desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
“इंस्पेक्टर साहब”—श्रीकान्त बोला—“मुझे कुछ चोरी के हीरे-जवाहरात का सुराग मिला है। मुझे स्पष्ट संकेत मिले हैं कि वे जवाहरात वही हैं जो आसिफ अली रोड पर हुए कामिनी देवी के कत्ल के बाद उसके फ्लैट से चुराये गए थे।”
“कहां हैं वे जवाहरात?”
“वे जवाहरात एक आदमी के पास हैं।”
“उसका नाम-पता बोलो।”
“ऐसे नहीं, साहब। पहले यह बतायें कि उन जवाहरात की बरामदी में मदद करने के बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
“तुम्हें क्या मिलेगा!”
“जी हां। मुझे भी तो कोई ईनाम-इकराम मिलना चाहिए!”
“उन जवाहरात की बरामदी पर कोई ईनाम नहीं है।”
“पुलिस की तरफ से नहीं होगा लेकिन होगा जरूर।”
“और कहां से होगा?”
“कामिनी देवी इतनी रईस औरत थी। यह नहीं हो सकता कि उसके इतने कीमती जेवरात इंश्योर्ड न हों। अगर वे इंश्योर्ड थे तो इंश्योरेन्स कम्पनी माल की कीमत का कम-से-कम नहीं तो दस प्रतिशत तो खुशी से ईनाम में दे देगी।”
“तुम इंश्योरेन्स कम्पनी से ईनाम हासिल करने की फिराक में हो?”
“और क्या मैं वालंटियर हूं जो इतनी महत्वपूर्ण जानकारी किसी को फोकट में दूंगा!”
“हर नेक शहरी का फर्ज बनता है कि वह अपराध की रोकथाम और उसकी तफ्तीश में पुलिस की मदद करे।”
“मैं उतना नेक शहरी नहीं। और फिर मैं कोई नाजायज या गैरकानूनी बात नहीं कह रहा। इंश्योरेन्स कम्पनी से ईनाम हासिल करने का मुझे हक पहुंचता है।”
“ठीक है। तुम यहां आ जाओ। हम तुम्हें इंश्योरेंस कम्पनी वालों से मिलवा देंगे।”
“जी नहीं। आप मुझे उस इंश्योरेन्स कम्पनी का नाम बतायें जिसके पास कामिनी देवी के जेवरात इंश्योर्ड थे।”
“पहले तुम अपना नाम तो बताअो।”
“अपना नाम बताना मैं जरूरी नहीं समझता।”
“तुमने जवाहरात अपनी आंखों से देखे हैं या तुम्हें सिर्फ खबर है कि वे किसी के पास हैं?”
“मैंने अपनी आंखों से देखे हैं।”—श्रीकान्त ने साफ झूठ बोला।
“वे जेवरों की सैटिंग में हैं या खुले?”
“खुले।”
“कैसे हैं वो?”
“कैसे क्या मतलब?”
“मेरा मतलब है वे हीरे हैं या मोती हैं या...”
“हीरे-पन्ने, पुखराज, नीलम, मानक, मोंगा, मोती सब कुछ है उन जवाहरात में।”
“मोती भी खुले हैं?”
“नहीं। वे एक लड़ी की सूरत में हैं।”
“सिर्फ एक लड़ी?”
“हां।”
“उनमें कोई एक बहुत बड़ा हीरा भी था?”
“मैंने ध्यान नहीं दिया था। शायद रहा हो।”
“वह हीरा इतना बड़ा है कि ध्यान दिए बिना भी उसकी तरफ ध्यान जाए बिना नहीं रह सकता।”
“मेरा ध्यान नहीं गया था।”
“यही इस बात का सबूत है कि बड़ा हीरा, जो कि फेथ डायमंड के नाम ले जाना जाता है, उन जवाहरात में नहीं था।”
“तो नहीं होगा।”
“तुम यह कैसे कह सकते हो कि वे जवाहत चोरी के हैं, कि वे उस आदमी की अपनी मिल्कियत नहीं जिसके पास कि तुमने उन्हें देखा है।”
“ऐसा मैं उस आदमी का औकात की वजह से कह सकता हूं। आज की तारीख में एक चांदी का छल्ला खरीदने की हैसियत नहीं है उसकी।”
“लेकिन तुम यह दावा कैसे कर सकते हो कि वे आसिफ अली रोड वाले केस से ताल्लुक रखते जवाहरात हैं?”
एकाएक श्रीकान्त को लगा कि इंस्पेक्टर खामखाह उसे बातों में फंसाए रखने की कोशिश कर रहा था। पुलिस वाले दूसरे फोन से एक्सचेंज में रिंग करके मालूम कर सकते थे कि पुलिस स्टेशन के चतुर्वेदी वाले फोन पर जो काल लगी हुई थी, वह कहां से की गई थी।
यानी कि उसको पकड़ने के लिए पुलिस किसी भी क्षण वहां पहुंच सकती थी।
“मुझे बातों में मत उलझाइए, इंस्पेक्टर साहब।”—वह जल्दी से बोला—“मुझे कामिनी देवी की इंश्योरेन्स कम्पनी का पता बताइए नहीं तो मैं फोन बन्द करता हूं।”
“कामिनी देवी के जेवरात”—उसके कान में आवाज पड़ी—“न्यू इण्डिया इंश्योरेन्स कम्पनी, जनपथ के पास इंश्योर्ड थे।”
“शुक्रिया।”—श्रीकान्त बोला। उसने फौरन रिसीवर वापिस हुक पर टांग दिया।
वह कम्पाउण्ड से बाहर निकल आया।
“कहां हैं वे जवाहरात?”
“वे जवाहरात एक आदमी के पास हैं।”
“उसका नाम-पता बोलो।”
“ऐसे नहीं, साहब। पहले यह बतायें कि उन जवाहरात की बरामदी में मदद करने के बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
“तुम्हें क्या मिलेगा!”
“जी हां। मुझे भी तो कोई ईनाम-इकराम मिलना चाहिए!”
“उन जवाहरात की बरामदी पर कोई ईनाम नहीं है।”
“पुलिस की तरफ से नहीं होगा लेकिन होगा जरूर।”
“और कहां से होगा?”
“कामिनी देवी इतनी रईस औरत थी। यह नहीं हो सकता कि उसके इतने कीमती जेवरात इंश्योर्ड न हों। अगर वे इंश्योर्ड थे तो इंश्योरेन्स कम्पनी माल की कीमत का कम-से-कम नहीं तो दस प्रतिशत तो खुशी से ईनाम में दे देगी।”
“तुम इंश्योरेन्स कम्पनी से ईनाम हासिल करने की फिराक में हो?”
“और क्या मैं वालंटियर हूं जो इतनी महत्वपूर्ण जानकारी किसी को फोकट में दूंगा!”
“हर नेक शहरी का फर्ज बनता है कि वह अपराध की रोकथाम और उसकी तफ्तीश में पुलिस की मदद करे।”
“मैं उतना नेक शहरी नहीं। और फिर मैं कोई नाजायज या गैरकानूनी बात नहीं कह रहा। इंश्योरेन्स कम्पनी से ईनाम हासिल करने का मुझे हक पहुंचता है।”
“ठीक है। तुम यहां आ जाओ। हम तुम्हें इंश्योरेंस कम्पनी वालों से मिलवा देंगे।”
“जी नहीं। आप मुझे उस इंश्योरेन्स कम्पनी का नाम बतायें जिसके पास कामिनी देवी के जेवरात इंश्योर्ड थे।”
“पहले तुम अपना नाम तो बताअो।”
“अपना नाम बताना मैं जरूरी नहीं समझता।”
“तुमने जवाहरात अपनी आंखों से देखे हैं या तुम्हें सिर्फ खबर है कि वे किसी के पास हैं?”
“मैंने अपनी आंखों से देखे हैं।”—श्रीकान्त ने साफ झूठ बोला।
“वे जेवरों की सैटिंग में हैं या खुले?”
“खुले।”
“कैसे हैं वो?”
“कैसे क्या मतलब?”
“मेरा मतलब है वे हीरे हैं या मोती हैं या...”
“हीरे-पन्ने, पुखराज, नीलम, मानक, मोंगा, मोती सब कुछ है उन जवाहरात में।”
“मोती भी खुले हैं?”
“नहीं। वे एक लड़ी की सूरत में हैं।”
“सिर्फ एक लड़ी?”
“हां।”
“उनमें कोई एक बहुत बड़ा हीरा भी था?”
“मैंने ध्यान नहीं दिया था। शायद रहा हो।”
“वह हीरा इतना बड़ा है कि ध्यान दिए बिना भी उसकी तरफ ध्यान जाए बिना नहीं रह सकता।”
“मेरा ध्यान नहीं गया था।”
“यही इस बात का सबूत है कि बड़ा हीरा, जो कि फेथ डायमंड के नाम ले जाना जाता है, उन जवाहरात में नहीं था।”
“तो नहीं होगा।”
“तुम यह कैसे कह सकते हो कि वे जवाहत चोरी के हैं, कि वे उस आदमी की अपनी मिल्कियत नहीं जिसके पास कि तुमने उन्हें देखा है।”
“ऐसा मैं उस आदमी का औकात की वजह से कह सकता हूं। आज की तारीख में एक चांदी का छल्ला खरीदने की हैसियत नहीं है उसकी।”
“लेकिन तुम यह दावा कैसे कर सकते हो कि वे आसिफ अली रोड वाले केस से ताल्लुक रखते जवाहरात हैं?”
एकाएक श्रीकान्त को लगा कि इंस्पेक्टर खामखाह उसे बातों में फंसाए रखने की कोशिश कर रहा था। पुलिस वाले दूसरे फोन से एक्सचेंज में रिंग करके मालूम कर सकते थे कि पुलिस स्टेशन के चतुर्वेदी वाले फोन पर जो काल लगी हुई थी, वह कहां से की गई थी।
यानी कि उसको पकड़ने के लिए पुलिस किसी भी क्षण वहां पहुंच सकती थी।
“मुझे बातों में मत उलझाइए, इंस्पेक्टर साहब।”—वह जल्दी से बोला—“मुझे कामिनी देवी की इंश्योरेन्स कम्पनी का पता बताइए नहीं तो मैं फोन बन्द करता हूं।”
“कामिनी देवी के जेवरात”—उसके कान में आवाज पड़ी—“न्यू इण्डिया इंश्योरेन्स कम्पनी, जनपथ के पास इंश्योर्ड थे।”
“शुक्रिया।”—श्रीकान्त बोला। उसने फौरन रिसीवर वापिस हुक पर टांग दिया।
वह कम्पाउण्ड से बाहर निकल आया।