desiaks
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जगमोहन ने होंठ भींचकर देवराज चौहान को देखा। तभी कॉल बेल बजी।
चारों चौंके। आधी रात हो रही थी। कौन आ सकता है इस समय?
मैं देखता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठका देवराज चौहान। सबकी निगाह उस पर थी।
कौन है?” देवराज चौहान ने दरवाजे के पास मुंह ले जाकर पूछा।
“मैं, लक्ष्मण दास ।”
देवराज चौहान ने आवाज को पहचाना, वो लक्ष्मण दास की ही आवाज थी।
रिवॉल्वर सतर्कता से थामे, देवराज चौहान ने दरवाजा खोला।
पोर्च में जल रही रोशनी में लक्ष्मण दास दिखा। फिर सपन चड्ढा नजर आया। परंतु उनके पीछे नजर पड़ते ही देवराज चौहान बुरी तरह चौंका। वो मोना चौधरी थी।
“तुम?" देवराज चौहान के होंठों से निकला। उसने रिवॉल्वर वापस जेब में रख ली।।
मैं तुमसे मिलना चाहती थी।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“लेकिन तुम्हारा पता-ठिकाना नहीं जानती थी, इसलिए लक्ष्मण दास को किसी तरह तैयार किया कि वो मुझे तुम तक ले आए तो ये साथ में सपन चड्ढा को भी ले आया।” |
देवराज चौहान अभी भी हक्का-बक्का था। पीछे हटकर, उसने तीनों को भीतर आने का रास्ता दे दिया।
तीनों भीतर आ गए। देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और पलटा।
मोना चौधरी को सामने पाकर, जगमोहन, बांके और रुस्तम राव चिहुंक पड़े।
“तुम?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“बाप ।” रुस्तम राव, बांके से कह उठा–“घोटाला होईला ।”
बांकेलाल राठौर मूंछों पर हाथ फेरते मोना चौधरी को देखने लगा।
मोना चौधरी ने उलझन-भरे ढंग से तीनों को देखा फिर पलटकर देवराज चौहान को देखा, इसके साथ ही बोली।
“तुम लोग मुझे यहां देखकर इतने परेशान हैरान क्यों हो?"
“तुम मोना चौधरी नहीं हो।” जगमोहन दांत भींचकर बोला। मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
मैं मोना चौधरी नहीं हूं कितनी अजीब बात है कि तुम कह रहे...।” ।
“तुम उसकी हमशकल हो, जथूरा की कोई चाल हो।” जगमोहन का स्वर बेहद सख्त था।
“क्या कह रहे हो?” मोना चौधरी हक्की-बक्की थी।
मोना चौधरी इस वक्त दिल्ली में है—वो...।”
*मैं मोना चौधरी हूं।”
नहीं। तुम मोना चौधरी नहीं हो।” जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।
“मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं और तुम कहते हो कि मैं, मैं नहीं हूं। मैं दिल्ली में हूं।” । ।
“हां। यही मैंने कहा। असली मोना चौधरी दिल्ली में है। अभी पारसनाथ से मेरी बात हुई है।”
“क्या बकवास कर रहे हो।” मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े-“मैं दिल्ली से, लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा के साथ आठ बजे की फ्लाइट पर चली थी। ये बात तुम इन दोनों से पूछ सकते हो।”
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने तुरंत सिर हिलाया। “मोना चौधरी ठीक कह रही है।” सपन चड्ढा बोला।
कितनी अजीब बात है कि मोना चौधरी सामने खड़ी है और तुम कहते हो कि ये मोना चौधरी नहीं है।” लक्ष्मण दास कह उठा।
जगमोहन कुछ कहता, उससे पहले ही देवराज चौहान ने कहा।
तुम हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?”
चारों चौंके। आधी रात हो रही थी। कौन आ सकता है इस समय?
मैं देखता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठका देवराज चौहान। सबकी निगाह उस पर थी।
कौन है?” देवराज चौहान ने दरवाजे के पास मुंह ले जाकर पूछा।
“मैं, लक्ष्मण दास ।”
देवराज चौहान ने आवाज को पहचाना, वो लक्ष्मण दास की ही आवाज थी।
रिवॉल्वर सतर्कता से थामे, देवराज चौहान ने दरवाजा खोला।
पोर्च में जल रही रोशनी में लक्ष्मण दास दिखा। फिर सपन चड्ढा नजर आया। परंतु उनके पीछे नजर पड़ते ही देवराज चौहान बुरी तरह चौंका। वो मोना चौधरी थी।
“तुम?" देवराज चौहान के होंठों से निकला। उसने रिवॉल्वर वापस जेब में रख ली।।
मैं तुमसे मिलना चाहती थी।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“लेकिन तुम्हारा पता-ठिकाना नहीं जानती थी, इसलिए लक्ष्मण दास को किसी तरह तैयार किया कि वो मुझे तुम तक ले आए तो ये साथ में सपन चड्ढा को भी ले आया।” |
देवराज चौहान अभी भी हक्का-बक्का था। पीछे हटकर, उसने तीनों को भीतर आने का रास्ता दे दिया।
तीनों भीतर आ गए। देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और पलटा।
मोना चौधरी को सामने पाकर, जगमोहन, बांके और रुस्तम राव चिहुंक पड़े।
“तुम?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“बाप ।” रुस्तम राव, बांके से कह उठा–“घोटाला होईला ।”
बांकेलाल राठौर मूंछों पर हाथ फेरते मोना चौधरी को देखने लगा।
मोना चौधरी ने उलझन-भरे ढंग से तीनों को देखा फिर पलटकर देवराज चौहान को देखा, इसके साथ ही बोली।
“तुम लोग मुझे यहां देखकर इतने परेशान हैरान क्यों हो?"
“तुम मोना चौधरी नहीं हो।” जगमोहन दांत भींचकर बोला। मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
मैं मोना चौधरी नहीं हूं कितनी अजीब बात है कि तुम कह रहे...।” ।
“तुम उसकी हमशकल हो, जथूरा की कोई चाल हो।” जगमोहन का स्वर बेहद सख्त था।
“क्या कह रहे हो?” मोना चौधरी हक्की-बक्की थी।
मोना चौधरी इस वक्त दिल्ली में है—वो...।”
*मैं मोना चौधरी हूं।”
नहीं। तुम मोना चौधरी नहीं हो।” जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।
“मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं और तुम कहते हो कि मैं, मैं नहीं हूं। मैं दिल्ली में हूं।” । ।
“हां। यही मैंने कहा। असली मोना चौधरी दिल्ली में है। अभी पारसनाथ से मेरी बात हुई है।”
“क्या बकवास कर रहे हो।” मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े-“मैं दिल्ली से, लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा के साथ आठ बजे की फ्लाइट पर चली थी। ये बात तुम इन दोनों से पूछ सकते हो।”
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने तुरंत सिर हिलाया। “मोना चौधरी ठीक कह रही है।” सपन चड्ढा बोला।
कितनी अजीब बात है कि मोना चौधरी सामने खड़ी है और तुम कहते हो कि ये मोना चौधरी नहीं है।” लक्ष्मण दास कह उठा।
जगमोहन कुछ कहता, उससे पहले ही देवराज चौहान ने कहा।
तुम हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?”