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- Dec 5, 2013
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आखिरी शिकार
टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी।
राज ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । "हैलो ।" - वह माउथपीस में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन उसे दूसरी ओर से एक सशंक ब्रिटिश स्वर सुनाई दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका स्वागत करता हूं।" - दूसरी ओर से आवाज आई।
राज के कान खड़े हो गये । कनर्ल मुखर्जी ने भारत में उसे जिस संभावित वार्तालाप के विषय में बताया था, वह उस वार्तालाप का प्रथम वाक्य था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन स्वर से बोला - "लेकिन लन्दन में मेरा स्वागत करने के अतिरिक्त
और क्या कर सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, सर ।" –उत्तर मिला - "जैसे मैं आपको लन्दन का वह चेहरा दिखा सकता हूं जो बहुत कम लोगों ने बहुत कम बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी ढंग से चल रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने उसे संकेत दिया था ।
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?" - राज ने पूछा । उसका वह प्रश्न भी कोडवर्ड की तरह इस्तेमाल होने वाले उस वार्तालाप का एक अंश
था
।
"कुछ भी नहीं ।" - उत्तर मिला - "आप केवल आज की रात कुछ समय के लिये लन्दन में अपने आपको मेरे हवाले कर दीजिये । अगर आप जो सोच रहे हैं, वही न हुआ तो मैं समझंगा कि मुझ में एक अच्छा अभ्यागत बनने का गुण नहीं है और मैं आपका वक्त बरबाद करने के लिये आपसे माफी मांग लूंगा।"
"ठीक है | आ जाओ।"
"सॉरी, सर । आप आ जाइये ।"
"कहां?"
"आप अपने होटल से बाहर निकलिये और दायीं ओर फुटपाथ पर रवाना हो जाइये । सौ कदम आगे फुटपाथ पर एक टेलीफोन बूथ है । आप वहां मेरी प्रतीक्षा कीजिये, मैं कार लेकर हाजिर हो जाऊंगा।"
“मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे?"
"मेरी काले रंग की फोर्ड गाड़ी से और मेरे हैट के लाल रंग के रिबन से जिसमें एक पंख खुंसा होगा
"ओके । मैं आता हूं।"
“थैक्यू, सर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
राज ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी।
राज ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । "हैलो ।" - वह माउथपीस में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन उसे दूसरी ओर से एक सशंक ब्रिटिश स्वर सुनाई दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका स्वागत करता हूं।" - दूसरी ओर से आवाज आई।
राज के कान खड़े हो गये । कनर्ल मुखर्जी ने भारत में उसे जिस संभावित वार्तालाप के विषय में बताया था, वह उस वार्तालाप का प्रथम वाक्य था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन स्वर से बोला - "लेकिन लन्दन में मेरा स्वागत करने के अतिरिक्त
और क्या कर सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, सर ।" –उत्तर मिला - "जैसे मैं आपको लन्दन का वह चेहरा दिखा सकता हूं जो बहुत कम लोगों ने बहुत कम बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी ढंग से चल रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने उसे संकेत दिया था ।
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?" - राज ने पूछा । उसका वह प्रश्न भी कोडवर्ड की तरह इस्तेमाल होने वाले उस वार्तालाप का एक अंश
था
।
"कुछ भी नहीं ।" - उत्तर मिला - "आप केवल आज की रात कुछ समय के लिये लन्दन में अपने आपको मेरे हवाले कर दीजिये । अगर आप जो सोच रहे हैं, वही न हुआ तो मैं समझंगा कि मुझ में एक अच्छा अभ्यागत बनने का गुण नहीं है और मैं आपका वक्त बरबाद करने के लिये आपसे माफी मांग लूंगा।"
"ठीक है | आ जाओ।"
"सॉरी, सर । आप आ जाइये ।"
"कहां?"
"आप अपने होटल से बाहर निकलिये और दायीं ओर फुटपाथ पर रवाना हो जाइये । सौ कदम आगे फुटपाथ पर एक टेलीफोन बूथ है । आप वहां मेरी प्रतीक्षा कीजिये, मैं कार लेकर हाजिर हो जाऊंगा।"
“मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे?"
"मेरी काले रंग की फोर्ड गाड़ी से और मेरे हैट के लाल रंग के रिबन से जिसमें एक पंख खुंसा होगा
"ओके । मैं आता हूं।"
“थैक्यू, सर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
राज ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।