non veg story एक औरत की दास्तान - Page 3 - SexBaba
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non veg story एक औरत की दास्तान

दोनो ने नाश्ता कर लिए.. उसके बाद राज ने अपना बॅग उठाया और बाहर लगी अपनी कार की तरफ चल दिया.. स्नेहा भी उसके पीछे पीछे कार तक गयी.. कार के पास पहुँचकर राज ने स्नेहा के होठों पर एक छोटा सा चुंबन लिया और कार मे बैठकर कार स्टार्ट कर दी और हाथ हिलाकर स्नेहा को बाइ कहा..

स्नेहा ने भी बदले मे हाथ हिलाकर उसे बाइ कहा मगर उसका मन अब बहुत खराब लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है.

वो हाथ हिलाती हुई कार को जाती हुई देखती रही मगर उसे ये नही पता था कि शायद ये उसकी राज से आख़िरी मुलाकात हो. या नही भी.

ऑफीस मे काम कुछ ज़्यादा था इसलिए राज को 5 ऑफीस मे ही बज गये..

"ओह नो.. मैं कहीं वहाँ पहुँचते पहुँचते वो चला ना जाए.." उसने अपनी घड़ी की ओर देखते हुए कहा और कार मे बैठ गया.

उसने करीब करीब 100 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी को भगाया. चूँकि वो जगह सहर के बाहर थी इसलिए उधर ज़्यादा ट्रॅफिक भी नही था इसलिए उसे कोई प्राब्लम भी नही हो रही थी. करीब 15 मिनिट की ड्राइविंग के बाद वो उस खंडहर् मंदिर के सामने खड़ा था.

उस खंडहर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी जमाने में वो राजनगर के लोगों के लिए सम्मान का प्रतीक रहा होगा.

मंदिर की छत और दरवाज़े पर लंबी लंबी झाड़ियाँ उग गयी थी. बाहर की दीवारें काली पड़ गयी थी.. बाहर से ही देखने पर वो किसी भूत बंगले से कम नही लग रहा था. राज धीरे धीरे उस खंडहर के दरवाज़े की ओर बढ़ रहा जो अत्यधिक झाड़ियों के कारण करीब करीब बंद होने वाला था.. और उन झाड़ियों मे साँप या अन्य किसी ज़हरीले और ख़तरनाक जानवर के होने की अच्छी ख़ासी संभावनाएँ थी मगर फिर भी राज को अपने मा बाप के कातिल का पता लगाना था या जिसने भी ये झूठी कहानी बनाकर उसका समय बर्बाद किया था, उसे पकड़कर सबक सिखाना था.. राज ने दरवाज़े के पास पहुँचकर अपने हाथों और पैरों की मदद से उन झाड़ियों को एक तरफ किया.. और फिर मदिर के प्रांगण मे घुस गया.. मंदिर के अंदर का द्रिश्य और भी डरावना था.. चारों तरफ झाड़ियाँ उगी हुई थी, दीवारों पर बने हुए चित्रा अब काले पड़ गये थे, छत पर लटके चमगादड़(बॅट) द्रिश्य को और डरावना बना रहे थे.. तभी राज ने जैसे ही अपने कदम बढ़ाए ना जाने कहाँ से कबूतरों का एक झुंड उसके ऊपर से गुज़र गया. डर के मारे राज की हालत खराब हो गयी मगर फिर भी वो आगे बढ़ता रहा..मंदिर के अंदर एक भी मूर्ति नही थी, ऐसा कहा जाता था कि वहाँ एक बार राजनगर की सबसे बड़ी लूट हुई थी जिसमें उस मंदिर की सारी मूर्तियाँ डकैतों ने लूट ली थी... जिसमें से ज़्यादातर मूर्तियाँ सोने की थी और आज के जमाने मे उनकी कीमत करोड़ों मे होती..

खैर वो तो दूसरी बात थी.. राज अबतक पूरे मंदिर मे घूम चुका था पर उसे अब तक कोई नही दिखा था..

"पूरा मंदिर छान मारा.. पर कोई नही मिला.. अब तो अंधेरा भी घिरने लगा है और शाम के 6:00 बज चुके हैं.. लगता है किसी ने जान बूझ कर कोई मज़ाक किया है मेरे साथ.." उसने सर पर आ रहे पसीने को पोंछते हुए कहा और फिर मंदिर से बाहर निकालने के लिए दरवाज़े की तरफ घुमा..

मगर जैसे ही उसने अपना सर घुमाया तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी..

"कौन हो तुम..?" उसने चिल्लाते हुए कहा मगर इससे पहले की वो कुछ समझ पाता, किसी ने उसके सर पर पीछे से वॉर किया और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया..

***********

"अरे जग्गू काका.. आप आ गये..? राज कहाँ है..?" स्नेहा ने जग्गू काका के आते ही उनसे पूछा..

हालाँकि उसे पता था कि राज खंडहर की तरफ गया है मगर उसने कह दिया था कि खंडहर से वो सीधा ऑफीस आएगा और फिर ऑफीस से काका के साथ ही घर आएगा..

"काहे बिटिया..? ऊ अभी तक घर नई आया है का..? ऊ ता हम से पहले ही आफिसे से निकल गया था..?" जग्गू काका ने हैरानी से कहा..

"नही काका.. वो तो अभी तक नही आए.. पता नही कहाँ रह गये.." स्नेहा को चिंता होने लगी..

"ऊ देखो आ गया राज.." अचानक जग्गू काका ने दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा..

स्नेहा ने सर घूमकर देखा तो पाया कि राज अंदर चला आ रहा है..

"ठीक है बिटिया अब तुम दोनो बात करो.. हम तनिक फिरेश हो के आते हैं.." इतने दिनो मे जग्गू काका ने टूटे फूटे ही सही मगर कुछ अँग्रेज़ी शब्द सीख ज़रूर लिए थे.

"आ गये आप..? पर आप तो जग्गू काका के साथ आने वाले थे.. मंदिर से सीधा ऑफीस नही गये क्या..?" स्नेहा ने काका के जाते ही पूछा..

"अरे क्या बताऊ जान.. ऑफीस मे बहुत ज़्यादा काम था और फिर मंदिर गया तो पाया कि वहाँ कोई नही है.. शायद किसीने घटिया मज़ाक किया था और देखो ये पैसे भी साथ ही लाने पड़े.." राज ने बॅग दिखाते हुए कहा..

"होगा कोई शैतान जिसने इतना बेकार मज़ाक किया.. आप जाकर हाथ मुह्न धो लीजिए, मैं आपके लिए खाना लगा देती हू.." ये बोलकर स्नेहा वहाँ से जाने लगी मगर राज ने उसे अपनी बाहों मे खिच लिया..

"इतनी जल्दी भी क्या है..?" ये बोलकर राज ने उसके होठों पर अपने होंठ रखे और उन्हे बड़ी बेरहमी से चूसने लगा..

"छ्चोड़ो मुझे... जब देखो शुरू हो जाते हो.. जग्गू काका ने देख लिया तो क्या सोचेंगे..?" स्नेहा ने अपना मुह्न अलग करते हुए कहा..

"दुनिया वालों के डर से हम प्यार करना तो नही छ्चोड़ सकता ना मेरी जान.." इतना बोलकर राज ने फिर उसे चूमने की कोशिश की मगर इस बार स्नेहा ने अपना हाथ छुड़ा लिया और राज को चिढ़ाती हुई वहाँ से भाग गयी..

राज ने एक शैतानी मुस्कान भरी और उसके मुह्न से ये शब्द निकले.."आज रात तो तेरी चूत मारके ही रहूँगा.. ना जाने कब से ये लंड तेरी चूत मे घुसने के लिए तड़प रहा है.." ये बोलकर वो अपना लंड मसल्ने लगा.. और अपने कमरे मे चला गया और अचानक ही पागलों की तरह ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगा..

"आज रात मेरी ज़िंदगी की सबसे मज़ेदार रात होने वाली है.." ये सोचता हुआ राज खाना खा रहा था और बार बार स्नेहा की तरफ देख रहा था जो उसे अपनी तरफ देखता हुआ पाकर शर्मा रही थी क्यूंकी जग्गू काका भी वहीं पर बैठे हुए थे और राज का इस कदर घूर्णा उसे थोड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी जग्गू काका के सामने उसने कभी स्नेहा को ऐसे भूखी नज़रों से नही देखा था.

स्नेहा ने आँखों ही आँखों मे राज को कुछ इशारा किया जिससे वो समझ गया कि वो उसे खाना खाने के लिए बोल रही है और अपनी नज़र उस पर से हटाने को बोल रही है..

"इस तरह काका के सामने घूर्ने मे तुम्हें शरम नही आती..? अगर वो देख लेते तो क्या सोचते.." दोनो अपने कमरे मे सोने आ गये थे और स्नेहा ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की..

"अरे क्या सोचते..? यही सोचते कि दो प्यार करने वाले आँखों ही आँखों मे अपने प्यार का इज़हार कर रहे हैं.." राज ने उसे आँख मारते हुए कहा..

"ढत्त" ये सुनकर स्नेहा शर्मा गयी और अपना चेहरा राज के सीने मे दबा दिया..

इसके बाद शुरू हुआ वासना का एक ऐसा खेल जो रात भर चला.. आज राज उसे इस तरह चोद रहा था जैसे ना जाने उसका लंड कितने दिनो से प्यासा हो.. हर धक्के मे इतना ज़ोर लगा रहा था कि स्नेहा का दर्द के मारे बुरा हाल हो रहा था..

"ओह्ह... आज मार डालोगे क्या..?" स्नेहा ने दर्द मे तड़प्ते हुआ कहा..

"इरादा तो कुछ ऐसा ही है.." राज ने धक्कों का ज़ोर और बढ़ा दिया..

स्नेहा की हालत खराब हो गयी थी उसके धक्के खाते खाते और ना जाने वो कितनी बार झाड़ चुकी थी..

***********

"ऐसे लंगड़ा के क्यूँ चल रही हो..?" सुबह राज उठा तो देखा कि स्ने'हा बाथरूम से बाहर आ रही है और उसे चलने मे तकलीफ़ हो रही है.

"खुद करते हो और अब मुझे पूछते हो कि लंगड़ा क्यूँ रही हो..?" स्नेहा ने मुह्न बनाते हुए कहा..

"अब गुस्सा क्यूँ होती हो जान.. माफ़ कर दो.. आअज रात से ऐसा नही करूँगा. प्रॉमिस.." राज ने उसे अपनी तरफ खींचने की कोशिस की मगर स्नेहा थोड़ा दूर हॅट गयी..

"कल रात तुम्हें हो क्या गया था ? पहले तो कभी ऐसा नही किया था ?" स्नेहा की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था कि वो नाराज़ है.. अओर इतना बोलकर वो कमरे से बाहर चली गयी..

"सच मे कल कुछ ज़्यादा ही जोश आ गया था मुझे.. आज से ऐसा नही करूँगा वरना शक़ बढ़ सकता है मेरे ऊपर" ये सोचकर राज ने अपनी चादर हटाई और उठ कर बाथरूम मे चला गया..

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--11

गतान्क से आगे...........................

"जग्गू काका अब आपको ऑफीस जाना बंद कर देना चाहिए..?" डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए राज ने कहा..

"अरे ई का कहत हो बिटवा..? अगर आफिसे नही जाएँगे तो घर मे दिन भर का भजन करेंगे..?" जग्गू काका ने हस्ते हुए कहा..

"अरे नही काका.. मैं तो सोच रहा था कि आप इतने सालों से मेरे भले के लिए काम कर रहे हैं.. और अब आपकी उमर भी हो चुकी है. अब आपके आराम करने के दिन हैं.. काम तो मैं भी कर लूँगा."

"अरे बेटवा तुम काहे चिंता करत हो..? वैसे भी हमरा मंन घर मे लगेगा नही तो घर मे रहने का का फ़ायदा.. इससे अच्छा आफिसे मे दू गो आदमी से बात ता कर लेंगे.." जग्गू काका ने कहा..

"अरे फिर भी काका.. इसी बहाने आप स्नेहा का ख़याल भी रख सकेंगे.. ऐसी हालत मे किसी का इसके पास रहना ज़रूरी है.. और वैसे भी बाकी नौकर लोग कुछ ज़्यादा देख भाल भी नही कर पाएँगे स्नेहा की जितनी अच्छी तरह आप कर सकेंगे." राज ने फिर समझाने की कोशिश की जिसे सुनकर जग्गू काका भी सोच मे पड़ गये.. और फिर थोड़ा सोचने के बाद बोले..

"तू ठीक कहत हो बेटवा, बहूरानी के पास एक आदमी का तो ज़रूरत तो है.. ठीक है बेटवा.. आज से हमारा आफिसे जाना बंद.. और आज से आफिसे का सारा काम हमार बेटवा करेगा.." ये बोलकर उन्होने राज के कंधे तापतपाए..

स्नेहा वहाँ बैठकर सिर्फ़ उन दोनो की बातें सुन रही थी..

पहले तो उसे राज का जग्गू काका को घर मे रुकने के लिए बोलना अजीब लगा पर जब राज ने वजह बताई तो फिर उसे संतुष्टि हुई..

जग्गू काका और स्नेहा नाश्ता करके टेबल से उठ चुके थे.. राज ने कार की चाभी उठाई और कार मे जाकर बैठ गया. उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी जो अब डरावनी हसी मे बदल चुकी थी..

"बहुत दिन हो गये.. मैं पापा से नही मिली.." रात को सोते हुए स्नेहा ने राज से कहा..

"इसमें कौन सी बड़ी बात है..? कल ही चलते हैं 2-4 दिन के लिए.. तुम्हारा मन भी लग जाएगा और तुम्हारे पापा तुम्हें देख कर खुस भी हो जाएँगे.." राज ने स्नेहा को चूमते हुए कहा..

"पर क्या जग्गू काका इज़ाज़त दे देंगे..?"

"अरे उनकी चिंता तुम मत करो.. वो मेरी बात कभी नही टालते.. तुम कल मेरे ऑफीस से आने के बाद रेडी रहना. हम दोनो कल ही चल रहे हैं.." ये बोलकर राज ने स्नेहा को अपने ऊपर बैठा लिया और स्नेहा उसके लंड पर उछलने लगी..

***********

"सो एवेरितिंग ईज़ रेडी..? कॅन वी गो नाउ..?" अगले दिन शाम को ऑफीस से आते ही राज ने पूछा..

"ओह यॅ.. वाइ नोट...?" स्नेहा को राज का अँग्रेज़ी मे बात करना अजीब सा लगा क्यूंकी इंग्लीश बोलना उसे कुछ ज़्यादा पसंद नही था और वो इंग्लीश का इस्तेमाल सिर्फ़ ऑफीस मे ही करता था. खैर स्नेहा ने अपने सर को झटका देकर समझाया कि ये सिर्फ़ के संयोग है और ये सोचकर बॅग उठाने लगी..

"क्या कर रही हो स्नेहा.. इतना भारी बॅग क्यूँ उठा रही हो..? तुम्हें पता है ना कि तुम मा बनने वाली हो..?" ये बोलकर राज ने उसके हाथ से बॅग ले लिया और फिर दोनो गाड़ी मे बैठकर ठाकुर विला की तरफ चल दिए..

"आओ बेटा.. आज अचानक कैसे पहुँच गयी.. फोन भी नही किया..?" यूँ स्नेहा और राज को अचानक अपने घर मे पाकर ठाकुर साहब की ख़ुसी का ठिकाना नही था..

"बस पापा यूँ ही.. आआपको सर्प्राइज़ देने का मंन हुआ और हम चले आए.." ये बोलकर वो ठाकुर साहब के गले लग गयी..

"जाओ बेटा.. तुम लोग फ्रेश हो कर आ जाओ उसके बाद बातें होती रहेंगी.." ठाकुर साहब ने कहा जिसे मानकर वो दोनो अपने कमरे मे चले गये फ्रेश होने के लिए..

"तो बेटा बिज़्नेस कैसा चल रहा है..?" रात को खाने पर ठाकुर साहब ने राज से पूछा..

"बस अंकल ठीक चल रहा है.."

"और सब कुछ ठीक ठाक है ना..? अओर वो नौकर कैसा है.. आइ'म सॉरी.. आइ मीन जग्गू काका कैसे हैं..?" ठाकुर साहब ने अपनी ग़लती ने सुधारते हुए कहा..

"अरे अंकल इसमें सॉरी की क्या बात है..? नौकर को नौकर नही कहेंगे तो क्या मालिक कहेंगे ? वो तो नौकर है जो कयि सालों से हमारा खा रहा है.. तो इसमें सॉरी का तो सवाल ही पैदा नही होता.." राज की ये बातें सुनकर ठाकुर साहब और स्नेहा को बड़ा अजीब लगा.. कल तक जिसे नौकर कहने पर ही राज का गुस्सा सांत्वे आसमान पर पहुँच जाता था.. आज वो उसे खुद नौकर बोल रहा था.. जो कि एक अजीब बात थी.. तीनो खाना खा कर उठे और फिर थोड़ी देर सोफे पर बैठकर इधर उधर की बातें करने लगे..

"ठीक है बच्चों.. रात बहुत हो गयी है.. और स्नेहा का इस हालत मे इतनी रात तक जागे रहना ठीक नही है.. तुम दोनो जाकर सो जाओ.. और मैं भी चलता हूँ सोने.." ये बोलकर ठाकुर साहब वहाँ से उठकर चले गये और राज और स्नेहा ने भी अब सोना ही सही समझा.. और वो दोनो भी अपने कमरे मे चले गये सोने के लिए.."

आज सुबह सुबह जब राजनगर के लोग जागे तो उन सब की ज़ुबान पर सिर्फ़ एक ही सवाल था..

"ठाकुर साहब को किसने मारा..?"

ठाकुर विला के सामने अच्छी ख़ासी भीड़ जमा थी.. सब लोग यही जानना चाहते थे कि कौन हो सकता है जिसने इतने बड़े आदमी को ऊपर पहुँचा दिया..?

तभी पोलीस की दो गाड़ियाँ अपना साइरन बजाते हुए वहाँ पहुँची.. सब लोग उसी तरफ देखने लगे.. उन पोलीस की गाड़ियों मे से कुल 10 पोलीस वाले बाहर आए जो वहाँ पहुँचते ही भीड़ को वहाँ से हटने के लिए बोलने लगे..

उनमें से एक पोलीस वाला जो इनस्पेक्टर रॅंक का लगता था वो अपनी च्छड़ी एक हाथ मे लिए हुए था और बार बार अपने दूसरे हाथ मे मारते हुए अंदर चला गया..

अंदर राज और स्नेहा सोफे पर बैठे हुए थे.. उनके चेहरे बड़े उदास लग रहे थे और स्नेहा की आँखों से आँसू बंद होने का नाम नही ले रहे थे.. उस घर मे काम करने वाले 5 नौकर जिसमें से 4 मर्द थे और 1 औरत थी एक तरफ कोने मे लाइन मे अपना सर झुकाए खड़े थे..

गेट पर खड़े रहने वाले मुस्टंडे भी वहीं खड़े बेवकूफो की तरफ इधर उधर ताक रहे थे..

इनस्पेक्टर के जूतों की आवाज़ सुनते ही सब उधर देखने लगे..

ये और कोई नही बल्कि इनस्पेक्टर जावेद ख़ान था.. उसने एक सर सरी निगाह हॉल मे मौजूद सभी लोगों की तरफ डाली और फिर वो धीरे धीरे चलता हुआ क्राइम सीन की तरफ जाने लगा..

और फाइनली वो उस कमरे मे पहुँच गया जहाँ खून हुआ था.. वहाँ पर 2 कॉन्स्टेबल्स पहले से मौजूद थे जो कि लाश की जाँच कर रहे थे और साथ ही साथ उसकी तस्वीरें भी उतार रहे थे..

"कुछ पता चला..?" इनस्पेक्टर ने कमरे मे घुसते हुए कहा.

"चाकू इनके सीने मे मारा गया है.." एक कॉन्स्टेबल ने इनस्पेक्टर को आते देखकर सल्यूट करते हुए कहा..

"ह्म्म.. और कुछ..?"

"सर ये मर्डर वेपन बरामद हुआ है.." कॉन्स्टेबल ने चाकू दिखाते हुए कहा जो अब एक प्लास्टिक बॅग मे बंद था..

"ह्म्म.. ये मर्डर वेपन का मिलना तो बहुत अच्छी बात है.. किसी ने कुछ बताया यहा..?"
 
"हां सर.. वो जो औरत खड़ी है(लाइन मे खड़े नौकरों की तरफ इशारा करते हुए) वो यहाँ नौकरानी का काम करती है.. उसी ने सबसे पहले लाश देखी थी.. उसने बताया कि वो सुबह जब ठाकुर साहब के लिए चाई लेकर आई तो उसने उनका दरवाज़ा खुला पाया.. फिर वो जब अंदर आई तो पाया कि पूरा कमरा खून से भरा पड़ा है और ठाकुर साहब यहाँ कमरे मे मरे पड़े हैं.. ये देखकर वो ज़ोर से चिल्लाने लगी जिसे सुनकर घर मे मौजूद सभी लोग यहाँ पहुँच गये और फिर उन्होने पोलीस को फोन करके बुला लिया.." कॉन्स्टेबल ने अपनी बात पूरी की..

"और कुछ मिला क्राइम सीन से..?"

"जी नही सर... हाथापाई के भी कोई निशान नही हैं.. जिससे साफ पता चलता है कि खूनी कोई घर का आदमी ही है.." कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया..

"हां यानी वोही हुआ जो हर घिसी पीटी कहानी मे होता है.." इनस्पेक्टर ने बड़बड़ाते हुए कहा..

"जी सर..? आपने कुछ कहा.." कॉन्स्टेबल ने इनस्पेक्टर को बड़बड़ाते हुए सुनकर कहा..

"नो नतिंग.. तुम ऐसा करो.. इस लाश को पोस्टमारटोम के लिए भिजवा दो.. तब तक मैं भी तो देखूं कि आख़िर माजरा क्या है..?" ये बोलकर इनस्पेक्टर उस तरफ बढ़ चला जिधर सब लोग खड़े थे.. उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी जैसी हर केस के दौरान होती थी.. इनस्पेक्टर जावेद ख़ान आज तक किसी भी केस को सुलझाने मे फैल नही हुआ था मगर शायद ये केस इस बात को बकवास साबित करने वाला था..

"ह्म्म तो क्या कहना है आप लोगों का इस बारे मे..?" इंसेक्टोर जावेद ने अपनी च्छड़ी हवा मे लहराते हुए कहा जिसे सुनकर सब लोग एक दूसरे का चेहरा देखने लगे..

"जी इनस्पेक्टर साहब.. जैसा कि शायद आपक कॉनसॅटब्ल ने बताया ही होगा कि इस नौकरानी ने सबसे पहले लाश देखी.. इसके बाद ही हमे पता चला अंकल का खून हो चुका है..ये ज़रूर किसी बाहर वाले का काम है.. किसी ऐसे आदमी का जो ठाकुर साहब का दुश्मन हो..और उनकी जान लेना चाहता हो.." राज ने इनस्पेक्टर से खुद बात करना ही ठीक समझा..

"आपने ग़लत बोला मिस्टर...."

"जी मुझे राज कहते हैं और ये है मेरी बीवी और ठाकुर साहब की बेटी स्नेहा" राज ने इनस्पेक्टर को अपना और स्नेहा का इंट्रोडक्षन दिया..

"हां तो ऐसा है राज जी कि ये किसी घर वाले का ही काम है क्यूंकी हमे ना तो किसी बाहर वाले के आने का कोई निशान मिला है और ना ही कमरे मे हाथापाई के कोई निशान हैं.. आंड बाइ दा वे क्या आप यहीं इसी घर मे रहते हैं ?" इनस्पेक्टर ने राज से सवाल किया..

"जी नही.. मैं तो कल ही यहाँ आया था स्नेहा की ज़िद पर.. हम यहा 2-3 दिनो के लिए अंकल से मिलने आए थे और फिर ये सब हो गया.." राज ने कंधे उचकाते हुए कहा..

"सो मिस्टर. राज ईज़ इट जस्ट ए कोयिन्सिडेन्स ओर ए प्लॅंड कॉन्स्पिरेसी.. कि जिस दिन आप दोनो आए उसी दिन ठाकुर साहब का खून हो गया..? इफ़ यू नो व्हाट आइ मीन ?" इनस्पेक्टर ने मुस्कराते हुए कहा..

"आप कहना क्या चाहते हैं इनस्पेक्टर साहब की हम दोनो ने अंकल को मारा है..? आप जानते हैं कि आप क्या बकवास कर रहे हैं ?" राज ने आवेग मे आते हुए कहा..

"कूल डाउन मिस्टर. राज.. मैं जानता हू कि मैं क्या बोल रहा हूँ.. हम पोलीस वालों का तो काम ही यही है कि मुजरिम को जैल के अंदर डालना.. और फिलहाल तो इस घर मे मौजूद हर एक बंदा शक़ के दायरे मे है.." इनस्पेक्टर की ये बात सुनकर सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे..

"एनीवे मुझे अब चलना चाहिए.. आंड येस आप लोगों मे से कोई भी इस शहर से बाहर नही जाएगा.. माइंड इट.." ये बोलकर इनस्पेक्टर ने अपनी टोपी पहनी और अपनी जीप की तरफ चल दिया..

सब लोग उसे पीछे से जाते हुए देख रहे थे केवल एक को छ्चोड़ कर और वो थी स्नेहा जो अब भी अपने पिता को खोने के गम मे आँसू बहा रही थी और वो रात वाली बात उसे बार बार याद आ रही थी..

रात को वो जैसे ही उठी तो खुद को बिस्तर पर अकेला पाया.. उसने सर उठाकर इधर उधर देखा तो उसे कोई नही दिखा..
 
"पता नही कहाँ चला गया ये राज ?" ये बोलकर वो उठी और बाथरूम मे चेक करने गयी तो पाया कि वहाँ राज अपने कपड़े बदल रहा था और जैसे ही स्नेहा ने अंदर देखा तो राज ने जल्दी से कोई चीज़ अपने पीछे छुपा ली..

"क्या राज ने ही मारा है मेरे पापा को ?" बार बार उसके मॅन मे यही ख़याल आ रहा था.. मगर उसका दिल इस बात को मानने को तैय्यार नही था कि राज ऐसा कुछ कर सकता है..

"स्नेहा.. स्नेहा.." किसी ने उसे हिलाया तब जाकर वो अपनी सोच से बाहर आई.. ये और कोई नही राज ही था..

"कब से आवाज़ दे रहा हूँ.. किस सोच मे डूबी हो तुम..? चलो हमे अब अपने घर चलना होगा वैसे भी अब यहाँ कुछ नही बचा है" राज ने कहा तो स्नेहा को भी लगा कि अब अपने घर जाना ही ठीक होगा और वो दोनो उठ कर साथ लाया समान बॅग मे डालने लगे..

फिर दोनो कार मे बैठकर घर की तरफ चल दिए..

"तो फिर क्या सोचा है..? क्या करोगी अपने पापा की प्रॉपर्टी का..?" ड्राइव करते हुए राज ने स्नेहा से सवाल किया..

"राज.. अभी अभी मेरे पापा का खून हुआ है और तुम्हें प्रॉपर्टी की पड़ी है..?" स्नेहा ने गुस्से मे कहा..

"मगर स्नेहा बाद ही सही.. हमे इस बारे मे बात तो करनी ही होगी ना..?" राज ने एक बार फिर ज़ोर डाला जिसे सुनकर स्नेहा को लगा कि शायद राज ठीक कह रहा है..

"ह्म्म.. विल आने के बाद ही तो मैं कुछ बोल पाउन्गि कि क्या करना है प्रॉपर्टी का..?" स्नेहा ने कहा..

"ह्म्म ओके.. चलो देखते हैं आगे और क्या क्या दिखाने वाली है ज़िंदगी हमे.." ये बोलकर राज ने स्नेहा के हाथों पर अपना हाथ रखा और फिर दोनो चल दिए घर की तरफ..

"सर ये पोस्ट्मॉर्टम के रिपोर्ट आ गयी.." इनस्पेक्टर जावेद अपनी कॅबिन मे बैठा हुआ कुछ फाइल्स देख रहा था कि तभी एक कॉन्स्टेबल ने अंदर आते हुए कहा..

जावेद ने वो रिपोर्ट वाली फाइल उससे ले ली और उसे पलटने लगा.. रिपोर्ट देख कर उसके चेहरे पर एक बार फिर मुस्कान तेर गयी और इस केस मे जो हो रहा था वो तो सबसे ज़्यादा मज़ेदार था उसके लिए क्यूंकी उसे ऐसे केसस हॅंडल करने मे बहुर मज़ा आता था..

"ह्म्म.. इंट्रेस्टिंग.. इस रिपोर्ट ने तो मामले को एक नया मोड़ दे दिया है.." इनस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल से मुस्कुराते हुए कहा..

"ऐसा क्या है इस रिपोर्ट मे सर..?"

"अब क्या बताऊ मेरे दोस्त की इस रिपोर्ट मे क्या है.. इस रिपोर्ट मे एक ऐसी बात लिखी हुई है जिससे इस पूरे केस का नक्शा ही बदल गया है.."

"अरे सर जी अब बता भी दो ना.." कॉन्स्टेबल ने वो रिपोर्ट खुद नही देख कर सबसे पहले इनस्पेक्टर को दिखाई थी जिसके कारण अब उसकी दिलचस्पी बढ़ गयी थी..

"ह्म्म ये लो खुद ही देख लो.." ये बोलकर जावेद ने फाइल उसकी तरफ बढ़ा दी.. रिपोर्ट पढ़ते हुए कॉन्स्टेबल के चेहरे पर बड़े अश्मन्जस की भावना सॉफ देखी जा सकती थी..

"मगर हाउ ईज़ इट पासिबल सर..?" कॉन्स्टेबल का दिमाग़ चकरा रहा था..

"एवेरतिंग ईज़ पासिबल इन दिस वर्ल्ड..!! इस रिपोर्ट मे लिखा है कि ठाकुर साहब की मौत तो चाकू मारने से पहले ही हो चुकी थी.. और उन्हें दिए गये खाने मे ज़हेर मिला हुआ था..

देखो हुआ ऐसा होगा कि पहले किसी ने उनके खाने मे ज़हेर मिलाया और रात को जब वो अपने कमरे मे गये तो ज़हेर ने अपना असर दिखना शुरू कर दिया और वो वहीं फर्श पर गिर गये..और वहीं पर उनकी मौत हो गयी.. फिर दूसरा कातिल वहाँ चाकू लेकर आया और सोचा कि ठाकुर साहब आज फर्श पर ही सो गये हैं और उसने बिना सोचे समझे उन पर चाकू बरसा दिया.. और इस तरह से उनकी मौत चाकू लगने से पहले ही हो चुकी थी.." जावेद ने मुस्कुराते हुए कहा..

"सर.. इस केस ने तो मेरा सर घुमा दिया है.." कॉन्स्टेबल ने अपना सर पकड़ते हुए कहा..

"अभी से अपने दिमाग़ पर काबू रखो.. अभी तो बहुत कुछ बाकी है इस केस मे.." ये बोलते हुए इनस्पेक्टर अपने कॅबिन से निकल कर बाहर की तरफ चल दिया.. तो दोस्तो क्या आपने अंदाज़ा लगाया की कातिल कौन है आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--12

गतान्क से आगे...........................

"मॅ'म साहब.. आपसे कोई मिलने आया है..!!" स्नेहा अपने कमरे मे आई तभी एक नौकर ने आकर कहा..

"कौन है..?"

"कोई रवि साहब हैं.."नौकर ने जवाब दिया..

ये नाम सुनकर स्नेहा को अजीब लगा.. उसे अचानक रवि का चेहरा याद आ गया..

"ठीक है तुम चलो.. मैं आती हूँ.." इतना कहकर स्नेहा ने अपने कपड़े ठीक किए और हॉल की तरफ चल दी जहाँ रवि बैठा हुआ था..

"रवि तुम..?" हॉल मे और कोई नही बल्कि खुद रवि बैठा हुआ था और उसके बगल मे रिया भी थी.. और रवि के बाद स्नेहा का ध्यान उसी के तरफ गया..

उसे देखकर स्नेहा ने दौड़कर उसे गले लगा लिया..

"कहाँ चली गयी थी रिया तुम..? और ये क्या तुम्हारी माँग मे सिंदूर..?" स्नेहा ने अचरज से पूछा..

"हम दोनो ने शादी कर ली है.." इसका जवाब रवि ने देते हुए कहा..

"मगर तुम दोनो को भाग कर शादी करने की क्या ज़रूरत थी.. शादी याहा भी तो हो सकती थी.. कुछ प्राब्लम थी तो मुझे बताना था ना..?" स्नेहा ने रिया की तरफ देखते हुए कहा..

"अरे स्नेहा अब जाने भी दो.. हम यहाँ सिर्फ़ तुमसे मिलने आए हैं.. बताओ तुम कैसी हो..?" रिया ने बात को बदलते हुए कहा..

"मैं बिल्कुल अच्छी हूँ और मा बनने वाली हूँ.. मगर मेरे पापा.." ये बोलते हुए उसके चेहरे पर उदासी छा गयी..

"हां पढ़ा था उनके बारे मे.. सॅड टू नो दट.. एनीवे कोंग्रथस फॉर युवर फर्स्ट प्रेग्नेन्सी.." स्नेहा ने रिया को गले लगा लिया..

इन सब बातों के बीच स्नेहा ने एक बात नोटीस नही की..वो ये कि रिया की नज़र हॉल मे लगी राज की तस्वीर की तरफ बार बार जा रही थी और उसके चेहरे पर घृणा का भाव सॉफ देखा जा सकता था.

इन्ही सब बातों मे पूरा दिन गुज़र गया और शाम को राज से मिलने के बाद रिया और रवि अपने घर चले गये..

...........................................

"ह्म्म.. तो अब बताओ तुम लोग.. किसने मारा ठाकुर साहब को..?" इनस्पेक्टर ठाकुर विला के अंदर सभी नौकरों से पूछताछ कर रहा था..सभी नौकर एक कतार मे खड़े हुए सर झुकाए हुए थे..

"इस तरह सर झुका कर खड़े रहने से काम नही चलेगा.. बताओ किसने मारा ठाकुर साहब को..?" इस बार इनस्पेक्टर की आवाज़ थोड़ी उँची थी.. मगर फिर भी एक भी नौकर ने अपना सर नही उठाया..

"अच्छा.. लगता है तुम लोग ऐसे नही बताओगे.. मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.." ये बोलकर इनस्पेक्टर ने हवलदार को इशारा किया और वो हवलदार बाहर चला गया.. फिर कुछ ही देर मे वो अंदर आ गया मगर इस बार वो अपने साथ एक कुर्सी लेकर आया था जिसमें बहुत सारे बटन्स लगे हुए थे और कुछ हरे लाल स्क्रीन्स लगे हुए थे.. वो उसे छक्कों के सहारे चलते हुए अंदर ला रहा था.. अंदर लाने के बाद उसने वो मशीन एक प्लग मे लगाई और मशीन ऑन हो गयी..

"अभी भी मौका है.. कातिल खुद सामने आ जाए वरना अगर फिर बाद मे मैने उसे पकड़ लिया तो उसका वो हश्र करूँगा कि वो ज़िंदगी भर याद रखेगा.." ये बोलना पर भी उनमें से कोई हिला तक नही ना ही अपना सर उठाया..

"तो ठीक है.. ये कुर्सी देख रहे हो ना..?" सब उस कुर्सी की तरफ ही देख रहे थे..

"ह्म्म.. हम इस कुर्सी पर एक एक करके तुम सबको बैठाएँगे और जो भी सच बोलेगा तो ये हरी वाली स्क्रीन जलेगी और अगर झूठ बोला तो ये लाल वाली.. समझे ?" इसके बाद इनस्पेक्टर ने एक नज़र सबके चेहरों पर डाली.. सब के चेहरों पर डर की भावना सॉफ देखी जा सकती थी..

"तो यहाँ से शुरू हो जाओ.." एक कॉन्स्टेबल ने लाइन की एक छ्होर पर खड़े नौकर से कहा..

वो डरते डरते कुर्सी की तरफ बढ़ने लगा..

"हम नई बैठेंगे बाबू जी.. हॅम्का डर लागत है ई कुर्सिया से.. अगर कहीं करेंट मार दिया तो हमरि गांद जल जाएगी.." उसने रुकते हुए ये कहा तो वहाँ खड़े सभी पोलीस वालों की हँसी छूट गयी..

"अरे डरो नही.. ये करेंट नही मारती.. ये बस ये चेक करेगी कि तुम सच बोल रहे हो या झूठ.. और हां अगर ज़्यादा नौटंकी की तो अभी सीधे पोलीस स्टेशन ले चलेंगे तुम्हें.." इनस्पेक्टर जावेद ने कड़क आवाज़ मे कहा..

जिसे सुनकर उस नौकर के चेहरे पर पसीने आ गये और वो जल्दी से जाकर कुर्सी पर बैठ गया..

"आगे मैय्या गे माययए.. हमरी गंद मे का घुस गावा.." जैसे ही वो नौकर बैठा वैसे ही उठ गया.. सब ने उसके पिछवाड़े की तरफ देखा तो एक वाइयर उसकी धोती को फाड़कर उसकी गंद के छेद मे घुस गयी थी.. जिसे देखकर वहाँ के सब लोगों की हस्ते हस्ते हालत खराब हो गयी.. वो किसी बंदर की तरह उछल रहा था.. मगर इनस्पेक्टर जावेद अपने काम के वक़्त बिल्कुल सीरीयस रहता था... उसने आगे बढ़कर उसकी गांद से वाइयर को बाहर निकाल लिया..और उसे खींचकर फिर से कुर्सी पर बैठा दिया..

"अब सच सच बता तूने ठाकुर साहब को मारा है..?"इनस्पेक्टर ने तेज़ आवाज़ मे पूछा..

"नही हम नही मारे हैं.."उस नौकर ने डरते हुए कहा..

और उसके ऐसा करते ही हरी स्क्रीन पर ब्लिंकिंग होने लगी जिससे पता चल गया कि ये सच बोल रहा है..

ऐसे ही धीरे धीरे सारे नौकरों की बारी आ रही थी.. मगर जैसे ही उस नौकरानी की बारी आई तो वो वहाँ से भागने लगी..

इसी काम के लिए जावेद पहले से लेडी कॉन्स्टेबल को लाया था जिन्होने बिना देर किए उसका पीछा किया और झपट कर उसे पकड़ लिया और दो थप्पड़ उसकी गालों पर जड़ दिए..
 
"जग्गू काका.." किसी ने कमरे पर दस्तक दी तो जग्गू काका की तंद्रा टूटी जो किन्ही ख़यालों मे खोए हुए थे..

"अरे दीपक बेटा तुम..? आव आव.. अंदर आव.. कहो कैसे आना पड़ गया आज घर हमरे..?" जग्गू काका ने दरवाज़े की तरफ देखा तो पाया कि वहाँ उनके ऑफीस का मॅनेजर दीपक खड़ा था..

वो आज तक कभी घर नही आया था मगर पता नही पहली बार क्यूँ उसे उनके घर आने की ज़रूरत पड़ गयी थी..

"मैं ठीक हूँ जग्गू काका.. इधर से गुज़र रहा था तो सोचा कि आपसे मिलता चलूं.." दीपक ने पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए कहा..

"आफिसे मे सब ठीक ठाक तो चलत है ना..?" जग्गू काका ने ऑफीस का हाल चाल पूछा तो दीपक के चेहरे पर थोड़े भय और थोड़ा बहुत असमंजस की मिली जुली भावनाएँ आ गयी..

"काका.. अगर आप मुझसे पूछें तो कुछ ठीक नही चल रहा ऑफीस मे.." दीपक ने धीरे से कहा..जैसे उसकी बात कोई सुन रहा हो..

"क्यूँ बेटा ऐसन का हो गया..?" जग्गू काका ने असचर्या चकित होते हुए पूछा..

"अरे काका.. ये पूछिए कि क्या नही हुआ.. आज कल राज साहब बिल्कुल बदले बदले हुए से लगते हैं.. जब मन तब किसी पर भी हाथ उठा देते हैं.."

"ई का कहत हो तुम..? ऊ आफिसे के लोगन पर हाथ उठा देता है..?" जग्गू काका की हैरानी की सीमा ना रही..

"काका.. ये तो बहुत कम है.. कल उन्होने हमारे सबसे बुजुर्ग एंप्लायी शर्मा जी को धक्के मारकर ऑफीस से बाहर निकल दिया.. बेचारे रोते रोते घर गये.. इसलिए मुझे आज ना चाहते हुए भी यहाँ आना पड़ा.. क्यूंकी उनकी रोज़ रोज़ की किच किच से सारे वर्कर काम छोड़ड़कर भाग रहे हैं.. और पता नही अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारा बिज़्नेस रहेगा भी या नही.." दीपक के चेहरे पर चिंता की भावना सॉफ देखी जा सकती थी..

ये सब सुनकर जग्गू काका को बहुत अफ़सोस हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था..

"एक बात और काका.." ये बोलते ही जग्गू काका दीपक की ओर देखने लगे..

"हमारे कंपनी के अकाउंट्स मे भी भारी भरकम घपले हो रहे हैं.. और सारे पैसे किसी अमेरिकन बेस्ड कंपनी के अकाउंट्स मे ट्रान्स्फर हो रहे हैं जो कि किसी वियर सिंग नाम के एनआरआइ की कंपनी है.."

ये सब सुनकर जग्गू काका को चक्कर आने लगा.. उन्हें समझ नही आ रहा था कि आख़िर ये सब हो क्या रहा है.. अब उन्हें समझ आया कि राज ने अचानक उनका ऑफीस जाना क्यूँ बंद करवा दिया..

"ई ता बहुत बुरा हो रहा है बेटा.. राज को आने दो . हम खुद ऊकरा से बात करेंगे और ई सब के कारण का पता लगाएँगे.." जागू काका ने कहा तो दीपक के चेहरे पर थोड़ी संतोष की भावना देखी जा सकती थी क्यूंकी वो जानता था कि जग्गू काका की बात राज कभी नही टालता और ना टालेगा.. मगर होने तो कुछ और ही वाला था..

"अच्छा काका अब मैं चलता हूँ.."

"अरे बेटवा इतना जल्दी कहाँ चल दिए.. तनी चाई और ऊ का कहते हैं कॉफी हां कॉफी ता पी के जाओ.." दीपक को उठते हुए देखकर जग्गू काका ने कहा..

"अरे नही काका.. रहने दो.. फिर कभी.." ये बोलकर दीपक ने उनसे इज़ाज़त ली और वहाँ से चला गया..

मगर अपने पीछे छ्चोड़ गया एक आने वाला तूफान जो सब कुछ तभा करने वाला था.. और ना जाने इस तूफान मे कितनी ज़िंदगियाँ तबाह होने वाली थी..

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.............................

"चल बता अब.. क्यूँ मिलाया ज़हेर ठाकुर साहब के खाने मे.." एक लेडी कॉन्स्टेबल उस नौकरानी से सख्ती से पूछताछ कर रही थी..

चाकू पर अभी तक किसी उंगली के निशान नही मिले थे इसलिए ये बता पाना मुश्किल था कि वो दूसरा आदमी कौन था जो ठाकुर साहब को मारना चाहता था इसलिए पोलीस वालों ने असली कातिल तक ही पहुँचने का प्लान बनाया..

"मुझे नही पता.." उस नौकरानी के ऐसा बोलते ही चटाक़ की आवाज़ से पूरा पोलीस स्टेशन गूँज उठा..

"बतात है कि नही.. वरना तुझे आज इतना मारूँगी की तू बोलने लायक नही रहेगी.." यूयेसेस लेडी कॉन्स्टेबल ने उसके बालों को खींचते हुए कहा जिसके कारण उस नौकरानी को बहुत दर्द हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकल गये थे..

"ठीक है ठीक है.. बताती हूँ मैं.. मेरे बाल छ्चोड़ दो.." उस नौकरानी ने अंततः हार मान ही ली..

"ठीक है चल बता अब.." ये बोलकर लेडी कॉन्स्टेबल ने उसके बाल छ्चोड़ दिए और वहीं कुछ दूर बैठे इनस्पेक्टर जावेद को गर्दन हिला कर इशारा किया जिसके बाद वो धीरे धीरे चलकर उनके पास आकर खड़ा हो गया..

"चल अब जल्दी तोते की तरह बोलना शुरू कर.." लेडी कॉन्स्टेबल ने फिर कहा..

"जी मैने ये काम पैसों के लिए किया था.. इसके लिए मुझे किसी ने 5 लाख रुपये(रुपीज़) दिए थे.." नौकरानी ने ये बात बोली तो वहाँ खड़े पोलीस वाले मुस्कराने लगे क्यूंकी उन्हे पता था कि ये काम किसी दूसरे ने ही करवाया है..

"तो तूने पैसों के लिए एक इंसान की जान ले ली.. खैर अब जल्दी बता दे कि वो था कौन वरना अभी तेरे सारे दाँत तोड़ दूँगी" लेडी कॉन्स्टेबल ने घूँसा दिखाते हुए उसे धमकाया..

"जी मुझे इसके लिए राज जी ने पैसे दिए थे.." उस नौकरानी ने डरते डरते कहा.. जिसे सुनकर वहाँ खड़े सभी पोलिसेवालों के चेहरों पर एक आसचर्या की भावना छा गयी जैसे किसी ने उनके ऊपर एक बॉम्ब फोड़ दिया हो..

"तुम जानती हो कि तुम क्या कह रही हो..?" इस बार जावेद ने अपनी ज़ुबान खोली..जिसे सुनकर नौकरानी और डर गयी..

"जी मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ.. मेरा यकीन कीजिए.." नौकरानी ने हाथ जोड़ते हुए कहा और फिर मुहन छुपा कर रोने लगी..

"कॉन्स्टेबल इस औरत को हवालात मे बंद कर दो और गाड़ी निकालो.. हमे अभी निकलना होगा.." ये बोलकर जावेद ने अपनी टोपी पहनी और पोलीस स्टेशन से बाहर निकल गया..

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जब पोलीस स्टेशन मे ये सब हो रहा था उसी दौरान राज के घर मे..

"अरे बेटवा तुम आ गये..?" राज जैसे ही अपने घर के अंदर घुसा वैसे ही वहीं पर हॉल मे बैठे हुए जग्गू काका ने कहा..

"अरे हां काका.. मैं तो आ गया.. आज ऑफीस का काम जल्दी हो गया तो मैने सोचा कि ज़रा घर चला जाउ.." राज ने वही सोफे पर बैठते हुए कहा और अपने शर्ट के ऊपर के दो बटन खोलकर सोफे पर ही लूड़ख गया..

"और बेटवा.. आफिसे मे सब कैसन चल रहा है ?" जग्गू काका अब सीधा मुद्दे की बात पर आने वाले थे..

"अरे काका सब कुछ एक दम फर्स्ट क्लास.. हमारी कंपनी जल्द ही टॉप पर होगी" राज ने अलसाए ढंग से कहा..

"पर ऊ दीपकवा तो कुछ औरे कह रहा था..?" जग्गू काका ने तीर निशाने पर लगाते हुए कहा..

"कौन दीपक काका..?" राज ने उसी तरह अलसाए ढंग से कहा..

"अरे बेटवा तोहार दिमाग़ को का हो गया है..? दीपक वोही हमारे कंपनी का मॅनेजर.. आज ऊ हमरे घर पर आया रहा.. कहत रहा कि तुम आजकल कंपनी मे बहुत घपला करात हो और सब एंप्लायी के साथ मार पीट करत हो ?" जग्गू काका ने पूछा तो राज के चेहरे का रंग उड़ गया..जिसे जग्गू काका ने बखूबी भाँप लिया..

"बकवास करता है वो.. साले की देखो कल कैसे बॅंड बजाता हूँ.." राज ने गुस्से मे कहा तो जग्गू काका ने उसे शांत करने की कोशिश की..

"बेटवा हम आज शर्मा जी से भी बात किए.. बड़े दुखी लागत रहे.. और तोहार कारनामे के बारे मे हामका बतावत रहे.. एक बुजुर्ग के साथ ऐसा व्यवहार..?" जग्गू काका ने कहा तो अचानक ना जाने राज को क्या हो गया और उसने अपनी जेब मे हाथ डाला और एक पिस्टल निकाल कर जग्गू काका पर तान दी..

"ई का करत हो बेटवा.. हम तोहार काका हैं.." जग्गू काका के पसीने छूटने लगे... ना जाने राज पर कौन सा भूत सवार हो गया था..

"अबे बूढ़े काहे का काका बे..? साले ना मैं राज हूँ और ना तू मेरा काका.. और हां मैने कंपनी मे घपले किए और एंप्लायीस को मारा भी.. बोल तू क्या बिगाड़ लेगा मेरा बुड्ढे..? और वैसे भी अब तू मरने वाला है क्यूंकी तू वो जान गया है जो तुझे नही जानना चाहिए था.. तू ये जान गया है कि मैं राज नही हूँ.." वो बोले ही जा रहा था और इससे पहले की जग्गू काका कुछ समझ पाते, बंदूक से गोली निकल चुकी थी और सीधा जग्गू काका के सर मे लगी...

गोली की आवाज़ सुनकर उस घर के सारे नौकर दौड़े चले आए और देखा कि राज ने जग्गू काका को गोली मार दी है जिसे देख कर सब डर गये..

"तुम लोग भी निकल जाओ इस घर से वरना तुम सब भी मारे जाओगे.." राज ने अपनी बंदूक उसकी तरफ करते हुए कहा जिसे सुनकर वो लोग दरवाज़े की तरफ भागे और पूरा घर खाली हो गया.. कोई वहाँ था तो सिर्फ़ राज और गोली की आवाज़ सुनकर वहाँ आई स्नेहा..

"ये क्या किया तुमने राज..? मार दिया अपने बाप सामान इंसान को...? तुम्हारे दिमाग़ को आज क्या हो गया है..?" स्नेहा ने वहाँ पड़ी जग्गू काका की लाश को देखते हुए कहा जो उसकी आँखों के सामने तड़प तड़प कर मर चुके थे..

"अबे काहे का काका और काहे का पिता...? ये सिर्फ़ एक नौकर था और नौकर की मौत मरा.." राज ने अपनी गुण हवा मे लहराते हुए कहा जिसे देख कर स्नेहा को बहुत डर लग रहा था..

"पर राज.."

"बस.." स्नेहा बोलने ही वाली थी कि राज ने उसे हाथों के इशारे से बोलने से रोक दिया..

"कौन राज..? कैसा राज..? कहाँ का राज..? वोही राज जिसे मारकर मैने उसकी लाश जला दी..? कुत्ते की तरह तड़पकर मारा उसे... मैं ठाकुर वीर सिंग हूँ.." उसने गरजती हुई आवाज़ मे कहा जिसके कारण पूरा घर गूँज उठा..

"ये कैसे हो सकता है..? तुम वीर नही राज हो.. आख़िर तुम्हें ये अचानक हो क्या गया है राज..?" स्नेहा ने चीखते हुए कहा...

"कुतिया.. जब एक बार कहा कि मैं राज नही हूँ तो मान ले.." ये बोलकर उस राज उर्फ वीर ने उसके लंबे बाल पकड़ लिए और ज़ोर से खिचने लगा जिसके कारण स्नेहा को दर्द होने लगा...

"तो फिर तुम्हारी शकल राज जैसी कैसे है..?" स्नेहा ने दर्द को भुलाते हुए कहा..

"ये बहुत लंबी कहानी है मेरी रानी.. बस तू इतना जान ले कि मैने प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपना चेहरा तेरे उस चूतिए पति राज की तरह बनवाया है.. अब चूँकि अब तू ये सच्चाई जान चुकी है तो अब वक़्त आ गया ही कि तुझे भी उस राज और इस नौकर के साथ ऊपर पहुँचा दूं.. हाहाहा..." वीर ने शैतानी हँसी हंसते हुए कहा...

"मगर ये तो बता तो कि तुमने ये सब किया क्यूँ..?" ये बोलते हुए अब स्नेहा की आँखों मे अब आँसू आ चुके थे जो रुक ही नही रहे थे..

"तू जानना चाहती है कि मैने ये सब क्यूँ किया..? बोल कुतिया..? जानना चाहती है..? तो सुन.. मैने ये सब सिर्फ़ और सिर्फ़ दौलत के लिए किया.." वीर ने अपने दोनो हाथ हवा मे लहराते हुए कहा..उसने ये सब बोलते हुए अपना हाथ स्नेहा के बालों से अलग कर लिया था जिसका फ़ायदा उठाकर स्नेहा धीरे धीरे पीछे की तरफ जा रही थी...वो उस ड्रॉयर की तरफ बढ़ रही थी जिसमें राज की बंदूक रखी हुई थी..

" क्या दौलत ही तुम्हारे लिए सब कुछ है.. किसी इंसान की जान से बढ़कर है दौलत तुम्हारे लिए..?" स्नेहा ने उसे बातों मे फसाना ज़रूरी समझा और बात को आगे बढ़ती रही जिससे उसे उस ड्रॉयर के पास पहुँचने का मौका मिल सके..

"हां हां.. मुझे सिर्फ़ दौलत से मतलब है.. दौलत नही तो इंसान अधूरा है.. वो गाना तो सुना ही होगा तुमने.. ना बीवी बड़ा ना बच्चा, ना बाप बड़ा ना भाय्या... दा होल थिंग ईज़ दट कि भाय्या सबसे बड़ा रुपय्या.. हाहाहा.." ऐसा लग रहा था कि पृथ्वी पर एक दैत्य के अवतार मे उसने जनम लिया हो.. "अरे दौलत के लिए तो मैं कुछ भी करूँगा... फिर खून करना कौन सी बड़ी बात है..? जिस दौलत के लिए मैने खुद अपने बाप को मार दिया उसके लिए तू क्या चीज़ है..?" ये बोलकर वो फिर हँसने लगा..

"मुझे मारकर भी तुझे मेरी जयदाद नही मिलेगी कमिने.. मैं तो मर जाउन्गि पर तुझे फाँसी होगी..."वो चीखते हुए बोली..

"बहुत चिल्लाती हो तुम कुतिया.. थोड़ा वॉल्यूम कम करो.. तुम जानना नही चाहोगी कि मैने अपने बाप के साथ क्या किया..?" वीर ने एक बार फिर हंसते हुए कहा..

"क्या किया.." स्नेहा ने डरते डरते हुए पूछा पर वो लगातार पीछे हटती जा रही थी.. और वो ये बिल्कुल धीरे धीरे कर रही थी जिससे वीर को पता ना चले..

"मार डाला मैने उसे.. साला कहते था कि मैं ऐय्याश हूँ, शराबी हूँ.. और मुझे अपनी जायदाद से बेदखल करने की बात कहता था.. पहुँचा दिया साले को ऊपर.." उसने हंसते हुए कहा..

"वीर तुम एक कातिल हो खूनी हो.. " स्नेहा ने फिर चिल्लाते हुए कहा..

"हां हूँ मैं खूनी.. हूँ मैं कातिल और अब तुझे भी ऊपर पहुचाउँगा..." और ये बोलकर उसने स्नेहा के ऊपर बंदूक तान दी और इससे पहले की वो ट्रिग्गर दबाता.. एक गोली सीधा उसके सीने मे घुस गयी..

राज ने स्नेहा की तरफ देखा तो पाया कि उसके हाथ मे एक बंदूक है.. और गोली उसी मे से चली है.. इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, वो गिर चुका था और उसकी आत्मा उसके शरीर से निकल चुकी थी..

स्नेहा किसी बुत की तरह एक हाथ मे गुण पकड़े वहाँ खड़ी थी जो कुछ ही देर बाद उसके हाथों से छूट गयी...

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--13

गतान्क से आगे...........................

"आए. उठो और चलो हमारे साथ. अदालत की सुनवाई का टाइम हो गया है." एक लेडी कॉन्स्टेबल ने आकर दरवाज़ा खोला तो स्नेहा अपनी सोच से बाहर आई. उसने एक नज़र इधर उधर डाली और फिर कॉन्स्टेबल को देख कर खड़ी हो गयी..

"आओ मेरे पीछे पीछे." कॉन्स्टेबल ने इशारा किया तो स्नेहा उसके पीछे चल दी.

उसके आस पास करीब 5 पोलीस वाले थे जिनमें दो लेडी कॉन्स्टेबल थी. उसे पोलीस स्टेशन से बाहर लाया गया और वहीं खड़ी एक पोलीस वॅन मे बैठा दिया गया और फिर वॅन चल पड़ी.

करीब आधे घंटे के सफ़र के बाद वो लोग कोर्ट के सामने खड़े थे.. कोर्ट के सामने लोगों की भारी भीड़ थी जिसे कंट्रोल करने मे पोलीस को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी. सब लोग ये जानने के लिए उतावले थे कि आख़िर कोर्ट क्या फ़ैसला करती है.

उसे वॅन से उतारकर कोर्टरूम मे ले जाया गया और वहीं एक कटघरे मे खड़ा कर दिया गया.

वो पूरा रूम लोगों की भीड़ के कारण पूरा भरा हुआ था. सब आपस मे यही बातें कर रहे थे कि आख़िर कोर्ट का फ़ैसला क्या होगा.

लोगों ने जहाँ तक सुना था उसके अनुसार कोर्ट को स्नेहा को बेकसूर मान कर रिहा कर देना चाहिए था.. मगर क़ानून की नज़रों मे एक खूनी तो खूनी ही है और स्नेहा ने वीर सिंग का खून किया था इसलिए उसे आज यहाँ खड़ा होना पड़ा था..

तभी जड्ज के अंदर आने की अनाउन्स्मेंट हुई और ये सुनकर सभी लोग खड़े हो गये.. कुछ देर बाद ही जड्ज भी अंदर आ गया..

वो एक 50 साल के करीब का नाटा सा आदमी था या यूँ कह लें कि बुद्धा था.. वो आते ही अपनी कुर्सी पर बैठ गया और सभी लोगों को बैठने का इशारा किया..

"अदालत की कारवाई शुरू की जाए.." उसने बुलंद आवाज़ मे एलान किया जिसे सुनकर दोनो पक्षों के वकील अपनी अपनी काली कोर्ट सीधी करने लगे..

"माइ लॉर्ड.." विपक्षी वकील ने खड़े होते हुए कहा..

"माइ लॉर्ड.. जैसा कि यहाँ खड़े सभी लोग जानते हैं कि कटघड़े मे खड़ी ये मासूम सूरत वाली लड़की देखने मे जितनी मासूम है उतनी है नही.. इसकी मासूम सूरत के पीछे एक खूनी छिपा हुआ है.." ये बोलकर वो कुछ देर रुका और फिर बोलना जारी रखा..

"जैसा कि सब जानते हैं.. इस लड़की ने अपने पति राज सिंघानिया का खून किया है और ऐसा करते हुए वहाँ खड़े नौकरोने ने देखा था..जो इस खून के चस्मदीद गवाह हैं..इसलिए मेरी अदालत से दरख़्वास्त है कि मुलज़िमा को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए.. थ्ट्स ऑल."

ये बोलकर वो वकील वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया..

"मेरे काबिल दोस्त ने बहुत कुछ बोल तो दिया माइ लॉर्ड.." स्नेहा के वकील ने खड़े होते हुए कहा..

"मगर ये नही बताया कि स्नेहा ने उसे क्यूँ मारा.. सच्चाई तो ये है माइ लॉर्ड की वो आदमी राज था ही नही बल्कि उसकी शकल मे छिपा वीर सिंघानिया था.." ये बात सुनकर पूरे कोर्ट रूम मे शोर होने लगा.. सब यही पूछ रहे थे एक दूसरे से की आख़िर ये हो क्या रहा है..

"ऑर्डर ऑर्डर" जड्ज ने सबको शांत करने के लिए बगल मे रखा हथोदा बजा दिया..

"इसका कोई सबूत है आपके पास कि वो राज नही था..?" जड्ज ने पूछा तो उस वकील के पास कोई जवाब नही था..

"विदाउट एविडेन्स, यू कॅन'ट डू एनितिंग मिस्टर. लॉयर" जड्ज ने मुस्कुराते हुए कहा..

"क्या मुलज़िमा को अपना गुनाह कबूल है..?" जड्ज ने अब अपना सर स्नेहा की तरह करते हुए कहा..

जिसके जवाब मे स्नेहा ने अपनी गर्दन हिलाकर हां का इशारा किया..

"एक मिनिट स्नेहा.. " सबकी नज़र उस आवाज़ की तरफ घूम गयी.. ये और कोई नही बल्कि रवि था और उसके पीछे पीछे रिया भी थी..

"जड्ज साहब मैं कुछ बोलने की इज़ाज़त चाहता हूँ.." रवि ने आगे आते हुए कहा जिसपर जड्ज ने सहमति दे दी..

"थॅंक्स माइ लॉर्ड" कटघड़े मे आते ही रवि ने जड्ज का धन्यवाद किया जिसे जड्ज ने गर्दन हिलाकर स्वीकार कर लिया..

"माइ लॉर्ड स्नेहा बिल्कुल बेकसूर है.. और इसके सारे सबूत मेरे पास हैं.." ये बोलकर रवि ने अपनी जेब से एक पेन ड्राइव निकाल ली..

"माइ लॉर्ड.. ये है वो सबूत है जो स्नेहा को बिल्कुल बेगुनाह साबित कर देगा.." जड्ज ने इशारा किया तो नीचे मे बैठे आदमी ने वो पेन ड्राइव रवि के हाथों से ले लिया..
 
"जड्ज साहब, इस पेन ड्राइव मे एक वीडियो है जो स्नेहा को बिल्कुल बेकसूर साबित कर देगा.. ये वीडियो मैने तब लिया था जब उस दिन मैं राज के घर के आगे से गुज़र रहा था.. मैने वहाँ बहुत शोर शराबा सुना और उस तरफ चल पड़ा पर वहाँ पता चला कि अंदर राज पागल हो गया है और जग्गू काका को मार दिया है.. मैं अंदर जाने ही वाला था कि मुझे लगा कि कहीं मेरी जान पर ख़तरा ना हो जाए इसलिए मैने एक खिड़की से ये सब देखने का प्लान बनाया.. जब मैं खिड़की के पास गया तो पाया कि राज ने स्नेहा के ऊपर गुण तान रखी है और उसे अपने वीर होने की सच्चाई बता रहा है.. इसलिए मैने सोचा कि ये वीडियो ले लूँ क्यूंकी अगर स्नेहा मरती तो मैं वीर को ब्लॅकमेल करके पैसे ऐंठ सकता था.. पर वहाँ तो उल्टा वो ही मर गया था.." उसकी ये बात सुनकर फिर पूरे कोर्ट मे शोर होने लगा..

"मिस्टर. रवि.. क्या आप जानते हैं कि ब्लॅकमेलिंग करना क़ानूनन जुर्म है..?"जड्ज ने पूछा तो रवि ने हां मे गर्दन हिला कर माफी माँग ली.. इसके बाद जड्ज ने इशारा किया और वो वीडियो पूरे कोर्ट के सामने चलाया गया जिसमें राज अपने वीर होने की बात कबूल रहा था और स्नेहा पर गन ताने खड़ा था.

वो वीडियो देखकर एक बार फिर कोर्ट मे शोर होने लगा जिसे जड्ज को फिर शांत करवाना पड़ा..

"जैसा कि हम ने इस वीडियो मे देखा कि वीर ही राज था और उसने ऐसा प्लास्टिक सर्जरी के ज़रिए किया था मगर फिर भी इस वीडियो की टेस्टिंग करवानी ज़रूरी है क्यूंकी आजकल मार्केट मे बहुत से वीडियो एडिटिंग टूल्स आ गये हैं इसलिए ये आदेश दिया जाता है कि इस वीडियो को टेस्टिंग लॅब मे भेज दिया जाए और इस केस का फ़ैसला अगली तारीख तक के लिए टाला जाता है.." ये बोलकर जड्ज अपनी कुर्सी से उठ गया..

******************

"चियर्स !!" स्नेहा, रिया और रवि एक कमरे मे बैठे थे और तीनो के हाथों मे शराब के ग्लास थे.. आज ही स्नेहा की रिहाई हो चुकी थी इसलिए उसने इस ख़ुसी मे रवि और रिया को पार्टी दी थी..

कुछ देर पीने के बाद तीनो एक दूसरे की तरफ देखकर पागलों की तरह हस्ने लगे..

"अच्छा बेवकूफ़ बनाया दुनिया को तुमने स्नेहा.." रवि ने हस्ते हुए कहा..

"अरे ये दुनिया तो है ही बेवकूफ़.. और कितना बेवकूफ़ बनाना इसे..?" स्नेहा ने भी हस्ते हुए जवाब दिया.. फिर उसने शराब की ग्लास टेबल पर रख दी..और बोलने लगी..

"उस दिन जब रिया मेरे पास सारे प्लान लेकर आई थी तो पहले मुझे इसमें बहुत बड़ी बुराई नज़र आई मगर फिर काफ़ी सोचने के बाद मैने हां कर दी थी.." स्नेहा ने मुस्कराते हुए कहा..

"मेरी नज़र तो राज के पैसों पर काफ़ी दिनो से थी मगर उसके पास मेरे इतना प्रींगनेन्सी का नाटक करने के वाबजूद भी जब बात नही बनी तब मैं तुम्हारे पास आई थी" रिया ने कहा..

"अरे तुम दोनो अपनी छ्चोड़ो तुम दोनो ने तो मुझे भी इस प्लान मे शामिल कर लिया हाहाहा.." ये बोलकर रवि भी जानवरों की तरह हस्ने लगा..

"वो तो है... प्लान के अनुसार ही काम करते हुए मैने पहले राज से प्यार का नाटक किया और फिर उससे शादी कर ली.. उसके बाद मैने वीर को भी अपने चुंगुल मे फँसा लिया और फिर राज को उस मंदिर मे बुलवाकर उसका खून करवा दिया और उसकी लाश को जलवा दिया.. और इस सब मे मेरा साथ दिया मेरे एक मोहरे वीर ने.. वो बेचारा भी मेरे प्यार के जाल मे फँस गया और मेरे कहने पर ही उसने प्लास्टिक सर्जरी भी करवा ली.." इसके बाद स्नेहा रवि और रिया की तरफ देखने लगे जो कि अब भी हस रहे थे और फिर बोलना जारी रखा..

"इसके बाद मैने ज़हेर के द्वारा अपने बाप को भी मरवा दिया क्यूंकी वो मेरा प्लान जान चुका था और मुझे अपनी जायदाद से बेदखल करने की बात कर रहा था..

मैने धोखे से राज की कंपनी का सारा पैसा अपने अकाउंट मे ट्रान्स्फर करवा लिया और वीर की जयदाद भी अपने नाम करवा ली.. और वो बेवकूफ़ मेरे प्यार मे ऐसा पागल था कि उसने ऐसा कर भी दिया.." ये बोलकर स्नेहा एक बार फिर ज़ोरों से हस्ने लगी.. बड़ी मुश्किल से उसने हसी को काबू किया और फिर बोलना जारी रखा..
 
"मगर उस कमीने को हमारे प्लान के बारे मे पता चल गया और उस दिन वो मुझे ही मारने घर आया था पर वो जग्गू बुद्धा भी मारा गया और उसके साथ साथ खुद वीर भी.. मैने जान बूझकर खुदको पोलीस से पकड़वाया और कोर्ट गयी ताकि दुनिया वालों का शक़ मुझ पर से हमेशा के लिए उठ जाए.. और पहले से बेवकूफ़ बन रही दुनिया को एक बार और बेवकूफ़ बनाया.." ये बोलकर तीनो हस्ने लगे और तबतक हंसते रहे जब तक उनकी आँखों मे आँसू ना आ गये...

"और इन सब कामों मे तुम लोगों ने मेरा बखूबी साथ दिया.." स्नेहा ने अपनी हसी रोकते हुए कहा..

"मगर एक बात समझ नही आई कि तुमने ठाकुर साहब को चाकू क्यूँ मरवाया जब तुमने उन्हें ज़हेर देकर मार ही दिया था..?" रिया ने पूछा तो स्नेहा मुस्करा दी..

"इसलिए ताकि उन्हे लगे कि उसे चाकू से मारा गया है मगर आजकल के ज़माने मे सच को छुपा पाना बहुत मुश्किल काम है इसलिए मुझे नौकरानी के मुह्न मे और पैसे ठूँसने पड़े ताकि वो मेरी जगह राज यानी कि वीर की नाम ले.." स्नेहा ने कहा और फिर खड़ी होकर इधर उधर घूमने लगी..

"और वो तुम्हारे पेट मे जो बच्चा पल रहा है उसका क्या..?" रिया ने पूछा तो स्नेहा ने फिर से उसकी तरफ मुस्कराते हुए देखा..

"तुम्हें क्या लगता है कि सिर्फ़ तुम्ही झूठी प्रेग्नेन्सी का नाटक कर सकती हो..?" स्नेहा ने उसी अंदाज़ मे कहा..

"अब आगे का क्या प्लान है..?" रवि ने पूछा तो स्नेहा के चेहरे पर फिर से एक शैतानी मुस्कान छा गयी..

"विदेश जाउन्गि घर खरिदुन्गि और आराम से जिंदगी बिताउन्गि" स्नेहा ने हस्ते हुए कहा..

"बाइ दा वे अब हमे भी चलना चाहिए.. तुम्हें हमारा हिस्सा तो याद है ना.." रिया और रवि ने खड़े होते हुए कहा..

"तुम्हारा हिस्सा तो अब राज ही दे पाएगा.." स्नेहा ने हंसते हुए कहा..

"इससे क्या मतलब है तुम्हारा..?" रवि ने अश्मन्जस से कहा... और इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता दो गोली सीधे उसके सीने के आर पार हो गयी.. और उसने गिरते गिरते पाया कि रिया क़ी भी अब मौत होने वाली है..

उसने स्नेहा की तरफ नज़र डाली तो पाया कि वो जोरों से हंस रही है और इसके साथ ही वो मौत के मुह्न मे चला गया..

दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना तो फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा

दा एंड
 
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