desiaks
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“बांकेलाल राठौर बनकर जो तेरे को काम करने हैं। मेरे काम ही ऐसे हैं।”
लेकिन ।
” कुछ पल चुप रह।” फिर मखानी पर जैसे अजीब-सा नशा सवार होता चला गया।
आधा मिनट ही ये सब रहा, फिर वो सामान्य हो गया।
“शौहरी ।” मखानी के होंठों से निकला–“यो म्हारे को का हो गयो हो?”
बन गया तू बांकेलाल राठौर, लेकिन एक कमी है।”
“म्हारे को बता, का कमी हौवे?
“तेरा दिमाग अभी, बांकेलाल राठौर जैसा नहीं है, वो भी कर देता हूं।”
तंम का जादूगरो हौवे ।”
नहीं, मैं कालचक्र का मामूली-सा अंश हूं। अब मैं तेरा दिमाग बदलता हूं।”
अगले ही पल मखानी के मस्तिष्क में सितारे जैसी रोशनी चमकी।
मखानी चकराकर बैंच पर जा बैठा। फिर वो सामान्य हालत में आ गया।
अब ठीक है। अब तेरे में दो दिमाग हैं। जवाहर मखानी का और बांकेलाल राठौर का।” ।
हां, मुझे अजीब-सा महसूस हो रहा है। मेरे दिमाग में बहुत कुछ आ रहा है। देवराज चौहान, जगमोहन, थापर, मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ और भी बहुत कुछ...”
तू बांकेलाल राठौर जैसी भाषा में बात कर ।”
“ठीको। म्हारो जैसो कहो, वैसो ही बातो करो ।” मखानी बोला–“वो देखो, म्हारी बूढ़ी पार्क में आयो हो म्हारी तलाश में।”
मखानी की नजरें पार्क के छोटे से प्रवेश गेट पर थीं। जहां से उसकी पत्नी ने भीतर प्रवेश किया था।
“अब वो तुम्हारी पत्नी नहीं है।”
लगो हो उसो ने म्हारे को पैचान लयो हो । वो इधर ही आयो हो ।
” वो तुम्हें नहीं पहचान सकती। तुम अब बांकेलाल राठौर हो ।
” बूढ़ी पास आकर कह उठी।।
बेटा, तुमने यहां बूढ़े से आदमी को देखा है, व...वो कुछ नशे में था।”
लेकिन ।
” कुछ पल चुप रह।” फिर मखानी पर जैसे अजीब-सा नशा सवार होता चला गया।
आधा मिनट ही ये सब रहा, फिर वो सामान्य हो गया।
“शौहरी ।” मखानी के होंठों से निकला–“यो म्हारे को का हो गयो हो?”
बन गया तू बांकेलाल राठौर, लेकिन एक कमी है।”
“म्हारे को बता, का कमी हौवे?
“तेरा दिमाग अभी, बांकेलाल राठौर जैसा नहीं है, वो भी कर देता हूं।”
तंम का जादूगरो हौवे ।”
नहीं, मैं कालचक्र का मामूली-सा अंश हूं। अब मैं तेरा दिमाग बदलता हूं।”
अगले ही पल मखानी के मस्तिष्क में सितारे जैसी रोशनी चमकी।
मखानी चकराकर बैंच पर जा बैठा। फिर वो सामान्य हालत में आ गया।
अब ठीक है। अब तेरे में दो दिमाग हैं। जवाहर मखानी का और बांकेलाल राठौर का।” ।
हां, मुझे अजीब-सा महसूस हो रहा है। मेरे दिमाग में बहुत कुछ आ रहा है। देवराज चौहान, जगमोहन, थापर, मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ और भी बहुत कुछ...”
तू बांकेलाल राठौर जैसी भाषा में बात कर ।”
“ठीको। म्हारो जैसो कहो, वैसो ही बातो करो ।” मखानी बोला–“वो देखो, म्हारी बूढ़ी पार्क में आयो हो म्हारी तलाश में।”
मखानी की नजरें पार्क के छोटे से प्रवेश गेट पर थीं। जहां से उसकी पत्नी ने भीतर प्रवेश किया था।
“अब वो तुम्हारी पत्नी नहीं है।”
लगो हो उसो ने म्हारे को पैचान लयो हो । वो इधर ही आयो हो ।
” वो तुम्हें नहीं पहचान सकती। तुम अब बांकेलाल राठौर हो ।
” बूढ़ी पास आकर कह उठी।।
बेटा, तुमने यहां बूढ़े से आदमी को देखा है, व...वो कुछ नशे में था।”