New Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी - SexBaba
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New Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

hotaks444

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Nov 15, 2016
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अधूरी जवानी बेदर्द कहानी--1
मैं अजमेर की रहने वाली 30 साल की शादीशुदा औरत हूँ। हम ३ बहनें हैं, मैं
सबसे छोटी हूँ, मेरी शादी बचपन में मेरी बहनों के साथ ही हो गई थी जब मैं
शादी का मतलब ही नहीं जानती थी। मेरी बड़ी बहन ही बालिग थी, बाकी हम दो
बहनों के लिए तो शादी एक खेल ही था।
उस वक्त हम दोनों बहनों की सिर्फ शादी हुई थी जबकि बड़ी बहन का गौना भी
साथ ही हुआ था, वो तो ससुराल आने जाने लग गई, हम दोनों एक बार जाकर फिर
पढ़ने जाने लगी। हमें तब तक किसी बात का कोई पता नहीं था, जीजाजी जीजी के
साथ आते तो हम बहुत खुश होती, हंसी-मजाक करती, मेरी माँ कभी कभी चिढ़ती और
कहती- अब तुम बड़ी हो रही हो, कोई बच्ची नहीं हो जो अपने जीजा जी से इतनी
मजाक करो !
पर मैं ध्यान नहीं देती थी।
कुछ समय बाद मेरे ससुराल से समाचार आने लग गए कि इसको ससुराल भेजो, इसका गौना करो।
और मैं मासूम नादान सी ससुराल चली गई। उस वक्त मुझे साड़ी पहनना भी नहीं
आता था, हम राजस्थान में ओढ़नी और कुर्ती, कांचली, घाघरा पहनते हैं, में
भी ये कपड़े पहन कर चली गई जो मेरे दुबले पतले शरीर पर काफी ढीले-ढाले थे।
मुझे सेक्स की कोई जानकारी नहीं थी, हमारा परिवार ऐसा है कि इसमें ऐसी
बात ही नहीं करते हैं, न मेरी बड़ी बहन ने कुछ बताया, ना ही मेरी माँ ने
!
बाद में मुझे पता चला कि मेरी सास ने जल्दी इसलिए की कि मैं पढ़ रही थी,
उसका बेटा कम पढ़ा था, वो सोच रही थी कि इसे जल्दी ससुराल बुला लें, नहीं
तो यह इसे छोड़ कर किसी दूसरे पढ़े लिखे के साथ चली जाएगी। जबकि हमारे
परिवार के संस्कार ऐसे नहीं थे, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था। शादी के कई
साल बाद मैंने पति को तब देखा जब वो गौना लेने आया। मुझे देख कर वो
मुस्करा रहा था, मैंने भी चोर नजरों से उसे देखा, मोटा सा, काला सा,
ठिगना, कुछ पेट बढ़ा हुआ !
मेरे पति थोड़े ठिगने हैं करीब 5'4" के, मैं भी इतनी ही लम्बी हूँ। मेरे
पति चेन्नई में काम करते हैं, 6-7 पढ़े हुए हैं जबकि में ऍम.ए. किए हूँ।
वैसे मैं बहुत दुबली-पतली हूँ, मेरा चेहरा और बदन करीना कपूर से
मिलता-जुलता है, मेरा बोलने-चलने का अंदाज़ भी करीना जैसा है इसलिए मुझे
कोई करीना कहता है तो मुझे ख़ुशी होती है। मैं अपनी सुन्दरता देख इठला
उठी। जब मैं घर में उसके सामने से निकलती कुछ घूंघट किये हुए तो वो खींसे
निपोर देता ! मुझे ख़ुशी होती कि मैं सुन्दर हूँ। इसका मुझे अभिमान हो
गया और मैं उसके साथ गाड़ी में अपनी ससुराल चल दी। गाड़ी में उसके साथ उसके
और परिवार वाले भी थे, हम शाम को गाँव में पहुँच गए।
गाँव पहुँचने के बाद मैंने देखा कि मेरी ससुराल वालों का घर कच्चा ही था,
एक तरफ कच्चा कमरा, एक तरफ कच्ची रसोई और बरामदा टिन का, बाकी मैदान में
!
मेरे पति 5 भाइयों में सबसे छोटे थे जो अपने एक भाई-भाभी और माँ के साथ
रहते थे, ससुर जी का पहले ही देहांत हो गया था !
वहाँ जाते ही मेरी सास और बड़ी ननद ने मेरा स्वागत किया, मुझे खाना
खिलाया। घर मेहमानों से भरा था, भारी भरकम कपड़े और गहने पहने हुई थी,
मैंने पहली बार घूंघट निकाला था, मैं परेशान थी।
मेरी ननद मुझे कमरे में ले गई जिसमें कच्ची जमीन पर ही बिस्तर बिछाये हुए
थे, उसने मुझे कहा- कमला, ये भारी साड़ी जेवर आदि उतार कर हल्के कपड़े पहन
ले, अब हम सोयेंगे !
मैंने अपने कपड़े उतार कर माँ का दिया हुआ घाघरा-कुर्ती ओढ़नी पहन ली, मेरे
स्तन बहुत छोटे थे इसलिए चोली मैं पहनती नहीं थी। गर्मी थी तो चड्डी भी
नहीं पहनी और अपनी ननद के साथ सो गई आने वाले खतरे से अनजान !
मैं सोई हुई थी, अचानक आधी रात को असहनीय दर्द से मेरी नींद खुल गई और
मैं चिल्ला पड़ी। चिमनी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरी ननद गायब है
और मेरे पति मेरी छोटी सी चूत में जिसमें मैंने कभी एक उंगली भी नहीं
घुसाई थी, अपना मोटा और लम्बा लण्ड डाल रहे थे और सुपारा तो उन्होंने
मेरी चूत में फंसा दिया था। घाघरा मेरी कमर पर था, बाकी कपड़े पहने हुए थे
और वो गाँव का गंवार जिसने न तो मुझे जगाया न मुझे सेक्स के लिए शारीरिक
और मानसिक रूप से तैयार किया, नींद में मेरा घाघरा उठाया, थूक लगाया और
लण्ड डालने के लिए जबरदस्त धक्का लगा दिया।
मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे और मैं जिबह होते बकरे की तरह चिल्ला उठी !
मेरी चीख उस कमरे से बाहर घर में गूंज गई।
बाहर से मेरी सास की गरजती आवाज आई, वो मेरे पति को डांट रही थी कि छोटी
है, इसे परेशान मत कर, मान जा !
मेरे पति मेरी चीख के साथ ही कूद कर एक तरफ हो गए तब मुझे उनका मोटे केले
जितना लण्ड दिखा। मैंने कभी बड़े आदमी लण्ड नहीं देखा था, छोटे बच्चों की
नुनिया ही देखी थी इसलिए मुझे वो डरावना लगा।
उन्होंने अन्दर से माँ को कहा- अब कुछ नहीं करूँगा ! तू सो जा !
फिर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे !
मेरी टाँगें सुन्न हो रही थी, मैं घबरा रही थी। थोड़ी देर वो चुपचाप लेटे,
फिर मेरे पास सरक गए, उन्होंने कहा- मैंने गाँव की बहुत लड़कियों के साथ
सेक्स किया है, वो तो नहीं चिल्लाती थी?
उन्हें क्या पता कि एक चालू लड़की में और अनजान मासूम अक्षतयौवना लड़की में
क्या अंतर होता है !
थोड़ी देर में उन्होंने फिर मेरा घाघरा उठाना शुरू किया, मैंने अपने दुबले
पतले हाथों से रोकना चाहा मगर उन्होंने अपने मोटे हाथ से मेरी दोनों
कलाइयाँ पकड़ कर सर के ऊपर कर दी, अपनी भारी टांगों से मेरी टांगें चौड़ी
कर दी, फिर से ढेर सारा थूक अपने लिंग के सुपारे पर लगाया, कुछ मेरी चूत
पर !
मैं कसमसा रही थी, उन्हें धक्का देने की कोशिश कर रही थी पर मेरी दुबली
पतली काया उनके भैंसे जैसे शरीर के नीचे दबी थी। मैंने चिल्ला कर अपनी
सास को आवाज देनी चाही तो उसी वक्त उन्होंने मेरे हाथ छोड़ कर मेरा मुँह
अपनी हथेली से दबा दिया।
मैं गूं गूं ही कर सकी। मेरे हाथ काफी देर ऊपर रखने से दुःख रहे थे।
मैंने हाथों से उन्हें धकेलने की नाकाम कोशिश की। उनके बोझ से मैं दब रही
थी। मेरा वजन उस वक्त 38-40 किलो था और वे 65-70 किलो के !
अब उन्होंने आराम से टटोल कर मेरी चूत का छेद खोजा जिसे उन्होंने कुछ
चौड़ा कर दिया था, अपने गीले लिंग का सुपारा मेरी छोटी सी चूत के छेद पर
टिकाया और हाथ के सहारे से अन्दर ठेलने लगे। 2-3 बार वो नीचे फिसल गया,
फिर थोड़ा सा मेरी चूत में अटक गया।
मुझे बहुत दर्द हो रहा था जैसे को लोहे की छड़ डाली जा रही हो, जिस छेद को
मैंने आज तक अपनी अंगुली नहीं चुभाई थी, उसमें वो भारी भरकम लण्ड डाल रहा
था।
मेरे आँसुओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो पूरी बेदर्दी दिखा रहा
था और मुस्कुरा था कि उसे सील बंद माल मिला जिसकी सील वो तोड़ रहा था !
मेरी दोनों टांगों को वो अपने पैरों के अंगूठों से दबाये हुए था, मेरे
ऊपर वो था, उसके लिंग का सुपारा मेरी चूत में फंसा हुआ था। अब उसने एक
हाथ को तो मेरे मुंह पर रहने दिया दूसरे हाथ से मेरे कंधे पकड़े और जोर का
धक्का लगाया, लण्ड दो इंच और अन्दर सरक गया, मेरी सांस रुकने लगी, मेरी
आँखें फ़ैल गई।
फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर खींचा, मैं भी लण्ड के साथ उठ गई। उसने जोर से
कंधे को दबाया और जोर से ठाप मारी, मैं दर्द के समुन्दर में डूबती चली
गई। आधे से ज्यादा लण्ड मेरी संकरी चूत में फंसा हुआ था, मेरी चूत से खून
आ रहा था पर उन्हें दया नहीं आई,
वो और मैं पसीने-पसीने थे, मुँह से हाथ उन्होंने उठाया नहीं था और फिर
उन्होंने आखिरी धक्का मारा और उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था,
उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था।
मैं बेहोश हो गई पर दर्द की वजह से वापिस होश आ गया। मैं रो रही थी, सिसक
रही थी, मेरा चेहरा आँसुओं से तर था पर दनादन धक्के लग रहे थे, मेरे
चेहरे से हाथ हटा लिया गया था, मेरे कंधे तो कभी कमर पकड़ कर वे बुरी तरह
से मुझे चोद रहे थे।
15-20 मिनट तक उन्होंने धक्के लगाये, मेरी चूत चरमरा उठी, हड्डियाँ कड़कड़ा
उठी, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आया था और वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य
डालते हुए ढेर हो गए और भैंसे की तरह हांफने लगे।
मैं रो रही थी, सिसकियाँ भर रही थी, मेरी चूत से खून और वीर्य मेरी
जांघों से नीचे बह रहा था।
थोड़ी देर में सुबह हो गई, मेरे पति बाहर चले गए, मेरी ननद आई, उसने मेरी
टांगें पौंछी, मेरे कपड़े सही किये, मुझे खड़ा किया। मैं लड़खड़ा रही थी, वो
हाथों का सहारा देकर मुझे पेशाब कराने ले गई।
मुझे तेज जलन हुई, मैंने रोते-रोते कहा- मुझे मेरे गाँव जाना है !
मेरी सास ने बहुत मनाया पर मैं रोती रही, चाय नाश्ता भी नहीं किया। आखिर
उन्होंने एस.टी.डी. से मेरे घर फ़ोन किया। एक-डेढ़ घंटे बाद मुझे मेरे भाई
और छोटे वाले जीजाजी लेने आ गए और मैं अपनी सूजी हुई चूत लेकर अपने मायके
रवाना हो गई वापिस कभी न आने की सोच लेकर !
मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना
पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश
नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।
मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत
ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा
दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।
वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात
भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स
किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?
मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं
पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?
अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।
फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों
में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई
फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।
अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द
क्यूँ नहीं आता है।
 
मेरे पति मुझे सेक्स के लिए तैयार करते नहीं थे, सीधे
ही चोदने लग जाते थे और मुझे कुछ आनन्द आने लगता तब तक वो ढेर हो जाते।
रात में सेक्स 5-7 बार करते, पर वही बात रहती।
फिर मैंने उनको समझाया- कुछ मेरा भी ख्याल करो, मेरे स्तन दबाओ, कुछ हाथ फिराओ !
अब तक मैंने कभी उनके लण्ड को कभी हाथ भी नहीं लगाया था, अब मैंने भी
उनके लण्ड को हाथ में पकड़ा तो वो फुफकार उठा। उन्होंने मेरे स्तन दबाये
पेट और जांघों पर चुम्बन दिए, चूत के तो नजदीक भी नहीं गए।
मैंने भी मेरी जिंदगी में कभी लण्ड के मुँह नहीं लगाया था, मुझे सोच के
ही उबकाई आती थी, अबकी बार उन्होंने चोदने का आसन बदला, अब तक तो वो
सीधे-सीधे ही चोदते थे, इस बार उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और
लण्ड घुसा दिया और हचक-हचक कर चोदने लगे।
मेरी टांगें मेरे सर के ऊपर थी, मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी पर चमत्कार
हो गया, मुझे आनन्द आ रहा था, उनका सुपारा सीधे मेरी बच्चेदानी पर ठोकर
लगा रहा था, मुझे लग रही थी पर आनन्द बहुत आया।
इस बार जब उन्होंने अपने माल को मेरी चूत में भरा तो मैं संतुष्ट थी। फिर
मैंने अपनी टांगें ऊपर करके ही चुदाया, मुझे मेरे आनन्द का पता चल चुका
था। फिर मेरे गर्भ ठहर गया, सितम्बर, 2000 में मेरे बेटा हो गया।
बेटा होने के बाद कुछ विशेष नहीं हुआ ! मैं प्राइवेट पढ़ती रही, मेरे पति
साल में एक बार आते तब मैं ससुराल चली जाती और मेरे पति महीने डेढ़ महीने
तक रहते, मैं उनके साथ रहती और जब वे वापिस चेन्नई जाते तो मैं अपने पीहर
आ जाती। इसका कारण था कई लोंगो की मेरे ऊपर पड़ती गन्दी नज़र !
मेरे ससुराल में खेती थी, जब फसल आती तो वे मुझे मेरा हिस्सा देने के लिए
बुलाते थे। लेकिन ज्यादातर मैं शाम को मेरे पीहर आ जाती थी।
एक बार मुझे रात को रुकना पड़ा, मैं मेरे घर पर अकेली थी, मेरे जेठों के
घर आस पास ही थे, मेरी जिठानी ने कहा- तू अकेली कैसे सोएगी? डर जाएगी तू
! मेरे बेटे को अपने घर ले जा !
मेरे जेठ का बेटा करीब 18-19 साल का था, मैं 27 की थी, मैंने सोचा बच्चा
है, इसको साथ ले जाती हूँ !
खाना खाकर हम लेट गए, बिस्तर नीचे ही पास-पास लगाए हुए थे, थोड़ी देर
बातें करने के बाद मुझे नींद आ गई !
आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गई, मेरे जेठ का बेटा मेरे पास सरक आया
था और एक हाथ से मेरा एक वक्ष भींच रहा था और दूसरे वक्ष को अपने मुँह
में ले रहा था, हालाँकि ब्लाउज मैंने पहना हुआ था।
मेरे गुस्से का पार नहीं रहा, मैं एक झटके में खड़ी हो गई, लाइट जलाई और
उसे झंजोड़ कर उठा दिया !
मेरे गुस्से की वजह से मुंह से झाग निकल रहे थे, वो आँखें मलता हुआ पूछने
लगा- क्या हुआ काकी?
मुझे और गुस्सा आया मैंने कहा- अभी तू क्या कर रहा था?
पठ्ठा बिल्कुल मुकर गया और कहा- मैं तो कुछ नहीं कर रहा था।
मैंने उसको कहा- अपने घर जा !
वो बोला- इतनी रात को?
मैंने कहा- हाँ !
उसका घर सामने ही था, वो तमक कर चला गया और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।
सुबह मैंने अपनी जेठानी उसकी माँ को कहा तो वो हंस कर बात को टालने लगी,
कहा- इसकी आदत है ! मेरे साथ सोता है तो भी नींद में मेरे स्तन पीता है।
मैंने कहा- अपने पिलाओ ! आइन्दा मेरे घर सुलाने की जरुरत नहीं है !
मुझे उसके कुटिल इरादों की कुछ जानकारी मिल गई थी। उसकी माँ चालू थी,
गाँव वालों ने उसे मुझे पटाने के लिए लालच दिया था इसलिए वो अपने बेटे के
जरिए मेरी टोह ले रही थी। उसे पता था उसके देवर को गए दस महीने हो गए थे,
शायद यह पिंघल जाये पर मैं बहुत मजबूत थी अपनी इज्जत के मामले में !
इससे पहले कईयों ने मुझ पर डोरे डाले थे, मेरे घर के पास मंदिर था, उसमें
आने का बहाना लेकर मुझे ताकते रहते थे। उनमें एक गाँव के धन्ना सेठ का
लड़का भी था जिसने कहीं से मेरे मोबाइल नंबर प्राप्त कर लिए और मुझे बार
बार फोन करता। पहले मिस कॉल करता, फिर फोन लगा कर बोलता नहीं ! मैं इधर
से गालियाँ निकलती रहती।
फिर एक दिन हिम्मत कर उसने अपना परिचय दे दिया और कहा- मैं तुमको बहुत
चाहता हूँ इसलिए बार बार मंदिर आता हूँ।
मैंने कहा- तुम्हारे बीवी, बच्चे हैं, शर्म नहीं आती !
फिर भी नहीं माना तो मैंने उसको कहा- शाम को मंदिर में आरती के समय
लाऊडस्पीकर पर यह बात कह दो तो सोचूँगी।
तो उस समय तो हाँ कर दी फिर शाम को उसकी फट गई। फिर उसने कहा- मुझे आपकी
आवाज बहुत पसंद है, आप सिर्फ फोन पर बात कर लिया करें। मैं कुछ गलत नहीं
बोलूँगा। मैंने कहा- ठीक है ! जिस दिन गलत बोला, बातचीत कट ! और मेरा मूड
होगा या समय होगा तो बात करुँगी।
यह सुनते ही वो मुझे धन्यवाद देने लगा और रोने लगा और कहने लगा- चलो मेरे
लिए इतना ही बहुत है ! कम से कम आपकी आवाज तो सुनने को मिलेगी !
मैं बोर होने लगी और फोन काट दिया। उसके बाद वो दो चार दिनों के बाद फोन
करता, मेरा मूड होता तो बात करती वर्ना नहीं ! वो भी कोई गलत बात नहीं
करता, मेरी तारीफ
करता। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी।
मेरा पति चेन्नई से नौकरी छोड़ कर आ गया था। मेरा बी.ए. हो चुका था, मैंने
गाँव में स्कूल ज्वाइन कर लिया, टीचर बन गई वहाँ भी और टीचर मुझ पर लाईन
मारते, पर मैंने किसी को घास नहीं डाली।
फिर मेरे पति को वापिस चेन्नई बुला लिया तो चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़
दिया और पीहर आ गई !
जब भी मेरे बड़े जीजाजी अजमेर आते तो मुझसे हंसी मजाक करते थे, मैं मासूम
थी, सोचती थी कि मैं छोटी हूँ इसलिए मेरा लाड करते हैं। वे कभी यहाँ-वहाँ
हाथ भी रख देते थे तो मैं ध्यान नहीं देती थी। कभी वो मुझे अपनी बाँहों
में उठा कर कर मुझे कहते थे- अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है !
मेरे जीजाजी करीब 46-47 साल के हैं 5'10" उनकी लम्बाई है, अच्छी बॉडी है,
बाल उनके कुछ उड़ गए हैं फिर भी अच्छे लगते हैं। पर मैंने कभी उनको उस नजर
से नहीं देखा था मैंने उनको सिर्फ दोस्त और बड़ा बुजुर्ग ही समझा था।
इस बीच में कई बार मैं अपनी दीदी के गाँव गई। वहाँ जीजा जी मुझसे मजाक
करते रहते, दीदी बड़ा ध्यान रखती, मुझे कुछ गलत लगता था नहीं।
फिर एक बार जीजा जी मेरे पीहर में आये, दीदी नहीं आई थी।
वे रात को कमरे में लेटे थे, टीवी देख रहे थे। मेरे पापा मम्मी दूसरे
कमरे में सोने चले गए। मेरी मम्मी ने आवाज दी- आ जा ! सो जा !
मेरा मनपसंद कार्यक्रम आ रहा था तो मैंने कहा- आप सो जाओ, मैं बाद में आती हूँ।
जीजा जी चारपाई पर सो रहे थे, उसी चारपाई पर बैठ कर मैं टीवी देख रही थी।
थोड़ी देर में जीजाजी बोले- बैठे-बैठे थक जाओगी, ले कर देख लो।

मैंने कहा- नहीं !
उन्होंने दोबारा कहा तो मैंने कहा- मुझे देखने दोगे या नहीं? नहीं तो मैं
चली जाऊँगी। थोड़ी देर तो वो लेटे रहे, फ़िर वे मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने
साथ लिटाने की कोशिश करने लगे।
 
मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और
माँ के पास जाकर सो गई।
सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात
को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति
आये हुए थे।
अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में
मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा
दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।
फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये,
उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।
मैंने उनको नहीं देखा !
फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?
उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !
मैंने पूछा- काम बोलो !
उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !
मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !
खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और
मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता
लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।
एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन
आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।
तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा
हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?
मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें
बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !
फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं
यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता
हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।
मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ
नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !
फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।
फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !
मैं नहीं गई।
उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम
फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।
मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे
रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।
मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !
दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना,
तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।
10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ
जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।
मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा
जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5
कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा
की तरह मेरा ध्यान रखते थे।
मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव
जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !
साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ
से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।
मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते,
मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो
गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि
मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !
फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ
नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।
मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !
दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती,
इनको भेज रही हूँ !
एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !
मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति
साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब
का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।
और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके
लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।
उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !
जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना
खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।
शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।
मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।
उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार
आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की
भी !
 
हम होटल गए तो वो कही बाहर गया हुआ था ! मैंने सोचा अब क्या करें?
मैंने उसको फोन कर कहा- मुझे आपकी बाइक चाहिए !
उसने बताया कि वो शहर से दूर है, एक घंटे में आ जायेगा, हमें वहीं रुक कर
नौकर से कह कर चाय नाश्ता करने को कहा।
मुझे इतना रुकना नहीं था, मैं जीजाजी को लेकर चलने लगी ही थी, तभी उस
होटल वाले का जीजा अपनी बाइक लेकर आया। वो भी मुझे जानता था, उसने पूछा-
क्या हुआ मैडम जी?
वहाँ सब मुझे ऐसे ही बुलाते हैं, मैंने उसे बाइक का कहा तो उसने कहा- आप
मेरी ले जाओ !
मैंने जीजाजी से पूछा- यह वाली आपको चलानी आती है या नहीं? कहीं मुझे
गिरा मत देना !
तो जीजाजी ने कहा- और किसी को तो नहीं गिराया पर तुम्हें जरूर गिराऊँगा !
मैं डरते डरते पीछे बैठी, जीजाजी ने गाड़ी चलाई कि आगे बकरियाँ आ गई।
जीजाजी ने ब्रेक लगा दिए, बकरियों के जाने के बाद फिर गाड़ी चलाई तो मैं
संतुष्ट हो गई कि जीजाजी अच्छे ड्राइवर हैं !
अब वो शहर में इधर-उधर गाड़ी घुमा रहे थे, कई बार उन्होंने ब्रेक लगाये और
मैं उनसे टकराई, मेरी चूचियाँ उनकी कमर से टकराई, उन्होंने हंस कर कहा-
ब्रेक लगाने में मुझे चलाने से ज्यादा आनन्द आ रहा है !

मुझे हंसी आ गई।
थोड़ी देर घूमने के बाद हम वापिस होटल गए, उसे बाइक दी और पैदल ही घूमने निकल गए।
मैंने जीजाजी को कहा- अब खाना खाने होटल चलें?
उन्होंने कहा- नहीं, कमरे पर चलते हैं। आज तो तुम बना कर खाना खिलाओ !
मैंने कहा- ठीक है !
हम वापिस कमरे पर आ गए, मेरा पैदल चलने से पेट थोड़ा दुःख रहा था ! मैंने
खाना बनाया, थोड़ी गर्मी थी, हम खाना खा रहे थे कि मेरी माँ का फोन आ गया।
उसे पता था जीजाजी वहाँ आये हुए हैं।
उन्होंने जीजाजी को पूछा- आप क्या कर रहे हो?
तो उन्होंने कहा- कमरे पर खाना खा रहा हूँ, अब होटल जाऊँगा।
फिर माँ ने कहा- ठीक है !
पर जीजा जी ने मुझसे कहा- मैं होटल नहीं जाऊँगा !
मैंने कहा- कोई बात नहीं ! यहीं सो जाना !
मैं कई बार उनके साथ सोई थी, हालाँकि पहले हर बार हमारे साथ जीजी या और
कोई था पर आज हम अकेले थे पर मुझे कोई डर नहीं था।
हम खाना खाने के बाद छत पर चले गए। कमरे में मच्छर हो गए थे इसलिए पंखा
चला दिया और लाईट बंद कर दी।
हम छत पर आ गए तो मैंने उन्हें कहा- यहाँ छत पर सो जाते हैं।
उन्होंने कहा- नहीं, यहाँ ज्यादा मच्छर काटेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, कमरे में ही सोयेंगे।
फिर मेरे पेट में दर्द उठा तो जीजा जी ने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- पता नहीं क्यों आज पेट दुःख रहा है।
जीजाजी ने पूछा- कही पीरियड तो नहीं आने वाले हैं?
मैं शरमा गई, मैंने कहा- नहीं !
उन्होंने कहा- दर्द की गोली ले ली।
वो मुझे एक दर्द की गोली देने लगे, मैंने ना कर दिया, वो झल्ला कर बोले-
नींद की गोली नहीं है, दर्द की है।
फिर मैंने गोली ले ली !
फिर हम लेट गए, दोपहर की तरह आड़े और दूर दूर ! कमरे का दरवाज़ा खुला था।
हम बातें करने लगे। जीजा जी ने लुंगी लगा रखी थी, मैंने मैक्सी पहन रखी
थी। मैं लेटी लेटी बातें कर रही थी और जीजा जी हाँ हूँ में जबाब दे रहे
थे।
 
अधूरी जवानी बेदर्द कहानी--2

मेरी बात करते हाथ हिलाने की आदत है, मेरे हाथ कई बार उनके हाथ के लगे,
उन्होंने अपने हाथ पीछे कर लिए और कहा- अब सो जाओ, नींद आ रही है।
रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश
करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !
रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा
जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों
पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।
मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !
मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत
पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई...पर आगे दीवार आ गई, वो भी
मेरे पीछे सरक गए और मुझे बांहों में पकड़ लिया।
वो धीमे धीमे कह रहे थे- मुझे नींद नहीं आ रही है प्लीज !
और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। मैं धीमी धीमी आवाज में रो
रही थी, उन्हें छोड़ने का कह रही थी, पर वो नहीं मान रहे थे।
मैंने पलटी मार कर उधर मुँह कर लिया, उनकी बांहे मेरे शरीर पर ढीली थी पर
उन्होंने छोड़ा नहीं था मुझे। उन्होंने अपनी एक टांग मेरे टांगों पर रख
दी, मेरे कांख के नीचे से हाथ निकाल कर मेरे स्तन दबाने लगे, कभी नीचे
वाला और कभी ऊपर वाला।
जीजाजी मेरी गर्दन पर भी चुम्बन कर रहे थे और फुसफुसा रहे थे- मुझे कुछ
नहीं करना है, सिर्फ तुम्हें आनन्द देना है !

मैं मना कर रही थी- मुझे छोड़ दो !
पर वो कुछ भी नहीं सुन रहे थे, जोर से मैं बोल नहीं सकती थी कि कहीं मकान
मालिक सुन ना लें, मेरी बदनामी हो जाती कि पहले तो जयपुर बुलाया, कमरे
में सुलाया तो अब क्या हुआ?
मैं कसमसा रही थी ! आज मुझे पता चला कि जीजाजी में कितनी ताकत है, मुझे
छुड़ाने ही नहीं दिया। ऐसे दस मिनट बीत गए, मैं थक सी गई थी, मेरा विरोध
कमजोर पड़ने लगा, उन्होंने जैसे अजगर मुर्गे को दबोचता, वैसे मुझे अपनी
कुंडली में कस रहे थे धीरे धीरे !
उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ! वो बराबर मुझे समझा रहे थे- चुपचाप रहो, मजा
लो ! तुम्हारे पति को गए साल भर हो गया है, क्यों तड़फ रही हो? मैं सिर्फ
तुम्हें आनन्द दूँगा, मुझे कोई जरुरी नहीं है ! और आज अब मैं तुम्हें
छोड़ने वाला नहीं हूँ !
मैं कुछ नहीं सुन रही थी, में तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही
थी। वो थोड़ा मौका दे देते तो मैं कमरे के बाहर भाग जाती पर उन्होंने मुझे
जकड़ रखा था।
फिर उन्होंने मेरे स्तन दबाने बंद किए और अपना हाथ नीचे लाये, मेरी कच्छी
नीचे करने लगे।
मैं तड़फ कर उनके सामने हो गई, मेरी आधी कच्छी नीचे हो गई पर मैंने उनका
हाथ पकड़ लिया और ऊपर कर दिया।
वो मेरे पेट को सहलाने लगे फिर दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया और
पहले वाले हाथ से फिर कच्छी नीचे करने लगे, साथ साथ मुझे सहयोग करने का
भी कह रहे थे।
मैंने नहीं माना और मैंने उनके सामने लेटे लेटे अपनी टांगें दूर दूर करने
के लिए एक टांग पीछे की पर एक टांग मुझे उनकी टांगों के उपर रखनी पड़ी !
वे अपना हाथ मेरी गाण्ड की तरफ लाये जहाँ कच्छी आधी खुली थी और खिंच रही
थी। उनकी अंगुलियों को गाण्ड के पीछे से चड्डी में घुसने की जगह मिल गई।
उन्होंने पीछे से चड्डी में हाथ डाला और मेरी चूत सहलाने लगे जिसे अब वो
सीधे छू रहे थे, वे मेरी चूत के उभरे हुए चने को रगड़ रहे थे। मैं फिर
कसमसा रही थी पर उन्होंने मुझ पर पूरी तरह काबू पा लिया था, एकदम जकड़ा
हुआ था, अब तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। उन्होंने 5 मिनट तक मेरी चूत
के दाने को पीछे से रगड़ा, मेरी छोटी सी चूत में पीछे से अंगुली डालने की
असफल कोशिश भी कर रहे थे !
मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी, मेरी सारी मिन्नतें बेकार जा रही
थी, इतनी मेहनत से हम दोनों को पसीने आ रहे थे, पर पता नहीं आज जीजाजी का
क्या मूड था, मैं उन्हें यहाँ आने का कह कर और होटल में नहीं जाने का कह
कर पछता रही थी। अगर मेरे बस में काल के चक्र को पीछे करने की शक्ति होती
तो मैं पीछे कर उन्हें यहाँ नहीं सुलाती !
खैर अब क्या होना था, मैंने जो इज्जत तीस साल में संभाल कर रखी थी, आज जा
रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी मैंने अपने सारे देवताओ को याद
कर लिया कि जीजाजी का दिमाग बदल जाये और वो अब ही मुझे छोड़ दें, पर लगता
है देवता भी उनके साथ थे।
फिर अचानक वो थोड़े ऊँचे हुए एक हाथ से मुझे दबा कर रखा और दूसरे हाथ से
मेरी चड्डी पिंडलियों तक उतार दी और एक झटके में मेरी एक टांग से बाहर
निकाल दी। अब चड्डी मेरे एक पांव में थी और मेरी चूत पर कोई पर्दा नहीं
था।
उन्होंने मेरी दोनों टांगों को सीधा कर अपने भारी पांव से दबा लिया, फिर
वे एक झटके से उठे और नीचे हुए, उनका लम्बा हाथ मुझे उठने नहीं रहा था,
मेरी टांगें चौड़ी की, एक इस तरफ और दूसरी उस तरफ।
मैं छटपटा रही थी कि अचानक उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत पर लगा दिया। बस
मुंह लगाने की देर थी कि में जम सी गई, मेरा हिलना डुलना बंद !
आज तक किसी ने मेरी चूत नहीं चाटी थी, पिछले एक साल से मैं चुदी नहीं थी,
पिछले आधे घंटे से मैं मसली जा रही थी ! मेरी चूत पर जीजा का मुँह लगते
ही मैं धराशाई हो गई, सब सही-गलत भूल गई, मेरे शरीर में आनद का सोता उमड़
पड़ा, मुझे बहुत आनन्द आने लगा।
जीजाजी जोर-जोर से मेरी चूत चूस रहे थे, चाट रहे थे, हल्के-हल्के कट रहे
थे, मेरे चने को दांतों और जीभ से चिभाल रहे थे, मेरी चूत की फ़ांकों को
पूरा का पूरा अपने मुँह में भर रहे थे, अपनी जीभ लम्बी और नोकीली बना कर
जहाँ तक जाये, वहाँ तक मेरी चूत में डाल रहे थे।
मेरे चुचूक कड़े हो गए थे, मेरे मुँह से सेक्सी आहें निकल रही थी, मैं
उनके सर पर हाथ फेर रही थी, उनके आधे उड़े हुए बालों को बिखेर रही थी !
उन्हें मेरी आहों और उनके बालो में हाथ फेरने से पता चल गया कि अब मुझे
भी मजा आ रहा है, उन्होंने मेरे कमर के पास अपने दोनों हाथ लम्बे करके
मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और मसलने लगे।
मुझे और ज्यादा मजा आने लगा, मैंने उनके मुंह को इतनी जोर से आपनी जांघों
में भींचा कि उनकी साँस रुकने लगी और उन्होंने मेरे स्तन जोर से भींचे और
मेरी चूत में काटा कि मैंने जांघें ढीली कर दी। वो इतनी बुरी तरह से मेरी
चूत को चूस रहे थे कि उनकी लार बह कर नीचे बिस्तर तक पहुँच रही थी।
मैंने जितनी टांगें ऊपर उठा सकती थी, उठा ली और जोर जोर से सिसकारने लगी,
मैं उन्हें जोर से चाटने का कह रही थी।
इस सब को करीब 15 मिनट हुए होंगे कि मेरा पानी उबल पड़ा, उन्होंने मुँह
नहीं उठाया और चाट कर मेरा पूरा पानी निकाल दिया, मैं ठंडी पड़ गई, मुझे
जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया।
वो अब भी चाट रहे थे, मुझे उन पर दया आ गई, मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचना
चाहा पर वो बोले- मुझे सिर्फ तुम्हें आनन्द दिलाना था, मेरी कोई जरुरत
नहीं थी।
पर मैंने कहा- नहीं, आप आओ मेरे ऊपर ! आपने मुझे इतना आनन्द दिया, अब मैं
भी आपको आनन्द देना चाहती हूँ !

अब मैं मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी !
जो जीजा थोड़ी देर पहले मेरी नफरत का केंद्र था, अब मुझे सारी दुनिया से
प्यारा लग रहा था !
तब जीजाजी ने कहा- पहले बाथरूम जाकर आओ !
मैंने कहा मुझे जाने की जरुरत नहीं है आप मुझे कर लो !
उन्होंने कहा- मैं जाकर आता हूँ, फिर तुम जा आना !
मैंने कहा- ठीक है !
वो गए, फिर मैं गई।
जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी
 
तब
जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई ! सब वक़्त की बात है। अब
तक मेरे कमरे का दरवाजा खुला ही था। पहले जीजाजी बाथरूम जाकर आये, फिर
मैं बाथरूम गई, मैंने देखा मेरे मकान मालिक के और उनके बेटों के कमरों
में कूलर चल रहे थे और उनके कमरे में नाईट बल्ब की रोशनी में देखा कि सब
घोड़े बेच कर सो रहे थे।
मैं निश्चिंत होकर अपने कमरे में वापिस आई। कमरे में आने के बाद अब मैंने
दरवाजा ढुका दिया। जीजाजी एक तरफ लेटे थे, मैं जाकर सीधा उनके सीने पर
लेट गई। फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में पकड़ लिया और मुझे चूने लगे,
साथ ही साथ उनका हाथ मेरे पीठ पर भी फिर रहा था।
उन्होंने धीरे से मुझे नीचे लिटा दिया, मैंने उनको अपने ऊपर जोर से पकड़
लिया। वो नीचे होना चाहते थे और मुझे शर्म आ रही थी इसलिए मैं उन्हें
अपने मुँह के पास पकड़े हुए थी। वो मेरे गालों पर चुम्बन देते, थोड़ा थोड़ा
मेरे होंटों को भी चूस रहे थे। मुझे होंट चुसवाना कभी अच्छा नहीं लगता था
क्योंकि मेरी साँस नहीं आती थी, लेकिन जीजाजी थोड़ा सा चूसकर बार बार छोड़
देते थे इससे मुझे साँस लेने का अवसर भी मिल जाता था।
इस बीच वो नीचे सरक गए और मेरी मैक्सी पेटीकोट समेत ऊपर करने लगे, मैं भी
अपनी गाण्ड उठा कर उनकी सहायता कर रही थी।
वो फिर मेरी धोई हुई चूत को सूंघ रहे थे और मैं फिर से उत्तेजित हो रही
थी उनके चूत चाटने के ख्याल से।
पहले उन्होंने धीरे से अपनी जीभ मेरी पूरी चूत पर फेरना शुरू किया मैंने
शर्म से अपनी मैक्सी को अपने मुँह पर ओढ़ लिया। अब मैक्सी और पेटीकोट कमर
से लेकर मेरे मुँह पर ढका हुआ था और मेरी जमा-पूंजी खुली पड़ी थी, जिसे आज
लुटना था और मेरा लुटाने का इरादा था।
अब वो अपनी जीभ मेरे चने पर फिरा रहे थे, कभी हल्का सा दांतों से काट रहे
थे, कभी जीभ को जितना अन्दर ले जा सकते, ले जा रहे थे। मैंने अपनी तीस
साल की जिन्दगी में जो आनन्द नहीं पाया, वो आज पा रही थी।
करीब दस मिनट तक वो चाटते रहे, मैं उनके स्वयम्-नियन्त्रण पर हैरान थी कि
उन्हें यह पूर्व-क्रीड़ा करते करीब एक घंटा हो गया पर वो चुदाई की कोशिश
नहीं कर रहे थे। मैंने आनन्द में अपनी टांगें पूरी ऊँची कर अपनी चूत को
उभार दिया था, वो हाथों से कपड़ो के ऊपर से ही मेरे स्तन दबा रहे थे।
जीजाजी की लुंगी तो पहले ही हट चुकी थी, अब कपड़ों की सरसराहट सुन कर मैं
समझ गई कि वो अपना अंडरवियर उतार रहे हैं। आने वाले वक़्त की कल्पना से
ही मेरे कलेजा धड़क रहा था, मेरी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा था,
आज पहली बार मेरे पति के अलावा कोई दूसरा मेरी सवारी करने की तैयारी में
था।
मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी
तरह से ऊपर थी जो मेरे सर से भी पीछे जा रही थी, दुबला पतला होने का यही
तो फायदा है।
अब वे घुटनों के बल बैठ गए थे और अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने लण्ड पर
लगा रहे थे, थोड़ा मेरी पहले से गीली चूत पर भी लगाया और अपने लण्ड को
मेरी छोटी सी चूत के छेद पर अड़ा दिया।

मुझे अपनी चूत पर उनके सुपारे का कड़ापन महसूस हो रहा था।
मैं सिहर गई।
उन्होंने हल्के से अपने लण्ड को मेरी चूत में ठेला, मेरी चूत ने उनके
सुपारे पर कस कर उनका स्वागत किया। अब उन्हें पता चल गया कि यह किला इतनी
आसानी से फ़तेह होने वाला नहीं है। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था, आनन्द
की अधिकता से मैं अपनी चूत को और ऊँचा कर रही थी पर अब तक सिर्फ उनका
सुपारा ही अन्दर गया था। साँस भर कर फिर उन्होंने धक्का दिया, थोड़ा और
अन्दर घुसा, आनन्द के मारे मेरी हल्की सी किलकारी मुँह से निकली तो
उन्हें जोश आया और थोड़ा पीछे खींच कर फिर दांत भींच कर जोर से धक्का
मारा। अब उनका आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, वो अपने
माथे का पसीना पौंछ रहे थे और मेरे कान में बोले- तेरी चूत इतनी कसी कैसे
है? लगता ही नहीं कि तुम दस साल के बेटे की माँ हो।
मैंने जबाब उनका कान काट कर दिया। मेरे कान काटने से उन्हें फिर जोश आया
और धचाक से अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। अब उनकी गोलियाँ मेरी
गाण्ड से टकरा रही थी।
अब उन्होंने अपने हाथ मेरी गाण्ड के नीचे डाल कर मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए
और धक्के लगाने लगे। मेरी चूत की फांके बुरी तरह से उनके लण्ड से कसी हुई
थी इसलिए वो जब ऊपर होते तो मेरी चूत भी उठ जाती इसलिए वो ज्यादा ऊँचा
होकर धक्के नहीं लगा पा रहे थे। फिर थोड़ी देर में मेरी चूत गीली होने लगी
और इतनी देर में उनका लण्ड भी चूत में सेट हो गया था। मेरी चूत में करीब
दस महीने के बाद लण्ड घुस रहा था, दोस्तो, मैं सच कहती हूँ कि मैंने कभी
अपनी चूत में अंगुली भी नहीं की थी इन दस महीनों में। अब उनका लण्ड आसानी
से मेरी चूत में आ-जा रहा था पर जब मैं मजे में अपनी चूत भींच देती तो
उनकी रफ़्तार धीरे हो जाती, फिर धक्के देने में जोर आता पर वो हचक हचक कर
चोद रहे थे, उनके मुँह से लगातार मेरी तारीफ निकल रही थी- इतनी शानदार
चूत मैंने आज तक नहीं देखी, आज जितना मजा कभी नहीं आया, आज मेरे जिन्दगी
का मकसद पूरा हो गया, तुम मेरी सेक्स की देवी हो, तुम जो चाहे मुझसे ले
लो ! आदि आदि।
और मैं उन बातों से मस्त होकर चुदवा रही थी। करीब दस मिनट ऐसे चोदने के
बाद उन्होंने मेरी टांगें सीधी कर दी और मुझे रगड़ने लगे। 3-4 मिनट के बाद
उन्होंने फिर से टांगें ऊँची कर दी। इस बार मैंने अपनी टांगें उनकी कमर
में कस दी पर 4-5 धक्कों से ही वो थकने लगे तो मैंने फिर से ऊँची कर ली।
अब उनका लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था और मुझे दर्द के साथ
आनन्द भी आ रहा था। मैं झड़ने लगी, मेरे मुँह से गूँ गूँ की आवाजें आ रही
थी और करीब एक मिनट तक मेरा शरीर ऐंठता रहा।
उन्हें पता चल गया था इसलिए वो जोर जोर से चोद रहे थे। फिर मैं अचानक
ढीली पड़ गई और उन्होंने लण्ड बाहर निकाल लिया,
मैंने कहा- आपका आ गया क्या?
उन्होंने कहा- नहीं, अभी कहाँ आएगा !

मुझे बड़ा अचरज हुआ।
उन्होंने कहा- पहले तुम्हें दोबारा गर्म करता हूँ।
उन्होंने थोड़े चुम्बन दिए, स्तन दबाये। उन्होंने मेरी चोली खोलने की
कोशिश क़ी तो मैंने मना कर दिया और कहा- ऊपर से दबा लो, यहाँ पराये घर
में हैं।
फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा और ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। एक हाथ
से मेरे चूत के चने को हल्के हल्के छेड़ रहे थे, उसे गोल गोल घुमा रहे
थे।
 
मुझे आज पता चला कि कोई आदमी इतनी काम कला में निपुण भी हो सकता है !
आज तक मेरे पति ने ऐसा मुझे तैयार नहीं किया था।
मुझे मेरे जीजाजी बहुत प्यारे लग रहे थे कि उन्हें मेरे आनन्द की कितनी
चिंता है और उनमें रुकने का कितना स्टेमिना है।
उनके थोड़ी देर के प्रयास से मैं फिर से गर्म हो गई थी, मैं तब तक तीन बार
झड़ चुकी थी जो मेरी जिन्दगी में पहला मौका था एक रात में। मेरे पति के
साथ तो कभी कभी ही चरम सुख मिलता था।
अब मैं जीजाजी को अपने ऊपर खींचने की कोशिश करने लगी, वे समझ गए,
उन्होंने मेरी सूखी चूत को थूक से गीला किया और अपना लण्ड मेरी चूत में
सरका दिया एक ही झटके में !
मैं थोड़ा उछली फिर शांत हो गई। मेरी टांगें मेरे सिर के ऊपर थी। मेरे
जीजाजी मेरी टांगों नीचे से हाथ डाल कर मुझे दोहरी कर अपने हाथ मेरे वक्ष
तक ले आये और वे धक्के के साथ स्तन भी दबा रहे थे, मेरे आनन्द की कोई
सीमा नहीं थी।
करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने के करीब थी। अब लगातार चुदाई
से मेरी चूत में जलन भी होने लगी थी, चूत कुछ सूज भी गई थी।
मैंने जीजाजी को कहा- आपको कोई बीमारी है क्या? आधे घंटे से चोद रहे हो
और आपके एक बार भी पानी नहीं निकला?
यह सुनकर हँसे और कहा- मेरा अपने दिमाग पर काबू है, चाहूँ तो 5-7 मिनट
में पानी निकाल सकता हूँ और चाहूँ तो 30-40 मिनट तक भी चोद सकता हूँ।

मुझे बड़ा अचम्भा हुआ !
फिर मैंने कहा- मैं थक गई हूँ, ऐसा लगता है कि मुझे 3-4 जनों ने मिलकर
चोदा है, अब आप अपना पानी निकाल लो !
उन्होंने कहा- ठीक है, तुम दो मिनट तक पड़ी रहो।
फिर उन्होंने तूफानी रफ़्तार से धक्के मारने शुरू किये। मैं दांत भींच कर
सहन कर रही थी राम राम करते।
फिर उनका पानी छूटा तो उन्होंने मुझे इतनी जोर से भींचा कि मेरी हड्डियाँ बोल उठी।
आज मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके
प्रति प्रंशसा का भाव जगा।
कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं
उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है
तो सही।
फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु
किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया
है।
पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।
मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई
थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।
मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।
उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब
सो जाओ।मैंने उन्हें कहा- ऐसे मेरी नींद खुल जाती है तो फिर मुश्किल से
ही आती है्।
तो उन्होंने मेरी तरफ मुँह करके मुझे चूम लिया और कहा- चलो अब नहीं सोते
हैं, बातें करते हैं।

अब उन्होंने पूछा- तुम्हें कैसा लगा?
तो मैंने कहा- मुझे नहीं पता कि अच्छा हुआ या बुरा !
फिर उन्होंने मुझे कहा- मुझे डर लग रहा था कि कहीं तुम कोई उल्टा कदम न
उठा लो लेकिन अब जब तुम्हें खुश देखा तो मेरी परेशानी ख़त्म हो गई !
फिर उन्होंने पूछा- तुम मान कैसे गई?
तो मैंने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप ऐसा करोगे तो मैं आपको यहाँ
बुलाती ही नहीं और यह अनजान शहर नहीं होता, मेरा या आपका घर होता तो मैं
आपको भगा देती। पर खैर मेरी किस्मत में ही यही लिखा था। आप तो सो गए थे,
फिर यह आपको क्या सूझा?
तो उन्होंने कहा- तुमने जो मैक्सी पहनी थी, उसकी बांहों के पास कट है, जब
भी तुम मोबाईल पर बात करती वो कंधे नंगे हो जाते और मैं किसी के कंधे
देखकर उत्तेजित हो जाता हूँ। पहले तो मैं सो गया पर रात को दो बजे मुझे
पेशाब लगा, तब तुम नींद में मेरे नजदीक सो रही थी। फिर मेरी वासना जाग
उठी और मेरे दिमाग में यही था कि इसका पति काफी समय से बाहर है, मुझे
इसको संतुष्ट करना है। इसलिए मैंने तुम्हें पकड़ लिया।
फिर उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने बताया कि पिछले छः माह से मेरे पति ने
फोन नहीं किया इसका मुझे गुस्सा था और जब मैं नौकरी पर जाती हूँ तो सबकी
नज़र मुझ पर होती है तो मैंने सोचा कि सेक्स करना ही है तो जीजाजी के साथ
ही करूँ, कम से कम मेरे परिवार के तो हैं, मेरी बदनामी तो नहीं करेंगे।
और जब आपने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तो मैं पागल हो गई और मैंने सारा
विरोध छोड़ दिया। फिर जब आप अपना नहीं कर रहे थे तो मुझे आप पर दया आई कि
बेचारे ने चाट कर इतना आनन्द दिया और इतनी दूर से आए हैं तो इन्हें भी
इनाम मिलना चाहिए, इसलिए मैंने आपको अपने ऊपर खींचा।
बातें करते जा रहे थे और मेरे जीजाजी मुझे सहलाते भी जा रहे थे। हमें
बाते करते करीब 20 मिनट हो गए थे कि अचानक वे उठे, अपनी चड्डी एक टांग से
बाहर निकाली, अपने सुपारे के ऊपर थूक लगाया और मेरी चूत में डाल दिया।
मैं चिहुंक उठी क्योंकि सूजन से मेरी चूत का छोटा सा दरवाजा भी बंद हो
गया था पर सुपारा घुसा तब ही दर्द हुआ, अन्दर जाने के बाद अच्छा लगा।
मैंने कहा- अभी तो आपने किया है ! फिर से?
उन्होंने कहा- मुझे सिर्फ़ तुम्हें आनन्द देना है, मेरे लिए जरुरी नहीं है !
और इस बार वो मेरे ऊपर आड़े लेट गए उनका लण्ड घुसा हुआ था और उनका सर और
पांव मेरे ऊपर नहीं थे, वे मुझे टेढ़े होकर चोद रहे थे, उनके लण्ड का बीच
का हिस्सा बार बार मेरे चूत के चने से घर्षण कर रहा था।
 
मुझे फिर आनन्द
आने लगा और मैंने उनको मेरी टांगें उठा कर चोदने को कहा।
फिर उन्होंने मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी टांगें अपने कंधों पर रख ली और
जोर-जोर से चोदने लगे।
मेरी सांसें तेज हो रही थी, मैं आनन्द से धीमे-धीमे चिल्ला रही थी,
उन्हें पता था इसलिए वो बिना रहम किये जबरदस्त तरीके से धक्के मार रहे थे
कि मेरी चूत से आनन्द का सोता उमड़ पड़ा और मैं ठंण्डी पड़ गई।

उन्होंने एक झटके से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
मैंने पूछा- क्या हुआ? आपके भी आ गया?
तो उन्होंने कहा- नहीं, मुझे निकालना नहीं है, मैं तो तुझे आनन्द दे रहा
था, मेरी जरुरत नहीं है।
मुझे पहली बार पता चला कि इस आदमी में कितना आत्मनियन्त्रण है !
हम फिर से लेट कर बातें करने लगे। करीब साढ़े चार बज गए थे। साथ ही साथ
जीजाजी के हाथ मेरे पूरे बदन पर फिरा रहे थे, मैं पूरी बेशरम हो गई थी
मेरी मैक्सी पूरी ऊपर थी, चड्डी का पता नहीं था और एक टांग उनके ऊपर रख
कर अपनी नंगी चूत उनकी जांघ पर रगड़ रही थी।
सुबह के करीब पाँच बजे फिर जीजाजी ने मेरी चूत टटोलनी शुरू की और एक बार
फिर मैं चुद रही थी। उन्होंने मुझे घोड़ी बनने को कहा पर मैंने मना कर
दिया, मुझे डर था कि अब मकान मालिक आदि जागने वाले हैं।
उन्होंने कहा कि जैसे कुत्ता कुत्ती के पीछे पड़ता है, वैसे मैं तेरे
पीछे पड़ा हूँ और जबरदस्ती चोद रहा हूँ !
मुझे भी ऐसे ख्याल आये और मैं बुरी तरह से उत्तेजित हो गई मैंने उनको
बुरी तरह से जकड़ लिया और वो पूरे बीस मिनट तक मेरी चूत का बाजा बजाते
रहे।
मैं इस बीच दो बार झड़ चुकी थी।
फिर उन्होंने अचानक अपना लण्ड बाहर निकाला और मेरे कमरे में जिस तरफ मटकी
रखती हूँ, वहाँ पानी जाने की नाली है, वहाँ गए।
मैंने कहा- ऐसे क्यों निकाला? कंडोम तो होगा ना !
उनके जबाब से मेरा कलेजा धक से रह गया कि कंडोम तो दोनों बार लगाया ही
नहीं, अँधेरे में मिला ही नहीं ! कहाँ गया पता नहीं !
मुझे फिकर हुई तो उन्होंने कहा- मैंने पहले भी बाहर ही निकाला है, चिंता मत करो !
तब तक पौने छः हो गए और मैं नित्य-क्रिया के लिए उठ गई।
सुबह का प्रकाश फैला तो मैं जीजाजी से और जीजाजी मुझसे नज़रें चुराने लगे।
फिर मैंने जीजाजी को चाय पिलाई, मैं जीजाजी से आँखें चुरा रही थी, वे भी
मुझसे आँखें चुरा रहे थे।
मैंने चाय बनाई और उनकी तरफ सरका दी। उन्होंने भी चुपचाप चाय उठाई और पी
ली। फिर वो अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चले गए और वहीं से शर्ट और जींस
पहन कर ही आये। मैंने भी उन्हें कंघा, तेल आदि दिए और अपने कपड़े उठा कर
बाथरूम में चली गई, अपने पाप धोने पर वहाँ मल-मल कर नहाने के बाद भी सोच
रही थी कि सिर्फ तन ही धुल रहा है मन नहीं।
मैं सब घटनाओं को सोच रही थी कि यह क्या हो गया? मैंने अपने जिंदगी में
पहली बार दूसरे मर्द के साथ सेक्स किया, वो भी अपने जीजाजी के साथ !
मैं सोच रही थी कि मैंने अपनी दीदी की अमानत पर डाका डाला है।
पहले मैंने सोचा था कि जीजाजी को अपने साथ में काम करने वालों से
मिलवाऊँगी पर अब मन में अपराध की भावना आ गई और सोचा अब तो कमरे से बाहर
ही कैसे जाऊँगी। मैंने सोच लिया अब किसी को कहूँगी ही नहीं कि जीजाजी आये
थे।
मैं विचार कर रही थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैंने तो उनको बहुत
रोका पर एक तरह से तो उन्होंने मेरा बलात्कार ही किया था।
मैंने सब इश्वर की इच्छा मान ली कि उसकी मर्जी थी कि तीस साल की उम्र में
मेरा धर्म भ्रष्ट होना था, मुझे जीजा अच्छे भी लगे थे कि काश ये मेरे
जीजाजी नहीं होते तो दीदी के बारे में तो सोचना नहीं पड़ता।
फिर मैंने सोच लिया कि जो हो गया सो हो गया, अब नहीं होना चाहिए, रात गई और बात गई।

ऐसा सोचते मैं नहा कर अपने कमरे में आ गई।
जब मैं नहा कर कमरे में गई तो मैंने देखा कि मेरे कमरे दूसरा गेट जो बाहर
गली में खुलता है उसमें से एक कुत्ता कमरे में घुस गया है और कमरे में
रखे बर्तनों को सूंघ रहा है।
मैं जोर से कुत्ते पर चिल्लाई तो कुत्ता तो भाग गया और जीजाजी हड़बड़ा कर उठ गए।
उन्होंने कुत्ते को भागते देखा तो लजा कर कुछ डर के साथ बोले- सॉरी !
मुझे नींद आ गई !
इस सारे घटनक्रम पर मेरी हंसी छुट गई। मुझे यह अच्छा लगा कि शेरदिल
जीजाजी जो किसी से नहीं डरते हैं, मुझसे डर रहे हैं, आज तक मुझे उनसे डर
लगता था।
मुझे हँसता देख कर वो भी मुस्कुरा दिए और कमरे का वातावरण कुछ हल्का हो गया।
फिर मैं नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी और वो बाज़ार चले गए। मैंने खाना
बनाया तब तक वो भी बाज़ार से मिठाई, नमकीन और फल लेकर आ गए।
अब हम दोनों कुछ राहत महसूस कर रहे थे।
फिर मैंने उन्हें कहा- नाश्ता कर लो !
तो उन्होंने कहा- हम साथ ही खायेंगे !
फिर हम दोनों ने नाश्ता किया, ज्यादा बातचीत नहीं की और नाश्ते के बाद
फिर दूर दूर लेट गए। मेरे कमरे का घर के अन्दर वाला गेट खुला था और मकान
मालिक की बहू एक दो बार देख कर भी जा चुकी थी।जीजाजी सो गए जींस शर्ट
पहने हुए ही। और ऐसे सोये कि शाम को चार बजे जगे।
तो मैंने चाय बना कर पिलाई फिर मैं अपने ऑफिस का काम करने लगी। एक दो
बातें उन्होंने मेरे काम के बारे में पूछी फिर उन्होंने अपना बटुआ निकाला
और दो हज़ार हज़ार के नोट मुझे देने लगे।
मैंने मना किया तो कहा- अच्छी सी साड़ी ले लेना !
बहुत कहने पर मैंने ले लिए। उनके पास दस दस के नोट थे तो मैंने कहा मुझे
सौ रूपये खुले दे दो !
उन्होंने दे दिए, मैंने सौ का नोट देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया।
मैंने कहा- इतने दिलेर हो तो पाँच-दस हज़ार और दे दो !

वो सचमुच देने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया।
वो कहने लगे- जो तुमने मुझे दिया है वो अनमोल है, तुम्हारे लिए रूपये तो
क्या जान भी हाजिर है।
मैं इतना सुनकर भावविभोर हो गई और कहा- नहीं मुझे जान नहीं आप जिन्दे ही चाहिएँ।
तभी दीदी का फोन आया, उन्होंने बात की, उसने पूछा- कब आ रहे हो?
तो जीजाजी बोले- शाम को छः बजे गाड़ी है, वो गाँव रात बारह बजे पहुँचेगी।
तो दीदी ने कहा- स्टेशन गाँव से इतनी दूर है, रात को कौन लेने आएगा? आप
फिर सुबह ही आना !
जीजाजी ने कहा- ठीक है !
फिर दीदी ने मुझसे बात की, मैंने उन्हें कहा- तुम चिंता मत करो, आज उसी
होटल में रह जायेंगे, कल आ जायेंगे।
तो दीदी ने कहा- अपने जीजाजी को सब जगह घुमा देना !
मैंने कहा- तुम चिंता मत करो !
फिर फोन रख दिया। अब मैंने सोचा कि आज फिर जीजाजी रुकेंगे !
इस बात की ना तो ख़ुशी हो रही थी ना दुःख।
 
अधूरी जवानी बेदर्द कहानी--3

तभी होटल वाले का फोन आ गया- मैडम जी, आपके जीजाजी यहीं हैं क्या? या चले गए?

मैंने कहा- यहीं हैं।
तो उन्होंने कहा- खाना यहीं खाना है !
मैंने कहा- ठीक है, पर ये प्याज-लहसुन नहीं खाते !
उसने कहा- आप चिंता न करें, हम जैन खाना बना देंगे।
शाम सात बजे हम होटल के लिए रवाना हुए। आज मैंने सलवार-कुर्ती पहनी थी जब
मैं कपड़े बदलने के लिए बाथरूम जा रही थी तब जीजाजी ने कहा था- अब तो मेरे
सामने ही बदल लो !मैंने शरमा कर मना कर दिया और मैं बाथरूम से ही कपड़े
बदल कर आई थी।
सलवार कुर्ती में मैं कम से कम दस साल छोटी लग रही थी, मैं वैसे ही पतली
हूँ इसलिए कॉलेज की छात्रा सी लग रही थी, जीजाजी तो देखते ही रह गए और
उनकी निगाहें मुझ से हट ही नहीं रही थी, वो मेरी तारीफ पर तारीफ किये जा
रहे थे।
मैं काफी कुछ करीना की तरह लगती ही हूँ, ऐसा कई लोगो ने मुझे कहा था,
जीजाजी की तारीफें सुन कर मुझे ख़ुशी हो रही थी और मैं शरमा भी रही थी।
99 प्रतिशत औरतें तारीफ पर खुश होती हैं, भले ही झूठी ही हो, वैसे मेरी
तो वो सच्ची तारीफ ही कर रहे थे।
वो अवाक से थे सलवार कुर्ती में मेरी जवानी देख कर !
और हम बाज़ार में चल रहे थे मुझे लग रहा था कि अकेले होते तो वो मुझे मसल
देते। सारे समय उनकी निगाहें मुझ से हट नहीं रही थी।
होटल पहुँचे तो वहाँ साहब भी आये हुए थे, वो होटल के लॉन में कई लोगों से
घिरे हुए बैठे थे।
मैं सीधे होटल के अन्दर आ गई और जीजाजी के साथ कुर्सी पर बैठ गई।
होटल वाले ने आकर कहा- मैडम जी, साहब भी आये हुए हैं।
मैंने कहा- मैंने देख लिया है और उन्होंने भी हमें देखा है।
थोड़ी देर में साहब भी अन्दर आ गए और मेरे जीजाजी से हाथ मिला कर अपना
परिचय दिया। जीजाजी ने भी अपना परिचय दिया और वे बातें करने लगे, मैं
सिर्फ सुन रही थी। आज मुझे पता चला कि जीजाजी बोलने में कितने होशियार
हैं। उन्होंने साहब को भी प्रभावित कर दिया, मैं भी उनकी तरफ प्रशंसात्मक
दृष्टि से देखती रही।

तब होटल वाले ने कहा- आप सब खाना खा लीजिए।
तो साहब बोले- मैंने खाना अपने बंगले में बनवा लिया है, आप भी चलो, वहीं
खाना खाते हैं।
मैंने मना कर दिया, मुझे पता है कि वे मांस-मच्छी खाते हैं, मीणा हैं और
जीजाजी तो प्याज भी नहीं खाते।
फिर साहब चले गए और हम खाना खाने बैठे।
होटल मालिक भी हमारे साथ ही बैठा, उसने जीजाजी को बीयर को पूछा। मैंने
जीजाजी की तरफ देखा, जीजाजी ने मना कर दिया।
होटल वाला हंसा- कहीं आप साली जी से तो नहीं डर रहे हैं?
उन्होंने कहा- नहीं !
होटल वाला भी बड़ा आदमी था, उम्र में भी मुश्किल से 25 साल का था और मेरी
बहुत इज्जत करता था।
खाना खाने के बाद उसने पान का पूछा, उसको भी हमने मना कर दिया।
फिर उसने कहा- जीजाजी, आप मैडम के जीजाजी हैं तो हमारे भी जीजाजी हैं आप
आज यहीं सो जाओ मेरे होटल में ! मैडम का कमरा तो छोटा है !
तब मैं बीच में बोली- नहीं, वहाँ मकान मालिक का कमरा ख़ाली है, ये वही सोते हैं।

तो उसने कहा- ठीक है।
उसने खाना खाने आने के लिए जीजाजी को धन्यवाद दिया और कहा- कभी इधर आना
हो तो यहीं आना, आपका स्वागत है।
मुझे भी बड़ी ख़ुशी हुई उसका व्यवहार देख कर ! भले ही वो साहब के कारण था।
फिर हम वापिस अपने कमरे में आ गए। मैं अपनी मैक्सी लेकर बाथरूम में चली
गई बदलने के लिए, तब तक जीजाजी ने भी कपड़े उतार कर लुंगी लगा ली।
मैं भी कमरे में आई और बत्ती बुझा कर लेट गई।
मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर दिया जबकि पिछली रात मैंने पूरा
दरवाज़ा खोल रखा था अपनी असुरक्षा की भावना के कारण।
और जीजाजी ने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तब दरवाजा खुला हुआ ही था पर मेरा
कमरा एक तरफ अलग को था कोई चल कर आये तभी आ सकता है।
जीजाजी ने जब मुझे पकड़ा तो कमरे की रोशनी तो वैसे भी बन्द थी और रात के
दो-ढाई बजे थे, किसी के देखने का कोई सवाल ही नहीं था, पर जब उन्होंने
मुझे चोदना शुरू किया तब उन्होंने गेट को थोड़ा ढुका दिया था। पर आज कोई
ऐसी बात नहीं थी इसलिए मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर कुण्डी लगा
ली थी, जीजाजी उस बिस्तर पर एक तरफ लेटे हुए थे और एक तरफ मैं भी लेट गई।
मैंने जिंदगी में कभी सेक्स के लिए कभी पहल नहीं की थी, अगर वो चुपचाप
रात भर सोये रहते तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं भी आराम से सो
जाती।
मेरी सक्रिय यौन जीवन को काफ़ी साल हो चुके थे पर मैंने अपने पति से भी
कभी पहल नहीं की, सेक्स मुझे कभी अच्छा ही नहीं लगा था।
हाँ जब वो छेड़ना शुरू करते तो उनकी संतुष्टि कराते कराते कभी मुझे भी मज़ा
आ जाता पर मेरे लिए यह कोई जरुरी काम नहीं था।
मैं सीधी सो रही थी कि जीजाजी ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे भी अपनी तरफ
मोड़ लिया और बांहों में भर लिया।
मैं थोड़ी कसमसाई, फिर मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। मुझे पता चल गया
था कि अब इनको नहीं रोक सकती, जहाँ मैं और वो तन्हाई में हैं तो मेरा
विरोध कोई मायने नहीं रखता, रात के अँधेरे में जब दो जवान जिस्म पास हों
तो सारे इरादे ढह जाते हैं।
अब मुझे दीदी नहीं दिख रही थी, जीजाजी नहीं दिख रहे थे दिख रहा तो मेरा
प्यारा आशिक दिख रहा था जिसने मुझे जिंदगी का वो आनन्द दिया था जिससे मैं
अब तक अनजान थी।
जीजाजी मेरे गले गाल और कंधे पर चुम्बनों की बौछार कर रहे थे, उन्होंने
कई बार मेरे लब भी चूसने चाहे पर मैंने उनका मुँह पीछे कर दिया, मुझे ओंठ
चूसना-चुसवाना अच्छा नहीं लगता था, एक तो मेरी साँस रुक जाती थी दूसरा
मुझे दूसरे के मुँह की बदबू आती थी।
जीजाजी मेरे सारे बदन पर हाथ फेर रहे थे। मैंने मैक्सी खोली नहीं थी, ना
ही ब्रेजियर खोला, वो ऊपर से ही मेरे छोटे छोटे नारंगी जैसे स्तन दबा रहे
थे, मेरे शरीर पर बहुत कम बाल आते हैं, मेरे साथ वाली लड़कियाँ पूछती हैं
कि मैंने हटवाए हैं क्या? जबकि कुदरती मेरे बाल कम आते हैं टाँगों पर तो
रोयें भी नहीं हैं थोड़े से जहाँ आते हैं वो ऊपर की तरफ ! चूत तो वैसे भी
मेरी चिकनी रहती है।
मेरे जीजाजी मेरे चिकने बदन की तारीफ करते जा रहे थे और हाथ फेरते जा रहे
थे। उनका हाथ मेरे चिकने बदन पर फिसल रहा था, मेरी मेक्सी कमर पर आ गई
थी, उनकी लुंगी भी फिसल कर हट गई थी, वे सिर्फ चड्डी पहने हुए थे।
 
फिर वे थोड़ा ऊँचे हुए और अपनी अंगुली से मेरा छेद टटोला और अपना सुपारा
छेद पर भिड़ा दिया।
मैंने भी उनके लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए अपनी चूत को ढीला छोड़ा
और थोड़ी अपनी गाण्ड को ऊँची की, मेरी दोनों टांगें तो पहले से ही ऊँची
थी।
जीजाजी ने अपने दोनों हाथ मेरे चूतड़ों के नीचे ले जाकर मेरी चूत को और
ऊँचा किया और एक ठाप मारी।
थूक से और मेरे पानी से गीली चूत में उनका लण्ड गप से आधा घुस गया। मुझे
थोड़ा दर्द हुआ क्योंकि मेरी चूत के पपोटे पिछली चुदाई की वजह से थोड़े
सूजे हुए थे। पर जब लण्ड अन्दर घुस गया तो फिर मेरा दर्द भी ख़त्म हो गया
और मेरे बदन में आनन्द की हिलोरें उठने लगी।
जीजाजी ने हल्का सा लण्ड पीछे खींचा और फिर जोर से धक्का मारा, मैं सिहर
उठी, उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी से टकरा गया। उनका लण्ड झड तक मेरी चूत
में घुस चुका था, उन्होंने पूरा घुसा कर राहत की साँस ली और मैंने अपनी
चूत का संकुचन कर उनके लण्ड का अपनी चूत में स्वागत किया जिसे उन्होंने
अपने लण्ड पर महसूस किया। जबाब में उन्होंने एक ठुमका लगाया।
मैंने साँस छोड़ कर उनको स्वीकृति का इशारा दिया और उन्होंने घस्से लगाने
शुरू कर दिए। मैंने अपनी आँखों पर वहीं पड़ी अपनी चुन्नी ढक ली और आनन्द
लेने लगी, मुँह ढक लेने से शर्म कम लगती है।
और चुन्नी के अन्दर से उनको कभी कभी चूम भी लेती थी। उन्होंने कस कर दस
मिनट तक धक्के लगाये, फिर मेरी टांगें सीधी कर दी, अपने दोनों पैर मेरे
पैरों पर रख दिए और अपने पैर के अंगूठों से मेरे पैर के पंजे पकड़ लिए और
दबादब धक्के मारने लगे। दोनों पैर सीधे रखने की वजह से मेरी चूत बिल्कुल
चिपक गई थी और उनका लण्ड बुरी तरह से फंस रहा था।
थोड़ी देर में ही उन्हें पता चल गया कि इस तरह तो वो जल्दी स्खलित हो
जायेंगे तो उन्होंने फिर से अपने पैर मेरे पैरों से हटा कर बीच में किये
और मेरे कूल्हे पर हल्की सी थपकी दी। मैं उनका मतलब समझ गई और फिर से
अपनी टांगें ऊँची कर दी।
इतनी देर की चुदाई के बाद मेरा पानी निकल गया था और फिर उन्होंने अपना
लण्ड फिर से बाहर निकाला और अपनी थूक से भरी जीभ मेरी चूत पर फिराई।

मैंने कहा- धत्त ! बड़े गंदे हो ! अब वहाँ मुँह मत लगाओ !
तो उन्होंने कहा- पहले लगाया तब?
मैंने कहा- अब आपका लण्ड घुस गया है, अब नहीं लगाना !
उन्होंने कहा- मैंने पहले तेरी चूत चाटी, अब अपने लण्ड का भी स्वाद ले रहा हूँ !
पर मैंने कहा- नहीं अब आप मुझे चूमना मत !
उन्होंने कहा- मुझे तो चोदना है, चूमने की जरुरत नहीं है।

मैंने कहा- ठीक है !
एक बार फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में फंसा दिया। सुपारा घुसा तब
थोड़ा दर्द हुआ फिर सामान्य हो गया।
अचानक मुझे याद आया, मैंने पूछा- कंडोम लगाया या नहीं?
उन्होंने कहा- नहीं !
मैंने उचक कर कहा- तो फिर अपना लण्ड बाहर निकालो और कंडोम पहनो !
उन्होंने हंस कर कहा- अभी पहन लिया है, चैक कर लो !
मैंने कहा- मुझे आपकी बात का विश्वास है !
उन्होंने कहा- नहीं, चैक करो !
और चोदते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मेरी अंगुलियों से अपने लण्ड को
छुआ दिया। कंडोम पहना हुआ थाम मेरी अंगुली आधे लण्ड को छू कर रही थी और
अंगुली से घर्षण करते हुए उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब जा रहा था।
उन्होंने कहा- अपने हाथ से चूत पर पहरा रखो कि यह अन्दर क्या घुस रहा है !
मैंने कहा- मेरे हाथ से तो अब यह घुसने से नहीं रुकेगा !
हालाँकि उनके कहने से मैंने हाथ थोड़ी देर अपनी चूत के पास रखा। फिर मुझे
उनकी बातों से आनन्द आने लग गया और मैंने उनको कमर से पकड़ लिया।
करीब बीस मिनट से वो मुझे लगातार चोद रहे थे पूरी गति से ! उनके माथे से
पसीना चू रहा था जिसे वो अपनी लुंगी से पौंछ रहे थे पर कमर लगातार चला
रहे थे।मेरी चूत में जलन होने लगी थी और मैं उन्हें अपना पानी जल्दी
निकाल कर मुझे छोड़ने का कह रही थी। वे भी मुझे बस दो मिनट- दो मिनट का
दिलासा दे रहे थे पर उनका पानी छुटने का नाम भी नहीं ले रहा था।
मैंने उन्हें धक्के देने शुरू किये तो वो बोले- अपना पानी निकले बिना तो
लण्ड बाहर निकालूँगा नहीं ! और तू ऐसे करेगी तो मुझे मज़ा नहीं आएगा और
सारी रात मेरा पानी नहीं निकलेगा।
तो मैं डर गई, मैंने कहा- मैं क्या करूँ कि आपका पानी जल्दी निकल जाये?
तो वो बोले- तू नीचे से धक्के लगा और झूठमूठ की सांसें-आहें भर तो मेरा
पानी निकल जायेगा।मरता क्या ना करता ! उनके कहे अनुसार करने लगी। उन्हें
जोश आया और वे तूफानी रफ़्तार से मुझे चोदने लगे। अब वे भी कुछ थक गए थे
और अपना पानी निकालना चाहते थे। मेरी झूठ-मूठ की आहें सच्ची हो गई और
मुझे फिर से आनन्द आ गया, मैं जोर से झड़ने लगी और मैंने उन्हें जोर से
झकड़ लिया।
उनका सुपारा उत्तेजना से कुत्ते की तरह फ़ूल गया था, वे बिजली की गति से
धक्के लगा रहे थे, उनके मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी और मुझे चोदने
के साथ वो मेरी माँ को चोदने की बात भी कर रहे थे, साथ ही कह रहे थे-
साली आज तेरी चूत फाड़ कर रहूँगा ! बहुत तड़फाया है तूने साली ! बहुत मटक
मटक कर चलती थी मेरे सामने ! आज तेरी चूत लाल कर दूँगा तुझे और कोई आशिक
बनाने की जरुरत ही नहीं है, मैं ही बहुत हूँ !
ऐसी कई अनर्गल बातें करते हुए उन्होंने एक झटका खाया और मुँह से भैंसे की
तरह आवाज निकली।
मुझे पता चल गया कि जिस पल का मैं इंतजार कर रही थी, आखिर वो आ गया।
मैंने अपनी इतनी देर रोकी साँस छोड़ी। फिर भी उन्होंने धीरे धीरे आठ दस
धक्के और लगाये और मेरी बगल में पसर गए और गहरी गहरी सांसें लेने लगे।
वो पसीने से तरबतर हो गए थे, करीब तीस मिनट लगातार चुदाई की थी उन्होंने
! उन पर अब उम्र भी असर दिखा रही थी !
तो उनको अपनी उखड़ी सांसें सही करने में 4-5 मिनट लगे फिर 2-3 लम्बी लम्बी
सांसें लेकर वो बाथरूम की तरफ चले गए।
मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा था, मेरा कई बार पानी निकल गया था। जीजाजी
बाथरूम से वापिस आये और लेट गए। मैंने सरक कर उनके सीने पर अपना सर टिका
दिया क्यूंकि वो मुझे बहुत प्यारे लग रहे थे, उनका सीना अभी तक बहुत तेज
साँसें भर रहा था।
 
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