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“क्यो तुम नहीं जानते कि उसके मरने से देश को कितना बड़ा नुकसान हो गया है?” विजय से पहले रघुनाथ ने कहना शुरू कर दिया—“इस मुल्क की सबसे बड़ी ताकत का नाम है 'युवा-शक्ति'—वह शक्ति जो यदि तोड़फोड़ पर लग जाए तो एक ही मिनट में सारी दुनिया को तहस-नहस कर दे और यदि निर्माण से जुड़ जाए तो रेगिस्तानों में जल के दरिया बहा दे—हमारे मुल्क की यही शक्ति छिन्न-भिन्न थी, उसे संजय ने एकजुट किया था—न केवल संगठित ही किया था, बल्कि इस शक्ति को अपने नेतृत्व में निर्माण पर जुटा दिया था उसने—ऐसे निर्माण पर, निश्चय ही जिसका अंजाम एक दिन खुशहाली थी—वह एक कारवां लेकर निकल पड़ा था। विकास, युवा शक्ति का एक हुजूम था उसके साथ, बहुत ही तेजी से वह इस मुल्क को खुशहाली नाम की मंजिल की तरफ लेकर बढ़ रहा था—मगर, बीच रास्ते में ही धोखा दे गया कम्बख्त—देश की युवा पीढ़ी ठगी-सी खड़ी रह गई—बेवफाई करके कम्बख्त ने खुद ही सब कुछ बिखेर दिया।”
“देखो अंकल!” विकास के होंठों पर शरारती मुस्कान थी—“कांग्रेस की मेम्बरशिप तो शायद डैडी ने स्वीकार कर ली है, ये उसकी राजनैतिक सूझ-बूझ का पक्ष ले रहे हैं।”
“अपने तुलाराशि की बातों को मद्देनजर रखकर जवाब दो प्यारे, क्या इतने महत्व के आदमी को हर सुबह मौत से आंख-मिचौली खेलनी चाहिए थी, क्या उसकी जान इतनी सस्ती थी?”
“ज्यादा जीकर उसे करना भी क्या था अंकल?”
“वही, जो कुछ वह अधूरा छोड़ गया है।”
“आदमी जब भी मरता है, कुछ-न-कुछ अधूरा जरूर छोड़ जाता है गुरु—कोई नहीं जानता कि वह किस क्षण काल का ग्रास बन जाएगा, परन्तु जरा बचपन से संजय के कैरेक्टर, उसकी गतिविधियों और काम करने के तरीके पर दृष्टिपात कीजिए—उसके जीने के अन्दाज में रफ्तार थी, कार को जैट की-सी गति से चलाता था, कोई भी काम हाथ में लेते ही उसे पूरा करने में जुट जाता था—काम इतनी तेजी से करता था कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लेते थे—वह हमेशा जल्दी में रहता था, जैसे जानता हो कि इतनी कम आयु में उसे चले जाना है, वह दुनिया में आंधी की तरह आया, भारतीय क्षितिज पर छाया और तूफान की तरह चला भी गया—इन तैंतीस सालों में ही वह इतना सब कुछ कर गया जितना बहुत-से लोग सौ-सौ साल की उम्र मिलने पर भी नहीं कर पाते—हमें यह नहीं सोचना चाहिए अंकल कि वह जीवित होता तो क्या करता, महत्वपूर्ण ये है कि अपने जीवन काल में उसने क्या किया—जब वह उम्र ही तैंतीस साल की लेकर आया था तो चौंतीसवें वर्ष में प्रवेश कर ही कैसे सकता था? मौत इंसान को बहाना बनाकर ले जाती है, अगर वह पिट्स न उड़ाता तो मौत किसी दूसरे बहाने से आती।”
“यही तो हम तुम्हें समझाना चाहते हैं बेवकूफ, कि मौत संजय पर नहीं, बल्कि संजय मौत पर झपटता था, हर सुबह—भला मौत भी कब तक परास्त होती, उसका दांव लगा—संजय को निगल गई।
“हर सुबह वह जीता करता था—उस मनहूस सुबह मौत जीत गई।”
तश्तरी में परांठे लिए उनके नजदीक आती हुई रैना बोली—“तुम भी उसी की तरह जिद्दी हो विकास, बड़ों की बात क्यों मानोगे?”
“उफ्फ मम्मी, ऐसा आखिर क्या हो गया?”
“कुछ भी नहीं, संजय का क्या गया—प्राणों के अलावा मरने वालों का जाता ही क्या है?”
“क्या मतलब?”
“अगर कुछ गया है तो उस मां का जिसके जिगर का वह टुकड़ा था—उस पत्नी का, युवावस्था में ही पहनने के लिए, जिसे सफेद साड़ी रह गई, अगर अनाथ हुआ तो वह वरुण नाम का वह एकवर्षीय मासूम, जिसने ठीक से अभी अपने पिता को देखा भी नहीं था और उसके साथ ही अनाथ हो गए हैं संजय के संगी-साथी, देश की युवा पीढ़ी और ये देश।” भभकते-से स्वर में रैना कहती ही चली गई।
“उफ्फ मम्मी, आखिर तुम लोग व्यर्थ ही तिल को पहाड़ क्यों बना रहे हो?”
“हम कुछ नहीं बना रहे हैं, रहने दो विजय भइया—इसे समझाने की कोशिश करना बेकार है, जो इसके जी में आए करे, यदि कल को इसे कुछ हो गया तो हम भी रो-धोकर रह जाएंगे।” नाराजगी—भरे स्वर में कहने के साथ ही वह मुड़ी और तेजी से अन्दर चली गई।
विकास ठगा-सा देखता रह गया। रघुनाथ, विजय और धनुषटंकार की भी लगभग वैसी ही अवस्था थी। कई क्षण के लिए वहां अजीब-सा तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को विकास ने ही तोड़ा—“ये क्या मामला है गुरू, आज अचानक सभी लोग मेरे खिलाफ हो गए हैं?”
“क्योंकि हममें से कोई भी तुम्हें संजय की तरह खोना नहीं चाहता।”
“तो क्या आप अप्रत्यक्ष रूप से मुझे कायर बन जाने की सलाह दे रहे हैं?”
“कायर बनने की नहीं प्यारे—सिर्फ यह कि अनावश्यक रूप से मौत से छेड़छाड़ करनी बन्द कर दो—यदि तुम्हें अभ्यास ही करना है तो ऊंचाई पर किया करो, इतने नीचे नहीं कि एक बार नियंत्रण से बाहर होने पर तुम्हें विमान को नियंत्रित करने का समय भी न मिले।”
“इस बारे में मैं सोचूंगा।” विकास ने जैसे एहसान किया।
¶¶
“देखो अंकल!” विकास के होंठों पर शरारती मुस्कान थी—“कांग्रेस की मेम्बरशिप तो शायद डैडी ने स्वीकार कर ली है, ये उसकी राजनैतिक सूझ-बूझ का पक्ष ले रहे हैं।”
“अपने तुलाराशि की बातों को मद्देनजर रखकर जवाब दो प्यारे, क्या इतने महत्व के आदमी को हर सुबह मौत से आंख-मिचौली खेलनी चाहिए थी, क्या उसकी जान इतनी सस्ती थी?”
“ज्यादा जीकर उसे करना भी क्या था अंकल?”
“वही, जो कुछ वह अधूरा छोड़ गया है।”
“आदमी जब भी मरता है, कुछ-न-कुछ अधूरा जरूर छोड़ जाता है गुरु—कोई नहीं जानता कि वह किस क्षण काल का ग्रास बन जाएगा, परन्तु जरा बचपन से संजय के कैरेक्टर, उसकी गतिविधियों और काम करने के तरीके पर दृष्टिपात कीजिए—उसके जीने के अन्दाज में रफ्तार थी, कार को जैट की-सी गति से चलाता था, कोई भी काम हाथ में लेते ही उसे पूरा करने में जुट जाता था—काम इतनी तेजी से करता था कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लेते थे—वह हमेशा जल्दी में रहता था, जैसे जानता हो कि इतनी कम आयु में उसे चले जाना है, वह दुनिया में आंधी की तरह आया, भारतीय क्षितिज पर छाया और तूफान की तरह चला भी गया—इन तैंतीस सालों में ही वह इतना सब कुछ कर गया जितना बहुत-से लोग सौ-सौ साल की उम्र मिलने पर भी नहीं कर पाते—हमें यह नहीं सोचना चाहिए अंकल कि वह जीवित होता तो क्या करता, महत्वपूर्ण ये है कि अपने जीवन काल में उसने क्या किया—जब वह उम्र ही तैंतीस साल की लेकर आया था तो चौंतीसवें वर्ष में प्रवेश कर ही कैसे सकता था? मौत इंसान को बहाना बनाकर ले जाती है, अगर वह पिट्स न उड़ाता तो मौत किसी दूसरे बहाने से आती।”
“यही तो हम तुम्हें समझाना चाहते हैं बेवकूफ, कि मौत संजय पर नहीं, बल्कि संजय मौत पर झपटता था, हर सुबह—भला मौत भी कब तक परास्त होती, उसका दांव लगा—संजय को निगल गई।
“हर सुबह वह जीता करता था—उस मनहूस सुबह मौत जीत गई।”
तश्तरी में परांठे लिए उनके नजदीक आती हुई रैना बोली—“तुम भी उसी की तरह जिद्दी हो विकास, बड़ों की बात क्यों मानोगे?”
“उफ्फ मम्मी, ऐसा आखिर क्या हो गया?”
“कुछ भी नहीं, संजय का क्या गया—प्राणों के अलावा मरने वालों का जाता ही क्या है?”
“क्या मतलब?”
“अगर कुछ गया है तो उस मां का जिसके जिगर का वह टुकड़ा था—उस पत्नी का, युवावस्था में ही पहनने के लिए, जिसे सफेद साड़ी रह गई, अगर अनाथ हुआ तो वह वरुण नाम का वह एकवर्षीय मासूम, जिसने ठीक से अभी अपने पिता को देखा भी नहीं था और उसके साथ ही अनाथ हो गए हैं संजय के संगी-साथी, देश की युवा पीढ़ी और ये देश।” भभकते-से स्वर में रैना कहती ही चली गई।
“उफ्फ मम्मी, आखिर तुम लोग व्यर्थ ही तिल को पहाड़ क्यों बना रहे हो?”
“हम कुछ नहीं बना रहे हैं, रहने दो विजय भइया—इसे समझाने की कोशिश करना बेकार है, जो इसके जी में आए करे, यदि कल को इसे कुछ हो गया तो हम भी रो-धोकर रह जाएंगे।” नाराजगी—भरे स्वर में कहने के साथ ही वह मुड़ी और तेजी से अन्दर चली गई।
विकास ठगा-सा देखता रह गया। रघुनाथ, विजय और धनुषटंकार की भी लगभग वैसी ही अवस्था थी। कई क्षण के लिए वहां अजीब-सा तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को विकास ने ही तोड़ा—“ये क्या मामला है गुरू, आज अचानक सभी लोग मेरे खिलाफ हो गए हैं?”
“क्योंकि हममें से कोई भी तुम्हें संजय की तरह खोना नहीं चाहता।”
“तो क्या आप अप्रत्यक्ष रूप से मुझे कायर बन जाने की सलाह दे रहे हैं?”
“कायर बनने की नहीं प्यारे—सिर्फ यह कि अनावश्यक रूप से मौत से छेड़छाड़ करनी बन्द कर दो—यदि तुम्हें अभ्यास ही करना है तो ऊंचाई पर किया करो, इतने नीचे नहीं कि एक बार नियंत्रण से बाहर होने पर तुम्हें विमान को नियंत्रित करने का समय भी न मिले।”
“इस बारे में मैं सोचूंगा।” विकास ने जैसे एहसान किया।
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