hotaks444
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सुबह के 5 बजे होंगे की मामी के आवाज से हम दोनों की नींद खुली।
मैंने दरवाजा खोला तो वो बोल पड़ी....
मामी:=झटपट तैयार हो जाओ मंदिर जाना है।
मैं:=मंदिर??नहीं मामी मैं नहीं आ रही मंदिर मुझे सोना है।
मामी :=अरे आज पोर्णिमा है ये पोर्णिमा 10 साल में एक बार आती है और अपने गाव के मंदिर में आज बहोत बड़ी पूजा होती है और आज के दिन जो भी मुराद मांगोगे वो पूरी होती है।
नेहा भी उठ चुकी थी।
नेहा:=हा माधवी माँ सच कह रही है। चल चलते है
मामी:=चलो जल्दी तैयार हो जाओ बाबूजी तुम्हारा इन्तजार कर रहे है। मुझे तो मंदिर मना है इसलिए मैं नहीं आ पाऊँगी।
हम लोग तैयार हुए और नानाजी और नीरज के साथ मंदिर पहुचे। बहोत भीड़ थी और लंबी लाइन हम लाइन में लग गए।सामने नीरज उसके पीछे मै नेहा और नानाजी लाइन में भी बहोत लोग आगे पीछे धकेल रहे थे। इधर नेहा की हालात ख़राब थी। क्यू की पिछेसे नानाजी का लंड उसकी गांड पे लग रहा था।
नानाजी तो थे दीवाने नेहा की गांड के वो भी भीड़ का फायदा लेके मजे से अपना लंड उसकी गांड पे रगड़ रहे थे। सुरु सुरु में नेहा को घबराहट हुई पर बादमे वो नानाजी से चिपके खड़ी हो गयी और नानाजी के तगड़े लंड का मजा अपनी गांड को दिलाने लगी। नानाजी की मुराद तो जैसे मंदिर जाने से पहले ही पूरी हो चुकी थी।
उन्हें भी सुरु सुरु में थोडा झिझक हो रही थी पर जब उन्हें नेहा की और रेसपोंस मिलाने लगा तो वो भी बिनधास्त हो के अपना लंड नेहा की गांड से रगड़ने लगे थे।मुझे तो इस बात का अंदाजा नेहा का चेहरा देख के ही चल चूका था। मैं उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी सो मैं नीरज के साथ बाते करने लगी।
मैंने दरवाजा खोला तो वो बोल पड़ी....
मामी:=झटपट तैयार हो जाओ मंदिर जाना है।
मैं:=मंदिर??नहीं मामी मैं नहीं आ रही मंदिर मुझे सोना है।
मामी :=अरे आज पोर्णिमा है ये पोर्णिमा 10 साल में एक बार आती है और अपने गाव के मंदिर में आज बहोत बड़ी पूजा होती है और आज के दिन जो भी मुराद मांगोगे वो पूरी होती है।
नेहा भी उठ चुकी थी।
नेहा:=हा माधवी माँ सच कह रही है। चल चलते है
मामी:=चलो जल्दी तैयार हो जाओ बाबूजी तुम्हारा इन्तजार कर रहे है। मुझे तो मंदिर मना है इसलिए मैं नहीं आ पाऊँगी।
हम लोग तैयार हुए और नानाजी और नीरज के साथ मंदिर पहुचे। बहोत भीड़ थी और लंबी लाइन हम लाइन में लग गए।सामने नीरज उसके पीछे मै नेहा और नानाजी लाइन में भी बहोत लोग आगे पीछे धकेल रहे थे। इधर नेहा की हालात ख़राब थी। क्यू की पिछेसे नानाजी का लंड उसकी गांड पे लग रहा था।
नानाजी तो थे दीवाने नेहा की गांड के वो भी भीड़ का फायदा लेके मजे से अपना लंड उसकी गांड पे रगड़ रहे थे। सुरु सुरु में नेहा को घबराहट हुई पर बादमे वो नानाजी से चिपके खड़ी हो गयी और नानाजी के तगड़े लंड का मजा अपनी गांड को दिलाने लगी। नानाजी की मुराद तो जैसे मंदिर जाने से पहले ही पूरी हो चुकी थी।
उन्हें भी सुरु सुरु में थोडा झिझक हो रही थी पर जब उन्हें नेहा की और रेसपोंस मिलाने लगा तो वो भी बिनधास्त हो के अपना लंड नेहा की गांड से रगड़ने लगे थे।मुझे तो इस बात का अंदाजा नेहा का चेहरा देख के ही चल चूका था। मैं उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी सो मैं नीरज के साथ बाते करने लगी।