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- Dec 5, 2013
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प्रभूदयाल सुनील को पूर्णतया नजरअन्दाज किये अपने आदमियों में घूमता रहा और उनसे बातें करता रहा ।
सुनील ने सिगरेट का बचा हुआ टुकड़ा बुझाकर अपनी जेब में डाल लिया ।
प्रभूदयाल ने लाश देखी डाक्टर से बात की, फिर फिंगरप्रिंट वालों से बात की, रिवाल्वर देखी, फिर पिछले कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर झांका ।
"लाश उठवा दो ।" - उसने आदेश दिया - "और तुम मेरे साथ आओ ।"
आखिरी आदेश सुनील के लिये थे ।
प्रभूदयाल पिछले कमरे में प्रविष्ट हो गया ।
सुनील भी उस ओर बढा ।
प्रभूदयाल पलंग पर टांगे लटकाये बैठा था ।
"दरवाजा बन्द कर दो और कहीं बैठ जाओ ।" - प्रभूदयाल बोला ।
सुनील ने दरवाजा बन्द कर दिया और उसके सामने पड़ी एक ऊंची ड्रैसिंग टेबल पर बैठ गया ।
"उस आदमी की हत्या तुमने की है ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"मेरे इन्कार करने से तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हो जायेगा ?" - सुनील बोला ।
"मैंने तुम से एक सवाल पूछा है ।" - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - "और यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है ।"
"मैंने उसकी हत्या नहीं की ।"
प्रभूदयाल कुछ क्षण उसे घूरता रहा और फिर गहरी सांस लेकर बोला - "राजनगर में जहां भी कोई हत्या होती है, वही तुम पहले से ही मौजूद होते हो और अगर मौजूद नहीं होते तो मरने वाले से किसी न किसी रूप से तुम्हारा सम्बन्ध जरूर जुड़ा होता है । क्यों ?"
"इसमें मेरा क्या कसूर है ? यह तो एक संयोग की बात है कि मैं जिस आदमी में भी दिलचस्पी लेता हूं, उसी को कोई न कोई भगवान के घर पहुंचा देता है ।"
"सुनील, भगवान के लिए तुम कभी अपने आप में भी दिलचस्पी लो न ?"
"ताकि मैं भी भगवान के घर पहुंच जाऊं ?"
"हां ।"
सुनील चुप रहा ।
"क्या किस्सा है ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"क्या मैं अपने आपको गिरफ्तार समझूं ?" - सुनील ने पूछा ।
प्रभूदयाल की निगाह फिर सुनील पर जम गई । उस बार जब वह बोला तो उसकी आवाज बहुत धीमी थी, बहुत मीठी थी और बहुत खतरनाक थी - "सुनील, तुम तो अखबार निकालते हो । इस नगर में घटित होने वाली सारी घटनाओं की तुम्हें जानकारी होती होगी । इसलिये तुम्हें यह भी मालूम होगा कि कल विक्रमपुरे के इलाके में एक गोदाम में आग लग गई थी । आग की चपेट में आकर तीन आदमी मर गये थे । हमारे एक्सपर्ट कहते हैं कि वे तीन आदमी आग की चपेट में आकर नहीं मरे थे । उनकी हत्या की गयी थी और फिर हत्या को दुर्घटना का रूप देने के लिए लाशों को गोदाम में डालकर गोदाम में आग लगा दी गई थी । वह हत्या का मामला है और उसकी तफ्तीश मैं ही कर रहा हूं । अब एक और हत्या यहां हो गई है । यह भी मेरे ही गले पड़ गई है । पिछले चौबीस घन्टे से मैं शैतान की तरह काम कर रहा हूं । मुझे एक क्षण को सांस लेने को भी फुरसत नहीं मिली है । मैं शेव नहीं कर सका हूं, ब्रश नहीं कर सका हूं । नहा नहीं सका हूं, वर्दी नहीं बदल सका हूं, ढंग से कुछ खा तक नहीं सका हूं । इससे पहले कि पहले केस से मेरा पीछा छूट सके और मैं शान्ति की सांस ले सकूं, दूसरा केस आ गया है । इस केस में तुम मर्डर सस्पेक्ट नम्बर वन हो और मेरी जिम्मेदारी पर हो । मैं इतना व्यस्त हूं कि पूरा एक सप्ताह मुझे तुमसे सवाल करने की फुरसत नहीं मिलेगी लेकिन मैं तुम्हारी खातिर समय निकाल रहा हूं क्योंकि मैं तुम्हें ले जाकर पुलिस हैडक्वार्टर की किसी कोठरी में बन्द कर दूं और तब तक तुम्हारे बारे में सोंचू भी नहीं जब तक कि मैं पहले किस से निबट न जाऊं, लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता । वाकई मैं ऐसा नहीं करना चाहता । अगर तुम चाहते हो कि तुम तभी अपनी जुबान खोलो जबकि तुम बाकायदा गिरफ्तार कर लिये जाओ तो तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी हो जायेगी । मैं तुम्हें हैडक्वार्टर ले जाकर हवालात में बन्द कर दूंगा और अगले शुक्रवार तक तुम्हारे नाम का भी जिक्र नहीं आने दूंगा । फिर एकाएक मुझे तुम्हारी याद आयेगी और मैं फिर तुम से वही प्रश्न तब पूछूंगा जो मैं अब पूछ रहा हूं । मर्जी तुम्हारी है । तुम्हें मेरे सवाल का जवाब देने का जो मौका पसन्द है, चुन लो ।"
प्रभूदयाल चुप हो गया । एकाएक वह बेहद थका हुआ इंसान दिखाई दे रहा था ।
सुनील ने सिगरेट का बचा हुआ टुकड़ा बुझाकर अपनी जेब में डाल लिया ।
प्रभूदयाल ने लाश देखी डाक्टर से बात की, फिर फिंगरप्रिंट वालों से बात की, रिवाल्वर देखी, फिर पिछले कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर झांका ।
"लाश उठवा दो ।" - उसने आदेश दिया - "और तुम मेरे साथ आओ ।"
आखिरी आदेश सुनील के लिये थे ।
प्रभूदयाल पिछले कमरे में प्रविष्ट हो गया ।
सुनील भी उस ओर बढा ।
प्रभूदयाल पलंग पर टांगे लटकाये बैठा था ।
"दरवाजा बन्द कर दो और कहीं बैठ जाओ ।" - प्रभूदयाल बोला ।
सुनील ने दरवाजा बन्द कर दिया और उसके सामने पड़ी एक ऊंची ड्रैसिंग टेबल पर बैठ गया ।
"उस आदमी की हत्या तुमने की है ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"मेरे इन्कार करने से तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हो जायेगा ?" - सुनील बोला ।
"मैंने तुम से एक सवाल पूछा है ।" - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - "और यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है ।"
"मैंने उसकी हत्या नहीं की ।"
प्रभूदयाल कुछ क्षण उसे घूरता रहा और फिर गहरी सांस लेकर बोला - "राजनगर में जहां भी कोई हत्या होती है, वही तुम पहले से ही मौजूद होते हो और अगर मौजूद नहीं होते तो मरने वाले से किसी न किसी रूप से तुम्हारा सम्बन्ध जरूर जुड़ा होता है । क्यों ?"
"इसमें मेरा क्या कसूर है ? यह तो एक संयोग की बात है कि मैं जिस आदमी में भी दिलचस्पी लेता हूं, उसी को कोई न कोई भगवान के घर पहुंचा देता है ।"
"सुनील, भगवान के लिए तुम कभी अपने आप में भी दिलचस्पी लो न ?"
"ताकि मैं भी भगवान के घर पहुंच जाऊं ?"
"हां ।"
सुनील चुप रहा ।
"क्या किस्सा है ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"क्या मैं अपने आपको गिरफ्तार समझूं ?" - सुनील ने पूछा ।
प्रभूदयाल की निगाह फिर सुनील पर जम गई । उस बार जब वह बोला तो उसकी आवाज बहुत धीमी थी, बहुत मीठी थी और बहुत खतरनाक थी - "सुनील, तुम तो अखबार निकालते हो । इस नगर में घटित होने वाली सारी घटनाओं की तुम्हें जानकारी होती होगी । इसलिये तुम्हें यह भी मालूम होगा कि कल विक्रमपुरे के इलाके में एक गोदाम में आग लग गई थी । आग की चपेट में आकर तीन आदमी मर गये थे । हमारे एक्सपर्ट कहते हैं कि वे तीन आदमी आग की चपेट में आकर नहीं मरे थे । उनकी हत्या की गयी थी और फिर हत्या को दुर्घटना का रूप देने के लिए लाशों को गोदाम में डालकर गोदाम में आग लगा दी गई थी । वह हत्या का मामला है और उसकी तफ्तीश मैं ही कर रहा हूं । अब एक और हत्या यहां हो गई है । यह भी मेरे ही गले पड़ गई है । पिछले चौबीस घन्टे से मैं शैतान की तरह काम कर रहा हूं । मुझे एक क्षण को सांस लेने को भी फुरसत नहीं मिली है । मैं शेव नहीं कर सका हूं, ब्रश नहीं कर सका हूं । नहा नहीं सका हूं, वर्दी नहीं बदल सका हूं, ढंग से कुछ खा तक नहीं सका हूं । इससे पहले कि पहले केस से मेरा पीछा छूट सके और मैं शान्ति की सांस ले सकूं, दूसरा केस आ गया है । इस केस में तुम मर्डर सस्पेक्ट नम्बर वन हो और मेरी जिम्मेदारी पर हो । मैं इतना व्यस्त हूं कि पूरा एक सप्ताह मुझे तुमसे सवाल करने की फुरसत नहीं मिलेगी लेकिन मैं तुम्हारी खातिर समय निकाल रहा हूं क्योंकि मैं तुम्हें ले जाकर पुलिस हैडक्वार्टर की किसी कोठरी में बन्द कर दूं और तब तक तुम्हारे बारे में सोंचू भी नहीं जब तक कि मैं पहले किस से निबट न जाऊं, लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता । वाकई मैं ऐसा नहीं करना चाहता । अगर तुम चाहते हो कि तुम तभी अपनी जुबान खोलो जबकि तुम बाकायदा गिरफ्तार कर लिये जाओ तो तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी हो जायेगी । मैं तुम्हें हैडक्वार्टर ले जाकर हवालात में बन्द कर दूंगा और अगले शुक्रवार तक तुम्हारे नाम का भी जिक्र नहीं आने दूंगा । फिर एकाएक मुझे तुम्हारी याद आयेगी और मैं फिर तुम से वही प्रश्न तब पूछूंगा जो मैं अब पूछ रहा हूं । मर्जी तुम्हारी है । तुम्हें मेरे सवाल का जवाब देने का जो मौका पसन्द है, चुन लो ।"
प्रभूदयाल चुप हो गया । एकाएक वह बेहद थका हुआ इंसान दिखाई दे रहा था ।