hotaks444
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अंजानी राहें ( एक गहरी प्रेम कहानी )
सपने जो देखे इन आँखों ने ख्वाहिश यही होती है कि उन सपनो को जिया जाय. चाहत की उड़ान हमेशा ही एक सुख्मयि अहसास होती है. वैसवी राजधानी एक्सप्रेस मे बैठ कर बस आने वाले दिनो के बारे मे सोच रही थी और मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
बनारस की तंग गलियों से निकल कर वैसवी अपने सपने आँखों मे लिए फॅशन डिज़ाइनिंग करने देल्ही जा रही थी.
वैसवी जिन तंग गलियों से निकल कर आई थी वहाँ आज भी गाँव का ही महॉल था. गंगा घाट पर बसा वाराणसी का शहर यूँ तो भारत के फेमस सहरों मे से एक है लेकिन इसके इलाक़े अब भी गाँव जैसे ही है.
मकान के उपर मकान मुश्किल से एक आदमी पास होने वाली वो तंग गलियाँ और ऐसी ही एक गली से निकल कर आई थी वैसवी. उसने जब नॅशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ फॅशन डिज़ाइनिंग कंप्लीट की तो घर मे ख़ुसीयों का महॉल छा गया.
मिड्ल क्लास से बिलॉंग करने वाली वैसवी एक बहुत ही तेज-तर्रार लड़की थी. खुद को काफ़ी मेनटेन किए हुए थी और अपनी गली के लड़कों के सपनो की रानी थी. लंबी हाइट, गोल चेहरा बदन भरे हुए और हर एक अंग तराशा देखने वाले हमेशा उसे देख बस आहह भरा करते थे.
वैसवी कभी भी अच्छी स्टूडेंट नही रही हमेशा आवरेज क्लास ही रही थी. स्कूलिंग पापा के इन्फ्लुयेन्स के कारण पास कर गयी और कॉलेज अपने इन्फ्लुयेन्स के कारण.
हमेशा सपनो की दुनिया मे रहने वाली एक लड़की जिसके पास खुद का अपना बंग्लॉ हो, गाड़ी हो नौकर चाकर और शॉपिंग पर लुटाने के लिए लाखों रुपये.
हालाँकि परिवार काफ़ी ही इज़्ज़तदार और संस्कारी था पर वैसवी को ये चस्का कॉलेज मे आने के बाद अपनी दोस्त नीमा से लगा.
सहर के नामचिह्न रहीश आमोद पांडे की इकलौती लड़की जिसके पास लुटाने के लिए लाखों की दौलत थी और आगे पीछे करने वाले कई लोग. हाई-स्टॅंडर्ड लाइफ स्टाइल और कुछ भी करो कोई रोकने वाला नही. बात तब की है जब वैसवी अपने कॉलेज के फर्स्ट एअर मे थी.
फर्स्ट एअर और कॉलेज का पहला दिन.......
"जल्दी कर माँ आज क्या पहले ही दिन लेट करवाएगी"
माँ.... रुक जा वैसवी पहला दिन है आरती लेती जा
वैसवी.... माँ तुम्हारी आरती के चक्कर मे मैं कहीं लेट ना हो जाउ.
माँ.... रुक जा पहला दिन है वैसे भी कुछ नही होना है. वहाँ जाकर वैसे भी क्लास ढूँढने और अपनी जगह पहुँचने मे तुझे टाइम लग जाएगा.
अब माँ को कौन बताए कि वैसवी कितनी उत्साहित थी अपने कॉलेज का पहला दिन देखने के लिए. पिताजी लेक्चरर थे इसलिए महारानी का अड्मिशन वाराणसी के टॉप कॉलेज मे हो गया. वरना तो इनका अड्मिशन किसी लोवर कॉलेज मे होता.
ब्लू स्कर्ट घुटनो के नीचे तक एक टाइट शर्ट जिनमे इसके अंगो के उभार के शेप बिल्कुल समझ मे आते हुए और रेड वाइट शेड की एक टाइ पहने वैसवी गेट के पास खड़ी इंतज़ार कर रही थी.
माँ आरती की थाली जब लेकर अपनी बेटी के पास पहुँची और उसका पहनावा देखी तो अचंभित हो गयी .....
"करमजली ऐसे शर्ट पहन कर तू कॉलेज जाएगी. तुझ मे थोड़ी भी अकल है कि नही"
वैसवी अपनी माँ की बात को नज़रअंदाज करते हुए ..... "रहने वाली तो गाँव की ही हो ना तो तुम्हारी सोच वहीं की रहेगी" बस इतना बोल आरती की थाल पर हाथ घुमाई और घर से बाहर निकल गयी.
पीछे से माँ ने कितनी भी रोकने की कोसिस की पर उसके कानो मे जु तक नही रेंगी. घर से कुछ आगे जाते ही वैसवी एक गली के किनारे खड़ी होकर अपने स्कर्ट के दो फोल्ड उपर से मोड़ लेती है और शर्ट का एक पार्ट बाहर निकाल लेती है बिल्कुल किसी फिल्म के स्कूल गर्ल की तरह.
दिखावे की अंधी दौड़ मे बहती वैसवी बिल्कुल अपने परिवार की बातें भूल चुकी थी. जो पहले घुटने से नीचे तक का पहनावा था वो अब जांघों तक चला आया. नुक्कड़ तक पहुँची तो उसी के मोहल्ले का लड़का जो हम उम्र था वो मिल गया.
आज उसके भी कॉलेज का पहला दिन था. वो अपने घर से गाड़ी निकाल ही रहा था कि वैसवी पर उसकी नज़र चली गयी. पहली झलक जब उसने देखा तो उसकी नज़र चेहरे तक पहुँच ही नही पाई.
हालाँकि दोनो साथ मे ही क्लासमेट थे पर आज तो वैसवी जैसे बिजली गिरा रही थी ....
"कहाँ जा रही हो वैसवी" उस लड़के ने बाइक को स्टॅंड पर लगाते हुए पूछा
वैसवी.... तुम से मतलब राकेश मैं कहीं भी जाउ.
राकेश.... भड़कती क्यों है मैं तो वैसे ही पूछ रहा था.
वैसवी.... चल-चल ये तेरा वैसे ही पूछना ना किसी और को सुना ज़्यादा मेरे हमदर्द बन ने की कोसिस ना कर.
वैसवी की बातें सुन राकेश का मूह छोटा हो गया. उसने अपना ध्यान वैसवी पर से हटाते हुए अपने काम पर ध्यान दिया. नुक्कड़ पर खड़े वैसवी ऑटो का इंतज़ार कर रही थी वहीं राकेश अपनी माँ को बाहर से "कॉलेज जा रहा हूँ कहते हुए" बाइक स्टार्ट करने लगा.
वैसवी जो अबतक ऑटो का इंतज़ार कर रही थी कुछ सोचती हुई...
"सुन राकेश सॉरी यार मैं थोड़ा घर से चिढ़ कर निकली थी इसलिए तुझे सुबह सुबह सुना दी"
राकेश..... कोई बात नही वैसे भी तेरे साथ कई सालों से हूँ तुझे जानता हूँ मैं.
वैसवी.... राकेश देख ना ऑटो नही मिल रही और मैं कॉलेज के लिए लेट हो रही हूँ.
राकेश..... मैं भी कॉलेज के लिए ही निकल रहा हूँ आज पहला दिन है ना. कौन से कॉलेज मे ली है अड्मिशन.
वैसवी.... इंपीरीयल कॉलेज मे
राकेश..... हॅम ... थोड़ी परेशानी है वैसवी. मैं जगत कॉलेज मे हूँ और दोनो कॉलेज दो अलग अलग छोर पर है मैं लेट हो जाउन्गा.
वैसवी थोड़ी मायूस होती हुए..... देख ना थोड़ा ड्रॉप कर दे ना तू तो बाइक से जल्दी पहुँच जाएगा लेकिन मैं लेट हो जाउन्गी.
अब इतनी सुंदर लड़की ऐसे भोलेपन से आग्रह करे तो कौन है जो नही फिसले. राकेश ने भी
वैसवी की बात मानते हुए उसे ड्रॉप करने का फ़ैसला किया और दोनो चल दिए इंपीरीयल कॉलेज की ओर. तकरीबन 20मिनट मे दोनो कॉलेज के गेट पर थे.
वैसवी.... राकेश ये कॉलेज तो ऐसी जगह है जहाँ ऑटो भी नही आ पाते. थॅंक्स राकेश.
राकेश.... कोई बात नही अब मैं चलता हूँ.
वैसवी....... रुक ना एक मिनट. यार इस ब्रांच रोड से मेन रोड तक पैदल चलते चलते तो मेरी जान ही निकल जाएगी. तू तो कॉलेज के बाद फ्री हो जाएगा ना. यार मुझे पिक-अप करने आ जाना ना.
राकेश.... यार एक तो तेरा कॉलेज बहुत दूर है और वहाँ से यहाँ आना .... चल ठीक है तू मेरी दोस्त है इसलिए तेरे लिए इतना तो कर ही सकता हूँ. पर मैं यहा कितने बजे आउन्गा.
वैसवी..... थॅंक यू सूऊ मच. तू अपना नंबर. दे दे मैं लास्ट पीरियड ख़तम होने से पहले तुझे फोन कर दूँगी तू आ जाना.
राकेश की तो जैसे लॉटरी ही लग गयी हो. और हो भी क्यों ना उसके पास इतनी हॉट & सेक्सी लड़की का नंबर. जो मिल रहा था. बारे ही उत्साह से उसने नंबर. एक्सचेंज किया और बाइ बोलकर अपने कॉलेज निकल गया.
सपने जो देखे इन आँखों ने ख्वाहिश यही होती है कि उन सपनो को जिया जाय. चाहत की उड़ान हमेशा ही एक सुख्मयि अहसास होती है. वैसवी राजधानी एक्सप्रेस मे बैठ कर बस आने वाले दिनो के बारे मे सोच रही थी और मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
बनारस की तंग गलियों से निकल कर वैसवी अपने सपने आँखों मे लिए फॅशन डिज़ाइनिंग करने देल्ही जा रही थी.
वैसवी जिन तंग गलियों से निकल कर आई थी वहाँ आज भी गाँव का ही महॉल था. गंगा घाट पर बसा वाराणसी का शहर यूँ तो भारत के फेमस सहरों मे से एक है लेकिन इसके इलाक़े अब भी गाँव जैसे ही है.
मकान के उपर मकान मुश्किल से एक आदमी पास होने वाली वो तंग गलियाँ और ऐसी ही एक गली से निकल कर आई थी वैसवी. उसने जब नॅशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ फॅशन डिज़ाइनिंग कंप्लीट की तो घर मे ख़ुसीयों का महॉल छा गया.
मिड्ल क्लास से बिलॉंग करने वाली वैसवी एक बहुत ही तेज-तर्रार लड़की थी. खुद को काफ़ी मेनटेन किए हुए थी और अपनी गली के लड़कों के सपनो की रानी थी. लंबी हाइट, गोल चेहरा बदन भरे हुए और हर एक अंग तराशा देखने वाले हमेशा उसे देख बस आहह भरा करते थे.
वैसवी कभी भी अच्छी स्टूडेंट नही रही हमेशा आवरेज क्लास ही रही थी. स्कूलिंग पापा के इन्फ्लुयेन्स के कारण पास कर गयी और कॉलेज अपने इन्फ्लुयेन्स के कारण.
हमेशा सपनो की दुनिया मे रहने वाली एक लड़की जिसके पास खुद का अपना बंग्लॉ हो, गाड़ी हो नौकर चाकर और शॉपिंग पर लुटाने के लिए लाखों रुपये.
हालाँकि परिवार काफ़ी ही इज़्ज़तदार और संस्कारी था पर वैसवी को ये चस्का कॉलेज मे आने के बाद अपनी दोस्त नीमा से लगा.
सहर के नामचिह्न रहीश आमोद पांडे की इकलौती लड़की जिसके पास लुटाने के लिए लाखों की दौलत थी और आगे पीछे करने वाले कई लोग. हाई-स्टॅंडर्ड लाइफ स्टाइल और कुछ भी करो कोई रोकने वाला नही. बात तब की है जब वैसवी अपने कॉलेज के फर्स्ट एअर मे थी.
फर्स्ट एअर और कॉलेज का पहला दिन.......
"जल्दी कर माँ आज क्या पहले ही दिन लेट करवाएगी"
माँ.... रुक जा वैसवी पहला दिन है आरती लेती जा
वैसवी.... माँ तुम्हारी आरती के चक्कर मे मैं कहीं लेट ना हो जाउ.
माँ.... रुक जा पहला दिन है वैसे भी कुछ नही होना है. वहाँ जाकर वैसे भी क्लास ढूँढने और अपनी जगह पहुँचने मे तुझे टाइम लग जाएगा.
अब माँ को कौन बताए कि वैसवी कितनी उत्साहित थी अपने कॉलेज का पहला दिन देखने के लिए. पिताजी लेक्चरर थे इसलिए महारानी का अड्मिशन वाराणसी के टॉप कॉलेज मे हो गया. वरना तो इनका अड्मिशन किसी लोवर कॉलेज मे होता.
ब्लू स्कर्ट घुटनो के नीचे तक एक टाइट शर्ट जिनमे इसके अंगो के उभार के शेप बिल्कुल समझ मे आते हुए और रेड वाइट शेड की एक टाइ पहने वैसवी गेट के पास खड़ी इंतज़ार कर रही थी.
माँ आरती की थाली जब लेकर अपनी बेटी के पास पहुँची और उसका पहनावा देखी तो अचंभित हो गयी .....
"करमजली ऐसे शर्ट पहन कर तू कॉलेज जाएगी. तुझ मे थोड़ी भी अकल है कि नही"
वैसवी अपनी माँ की बात को नज़रअंदाज करते हुए ..... "रहने वाली तो गाँव की ही हो ना तो तुम्हारी सोच वहीं की रहेगी" बस इतना बोल आरती की थाल पर हाथ घुमाई और घर से बाहर निकल गयी.
पीछे से माँ ने कितनी भी रोकने की कोसिस की पर उसके कानो मे जु तक नही रेंगी. घर से कुछ आगे जाते ही वैसवी एक गली के किनारे खड़ी होकर अपने स्कर्ट के दो फोल्ड उपर से मोड़ लेती है और शर्ट का एक पार्ट बाहर निकाल लेती है बिल्कुल किसी फिल्म के स्कूल गर्ल की तरह.
दिखावे की अंधी दौड़ मे बहती वैसवी बिल्कुल अपने परिवार की बातें भूल चुकी थी. जो पहले घुटने से नीचे तक का पहनावा था वो अब जांघों तक चला आया. नुक्कड़ तक पहुँची तो उसी के मोहल्ले का लड़का जो हम उम्र था वो मिल गया.
आज उसके भी कॉलेज का पहला दिन था. वो अपने घर से गाड़ी निकाल ही रहा था कि वैसवी पर उसकी नज़र चली गयी. पहली झलक जब उसने देखा तो उसकी नज़र चेहरे तक पहुँच ही नही पाई.
हालाँकि दोनो साथ मे ही क्लासमेट थे पर आज तो वैसवी जैसे बिजली गिरा रही थी ....
"कहाँ जा रही हो वैसवी" उस लड़के ने बाइक को स्टॅंड पर लगाते हुए पूछा
वैसवी.... तुम से मतलब राकेश मैं कहीं भी जाउ.
राकेश.... भड़कती क्यों है मैं तो वैसे ही पूछ रहा था.
वैसवी.... चल-चल ये तेरा वैसे ही पूछना ना किसी और को सुना ज़्यादा मेरे हमदर्द बन ने की कोसिस ना कर.
वैसवी की बातें सुन राकेश का मूह छोटा हो गया. उसने अपना ध्यान वैसवी पर से हटाते हुए अपने काम पर ध्यान दिया. नुक्कड़ पर खड़े वैसवी ऑटो का इंतज़ार कर रही थी वहीं राकेश अपनी माँ को बाहर से "कॉलेज जा रहा हूँ कहते हुए" बाइक स्टार्ट करने लगा.
वैसवी जो अबतक ऑटो का इंतज़ार कर रही थी कुछ सोचती हुई...
"सुन राकेश सॉरी यार मैं थोड़ा घर से चिढ़ कर निकली थी इसलिए तुझे सुबह सुबह सुना दी"
राकेश..... कोई बात नही वैसे भी तेरे साथ कई सालों से हूँ तुझे जानता हूँ मैं.
वैसवी.... राकेश देख ना ऑटो नही मिल रही और मैं कॉलेज के लिए लेट हो रही हूँ.
राकेश..... मैं भी कॉलेज के लिए ही निकल रहा हूँ आज पहला दिन है ना. कौन से कॉलेज मे ली है अड्मिशन.
वैसवी.... इंपीरीयल कॉलेज मे
राकेश..... हॅम ... थोड़ी परेशानी है वैसवी. मैं जगत कॉलेज मे हूँ और दोनो कॉलेज दो अलग अलग छोर पर है मैं लेट हो जाउन्गा.
वैसवी थोड़ी मायूस होती हुए..... देख ना थोड़ा ड्रॉप कर दे ना तू तो बाइक से जल्दी पहुँच जाएगा लेकिन मैं लेट हो जाउन्गी.
अब इतनी सुंदर लड़की ऐसे भोलेपन से आग्रह करे तो कौन है जो नही फिसले. राकेश ने भी
वैसवी की बात मानते हुए उसे ड्रॉप करने का फ़ैसला किया और दोनो चल दिए इंपीरीयल कॉलेज की ओर. तकरीबन 20मिनट मे दोनो कॉलेज के गेट पर थे.
वैसवी.... राकेश ये कॉलेज तो ऐसी जगह है जहाँ ऑटो भी नही आ पाते. थॅंक्स राकेश.
राकेश.... कोई बात नही अब मैं चलता हूँ.
वैसवी....... रुक ना एक मिनट. यार इस ब्रांच रोड से मेन रोड तक पैदल चलते चलते तो मेरी जान ही निकल जाएगी. तू तो कॉलेज के बाद फ्री हो जाएगा ना. यार मुझे पिक-अप करने आ जाना ना.
राकेश.... यार एक तो तेरा कॉलेज बहुत दूर है और वहाँ से यहाँ आना .... चल ठीक है तू मेरी दोस्त है इसलिए तेरे लिए इतना तो कर ही सकता हूँ. पर मैं यहा कितने बजे आउन्गा.
वैसवी..... थॅंक यू सूऊ मच. तू अपना नंबर. दे दे मैं लास्ट पीरियड ख़तम होने से पहले तुझे फोन कर दूँगी तू आ जाना.
राकेश की तो जैसे लॉटरी ही लग गयी हो. और हो भी क्यों ना उसके पास इतनी हॉट & सेक्सी लड़की का नंबर. जो मिल रहा था. बारे ही उत्साह से उसने नंबर. एक्सचेंज किया और बाइ बोलकर अपने कॉलेज निकल गया.