XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी - Page 5 - SexBaba
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XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी

आशा बड़ी मुश्किल से कॉफी समाप्त कर सकी थी। आकर्षक युवक ने एक बीयर मंगा ली थी, आशा ने कनखियों से देखा था कि वह बीच-बीच में उसे देख लेता है और उसकी यहां मौजूदगी आशा को नर्वस ही नहीं, बल्कि एक प्रकार से आतंकित-सी करती जा रही थी।
उसने जल्दी से कॉफी खत्म की, उठी और लिफ्ट में सवार होकर फिफ्थ फ्लोर पर स्थित अपने कमरे में चली गई, दरवाजे की चटखनी अन्दर से चढ़ाई और आगे बढ़कर धम्म् से बिस्तर पर गिर गई।
वह इस तरह हांफ रही थी जैसे बहुत दूर से भागकर आई हो।
दिमाग में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे—क्या ये युवक संयोग से यहां आ गया है?
नहीं, इतना बड़ा संयोग भला कैसे हो सकता है?
वह उसी के पीछे आया है—निश्चय ही उससे कहीं कोई गलती हो गई है और उसी गलती का परिणाम है, उसके पीछे लगा हुआ यह युवक।
दरअसल कोहिनूर देखने जाकर ही उसने गलती की।
यदि अशरफ, विक्रम, विजय या विकास में से कोई कोहिनूर देखने म्यूजियम में पहुंच गया तो यह दूसरी और काफी बड़ी गलती होगी—उसे उन्हें रोकना चाहिए—भलाई इसी में है कि वे वहां न जाएं, यदि उनमें से भी कोई नर्वस हो गया तो ऐसा ही एक जासूस उसके पीछे भी लग जाएगा और उस स्थिति में सिक्योरिटी तुरन्त यह सोचेगी कि दोनों संदिग्ध व्यक्ति एक ही होटल में ठहरे हैं।
यदि कोई नर्वस न भी हुआ तब भी एक ही होटल से क्रमवार पांच व्यक्तियों का कोहिनूर देखने जाना सिक्योरिटी के कान खड़े कर देगा।
अपने साथियों को सचेत करके रहेगी वह।
मगर कैसे?
वह युवक जिन्न की तरह उसके पीछे लग गया है।
आशा के दिमाग में विचार उठा कि क्या वह अब भी हॉल ही में होगा?
कम-से-कम एक घण्टे तक वह बिस्तर पर यूं ही विचारों में गुम पड़ी रही—फिर यह सोचकर उठी कि घबराकर उसे इस तरह कमरे में बन्द नहीं हो जाना चाहिए—साहस से काम लिए बिना वह कुछ भी नहीं कर सकेगी।
हॉल में कदम रखते ही उसने शान्ति की सांस ली।
युवक कहीं भी नहीं था।
अब उसने विजय, विकास, अशरफ और विक्रम की तलाश में नजरें चारों तरफ घुमाईं—चारों में से एक भी कहीं नजर नहीं आ रहा था।
मुख्य द्वार पार करके वह होटल से बाहर निकल आई।
अभी पार्किंग के समीप से गुजर ही रही थी कि दिल धक्क से रह गया— क्षणमात्र के लिए ठिठकी, नजर युवक से टकराई, एक कार की टेक लिए खड़ा वह सिगरेट फूंक रहा था।
गर्दन को एक झटका देकर आशा आगे बढ़ गई।
अब उसे इसमें कोई शक नहीं रह गया कि युवक उसी को वॉच कर रहा है, दिल धक्-धक् करता रहा, एक टैक्सी को रोककर वह उसमें बैठ गई, कनखियों से युवक को भी एक टैक्सी रोकते देखा।
युवक वाली टैक्सी उसके पीछे लग गई।
इस युवक से वह पीछा छुड़ाना चाहती थी, किन्तु सोचने लगी कि क्या इस युवक को डांट देना उचित होगा, डांट वह आसानी से सकती थी, परन्तु सोचने वाली बात ये थी कि क्या उसके डांट देने से सिक्योरिटी यह नहीं समझ जाएगा कि वह भी खेली-खाई है?
इस हरकत से तो उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा कि वह साधारण लड़की नहीं है।
आशा ने सोचा कि फिलहाल उसे ऐसा कोई काम करना ही नहीं है जिससे युवक को कोई प्वॉइंट मिले अतः उसे पीछा करने दे, उसका वह बिगाड़ ही क्या सकता है?
अन्तिम रूप से यही निश्चय करके वह युवक से लन्दन की विभिन्न सड़कें नपवाती रही। रात के नौ बजे वह एलिजाबेथ वापस लौटी, युवक उसके पीछे ही था।
हॉल में विजय पर नजर पड़ते ही उसकी आंखें चमक उठीं, बशीर बने विजय ने नीले सूट पर लाल टाई बांध रखी थी और सच्चाई ये है कि विजय को नहीं, विजय के जिस्म पर ये कपड़े देखकर आशा की आंखों में चमक आई थी, ये कपड़े किसी विशेष बात का संकेत थे।
विजय डिनर ले रहा था।
अपरिचितों की तरह ही एक नजर उसने आशा को देखा और पुनः खाने में व्यस्त हो गया—विजय की ठोड़ी पर लगी मुल्लाओं वाली दाढ़ी गस्सा चबाने के साथ-साथ अजीब-से ढंग से हिल रही थी।
डैथ हाउस में कैद पड़े बशीर की तरह ही विजय का रंग बिल्कुल काला नजर आ रहा था।
युवक को हॉल में दाखिल होता देखते ही आशा ने विजय पर से नजर हटा ली, एक खाली सीट पर बैठ गई और डिनर का ऑर्डर देकर जब उसने हॉल में डिनर ले रहे अन्य लोगों पर नजर घुमाई तो वहीं उसे मार्गरेट, डिसूजा और चक्रम के रूप में विकास, विक्रम और अशरफ भी नजर आए।
एक सीट पर बैठकर युवक ने भी डिनर का ऑर्डर दे दिया था। खाना खाने के बाद अशरफ, विक्रम और विकास अलग-अलग अपने कमरों में चले गए, विजय तब तक भी जुटा पड़ा था, जब आशा निपट चुकी—निपटते ही वह उठी और फिर विजय या युवक में से किसी की भी तरफ ध्यान दिए बिना सीधी लिफ्ट की तरफ बढ़ गई।
लॉक खोलकर अपने कमरे में दाखिल हुई और लाइट ऑन करते ही उसके कण्ठ से चीख निकलते रह गई, सारा समाना विखरा पड़ा था—किसी ने कमरे की तलाशी ली थी।
¶¶
कमरे में अंधेरा था। सभी खिड़की-दरवाजे मजबूती के साथ अन्दर से बन्द, पर्दे खिंचे हुए—पूरी तरह नीरवता छाई हुई थी वहां, परन्तु पलंग पर पड़ा, आंखें खोले विजय अंधेरे को घूर रहा था। रह-रहकर वह अपनी कलाई पर बंधी रेडियम डायल रिस्टवॉच में समय देख लेता था।
डेढ़ बजते ही बन्द दरवाजे पर सांकेतिक अन्दाज में दस्तक हुई। विजय तुरन्त उठ खड़ा हुआ, नि:शब्द अंधेरे में ही दरवाजे के समीप पहुंचा—बिना किसी प्रकार की आहट उत्पन्न किए उसने दरवाजा खोल दिया—खामोशी के साथ एक परछाईं अन्दर आ गई।
निराहट विजय ने दरवाजा वापस बन्द कर दिया।
अचानक ही ‘क्लिक’ की बहुत धीमी आवाज के साथ कमरे में एक मध्यम दर्जे की टॉर्च रोशन हो उठी, प्रकाश का दायरा ‘फक्क’ से कमरे की छत से जा टकराया।
सारा लेंटर स्पष्ट चमकने लगा।
टॉर्च परछाईं के हाथ में थी और अब कमरे में बिखरे मध्यम प्रकाश में बेशक—दूसरे को स्पष्ट देख सकते थे, चक्रम के रूप में आगन्तुक अशरफ था, आगे बढ़कर उसने उसी पोजीशन में टॉर्च एक मेज पर रख दी।
“कहो प्यारे झानझरोखे?” विजय फुसफुसाया।
“क्या कहूं?”
“जो कहा न जाए।”
बुरा-सा मुंह बनाया अशरफ ने, धीमें स्वर में बोला— “मौका मिलते ही तुम ये बकवास करनी नहीं छोड़ोगे।”
चुप रह जाने वाला विजय था तो नहीं, लेकिन पता नहीं क्या सोचकर रह गया।
उसके बाद पन्द्रह-बीस मिनट के अन्तराल से, उसी सांकेतिक दस्तक के बाद क्रमशः विकास और विक्रम भी आ गए, सवा दो बजे यानी सबसे अन्त में विक्रम आया परन्तु कमरे में आशा को न पाकर बोला— “क्या बात है, आशा कहां है?”
“वह नहीं आई!” अशरफ ने कहा।
विक्रम ने चौंकते हुए पूछा—“क्यों?”
“पता नहीं!” विकास बोला— “हम खुद हैरत में हैं, प्रोग्राम के मुताबिक मेरे और आपके बीच में यानी ठीक दो बजे उन्हें आना चाहिए था, मगर वो नहीं आई।”
अशरफ बोला, “वाकई आशा के न आने पर मैं भी हैरान हूं!”
“जो अपने टिपारे खुले नहीं रखते वे अक्सर इसी तरह हैरान रह जाते हैं प्यारो और चूं-चूं करती हुई चिड़िया न केवल खुद चुग जाती है बल्कि अपने बच्चों और रिश्तेदारों के लिए दाना ट्रक में भरकर ले भी जाती है।”
 
“क्या मतलब गुरू?”
“मैंने एक जासूस को अपनी गोगियापाशा पर नजर रखते हुए देखा है।”
“क...क्या?” एक साथ तीनों के मुंह से निकल पड़ा और वे भाड़-सा मुंह फाड़े धुंधले प्रकाश में चमक रहे विजय के चेहरे को देखते रह गए, जबकि विजय बोला—“तुम फिर हैरान रह गए हो प्यारो और मुझे फिर ये कहना पड़ेगा कि यदि तुमने दिमाग के सभी खिड़की-दरवाजे खुले नहीं रखे तो इसी तरह हैरान होते रहोगे और ज्यादा हैरान होने का मतलब होगा—लंदन ही में हम सबकी कब्र बन जाना।”
विकास ने कहा—“आखिर बात क्या है गुरु, हमने तो किसी को आशा आण्टी पर नजर रखते महसूस नहीं किया।”
“इसीलिए तो आंखें खुली रखने की सलाह दे रहा हूं मैं।”
“क्यों बात को लम्बी कर रहे हो, आखिर बताते क्यों नहीं कि बात क्या है?” विक्रम ने पूछा—“कौन जासूस आशा पर नजर रख रहा है और क्यों?”
“क्यों का जवाब तो फिलहाल हमारी जेब में नहीं है प्यारे और न ही उस जासूस का नाम जानते हैं, मगर है—वह एक आकर्षक–सा युवक है और शायद आशा भी जानती है कि वह उसकी निगरानी कर रहा है, कदाचित इसीलिए वह यहां मिलने नहीं आई है, यह जासूस कहां से उसके पीछे लगा—यह तो आशा ही बता सकेगी।”
“इसका मतलब है, खतरा—आशा आण्टी खतरे में हैं।”
विजय ने बड़े आराम से कहा—“ हो सकती है।”
“हमें उनकी मदद करनी चाहिए।”
विजय ने थोड़े कठोर लहजे में कहा—“ये बेवकूफी से भरी सलाह अपने भेजे में ही रखो।”
“क...क्या मतलब गुरु?” विकास बुरी तरह चौंका था—“क्या आप यह कहना चाहते हैं कि आशा आण्टी यदि खतरे में हैं तो रहें, हमें उनकी कोई मदद नहीं करनी है?”
“तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो!”
“ऐसा कैसे हो सकता है?” विक्रम कह उठा—“आशा हमारी साथी है, मुसीबत के समय में यदि हम उसकी मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा—आखिर हम सब एक ही अभियान पर,साथ ही तो हैं।”
“तुम भूल रहे हो प्यारे कि बशीर, मार्गरेट, चक्रम, डिसूजा और ब्यूटी एक-दूसरे के लिए अपरिचित हैं।”
“मैं समझ रहा हूं गुरु कि आप क्या कहना चाहते हैं।” विकास का लहजा अत्यन्त गम्भीर हो गया था—“यही न कि उनकी मदद करने में हमारी असलियत खुलने का डर है, यदि असलियत खुल गई तो हमारी सारी योजना धूल में मिल जाएगी?”
“करेक्ट!”
“और असलियत खुलते ही न केवल कोहिनूर को हासिल करने का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा बल्कि हम सबका लंदन से बचकर निकल जाना भी मुश्किल हो जाएगा?”
“पहले से भी कई गुना ज्यादा करेक्ट!”
“म...मगर गुरु...!”
“मगर पानी में पाया जाता है प्यारे!”
अनजाने ही में विकास का स्वर भभकने लगा था, वह कहता ही चला गया— “म...मगर गुरु, इन सब उपलब्धियों को हासिल करने के लिए हम आशा आण्टी को दांव पर तो नहीं लगा सकते-इससे बड़ी बुजदिली और क्या होगी कि अपने खतरे में फंस जाने या मर जाने के डर से हम आण्टी की मदद न करें, उन्हें मर जाने दें—नहीं गुरु नहीं—ऐसा आप कर सकते होंगे, मैं नहीं कर सकता।”
“तुम भूल गए प्यारे, मैंने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी कि इस अभियान पर बुजदिली जैसे शब्दों को ताख पर रखकर चलना होगा—भावुक न होने का तुमने मुझसे वादा किया था और यह भी कहा था कि अपने माशाअल्लाह दिमाग का उपयोग नहीं करोगे, सिर्फ हमारे ही आदेशों का पालन करना तुम्हारा काम होगा।”
“ल...लेकिन गुरु—इसका मतलब!” विकास कसमसा उठा—“इसका मतलब ये तो नहीं कि हमारी आंखों के सामने हमारा साथी मर जाए और हम उसकी मदद के लिए हाथ भी न बढ़ाएं?”
“इसका मतलब यही है प्यारे!” विजय का लहजा कठोर हो गया।
“ग...गुरु!”
“खुद को संभालो बेटे, होश में रहो, यहां एक पल के लिए भी अपने ओरिजनल कैरेक्टर्स को उजागर करने का मतलब है—मौत, और मौत से भी बढ़कर अपने अभियान में नाकामी—भूल जाओ कि तुम विकास, मैं विजय, ये विक्रम, ये अशरफ या कोई आशा है—माना कि सीक्रेट सर्विस के सदस्य एक-दूसरे पर जान देते हैं, अपनी जान गंवाने की कीमत पर भी दसरे की जान बचाने की तालीम दी गई है हमें—मगर इस अभियान पर हम सीक्रेट एजेण्ट नहीं मुजिरम हैं-ऐसे मुजरिम जिन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी डकैती करने का फैसला किया है—उस डकैती में से हम सबके बराबर हिस्से होंगे, बस आपस में हमारा इतना ही सम्बन्ध है—एक दूसरे से हमारा कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं है—यदि आशा मरती है तो मर जाए, उसे बचाने के चक्कर में हम अपनी सारी योजना के तिनके-तिनके करके नहीं बिखेर सकते।”
“क्या कोहिनूर तक पहुंचने की हमारी योजना में आशा का कोई काम नहीं है?”
“यदि न होता तो उसे साथ लाते ही क्यों?”
अशरफ ने मुस्कराकर कहा— “मुजरिम अपने ऐसे किसी साथी को नहीं मरने दे सकते जिससे आने वाले समय में उनका कोई काम निकलता हो।”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने मगर...!”
“मगर क्या ?”
“मुजरिम अपनी जान जाने या स्कीम बिखर जाने की कीमत पर किसी को नहीं बचाते।”
अशरफ के होंठों पर मुस्कान उभर आई, शायद यह सोचकर कि वह विजय को लाइन पर ले आया है, बोला— “तो हमने कब कहा कि आशा कि मदद इस कीमत पर की जाए?”
“तो प्यारे हमने कब कहा कि खतरे से बाहर रहकर हम उसकी मदद नहीं करेंगे?”
“तुमने तो एकदम से कह दिया था कि...!”
“फर्क था प्यारे—फर्क था, तुम लोग आशा की मदद करने के लिए इस भावना से कह रहे थे कि वह आशा है, हम सबकी साथी है, अपने दिलजले के डायलॉग तो तुमन सुने ही होंगे और हम मदद करने के लिए केवल इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कोहिनूर तक पहुंचने के लिए स्कीम में उसकी जरूरत पड़ेगी, उसके अभाव में हमारे रास्ते में अनावश्यक कठिनाइयां आ सकती हैं और उन अनावश्यक कठिनाइयों से बचने के लिए यदि हम बिना किसी प्रकार का नुकसान उठाए उसकी मदद कर सकते हैं तो करेंगे।”
“चलो यूं ही सही।”
“लेकिन...!”
विक्रम ने कहा—“फिर ये लेकिन की पूंछ?”
“ये पूंछ तो तब तक लगती ही रहेगी प्यारे विक्रमादित्य जब तक कि बात पूरी नहीं हो जाती।”
“मतलब?”
“अभी हमें यह नहीं पता है कि वह जासूस कौन है, अपनी गोगियापाशा की किस गलती की वजह से उसके पीछे लगा है और उससे क्या चाहता हैं, इन सब सवालों के अनुत्तरित होने के कारण हमें यह भी मालूम नहीं है कि अपनी गोगियापाशा किस स्तर के खतरे में फंसी हुई है और यह जाने बिना मदद के लिए हाथ या पैर बढ़ाना अपने हाथ-पैर से महरूम हो जाने के बराबर है।”
“यानी सबसे पहले इन सवालों के जवाब खोजे जाएं?”
“तुम्हारे बच्चे जिएं प्यारे झानझरोखे, सचमुच तुम बड़े समझदार हो गए हो।”
कुछ कहने के लिए अशरफ ने अभी मुंह खोला ही था कि कमरे के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई, एक साथ ही जैसे सबको सांप सूंघ गया, एक-दूसरे का चेहरा ताकने लगे वे—दस्तक उसी सांकेतिक अंदाज में हुई थी जिसमें आशा को देनी थी, कदाचित इसीलिए विकास फुसफुसाया—
“शायद आशा आण्टी हैं।”
उसी सांकेतिक अन्दाज में दस्तक पुन उभरी।
विजय ने होंठों पर उंगली रखकर सबको चुप रहने का संकेत दिया और निःशब्द अपने स्थान से खड़ा हो गया, विकास, अशरफ और विक्रम के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं, वे किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार थे, जबकि बिल्ली की भांति दबे पांव सारा रास्ता तय करने के बाद विजय ने दरवाजा खोल दिया।
सबके दिमाग को झटका-सा लगा, अन्दर प्रविष्ट होने वाली आशा ही थी।
 
विजय के चिटकनी चढ़ाते ही विकास ने धीमें स्वर में आशा से पूछा—“आप इतनी लेट कैसे हो गईं आंटी?”
हाथ उठाकर आशा ने उसे थोड़ी देर ठहरने के लिए कहा, उसकी सांस फूल रही थी—उखड़ी हुई सांस पर काबू पाने की चेष्टा कर रही थी वह, आगे बढ़कर बेड ही पर बैठ गई, अपने स्थान पर बैठते हुए विजय ने कहा— “अपनी गोगियापाशा का दिल मालगाड़ी का इंजन बना हुआ है।”
“क्या बात है आशा?” अशरफ ने पूछा—“तुम इस तरह हांफ क्यों रही हो?”
“मैं यहां तक पहुंचने की स्थिति में नहीं थी, मगर आना जरूरी था—बड़ी मुश्किल से आ सकी हूं।”
पूरी तरह अनजान बनते हुए विजय ने पूछा—“ऐसा क्या हो गया?”
“म्यूजियम के सिक्योरिटी विभाग का एक जासूस मेरे पीछे लगा हुआ है, उसने ठीक मेरे सामने वाला कमरा ले लिया है और मुझे शक है कि वह इस वक्त भी अपने दरवाजे के ‘की-होल’ से गैलरी में देख रहा होगा।”
“ओह!” विजय के मस्तक पर चिंता की लकीरें उभर आईं—“जब ऐसी स्थिति है तो तुमने यहां आने की बेवकूफी ही क्यों की?”
“आना जरूरी था विजय!”
विजय का थोड़ा क्रोधित स्वर—“क्यों?”
“इसलिए कि कहीं तुममें से भी कोई वह गलती न कर दे जो मैंन की और जिसकी वजह से वह जासूस मेरे पीछे लग गया है, तुम लोगों को सचेत करने के लिए ही मैं तुमसे मिलना चाहती थी, अड़चन उस जासूस के अवाला तुम्हारा निर्देश भी था, किन्तु निर्देश वाली प्रॉब्लम तो तब हल हो गई जब मैंने तुम्हें नीले सूट और लाल टाई में डिनर लेते देखा, यह पूर्वनिर्धारित था कि जिस शाम तुम उन कपड़ों में डिनर लोगे, उसी रात हमें यहां मिलना है, सोचा कि दो बजे मिलकर सबको सचेत कर दूंगी, लेकिन वह कम्बख्त...!”
“क्या गलती हो गई थी तुमसे?”
“म्यूजियम में कोहिनूर देखने जाने की गलती।”
“मतलब?”
आशा ने एक ही सांस में कोहिनूर देखने की अपनी सारी प्रक्रिया बयान कर दी।
सुनकर विजय बोला—“ओह, तुम्हारी नर्वसनेस की वजह से वह तुम्हारे पीछे लग गया है—मगर अब, तुम यहां तक कैसे आई हो—क्या उसने तुम्हें देखा नहीं होगा?”
“मेरे ख्याल से नहीं, वह केवल गैलरी में और मेरे कमरे के दरवाजे पर नजर रख सकता है, जबकि मेरे कमरे का दरवाजा इस वक्त भी अन्दर से बन्द है, कमरे की पिछली खिड़की खोलकर मैं पाइप के सहारे होटल की छत पर पहुंची, वहां से सीढ़ियों द्वारा उतरकर इस यानी तीसरे फ्लोर पर!”
“जियो, प्य़ारी गोगियापाशा, क्या कमाल दिखाया है तुमने!” विजय की आंखें चमकने लगी थीं, वह विकास से बोला— “देखा प्यारे दिलजले, दिमाग का इस्तेमाल करके काम करना अपनी गोगियापाशा से सीखो।”
आशा ने कहा—“मैं फिर कहती हूं कि तुममें से कोई भी कोहिनूर देखने मत जाना।”
“वह तो हम समझ गए, किन्तु फिलहाल तुम ये बताओ कि छत से यहां तक के रास्ते में तुम्हें कोई मिला तो नहीं था?”
“नहीं।”
“अब फटाफट तब से अब तक की राम कहानी सुना दो जब से वह तुम्हारे पीछे लगा है।”
आशा जैसे तैयार ही बैठी थी, वह एकदम शुरू हो गई और डिनर के बाद अपने कमरे में जाने तक का सारा वृत्तांत सुना दिया, बिना टोके सभी ने उसका एक-एक शब्द ध्यान से सुना था और अंतिम वाक्य सुनकर विजय बुरी तरह चौंक पड़ा, चौंके वे सभी थे, विकास ने पूछा—“किसी ने आपके कमरे की तलाशी भी ली?”
“यकीनन!”
“किसने?”
“उसी जासूस का कोई साथी रहा होगा।”
“इसका मतलब ये कि म्यूजियम की सिक्योरिटी केवल एक जासूस को आपके पीछे लगाकर संतुष्ट नहीं हुई है, बल्कि आपको पूरी तरह वॉच किया जा रहा है, आपका इतिहास जानने की कोशिश की जा रही है खैर, आपके सामान में कोई ऐसी चीज तो नहीं थी जो उन्हें आपका वास्तविक परिचय दे सके?”
“नहीं!”
“गुड!” विकास ने संतोष की सांस ली, संतुष्टि के जैसे भाव उसके चेहरे पर उभरे वैसे ही विजय ने अशरफ और विक्रम के चेहरे पर भी देखे, बोला—“कहो प्यारे दिलजले, संतुष्टि हो गई तुम्हारी?”
“हां गुरु, फिलहाल तो कोई विशेष खतरा नजर नहीं आता है— बशर्ते कि रजिस्टर में आशा आण्टी ने ब्यूटी के नाम से ही साइन किए हों।”
विजय ने अशरफ और विक्रम से पूछा—“तुम्हारा क्या ख्याल है प्यारो?”
“विकास ठीक कह रहा है, वैसे तुम्हारे द्वारा निर्धारित की गई कोई असाधारण वस्तु अपने पास न रखने की सतर्कता यहां काम आ गई है, यदि उन्हें आशा के कमरे से कोई रिवॉल्वर आदि भी मिल जाता तो उन्हें सबूत मिल जाता कि ब्यूटी असाधारण लड़की है।”
“अपने दिलजले ने रजिस्टर में हस्ताक्षर वाले खतरे का जिक्र किया है, गोगियापासा को भी याद नहीं कि उसने रजिस्टर में किस नाम से साइन किए हैं, सारी राम कहानी तुमने सुन ली है—क्या तुम तीनों में से कोई बता सकता है कि आशा ने रजिस्टर में किस नाम से साइन किए होंगे?”
“यह भला कैसे बताया जा सकता है?” विक्रम ने कहा।
“गोगियापाशा की राम कहानी क्या तुमने खाक ध्यान से सुनी है?”
बुरा-सा मुंह बनाते हुए विजय ने कहा— “इस राम कहानी से ही जाहिर है कि रजिस्टर में साइन निश्चित रूप से ब्यूटी के नाम से ही हुए हैं।”
आशा ने पूछा—“ऐसा दावा किस आधार पर पेश किया जा सकता है?”
“यदि रजिस्टर में तुमने ‘आशा’ लिखा होता तो तुम्हारा पीछा न किया जाता, वे तुम्हें वॉच न करते रहते, बल्कि म्यूजियम से निकलने से पहले ही गिरफ्तार कर लेते।”
“वैरी गुड!” आंखों में विजय के लिए प्रशंसा के भाव ले वे चारों एकदम कह उठे।
“पीछा करने और तुम्हारा इतिहास पता लगाने की कोशिश साफ बता रही है कि कोहिनूर देखते वक्त तुम्हारी नर्वसनेस और असामान्य मानसिक अवस्था के कारण तुम्हारे प्रति वे संदिग्ध हो उठे हैं, सिर्फ संदिग्ध और पीछा करने, तलाशी लेने आदि के पीछे उस शंका को भ्रम या विश्वास में बदलना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है, वो सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि ब्यूटी एक साधारण लड़की है या असाधारण। कोहिनूर देखते वक्त वह अपनी किसी व्यक्तिगत परेशानी के कारण तनावग्रस्त थी या उस टेंशन का कोई सम्बन्ध हीरे से है?”
“मेरे ख्याल से अभी तक तो आशा से ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, जिससे वे ब्यूटी को असाधारण लड़की समझें या इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वह कोहिनूर के चक्कर में है।” अशरफ ने पूछा।
“हो चुकी है।” विजय ने बड़े आराम से कहा।
“क...क्या?” सभी उछल पड़े और आशा का तो चेहरा ही फक्क पड़ गया।
“यदि होटल में ठहरे किसी साधारण व्यक्ति के कमरे की इस तरह तलाशी ली जाए तो वह क्या करेगा?”
“करेगा क्या, मैनेजर से शिकायत करेगा, चीखेगा-चिल्लाएगा—होटल के मैनेजमेण्ट को गालियां देगा!”
“क्या यह सब आशा ने किया?”
“ओह!” चारों के चेहरों पर एक साथ चिन्ता के चिह्न उभर आए।
“यानी इसे फौरन रिपोर्ट करनी चाहिए थी?” अशरफ ने कहा।
“हां।”
“मैं ये सोच नहीं सकी, घबरा ही इतना गई थी कि...।”
उसका हलक सूख गया, वाक्य पूरा नहीं कर सकी वह—विजय ने विकास को आशा के लिए एक गिलास पानी लाने के लिए कहा, जब आशा पानी पी चुकी तो अशरफ बोला— “खैर, जो वक्त गुजर चुका है—अब उसे तो वापस नहीं लाया जा सकता, आगे क्या करें—यही सोचा जा सकता है।”
“सबसे पहली बात तो ये है मिस गोगियापाशा कि सुबह होते ही तुम अपने कमरे से दो फोन करोगी, पहला मैनेजर को और दूसरा डायरेक्ट्री में देखकर इस इलाके के पुलिस स्टेशन को।”
“प...पुलिस स्टेशन?” आशा के चेहरे पर पसीना भरभरा उठा।
“हां!”
“क्यों?”
“अपने सामने वाले कमरे में ठहरे युवक की रिपोर्ट करने के लिए।”
“वह तो सिक्योरिटी का आदमी है, पुलिस उसका क्या बिगाड़ेगी—उसका परिचय पत्र देखते ही इंस्पेक्टर उसे सैल्यूट मारेगा और तब वह पुलिस को मुझे गिरफ्तार करने का हुक्म देगा, वे मुझे गिरफ्तार कर लेंगे।”
“मेरे ख्याल से ऐसा कुछ नहीं होगा—और यदि हो भी तो फिलहाल तुम्हें गिरफ्तार हो जाना चाहिए।”
“ये तुम क्या कह रहे हो?” आशा का चेहरा सफेद पड़ गया था।
“सुनो!” विजय उसे समझाने वाले भाव से बोला— “तुम कोहिनूर देखने से लेकर युवक के ठीक सामने वाले कमरे में ठहरने की घटना बिल्कुल सच-सच पुलिस को बता दोगी—कमरे की तलाशी ली जाने के ‘ईशू’ पर सारे होटल को चीख-चीखकर सिर पर उठा लोगी-पुलिस से कहोगी कि वह युवक पता नहीं किस नीयत से म्यूजियम से ही तुम्हारे पीछे लगा हुआ है, तुम उससे बुरी तरह डरी-डरी रहीं और तुम यह शंका भी व्यक्त करोगी कि कमरे की तलाशी भी इसी युवक या इसके साथियों ने ली है।”
“पुलिस पूछेगी कि तलाशी आदि की रिपोर्ट मैंने रात ही क्यों नहीं की?”
 
“तुम इस युवक से बुरी तरह डरी हुई और आतंकित थीं—घबरा रही थी, डर रही थीं-उसी घबराहट की वजह से तुम तुरन्त तलाशी लिए जाने की रिपोर्ट न कर सकीं, जब घबराहट कुछ कम हुई तो रिपोर्ट करने के लिए कमरे से बाहर निकलना चाहा, तभी तुमने इस युवक को सामने वाले कमरे का ताला खोलते देखा, तुम बुरी तरह डरकर अपने कमरे में बन्द हो गईं—कहीं रिपोर्ट करने का युवक पर कोई उल्टा ही असर न हो, इस डर से तुम रिपोर्ट न कर सकीं और डर के मारे सारी रात जागती रहीं और सुबह को अन्त में तुमने रिपोर्ट करने का ही निश्चय किया, अपने कमरे का दरवाजा तुम पुलिस के आने पर ही खोलोगी।”
“इस सबसे क्या होगा?” अशरफ ने पूछा।
“सिक्योरिटी की नजरों में ब्यूटी साधारण लड़की साबित हो जाएगी।”
“वे लोग इसे गिरफ्तार भी तो कर सकते हैं।”
“किसलिए?”
“पूछताछ करने के लिए?”
“तुम्हारे ख्याल से वे किस किस्म की पूछताछ करेंगे!”
“ब्यूटी का इतिहास जानने की कोशिश करेंगे।”
“वह सब पक्का है ही, बेहिचक बता देना चाहिए।”
“वे यह भी पूछेंगे कि कोहिनूर देखते समय ये तनावग्रस्त या नर्वस क्यों थीं?”
“ये सवाल जरूर किया जाएगा क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है और इसी का जवाब जानने के लिए वे इतने पापड़ बेल रहे हैं, उनके पापड़ बेलने की उनकी प्रक्रिया रुक जाएगी और वे जवाब पाने के लिए आशा से यह सीधा सवाल करने के लिए विवश हो जाएंगे, यदि उन्हें माकूल जवाब मिल गया तो वे पापड़ बेलना बन्द कर देंगे, उससे न केवल आशा ही तनाव से बाहर निकल आएगी, बल्कि हम भी असुविधा से बच जाएंगे।”
“सोच तो तुम ठीक रहे हो, लेकिन...!”
“लेकिन क्या?”
“उसके सवाल के जवाब में आशा क्या कहेगी?”
“कोहिनूर को देखने जाने से पहले इसके एक हजार पाउण्ड कहीं खो गए थे, उन्हीं की वजह से यह मानसिक रूप से असंतुलित थी।”
“क्या वे इस बहाने पर यकीन कर लेंगे?”
“यकीन करें या न करें, मगर एक बहाना तो है।” विजय बोला— “इस बहाने के बाद वे आशा पर कोई जुर्म साबित नहीं कर सकेंगे और बिना किसी अपराध के पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं रख सकती, लिहाजा इसे छोड़ दिया जाएगा।”
“क्या जरूरी है कि इस घटना के बाद सिक्योरिटी का कोई जासूस आशा पर नजर नहीं रखेगा?”
“कोई जरूरी नहीं है।”
“बात तो फिर वहीं आ गई।”
“इसीलिए तुम्हारे लिए यह आदेश है आशा डार्लिंग की जब तक हमारा संकेत न हो, तब तक तुम किसी भी हालत में हममें से किसी से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश नहीं करोगी, भले ही चाहे जैसी विशेष परिस्थिति हो—तुम्हें लंदन घूमने आई साधारण लड़की की तरह रहते रहना है—इस बात पर भी ध्यान नहीं दोगी कि हम क्या कर रहे हैं। या हमारे साथ क्या हो रहा है—यहां तक कि अगर तुम कहीं हममें से किसी की लाश भी पड़ी देख लो तो उतनी ही दिलचस्पी लेना जितनी किसी अपरिचित किसी लाश में लेता है।”
आशा ने स्वीकृति में गरदन हिलाई।
“अब तुम जा सकती हो।”
चौंकती हुई आशा ने पूछा—“क्या तुम सब लोग मुझे अपनी रिपोर्ट्स से अवगत नहीं कराओगे?”
“तुमसे कहा न आशा डार्लिंग।” किसी के बोलने से पहले ही विजय ने कहा— “फिलहाल हमारे अगले संकेत तक के लिए बिल्कुल भूल जाओ कि तुम हमारे साथ यहां किसी अभियान पर आई हुई हो।”
आशा चुप रह गई, विजय ने कहा— “जिस दिन मैं तुम्हें सफेद सूट में गुलाब लगाए लंच लेता नजर आऊं, उस दिन तुम मुझे फॉलो फोलो करने लगोगी, सिर्फ करोगी—मुझसे बोलोगी कुछ नहीं—यदि रास्ते में कहीं फूल निकालकर फैंक दूं तो मुझे फॉलो करना बन्द कर देना।”
“मैं समझ गई।”
“गुड!” विजय ने विकास को आदेश दिया—“अब तुम अपनी आशा आण्टी को होटल की छत तक छोड़ आओ प्यारे दिलजले, मगर सावाधान—किसी की नजर तुम पर पड़ी और बन्टाधार!”
विकास और आशा खड़े हो गए।
¶¶
करीब पन्द्रह मिनट बाद विकास लौट आया, उसने रिपोर्ट दी कि उन्हें किसी ने नहीं देखा है, सारा होटल सन्नाटे में डूबा पड़ा है, आश्वस्त होने के बाद विजय ने कहा— “अब तुम सुनाओ प्यारे दिलजले, अपना शिकार तुम्हें मिला या नहीं?”
“मिल गया है।” विकास ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
“वैरी गुड!” विजय उछल पड़ा— “इसे कहते हैं उपलब्धि—हां तो प्यारे—एक ही सांस में बता दो कि उसका क्या नाम है, कहां रहता है और तुमने किस तरह उसका पता लगाया?”
विकास ने सचमुच एक ही सांस में सब कुछ बता दिया। सुनने के बाद विजय ने कहा—“जी चाहता है प्यारे कि तुम्हारे दिमाग को चूम लूं, लेकिन ये साली खोपड़ी बीच में है, खैर—फिर कभी सही-हां तो प्यारे झानझरोखे और विक्रमादित्य, हमने तुम्हें लन्दन में कोई ऐसी जगह तलाश करने का काम सौंपा था, जहां बिना किसी विघ्न—बाधा के हमारी आपराधिक गतिविधियां चल सके, क्या रहा—यानी तुम ऐसी किसी जगह को खोज निकालने में कामयाब हुए या नहीं?”
“स्थान तो हमने कई देखे हैं, मगर उनमें से अधिकांश शहर से काफी दूर सन्नाटे में हैं—तुमने कहा था कि स्थान यदि शहर के बीच में मिल जाए तो ज्यादा अच्छा है।”
“मिला कोई?”
“मिला है और मकान नहीं, पूरी कोठी है वह!”
“किस सिच्युएशन में?”
“स्मिथ स्ट्रीट का सारा इलाका ही कोठियों से भरा पड़ा है और उन्हीं में से एक कोठी का नाम है—‘पीटर हाउस' यह कोठी करीब पांच सौ वर्ग गज के क्षेत्रफल में बनी हुई है, इसे पीटर नाम के व्यक्ति ने बनवाया था जो पांच साल पहले मर चुका है, पीटर के दो लड़के हैं-इन दोनों में इस कोठी को लेकर पीटर की मृत्यु के एक महीने बाद से ही झगड़ा है, दोनों कोठी पर अपना दावा पेश करते हैं और दिलचस्प बात ये हैं कि दोनों के पास पीटर की मृत्यु से पहले ही अपने-अपने हक में वसीयतें हैं—दोनों वसीयतों पर पीटर के साइन हैं और वे एक-दूसरे की वसीयत को नकली कहते हैं।”
“मामला वाकई दिलचस्प है।”
“पीटर हाउस को लेकर कुछ दिन तक तो दोनों भाइयों का झगड़ा होता रहा, फिर एक ने कुछ किराए के गुण्डों की मदद से पीटर हाउस पर कब्जा कर लिया—दूसरे भाई ने भी गुण्डे खरीदे और इन गुण्डों ने पहले भाई के गुण्डों को मार पीटकर भगा दिया तथा अपना कब्जा जमाकर बैठ गए करीब एक साल तक यही सिलसिला चलता रहा—इस लड़ाई में पहला भाई हार गया तो उसने अपने पास मौजूद पीटर की वसीयत के आधार पर मुकदमा दायर कर लिया, दूसरा भाई कोर्ट में हाजिर हुआ—उसने भी पीटर के ही साइन वाली अपनी वसीयत पेश कर दी, जिसके मुताबिक पीटर हाउस उसका था—इस तरह कानूनी लड़ाई शुरू हो गई—अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है, अदालत ने कोठी पर ताला लटकाकर अपनी सील लगा दी है—चाबी भी अदालत के पास है और जज ये घोषित कर चुका है कि फैसला होने पर चाबी जीतने वाले भाई को दे दी जाएगी।”
“यानी इस वक्त कोठी वीरान और बन्द पड़ी है, ताले पर अदालत की सील है।”
 
“मुकदमें का फैसला होने तक यही स्थिति रहेगी।”
“फैसला होने के बारे में क्या सम्भावना है?”
“कम-से-कम एक साल तो कोई फैसला होता नहीं है।” विक्रम ने बताया।
विजय ने पूछा—“तुम्हें यह पीटर हाउस आपराधिक गतिविधियों के लिए जंचा?”
“केवल इसलिए कि अदालत के फैसले से पहले वहां कोई घुस भी नहीं सकता।”
“तुम कैसे घुसोगे, मेरा मतलब वह अदालती सील?”
“अदालती सील केवल मुख्य द्वार ही पर तो लगी हुई है, हम जैसे अपराधियों के लिए कोठी के अन्दर जाने के अन्य बहुत-से रास्ते हैं, सील लगी रहे-हमारा अखाड़ा आराम से कोठी के अन्दर जम सकता है।”
“किस किस्म के रास्ते हैं?”
“उपरोक्त सिच्युएशन पता लगने पर हमें पीटर हाउस अपनी गतिविधियों के लिए उचित जगह लगी, सोचा कि अगर हमें अन्दर दाखिल होने के लिए कोई अन्य रास्ता मिल जाए तो हम उसी को अपने आने-जाने का ‘मुख्य द्वार’ बनाकर कोठी का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं—मुख्य द्वार पर लगी अदालती सील हमें सुरक्षित रखेगी, यही सोचकर रात के वक्त हमने कोठी के चारों तरफ घूम-घूमकर सारी भौगोलिक स्थिति देखी—पिछली तरफ, ‘रेनवाटर’ पाइप से लगी हुई दूसरी मंजिल की एक खिड़की है—उस खिड़की पर लगे शीशेदार किवाड़ शायद अन्दर से बन्द हैं, शीशे का थोड़ा-सा भाग काटकर हम आसानी से अन्दर दाखिल हो सकते हैं, वहां मकान मालिक की तरह रह सकते हैं—वह खिड़की हमारा ‘मुख्य द्वार’ बन जाएगी—कोठी का मनचाहा इस्तेमाल करने से हमें रोकने कौन आएगा?”
“इन्तजाम तो तुमने पते का किया है प्यारो, लेकिन...!”
“लेकिन ...?”
“पड़ोसियों का क्या होगा, यानी अगर हममें से किसी को किसी ने पीटर हाउस में आते-जाते या उस खिड़कीनुमा ‘मुख्य द्वार’ का उपयोग करते देख लिया तो?”
“रिस्क तो है ही मगर यह खतरा तो हमें उठाना ही होगा—आखिर अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए फ्री में इतनी बड़ी कोठी का इस्तेमाल जो करेंगे?”
अशरफ बोला—“कोई विशेष खतरा नहीं है, आने-जाने में सिर्फ हमें थोड़ी-सी सावधानी बरतनी होगी।”
“ठीक है, तुम मुझे पूरा पता लिखकर दे दो—कल मैं खुद पीटर हाउस का निरीक्षण करूंगा।”
अशरफ और विक्रम ने सहमति में गरदन हिला दी।
कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई और फिर इस खामोशी को विकास ने तोड़ा—“आपने हमारी रिपोर्टें तो ले ली हैं गुरु और फिलहाल मेरी समझ के मुताबिक दोनों ही रिपोर्टें आशाजनक हैं, अब आप अपनी कहिए कि कहां तक पहुंचे—यानी क्राइमर अंकल अपनी योजना के कौन-से चरण में हैं?”
“वही हो रहा है, जो हमारा अनुमान था।”
“यानी?”
“कल या परसों में वे दोनों होटल छोड़कर गार्डनर की कोठी में रहने जा रहे हैं।”
“वैरी गुड!” विकास के मुंह से निकला—“यह आपको कैसे पता लगा?”
विजय ने बिना किसी हील-हुज्जत के सारी घटना बता दी, सुनने के बाद लड़के के होंठ एक दायरे की शक्ल में सिकुड़कर गोल हो गए, ऐसा महसूस हुआ कि जैसे अभी सीटी बजाना शुरू कर देगा मगर ऐसा किया नहीं उसने बल्कि बोला—“इसका मतलब ये कि क्राइमर अंकल भी काफी तेज रफ्तार से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे हैं।”
“उसके साथ ही हमें भी अपनी रफ्तार बढ़ानी पड़ेगी।”
“किस तरह?”
“कल रात तक फैसला हो जाएगा कि पीटर हाउस को हमें इस्तेमाल करना है या नहीं—यदि हां, तो परसों रात को स्कीम बनाकर चैम्बूर को किडनैप करेंगे, पीटर हाउस में लाकर किसी भी तरह उससे वे जानकारियां, हासिल करेंगे जो कोहिनूर की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में उसे ज्ञात होंगी।”
“यदि उसे कोई विशेष जानकारी नहीं हुई तो?”
“साबित हो चुका है कि वह के.एस.एस. का सदस्य है—इसका मतलब ये कि भले ही ज्यादा न हो किन्तु कुछ-न-कुछ जानकारी उसे जरूर होगी—हां, ये सम्भव है कि वह ग्राडवे की तरह टूटे नहीं, पता होते हुए भी हमें कुछ न बताए या उसे जो जानकारी हो वह हमारे ज्यादा काम की न हो—ऐसा कुछ भी हो सकता है—मगर फिलहाल आगे बढ़ने के लिए हमारे पास उसके अलावा कोई रास्ता नहीं है—इसलिए कम-से-कम परसों तक उसी पर डिपेंड रहना मजबूरी है, उसके बयान के बाद जैसी सिच्युएशन होगी, वैसी स्कीम बनाएंगे।”
अशरफ ने पूछा— “कल रात तक के लिए क्या रणनीति रहेगी?”
“सबसे पहली बात तो ये कि यहां से अपना लूमड़ ही जा रहा है तो हममें से किसी का भी इस होटल में रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है, अतः एक-एक करके हम चारों को चार दिन में ये होटल छोड़ देना है—किसी सस्ते होटल में कमरा लेना उचित होगा, वहां ठहरे यात्रियों पर लोगों का ध्यान कम जाता है—सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा उचित ये होगा कि हम अलग-अलग होटलों में रहें।”
“ठीक है, एलिजाबेथ किस क्रम में छोड़ें?”
“यह क्रम हम परसों से जारी करेंगे, पहले विक्रम—फिर अशरफ, विकास और फिर हम!”
“और आशा?”
“फिलहाल उस वक्त तक वह हमारे हर प्रोग्राम से बाहर रहेगी जब तक सिक्योरिटी का ध्यान उस पर केन्द्रित है।”
विजय ने कहा— “और तुम्हें कल सारे दिन चैम्बूर को वॉच करते रहना है दिलजले, हो सके तो उसकी दिनचर्या को कंठस्थ करने की कोशिश करना।”
“हमारे लिए क्या काम है?” विक्रम ने पूछा।
“कल भी सारे दिन तुम्हें लंदन में जगह तलाश करने की कोशिश करते रहना है, ताकि यदि किसी वजह से पीटर हाउस न जंचे तो कोई अन्य इन्तजाम हो सके।”
“ठीक है।”
“आज ही की तरह और आज ही के समय कल रात भी हमें यहां मिलना है।”
तीनों ने सहमति में गरदन हिलाई, विजय ने आगे कहा— “आज की मीटिंग समाप्त करने से पहले मैं ये जरूर कहूंगा कि अभी तक बाण्ड या लूमड़ में से किसी का भी ध्यान हमारी तरफ नहीं है और यह स्थिति हमारे पक्ष में है, इसे पक्ष में ही बनाए रखना होगा यानी हमें चाहिए कि अपने सारे काम बाण्ड या लूमड़ की दृष्टि से बहुत दूर रहकर ही करें, उनका सामना न करने तक ही हम यहां सकून से हैं।”
“मीटिंग समाप्त होने से पहले मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहूंगा गुरु!”
“पूछो!”
“क्या आप बता सकेंगे कि जो बातें हमने आशा आण्टी के जाने के बाद की हैं, वे उनके सामने क्यों नहीं की गईं?”
विजय ने बहुत ध्यान से डबल एक्स फाइव के चेहरे को देखा, अजीब-से ढंग से मुस्कराया बोला— “उसके जाने के बाद हमने लंदन में की गई अपनी प्रोग्रेस का जिक्र किया है, भावी कार्यक्रम बनाया है—और मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहूंगा कि अपनी प्रोग्रेस और प्रोग्राम की जानकारी मैं आशा से छुपाना चाहता था।”
“क्यों?”
“अपनी बेवकूफी से वह सिक्योरिटी की नजरों में आ गई है—अगर उसने हमारी बताई हुई योजना को कार्यान्वित किया तो उम्मीद है कि सिक्योरिटी का ध्यान उस पर से हट जाए, मगर जितनी नर्वस वह हो जाती है, उसकी वजह से पुनः कोई बड़ी गलती कर सकती है, ऐसी अवस्था में सिक्योरिटी उसे गिरफ्तार कर लेगी और मैं नहीं चाहता था कि सिक्योरिटी उसके मुंह से हमारी प्रोग्रेस और प्रोग्राम के बारे में जान ले।”
“क्या आप समझते हैं कि कोई सिक्योरिटी हमारे खिलाफ आशा आण्टी की जुबान खुलवा सकती है?”
विजय ने आराम से कहा— “हम रिस्क क्यों लें प्यारे, मार के आगे भूत भी नाचते हैं।”
“उस स्थिति में अगर आण्टी की जुबान खुले तो कम-से-कम हमें गिरफ्तार तो अब भी करा ही सकती हैं वे।” यह वाक्य विकास ने बहुत ही तीखे, व्यंग्य-भरे लहजे में कहा था।
विजय ने ऐसा भाव प्रकट किया जैसे उसके आशय को समझा ही न हो, बोला—“इस तरफ से भी हमें सतर्क रहना होगा कि कहीं, आशा के माध्यम से सिक्योरिटी हम तक न पहुंच जाए।”
इस बार विक्रम कुछ बोला नहीं, मगर विजय के लिए उसके चेहरे पर घृणा के भाव उभर आए थे, आशा की इतनी उपेक्षा और उसे बारे में कही गई विजय की बातें अशरफ और विक्रम को भी पसन्द नहीं आई थीं, ऐसी बातें कल वह उनके बारे में भी कर सकता था, परन्तु विजय ने ऐसा कोई भाव प्रकट नहीं किया, जिससे उन्हें यह महसूस होने देता कि विजय उनकी मानसिक स्थिति से परिचित है।
 
ब्रिटिश सीक्रेट के चीफ मिस्टर एम अपने भव्य एयरकण्डीशण्ड एवं साउण्डप्रूफ ऑफिस में, विशाल मेज के पीछे पड़ी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठे, दर्पण की तरह चमक रहे अपने गंजे सिर पर हाथ फिराते हुए सोच रहे थे कि अपनी बात कहां से शुरू करें?
मेज के इस तरफ बैठा जेम्स बाण्ड चुपचाप उन्हें देख रहा था।
मिस्टर एम के एक हाथ में सिगार था और वे विचारमग्न नजर आ रहे थे, उन्होंने बाण्ड को अर्जेण्ट कॉल किया था और बाण्ड कुछ ही देर पहले यहां पहुंचा था, किन्तु अभी तक बाण्ड से उन्होंने कोई बात नहीं की थी, जब और काफी देर तक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया तो, बेचैन होकर बाण्ड ने कहा— “क्या मैं जान सकता हूं सर कि मुझे यहां किसलिए बुलाया गया है?”
“ओह, हां!” मिस्टर एम इस तरह चौंके जैसे पहली बार उन्हें यहां बाण्ड की उपस्थिति की जानकारी मिली हो, मेज पर थोड़े झुकते हुए बोले—“क्या तुम्हें वह हत्या याद है जो अलफांसे की शादी की रात को हुई थी?”
“जी हां-मृतक का नाम ग्राडवे था।”
“तुमने इस हत्या के रहस्य तक पहुंचने की कोशिश भी की थी?”
“यस सर, लेकिन उस हत्या का जिक्र आप क्यों कर रहे हैं?”
“इनवेस्टिगेशन के बाद किस नतीजे पर पहुंचे थे तुम?”
“उस हत्या में मैंने बहुत ज्यादा दिलचस्पी तो नहीं ली थी, मगर जितनी भी ली थी, उससे यह जाना था कि हत्यारा किसी बहाने से ग्राडवे को समीप ही वीरान पड़े एक खण्डहर में ले गया— कोई जानकारी हासिल करने के लिए उसने ग्राडवे को टॉचर्र किया और बाद में हत्या कर दी, हत्या खंडहर ही में की गई थी, लेकिन लाश को लाकर मिस्टर गार्डनर की कोठी के लॉन में डाल दिया, कोशिश के बावजूद मैं हत्यारे की इस हरकत के पीछे छुपा उसका मकसद नहीं जान सका—दरअसल वह हत्या आज तक मेरे लिए एक रहस्य है।”
“क्या तुम बता सकते हो कि टॉर्चर करके उससे क्या उगलवाने की कोशिश की गई थी?”
“जी नहीं मगर—यदि आप सच पूछें तो मैंने उस मर्डर में उलझने की ज्यादा कोशिश भी नहीं की—अगर अब आप उसे केस को मेरे सुपुर्द कर रहे हैं तो उम्मीद है कि मैं उसे सुलझा लूंगा।”
“वह मर्डर केस नहीं है, बल्कि सिर्फ यह इंगित करता है कि भीतरी-ही-भीतर बड़ा चक्कर चल रहा है”
“क्या मतलब?”
“हत्यारे ने ग्राडवे से क्या पूछा होगा, यह हम तुम्हें बता सकते हैं।”
“अ...आप?” बाण्ड चौंका।
मिस्टर एम ने बड़े इत्मीनान के साथ सिगार का कश लगाया और बोले—“तुम यह तो जानते हो कि मिस्टर स्टेनले गार्डनर कोई बहुत बड़े सिक्योरिटी अफसर हैं, परन्तु उनकी पोस्ट नहीं जानते, दरअसल ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो मिस्टर गार्डनर की पोस्ट से परिचित हों!”
“ऐसी क्या पोस्ट है उनकी?”
“वे के.एस.एस. नामक संस्था के सर्वोच्च अधिकारी यानी डायरेक्टर हैं।”
चौंकते हुए बाण्ड ने कहा— “क्या उसी के.एस.एस. के जिसका गठन कोहिनूर की सुरक्षा के लिए किया गया है?”
“हां!” मिस्टर एम ने कहा—“उन्हें उतने ही अधिकार और शक्तियां प्राप्त हैं जितनी इस कुर्सी पर बैठकर हमें हैं—आज से पांच साल पहले के.एस.एस. ने गुप्त रूप से अंतरिक्ष में एक उपग्रह भेजा था, वह आज भी पृथ्वी के चारों तरफ अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहा है और इसका केवल एक ही काम है, कोहिनूर पर नजर रखना।”
“ओह!” बाण्ड के दिमाग की उलझी हुई नसें जैसे खुलने लगीं।
“इस उपग्रह का सम्बन्ध दरअसल एक कंट्रोल रूम से है, यानी प्रत्येक पल यह उपग्रह कोहिनूर की स्थिति को इस कंट्रोल रूम में प्रेषित करता रहता है, यह तो तुम समझ ही सकते हो कि कंट्रोल रूम के.एस.एस. के चार्ज में होगा।”
“क्या मैं जान सकता हूं कि यह कंट्रोल रूम पृथ्वी पर कहां है?”
“मिस्टर गार्डनर की कोठी के नीचे एक गुप्त तहखाने में।”
“क...क्या?” बाण्ड उछल पड़ा।
मिस्टर एम ने कहा—“यह सुनकर शायद तुम्हें और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि ग्राडवे के.एस.एस. का सदस्य था।”
“ओह!” बाण्ड की आंखें चमकने लगीं, वह तेजी से बोला—“कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते कि हत्यारे ने ग्राडवे को कोहिनूर की सुरक्षा व्यवस्था जानने के लिए टॉर्चर किया था?”
“क्या नहीं हो सकता?”
“हां, हो सकता है—बल्कि ये कहना चाहिए कि ऐसा ही है।”
“तुम्हें याद होगा कि ग्राडवे की लाश को पहचानते ही मिस्टर गार्डनर वहां से भाग गए थे, कारण ये था कि ग्राडवे की लाश को देखते ही उन्हें कोहिनूर की फिक्र हुई, दिमाग में यह विचार उठा कि कहीं कोई शादी के धूम-धड़ाके का लाभ उठाकर कोहिनूर तक तो नहीं पहुंचना चाहता है। अत: उन्होंने तुरन्त ही कन्ट्रोल रूम से रिपोर्ट ली, कोई विशेष बात नहीं थी—उपग्रह बता रहा था कि कोहिनूर बिल्कुल सुरक्षित है और उसके आसपास भी कोई खतरा नहीं है—पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही मिस्टर गार्डनर लौटकर लॉन में आए थे।”
“इसका अर्थ यह निकलता है कि जो ग्राडवे जानता था, वही अब उसका हत्यारा जानता है?”
“तब के.एस.एस. के उच्चधिकारियों तथा स्वयं गार्डनर का भी ग्राडवे को मर्डर खटका जरूर था, परन्तु कोई यह कल्पना नहीं कर सका कि इस हत्या की वजह उसका के.एस.एस. से सम्बन्ध है और यह तो कानों से सुनकर भी किसी को यकीन नहीं हो सकता कि कुछ लोग कोहिनूर को चुराने का ख्वाब भी देख सकते हैं।”
“क्या ऐसा हो रहा है?” जेम्स बाण्ड ने चकित भाव से पूछा।
“कोई सबूत नहीं है, इसलिए यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता, मगर हां, पिछले कुछ दिनों से ऐसी घटनाएं जरूर हो रही हैं जो थोड़ी असामान्य महसूस होती हैं—उन घटनाओं से ऐसा आभास मात्र होता है कि कुछ लोग कोहिनूर में दिलचस्पी ले रहे हैं, इन्हीं घटनाओं ने के.एस.एस. में सरगर्मी–सी फैला दी है और इस मामले में उन्होंने हमारी मदद मांगी है।”
“कैसी मदद?”
“वे चाहते हैं कि तुम बारीकी से उन असामान्य घटनाओं का अध्ययन करके, या अपने ढंग से इनवेस्टीगेशन करके यह पता लगाओ कि क्या वाकई कुछ लोग कोहिनूर तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं—यदि हां, तो वे दुःसाहसी कौन हैं—अब तक वे क्या मालूम कर चुके हैं और उनकी क्या स्कीम है?”
“क्या के.एस.एस. ने इस केस पर काम करने के लिए मेरा नाम लिया है?”
“स्वयं गार्डनर ने कहा है कि इस केस की आशाजनक इनवेस्टिगेशन तुम ही कर सकते हो।”
“क्या आप उन छोटी-छोटी घटनाओं का जिक्र करेंगे, जो के.एस.एस. को असाधारण नजर आ रही हैं और जिनकी वजह से उन्हें किन्हीं लोगो के कोहिनूर में दिलचस्पी लेने का आभास हुआ है?”
“आज से तीन दिन पहले म्यूजियम में ब्यूटी नाम की एक जापानी लड़की कोहिनूर देखने आई, वहां की सिक्योरिटी का कहना है कि यह लड़की कोहिनूर देखते वक्त बहुत ही नर्वस और तनावग्रस्त थी, साइन वाले रजिस्टर के पास जो मनोवैज्ञानिक बैठा रहता है। उसका कहना है कि वह ये तो नहीं कह सकता था कि लड़की ने किसी गलत नाम से हस्ताक्षर किए थे, मगर उसने इतना जरूर महसूस किया था कि हस्ताक्षर करते वक्त वह आवश्यकता से अधिक सतर्क नजर आ रही थी, उस वक्त उसने इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया परन्तु जब निकासी द्वार पर खड़े कूपन लेने वाले सैनिक ने बताया कि लड़की ने कूपन को इतनी सख्ती से पकड़ रखा था कि उसकी हथेली पर कूपन का निशान बन गया था तो उन्होंने लड़की को वॉच करने का निश्चय करके एक जासूस को उसके पीछे लगा दिया—यह जानने की कोशिश की गई कि वह लड़की सामान्य पर्यटक है या कोई असामान्य हरकत करती है, उसकी अनुपस्थिति में के.एस.एस. के एक अन्य जासूस ने उसके कमरे की तलाशी भी ली, पर कुछ न मिल सका—मगर रात को डिनर के बाद वह अपने कमरे में गई, परन्तु उसने मैनेजर से कमरे की तलाशी ली जाने के बारे में कोई शिकायत नहीं की—उसकी यह हरकत सामान्य पर्यटक से हटकर थी, इसीलिए उसके पीछे लगे जासूस को ठीक उसके सामने कमरा दिलवाकर ये निर्देश दिया गया कि वह सारी रात लड़की की निगरानी करता रहे।”
“उसके बाद?”
“जासूस निगरानी करता रहा, लड़की सारी रात में एक मिनट के लिए भी कहीं नहीं गई, रिसेप्शनिस्ट से रिपोर्ट ली गई तो पता लगा कि उसने कहीं फोन भी नहीं किया है, मगर सुबह के छः बजते ही चमत्कार हो गया।”
“क्या हुआ?”
“लड़की ने मैनेजर और पुलिस को फोन करके दोनों को अपने कमरे पर ही बुला लिया, बल्कि अन्दर से बोल्ट अपने कमरे का दरवाजा खोला ही तब जब वहां पुलिस पहुंच गई—जो उसने रात नहीं किया था वह सुबह कर दिया, इतना ही नहीं उसने सामने ठहरे के.एस.एस. के जासूस पर आरोप लगाया कि वह कल सारे दिन किसी बुरी नीयत से उसका पीछा करता रहा और अन्त में सामने वाले कमरे में आ ठहरा और उसे शक है कि उसके कमरे की तलाशी भी इसने या इसके किसी साथी ने ली है।”
“सारा मामला बेहद दिलचस्प है।” बाण्ड मुस्कराया—“उसके बाद क्या हुआ?”
“बड़ी मुश्किल से लड़की को शान्त किया गय़ा और पुलिस के.एस.एस. के जासूस को पकड़कर पुलिस स्टेशन ले गई, जब पुलिस उससे पूछताछ कर रही थी तभी फोन द्वारा म्यूजियम सिक्योरिटी के चीफ ने पुलिस को गिरफ्तार युवक का परिचय देकर सारी स्थिति बताई—अब सिक्योरिटी यह सोचने पर विवश हो गई कि ये चक्कर क्या है, यदि साधारण लड़की है तो तलाशी की शिकायत रात ही में क्यों नहीं की—और असाधारण है तो सुबह क्यों की—अतः पुलिस के जरिए उसे भी पुलिस स्टेशन बुला लिया गया और वहां म्यूजियम सिक्योरिटी के चीफ ने स्वयं उससे सवाल पूछे—लड़की ने कहा कि सामने वाले कमरे में ठहरे युवक से वह इतनी डर गई थी कि रात को शिकायत न कर सकी, सुबह तक उसने साहस करके वह सब करने का फैसला कर लिया।”
“क्या उससे कोहिनूर देखते समय नर्वस होने का कारण पूछा गया था?”
“कहती है कि म्यूजिम में जाने से पहले उसके एक हजार पाउण्ड खो गए थे, इसी वजह से थोड़ी अव्यवस्थित-सी थी।”
“अच्छा जवाब है, फिर क्या हुआ?”
“लड़की को छोड़ दिया गया, तुरन्त ही म्यूजियम सिक्योरिटी की एक अर्जेण्ट मीटिंग हुई, आधे सदस्यों की राय ये थी कि लड़की असाधारण है और बहाना कर रही है, आधे कहते हैं कि लड़की साधारण है और इसी वजह से सारे घटनाक्रम में बौखलाई-सी नजर आती रही, वैसे काफी पूछताछ के बाद भी ऐसी बात सामने नहीं आई जिसके आधार पर उसकी तरफ उंगली उठाई जा सके।”
 
“अब वह लड़की कहां है?”
“वहीं, यानी होटल एलिजाबेथ के रूम नम्बर नाइण्टी-फाइव में।”
“एलिजाबेथ?” कहते वक्त जेम्स बाण्ड की आंखें कुछ सिकुड़ गईं बोला— “क्या सिक्योरिटी के किसी जासूस द्वारा अब भी उस पर नजर रखी जा रही है?”
“सिक्योरिटी ने इसकी जरूरत महसूस नहीं की—क्या तुम्हारे ख्याल से ऐसा होना चाहिए था?”
“फिलहाल मैं अपनी कोई राय व्यक्त नहीं कर सकता।” जेम्स बाण्ड ने कहा— “हां, कम-से-कम एक बार मैं इस दिलचस्प लड़की से मिलना जरूर चाहूंगा—खैर, इसके अलावा और ऐसी कौन-सी घटना हुई?”
“जिस दिन वह कोहिनूर देख रही थी, उसी दिन के.एस.एस. के प्रमुख अधिकारी मिस्टर चैम्बूर को किसी ने फोन किया, फोन नौकर ने डील किया। दूसरी तरफ से कहा गया कि वे मिस्टर गार्डनर बोल रहे हैं, फोन पर मिस्टर चैम्बूर को बुला दिया जाए—जब मिस्टर चैम्बूर ने बात करनी चाही तो दूसरी तरफ से किसी ने बिना कुछ कहे ही कनेक्शन काट दिया—मिस्टर चैम्बूर संदिग्ध हो उठे, उन्होंने तुरन्त ही एक्सचेंज से मालूम किया कि यह फोन उन्हें बूथ नम्बर फोर्टी सेवन से किया गया था—उन्होंने मिस्टर गार्डनर से सम्बन्ध स्थापित करके पूछा तो पता लगा कि उन्होंने मिस्टर चैम्बूर को कोई फोन नहीं किया था।”
बाण्ड की आंखें गोल हो गईं।
“यह फोन किसने और क्यों किया, अभी तक सभी कुछ अंधेरे में है।” मिस्टर एम ने बताया— “क्या उपरोक्त तीन घटनाओं से ऐसा महसूस नहीं होता कि कुछ रहस्यमय लोग एक अदृश्य-सा जाल बुन रहे हैं?”
“निःसन्देह ये घटनाएं हमें सतर्क करके सारे मामले पर बारीकी से अध्ययन और इनवेस्टिगेशन करने की प्रेरणा दे रही हैं और हमें सक्रिय हो जाना चाहिए, खैर—क्या आप बता सकते हैं कि ग्राडवे को कोहिनूर की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में क्या-क्या जानकारी थीं?”
“यूं तो कोहिनूर की सुरक्षा के लिए ढेर सारे प्रबन्ध किए गए हैं और ये प्रबन्ध इतने कड़े और संतुष्टिजनक हैं कि कोहिनूर को चुराना तो दूर, हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि उसके आसपास भी कोई पहुंच सकता है—अन्तरिक्ष में चक्कर लगाते हुए उपग्रह को तुम कोहिनूर की सम्पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था समझने की भूल मत करना, वह तो दरअसल सम्पूर्ण सुरक्षा—व्यवस्था का एक हिस्सा मात्र है, और सुरक्षा व्यवस्था का एक सशक्त हिस्सा जरूर है।”
“क्या ग्राडवे उपग्रह के बारे में जानता था?”
“वह सिर्फ उपग्रह के बारे में ही जानता था।”
“क्या मतलब?”
“ग्राडवे, कंट्रोल रूम में काम करने वाले पांच व्यक्तियों में से एक था और ये पांच व्यक्ति केवल यह जानते हैं कि कंट्रोल रूम से सम्बन्धित उपग्रह कोहिनूर की हिफाजत कर रहा है, उपग्रह के अलावा कोहिनूर की सुरक्षा के अन्य इन्तजाम भी हैं, यह उनमें से कोई नहीं जानता।”
“यानी ग्राडवे अपने हत्यारे को सिर्फ उपग्रह के बारे में ही बता सकता था?”
“हां।”
जवाब सुनने के बाद जेम्स बाण्ड खामोश हो गया और फिर उसी अवस्था में काफी देर तक जाने क्या सोचता रहा-मिस्टर एम ने पूछा—“क्या सोच रहे हो डबल ओ सेविन!”
“क...कुछ नहीं!” बाण्ड चौंका—“सॉरी सर!”
एम ने कहा— “मैं उम्मीद करता हूं कि तुम शीघ्र ही इस गुत्थी को सुलझा लोगे।”
¶¶
 
दूर कहीं किसी चर्च का घण्टा दो बार बजा।
लन्दन शहर की नीवरता दूर तक भंग होती चली गई।
सारा शहर इस वक्त नींद के आगोश में डूबा पड़ा था, सर्दी काफी थी और इसी वजह से ‘जॉनसन स्ट्रीट’ के चौकीदार ने अपने काले रंग के गर्म ओवरकोट के कॉलर खड़े कर रखे थे, एक हाथ में लाठी तथा दूसरे में शक्तिशाली टॉर्च लिए वह दूर-दूर तक सुनसान पड़ी, चिकनी और चौड़ी जॉनसन स्ट्रीट पर इस तरह टहल रहा था जैसे वह इस सड़क का बादशाह हो।
और इसमें शक भी नहीं कि रात के समय वह इस इलाके का बादशाह ही दिखाई देता था, क्योंकि रात के इस समय इस सड़क को इस्तेमाल करने वाला दूर-दूर तक भी कोई नहीं होता था। रह-रहकर उसकी मजबूत लाठी का निचला सिरा सड़क से टकराकर जॉनसन स्ट्रीट पर सोए हुए बेचारे सन्नाटे को डिस्टर्ब कर दिया करता था। सड़के के बीचोबीच रुककर उसने एक सिगरेट सुलगाई और अभी माचिस जेब में डाल ही रहा था कि ठीक सामने बहुत दूर उसे सड़क पर दो प्रकाश-बिन्दु नजर आए, वे बिन्दु तेजी से उसके नजदीक आते जा रहे थे, चौकीदार ने पूरी लापरवाही के साथ एक कश लिया और धुआं हवा में उछाला।
अपने अनुभव के आधार पर वह कह सकता था कि आने वाला वाहन कार या टैक्सी है।
उसका अनुमान ठीक ही था, देखते-ही-देखते एक नीली ‘डेल्टा’ बहुत करीब आ गई, उसको रास्ता देने के लिए चौकीदार एक तरफ हट गया, मगर ‘डेल्टा’ उसके समीप से गुजरकर जाने के स्थान पर उससे करीब पांच मीटर की दूरी पर ही रुक गई।
“भाई चौकीदार!” कार का अगला दरवाजा खुलने के साथ ही एक व्यक्ति उसे पुकारता हुआ बाहर निकला, चौकीदार ने देखा कि उसके शरीर पर एक ओवरकोट था, सिर पर फैल्ट हैट-कोट के कॉलर खड़े थे और हैट का अग्रिम कोना ललाट पर कुछ ज्यादा ही झुका हुआ था, चौकीदार अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि वह व्यक्ति करीब आकर बोला—“तुम्हें यहां कहीं से कोई पर्स तो नहीं मिला?”
“नहीं तो शाब!”
“देख लो, अगर मिला हो तो बता दो, मैं तुम्हें सौ पाउण्ड इनाम दूंगा, उस पर्स में रकम के नाम पर कुछ भी नहीं है, सिर्फ कुछ जरूरी कागज हैं, जो मेरे लिए लाखों के हैं, मगर किसी और के लिए कौड़ी के भी नहीं।”
“आप कैसी बात कर रहे हैं शाब, यदि मिला होता तो हम बता देते।”
“उफ्फ, कहां गया? मैं तो बर्बाद हो जाऊंगा।” परेशान-सा वह चारों तरफ देखने लगा।
चौकीदार ने राय दी—“किसी न्यूज पेपर में निकलवा दीजिए शाब, हो सकता है जिसे मिला हो वह पढ़ ले!”
“अरे—उधर, हां—वहां हो सकता है।” कहने के साथ ही व्यक्ति घूमा और सड़क के उस पार बने टॉयलेट की तरफ लपका—फिर चार या पांच कदम आगे बढ़ाने के बाद स्वयं ही रुक गया, घूमा और बोला—“क्या एक मिनट के लिए तुम मुझे अपनी टॉर्च दे सकोगे चौकीदार?”
“क्यों शाब?”
“वहां, उस टॉयलेट में मैंने य़ूरीनल किया था—शायद वहां गिर गया हो—टॉयलेट में अंधेरा है।”
“हम खुद देख देते हैं शाब!” कहने के साथ ही चौकीदार उसके समीप पहुंच गया, सड़क पार करके वे टॉयलेट में पहुंचे—चौकीदार ने टार्च ऑन की और झुककर टायलेट के फर्श को देखने लगा और यही वह क्षण था जब आगन्तुक ने बिजली की-सी फुर्ती के साथ एक कराटे चौकीदार की कनपटी पर रसीद कर दी।
दूर तक एक चीख की आवाज गूंजती चली गई।
चौकीदार मुंह के बल टाइलदार फर्श पर गिरा और वहीं पड़ा रह गया, इस नपे-तुले एक ही वार में वह बेहोश हो चुका था, जली हुई सिगरेट गीले फर्श पर गिरने के बाद बुझ चुकी थी, टॉर्च उठाई और उस वक्त वह ध्यान से चौकीदार का निरीक्षण कर रहा था जब कार की तरफ से विकास की आवाज आई—“क्या रहा अंकल?”
“ये बेहोश हो चुका है।” आगन्तुक के मुंह से निकली आवाज अशरफ की थी।
उसके बाद, कार स्टार्ट होकर थोड़ी आगे बढ़ी—फुटपाथ पर चढ़ी और एक दुकान के सामने खड़ी हो गई, एक झटके से अगला दरवाजा खुला और लम्बा लड़का बाहर निकला।
उसके जिस्म पर भी लम्बा ओवरकोट था और अशरफ की तरह ही उसने भी अपने चेहरे का अधिकांश भाग छुपा रखा था, वह घूमकर दुकान के चबूतरे पर चढ़ गया—जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और शटर के दाईं तरफ लगे ताले को खोलने की कोशिश करने लगा।
वह दुकान बन्दूक आदि शस्त्रों की थी।
उनके काम करने का तरीका ही बता रहा था कि जो कुछ इस वक्त हो रहा है, सब ‘वैल-प्लान’ है—सारे मिशन का एक-एक क्षण पूरी तरह सोचा-समझा था—जिस वक्त दाईं तरफ का ताला खोलने के बाद विकास गुच्छा संभाले बाईं तरफ लपक रहा था, उस वक्त टॉयलेट से चौकीदार के कपड़े पहने अशरफ बाहर निकला, उसके एक हाथ में टॉर्च थी—दूसरे में लाठी।
विकास दूसरे ताले को खोलने में जुटा हुआ था।
सड़क पार करके अशरफ कार के नजदीक आता हुआ बोला—“क्या रहा?”
“एक खुल चुका है, दूसरे को खोलने की कोशिश कर रहा हूं।”
“जल्दी करो।”
“बस खुल गया!” विकास कोशिश करता हुआ बोला, मगर दरअसल अभी वह ताला खुला नहीं था, लाठी बजाता हुआ अशरफ घूमा और सड़क की तरफ बढ़ा, अभी वह सड़क के किनारे पर ही पहुंचा था कि दाईं तरफ दूर उसे प्रकाश–बिन्दु नजर आए, वह लगभाग चीख पड़ा—“कोई वाहन आ रहा है, क्विक!”
इधर विकास ने इस ताले को भी खोल लिया।
“अरे!” अशरफ हड़बड़ाता हुआ कार की तरफ लपका और बोला—“वह तो कोई जीप लगती है—जल्दी करो विकास, जीप में पुलिस भी हो सकती है—शटर उठाकर दुकान के अन्दर घुस जाओ।”
विकास ने बहुत फुर्ती से शटर उठाया और दुकान के अन्दर घुस गया।
जीप को नजदीक आती देखकर अशरफ सड़क की तरफ लपका और अपने पीछे से शटर गिरने की आवाज को सुनकर थोड़ा संतुष्ट हुआ, अपनी उखड़ी हुई सांसों को वह काबू में करने की चेष्टा कर रहा था।
हड़बड़ाहट को छुपाने के लिए उसने चौकीदार के कोट की जेब से सिगरेट-माचिस निकाली और सिगरेट सुलगाने लगा, जिस वक्त वह सिगरेट सुलगा रहा था, ठीक उसी वक्त बहुत तेजी से दौड़ रही जीप ‘सांय’ की आवाज के साथ उसके सामने से गुजर गई।
पल भर में ही जीप काफी दूर निकल गई थी।
दूर होती हुई पिछली लाल लाइटों को देखकर अभी उसने शान्ति की पहली सांस ही ली थी कि—जॉनसन स्ट्रीट का सारा इलाका टायरों की चरमराहट की आवाज से गूंज उठा।
जीप चालक ने अचानक ही बहुत जोर से ब्रेक मारे थे।
जीप के रुकते ही अशरफ के जिस्म पर मौजूद सभी मसामों ने एकदम पसीना उगल दिया, अपना सारा शरीर उसे एकदम ‘सुन्न’ सा पड़ता महसूस हुआ और उस वक्त तो मानो उसके हाथ-पैरों में जान ही न रही, जब जीप उल्टी चलती हुई बड़ी तेजी से उसकी तरफ आई।
अपना दिमाग उसे अन्तरिक्ष में चक्कर काटता हुआ-सा महसूस हुआ।
अशरफ हक्का-बक्का-सा ही खड़ा था कि इस बार टायरों की हल्की-सी चरमराहट ने उसे चौंका दिया। जीप उसके करीब ही रुक गई थी, अन्दर से एक कड़क आवाज ने पूछा—“ऐ कौन हो तुम?”
“च...चौकीदार शाब, हम यहां का चौकीदार है!” उसने सिगरेट एक तरफ फेंकते हुए कहा।
“इधर आओ!” जीप में बैठे इंस्पेक्टर ने अपने हाथ में दबे छोटे गोल रूल से उसे संकेत किया, इंस्पेक्टर जीप के इधर वाले दरवाजे पर ही बैठा था—अशरफ लपकता हुआ-सा समीप पहुंचा और बोला—“जी शाब!”
“तुम रोज यहीं की चौकीदारी करते हो?”
“जी शाब!”
इंस्पेक्टर ने रूल से डेल्टा की ओर संकेत करते हुए पूछा—“क्या वह कार हर रोज रात को यहीं खड़ी रहती है?”
“न...नो शाब!” अशरफ ने जवाब दे तो दिया, परन्तु इंस्पेक्टर द्वारा कार के बारे में पूछते ही उसके तिरपन कांप गए थे, क्योंकि रात नौ बजे यह कार एक होटल के पार्किंग से चुराई गई थी।
“तो आज क्यों खड़ी है?”
“प...पता नहीं शाब!”
इंस्पेक्टर ने जीप के अन्दर बैठे अपने किसी सहयोगी से कहा—“जरा देखना कार्पेट, कहीं ये वही कार तो नहीं है—वायरलेस द्वारा बताया गया नम्बर तो तुमने नोट कर ही लिया था न?”
“यस सर!” कहता हुआ एक सब-इंस्पेक्टर जीप के दूसरी तरफ वाले दरवाजे से सड़क पर कूद पड़ा और जीप का एक चक्कर काटता हुआ कार की तरफ बढ़ा, अशरफ ने उसके हाथ में एक शक्तिशाली टॉर्च देखी थी और यह लिखना गलत नहीं होगा कि उस वक्त अशरफ की टांगें कांपने लगी थीं।
खड़ा रहना भारी हो गया उसके लिए।
हलक बुरी तरह सूखने लगा, अब उसे बचाव की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी।
अशरफ तब चौंका तब जीप की तरफ से सब-इंस्पेक्टर की आवाज आई—“अरे, ये तो वही गाड़ी है सर!”
“वैरी गुड!” कहता हुआ इंस्पेक्टर भी जीप से बाहर आ गया। अशरफ की समझ में नहीं आ रहा था वो कि क्या करे, तभी इंस्पेक्टर ने रूल से उसका कन्धा थपथपाते हुए पूछा—“ये कार यहां किसने खड़ी की है?”
“म...मुझे नहीं मालूम शाब, मैंने इसे यहां किसी को खड़ी करते नहीं देखा।”
“तो गाड़ी यहां कहां से आ गई?” इस बार इंस्पेक्टर कुछ ऐसे खतरनाक अन्दाज में गुर्राया कि अशरफ के तिरपन कांप गए, गिड़गिड़ाया—“म...मुझे नहीं मालूम शाब!”
“कब से यहां खड़ी है ये?”
“म...मैं यहां अपनी ड्यूटी पर दस बजे आया था शाब, गाड़ी तो तभी से यहां खड़ी है—मैंने सोचा कि अपने इलाके में रहने वाले किसी के घर गाड़ी में कोई गेस्ट आया होगा।”
“ये झूठ बोल रहा है सर!” कहने के साथ ही लपकता हुआ सब-इंस्पेक्टर उनके समीप आ गया और अशरफ को घूरता हुआ गुर्राया—“गाड़ी का बोनट अभी गर्म है, इसका मतलब ये है कि गाड़ी को यहां पहुंचे ज्यादा-से-ज्यादा पन्द्रह मिनट हुए हैं।”
अब अशरफ के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।
“तुमने झूठ क्यों बोला?” इंस्पेक्टर गुर्राया।
अभी अशरफ बेचारा कोई जवाब दे भी नहीं पाया था कि चौंकते हुए सब-इंस्पेक्टर ने कहा—“अरे, इसकी टॉर्च का तो शीशा टूटा हुआ है सर, और ये कोट पर कीचड़ कैसा—तुम कहीं गिरे हो?”
“न...नहीं तो शाब!”
अचानक इंस्पेक्टर ने आदेश दिया—“इसे गिरफ्तार कर लो कार्पेट!”
और अब, बात इतनी बढ़ चुकी थी कि अशरफ के पास बचने का कोई रास्ता नहीं रह गया—इसलिए एक कदम पीछे हटते हुए उसने टॉर्च फेंकी और बिजली की-सी गति से लाठी का भरपूर प्रहार सब-इंस्पेक्टर के सिर पर किया।
एक जबरदस्त चीख के साथ सब-इंस्पेक्टर सड़क पर जा गिरा।
भौंचक्के-से इंस्पेक्टर ने पहले रूल घुमाया, परन्तु रूल का वार खाली गया, जबकि अशरफ ने लाठी का प्रहार उसकी कमर में किया, एक चीख के साथ इंस्पेक्टर भी सड़क पर जा गिरा।
तभी शटर उठाने की आवाज गूंजी।
अशरफ के दूसरे प्रहार से पहले ही सड़क पर पड़े इंस्पेक्टर ने अपने होल्स्टर से रिवॉल्वर निकाल लिया और अभी उसने हाथ सीधा किया ही था कि—‘धांय!’
हथियारों की दुकान की तरफ से चली एक गोली इंस्पेक्टर के माथे में आ धंसी, इधर इंस्पेक्टर मर्मान्तक चीख के साथ सड़क पर लुढ़का, उधर जीप कमान से निकले हुए तीर की तरह सड़क पर भागी।
तभी हथियारों की दुकान के चबूतरे से जिन्न की तरह कूदकर विकास भागता-सा सड़क पर आया—उसके हाथ में एक स्टेनगन थी।
 
आंधी–तुफान की तरह भागती हुई जीप तब तक काफी दूर निकल चुकी थी।
सड़क के बीचोबीच खड़े होकर विकास ने स्टेनगन का मुंह खोल दिया।
जॉनसन स्ट्रीट की सारी नीरवता रेट-रेट की भयानक आवाज से कांप उठी।
जीप सड़क पर लहराई, जाहिर था कि उसके टायर शहीद हो चुके हैं—सड़क पर लड़खड़ा रही जीप से विकास ने एक साये को कूदते देखा, इच्छा हुई कि एक बार फिर स्टेनगन का मुंह खोल दे परन्तु जाने क्या सोचकर उसने ऐसा नहीं किया।
जीप से कूदने वाला साया चौकड़ी भरता हुआ सड़क क्रॉस करके अंधेरे में गुम हो चुका था, तभी विकास ने अपने बहुत समीप टायरों की चरमराहट सुनी।
“कार में बैठो, क्विक!” आवाज अशरफ की थी।
विकास को जैसे होश आया, पिछला दरवाजा खोलकर उसने कार में जम्प लगा दी और अभी वह कार का दरवाजा बन्द भी नहीं कर पाया था कि एक झटका लगा और कार बन्दूक से छूटी गोली की तरह भागती चली गई।
फायरिंग की आवाज ने जॉनसन स्ट्रीट के इलाके के लोगों को झंझोड़कर जगा दिया था—यह सारा कुछ यानी अशरफ की लाठी चलने से कार के वहां से गुम हो जाने तक का काम मुश्किल से एक मिनट में हो गया था, इंस्पेक्टर की लाश के पास जख्मी सब-इंस्पेक्टर पड़ा तड़प रहा था।
¶¶
 
“आपसे ब्रिटेन के प्रसिद्ध जासूस मिस्टर जेम्स बाण्ड मिलना चाहते हैं मिस ब्यूटी!” जब काउण्टर क्लर्क ने आशा से यह वाक्य कहा तो आशा के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई, न चाहते हुए भी दिल बेकाबू होकर धड़कने लगा, मस्तक पसीन से भरभरा उठा, मुंह से निकला—“क...क्यों?”
“ये मैं नहीं बता सकती।”
आशा ने स्वयं को नियंत्रित करके पूछा—“कहां हैं मिस्टर बाण्ड?”
“वहां उधर!” काउण्टर क्लर्क ने हॉल के एक कोने वाली सीट की तरफ इशारा किया—“वे पिछले दो घण्टे से आपके इन्तजार में यहीं बैठे हैं।”
आशा ने घूमकर उधर देखा तो दिल मानो ‘धक्क’ से उछलकर गले में आ अटका।
कुर्सी पर बैठा जेम्स बाण्ड इसी तरफ देख रहा था—सफेद कमीज, काले सूट और उसी से मैच करती हुई मोटी ‘नॉट’ वाली टाई में इस वक्त वह बेहद खूबसूरत नजर आ रहा था—उसके सामने रखी मेज पर व्हिस्की से भरा एक गिलास रखा था, बाएं हाथ के बीच की उंगलियों में सुलग रही थी एक सिगरेट।
सम्पूर्ण साहस समेटकर आशा उसकी तरफ बढ़ गई।
नजदीक पहुंचते ही कुर्सी से उठकर खड़े होते हुए बाण्ड ने पूछा—“आर यू ब्यूटी?”
“य...यस!” नियंत्रित स्वर में कहती हुई आशा ने हाथ बढ़ा दिया।
“मेरा नाम तो आपने सुना ही होगा, जेम्स बाण्ड!” उसने गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए कहा—“बैठिए!”

आशा मेज के पार, उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई—वह महसूस कर रही थी, बाण्ड अपनी ब्लेड की धार जैसी पैनी आंखों से उसे घूर रहा है, वह बाण्ड की योग्यताओं से परिचित थी—जिसने बसन्त स्वामी के रूप में विजय को देखते ही पहचान लिया था, उसके द्वारा स्वयं को पहचान लिए जाने पर आशा को कोई आश्चर्य नहीं होने वाला था—हां, यह सोचकर दिल जरूर डर रहा था कि पहचान लेने के बाद वह उसके साथ कैसा सलूक करेगा? तभी बाण्ड ने बड़े विनम्र स्वर में पूछा— “क्या लेंगी मिस ब्यूटी?”
“क...कुछ नहीं!” आशा ने सख्त स्वर में कहने की कोशिश की—“आप मुझसे क्यों मिलन चाहते थे?”
सीधे उसकी आंखों में झांकते हुए बाण्ड ने कहा—“यह जानने के लिए कि कोहिनूर को देखते समय आप नर्वस क्यों थीं?”
“म...मैं सम्बन्धित अधिकारियों को जवाब दे चुकी हूं...।”
“मैं उस जवाब से सन्तुष्ट नहीं हूं।”
आशा खुद को बहुत संभाल रही थी—“इसमें मैं क्या कर सकती हूं?”
“क्या आपने हजार पाउण्ड खोने की रिपोर्ट पुलिस में लिखाई थी?”
“न...नहीं!”
“क्यों?”
“म...मैंने जरूरत नहीं समझी, सिर्फ एक हजार पाउण्ड की ही तो बात थी।”
और बाण्ड इस तरह मुस्कराया जैसे किसी निष्कर्ष पर पहुंच गया हो, बोला—“जबकि आप सिर्फ उस एक हजार पाउण्ड के लिए इतनी नर्वस हो गई थीं कि आपका मन कोहिनूर देखने में नहीं लगा, तनावग्रस्त-सी हो गईं, आप—रजिस्टर में कांपती उंगलियों से साइन किए, कूपन को मुट्ठी में इतनी सख्ती से भींचे रखा कि...।”
“अ...आखिर आप लोग मुझसे चाहते क्या हैं?” आशा चीख-सी पड़ी—“क्यों परेशान कर रहे हैं मुझे?”
“मतलब?”
“उस दिन म्यूजियम से निकलने के बाद से अगले दिन की सुबह तक मुझे उस जासूस ने आतंकित रखा, यह सोचकर मैं डरी हुई सारी रात अपने कमरे में छुपी रही कि पता नहीं वह किस नीयत से मेरे पीछे लगा है—थाने में बुलाकर मुझसे तरह-तरह के सवाल किए गए, मैंने सभी का जवाब दिया और अब आप—आप भी उन्हीं सवालों को लेकर मुझे मानसिक यातनाएं देने चले आए हैं—क्या अपने देश में आप विदेशियों का ऐसा ही स्वागत करते हैं?”
“लन्दन में इस वक्त भी आपके अलावा बहुत-से विदेशी आए हुए हैं, शायद उनमें से किसी को ऐसी शिकायत नहीं है।”
“फ...फिर—आखिर मुझे ही क्यों परेशान किया जा रहा है?”
“यदि आप अपनी नर्वसनेस की वजह सच-सच बता दें तो शायद—”
आशा गुर्रा उठी—“आप आरोप लगा रहे हैं कि मैं झूठ बोल रही हूं।”
“बेशक!”
“ये...ये तो सरासर ज्यादती है, आपके दिमाग को मेरा सच, झूठ नहीं लगे तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं—लगता है कि आप इस तरह नहीं मानेंगे, मुझे यहां अपने मुल्क के राजदूत से शिकायत करनी होगी।”
“ऐसा करके आप गलती ही करेगी।”
“तो क्या आप यह चाहते हैं कि मैं अपना टूर बीच ही में छोड़कर आपके देश से चली जाऊं?”
“ऐसा भला हम कैसे कह सकते हैं?” बाण्ड के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभर आई—“बल्कि इसके ठीक विपरीत मैं तो आपसे यह कहूंगा कि पुलिस को सूचित किए बिना आप लन्दन से बाहर न जाएं।”
“ए...ऐसा क्यों?” आशा चिहुंक उठी—“क्या मैं यहां नजरबन्द हूं?”
“फिलहाल यही समझिए!” कहकर बाण्ड ने आशा के अन्तर्मन तक को हिला डाला, जबकि प्रत्यक्ष में वह अत्यधिक गुस्से की अवस्था में चीख पड़ी—“आखिर क्यों, क्या जुर्म किया है मैंने?”
“जुर्म पता लगने पर आपको नजरबन्द नहीं, गिरफ्तार किया जाएगा।”
“अ...आप एक विदेशी पर ज्यादती कर रहे हैं।”
“बात को समझने को कोशिश कीजिए मिस ब्यूटी।” बाण्ड उसे समझाने वाले भाव से बोला— “दरअसल कुछ ब्रिटिश जासूस ऐसा महसूस कर रहे हैं कि स्वयं को दुःसाहसी समझने वाले कुछ मूर्ख लोग कोहिनूर को प्राप्त करने का ख्वाब देख रहे हैं, ऐसा शक करने वाले ब्रिटिश जासूसों में से मैं भी एक हूं—हम लोग महसूस कर रहे हैं कि उनकी गतिविधियां चालू हैं।”
“क...कोहिनूर को चुराने की बात सोच रहे हैं?” आशा ने हैरत प्रकट की।
“जी हां!”
“म...मगर—इस बात से मेरा क्या मतलब, म...मेरा भला ऐसे सिरफिरे लोगों से क्या सम्बन्ध हो सकता है?”
“दरअसल उनकी गतिविधियों के बीच ही आप भी कोहिनूर देखने पहुंच गई—दुर्भाग्य से आप ‘एब्नॉर्मल’ भी थीं और उसकी जो वजह आप बता रही हैं, उससे हम सन्तुष्ट नहीं हैं, इसलिए आप संदेह के दायरे में हैं—यानी स्पष्ट शब्दों में हम आप पर उनका सहयोगी होने का शक कर रहे हैं।”
बाण्ड के मुंह से इतने स्पष्ट शब्द सुनकर आशा भीतर-ही-भीतर कांपकर रह गई, प्रत्यक्ष में बोली— “क...क...कमाल कर रहे हैं आप लोग।”
“मैं यकीन दिलाता हूं कि यदि आप बेगुनाह हैं तो आपको परेशान नहीं किया जाएगा।? कहते हुए बाण्ड ने सिगरेट ऐशट्रे में मसली, मेज से उठाकर गिलास एक ही घूंट में खाली किया और उसे वापस मेज पर रखता हुआ उठकर खड़ा हो गया, बोला— “फिलहाल मैं चलता हूं, यदि जरूरत पड़ी तो फिर कष्ट दूंगा।”
खड़ी होती हुई आशा ने उससे हाथ मिलाया।
उसके कोमल हाथ को धीमे से दबाते हुए जेम्स बॉण्ड ने कहा—“आपका नाम ब्यूटी है और निःसंदेह आप खूबसूरत भी हैं, परन्तु मेरे ख्याल से यदि आपके तांबे के रंग वाले बालों और इन नीली आंखों का रंग काला होता तो आप इससे कहीं ज्यादा खूबसूरत होतीं, जितनी अब हैं।”
कहने के बाद वह एक क्षण के लिए भी वहां रुका नहीं, बल्कि घूमाना और तेजी से लम्बी कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गया, जबकि हक्की-बक्की-सी आशा, उसी स्थान पर किसी स्टैचू के समान खड़ी रह गई थी—बाण्ड के उस अंतिम वाक्य ने उसके चेहरे को फक्क कर दिया था, दिल किसी हथौड़े की तरह पसलियों पर चोट कर रहा था—
आशा का सारा चेहरा पसीने से भरभरा उठा और यह सोचने के लिए वह विवश थी कि बाण्ड ने उसे पहचान लिया है?
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