- Joined
- Dec 5, 2013
- Messages
- 11,318
स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'डॉली ने मुड़कर देखा-पहाड़ी के पीछे से चांद निकल आया था। अंधकार अब उतना न था। नागिन की तरह बल खाती पगडंडी अब साफ नजर आती थी। उजाले के कारण मन की। घबराहट कुछ कम हुई और उसके पांव तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे।
रामगढ़ बहुत पीछे छूट गया था। छूटा नहीं था-छोड़ दिया था उसने! विवशता थी। अपनों के नाम पर कोई था भी तो नहीं। और जो थे भी उन्होंने उसका सौदा कर दिया था। बेच दिया था-उसे सिर्फ पांच हजार रुपयों में। सिर्फ पांच हजार रुपए यही कीमत थी उसकी।
कल उसका विवाह होना था-बूढ़े जमींदार के साथ। धनिया बता रही थी-शहर से अंग्रेजी बैंड आ रहा था। कुछ बाराती भी शहर से ही आ रहे थे। जमींदार का एक मकान शहर में भी था। पूरे गांव की दावत थी। जमींदार अपने विवाह पर पानी की तरह पैसा बहा रहा था। और इससे पूर्व कि यह सब होता, उसकी बारात आती, वह जमींदार की दुल्हन बनती-उसने रामगढ़ छोड़ दिया था। सदा के लिए। सोचा था-सोनपुर में उसकी बुआ रहती है। वहीं चली जाएगी। सोचते-सोचते वह पगडंडी से नीचे आ गई। चांदनी अब पूरे यौवन पर थी। ये लगता-मानो वातावरण पर चांदी बिखरी हो। दाएं-बाएं घास के बड़े-बड़े खेत थे और उनसे आगे थी वह सड़क जो उस इलाके को शहर से मिलाती थी।
घास के खेतों से निकलते ही डॉली के कदमों में पहले से अधिक तेजी आ गई। शहर की दूरी । चार मील से कम न थी और उसे वहां कोस से पहले ही पहुंच जाना था।
एकाएक वह चौंक गई। पर्वतपुर की दिशा से कोई गाड़ी आ रही थी। गाड़ी को देखकर डॉली के मन में एक नई आशा जगी। गाड़ी यदि रुक गई तो उसे शहर पहुंचने में कोई कठिनाई न होगी। वास्तव में ऐसा ही हुआ। ये एक छोटा ट्रक था जो उसके समीप आकर रुक गया और इससे पूर्व कि वह ट्रक चालक से कुछ कह पाती-अंदर से चार युवक निकले और उसके इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गए। उनकी आंखों में आश्चर्य एवं अविश्वास के साथ-साथ वासना के भाव भी नजर आते थे।
.
डॉली ने उन्हें यूं घूरते पाया तो वह सहम गई। उसे लगा कि उसने यहां रुककर ठीक नहीं किया। वह अभी यह सब सोच ही रही थी कि उनमें से एक युवक ने अपने साथी को संबोधित किया
'हीरा!'
'कमाल है गुरु!'
'क्या कमाल है?'
'यह कि ऊपर वाले ने हमारे लिए आकाश से एक परी भेज दी।'
'है तो वास्तव में परी है। क्या रूप है-क्या यौवन है।' 'और-सबसे बड़ी बात तो यह है कि रात का वक्त है-चारों ओर सन्नाटा है!'
'तो फिर-करें शुरू खेल?'
'नेकी और पूछ-पूछ। कहते हैं-शुभ काम में तो वैसे भी देर नहीं करनी चाहिए।' कहते ही युवक ने ठहाका लगाया।
इसके उपरांत वह ज्यों ही डॉली की ओर बढ़ा-डॉली कांपकर पीछे हट गई और घृणा से चिल्लाई- 'खबरदार! यदि किसी ने मुझे हाथ भी लगाया तो।' 'वाह रानी!' युवक इस बार बेहूदी हंसी हंसा और बोला- 'ऊपर वाले ने तुझे हमारे लिए बनाया है, तू हमारे लिए आकाश से परी बनकर उतरी और हम तुझे हाथ न लगाएं? छोड़ दें तुझे? नहीं रानी! इस वक्त तो तुझे हमारी प्यास बुझानी ही पड़ेगी।'
'नहीं-नहीं!' डॉली फिर चिल्लाई।
किन्तु युवक ने इस बार उसे किसी गुड़िया की भांति उठाया और निर्दयता से सड़क पर पटक दिया। यह देखकर डॉली अपनी बेबसी पर रो पड़ी और पूरी शक्ति से चिल्लाई- 'बचाओ! बचाओ!'
युवक उसे निर्वस्त्र करने पर तुला था। उसने तत्काल अपना फौलाद जैसा पंजा डॉली के मुंह पर रख दिया और बोला
'चुप साली! इस वक्त तो तुझे भगवान भी बचाने नहीं आएगा।' किन्तु तभी वह चौंक गया।
शहर की दिशा से एक गाड़ी आ रही थी और उसकी हैडलाइट्स में एक वही नहीं, उसके साथी भी पूरी तरह नहा गए थे। घबराकर वह अपने साथियों से बोला- 'यह तो गड़बड़ी हो गई हीरा!'
'डोंट वरी गुरु! तुम अपना काम करो। उस गाड़ी वाले को हम देख लेंगे।'
'डॉली ने मुड़कर देखा-पहाड़ी के पीछे से चांद निकल आया था। अंधकार अब उतना न था। नागिन की तरह बल खाती पगडंडी अब साफ नजर आती थी। उजाले के कारण मन की। घबराहट कुछ कम हुई और उसके पांव तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे।
रामगढ़ बहुत पीछे छूट गया था। छूटा नहीं था-छोड़ दिया था उसने! विवशता थी। अपनों के नाम पर कोई था भी तो नहीं। और जो थे भी उन्होंने उसका सौदा कर दिया था। बेच दिया था-उसे सिर्फ पांच हजार रुपयों में। सिर्फ पांच हजार रुपए यही कीमत थी उसकी।
कल उसका विवाह होना था-बूढ़े जमींदार के साथ। धनिया बता रही थी-शहर से अंग्रेजी बैंड आ रहा था। कुछ बाराती भी शहर से ही आ रहे थे। जमींदार का एक मकान शहर में भी था। पूरे गांव की दावत थी। जमींदार अपने विवाह पर पानी की तरह पैसा बहा रहा था। और इससे पूर्व कि यह सब होता, उसकी बारात आती, वह जमींदार की दुल्हन बनती-उसने रामगढ़ छोड़ दिया था। सदा के लिए। सोचा था-सोनपुर में उसकी बुआ रहती है। वहीं चली जाएगी। सोचते-सोचते वह पगडंडी से नीचे आ गई। चांदनी अब पूरे यौवन पर थी। ये लगता-मानो वातावरण पर चांदी बिखरी हो। दाएं-बाएं घास के बड़े-बड़े खेत थे और उनसे आगे थी वह सड़क जो उस इलाके को शहर से मिलाती थी।
घास के खेतों से निकलते ही डॉली के कदमों में पहले से अधिक तेजी आ गई। शहर की दूरी । चार मील से कम न थी और उसे वहां कोस से पहले ही पहुंच जाना था।
एकाएक वह चौंक गई। पर्वतपुर की दिशा से कोई गाड़ी आ रही थी। गाड़ी को देखकर डॉली के मन में एक नई आशा जगी। गाड़ी यदि रुक गई तो उसे शहर पहुंचने में कोई कठिनाई न होगी। वास्तव में ऐसा ही हुआ। ये एक छोटा ट्रक था जो उसके समीप आकर रुक गया और इससे पूर्व कि वह ट्रक चालक से कुछ कह पाती-अंदर से चार युवक निकले और उसके इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गए। उनकी आंखों में आश्चर्य एवं अविश्वास के साथ-साथ वासना के भाव भी नजर आते थे।
.
डॉली ने उन्हें यूं घूरते पाया तो वह सहम गई। उसे लगा कि उसने यहां रुककर ठीक नहीं किया। वह अभी यह सब सोच ही रही थी कि उनमें से एक युवक ने अपने साथी को संबोधित किया
'हीरा!'
'कमाल है गुरु!'
'क्या कमाल है?'
'यह कि ऊपर वाले ने हमारे लिए आकाश से एक परी भेज दी।'
'है तो वास्तव में परी है। क्या रूप है-क्या यौवन है।' 'और-सबसे बड़ी बात तो यह है कि रात का वक्त है-चारों ओर सन्नाटा है!'
'तो फिर-करें शुरू खेल?'
'नेकी और पूछ-पूछ। कहते हैं-शुभ काम में तो वैसे भी देर नहीं करनी चाहिए।' कहते ही युवक ने ठहाका लगाया।
इसके उपरांत वह ज्यों ही डॉली की ओर बढ़ा-डॉली कांपकर पीछे हट गई और घृणा से चिल्लाई- 'खबरदार! यदि किसी ने मुझे हाथ भी लगाया तो।' 'वाह रानी!' युवक इस बार बेहूदी हंसी हंसा और बोला- 'ऊपर वाले ने तुझे हमारे लिए बनाया है, तू हमारे लिए आकाश से परी बनकर उतरी और हम तुझे हाथ न लगाएं? छोड़ दें तुझे? नहीं रानी! इस वक्त तो तुझे हमारी प्यास बुझानी ही पड़ेगी।'
'नहीं-नहीं!' डॉली फिर चिल्लाई।
किन्तु युवक ने इस बार उसे किसी गुड़िया की भांति उठाया और निर्दयता से सड़क पर पटक दिया। यह देखकर डॉली अपनी बेबसी पर रो पड़ी और पूरी शक्ति से चिल्लाई- 'बचाओ! बचाओ!'
युवक उसे निर्वस्त्र करने पर तुला था। उसने तत्काल अपना फौलाद जैसा पंजा डॉली के मुंह पर रख दिया और बोला
'चुप साली! इस वक्त तो तुझे भगवान भी बचाने नहीं आएगा।' किन्तु तभी वह चौंक गया।
शहर की दिशा से एक गाड़ी आ रही थी और उसकी हैडलाइट्स में एक वही नहीं, उसके साथी भी पूरी तरह नहा गए थे। घबराकर वह अपने साथियों से बोला- 'यह तो गड़बड़ी हो गई हीरा!'
'डोंट वरी गुरु! तुम अपना काम करो। उस गाड़ी वाले को हम देख लेंगे।'