो ऐसा लगा कि, आपने मुझे अपने से दूर कर दिया और मेरी आँखों मे अपने आप आँसू आ गये.”
आंटी बोली “एक माँ अपने बच्चों को कभी खुद से दूर नही करती. फिर तू तो मेरा सबसे प्यारा बेटा है. मैं भला तुझे अपने से दूर कैसे कर सकती हूँ. लेकिन अब ये सब बातें छोड़ और ये बता कि, अब तुझे भूख लगी है या नही.”
मैं बोला “आप के हाथ से कुछ खाने के लिए, मुझे किसी भूक की ज़रूरत नही है. लेकिन आज आपको अपने हाथों से खिलाना पड़ेगा, क्योकि आज आपने मुझे रुलाया है.”
आंटी बोली “ठीक है तू बैठ. मैं अभी तेरे मनपसंद, आलू के पराठे बनाती हूँ.”
ये कह कर आंटी किचन मे चली गयी और मैं टीवी चालू करके, टीवी देखने लगा. मैं अभी टीवी देख ही रहा था कि, तभी डोरबेल बजती है. आंटी किचन से ही आवाज़ लगा कर कहती है.
आंटी बोली “पुन्नू बेटा, ज़रा देखना कि कौन आया है.”
मैं बोला “जी आंटी.”
ये बोल कर मैं दरवाजा खोलने चला जाता हूँ. दरवाजा खोलते ही, मैं एक पल को तो, दंग ही रह जाता हूँ. मेरे सामने दो लड़कियाँ खड़ी थी, और मैं दोनो को ही जानता था. इस से पहले कि मैं कुछ भी बोल पाता. अंदर से आंटी की आवाज़ लगाकर पूछती है.
आंटी बोली “पुन्नू बेटा, कौन आया है.”
आंटी की आवाज़ सुनकर आने वाली लड़की कहती है.
लड़की बोली “आंटी, मैं हूँ नितिका.”
आंटी बोली “बेटी तुम बैठो, मैं अभी आती हू.”
ये सुनकर दोनो मेरे सामने के सोफे पर बैठ जाती है. मुझे खामोश देख नितिका कहती है.
नितिका बोली “शायद आपने मुझे पहचाना नही.”
मैं बोला “मैने आपको पहचान तो लिया था. लेकिन आपके साथ इनको देख कर थोड़ा ताज्जुब हुआ, इसलिए कुछ बोल नही पाया.”
मेरी बात से नितिका को हैरत हुई. उसने मुझसे पुछा.
नितिका बोली “आप शिल्पा को जानते है.”
मैं बोला “हाँ जानता हूँ. ये मेरी ही स्कूल मे पढ़ती है, पर शायद ये मुझे नही पहचानती.”
शिल्पा जो अभी तक चुप थी. मेरी बात सुनने के बाद कहती है.
शिल्पा बोली “मैं भी आपको पहचानती हूँ. मगर कभी स्कूल मे आप से कोई बात नही हुई, इसलिए आप से कुछ कहने मे झीजक हो रही थी.”
हुमारी बात चल ही रही थी की, तभी आंटी आलू के पराठे के साथ साथ, चाय और बिस्कट भी लेकर आ गयी. उन ने चाय बिस्कट नितिका लोगो को देते हुए, उन से कहा.
आंटी बोली “बेटी तुम लोग पराठे खओगि.”
नितिका बोली "नही आंटी, हम लोग खाना खा कर आ रहे है. हुमारा कबेल नही चल रहा है और मेरा मनपसंद सीरियल आ रहा है, इसलिए हम यहाँ देखने आ गये."
आंटी बोली “अच्छा किया तुमने. क्या ये तुम्हारी सहेली है.”
नितिका बोली “जी आंटी, ये मेरी सहेली नितिका है. ये मुझसे मिलने आई थी तो, मैं इसे भी अपने साथ ही यहाँ ले आई.”
आंटी बोली “तुमने अच्छा किया. अरे तुम लोग ये चाय बिस्कट तो लो.”
नितिका बोली “आंटी, ये चाय तो आप इनके लिए लाई थी ना.”
आंटी बोली “नही, ये तुम दोनो के लिए ही है. पुन्नू तो आलू के पराठे खाएगा. क्या तुम पुन्नू को जानती हो.”
नितिका बोली “जी आंटी, मैं कल ही इनसे अपने स्कूल मे मिली थी.”
आंटी ने मेरी तरफ घूर कर देखा और पुछा.
आंटी बोली “क्यो रे, कल तू तो अपनी मौसी के यहाँ था, फिर इनके स्कूल कैसे पहुच गया.”
आंटी की बात सुनकर, मैं सकपका गया. मैने उसको अपनी सफाई देते हुए कहा.
मैं बोला “अरे आंटी मैं इनके स्कूल नही गया था. वो तो कल कीर्ति मुझे अपने स्कूल लेकर गयी थी और ये कीर्ति की ही सहेली है. आप चाहो तो इनसे पुच्छ लो.”
मेरे इस तरह डर कर जबाब देने से नितिका और शिल्पा दोनो हँसने लगी. उनको हंसते देख आंटी ने उनसे कहा.
आंटी बोली “तुम लोग हँसो मत. ये बचपन से ही शर्मीला है.”
आंटी की बात सुनते दोनो ने अपनी हँसी रोक ली. लेकिन नितिका ने आंटी से सवाल करते हुए पुछा.
नितिका बोली “लेकिन आंटी, आपने ये नही बताया कि, ये आपके कौन लगते है.”
ये सुनकर आंटी मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए नितिका की बात का जबाब देते हुए कहा.
आंटी बोली “ये मेरे बेटे मेहुल का दोस्त और मेरा दूसरा बेटा है.”
ये कह कर आंटी ने, टीवी पर नितिका का सीरियल लगा दिया और उन्हे चाय पीने को बोल कर, मुझे अपने हाथों से परान्ठे खिलाने लगी. दोनो चाय पीते हुए सीरियल देखने लगी.
मगर बीच बीच मे मुझे आंटी के हाथों से पराठे खाते देख रही थी. ये देख कर, जहाँ नितिका का चेहरे पर मुस्कुराहट आ रही थी, तो वही शिल्पा का चेहरा ना जाने क्यो उतर गया था.
पराठे खिलते खिलते आंटी ने मुझे बताया कि, नितिका अभी कुछ समय पहले ही उनके पड़ोस मे रहने आई है. वही नितिका ने भी मौका देख कर, आंटी से पुछा.
नितिका बोली “आंटी, मेहुल कहाँ है, दिखाई नही दे रहा.”
आंटी बोली “वो अपने मामा के घर गया है. कुछ दिन बाद आएगा.”
जब मेरा पराठे खाना हो गया तो, आंटी ने मुझसे कहा.
आंटी बोली “अब आगे से ध्यान रखना. जब भी आना मुझे ये सुनने को ना मिले की, तुम्हे भूक नही है.”
मैं बोला “जी आंटी.”
शिल्पा जो अभी तक चुप थी. उसको ना जाने क्या हुआ कि उसने आंटी से कहा.
शिल्पा बोली “आंटी, ये इतने छोटे तो नही है कि, आपको अपने हाथों से खिलाना पड़े.”
आंटी बोली “बच्चे तो माँ बाप के लिए हमेशा ही छोटे होते है और ये पुन्नू तो अभी भी बच्चा ही है. इसे मेरे हाथ से खाना इतना अच्छा लगता है कि, भूक ना होते हुए भी देखो पूरे चार पराठे खा गया. आलू के पराठे इसे बहुत पसंद है, इसलिए ये जब भी आता है, मैं इसे आलू के पराठे ही बना कर खिलाती हूँ.”
शिल्पा बोली “आप इसे अपने हाथ से खिलाती है तो, आपका बेटा मेहुल इस बात का बुरा नही मानता.”
शिल्पा की बात ना जाने क्यो, मुझे अच्छी नही लगी थी. ये ही हाल आंटी और नितिका का भी था. नितिका को भी शायद शिल्पा से ऐसी बात की उम्मीद नही थी. शिल्पा की बात से एक पल के लिए आंटी के चेहरे पर गुस्सा आ गया. लेकिन अगले ही पल उन ने अपना गुस्सा छिपा कर, मुस्कुराते हुए, शिल्पा से कहा.
आंटी बोली “अभी तुम ने मेरे बेटे और इसको एक साथ नही देखा है, इसलिए ऐसा सवाल किया है. वरना तुम इनका आपस मे प्यार देख कर, ये ही बोलती कि, ये दोस्त नही बल्कि सगे भाई है. बचपन मे एक बार, मेहुल की तबीयत खराब हो गयी थी. तब ये 3 दिन तक अपने घर नही गया था. बस मेहुल के पास ही दिन रात रहता था. हम ने इसे लाख कहा कि तू घर जा, यहा मेहुल का ख़याल रखने के लिए सब है. मगर ये तब तक नही गया, जब तक कि मेहुल की तबीयत ठीक नही हो गयी. अब तू खुद ही बता कि, क्या इस के बाद भी मेहुल को, मेरा इसको अपने हाथों से खिलाना बुरा लगना चाहिए.”
शिल्पा बोली "सॉरी आंटी, यदि आपको बुरा लगा हो तो.”
आंटी बोली “नही बेटी, तुमने बुरा मानने वाली तो, ऐसी कोई बात नही की है. मगर जब कोई किसी माँ के, दो बेटो मे भेद करता है तो, उस माँ को तो खराब लगता ही है. लेकिन इस बात को तुम अभी नही समझ सकती. ये बात तुम्हे खुद वक्त आने पर समझ मे आ जाएगी.”
मैं अभी तक सारी बात चुप चाप सुन रहा था, फिर मैने सोचा कि ये बातें तो यू ही चलती रहेगी, अब मुझे घर निकलना चाहिए. इसलिए मैने आंटी से कहा.
मैं बोला “आंटी, अब मैं चलता हूँ. मेहुल का कॉल आए तो, उस से बोल देना कि, वो मुझसे ज़रूर बात कर ले.”
आंटी बोली “ठीक है. तू भी अपनी छोटी माँ से भी बोल देना कि, मैं उसे याद कर रही थी.”
मैं बोला “जी आंटी.”
इसके बाद मैं आंटी को बाइ कह कर वहाँ से आ गया. लेकिन घर से मैं ये बोल कर निकला था कि, मैं शाम तक वापस आउगा. यदि मेहुल से मिलता तो शाम होना ही थी. लेकिन मेहुल के ना मिलने से, मैं वहाँ से जल्दी आ गया था.
अभी सिर्फ़ 5 ही बजे थे और यदि मैं अभी घर चला जाता तो, इस बात को लेकर कीर्ति मेरा मज़ाक उड़ाए बिना नही रहती. इसलिए मैं किसी भी हालत मे 7 बजे के पहले घर नही जाना चाहता था.
यही सोच कर मैं एक गार्डेन मे जाकर बैठ गया. मैं वहाँ बैठे आते जाते लोगों को देख रहा था. जब भी कोई लड़की मेरे सामने से जीन्स टी-शर्ट मे गुजरती तो, ना चाहते हुए भी कीर्ति का चेहरा मेरे सामने आ जाता.
क्योकि मैने कीर्ति को ज़्यादा से ज़्यादा, जीन्स टी-शर्ट मे ही देखा था. उसे बेसिक ड्रेसस बिल्कुल भी पसंद नही थे. एक बार पापा ने उसे सलवार सूट गिफ्ट किया था. मगर उसने ये बोल कर उसे लेने से मना कर दिया कि, वो ये सब नही पहनती है.
बाद मे मौसा जी के समझाने पर, उसने वो सूट ले तो लिया था. लेकिन उसने कभी उस सूट को पहना नही. वो बहुत जिद्दी ज़्यादा जिद्दी थी और कोई भी उस से ज़बरदस्ती कुछ करवा नही सकता था.
कीर्ति की ये सब सोचते सोचते मुझे ख़याल आया कि, अभी कीर्ति मुझसे नाराज़ है और हो सकता है कि, वो मेरे गिफ्ट के साथ भी ऐसा ही कुछ करे. अभी तक की हुई सभी बातें भी, इसी बात की तरफ इशारा कर रही थी और मुझे पक्का यकीन हो गया था कि, कीर्ति मुझे अपने बर्तडे मे भी, परेशान करने से बाज नही आएगी.
इन बातों को सोचते ही अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा आने लगा और अब मैं उसे सबक सिखाने की तरकीब सोचने लगा. जल्दी ही मुझे वो तरकीब भी समझ मे आ गयी और तरकीब के समझ मे आते ही, मैं वहाँ से उठ खड़ा हुआ.