desiaks
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राज और निक्की के वहाँ नज़र ना आने से मुझे लगा कि, वो लोग अभी हॉस्पिटल से वापस नही आए है. फिर भी अपनी सोच को पक्का करने के लिए मैने रिया से पूछा.
मैं बोला "क्या राज और निक्की अभी हॉस्पिटल से वापस नही लौटे."
मेरी बात सुनकर रिया ने मुझे ऐसे देखा, जैसे मैने उस से कोई बेतुकी बात पूछ ली हो. फिर उस ने बड़े ही अनमने ढंग से कहा.
रिया बोली "राज तो अभी हॉस्पिटल मे ही है. वो मेहुल के साथ आएगा. निक्की वापस आ गयी है और वो अपने कमरे मे है."
मैं बोला "क्या निक्की खाना नही खाएगी."
रिया ने बड़े अनमने मन से कहा.
रिया बोली "निक्की कह रही थी. उसने हॉस्पिटल मे दिन भर बहुत नाश्ता किया है, इसलिए उसे भूक नही है. वो दिन भर हॉस्पिटल मे रहने से थक गयी है, इसलिए वहाँ से आकर अपने कमरे मे आराम कर रही है."
मुझे रिया का यूँ मूह बना कर जबाब देना समझ मे नही आया, और मैं इसी बारे मे सोचते सोचते पापा के पास वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया. मेरा अनुमान था कि रिया जाकर प्रिया के पास वाली सीट पर बैठेगी. लेकिन वो भी मेरे पास वाली सीट पर बैठ गयी.
मेरे पहुचते ही सब ने खाना शुरू कर दिया. दादा जी से मेरी एक दो बातें हुई और उसके बाद उन सब की पापा से बातें होती रही. मैं उन लोगों की बातों पर ध्यान दिए बिना, चुप चाप खाना खाने लगा.
लेकिन मेरे दिमाग़ मे सिर्फ़ निक्की का वो उदास चेहरा घूम रहा था. जो मैने हॉस्पिटल से लौटते समय देखा था. अब मैं ये बात समझने की कोसिस कर रहा था की, यदि निक्की दिन मे मेरे साथ ना आ पाने की वजह से उदास थी तो, फिर अभी मेरे घर मे रहने पर भी, वो मेरे सामने क्यों नही आई.
जहाँ एक ओर मुझे निक्की की ये हरकत समझ मे नही आ रही थी, तो दूसरी तरफ रिया का निक्की का नाम सुन कर, मूह बना कर जबाब देना भी एक पहेली बन गया था. मैं अपनी इन्ही सोचों मे गुम था कि, तभी मैं चौक गया.
रिया ने खाना खाते खाते फिर अपनी हरकत करना शुरू कर दी. वो अपने पैर के पंजे को मेरे पैरों के पंजों पर रगड़ने लगी. उसकी ये हरकत मुझे ज़रा भी अच्छी नही लगी. मैने एक नज़र सबकी तरफ डाली. मुझे डर था कि कही कोई रिया को ये हरकत करते देख ना ले. मगर सभी अपनी बातों मे मगन थे. किसी का भी ध्यान मेरी या रिया की तरफ नही था. शायद इसी बात का रिया फ़ायदा उठा रही थी.
मैने जब देखा कि किसी का ध्यान हमारी तरफ नही है. तब मैने धीरे से रिया के कान मे कहा.
मैं बोला "प्लीज़ यहाँ कोई हरकत मत करो. तुम्हे जो भी हरकत करना हो. अकेले मे किया करना."
मेरी बात सुन कर रिया मुस्कुरा दी और उसने अपनी हरकत बंद कर दी. लेकिन तभी मेरी नज़र सामने बैठी प्रिया पर पड़ी. वो बड़े गौर से मुझे ही देख रही थी. मैने उसे देखा तो मुस्कुरा दिया. प्रिया भी मुझे देख कर मुस्कुराइ और वापस खाना खाने लगी.
लेकिन वो भी मेरे सोचने के लिए एक सवाल खड़ा कर गयी. अब मैं ये सोचने लगा कि प्रिया मुझे इस तरह से क्यों देख रही थी. क्या प्रिया ने रिया को हरकत करते देख लिया था, या फिर उसने सिर्फ़, मुझे रिया के कान मे कुछ कहते देखा है.
मैने कोई चोरी नही की थी. फिर भी किसी चोर की तरह मैं प्रिया से नज़र मिलने से कतराने लगा और चुप चाप सर झुका कर खाना खाने लगा. पहले तो मेरा मूड निक्की के खाना खाने ना आने से कुछ बिगड़ा था और अब प्रिया के इस तरह से घूर कर देखने से और भी बिगड़ गया था.
मैने जल्दी से डिन्नर किया और सब से पहले वहाँ से उठ गया. मेरे साथ साथ प्रिया भी डिन्नर से उठ गयी. मैने सब से हॉस्पिटल जाने के बारे मे जताया और उठ कर बाहर आने को हुआ तो प्रिया ने कहा.
प्रिया बोली "चलो मैं तुम्हे बाहर तक छोड़ देती हूँ."
मैं बोला "इसकी क्या ज़रूरत है. मैं चला जाउन्गा."
प्रिया बोली "मैं कौन सा तुम्हे हाथ पकड़ कर बाहर तक छोड़ने जा रही हूँ. मैं तो तुम्हारे साथ बाहर तक चलने की बात कर रही हूँ."
प्रिया की ये बात सुन कर सब हँसने लगे. उस समय मुझे ना तो प्रिया का ये मज़ाक अच्छा लगा, और ना ही सब का हँसना अच्छा लगा. फिर भी मैने उपरी मन से मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला "चलो."
फिर मैं और प्रिया बाहर आने लगे. मैं मन ही मन सोच रहा था कि, शायद प्रिया मुझसे कुछ पूछेगी मगर उसने कोई सवाल नही किया. मेरा मन हुआ कि मैं उस से ये बात पूछ लूँ कि, वो मुझे घूर कर क्यों देख रही थी. लेकिन मैं उस से ये पूछने की हिम्मत ना कर सका.
हम दोनो घर से बाहर आए तो मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला "अब यदि तुम्हारा घर के बाहर तक छोड़ना हो गया हो तो, अब तुम वापस जा सकती हो. मैं आगे सड़क से टॅक्सी पकड़ कर चला जाउन्गा."
प्रिया ने एक बार घर की अंदर की तरफ देखा और फिर एक दम से अपना सवाल दाग दिया. जिसके लिए वो मुझे बाहर तक छोड़ने आना चाहती थी.
प्रिया बोली "आज तुम्हारे और रिया के बीच मे क्या हुआ."
प्रिया का ये सवाल सुनकर मैं चौक गया. मुझे समझ मे नही आया कि वो किस बारे मे बात कर रही है. मैने उस से उल्टा सवाल किया.
मैं बोला "मैं कुछ समझा नही. तुम किस बारे मे बात कर रही हो ?"
प्रिया बोली "ज़्यादा मत बनो. मैं सब समझती हूँ. आज ज़रूर तुम दोनो के बीच कुछ हुआ है. सच सच बताओ क्या हुआ."
मैं बोला "देखो मुझे तुम्हारी कोई बात समझ मे नही आ रही. तुम जो भी पूछना चाहती हो. ज़रा खुल कर बोलो. मुझे कुछ भी बताने मे कोई परेशानी नही है."
प्रिया बोली "जब हम लोग हॉस्पिटल से वापस आए थे. तब रिया तुम्हारे ही कमरे मे थी. सब से पहले मैं घर के अंदर आई थी, इसलिए बस मैने ही उसे, तुम्हारे कमरे से निकलते देखा था. अब तुम बोलो कि तुम दोनो अकेले मे क्या कर रहे थे.
प्रिया की बात सुनकर तो मेरा दिमाग़ ही घूम गया. मैं समझ नही पाया कि रिया आख़िर मेरे कमरे मे कर क्या रही थी. फिर भी प्रिया की बात का जबाब तो देना ही था. मैने उसे उन लोगों के जाने के बाद रिया के दरवाजा खोल कर सोने वाली बात बताई और कहा.
मैं बोला "इसके बाद मैं सो गया था और फिर पापा के उठाने पर ही जागा हूँ. हो सकता है कि रिया मुझे जगाने ही आई हो. लेकिन जब उसे याद आया हो कि मैने उसे 9:30 बजे के बाद जगाने को कहा है तो, वो मुझे बिना जगाए ही वापस लौट गयी हो."
प्रिया बोली "तुम सच बोल रहे हो."
मैं बोला "मुझे कुछ भी झूठ बोलने की ज़रूरत नही है."
प्रिया बोली "यदि ये सच है तो फिर अभी रिया तुम्हारे पैरों पर पैर क्यों मार रही थी."
प्रिया की ये बात सुनकर मैं सन्न रह गया. मुझे इस बात का अंदाज ज़रा भी नही था कि, प्रिया ने वो सब देख लिया है. अब मुझे उसके घूर कर देखने का मतलब समझ मे आ रहा था. मैने कहा.
मैं बोला "ये बात तुमको मुझसे नही रिया से पूछनी चाहिए थी."
प्रिया बोली "जो कुछ भी चल रहा है. तुम दोनो के बीच ही चल रहा है, तो फिर इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि, मैं किस से पुच्छू."
मैं बोला "हम दोनो के बीच कुछ भी नही चल रहा है. लेकिन अब तुम इतना खुल कर बोल रही है तो क्या मैं भी तुम से एक बात पुछ सकता हूँ."
प्रिया बोली "एक क्या तुम 100 बात पुच्छ सकते हो."
मैं बोला "यदि तुम जबाब दे दो तो, वही एक बात 100 बात के बराबर होगी."
प्रिया बोली "तुम पुछो. मैं जबाब ज़रूर दुगी."
मैं बोला "तुमने जब रिया को मेरे कमरे से निकलते देखा तो, तुमने क्या सोचा कि, रिया मेरे कमरे मे क्या कर रही थी."
प्रिया बोली "ये भी कोई कहने वाली बात है. एक लड़का लड़की अकेले मे बंद कमरे मे क्या करते है."
मैं बोला "मैं किसी लड़की के साथ अकेले मे बंद कमरे मे कभी रहा नही. इसलिए मुझे ये सब नही मालूम है. यदि तुमको मालूम है तो, तुम ही बता दो कि, एक लड़का लड़की बंद कमरे मे क्या करते है."
ये सब बात मैं गुस्से मे प्रिया से बोल गया था. लेकिन मैं नही जानता था कि, इसका जबाब मुझे वो मिलेगा जो मैं सोच भी नही सकता.
प्रिया बोली "कभी मेरे साथ अकेले बंद कमरे मे रह कर देखो. मैं तुमको सब बता दुगी."
मैं बोला "कभी ऐसा मौका आया तो ज़रूर रहुगा. लेकिन अभी तो मुझे हॉस्पिटल जाने मे देर हो रही है. अब तुम अंदर जाओ, मैं आगे से टेक्सी पकड़ कर निकल जाउन्गा."
प्रिया बोली "ओके बाइ."
मैं बोला "बाइ."
ये बोल कर प्रिया अंदर चली गयी और मैं सड़क पर आ गया. सड़क पर आते ही मुझे एक टॅक्सी मिल गयी और मैं हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा. टॅक्सी मे बैठते ही मैं फिर अपनी सोच मे गुम हो गया था. प्रिया और रिया की हरकत मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. मुझे उन दोनो की हरकतें बहुत अजीब सी लग रही थी. मैं इस बात को मान नही पा रहा था कि लड़कियाँ इस तरह की भी होती है.
मेरा पाला अभी तक कीर्ति, शिल्पा और नितिका जैसी लड़कियों से पड़ा था. जो चाहे कितने भी आधुनिक कपड़े क्यों ना पहनी हो, पर शरम हया उनकी आँखो और बातों से झलकती थी. मुझे नितिका मे कभी आकर्षण नज़र नही आया था, मगर आज वो मुझे रिया और प्रिया से अच्छी ही समझ मे आ रही थी.
मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत याद आने लगी. मेरा मन कर रहा था कि, कैसे भी मैं अभी उसके पास पहुच जाउ. मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत कमी अखरने लगी थी. मैने कीर्ति को कॉल लगाने के लिए अपना मोबाइल निकाला. तभी टॅक्सी रुक गयी. मैने बाहर देखा तो हॉस्पिटल आ चुका था. मैने वापस अपना मोबाइल अपने जेब मे रखा और टॅक्सी से उतर गया.
टॅक्सी वाले को पैसे देने के बाद मैं हॉस्पिटल के अंदर गया और नीचे ही मेहुल या राज को देखने लगा कि, इस वक्त नीचे कौन है. मुझे वहाँ कोई दिखाई नही दिया तो, मैं समझ गया कि जो भी है, वो इस वक्त बाहर ही समुंदर के किनारे बैठा होगा. ये सोचते हुए मैं बाहर आ गया.
उनको ढूँढते हुए मैं बाहर आया और फिर मेरी नज़र मेहुल पर पड़ी. मेहुल पर नज़र पड़ते ही मैं सोचने लगा कि, रिया ने मुझसे झूठ क्यों कहा था कि, निक्की घर आ गयी है. निक्की तो यहाँ मेहुल के साथ बैठी है. उन दोनो की मेरे तरफ पीठ थी, इसलिए वो लोग मुझे नही देख पाए थे. दोनो ही अपनी बातों मे लगे हुए थे. निक्की शायद मेहुल से कुछ बोल रही थी.
मैने उन दोनो की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए. लेकिन उनके करीब पहुचते ही निक्की की बात मुझे सुनाई पड़ी. जिसे सुनते ही मैं चौक गया और मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी. मुझे मेरे कानो पर विस्वास नही हुआ. मैने धड़कते दिल से मेहुल को आवाज़ दी.
मेरी आवाज़ सुनते ही दोनो ने पलट कर मेरी तरफ देखा. उनके मेरी तरफ देखते ही, मेरा दिल धक्क करके रह गया. मेरे दिल की धड़कने थम सी गयी थी. मेरी आवाज़ मेरे गले मे ही अटक कर रह गयी. मेरे मूह से कोई बोल नही फुट रहे थे और ना ही मुझे मेरी आँखो पर विस्वास हो रहा था. मैं अपलक निक्की को देखे जा रहा था और फिर अचानक मेरी आँखों मे आँसू झिलमिला उठे.
ये आँसू उस धोके के थे. जो निक्की ने मेरे साथ किया था. मुझे ना तो अपने कानो पर, और ना ही अपनी आँखों पर विस्वास हो रहा था. फिर भी अभी अभी मैने जो कुछ देखा और सुना था. मैं उसे झुटला भी नही सकता था.
मेरी आँखो मे आँसू देखते ही मेहुल उठ कर खड़ा हो गया. उसके साथ साथ निक्की भी खड़ी हो गयी. मगर तब तक मैं अपने आँसुओं को पोछ चुका था. अब मेरी आँखों मे आँसू की जगह गुस्सा था. मेहुल या निक्की के कुछ भी कहने से पहले मैं बोल पड़ा.
मैं बोला "मैं अंकल के पास जा रहा हूँ. उनके पास शायद राज होगा. मैं उसे नीचे भेजता हूँ. तुम लोग घर चले जाना."
मेहुल समझ गया था कि, ये बात मैं गुस्से मे बोल रहा हूँ. उसने मुझसे कहा.
मेहुल बोला "यार मेरी बात तो सुन."
लेकिन मेहुल इसके आगे और कुछ कह पाता. उस से पहले ही मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.
मैं बोला "मैं जा रहा हूँ. तुम्हे जो भी बात करना हो कल करना."
इसके बाद मैं मे बिना उनकी तरफ देखे उपर चला गया. उपर जाते जाते मैने अपने आपको सामान्य किया और फिर राज के पास पहुच कर, उस से अंकल का हाल चाल पूछा. फिर मैने राज को घर जाने के लिए बोला तो, उसने मुझे अंकल के बारे मे जानकारी देते हुए कहा.
राज बोला "अंकल अब होश मे है, मगर दवाइयों के असर से सो रहे है. बीच बीच मे वो उठ कर कुछ बात पूछते भी है. अभी वो बोल नही पा रहे है, इसलिए सारी बातें लिख कर कर रहे है. ये नोटबुक और पेन रखा है. जब वो कुछ बोलना चाहे तो, ये उनको दे देना. वो अभी कुछ समय इसी तरह से बात करेगे."
मैं बोला "ठीक है. अब तुम नीचे जाओ. नीचे मेहुल और निक्की तुम्हारा इंतजार कर रहे है."
राज बोला "ओके मैं जाता हूँ. लेकिन यदि तुम्हे रात को यहाँ कोई परेशानी हो तो, तुम मुझे कॉल कर देना. मैं आ जाउन्गा. रात को नीचे की कॅंटीन खुली रहती. तुम को यदि चाय कॉफी पीना हो तो, तुम नर्स को बता कर चले जाना. अब मैं जाता हूँ."
मैं बोला "ओके."
फिर राज नीचे चला गया. नीचे जाकर उसने मुझे फिर कॉल किया कि, वो लोग घर जा रहे है. सुबह मेहुल जल्दी आ जाएगा. इसके बाद वो लोग घर चले गये.
अंकल अभी भी सो रहे थे. मैने टाइम देखा तो, 11:00 बज चुके थे. मेरा मूड अभी भी सही नही था. मेरा मन कीर्ति से बात कर के, अपना मन हल्का करने का हो रहा था. मगर अंकल के पास बैठे होने की वजह से, मैं ऐसा नही कर सकता. मेरे बात करने से उनकी नींद मे खलल पड़ सकता था.
जब मुझे कुछ और नही सूझा तो, मैने अपना मोबाइल निकाला और उस मे कीर्ति के फोटो देखने लगा. उस समय सच मे मुझे कीर्ति का चेहरा देख कर बहुत सुकून मिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक कीर्ति के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता रहा. जिसे देख कर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान वापस आ गयी और मेरा गुस्सा कहीं गायब हो गया.
रात को 11:30 बजे अंकल की नींद खुली. मुझे अपने सामने बैठे देख कर, उन ने मुझसे इशारे से नोटबुक और पेन माँगा. मैने उनके हाथ मे पेन और नोटबुक थमा दिए.
उन्हो ने लिख कर मुझसे मेहुल के जाने के बारे मे पूछा. तो मैने उन से कहा.
मैं बोला "मेहुल अभी कुछ देर पहले ही घर गया है. सुबह जल्दी आ जाएगा. आज से मैं रात को और मेहुल दिन को रुकेगा."
अंकल ने फिर लिख कर पापा के आने के बारे मे बताया. तब मैने उन से कहा.
मैं बोला "मैं पापा से मिल लिया हूँ. पापा राज के दादा जी के कहने पर उनके घर मे ही रुके है."
फिर मैने अंकल से आराम करने को कहा तो, अंकल आँख बंद कर के लेट गये. दवाइयों के असर से उन्हे फिर से नींद आ गयी. थोड़ी देर बाद जब मैने देखा कि, अंकल गहरी नींद मे है. तब मैं कमरे से निकल कर बाहर बने दालान मे आ गया.
कमरे मे लगे काँच से, अंकल मुझे दालान से भी दिख रहे थे. अब 12 बज चुके थे. मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति को फोन लगाया. उसने पहली ही रिंग मे मेरा कॉल उठाया और कॉल उठाते ही कहा.
कीर्ति बोली "आइ मिस यू जान."
उसकी आवाज़ मुझे कुछ रुआंसी सी लगी. जैसे कि वो रो रही हो. उसे ऐसा देख कर मुझे उसकी चिंता हुई. मैने उस से कहा.
मैं बोला "तुझे ये क्या हुआ है. तेरा चेहरा ऐसा उतरा हुआ सा क्यों है."
कीर्ति बोली "कहाँ जान. मैं तो अच्छी हूँ. बस तुम्हे मिस कर रही हूँ. तुम मुझे देख नही पा रहे हो इसलिए तुम्हे ऐसा लग रहा है."
मैं बोला "देख झूठ मत बोल. मैं तुझे देख नही पा रहा हूँ तो, क्या हुआ. मैं तेरे चेहरे को तेरी आवाज़ से देख सकता हूँ. अब बता कि तुझे क्या हुआ."
मेरी बात सुनते ही कीर्ति रो पड़ी. मुझे उसके रोने का कारण समझ मे नही आया. लेकिन इतना समझ चुका था कि, ज़रूर कोई बड़ी बात है. नही तो वो इस समय मेरे सामने हरगिज़ ना रोती.
मैं बोला "अरे रोती क्यों है. मैं तो हमेशा तेरे साथ हूँ. मुझे बता ना क्या बात है. जो तुझे इतना परेशान कर रही है."
मेरी बात सुनकर उसने रोना बंद किया और फिर कहा.
कीर्ति बोली "जान आज सुबह मौसी और मौसा जी मे, मुझे लेकर बहुत झगड़ा हुआ."
मैं बोला "क्यों ऐसी क्या बात हो गयी."
कीर्ति बोली "मौसा जी अपनी किसी बिज़्नेस डील की वजह से मुंबई जा रहे थे. उन्हो ने मम्मी से मेरे को भी साथ ले जाने के लिए पूछ लिया था. लेकिन मैने मौसी से कहा कि मैं मुंबई नही जाना चाहती. आप मौसा जी मेरा नाम लिए बिना मना कर दीजिए. तब मौसी ने मौसा जी से कह दिया कि, मैं उनके साथ मुंबई नही जाउन्गी. जिसे लेकर दोनो मे बहुत झगड़ा हुआ."
मैं बोला "इसमे पापा को झगड़ा करने क्या ज़रूरत थी. मुझे तो इसमे झगड़े वाली कोई बात नज़र नही आ रही है."
कीर्ति बोली "मौसा जी को लगा कि मौसी मुझे उनके साथ, इसलिए भेजना नही चाहती, क्योंकि मौसी को उनके उपर विस्वास नही है. इसी बात को लेकर दोनो मे झगड़ा हुआ और फिर मौसा जी अकेले ही चले गये."
मैं बोला "तो तूने पापा के साथ आने से मना क्यों कर दिया. तुझे आ जाना चाहिए था. कम से कम तू मेरे सामने तो रहती."
कीर्ति बोली "मुझे उनके साथ आने मे डर लग रहा था."
मैं बोला "कैसा डर. क्या उन्हो ने तेरे साथ घर मे कोई हरकत की है."
कीर्ति बोली "नही ऐसी कोई बात नही है. बस मुझे ऐसे ही डर लग रहा था."
मैं बोला "देख मुझसे झूठ मत बोल. ज़रूर कोई बात हुई है. तभी तूने पापा के साथ आने से मना किया है. नही तो तू मेरे पास आने की बात को लेकर कभी उनके साथ आने से मना नही करती."
कीर्ति बोली "नही जान कोई बात नही है. मैं तो यहाँ आंटी और मौसी को अकेले छोड़ कर नही आना चाहती."
मैं बोला "ठीक है तुझे नही बताना तो मत बता. मैं तेरा होता ही कौन हूँ, जो तू मुझे अपनी हर बात बताएगी."
कीर्ति बोली "जान ये कैसी बात कर रहे हो. मेरे लिए तो सब कुछ तुम ही हो. तुम से तो मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूँ."
मैं बोला "तो फिर सच सच बता. तूने पापा के साथ आने से क्यों मना कर दिया."
कीर्ति बोली "जान तुमको सुनकर दुख होगा, इसलिए मैं तुम्हे ये बात बताना नही चाहती हूँ."
मैं बोला "मेरा कोई भी दुख, मेरी जान से बढ़ कर नही है. मैं अपना हर दुख सह सकता हूँ. मगर तेरी आँख मे आँसू की एक बूँद भी आए, ये मैं हरगिज़ नही सह सकता. मुझे बता तेरे साथ क्या हुआ."
कीर्ति बोली "अंकल और मेहुल के मुंबई चले के बाद से आंटी बहुत परेशान रह रही थी. कल ऑपरेशन की वजह से वो बहुत भावुक हो रही थी. इसलिए कल मौसी ने उनको अपने पास ही सुला लिया. मौसा जी कल उपर वाले कमरे मे ही सोने आए थे. मैं तो अमि निनी के साथ ही सोती हूँ. देर रात तक तुमसे बात होने के बाद, जब मैं सोने को हुई, तभी मौसा जी हमारे कमरे मे आए. मैं समझी कि वो अमि निमी को देखने आए है. मैं यूँ ही आँख बंद करके लेटी रही. मौसा जी मेरे पास आए और कुछ देर तक मुझे देखते रहे. फिर उन्हो ने मेरे माथे पर हाथ रखा. आँख बंद होने के कारण, मैं ये समझी कि, अमि निमी के सर पर हाथ फेरने के बाद, वो मेरे सर पर भी हाथ फेर रहे है. मैं चुप चाप लेटी रही. लेकिन मौसा जी का हाथ मेरे माथे से सरक कर धीरे धीरे, मेरे चेहरे और गर्दन से होते हुए, मेरे बूब्स तक आ गया. वो कपड़ो के उपर से ही, मेरे बूब्स पर हाथ फेरने लगे. मैं बहुत डर गयी थी. मुझे समझ मे नही आया कि, मैं क्या करूँ. तभी निमी हमेशा की तरह सोते सोते रोने लगी. उसका रोना सुन कर मौसा जी ने अपना हाथ हटा लिया, और फिर अमि के साथ साथ मैं भी उठ कर बैठ गयी."
हम सब को जागते देख मौसा जी ने अपनी सफाई दी.
मौसा जी बोले "मैं यहाँ तुम लोगो को देखने आया था. लेकिन निमी शायद कोई बुरा सपना देख कर जाग गयी है."
मैं बोली "आप चिंता ना करे. आप जाइए मैं और अमि मिल कर निमी को चुप करा लेगे."
"मेरी बात सुनकर मौसा जी चले गये और मैं कमरे का दरवाजा बंद कर के निमी को चुप कराने लगी. कल रात निमी का रोना मेरे काम आ गया. नही तो पता नही, कल क्या होता."
कीर्ति की बात सुनकर मुझे पापा की हरकत पर बहुत गुस्सा आया. मैने गुस्से मे पापा को गाली बकते हुए कहा.
मैं बोला "अब तो तूने उस माँ******* की हरकत देख ली. मुझे इसी वजह से उस पर कभी विस्वास नही होता. उसका बस चले तो, वो अमि निमी को भी ना छोड़े. इसी वजह से मैं हमेशा अमि निमी को, उस कमिने से दूर रखता हूँ. मैं कल ही यहाँ उसकी सबके सामने बेज़्जती करूगा. तब उसे पता चलेगा कि, किसी लड़की की इज़्ज़त से खेलने का क्या अंजाम होता है."
मैं बोला "क्या राज और निक्की अभी हॉस्पिटल से वापस नही लौटे."
मेरी बात सुनकर रिया ने मुझे ऐसे देखा, जैसे मैने उस से कोई बेतुकी बात पूछ ली हो. फिर उस ने बड़े ही अनमने ढंग से कहा.
रिया बोली "राज तो अभी हॉस्पिटल मे ही है. वो मेहुल के साथ आएगा. निक्की वापस आ गयी है और वो अपने कमरे मे है."
मैं बोला "क्या निक्की खाना नही खाएगी."
रिया ने बड़े अनमने मन से कहा.
रिया बोली "निक्की कह रही थी. उसने हॉस्पिटल मे दिन भर बहुत नाश्ता किया है, इसलिए उसे भूक नही है. वो दिन भर हॉस्पिटल मे रहने से थक गयी है, इसलिए वहाँ से आकर अपने कमरे मे आराम कर रही है."
मुझे रिया का यूँ मूह बना कर जबाब देना समझ मे नही आया, और मैं इसी बारे मे सोचते सोचते पापा के पास वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया. मेरा अनुमान था कि रिया जाकर प्रिया के पास वाली सीट पर बैठेगी. लेकिन वो भी मेरे पास वाली सीट पर बैठ गयी.
मेरे पहुचते ही सब ने खाना शुरू कर दिया. दादा जी से मेरी एक दो बातें हुई और उसके बाद उन सब की पापा से बातें होती रही. मैं उन लोगों की बातों पर ध्यान दिए बिना, चुप चाप खाना खाने लगा.
लेकिन मेरे दिमाग़ मे सिर्फ़ निक्की का वो उदास चेहरा घूम रहा था. जो मैने हॉस्पिटल से लौटते समय देखा था. अब मैं ये बात समझने की कोसिस कर रहा था की, यदि निक्की दिन मे मेरे साथ ना आ पाने की वजह से उदास थी तो, फिर अभी मेरे घर मे रहने पर भी, वो मेरे सामने क्यों नही आई.
जहाँ एक ओर मुझे निक्की की ये हरकत समझ मे नही आ रही थी, तो दूसरी तरफ रिया का निक्की का नाम सुन कर, मूह बना कर जबाब देना भी एक पहेली बन गया था. मैं अपनी इन्ही सोचों मे गुम था कि, तभी मैं चौक गया.
रिया ने खाना खाते खाते फिर अपनी हरकत करना शुरू कर दी. वो अपने पैर के पंजे को मेरे पैरों के पंजों पर रगड़ने लगी. उसकी ये हरकत मुझे ज़रा भी अच्छी नही लगी. मैने एक नज़र सबकी तरफ डाली. मुझे डर था कि कही कोई रिया को ये हरकत करते देख ना ले. मगर सभी अपनी बातों मे मगन थे. किसी का भी ध्यान मेरी या रिया की तरफ नही था. शायद इसी बात का रिया फ़ायदा उठा रही थी.
मैने जब देखा कि किसी का ध्यान हमारी तरफ नही है. तब मैने धीरे से रिया के कान मे कहा.
मैं बोला "प्लीज़ यहाँ कोई हरकत मत करो. तुम्हे जो भी हरकत करना हो. अकेले मे किया करना."
मेरी बात सुन कर रिया मुस्कुरा दी और उसने अपनी हरकत बंद कर दी. लेकिन तभी मेरी नज़र सामने बैठी प्रिया पर पड़ी. वो बड़े गौर से मुझे ही देख रही थी. मैने उसे देखा तो मुस्कुरा दिया. प्रिया भी मुझे देख कर मुस्कुराइ और वापस खाना खाने लगी.
लेकिन वो भी मेरे सोचने के लिए एक सवाल खड़ा कर गयी. अब मैं ये सोचने लगा कि प्रिया मुझे इस तरह से क्यों देख रही थी. क्या प्रिया ने रिया को हरकत करते देख लिया था, या फिर उसने सिर्फ़, मुझे रिया के कान मे कुछ कहते देखा है.
मैने कोई चोरी नही की थी. फिर भी किसी चोर की तरह मैं प्रिया से नज़र मिलने से कतराने लगा और चुप चाप सर झुका कर खाना खाने लगा. पहले तो मेरा मूड निक्की के खाना खाने ना आने से कुछ बिगड़ा था और अब प्रिया के इस तरह से घूर कर देखने से और भी बिगड़ गया था.
मैने जल्दी से डिन्नर किया और सब से पहले वहाँ से उठ गया. मेरे साथ साथ प्रिया भी डिन्नर से उठ गयी. मैने सब से हॉस्पिटल जाने के बारे मे जताया और उठ कर बाहर आने को हुआ तो प्रिया ने कहा.
प्रिया बोली "चलो मैं तुम्हे बाहर तक छोड़ देती हूँ."
मैं बोला "इसकी क्या ज़रूरत है. मैं चला जाउन्गा."
प्रिया बोली "मैं कौन सा तुम्हे हाथ पकड़ कर बाहर तक छोड़ने जा रही हूँ. मैं तो तुम्हारे साथ बाहर तक चलने की बात कर रही हूँ."
प्रिया की ये बात सुन कर सब हँसने लगे. उस समय मुझे ना तो प्रिया का ये मज़ाक अच्छा लगा, और ना ही सब का हँसना अच्छा लगा. फिर भी मैने उपरी मन से मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला "चलो."
फिर मैं और प्रिया बाहर आने लगे. मैं मन ही मन सोच रहा था कि, शायद प्रिया मुझसे कुछ पूछेगी मगर उसने कोई सवाल नही किया. मेरा मन हुआ कि मैं उस से ये बात पूछ लूँ कि, वो मुझे घूर कर क्यों देख रही थी. लेकिन मैं उस से ये पूछने की हिम्मत ना कर सका.
हम दोनो घर से बाहर आए तो मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला "अब यदि तुम्हारा घर के बाहर तक छोड़ना हो गया हो तो, अब तुम वापस जा सकती हो. मैं आगे सड़क से टॅक्सी पकड़ कर चला जाउन्गा."
प्रिया ने एक बार घर की अंदर की तरफ देखा और फिर एक दम से अपना सवाल दाग दिया. जिसके लिए वो मुझे बाहर तक छोड़ने आना चाहती थी.
प्रिया बोली "आज तुम्हारे और रिया के बीच मे क्या हुआ."
प्रिया का ये सवाल सुनकर मैं चौक गया. मुझे समझ मे नही आया कि वो किस बारे मे बात कर रही है. मैने उस से उल्टा सवाल किया.
मैं बोला "मैं कुछ समझा नही. तुम किस बारे मे बात कर रही हो ?"
प्रिया बोली "ज़्यादा मत बनो. मैं सब समझती हूँ. आज ज़रूर तुम दोनो के बीच कुछ हुआ है. सच सच बताओ क्या हुआ."
मैं बोला "देखो मुझे तुम्हारी कोई बात समझ मे नही आ रही. तुम जो भी पूछना चाहती हो. ज़रा खुल कर बोलो. मुझे कुछ भी बताने मे कोई परेशानी नही है."
प्रिया बोली "जब हम लोग हॉस्पिटल से वापस आए थे. तब रिया तुम्हारे ही कमरे मे थी. सब से पहले मैं घर के अंदर आई थी, इसलिए बस मैने ही उसे, तुम्हारे कमरे से निकलते देखा था. अब तुम बोलो कि तुम दोनो अकेले मे क्या कर रहे थे.
प्रिया की बात सुनकर तो मेरा दिमाग़ ही घूम गया. मैं समझ नही पाया कि रिया आख़िर मेरे कमरे मे कर क्या रही थी. फिर भी प्रिया की बात का जबाब तो देना ही था. मैने उसे उन लोगों के जाने के बाद रिया के दरवाजा खोल कर सोने वाली बात बताई और कहा.
मैं बोला "इसके बाद मैं सो गया था और फिर पापा के उठाने पर ही जागा हूँ. हो सकता है कि रिया मुझे जगाने ही आई हो. लेकिन जब उसे याद आया हो कि मैने उसे 9:30 बजे के बाद जगाने को कहा है तो, वो मुझे बिना जगाए ही वापस लौट गयी हो."
प्रिया बोली "तुम सच बोल रहे हो."
मैं बोला "मुझे कुछ भी झूठ बोलने की ज़रूरत नही है."
प्रिया बोली "यदि ये सच है तो फिर अभी रिया तुम्हारे पैरों पर पैर क्यों मार रही थी."
प्रिया की ये बात सुनकर मैं सन्न रह गया. मुझे इस बात का अंदाज ज़रा भी नही था कि, प्रिया ने वो सब देख लिया है. अब मुझे उसके घूर कर देखने का मतलब समझ मे आ रहा था. मैने कहा.
मैं बोला "ये बात तुमको मुझसे नही रिया से पूछनी चाहिए थी."
प्रिया बोली "जो कुछ भी चल रहा है. तुम दोनो के बीच ही चल रहा है, तो फिर इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि, मैं किस से पुच्छू."
मैं बोला "हम दोनो के बीच कुछ भी नही चल रहा है. लेकिन अब तुम इतना खुल कर बोल रही है तो क्या मैं भी तुम से एक बात पुछ सकता हूँ."
प्रिया बोली "एक क्या तुम 100 बात पुच्छ सकते हो."
मैं बोला "यदि तुम जबाब दे दो तो, वही एक बात 100 बात के बराबर होगी."
प्रिया बोली "तुम पुछो. मैं जबाब ज़रूर दुगी."
मैं बोला "तुमने जब रिया को मेरे कमरे से निकलते देखा तो, तुमने क्या सोचा कि, रिया मेरे कमरे मे क्या कर रही थी."
प्रिया बोली "ये भी कोई कहने वाली बात है. एक लड़का लड़की अकेले मे बंद कमरे मे क्या करते है."
मैं बोला "मैं किसी लड़की के साथ अकेले मे बंद कमरे मे कभी रहा नही. इसलिए मुझे ये सब नही मालूम है. यदि तुमको मालूम है तो, तुम ही बता दो कि, एक लड़का लड़की बंद कमरे मे क्या करते है."
ये सब बात मैं गुस्से मे प्रिया से बोल गया था. लेकिन मैं नही जानता था कि, इसका जबाब मुझे वो मिलेगा जो मैं सोच भी नही सकता.
प्रिया बोली "कभी मेरे साथ अकेले बंद कमरे मे रह कर देखो. मैं तुमको सब बता दुगी."
मैं बोला "कभी ऐसा मौका आया तो ज़रूर रहुगा. लेकिन अभी तो मुझे हॉस्पिटल जाने मे देर हो रही है. अब तुम अंदर जाओ, मैं आगे से टेक्सी पकड़ कर निकल जाउन्गा."
प्रिया बोली "ओके बाइ."
मैं बोला "बाइ."
ये बोल कर प्रिया अंदर चली गयी और मैं सड़क पर आ गया. सड़क पर आते ही मुझे एक टॅक्सी मिल गयी और मैं हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा. टॅक्सी मे बैठते ही मैं फिर अपनी सोच मे गुम हो गया था. प्रिया और रिया की हरकत मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. मुझे उन दोनो की हरकतें बहुत अजीब सी लग रही थी. मैं इस बात को मान नही पा रहा था कि लड़कियाँ इस तरह की भी होती है.
मेरा पाला अभी तक कीर्ति, शिल्पा और नितिका जैसी लड़कियों से पड़ा था. जो चाहे कितने भी आधुनिक कपड़े क्यों ना पहनी हो, पर शरम हया उनकी आँखो और बातों से झलकती थी. मुझे नितिका मे कभी आकर्षण नज़र नही आया था, मगर आज वो मुझे रिया और प्रिया से अच्छी ही समझ मे आ रही थी.
मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत याद आने लगी. मेरा मन कर रहा था कि, कैसे भी मैं अभी उसके पास पहुच जाउ. मुझे अचानक ही कीर्ति की बहुत कमी अखरने लगी थी. मैने कीर्ति को कॉल लगाने के लिए अपना मोबाइल निकाला. तभी टॅक्सी रुक गयी. मैने बाहर देखा तो हॉस्पिटल आ चुका था. मैने वापस अपना मोबाइल अपने जेब मे रखा और टॅक्सी से उतर गया.
टॅक्सी वाले को पैसे देने के बाद मैं हॉस्पिटल के अंदर गया और नीचे ही मेहुल या राज को देखने लगा कि, इस वक्त नीचे कौन है. मुझे वहाँ कोई दिखाई नही दिया तो, मैं समझ गया कि जो भी है, वो इस वक्त बाहर ही समुंदर के किनारे बैठा होगा. ये सोचते हुए मैं बाहर आ गया.
उनको ढूँढते हुए मैं बाहर आया और फिर मेरी नज़र मेहुल पर पड़ी. मेहुल पर नज़र पड़ते ही मैं सोचने लगा कि, रिया ने मुझसे झूठ क्यों कहा था कि, निक्की घर आ गयी है. निक्की तो यहाँ मेहुल के साथ बैठी है. उन दोनो की मेरे तरफ पीठ थी, इसलिए वो लोग मुझे नही देख पाए थे. दोनो ही अपनी बातों मे लगे हुए थे. निक्की शायद मेहुल से कुछ बोल रही थी.
मैने उन दोनो की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए. लेकिन उनके करीब पहुचते ही निक्की की बात मुझे सुनाई पड़ी. जिसे सुनते ही मैं चौक गया और मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी. मुझे मेरे कानो पर विस्वास नही हुआ. मैने धड़कते दिल से मेहुल को आवाज़ दी.
मेरी आवाज़ सुनते ही दोनो ने पलट कर मेरी तरफ देखा. उनके मेरी तरफ देखते ही, मेरा दिल धक्क करके रह गया. मेरे दिल की धड़कने थम सी गयी थी. मेरी आवाज़ मेरे गले मे ही अटक कर रह गयी. मेरे मूह से कोई बोल नही फुट रहे थे और ना ही मुझे मेरी आँखो पर विस्वास हो रहा था. मैं अपलक निक्की को देखे जा रहा था और फिर अचानक मेरी आँखों मे आँसू झिलमिला उठे.
ये आँसू उस धोके के थे. जो निक्की ने मेरे साथ किया था. मुझे ना तो अपने कानो पर, और ना ही अपनी आँखों पर विस्वास हो रहा था. फिर भी अभी अभी मैने जो कुछ देखा और सुना था. मैं उसे झुटला भी नही सकता था.
मेरी आँखो मे आँसू देखते ही मेहुल उठ कर खड़ा हो गया. उसके साथ साथ निक्की भी खड़ी हो गयी. मगर तब तक मैं अपने आँसुओं को पोछ चुका था. अब मेरी आँखों मे आँसू की जगह गुस्सा था. मेहुल या निक्की के कुछ भी कहने से पहले मैं बोल पड़ा.
मैं बोला "मैं अंकल के पास जा रहा हूँ. उनके पास शायद राज होगा. मैं उसे नीचे भेजता हूँ. तुम लोग घर चले जाना."
मेहुल समझ गया था कि, ये बात मैं गुस्से मे बोल रहा हूँ. उसने मुझसे कहा.
मेहुल बोला "यार मेरी बात तो सुन."
लेकिन मेहुल इसके आगे और कुछ कह पाता. उस से पहले ही मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.
मैं बोला "मैं जा रहा हूँ. तुम्हे जो भी बात करना हो कल करना."
इसके बाद मैं मे बिना उनकी तरफ देखे उपर चला गया. उपर जाते जाते मैने अपने आपको सामान्य किया और फिर राज के पास पहुच कर, उस से अंकल का हाल चाल पूछा. फिर मैने राज को घर जाने के लिए बोला तो, उसने मुझे अंकल के बारे मे जानकारी देते हुए कहा.
राज बोला "अंकल अब होश मे है, मगर दवाइयों के असर से सो रहे है. बीच बीच मे वो उठ कर कुछ बात पूछते भी है. अभी वो बोल नही पा रहे है, इसलिए सारी बातें लिख कर कर रहे है. ये नोटबुक और पेन रखा है. जब वो कुछ बोलना चाहे तो, ये उनको दे देना. वो अभी कुछ समय इसी तरह से बात करेगे."
मैं बोला "ठीक है. अब तुम नीचे जाओ. नीचे मेहुल और निक्की तुम्हारा इंतजार कर रहे है."
राज बोला "ओके मैं जाता हूँ. लेकिन यदि तुम्हे रात को यहाँ कोई परेशानी हो तो, तुम मुझे कॉल कर देना. मैं आ जाउन्गा. रात को नीचे की कॅंटीन खुली रहती. तुम को यदि चाय कॉफी पीना हो तो, तुम नर्स को बता कर चले जाना. अब मैं जाता हूँ."
मैं बोला "ओके."
फिर राज नीचे चला गया. नीचे जाकर उसने मुझे फिर कॉल किया कि, वो लोग घर जा रहे है. सुबह मेहुल जल्दी आ जाएगा. इसके बाद वो लोग घर चले गये.
अंकल अभी भी सो रहे थे. मैने टाइम देखा तो, 11:00 बज चुके थे. मेरा मूड अभी भी सही नही था. मेरा मन कीर्ति से बात कर के, अपना मन हल्का करने का हो रहा था. मगर अंकल के पास बैठे होने की वजह से, मैं ऐसा नही कर सकता. मेरे बात करने से उनकी नींद मे खलल पड़ सकता था.
जब मुझे कुछ और नही सूझा तो, मैने अपना मोबाइल निकाला और उस मे कीर्ति के फोटो देखने लगा. उस समय सच मे मुझे कीर्ति का चेहरा देख कर बहुत सुकून मिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक कीर्ति के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता रहा. जिसे देख कर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान वापस आ गयी और मेरा गुस्सा कहीं गायब हो गया.
रात को 11:30 बजे अंकल की नींद खुली. मुझे अपने सामने बैठे देख कर, उन ने मुझसे इशारे से नोटबुक और पेन माँगा. मैने उनके हाथ मे पेन और नोटबुक थमा दिए.
उन्हो ने लिख कर मुझसे मेहुल के जाने के बारे मे पूछा. तो मैने उन से कहा.
मैं बोला "मेहुल अभी कुछ देर पहले ही घर गया है. सुबह जल्दी आ जाएगा. आज से मैं रात को और मेहुल दिन को रुकेगा."
अंकल ने फिर लिख कर पापा के आने के बारे मे बताया. तब मैने उन से कहा.
मैं बोला "मैं पापा से मिल लिया हूँ. पापा राज के दादा जी के कहने पर उनके घर मे ही रुके है."
फिर मैने अंकल से आराम करने को कहा तो, अंकल आँख बंद कर के लेट गये. दवाइयों के असर से उन्हे फिर से नींद आ गयी. थोड़ी देर बाद जब मैने देखा कि, अंकल गहरी नींद मे है. तब मैं कमरे से निकल कर बाहर बने दालान मे आ गया.
कमरे मे लगे काँच से, अंकल मुझे दालान से भी दिख रहे थे. अब 12 बज चुके थे. मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति को फोन लगाया. उसने पहली ही रिंग मे मेरा कॉल उठाया और कॉल उठाते ही कहा.
कीर्ति बोली "आइ मिस यू जान."
उसकी आवाज़ मुझे कुछ रुआंसी सी लगी. जैसे कि वो रो रही हो. उसे ऐसा देख कर मुझे उसकी चिंता हुई. मैने उस से कहा.
मैं बोला "तुझे ये क्या हुआ है. तेरा चेहरा ऐसा उतरा हुआ सा क्यों है."
कीर्ति बोली "कहाँ जान. मैं तो अच्छी हूँ. बस तुम्हे मिस कर रही हूँ. तुम मुझे देख नही पा रहे हो इसलिए तुम्हे ऐसा लग रहा है."
मैं बोला "देख झूठ मत बोल. मैं तुझे देख नही पा रहा हूँ तो, क्या हुआ. मैं तेरे चेहरे को तेरी आवाज़ से देख सकता हूँ. अब बता कि तुझे क्या हुआ."
मेरी बात सुनते ही कीर्ति रो पड़ी. मुझे उसके रोने का कारण समझ मे नही आया. लेकिन इतना समझ चुका था कि, ज़रूर कोई बड़ी बात है. नही तो वो इस समय मेरे सामने हरगिज़ ना रोती.
मैं बोला "अरे रोती क्यों है. मैं तो हमेशा तेरे साथ हूँ. मुझे बता ना क्या बात है. जो तुझे इतना परेशान कर रही है."
मेरी बात सुनकर उसने रोना बंद किया और फिर कहा.
कीर्ति बोली "जान आज सुबह मौसी और मौसा जी मे, मुझे लेकर बहुत झगड़ा हुआ."
मैं बोला "क्यों ऐसी क्या बात हो गयी."
कीर्ति बोली "मौसा जी अपनी किसी बिज़्नेस डील की वजह से मुंबई जा रहे थे. उन्हो ने मम्मी से मेरे को भी साथ ले जाने के लिए पूछ लिया था. लेकिन मैने मौसी से कहा कि मैं मुंबई नही जाना चाहती. आप मौसा जी मेरा नाम लिए बिना मना कर दीजिए. तब मौसी ने मौसा जी से कह दिया कि, मैं उनके साथ मुंबई नही जाउन्गी. जिसे लेकर दोनो मे बहुत झगड़ा हुआ."
मैं बोला "इसमे पापा को झगड़ा करने क्या ज़रूरत थी. मुझे तो इसमे झगड़े वाली कोई बात नज़र नही आ रही है."
कीर्ति बोली "मौसा जी को लगा कि मौसी मुझे उनके साथ, इसलिए भेजना नही चाहती, क्योंकि मौसी को उनके उपर विस्वास नही है. इसी बात को लेकर दोनो मे झगड़ा हुआ और फिर मौसा जी अकेले ही चले गये."
मैं बोला "तो तूने पापा के साथ आने से मना क्यों कर दिया. तुझे आ जाना चाहिए था. कम से कम तू मेरे सामने तो रहती."
कीर्ति बोली "मुझे उनके साथ आने मे डर लग रहा था."
मैं बोला "कैसा डर. क्या उन्हो ने तेरे साथ घर मे कोई हरकत की है."
कीर्ति बोली "नही ऐसी कोई बात नही है. बस मुझे ऐसे ही डर लग रहा था."
मैं बोला "देख मुझसे झूठ मत बोल. ज़रूर कोई बात हुई है. तभी तूने पापा के साथ आने से मना किया है. नही तो तू मेरे पास आने की बात को लेकर कभी उनके साथ आने से मना नही करती."
कीर्ति बोली "नही जान कोई बात नही है. मैं तो यहाँ आंटी और मौसी को अकेले छोड़ कर नही आना चाहती."
मैं बोला "ठीक है तुझे नही बताना तो मत बता. मैं तेरा होता ही कौन हूँ, जो तू मुझे अपनी हर बात बताएगी."
कीर्ति बोली "जान ये कैसी बात कर रहे हो. मेरे लिए तो सब कुछ तुम ही हो. तुम से तो मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूँ."
मैं बोला "तो फिर सच सच बता. तूने पापा के साथ आने से क्यों मना कर दिया."
कीर्ति बोली "जान तुमको सुनकर दुख होगा, इसलिए मैं तुम्हे ये बात बताना नही चाहती हूँ."
मैं बोला "मेरा कोई भी दुख, मेरी जान से बढ़ कर नही है. मैं अपना हर दुख सह सकता हूँ. मगर तेरी आँख मे आँसू की एक बूँद भी आए, ये मैं हरगिज़ नही सह सकता. मुझे बता तेरे साथ क्या हुआ."
कीर्ति बोली "अंकल और मेहुल के मुंबई चले के बाद से आंटी बहुत परेशान रह रही थी. कल ऑपरेशन की वजह से वो बहुत भावुक हो रही थी. इसलिए कल मौसी ने उनको अपने पास ही सुला लिया. मौसा जी कल उपर वाले कमरे मे ही सोने आए थे. मैं तो अमि निनी के साथ ही सोती हूँ. देर रात तक तुमसे बात होने के बाद, जब मैं सोने को हुई, तभी मौसा जी हमारे कमरे मे आए. मैं समझी कि वो अमि निमी को देखने आए है. मैं यूँ ही आँख बंद करके लेटी रही. मौसा जी मेरे पास आए और कुछ देर तक मुझे देखते रहे. फिर उन्हो ने मेरे माथे पर हाथ रखा. आँख बंद होने के कारण, मैं ये समझी कि, अमि निमी के सर पर हाथ फेरने के बाद, वो मेरे सर पर भी हाथ फेर रहे है. मैं चुप चाप लेटी रही. लेकिन मौसा जी का हाथ मेरे माथे से सरक कर धीरे धीरे, मेरे चेहरे और गर्दन से होते हुए, मेरे बूब्स तक आ गया. वो कपड़ो के उपर से ही, मेरे बूब्स पर हाथ फेरने लगे. मैं बहुत डर गयी थी. मुझे समझ मे नही आया कि, मैं क्या करूँ. तभी निमी हमेशा की तरह सोते सोते रोने लगी. उसका रोना सुन कर मौसा जी ने अपना हाथ हटा लिया, और फिर अमि के साथ साथ मैं भी उठ कर बैठ गयी."
हम सब को जागते देख मौसा जी ने अपनी सफाई दी.
मौसा जी बोले "मैं यहाँ तुम लोगो को देखने आया था. लेकिन निमी शायद कोई बुरा सपना देख कर जाग गयी है."
मैं बोली "आप चिंता ना करे. आप जाइए मैं और अमि मिल कर निमी को चुप करा लेगे."
"मेरी बात सुनकर मौसा जी चले गये और मैं कमरे का दरवाजा बंद कर के निमी को चुप कराने लगी. कल रात निमी का रोना मेरे काम आ गया. नही तो पता नही, कल क्या होता."
कीर्ति की बात सुनकर मुझे पापा की हरकत पर बहुत गुस्सा आया. मैने गुस्से मे पापा को गाली बकते हुए कहा.
मैं बोला "अब तो तूने उस माँ******* की हरकत देख ली. मुझे इसी वजह से उस पर कभी विस्वास नही होता. उसका बस चले तो, वो अमि निमी को भी ना छोड़े. इसी वजह से मैं हमेशा अमि निमी को, उस कमिने से दूर रखता हूँ. मैं कल ही यहाँ उसकी सबके सामने बेज़्जती करूगा. तब उसे पता चलेगा कि, किसी लड़की की इज़्ज़त से खेलने का क्या अंजाम होता है."