desiaks
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गीतिका और विनीता का आगमन
इन दिनों कालेज में बड़ी गहमा गहमी थी, एक तो इलेक्शन थे दूसरे कई प्रोग्रामों की तैयारी चल रही थी. कॉलेज की ड्रामा क्लब का मैं भी सदस्य था. हालांकि मुझ को नाटकों में कोई रोल नहीं मिला था लेकिन प्रबंध के काम इतने ज्यादा होते थे कि शाम तक मैं थक जाता था.
कुछ दिनों बाद मम्मी का फ़ोन आया कि वो और पापा एक दो दिन के लिए लखनऊ आ रहे हैं और मैं उनका कमरा ठीक ठाक करवा दूँ. मैंने पारो और नैना को बता दिया और उन दोनों ने मम्मी पापा का कमरा एकदम बढ़िया बना दिया.
अगले दिन जब कालेज से वापस आया तो वो दोनों आ चुके थे. फिर हमने दोपहर का भोजन साथ साथ ही किया.बातों बातों में मम्मी ने बताया कि पापा के एक जमींदार दोस्त की दोनों बेटियाँ यहाँ गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती हैं और वो कॉलेज के हॉस्टल में रहती हैं. उनको हॉस्टल का खाना अच्छा नहीं लग रहा है तो पापा ने फैसला किया है कि वो दोनों भी हमारी कोठी में ही रहेंगी अगर मुझको कोई ऐतराज़ न हो तो?
पहले तो मैं घबरा गया कि मेरी चुदाई की आज़ादी में विघ्न पड़ेगा उन दोनों के आ जाने से?लेकिन फिर सोचा कि अगर इंकार कर दिया तो पापा बुरा मान जाएंगे और उनको शक भी हो जायेगा कि यहाँ कुछ गड़बड़ तो नहीं.
मैं बोला- ठीक है मम्मी, अगर आपकी और पापा की इच्छा है तो वो यहाँ रह सकती हैं. आप उनके लिए कमरा निश्चत कर दो ताकि नैना और पारो उसको साफ़ करवा दें.
यह सुन कर मम्मी बहुत खुश हुई और नैना के साथ जाकर उनके लिए कमरा सेलेक्ट किया और उसमें सब कुछ साफ़ और नया सामान डलवा दिया.
चाय के समय पापा और एक अंकल जिनको मैं नहीं जानता था, आये, मैंने दोनों को चरण वंदना की.
मम्मी बोली- ठीक है भैया जी, आप दोनों लड़कियों को ले आइए ताकि वो अपना कमरा इत्यादि देख लें और आज ही उनका सामान भी शिफ्ट करवा दीजिए ताकि वो आपके होते हुए यहाँ सेट हो जाएँ.
अंकल बोले- ठीक है भाभी जी.
फिर हमने साथ बैठ कर चाय और नाश्ता किया और एक घंटे बाद वो अपनी दोनों बेटियों को हमारी कार में बिठा कर ले आये.दोनों के साथ हमारा परिचय करवाया गया, बड़ी का नाम गीतिका था और छोटी का नाम वनिता था, दोनों ही दिखने में आम लड़कियों की तरह थी.वनिता जो अपनी बड़ी बहन से एक साल छोटी थी, काफी दिलचिस्प लगी और बड़ी थोड़ी गंभीर थी. रंग-रूप में दोनों गंदमी रंग वाली और शारीरिक तौर पे वनिता थोड़ी भरे हुए जिस्म वाली थी और बड़ी थोड़ी लम्बी और स्लिम थी, दोनों की आँखें बड़ी सुंदर थी.
पारो और नैना ने खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया था और सबने खाने की बहुत तारीफ की. फिर रात में हम सब अपने कमरों में सो गए.आज बहुत अरसे के बाद मैं अकेला ही कमरे में सोया.
जाने से पहले मम्मी नैना को समझा गई- सतीश को रात में अकेला नहीं छोड़ना, तुम ज़रूर उसके साथ सोना, कोई चाहे कुछ भी कहे. ठीक है! अगर कोई ऐतराज़ करे तो मुझ को खबर करना. समझ गई ना?नैना बोली- जैसा आपका हुक्म मालकिन.‘और देखो नैना, तुम और पारो मिल कर बढ़िया खाना रोज़ बनाना ताकि ये लड़कियाँ खुश रहें. अगर कोई समस्या होगी तो मुझको फ़ोन करना, ओके?’नैना ने हाँ में सर हिला दिया.
मम्मी मुझ को कमरे में ले गई और बोली- ये दस हज़ार रूपए तुम रख लो. सारा खर्च इसी में से करना, कम हो जाएँ तो मांग लेना. ओके?
मैं बोला- मम्मी, तुम फ़िक्र न करो, मैं सब सम्हाल लूँगा. आज कल घर में नौकरानी कौन है?
वो बोली- वही निर्मला है जो यहाँ भी रह कर गई है. तुम जब चाहो उसको फ़ोन कर दिया करो और सबका हाल बता दिया करो.नाश्ते के बाद वो सब चले गए और हम तीनों कालेज चले गए.
कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला लेकिन एक रात में विनी ने मुझको और नैना को चोदते हुए पकड़ लिया.उस रात हम दोनों से कमरे का दरवाज़ा ठीक से बंद नहीं किया गया और वो जैसे की मौका ही ढूंढ रही थी, अंदर आ गई जब मैं नैना को घोड़ी बना कर चोद रहा था.
वो बड़े धीमी आवाज़ में बोली- यह क्या हो रहा है सतीश?मैं क्या बोलता… मेरी तो बोलती ही बंद हो गई.
वो बोली- हमें भी हिस्सा चाहिए इस खेल में! बोलो हाँ, नहीं तो मैं दीदी को बुला लेती हूँ?
नैना बोली- छोटे मालिक, बताओ क्या करेंगे अब?
मैं बोला- कैसा हिस्सा मांग रही हो तुम?वो बिना किसी झिझक बोली- इस मीठी चुदाई के खेल में… मुझको खेल में शामिल कर लो वरना?
मैं बोला- देखो विनी, तुम अभी उम्र की छोटी हो, तुमने यह खेल पहले नहीं खेला है, ज़रा बड़ी हो जाओ तो तुमको भी शामिल कर लेंगे इस खेल में.
मैंने उसको समझाने की कोशिश की लेकिन उसकी नज़र तो मेरे खड़े लौड़े पर ही टिकी थी.
इन दिनों कालेज में बड़ी गहमा गहमी थी, एक तो इलेक्शन थे दूसरे कई प्रोग्रामों की तैयारी चल रही थी. कॉलेज की ड्रामा क्लब का मैं भी सदस्य था. हालांकि मुझ को नाटकों में कोई रोल नहीं मिला था लेकिन प्रबंध के काम इतने ज्यादा होते थे कि शाम तक मैं थक जाता था.
कुछ दिनों बाद मम्मी का फ़ोन आया कि वो और पापा एक दो दिन के लिए लखनऊ आ रहे हैं और मैं उनका कमरा ठीक ठाक करवा दूँ. मैंने पारो और नैना को बता दिया और उन दोनों ने मम्मी पापा का कमरा एकदम बढ़िया बना दिया.
अगले दिन जब कालेज से वापस आया तो वो दोनों आ चुके थे. फिर हमने दोपहर का भोजन साथ साथ ही किया.बातों बातों में मम्मी ने बताया कि पापा के एक जमींदार दोस्त की दोनों बेटियाँ यहाँ गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती हैं और वो कॉलेज के हॉस्टल में रहती हैं. उनको हॉस्टल का खाना अच्छा नहीं लग रहा है तो पापा ने फैसला किया है कि वो दोनों भी हमारी कोठी में ही रहेंगी अगर मुझको कोई ऐतराज़ न हो तो?
पहले तो मैं घबरा गया कि मेरी चुदाई की आज़ादी में विघ्न पड़ेगा उन दोनों के आ जाने से?लेकिन फिर सोचा कि अगर इंकार कर दिया तो पापा बुरा मान जाएंगे और उनको शक भी हो जायेगा कि यहाँ कुछ गड़बड़ तो नहीं.
मैं बोला- ठीक है मम्मी, अगर आपकी और पापा की इच्छा है तो वो यहाँ रह सकती हैं. आप उनके लिए कमरा निश्चत कर दो ताकि नैना और पारो उसको साफ़ करवा दें.
यह सुन कर मम्मी बहुत खुश हुई और नैना के साथ जाकर उनके लिए कमरा सेलेक्ट किया और उसमें सब कुछ साफ़ और नया सामान डलवा दिया.
चाय के समय पापा और एक अंकल जिनको मैं नहीं जानता था, आये, मैंने दोनों को चरण वंदना की.
मम्मी बोली- ठीक है भैया जी, आप दोनों लड़कियों को ले आइए ताकि वो अपना कमरा इत्यादि देख लें और आज ही उनका सामान भी शिफ्ट करवा दीजिए ताकि वो आपके होते हुए यहाँ सेट हो जाएँ.
अंकल बोले- ठीक है भाभी जी.
फिर हमने साथ बैठ कर चाय और नाश्ता किया और एक घंटे बाद वो अपनी दोनों बेटियों को हमारी कार में बिठा कर ले आये.दोनों के साथ हमारा परिचय करवाया गया, बड़ी का नाम गीतिका था और छोटी का नाम वनिता था, दोनों ही दिखने में आम लड़कियों की तरह थी.वनिता जो अपनी बड़ी बहन से एक साल छोटी थी, काफी दिलचिस्प लगी और बड़ी थोड़ी गंभीर थी. रंग-रूप में दोनों गंदमी रंग वाली और शारीरिक तौर पे वनिता थोड़ी भरे हुए जिस्म वाली थी और बड़ी थोड़ी लम्बी और स्लिम थी, दोनों की आँखें बड़ी सुंदर थी.
पारो और नैना ने खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया था और सबने खाने की बहुत तारीफ की. फिर रात में हम सब अपने कमरों में सो गए.आज बहुत अरसे के बाद मैं अकेला ही कमरे में सोया.
जाने से पहले मम्मी नैना को समझा गई- सतीश को रात में अकेला नहीं छोड़ना, तुम ज़रूर उसके साथ सोना, कोई चाहे कुछ भी कहे. ठीक है! अगर कोई ऐतराज़ करे तो मुझ को खबर करना. समझ गई ना?नैना बोली- जैसा आपका हुक्म मालकिन.‘और देखो नैना, तुम और पारो मिल कर बढ़िया खाना रोज़ बनाना ताकि ये लड़कियाँ खुश रहें. अगर कोई समस्या होगी तो मुझको फ़ोन करना, ओके?’नैना ने हाँ में सर हिला दिया.
मम्मी मुझ को कमरे में ले गई और बोली- ये दस हज़ार रूपए तुम रख लो. सारा खर्च इसी में से करना, कम हो जाएँ तो मांग लेना. ओके?
मैं बोला- मम्मी, तुम फ़िक्र न करो, मैं सब सम्हाल लूँगा. आज कल घर में नौकरानी कौन है?
वो बोली- वही निर्मला है जो यहाँ भी रह कर गई है. तुम जब चाहो उसको फ़ोन कर दिया करो और सबका हाल बता दिया करो.नाश्ते के बाद वो सब चले गए और हम तीनों कालेज चले गए.
कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला लेकिन एक रात में विनी ने मुझको और नैना को चोदते हुए पकड़ लिया.उस रात हम दोनों से कमरे का दरवाज़ा ठीक से बंद नहीं किया गया और वो जैसे की मौका ही ढूंढ रही थी, अंदर आ गई जब मैं नैना को घोड़ी बना कर चोद रहा था.
वो बड़े धीमी आवाज़ में बोली- यह क्या हो रहा है सतीश?मैं क्या बोलता… मेरी तो बोलती ही बंद हो गई.
वो बोली- हमें भी हिस्सा चाहिए इस खेल में! बोलो हाँ, नहीं तो मैं दीदी को बुला लेती हूँ?
नैना बोली- छोटे मालिक, बताओ क्या करेंगे अब?
मैं बोला- कैसा हिस्सा मांग रही हो तुम?वो बिना किसी झिझक बोली- इस मीठी चुदाई के खेल में… मुझको खेल में शामिल कर लो वरना?
मैं बोला- देखो विनी, तुम अभी उम्र की छोटी हो, तुमने यह खेल पहले नहीं खेला है, ज़रा बड़ी हो जाओ तो तुमको भी शामिल कर लेंगे इस खेल में.
मैंने उसको समझाने की कोशिश की लेकिन उसकी नज़र तो मेरे खड़े लौड़े पर ही टिकी थी.