desiaks
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]बहन की बुरिया[/font]
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[/font]
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,
" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "
एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।
लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।
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बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं
भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,
जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,
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और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।
और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,
" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "
और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।
बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।
"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"
और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।
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गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।
वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,
रस की एक बूँद छलक आयी।
गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।
और और
और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,
अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।
गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा
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और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,
साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,
ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह
रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।
बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,
उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।
और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।
कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।
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उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।
उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,
" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो "
वो हंस के बोली
और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।
और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।
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हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक
कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।
गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,
फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "
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गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कुछ देर में बोली ,[/font]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,
" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "
एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।
लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।
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बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं
भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,
जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,
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और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।
और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,
" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "
और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।
बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।
"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"
और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।
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गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।
वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,
रस की एक बूँद छलक आयी।
गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।
और और
और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,
अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।
गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा
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और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,
साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,
ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह
रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।
बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,
उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।
और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।
कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।
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उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।
उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,
" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो "
वो हंस के बोली
और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।
और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।
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हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक
कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।
गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,
फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "
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गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कुछ देर में बोली ,[/font]