desiaks
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ब्लेड वाला फौरन वहां से हटा और सड़क छोड़कर डिप्टीगंज की गलियों में कहीं गायब हो गया।
उसको दाएं-बाएं से थामे दोनों आदमियों ने भी उसे छोड़ दिया और वे भीड़ में मिल गए।
कौशल का बुरा हाल था। आंखों में खून भर आने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वह अपना माथा थामे हौले-हौले कराह रहा था। उसका जी चाह रहा था कि वह वहीं बैठ जाए या लेट जाए।
कौशल के चेहरे पर खून देखकर वहां भी भीड़ इकट्ठी होने लगी थी लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि क्या हुआ था।
रईस अहमद कार से बाहर निकल आया था और लोगों को सुनाने के लिए कह रहा था—“क्या जमाना आ गया है! दिन-दहाड़े लोगों पर हमले हो रहे हैं! ऐसी सरकार किस काम की जो अपने शहरियों के जान माल की हिफाजत तक नहीं कर सकती।”
तभी रईस अहमद ने उन दोनों पुलिसियों को वहां पहुंचते देखा जो पीछे नकली लड़ाई में फंसे हुए थे और जो आखिरकार किसी तरह वहां से निकल आने में कामयाब हो गए थे। उन पर निगाह पड़ते ही वह पूर्ववत् उच्च स्वर में बोला—“भाइयो, यह बेचारा बहुत बुरी तरह से जख्मी है। वक्त रहते इसे डाक्टरी इमदाद न मिली तो यह मर जाएगा। इसे मेरी कार में बिठा दीजिए। पास ही हिन्दूराव हस्पताल है, मैं इसे वहां पहुंचा देता हूं।”
कौशल को वे शब्द अपने कानों में अमृत की तरह टपकते लगे। शुक्र था भगवान का कि शरीफ और हमदर्द लोग दुनिया से कतई खतम नहीं हो गए थे।
कुछ लोगों ने उसे सम्भाला और फिएट की पिछली सीट पर लाद दिया। अपनी उस हालत में कौशल को नहीं मालूम था कि वह उसी कार में बिठाया जा रहा था जिसमें बैठने से इनकार करने की वजह से उस पर आक्रमण हुआ था।
रईस अहमद कार में सवार हुआ।
पुलिसियों के कार के समीप पहुंच पाने से पहले ही उसने कार को वहां से भगा दिया।
पुलिसियों में से एक ने भीड़ लगाए खड़े लोगों से पूछा कि क्या मामला था।
“किसी ने एक आदमी को लूटने की कोशिश की थी। बेचारे पर चाकू या छुरे से हमला किया गया था। बदमाश हमला करते ही भाग गए थे। कोई भला आदमी घायल को अपनी कार पर हिन्दूराव हस्पताल ले गया है।”
पुलिसियों ने दूर होती फिएट की तरफ देखा।
चौराहे से कार तेलीवाड़े की तरफ बायें मुड़ने की जगह जब दायें मुड़ गई तो पुलिसियों का माथा ठनका।
जिस रास्ते पर कार घूमी थी, वह तो हिन्दूराव हस्पताल नहीं जाता था। वह रास्ता तो पहाड़गज जाता था।
क्या कार वाला उसे किसी और हस्पताल ले जा रहा था?
लेकिन नजदीकी हस्पताल तो हिन्दूराव ही था। नजदीक के हस्पताल को छोड़कर वह उसे दूर कहीं क्यों ले जा रहा था?
जरूर कुछ घोटाला था।
“जिस आदमी पर हमला किया गया था।”—उसने फिर सवाल किया—“वह देखने में कैसा था?”
कई लोगों ने उसका कद काठ और हुलिया बयान किया।
वह सरासर कौशल का हुलिया था।
“कुछ घोटाला है”—वह व्यग्र भाव से अपने साथी से बोला—“मुझे लगता है कौशल का अगवा किया गया है। पीछे जो झगड़ा हुआ था, वह भी मालूम होता है कि हमें वहां फंसाए रखने के लिए स्टेज किया गया था।”
“अब क्या किया जाए?”—दूसरा पुलिसिया घबराकर बोला।
“तुम फौरन सदर थाने पहुंचो और वहां जाकर सारा वाकया सुनाओ। उस सलेटी रंग की फिएट का नम्बर डी एस डी 4153 था, याद रखना।”
“और तुम?”
“मैं जरा यहां हमलावर के बारे में पूछताछ करता हूं और फिर वहीं आता हूं।”
सदर थाना पास ही था। उस पुलिसिये ने एक राह चलते आटो को रोका और उस पर सवार होकर थाने की तरफ बढ़ चला।
पीछे रह गया पुलिसिया भीड़ से पूछताछ करने लगा। लेकिन ज्यों ही उसने बताया कि वह पुलिसिया था, लोग वहां से खिसकने लगे। पहले जो लोग अपने अपने तरीके से वाकया बयान करने के लिए मरे जा रहे थे, तब यूं खामोश हो गये जैसे उन्हें जुबान खोलते डर लग रहा हो।
किसी ने हमलावर को नहीं देखा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि हमला करके वह किधर भागा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि वह अकेला था या उसके साथ और भी लोग थे।
कोई कार वाले का हुलिया बयान न कर सका।
हर किसी को एकाएक कोई बहुत जरूरी काम याद आ गया था।
हर किसी ने फौरन कहीं पहुंचना था।
उसको दाएं-बाएं से थामे दोनों आदमियों ने भी उसे छोड़ दिया और वे भीड़ में मिल गए।
कौशल का बुरा हाल था। आंखों में खून भर आने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वह अपना माथा थामे हौले-हौले कराह रहा था। उसका जी चाह रहा था कि वह वहीं बैठ जाए या लेट जाए।
कौशल के चेहरे पर खून देखकर वहां भी भीड़ इकट्ठी होने लगी थी लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि क्या हुआ था।
रईस अहमद कार से बाहर निकल आया था और लोगों को सुनाने के लिए कह रहा था—“क्या जमाना आ गया है! दिन-दहाड़े लोगों पर हमले हो रहे हैं! ऐसी सरकार किस काम की जो अपने शहरियों के जान माल की हिफाजत तक नहीं कर सकती।”
तभी रईस अहमद ने उन दोनों पुलिसियों को वहां पहुंचते देखा जो पीछे नकली लड़ाई में फंसे हुए थे और जो आखिरकार किसी तरह वहां से निकल आने में कामयाब हो गए थे। उन पर निगाह पड़ते ही वह पूर्ववत् उच्च स्वर में बोला—“भाइयो, यह बेचारा बहुत बुरी तरह से जख्मी है। वक्त रहते इसे डाक्टरी इमदाद न मिली तो यह मर जाएगा। इसे मेरी कार में बिठा दीजिए। पास ही हिन्दूराव हस्पताल है, मैं इसे वहां पहुंचा देता हूं।”
कौशल को वे शब्द अपने कानों में अमृत की तरह टपकते लगे। शुक्र था भगवान का कि शरीफ और हमदर्द लोग दुनिया से कतई खतम नहीं हो गए थे।
कुछ लोगों ने उसे सम्भाला और फिएट की पिछली सीट पर लाद दिया। अपनी उस हालत में कौशल को नहीं मालूम था कि वह उसी कार में बिठाया जा रहा था जिसमें बैठने से इनकार करने की वजह से उस पर आक्रमण हुआ था।
रईस अहमद कार में सवार हुआ।
पुलिसियों के कार के समीप पहुंच पाने से पहले ही उसने कार को वहां से भगा दिया।
पुलिसियों में से एक ने भीड़ लगाए खड़े लोगों से पूछा कि क्या मामला था।
“किसी ने एक आदमी को लूटने की कोशिश की थी। बेचारे पर चाकू या छुरे से हमला किया गया था। बदमाश हमला करते ही भाग गए थे। कोई भला आदमी घायल को अपनी कार पर हिन्दूराव हस्पताल ले गया है।”
पुलिसियों ने दूर होती फिएट की तरफ देखा।
चौराहे से कार तेलीवाड़े की तरफ बायें मुड़ने की जगह जब दायें मुड़ गई तो पुलिसियों का माथा ठनका।
जिस रास्ते पर कार घूमी थी, वह तो हिन्दूराव हस्पताल नहीं जाता था। वह रास्ता तो पहाड़गज जाता था।
क्या कार वाला उसे किसी और हस्पताल ले जा रहा था?
लेकिन नजदीकी हस्पताल तो हिन्दूराव ही था। नजदीक के हस्पताल को छोड़कर वह उसे दूर कहीं क्यों ले जा रहा था?
जरूर कुछ घोटाला था।
“जिस आदमी पर हमला किया गया था।”—उसने फिर सवाल किया—“वह देखने में कैसा था?”
कई लोगों ने उसका कद काठ और हुलिया बयान किया।
वह सरासर कौशल का हुलिया था।
“कुछ घोटाला है”—वह व्यग्र भाव से अपने साथी से बोला—“मुझे लगता है कौशल का अगवा किया गया है। पीछे जो झगड़ा हुआ था, वह भी मालूम होता है कि हमें वहां फंसाए रखने के लिए स्टेज किया गया था।”
“अब क्या किया जाए?”—दूसरा पुलिसिया घबराकर बोला।
“तुम फौरन सदर थाने पहुंचो और वहां जाकर सारा वाकया सुनाओ। उस सलेटी रंग की फिएट का नम्बर डी एस डी 4153 था, याद रखना।”
“और तुम?”
“मैं जरा यहां हमलावर के बारे में पूछताछ करता हूं और फिर वहीं आता हूं।”
सदर थाना पास ही था। उस पुलिसिये ने एक राह चलते आटो को रोका और उस पर सवार होकर थाने की तरफ बढ़ चला।
पीछे रह गया पुलिसिया भीड़ से पूछताछ करने लगा। लेकिन ज्यों ही उसने बताया कि वह पुलिसिया था, लोग वहां से खिसकने लगे। पहले जो लोग अपने अपने तरीके से वाकया बयान करने के लिए मरे जा रहे थे, तब यूं खामोश हो गये जैसे उन्हें जुबान खोलते डर लग रहा हो।
किसी ने हमलावर को नहीं देखा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि हमला करके वह किधर भागा था।
किसी को यह नहीं मालूम था कि वह अकेला था या उसके साथ और भी लोग थे।
कोई कार वाले का हुलिया बयान न कर सका।
हर किसी को एकाएक कोई बहुत जरूरी काम याद आ गया था।
हर किसी ने फौरन कहीं पहुंचना था।