XXX Kahani जोरू का गुलाम या जे के जी - Page 18 - SexBaba
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XXX Kahani जोरू का गुलाम या जे के जी

[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]बहन की बुरिया[/font]




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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,


" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "


एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।

लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।

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बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं

भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,



जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,

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और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।


और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,


" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "


और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।



बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।


"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"

और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।

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गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।


वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,


रस की एक बूँद छलक आयी।



गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।




और और

और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,

अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।




गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा


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और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,

साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,

ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह

रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।


बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,

उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।


और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।

कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।


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उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।


उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,

" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो "

वो हंस के बोली

और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।


और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।

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हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक

कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।




गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,


फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "
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गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।

लेकिन कुछ देर में बोली ,[/font]
 
मस्त गन्ना












" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "


और अगले पल गीता के होंठ उनके तन्नाए ,खुले सुपाड़े पर , चाटते चूमते।




कुछ देर वो जीभ से सुपाड़े को लिक करती रही ,


फिर जीभ की नोक पेशाब वाले छेद में डालकर वो शरारती सुरसुरी करने लगी।




वो कमर उचका रहे थे और जवाब में एक झटके में गीता ने उनका ,

लीची ऐसा मोटा सुपाड़ा अपने रसीले होंठों के बीच गप्प कर लिया और लगी चूसने ,चुभलाने।




एक पल के लिए उन्हें लगा की गुड्डी , उनकी ममेरी बहन





अपने कोमल कोमल होंठों के बीच ,उनका रसीला सुपाड़ा ,

सोच सोच कर उनकी मस्ती सौ गुना हो रही थी।















तभी ,


चररर चररर , आँगन से पीछे वाले दरवाजे के खुलने की आवाज आयी।





" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "



मंजू बाई थी ,




पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।
 
जोरू का गुलाम भाग ४६


मंजू बाई








" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "

मंजू बाई थी ,




पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।

मैं और गीता दोनों उसे देख के खड़े हो गए ,लेकिन गीता के हाथ में अभी भी मेरा खूँटा था ,खड़ा ,एकदम खुला। और मंजू बाई की आँखे वहीँ अटकी पड़ी थीं।

" झंडा तो खूब मस्त खड़ा किया है "

मंजू बाई बोली।

"आया न पसंद मेरे भैया का ,देख कितना लंबा है कितना मोटा और कड़ा भी कैसा ,एकदम लोहे का खम्बा है। "



गीता खिलखिलाती ,मेरे लन्ड को मुठियाती ,मंजू बाई को ललचाती बोली।



" नम्बरी बहनचोद लगता है , अपनी बहन से लन्ड ,... "



मंजू बाई ने बोलना शुरू किया था की गीता बीच में बोल पड़ी।

" लगता नहीं है , है नम्बरी बहनचोद। लेकिन मेरा इत्ता प्यारा भैया है , मक्खन सा चिकना , फिर भाई बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा। लेकिन तेरी काहे को सुलग रही है माँ , मेरा भइया नम्बरी मादरचोद भी है। अभी देखना तेरे भोंसडे को ऐसा कूटेगा न ,की बचपन की भी चुदाई तू भूल जायेगी , जो मेरे मामा के साथ ,... लेकिन ये बता तू इतनी देर गायब कहाँ थी। "




तबतक आसमान में बदलियों ने चाँद को आजाद कर दिया और चाँद आसमान से टुकुर टुकुर देख रहा था , एकदम मेरी तरह ,

जैसे मैं मंजू बाई को देख रहा था।

बल्कि उसके स्तन ,खूब बड़े बड़े कड़े , अभी आँचल में थोड़ा छिपे ढके थे ,लेकिन न उनकी ऊंचाई छिप पा रही थी , न उनका कड़ापन।

शाम को इन्ही जोबनों ने कितना ललचाया तड़पाया था मुझे।




मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।

" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ। "

डबल जोड़ा ,मतलब चार पान ,और पलँग तोड़ पान एक ही काफी होता है झुमा देने के लिए।




सुना मैंने भी बहुत था इसके बारे में की ननदें सुहाग रात के दिन अपनी भाभी को ये पान खिला देती हैं और एक पान में ही इतनी मस्ती छाती है की वो खुद टाँगे फैला देती है।

और मरद के ऊपर भी ऐसा असर होता है की , एक पान में ही रात भर सांड बन जाता है वो ,

लेकिन पान मैं खाता नहीं था , शादी में

कोहबर में भी मैंने पान खाने से साफ़ मना कर दिया था। और अभी भी , आज तक कभी भी नहीं ...

लेकिन न मुझे ज्यादा बोलने का मौक़ा मिला न सोचने का ,

गीता ने मुझे छोड़ दिया और मंजू बाई ने दबोच लिया जैसे कोई अजगर ,खरगोश को दबोच ले , बिना किसी कोशिश के , और सीधे मंजू बाई के पान के रंग से रंगे ,रचे बसे होंठ सीधे मेरे होंठों पर।




बिना किसी संकोच के वो अपने होंठ मेरे होंठों पे रगड़ रही थी और साथ में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे खुले नंगे सीने पर।

इस रगड़ा रगड़ी में उसका आँचल खुल कर नीचे ढलक गया और वो वही ब्लाउज पहने थी जो शाम को , एकदम देह से चिपका , पारभासी ,खूब लो कट।




गोलाइयाँ गहराइयाँ सब कुछ चटक चांदनी में साफ दिख रही थीं।



जानबूझ कर अब वो अपनी छाती मेरे खुले सीने से जोर जोर से रगड़ रही थी।

मंजू बाई को मालूम था उसके जोबन का जादू , और मेरे ऊपर उस जादू का असर।

लेकिन उस रगड़घिस में दो चुटपुटिया बटन चट चट कर खुल गयी और उसकी गोलाइयों का ऊपरी भाग पूरी तरह अनावृत्त हो गया।




मैं उस जादूगरनी की जादू भरी गोलाइयों में खो गया था और मौके का फायदा उठा के उसने मेरे होंठो को नहीं नहीं चूमा नहीं ,सीधे कचकचा के काट लिया।

मेरा होंठ अब मंजू बाई के दोनों होंठों के बीच कैद कभी वो चूसती चुभलाती तो कभी कस के अपने दांत गड़ा देती।

दर्द का भी अपना एक मजा होता है।

और एक ही एक बार जब उसने कस के कचकचा के काटा , तो मेरा मुंह दर्द से खुल गया, बस मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर , और साथ में पान के अधखाये ,कुचले ,चूसे थूक में लिपटे लिथड़े टुकड़े मेरे मुंह में।

मैं बिना कुछ सोचे समझे , मंजू बाई की रसीली जीभ को पागल की तरह चूस रहा था , और मंजू अब खुल के अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी। उसका एक हाथ मेरे सर पे था ,कुछ देर बाद मंजू बाई ने मुझे थोड़ा पीछे की ओर झुका दिया , दूसरे हाथ से मेरे गाल दबा के मेरा मुंह पूरी तरह खोल दिया और


मेरे खुले मुंह के ठीक ऊपर , आधा इंच ऊपर उसके होंठ और उसने होंठ खोल दिए ,


मंजू बाई के मुंह में दो घंटे से रस रच रहे पान की ,


एक तार की तरह लाल ,धीरे धीरे उसके मुंह से मेरे खुले मुंह में।

मैं हिल डुल भी नहीं सकता था ,न हिलना डुलना चाहता था।

धीमे धीमे मंजू बाई के मुंह से पान का सारा रस , उसकेथूक में लिथड़ा ,लिपटा सीधे मेरे मुंह में

और अब मंजू बाई ने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका कर एकदम सील कर दिया।




मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर उन खाये हुए पान के टुकड़ों को ठेल रही थी ,धकेल रही थी अंदर। जब तक पलंग तोड़ पान का रस मेरे मुंह के अंदर , मेरे पेट के भीतर नहीं घुस गया , मंजू के होंठ मेरे होंठों को सील किये हुए थे।


वो तो गीता ने टोका ,

" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "




मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।

" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से।"
 
डबल मस्ती

माँ भी बहन भी





गीता ने टोका ,


" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "

मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।

" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से। "



मंजू के छोड़ने के बाद मैं गीता के बगल में ही बैठ गया था।

गीता बड़े ठसके से मेरी गोद में आके बैठ गयी और अपने दोनों कोमल कोमल हाथों से मेरा सर पकड़ के अपने रसीले होंठों से मेरे होंठ दबोच लिए और अब मेरे होंठो से रिसता हुआ पान का रस गीता के मुंह में।

हम दोनों के कपडे देह से अलग हो चुके थे।

गीता अपने किशोर भारी भारी नितम्ब मेरे खड़े लन्ड पे रगड़ रही थी ,कान में बोली ,


" भैया हम दोनों के कपडे तो कब के , और माँ अभी भी वैसे ही ,चल हम दोनों मिल के उसे भी अपनी तरह से ,... "




मंजू बाई को कुछ कुछ हमारी शरारतों का अन्द्दाज लग गया था ,वो बोली ,

" भाई बहन मिल के क्या बातें कर रही हो। "

तब तक उठ के हम दोनों मंजू बाई के आगे पीछे खड़े हो गए थे।

गीता ने उसकी साडी पेटीकोट से अलग किया और लगी खीचने ,मैंने सीधे ब्लाउज की बची खुची बटनों पर घात लगायी।
वो दोनों पहाड़ जिनका मैं दीवाना था , पल भर में ब्लाउज से बाहर।

लेकिन गीता ने उनका मजा लेने का मौका ही नहीं दिया।

वो जवान छोकरी ,ताकत से भरपूर , उसने पीछे से मंजू बाई के दोनों हाथ दबोच लिए थे , मुझसे बोली ,

" भैय्या, माँ का नाड़ा , ... "

और मेरा हाथ पेटीकोट के नाड़े पर पहुंचता उसके पहले ही मंजू बाई बोल पड़ी ,मुझे चिढाते ,

" क्यों खोला है कभी माँ का नाड़ा ? "




और जवाब मेरी ओर से गीता ने दिया ,

" अरे बहुत बार , समझती क्या है मेरे भैया को। पक्का मादरचोद है ,माँ के भोसड़े का दीवाना। नाड़ा खोलने की प्रैक्टिस ही वहीँ की है। "





और मैंने नाडा खोल दिया , सरसराता हुआ मंजू बाई का पेटीकोट उसके टांगों के नीचे ,गीता ने झटके से उसे दूर फेंक दिया और अब मंजू बाई भी हम दोनों की तरह हो गयी।


अंदर और बाहर के दरवाजे में ताला बंद ,

आंगन में मैं ,मंजू बाई और गीता , रात अभी शुरू हुयी थी।


चांदी की हजार घंटिया फिर घनघनाई , गीता की हंसी।

" अब हुए न हम तीनो बराबर , माँ , मैं तुम और भैया। "

" एकदम " हंसी में शामिल होकर उन्होंने भी सहमति जताई।

" एकदम नहीं ," मंजू बाई को मंजूर नहीं था ,वो बोली ,

" अरे तुमने अकेले मेरे मुन्ने का मजा लिया ,उसे चुसाया ,उसका चूसा ,... "

लेकिन उनकी बात गीता ने बीच में काट दी ,

" अरी माँ तेरी क्यों झांटे सुलग रही हैं , तू भी अपना भोंसड़ा चुसवा ले न ,तब तक मैं भैया का मोटा रसीला गन्ना चूसती हूँ। "

और ये कह के उस शोख ने मुझे ऐसे धक्का दिया की , बस मैं चटाई के ऊपर। गीता मुझसे बोली ,

" भैया, माँ के भोंसडे में बहुत रस है , ज़रा जम के चूसना।“


और मंजू बाई की मोटी तगड़ी मांसल चिकनी जाँघे सँड़सी की तरह मेरे सर के दोनों ओर एकदम कस के दबोचे ,सूत बराबर भी नहीं हिल सकता था मैं।

और फिर अपने दोनों हाथों से भी मंजू बाई ने मेरा सर कस के पकड़ रखा था , मंजू बाई के दोनों घुटने मेरे दोनों हाथों पर ,

और अपना भोंसड़ा मेरे मुंह पे रगड़ती वो बोली ,

" ले चूस कस कस के अपनी बहन के यार , "



गीता एकदम मुझसे सटी ,चिपकी ,मेरे पैरों के बगल में मेरे 'मूसलराज ' को छेड़ रही थी ,

अपने लाल परांदे से कभी उनके खड़े तन्नाए मूसल को सहला देती तो कभी रगड़ देती ,

फिर उसने अपनी लंबी काली मोटी चोटी उनके मोटे खड़े लन्ड के चारो ओर ,नागपाश ऐसे बांध कर एकदम कस के ,

झुक के खुले सुपाड़े को अपनी लंबी जीभ से लप्प से चाट लिया।



मंजू बाई की बात सुन के तपाक से वो बोली

" अरी माँ तुझे क्यों मिर्च लग रही है , अगर मेरा प्यारा प्यारा भैय्या अपनी बहन का यार है तो तू भी भी इसे बना ले न माँ का खसम , अरे ये पैदायशी मादरचोद है। अभी देखना कैसे माँ ,तेरा भोंसड़ा कूटेगा। "

और फिर गप्प से गीता ने सुपाड़ा अपने रसीले मुंह में लीची की तरह भर लिया और लगी चूसने ,कस कस के।




उन्हें गीता नहीं दिख रही थी ,सिर्फ मंजू बाई की कड़ी कड़ी बड़ी बड़ी चूंचियां नजर आ रही थीं।


मंजू बाई का चिकना पेट , गहरी नाभी और खूब घनी काल काली झांटे , ... और मंजू बाई अपना भोंसड़ा उसके मुंह पे ऐसे रगड़ रही थी ,जैसे उसका मुंह चोद रही हो।




लेकिन वो भी नम्बरी चूत चटोरे , उन्होंने अपने दोनों हाथो से उसकी बुर की बड़ी बड़ी फांकों को दबोच लिया और लगे पूरी ताकत से चूसने।
पुराने चूत चटोरे , कुछ ही देर में जीभ कभी ऊपर से नीचे तक तो कभी आगे से पीछे ,




और गीता की आवाज सुनाई पड़ी ,

" क्यों मजा आ रहा है न माँ के भोसड़े में मुंह मारने में , माँ के खसम , मादरचोद। "

गीता दिख नहीं रही थी लेकिन उसकी हरकतें उन्हें पागल कर दे रही थीं।

गीता के किशोर रसीले होंठ पूरी ताकत से सुपाड़ा चूस रहे थे , साथ में गीता की मांसल जीभ नीचे से लपड़ लपड़ सुपाड़े को चाट रही थी।




और गीता के दोनों शोख शरारती हाथ ,एक तो उसके बॉल्स के पीछे ही पड़ गया था। कभी उसे सहलाता ,कभी हलके हलके दबाता तो कभी गीता की दुष्ट उंगलिया , बॉल्स और पिछवाड़े के छेद के बीच रगड़ घिस करता। दूसरे हाथ की उंगलियां कभी खूंटे के बेस पर दबाती तो कभी उसके लंबे नाख़ून कड़े खूंटे को रगड़ देतीं ,स्क्रैच कर लेतीं।




मस्ती के मारे वो बार बार चूतड़ उचका रहे थे।

और ऊपर से गीता के कमेंट ,

" बड़ा मजा आता होगा न माँ के भोंसडे को न जो इत्ता मोटा लन्ड जम के कूटता होगा उसे। "


और इधर मंजू बाई भी ,

उसकी बुर की फांके दसहरी आम की फांको से कम रसीले नहीं थे।

वो खुद धक्के मार के उनके मुंह पे ,उन्हें चटवा रही थी।


क्या कोई मर्द धक्के मारेगा , उन्होंने एक कभी गे फिल्म देखी थी जिसमें एक लौंडा ,एक मर्द का मोटा लन्ड चूस रहा था ,और वो उसके मुंह में जोर जोर से धक्के मार मार के लन्ड पेल रहा था।




एकदम उसी तरह ,

मंजू बाई उस मर्द को भी मात कर रही थीं ,दोनों हाथ से उनके सर को पकड़ के जबरदस्त उनके होंठों पे अपना मखमली रसीला भोंसड़ा रगड़ ऐसे ही जबरदस्त रगड़ रही थीं ,उनके खुले मुंह के अंदर ठेल रही थीं। पूरी ताकत से ,पूरे जोश से,...



और उनको भी उस जोर जबरदस्ती में मजा आ रहा था, जिस ब्रूट तरीके से मंजू बाई उनके बाल पकड़ के खींच रही थी,


अपने बड़े बड़े मोटे चूतड़ उठा उठा के धक्के मार रही थी, जिस जोर से मंजू बाई की तगड़ी मांसल जाँघों ने उन्हें दबोच रखा था ,


और साथ में एक से एक गन्दी गालियां ,

" अपनी माँ के खसम ,माँ के यार ले चूस माँ का भोंसड़ा , चूस मादरचोद ,

अरे बचपन से तुझे भोंसड़ा का रस पिला के इत्ता बड़ा किया है , पेल दे जीभ अंदर मादरचोद ,
अरे देख अभी तुझसे क्या क्या चटवाती हूँ ,खिलाती हूँ ,

पहले भोंसड़ा का मजा ले ,फिर गांड का मजा दूंगी ,

गांड के अंदर का भी चटवाउंगी ,चल चूस कस कस के , .... "



इधर मंजू बाई जितना जबरदस्ती हार्ड हाट थी उधर नीचे गीता उतनी ही साफ्ट और उतनी ही हाट ,


गीता के होंठ सुपाड़ा चूस चुभला रहे थे।




मन कर रहा था किसी तरह ,बस किसी तरह ,... उसके होंठ सरकते हुए पूरे लन्ड को गड़प कर लें और जोर जोर से वो चूसे ,झाड़ दे चूस चूस के।


लेकिन गीता ने अपने होंठ भी सुपाड़े पर से हटा लिया

पर थूक की एक लड़ गीता के होंठों से निकल सरकती हुयी सीधे खूंटे पर ऊपर से नीचे तक ,

और उसी के पीछे गीता के रसीले किशोर होंठ , खूंटे पे रगड़ते , सीधे लन्ड के बेस तक बहुत धीमे धीमे और फिर जीभ की टिप गोल गोल चक्कर लन्ड के बेस पे चक्कर काटते,



वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे।

गीता ने अचानक अपने होंठों के बीच उनके पेल्हड़ की एक गोली ( बॉल्स ) दबा ली और लगी चुभलाने ,और उसके बाद दोनों बॉल्स ,




ये नहीं की उनका लन्ड आजाद हो गया था ,



गीता की शरारते कम नहीं थी , एक हाथ से कभी वो अपनी लम्बी चोटी उसपे रगड़ती ,सहलाती तो कभी कस के बाँध के रगड़ती , लन्ड की रगड़ाई और बॉल्स की चुसाई दोनों साथ साथ चल रहे थे।

साथ में बीच बीच में गीता के कमेंट्स कभी मंजू बाई से ,कभी उनसे





" क्यों माँ मजा आ रहा है न मेरे भैया से ,अपने खसम से भोंसड़ा चुसवा के,

अरे माँ मैंने बोला था न ये तेरा यार बचपन का मादरचोद है ,

माँ के भोसड़े का रसिया।

बोल न बहन का चूसने में ज्यादा मजा आ रहा था ,या माँ का चूसने में। "
 
जोरू का गुलाम भाग ४७

मंजू और गीता







डबल धमाका




वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे।


गीता ने अचानक अपने होंठों के बीच उनके पेल्हड़ की एक गोली ( बॉल्स ) दबा ली और लगी चुभलाने ,



और उसके बाद दोनों बॉल्स ,




ये नहीं की उनका लन्ड आजाद हो गया था , गीता की शरारते कम नहीं थी ,


एक हाथ से कभी वो अपनी लम्बी चोटी उसपे रगड़ती ,सहलाती तो कभी कस के बाँध के रगड़ती ,


लन्ड की रगड़ाई और बॉल्स की चुसाई दोनों साथ साथ चल रहे थे।


साथ में बीच बीच में गीता के कमेंट्स कभी मंजू बाई से ,कभी उनसे

" क्यों माँ मजा आ रहा है न मेरे भैया से ,अपने खसम से भोंसड़ा चुसवा के, अरे माँ मैंने बोला था न ये तेरा यार बचपन का मादरचोद है ,

माँ के भोसड़े का रसिया।



बोल न बहन का चूसने में ज्यादा मजा आ रहा था ,या माँ का चूसने में। "

लेकिन मंजू बाई भी चुप रहने वाली नहीं थी , मुंह तो उसका भी खुला था ,जवाब में बोली ,

" अरे भाई की रखैल तेरी क्यों सुलगती है , मेरी बेटी का भाई मेरा भी तो कुछ लगेगा , मेरा भी तो हक़ बनता है न उससे मजा लेने का।



तू भी तो उसका लन्ड चाट रही है ,टट्टे चाट रही तो मेरी भी मर्जी मैं चाहे उससे बुर चटवाऊं ,चाहे गांड ,चाहे गांड के अंदर का , .. "


और उसी के साथ मंजू बाई के धक्के बढ़ गए , और वो भी,


एक नए तरह का नशा , भोंसड़ा उनके मुंह से एकदम चिपका रगड़ खाता,

एक अजब महक ,एक तेज भभका उनकी नाक में भर रहा था ,भोंसडे की महक ही उन्हें पागल कर रही थी।




उनके कान में उनके सास की बात गूँज रही थी ,


" बस एक बार चाट ले अपनी माँ का भोंसड़ा , मेरी गारंटी। वो मजा आएगा , वो स्वाद मिलेगा न तू खुद ही उसके पेटीकोट खोलने के लिए पीछे पीछे घूमेगा। "

एकदम सच थी उनकी बात ,

" बस एक बार जबरदस्ती चुसवाऊँगी , फिर तो तुम खुदे , .... तुझे जैसे अब आम का स्वाद लग गया है न बस एक बार जबरदस्ती करने से बस उसी तरह मां के भोंसडे का भी स्वाद लग गया न तो ,






सच में भोंसडे का स्वाद भी दसहरी आम की तरह खूब टैंगी टैंगी ,खट्टा मीठा ,एकदम पागल बना देने वाला स्वाद ,

और ऊपर से मंजू बाई ने झुक के अपनी बुर की दोनों फांके फैला दी , बस इतना इशारा काफी था , उन्होंने पूरी जीभ अंदर ठेल दी।

उफ्फ्फ ओह्ह ,एकदम पागल बना देने वाला स्वाद , थोड़ा कसैला थोड़ा मीठा ,एक अलग ही मजा , और ऊपर से मंजू बाई ने कस के बूर भींच दी उसकी जीभ के उपर

भोंसडे की अंदरूनी दीवाल पर रगडती घिसती उनकी जीभ , वैसा मजा पहले कभी नहीं मिला

ऊपर से उकसाती हुयी गीता ,

" चूस ले भइय्या ,माँ का भोसड़ा ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा। "


और उनके कान में गूंजती उनकी सास की बात ,



" अरे एक बार पटक के चोद दे न मेरी समधन को ,जिस भोंसडे से निकला है न चोद दे उसी भोंसडे को, देख खुद तेरे मोटे लन्ड का मजा लेने खुद वो ,... "

और सोच सोच के ,...

जैसे कोई बौराया मर्द गौने की रात अपनी नयी नयी दुल्हन की कुँवारी चूत चोदे

उसी तरह वो माँ के भोंसडे में अपनी जीभ हचक हचक के ,साथ में होंठ जोर जोर से भोंसडे का रस चूस रहे थे।







नीचे गीता के होंठ भी अब उनके गोलकुंडा के दरवाजे पे चक्कर काट रहे ,

कभी वो जीभ से गांड के किनारो को छेड़ देती , तो कभी हलके से सहला देती ,

और फिर अचानक जैसे कोई मस्त लौंडेबाज

किसी स्कूली लौंडे की नयी गांड को ,

निहुरा के जोर जोर से फैला के ,


बस उसी तरह से गीता ने अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से उनके गांड को चियार दिया , पूरा।



उसके पहले वो दो चार ढक्कन तेल गांड के अंदर पिला कर चिक्कन कर ही चुकी थी एक ऊँगली पूरी ताकत से पेल कर थोड़ा खोल भी चुकी थी ,

उस खुली गांड में गीता ने अपनी जीभ उतार दी।




पहले तो ऊपर के किनारों पर चाटती रही ,फिर सीधे गांड के छल्ले के पार


क्या कोई मर्द गांड मारेगा ,जिस तरह गीता की जीभ ,

गोल गोल अंदर बाहर , ऊपर नीचे





वो चूतड़ पटक रहे थे , मचक रहे थे लेकिन गीता छोड़ने वाली नही थी और साथ में अब गीता के कोमल कोमल हाथों ने हलके हलके उनके बौराये लन्ड को मुठियाना भी शुरू कर दिया।


मंजू बाई के धक्के तेज हो गए थे ,और उसी के सुर ताल पर उनकी जीभ का चाटना , होंठों का चूसना।

एक बार फिर बादल घिर गए थे , आंगन में बस हलकी हलकी चांदनी छिटक रही थी ,हवा तेज हो गयी थी।

और मंजू बाई ने जोर से उनके बाल पकड़ के ,

" चोद साले चोद , चोद अपनी माँ का भोंसड़ा ,एक बार चाट के झाड़ दे तो देख तुझे माँ का भोसड़ा चुदवाऊँगी

बहुत जल्द तुझे पक्का असली मादरचोद बना के रहूंगी ,, ओह्ह आह हाँ ऐसे ही चूस मुन्ना ,बेटा मेरा चूस कस के झाड़ दे झाड़ माँ का भोसड़ा , बहुत प्यासी है , ओह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह "




मंजू बाई तेजी से झड रही थी जैसे सावन भादो की बारिश , उसके रस से उनका मुंह चेहरा सब कुछ

और जब वो झड़ते झड़ते थेथर हो गयी तो उन्होंने मारे शरारत के अपने दांतो से हलके से मंजू का क्लीट


और वो एक बार फिर से दुबारा , बार बार मंजू बाई का भोसड़ा तेजी से पानी फेंक रहा था , उनका पूरा चेहरा भीगा हुआ था।

नीचे गीता ने भी उनकी गांड तेजी से अपनी जीभ से , सटासट सटासट ,




गीता की उँगलियाँ उनके सुपाड़े को रगड़ रही थी ,नाख़ून से उनके पी होल को छेड़ रही थी।


उन्हें लग रहा था अब गए तब गए ,

लेकिन तब तक झड़ कर थकी मंजू बाई उनकी देह से लुढ़क कर बगल में ढेर हो गयी।

वो झड़ने वाले थे ज्वालामुखी उफन रहा था ,

लेकिन गीता भी उन्हें छेड़ के अपनी माँ के बगल में लेट गयी।

कुछ देर तक वो तीनो चुपचाप लेटे रहे ,




लेकिन बात गीता ने ही शुरू की अपनी माँ को छेड़ते

" क्यों माँ बहुत मजा आया ,मेरे भैया से चुसवाने में न"
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]चुसम चुसाई[/font]



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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]लेकिन बात गीता ने ही शुरू की अपनी माँ को छेड़ते


" क्यों माँ बहुत मजा आया ,मेरे भैया से चुसवाने में न "

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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

" अरे छिनाल तू भी तो मजे ले ले के मेरे मुन्ने का अगवाड़ा पिछवाड़ा चूस रही थी पूरी ताकत से."

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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]


मंजू बाई ने गीता को चिढाया।

गीता और मंजू खिलखिलाने लगे और गीता बोलीं ,
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,][size=large]" माँ तेरा रस कितना ज्यादा भैया के मुंह पर लगा है , देख तो। ज़रा मुझे भी चटा दे न ,बहुत दिन से रस नहीं चखा तेरी चूत का। "[/font][/size]

[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" अरे तो चाट काहे नहीं लेती अपने भैया के मुंह पर से , बड़ी भैया वाली बनी फिरती है "




मंजू बाई ने गीता को चढाया , और गीता झट से मेरे पास सीधे मेरी गोद में।


गीता के होंठ मेरे होंठों पर और फिर सिर्फ होंठों पर से नही

बल्कि पूरे चेहरे पर से उसकी लपलपाती जीभ ने जो रस चाटा और साथ में गीता के बोल भी ,

" भैया ,मैं कह रही थी न माँ के भोंसडे में बहुत रस है , खूब मीठा गाढ़ा। "

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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

बात गीता की एकदम सही थी पर अब मेरे होंठ ,पूरा चेहरा सिर्फ मंजू बाई के रस से ही नहीं

बल्कि गीता के मुंह का रस भी पूरा लिथड़ गया था।

" अच्छा चल बहूत चूम चाट लिया मेरे मुन्ने को , अब अपने होंठ इधर कर देखूं मेरे बेटे के खजाने से क्या रस निकाला है , "

मंजू बाई भी अब उन दोनों से सट के बैठ गयी थीं।

गीता ने अपने होंठ अपनी माँ की ओर बढ़ाते बोला ,
[/font]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,][size=large]" सच में माँ बहुत मजा छिपा है तेरे बेटे के पिछवाड़े मस्त रस भरा है , "[/font][/size]
[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

लेकिन फिर मुंह बना के बोली "[/font]
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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]लेकिन तेरे बेटे का पिछवाड़ा अभी तक कोरा है ,कच्ची कली है बिचारी। "


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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

मंजू बाई के होंठों ने गीता के होंठों को गड़प कर ,गीता का मुंह बंद कर दिया।





लेकिन मंजू बाई की ऊँगली पहले तो जैसे खड़े झंडे पे ,जैसे गलती से लग गयी ही ,टकरा गयी , और मंजू बाई का मुंह उसके कड़ेपन का अहसास कर चमक गया।

फिर वो खोज बिन करती उंगलिया सीधे पिछवाड़े , गोलकुंडा के दरवाजे पे।

थोड़ी देर छेद की जांच पड़ताल करने के बाद चूतड़ थपथपाते मंजू बाई ने अपना फैसला सुना दिया ,



" बात तो तेरी एकदम सही है , ये अभी एकदम कोरी है ,लेकिन माँ का आशीर्वाद है ,[/font]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,][size=large]
बहुत जल्द एक से एक मोटे लन्ड ,... अरे जिस लन्ड को घोंटने में चार बच्चे जनने वाली जनाना को ,

भोंसड़ी वाली को पसीना छूट जाये , वैसे गदहा छाप लन्ड ये हँसते मुस्कराते घोंट जाएगा।

[/font]
[/size]
[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]नम्बरी गांडू बनेगा ,मरवाने में अपनी माँ बहन का भी नंबर डकायेगा ये। "

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गीता क्यों छोड़ती टुकड़ा लगाने से , बोली ,




" भैया ,इत्ते चिकने हो आप ,बच कैसे गए। एक बात बोल देती हूँ मैं ,[/font]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,][size=large]
जब घुसेगा न लन्ड पहली बार बहुत दर्द होगा , खूब गांड पटकोगे , लेकिन गांड का मरवैया भी न ,

फिर जब गांड का छल्ला पार होगा न इत्ता परपरायेगा , की ....

लेकिन जब दो चार लन्ड घोंट लोगे तो खुद ही गांड में कीड़े काटेंगे ,गांड मरवाने के लिए

[/font]
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[size=large][font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]अरे माँ का आशीर्वाद है गलत थोड़े ही होगा। "

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मंजू बाई ने तोप का रुख अपनी बेटी की ओर मोड़ दिया ,

" अरे तू काहे नहीं मरवा लेती गांड मेरे बेटे से ,तेरी कौन सी कोरी है। "

" एकदंम मरवाउंगी माँ ,मेरा प्यारा भैया है ,लेकिन बस एक छोटी सी शर्त है मेरी जब मेरा भइया मरवा लेगा न उसके बाद "


मेरे गाल सहलाते गीता ने अपना इरादा जाहिर कर दिया।

गनीमत था अब गीता और मंजू बाई एकदूसरे से संवाद में मगन हो गयीं थीं।[/font]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]कन्या काम क्रीड़ा[/font]



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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]अब गीता और मंजू बाई एकदूसरे से संवाद में मगन हो गयीं थीं।

………
" बुरचोदी , तेरे इन थनो से बहुत दूध छलकता रहता है न ,बहुत जुबना उठा उठा के चलती है न छिनार , देख आज अपने बेटे से कैसे इन्हें रगड़वाती मसलवाती हूँ .... दबा दबा के चूस चूस के ये सारा रस निकाल देगा तेरा। "


मंजू बाई ने गीता की कड़ी कड़ी किशोर चूँचियों को दबाते मसलते छेड़ा ,

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फिर गीता क्यों छोड़ती उसने भी अपनी माँ की बड़ी बड़ी मस्त चूँचियों को पकड़ के रगड़ना शुरू कर दिया और चिढाया



" अरी माँ सच में ज़माना हो गया किसी मर्द का हाथ पड़े इन छातियों पे ,तरस गयी थी मैं , लेकिन अब देख आज तेरे बेटे से क्या क्या करवाती हूँ ,[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]क्या क्या कहाँ कहाँ का रस उसे पिलाती हूँ ,सीधे से नहीं पियेगा तो हाथ पैर बाँध कर , छोटी बहन हूँ थोड़ा जबरदस्ती का हक़ तो बनता है ,

लेकिन माँ मेरा भाई तेरी इन बड़ी बड़ी चूचियों का दीवाना है आज देख कैसे रगड़ रगड़ के इसका रस निकालता है वो ,

[/font]

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[/font]




[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और वो तो बाद में रगड़ेगा पहले उसकी छोटी बहन से तो रगड़वा ले ,बचपन की सब चूची मसलाई भूल जायेगी। "

और गीता ने सचमुच इत्ती जोर जोर से ,

और जवाब में मंजू ने भी


क्या मस्त कन्या काम क्रीड़ा शुरू हो गयी थी।




किसी भी नीली पीली फिल्म से हॉट ,मस्त


फिल्मो में तो बहुत कुछ मशीनी ,व्यवसायिक ढंग से , ये फिर ,ये फिर ये ,...

लेकिन जो पैशन , जो जोश ,जो राग ,जो अनुराग ,जो आग यहाँ दिख रही थी ,न कहीं देखा न सूना।

गीता -नए नए आये जोबन से मदमाती , छरहरी ,किशोर,जोश में डूबी ,तगड़ी ,रस की पुतली।

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मंजू बाई - बचपन की खेली खायी ,प्रौढा, भरी भरी देह ,गदराये ३८ डी डी वाले जोबन वाली , हर दांव पेंच में माहिर।

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दोनों ने एक दूसरे को पकड़ रखा था ,दबोच रखा था इस ताकत से की लग रहा था की बस सारी हड्डी पसली टूट जायेगी।


देह से देह रगड़ती ,होंठ से होंठ रगड़ते ,

पहल गीता ने की ,


उसके नाजुक किशोर गुलाबी रस से छलकते होंठ , मंजू बाई के होंठों से सरकते फिसलते , सीधे बड़े बड़े कड़े कड़े जोबन पर

जोबन के उभारो के नीचे ,

होंठों ने पहले उन मांसल रस कलशों की परिक्रमा की ,चुम्बन अर्चन किया और फिर धीमे धीमे ऊपर की ओर ,

मंजू बाई के कंचे ऐसे निपल एकदम कड़े खड़े मस्ताए ,

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कुछ देर तक गीता की जीभ मंजू बाई के निपल्स फ्लिक करती रही ,उसके चारों ओर घूमती तड़पाती रही फिर एक झटके में ,

गीता के बाज ऐसे होंठों ने निपल झट से और पूरा निपल गीता के मखमली शोले ऐसे मुंह में ,


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गीता जोर जोर से चूस रही थी ,चुभला रही थी।


गीता की देह भले जवान हो गयी हो ,उसके उभारो का कटाव ,कड़ापन आग लगाता हो पर उसके चेहरे पे अभी भी ,

वही भोलापन वही इनोसेंस ,

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उरोजों की रगड़ा रगड़ी से कम मस्त नहीं था ,गीता -मंजू बाई के बीच चार आँखों का खेल ,

गीता की बड़ी बड़ी भोली भोली आँखे मंजू बाई को ललचा रही थीं ,उकसा रही थी।

और अपने छोटे कड़े जुबना वो मंजू बाई के होंठों के पास उचका रही थी ,ललचा रही थी ,[/font]


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[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मंजू पास आती तो वो सरक जाती , कन्नी काट लेती चपल हिरनी की तरह ,


लेकिन मंजू बाई को इस लुका छिपी की आदत नहीं थी ,बचपन से वो खुला खेल फर्रुखाबादी खेलती थी ,

एक झटके में उसने गीता को पकड़ के निहुरा दिया जैसे कोई लौंडेबाज किसी लौंडे को जबरन निहुरा रहा हो गांड मारने को

या फिर डॉगी पोज में , कोई लड़की झुकी इन्तजार कर रही हो लन्ड खाने को

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मंजू बाई के बड़े बड़े गदराये जोबन अब गीता की चिकनी पीठ पर फिसल रहे थे ,





शोल्डर ब्लेड्स से गीता के भारी भारी नितम्बो तक ,

और एक झटके से मंजू बाई ने निहुरी झुकी , गीता के उभार पकड़ लिए ,

क्या कोई मरद मसलेगा , जिस तरह मंजू बाई गीता की किशोर छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूंचियां मसल रही थीं।[/font]





[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और ये कन्या क्रीड़ा देख कर उनका औजार कब से एक दम पत्थर का हुआ तना खड़ा था।

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मंजू बाई ने अपना दूसरा हाथ गीता की फैली मखमली खुली जाँघों के बीच घुसेड़ा और सीधे गीता की चूत भींच ली।

मंजू बाई की हथेली उसे मसल रही थी ,रगड़ रही थी , गीता की कच्ची किशोर चूत पिघल रही थी



और एक झटके में मंजू बाई बाई ने पेल दी ,एक नहीं दो उँगलियाँ एक साथ[/font]


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[/font]





[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]गीता चीख उठी ,फिर सिसकने लगी ,

मंजू बाई की उँगलियाँ जड़ तक धंसी ,कभी अंदर बाहर तो कभी गोल[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
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[/font]





[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]उनकी निगाहैं बस गीता की चूत और मंजू बाई की उँगलियों से चिपकी।

सटासट गपागप ,सटासट गपागप

[/font]

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[/font]

[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

और अचानक मंजू बाई ने मीठे शीरे से डूबी ऊँगली निकाल कर उनके भूखे होंठों पर रगड़ दी ,

"ले साल्ले गांडू ,चाट अपनी बहन की चूत का रस , पक्का बहनचोद बनाउंगी तुझे मैं। बहन के रस से मीठा कुछ भी नहीं ,... "

और कुछ ही देर में वो रस से भीगी ऊँगली उनके मुंह में थी ,वो सपड़ सपड़


लेकिन मौके का फायदा उठाने में गीता का सानी नहीं था ,मछली की तरह वो फिसल निकली ,

अब मंजू बाई नीचे

गीता ऊपर
[/font]



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[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]क्लासिक 69 .


मंजू बाई की बुर में मुंह मारते , गीता बोली


" और माँ के भोंसडे का रस , ... "[/font]


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[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" अरे पूछ ले न अपने यार से ,अपने भइय्या से अभी तो चूस चाट रहा था। "


मंजू बाई कौन मौका छोड़ने वाली थी ,नीचे से गीता की चूत चाटती वो बोली।


और साथ ही मौक़ा पा के मंजू बाई ने बाजी पलट दी थी ,अब वो ऊपर और गीता नीचे ,



लेकिन 69 के पोज में चूत चुसाई चल रही थी।[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
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[/font]




[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]वो गीता के मुंह की ओर बैठे ,


अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास[/font]



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[/font]




[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।


" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "[/font]



[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]वो बोली।


और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,

अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी। डबल अटैक।



उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,



लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।

एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मज़ा पिछवाड़े का[/font]

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[/font]




[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास

और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।


" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "

[/font]

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[/font]

[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]


वो बोली।


और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,

अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी।


डबल अटैक।

उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,




लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।

एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +

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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]


खूब बड़े बड़े , भरे हुए लेकिन एक इंच भी एक्स्ट्रा फ्लेश नहीं , सब मसल्स , टाट और फर्म , कड़े शेपली

मंजू बाई की खूब रसीली चिकनी मांसल जाँघे जहां नितम्बो के रूप में उभरती थी , बस लगता था किसी मैदान के ठीक बाद दो पहाड़ियां,

मंजू बाई के पिछवाड़े की फोटो किसी भी एक्सट्रीम बूटी या ४० + बूटी वाले साइट में जगह पा सकती थी। मैक्सिमम हिट भी मिलते ,





और उन दोनों मांसल पहाड़ियों के बीच वो पतली सी दरार एक दर्रे ऐसी ,जिसकी तलाश में लोग भटकते हों ,
एक बहुत छोटा सा भूरा छेद ,कसा कसा ,

[/font]

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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]


जिसके चारो ओर हलकी हल्की बहुत छोटी छोटी कुछ सिलवटें सी पड़ीं,...

उनकी निगाहें वहीँ अटकी।

उनका एक हाथ बहुत प्यार से उन मस्त नितंबों को सहला रहा था ,

दूसरे हाथ की दो उंगलिया ,जड़ तक मंजू बाई की बुर में धंसी घसर घसर


गीता की शरारतें कम होने को नहीं आ रही थीं।


मंजू बाई की बुर चूसना रोक कर ,

गीता ने अपने दोनों हाथों से मंजू बाई की बुर के बड़े बड़े भगोष्ठों को पूरी ताकत से चियार दिया, जैसे किसी बुलबुल ने अपनी चोंच चियार दी हो।

" देखो न भैया ,माँ के भोसड़े का अंदर का नजारा,,"

अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी
[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]" हैं न मस्त "


गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।

" हाँ एकदम "
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मस्ती में चूर वो बोले।

" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली "


और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।


एकबार फिर कचकचा के मंजू बाई की बुर ने उनकी उँगलियों को दबोच लिया जैसे कोई मखमली पकड़ हो जबरदस्त ,
जो उँगलियों को बाहर निकलने से रोक रही हो।

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जोर जोर से पूरी ताकत से वो गपागप ,कलाई के पूरे जोर से

और ऊपर से मंजू बाई भी लपलप लपलप गीता की चूत चाटते ,चूसते रुक रुक के बोलती ,

" पेल साले देखतीं हूँ तेरी ताकत लगता है बचपन में खूब अपनी माँ के भोसड़े में ऊँगली की थी ,मादरचोद। बचपन से ही ऊँगली करने में एक्सपर्ट थे ,मादरचोद। गीता चूस कस के ,देखती हूँ कितनी ताकत है ,भाई बहन में "

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और साथ में मंजू बाई की बुर कस के उनकी उँगलियों को सिकोड़ कर निचोड़ भी रही थीं।


"भैया, दिखा दो माँ को अपनी ताकत , चल हम दोनों मिल के,..."

गीता ने जोश दिलाया।

फिर क्या था , उनकी दोनों उँगलियाँ ,

नक़ल से मोड़ कर उन्होंने चम्मच की तरह बना लिया और वो नकल मंजू बाई के भोंसडे की अंदरूनी मखमली दीवाल पर रगड़घिस्स



साथ में गीता भी अब कस के कभी मंजू बाई के दोनों रसीले मोटे मोटे लेबिया चूसती तो कभी जीभ से क्लीट को छेड़ती।



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मंजू बाई की बुर रस की फुहार बरसा रही थी ,इनकी उँगलियों को भिगो रही थी। एकदम कीचड़ हो रही थी उसकी बुर और उसी में इनकी उँगलियाँ सटासट सटासट ,


पर निगाहें उनकी अभी भी मंजू बाई के गोल गोल चूतड़ों पर अटकी हुयी थी ,खूब कड़े भरे भरे ,


और बीच में एक छोटा सा कसा भूरा छेद ,उन्हें ललचाता ,उकसाता , उनका मन तो कर रहा था की,...




और उनके मन की बात गीता ने ताड़ ली , एक पल के लिए भोंसडे की चुसाई रोक के वो बोली ,

" भैया ,माँ पक्की छिनार है ,इत्ती आसानी से नहीं झड़ेगी। मैं अगवाड़े और तू पिछवाड़े , माँ का असली रस तो उस की ,... "

और जब तो वो कुछ सोचते समझते ,गीता की मजबूत कलाई ने उनके हाथ को पकड़ कर , उनकी बुर में रगड़घिस कर रही उँगलियों को निकाल के सीधे पिछवाड़े के छेद पर सटा दिया।


बहुत ताकत थी गीता की कलाई में ,

उनकी कलायी पकड़ के जो गीता ने पुश किया था एक ऊँगली के दो नक्कल सीधे मंजू बाई की गांड के अंदर।

और फिर जैसे कोई बोतल का ढक्कन घुमाये , बस उसी तरह घुमाते थोड़ी देर में आधी से ज्यादा ऊँगली गांड ने खा ली।
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।


एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए
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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]एक नया मजा[/font]

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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।



एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए

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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]

पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी


एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के

गांड के अंदरूनी दीवारों को रगड़ते , पुश करते , गांड का छल्ला तो गीता के जोर ने ही पार करा दिया था अब तो वो एकदम गांड के अंदरूनी हिस्से का मजा ले रहे थे।



हलके हलके मंजू बाई भी अपनी गांड को पुश कर के जता रही थी की उसे कितना मजा आ रहा है।

लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनकी ऊँगली जड़ तक नहीं घुस पा रही थी ,मंजू बाई की गांड इतनी कसी थी।

गीता नीचे से चूसने में लगी थी लेकिन उसे उनकी हालत का अहसास था ,

" ऐसे नहीं जायेगी ऊँगली पूरी भैया , ... "

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वो बोली और जब तक वो कुछ समझपाते गीता की चिट्ठी कलाई ने उनका हाथ पकड़ा और ऊँगली गांड से बाहर निकाल दी।

और उसी ताकत से वो ऊँगली ने गीता ने उनके मुंह में घुसेड़ दी।

एक पल के लिए तो वो हिचकिचाए , वो ऊँगली तो अभी तक मंजू बाई की गांड में ,

कितना लिसलिसा गूई सा ,... लेकिन गीता के जोर के आगे कुछ चलता है क्या।

"अरे भैया , माँ की गांड का मक्खन है माँ का प्रसाद , अच्छी तरह से थूक लगा लो ,हाँ और अबकी दोनों ऊँगली। दोनों में थूक खूब लगा लेना। "
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दोनों ऊँगली जो कुछ देर पहले मंजू बाई का बुर मंथन कर रही थी ,अब उनके थूक से लिसड़ी ,अबकी सीधे मंजू बाई की गांड में।

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इस बार दोनों उंगलियां जड़ तक जा के ही रुकी और वो तूफानी चुदाई उन्होंने ऊँगली से की , उन्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की ऊँगली में क्या लिपट रहा है ,



और साथ में जिस तरह से मंजू बाई गांड सिकोड़ रही थी ,उनकी ऊँगली निचोड़ रही थी ,जवाब में धक्के लगा रही थी और सबसे बढ़ के ,एक गालिया दे रही थी


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" अरे मादरचोद , तूझसे अपने सामने तेरी माँ का भोसड़ा मरवाउंगी , बचपन के गांडू ,
अभी तेरी गांड में कोहनी तक हाथ पेलुंगी बहनचोद। जो कसी कसी गांड लिए फिरता है न देखना , दस दिन के अंदर तुझे पक्का गांडू बना दूंगी। '

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लेकिन बीच बीच में गीता पक्का बहन का रोल अदा कर रही थी उसका साथ दे के , बोली

" अरी माँ ,भैया को गांडू बनाएगी तो भइय्या को तो मजा ही आ जायेगा। वो तो खुद गांडू बनना चाहते है ,लेकिन ये बता तूझे मेरे भैया से गांड में ऊँगली करवाने में मजा आ रहा है न खूब ,बात क्यों बदलती है। "



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" छिनार ,तेरा भाई है तो मेरा भी तो कुछ लगता है। मैं अपने बेटे से अपना भोसड़ा मरवाउं ,गांड मरवाऊं तुझे क्या। और बेटा गांड नहीं मारेगा तो क्या तेरी तरह अपने भाई से मरवाउंगी ,भाई चोद। "


मंजू बाई भी जवाब देने का मौका क्यों छोड़ती।

लेकिन गांड और बुर दोनों पर हमले का असर ये हुआ की अब मंजू बाई झड़ने के कगार पर बार बार पहुँच जाती ,

लेकिन झड़ नहीं रही थी।


उन्होंने अब एक बार अब अपनी दोनों उँगलियाँ मंजू बाई की गांड से बाहर निकाल के

दोनों हाथ से पूरी ताकत से मंजू बाई की गांड का छेद चियार दिया ,



" देख भैय्या , माँ की गांड में कितना माल है ,"


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और जिस तरह गीता ने आँख मारी वो इशारा समझ गए।



नीचे गीता ने अपने दोनों होंठों के बीच मंजू बाई के बुर के दोनों होंठों को दबोचा और कस के चूसना शुरू किया ,




और उधर उनके होंठों ने पिछवाड़े के छेद को ,


ऐसा नहीं है पिछवाड़े के छेद को चाटने चूसने का ये उनका पहला मौका था ,

मैंने तो बर्थडे के ही दिन ,

और जबरदस्त अंदर जीभ डाल के उन्होंने चाटा चूसा भी था ,

फिर उनकी सास ने तो सारी हदें उस रात पर करवा दी थी ,जिस दिन उनकी नथ उतारी , लेकिन घर के बाहर ये पहली बार


और गीता और मंजू बाई मिल के जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया था ,

उससे भी ज्यादा




जीभ उनकी अंदर उतर चुकी थी , पिछवाड़े की सुरंग में ,अँधेरी गीली गीली गली में , पूरे अंदर तक
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सपड़ सपड़.
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उसका असर जबरदस्त हुआ , और मंजू बाई ने गीता की कसी चूत चूसने के साथ उनकी गांड पर भी हमला बोल दिया।

मंजू बाई की जीभ गीता की रसीली चूत में धंसी हुयी थी , होंठ चूत के गुलाबी किशोर होंठ चूस रहे थे और अब मंजू बाई का मोटा अंगूठा , गीता की गांड की दरार पर।


थोड़ी देर तक मंजू बाई अपना अंगूठा गीता की गांड पर रगड़ती रही और फिर अचानक पूरी ताकत से गीता की कसी गांड में उसने अंगूठा पेल दिया।

गीता झड़ने लगी ,फिर तो जैसे तूफ़ान आ गया।

गीता का बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था फिर भी उसने मंजू बाई की चुसाई नहीं छोड़ी और कचकचा के गीता ने मंजू बाई की क्लीट काट ली /

और अब मंजू बाई भी ,

एक बार

बार बार

लगातार , दोनो झड़ रही थीं ,


और उनकी जीभ भी साथ साथ मंजू बाई की गांड में पूरी तेजी के साथ



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कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।


न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की



चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।[/font]
 
[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]जोरू का गुलाम भाग ४७[/font]

[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]मंजू और गीता[/font]


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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।

न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की

चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।

चांदनी को छेड़ने वाले आवारा बादल भी इधर उधर बिखर गए थे।


किसी में उठने की ताकत नहीं बची थी।

वो दोनों तो झड़ के लथर पथर थी और ये बिचारे अभी भी बिना झड़े , बम्बू उसी तरह तना , लेकिन थक तो वो भी गए थे।

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…………………………


कुछ देर बात गीता अंगड़ाई लेती हुयी उठी ,प्यार से उनको देखा और ठसके से मुस्कराते हुए अपने भैया की गोद में जा के बैठ गयी , प्यार से दुलराते सहलाते 'उसे ' पकड़ लिया और बोली , लेकिन वो बात उनसे नहीं बल्कि उनके 'उससे ' कर रही थी ,

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" बहुत गुस्सा हो न। मालुम है मुझे , गुस्सा होने वाली बात है है। मैं झड़ गयी ,माँ झड़ गयी लेकिन तू वैसा ही भूखा प्यासा , गुस्से की बात है ही। "



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और ये कहते गीता ने एक झटके से जो चमड़ा खींचा तो सुपाड़ा खुल गया ,

खूब मोटा , लाल गुस्साया , मांसल सुपाड़ा

प्यार से एक दो तमाचे हलके से गीता ने तन्नाए लन्ड को मारा और अंगूठा सुपाड़े पे रगड़ते ,मुस्करा के बोली।

" पगले दिलवाऊंगी न ,पक्का , अरे अभी रात बाकी है पूरी।[/font]


[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]सबसे पहले माँ के भोंसड़ा , बहुत पियासी ,चुदवासी है वो छिनार , खूब हचक के चोदना उसको। "[/font]


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तब तक मंजू बाई भी उन दोनों के पास आके बैठ गयीं थी और उन्होंने भी गीता की बात में टुकड़ा लगाया ,

" लेकिन तू कौन कम , .. "

और अब उनकी ओर प्यासी आँखों से देखती गीता भी बोली ,

" सच्ची भैय्या , कित्ते महीने होगये जब से वो ,मेरा मरद कमाने गया , फिर मैं पेट से थी इधर उधर भी कुछ नहीं ,
और मेरे मरद का था भी तो एकदम केंचुए जैसा। "


फिर उनके होंठों को चूम के कस कस मुठियाते बोली ,

" और मेरे भैया का तो एकदम कड़ियल नाग है कितना मोटा ,कित्ता कड़क। देख भैया तुझसे कितनी मस्ती से चुदवाती हूँ , एकदम निचोड़ लुंगी , और उसके बाद बिना नागा बहन के साथ मजे लेना। "

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मंजू बाई की निगाह उनके चेहरे पर थी ,एकदम चमक रहा था।

गीता समझ गयी और हंसते हुए बोली ,

" अरी माँ क्या देख रही है तेरा ही तो रस है , भोंसडे का ,गांड का , देख तेरे बेटे ने कित्ते कस कस के चाटा है। ज़रा तू भी चख ले न "

मंजू बाई से दुबारा कहना नहीं पड़ा और तेजी से मंजू बाई के होंठ उनके चेहरे से रस चाटने चूसने लगे।

गीता उनके गोद में बैठी थी और उन्होंने पकड़ रखा था , कस के सीधे गीता के किशोर उभारो के नीचे।

गीता ने उनका हाथ पकड़ के सीधे अपने छोटे छोटे उभार पे रख दिया ,थोड़ा मुह बनाते , मानो कह रही हो , "


क्या भैया तुम्हे ये भी नहीं मालुम , जवान होती बहन कोगोद में बैठाने पर उसे कैसे पकड़ते हैं। "

और वो सीधे भले हो लेकिन इतने अनाड़ी भी नहीं थे ,

एक हाथ की उंगलियां गीता के खड़े मटर के दाने की साइज के निपल को पकड़ के पुल करने लगे और दूसरा हाथ गीता की टेनिस बाल साइज चूँचियों को हलके हलके दबाना लगा।

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जवाब में गीता ने भी लन्ड को अब पूरी तेजी रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

मंजू अभी भी उनके मुंह को चूस चाट के साफ़ कर रही थी।

अचानक गीता को कुछ याद आया , वो बोली ,

" माँ तुम सिर्फ पान लायी थी या पाउच भी ? "

"पाउच भी लायी थी लाती हूँ " मंजू बोली

और कुछ ही देर में मंजू बाई ६-७ पाउच के पैकेट ले आयी.

उनके मायके में तो सवाल ही नहीं था ,

लेकिन पिछले कुछ दिनों में मैंने और फिर उससे भी बढ़कर उन्हें 'विदेशी ' का स्वाद तो चखा दिया था , देसी तो लेकिन उससे सौ गुना ज्यादा

" चल उठ जा के ग्लास ले आज , बड़ी देर से सिंहासन पे बैठी है। "

मंजू बाई ने गीता को बोला पर उसने साफ़ मान कर दिया ,



" नहीं नहीं माँ , बड़ा मस्त सिंहासन है भैया का ,ला मुझे दे न ग्लास की कोई जरूरत नहीं , दे मुझे एक पाउच न। अरे हमारी देह में तो ग्लास ही ग्लास है। "




पाउच फाड़ के पहले तो गीता ने सीधे आधा अपने मुंह में गटक लिया , लेकिन गले के अंदर एक बूँद नहीं गयी। गीता का मुलायम गाल एकदम फूला फूला

और उनके गोद में बैठी कस के उन्हें अपनी ओर खींचा ,

फिर गीता के मुंह की देसी दारु आधे से ज्यादा सीधे उनके मुंह में और फिर पेट में ,



अगला पाउच मंजू बाई के मुंह से होते हुए उनके पेट में ,

एक पाउच तो गीता ने उन्हें प्यार से छोटे बच्चे की तरह अपनी गोद में लिटाया और फिर गीता की नशीली चूँचियों से टपकती हुयी बूंदे सीधे उनके मुंह में

" एक भी बूँद इधर उधर हुयी न भैया तो बहुत मारूँगी। "


गीता ने धमकाया।[/font]


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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]जो थोड़ी बहुत बची तो उसे हाथ में ले के गीता ने सीधे उनके लन्ड पे मालिश की ,

" अरे असली नशा तो इसे होना चहिये न "


और मंजू बाई ने तो सीधे अपनी नीचे वाली कुप्पी में भर कर पिलाया।


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[font=Roboto, -apple-system, BlinkMacSystemFont,]
डेढ़ पौने दो बोतल के बराबर तो उन लोगों के अंदर गया ही होगा ,और उसमें से कम से कम एक बोतल सिर्फ उनके अंदर ,

मंजू और गीता की देह से हो के।[/font]
 
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