desiaks
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पैसा नीचे भिजवा दे।” नीचे?” कार में हूँ मैं।” “परंतु हुआ क्या जो...” ।
कुछ नहीं हुआ। मैं पागल हो गया था। तू पैसा भिजवा जल्दी ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया।
फोन जेब में डाला। चेहरे पर उलझन नाच रही थी।
और यही वो पल था कि उसके मस्तिष्क में पुनः तूफान उठ खड़ा हुआ।
बिजलियां-सी चमकी दिमाग में और आंखें बंद होती चली गईं। परंतु इस बार उसके सिर की हालत पहले से बेहतर रही। मस्तिष्क में बहुत बड़ा चौराहा चमका। ट्रैफिक आ-जा रहा था। नेताजी सुभाष मार्ग का बोर्ड लगा दिखा, जिसके पास ही घना पेड़ था। वहां रेड लाइट पर रुका ट्रैफिक दिखा। एक युवक मोटरसाइकिल पर हैलमेट पहने दिखा, वो ग्रीन लाइट होने का इंतजार कर रहा था। उसने गुलाबी कमीज पहनी थी। तभी पीछे से एक तेज रफ्तार से कार आई और वेग के साथ उस युवक की मोटरसाइकिल से टकराई। टक्कर इतनी जबर्दस्त थी कि युवक मोटरसाइकिल छोड़कर डिवाइडर के पार उछलकर गिरा और वहां जाती कार युवक के ऊपर चढ़ती चली गई।
उसी पल जगमोहन की आंखें खुल गईं। वो गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। चेहरे पर गहरी उलझन के भाव थे।
'नेताजी सुभाष मार्ग का चौराहा।' जगमोहन बड़बड़ा उठा। इसके साथ ही उसने कार स्टार्ट की, बैक की और कार को बाहर ले जाता चला गया। उस पैसे का भी इंजार न किया जो रमजान भाई भेज रहा था।
जगमोहन की हालत अजीब-सी हो रही थी। दिमाग घूमा हुआ था। वो नहीं जानता था कि उसके साथ क्या हो रहा है, परंतु एक हादसे से ये तो उसे महसूस हो गया कि भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास उसे पहले हो रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अब भी ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा था। इस वक्त जगमोहन नेताजी सुभाष मार्ग के व्यस्त चौराहे पर, सड़क के पास फुटपाथ पर खड़ा था। कुछ दूरी पर उसे घने पेड़ की छाया में, नेताजी सुभाष मार्ग वाला वो बोर्ड लगा दिखाई दे रहा था, जो उसके मस्तिष्क में चमका था।
यही वो चौराहा था जो उसके मस्तिष्क में दिखाई दिया था।
वो ऐसी जगह खड़ा था, जहां पास ही रेड लाइट होने पर वाहन रुक रहे थे। उसकी बेचैन निगाह बार-बार रुकने वाले वाहनों पर जा रही थी, परंतु गुलाबी कमीज वाला मोटरसाइकिल सवार अभी तक उसे नहीं दिखा था। वो पता भी कर चुका था कि इस चौराहे पर कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ? परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ था।
कहीं ये सब उसका वहम तो नहीं? नहीं, वहम नहीं है। उसने सब कुछ तो मस्तिष्क में स्पष्ट देखा था।
पहली बार जब मस्तिष्क में युवती का एक्सीडेंट दिखा था तो, वो बात भी सही निकली थी फिर ये वाली बात कैसे गलत हो सकती है। लेकिन वो गुलाबी कमीज वाला...।
अगले ही पल जगमोहन की आंखें फैलती चली गईं।
वो-वो। वो ही था। गुलाबी कमीज वाला। वैसा ही हैलमेट पहने हुए था। मस्तिष्क ने इसी की तो छवि देखी थी। अभी-अभी वो मोटरसाइकिल पर सवार हुआ रेड लाइट पर आ रुका था। उसके आगे दो कारें थीं। दाईं तरफ एक कार थी। बाईं तरफ सड़क के बीच का फुटपाथ था। वो फुटपाथ के पास था। उसके पीछे की तरफ अभी तक कोई वाहन नहीं आया था।
एक्सीडेंट होने वाला है। जगमोहन के मस्तिष्क में कौंधा।।
अगले ही पल जगमोहन तेजी से उसकी तरफ दौड़ा। रुके वाहनों के बीच में से होता उसके पास जा पहुंचा और उसका कंधा पकड़कर, ऊंचे स्वर में उससे कह उठा।
“सुनो, तुम्हारा एक्सीडेंट होने वाला है।” “पागल हो तुम क्या?” हैलमेट पहने युवक ने उसे देखा।
“मैं सच कह रहा हूं।” जगमोहन चीखा–“पीछे से तेज रफ्तार से आती कार तुम्हें टक्कर मारेगी और तुम डिवाडर के पार सड़क पर गिरोगे और तुम्हारे ऊपर से कार निकलेगी। ये होने वाला है।”
“तुम कोई ठग हो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला ।” ।
“मेरी बात मानो और यहां से हट जाओ।” जगमोहन का स्वर गुस्से से भर गया। । पास में मौजूद कार का ड्राइवर हंसकर कह उठा।
“तुम तो ऐसे बता रहे हो, जैसे सब कुछ पहले ही अपनी आंखों | से देख चुके हो।” । “हां-मैंने देखा है।” जगमोहन तेज स्वर में बोला–“तभी तो
कहा है कि...।”
“चलो जाओ यहां से।” मोटरसाइकिल पर सवार युवक कह उठा।
“मेरी बात का यकीन करो, ये सब अभी होने वाला है।” जगमोहन की आवाज में गुस्सा आ गया।
बकवास मत करो।” जगमोहन का खून खौल उठा। तभी जगमोहन के कानों में एक फुसफुसाहट पड़ी।
“तुम क्यों मेरा खेल खराब कर रहे हो?" जगमोहन ने चिहुंककर आस-पास देखा। परंतु कोई न दिखा।
कौन है?” जगमोहन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला। मोटरसाइकिल वाला, कार ड्राइवर हैरानी से जगमोहन को देखने लगे।
“पागल है सच में, ये तो।” कार सवार कह उठा। । “सुन लिया।” वो फुसफुसाहट पुनः जगमोहन के कानों में पड़ी—“ये तुझे पागल कह रहे हैं।”
कौन हो तुम?”
“मैं...। मैं तो पोतेबाबा हूं।”
कुछ नहीं हुआ। मैं पागल हो गया था। तू पैसा भिजवा जल्दी ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया।
फोन जेब में डाला। चेहरे पर उलझन नाच रही थी।
और यही वो पल था कि उसके मस्तिष्क में पुनः तूफान उठ खड़ा हुआ।
बिजलियां-सी चमकी दिमाग में और आंखें बंद होती चली गईं। परंतु इस बार उसके सिर की हालत पहले से बेहतर रही। मस्तिष्क में बहुत बड़ा चौराहा चमका। ट्रैफिक आ-जा रहा था। नेताजी सुभाष मार्ग का बोर्ड लगा दिखा, जिसके पास ही घना पेड़ था। वहां रेड लाइट पर रुका ट्रैफिक दिखा। एक युवक मोटरसाइकिल पर हैलमेट पहने दिखा, वो ग्रीन लाइट होने का इंतजार कर रहा था। उसने गुलाबी कमीज पहनी थी। तभी पीछे से एक तेज रफ्तार से कार आई और वेग के साथ उस युवक की मोटरसाइकिल से टकराई। टक्कर इतनी जबर्दस्त थी कि युवक मोटरसाइकिल छोड़कर डिवाइडर के पार उछलकर गिरा और वहां जाती कार युवक के ऊपर चढ़ती चली गई।
उसी पल जगमोहन की आंखें खुल गईं। वो गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। चेहरे पर गहरी उलझन के भाव थे।
'नेताजी सुभाष मार्ग का चौराहा।' जगमोहन बड़बड़ा उठा। इसके साथ ही उसने कार स्टार्ट की, बैक की और कार को बाहर ले जाता चला गया। उस पैसे का भी इंजार न किया जो रमजान भाई भेज रहा था।
जगमोहन की हालत अजीब-सी हो रही थी। दिमाग घूमा हुआ था। वो नहीं जानता था कि उसके साथ क्या हो रहा है, परंतु एक हादसे से ये तो उसे महसूस हो गया कि भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास उसे पहले हो रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अब भी ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा था। इस वक्त जगमोहन नेताजी सुभाष मार्ग के व्यस्त चौराहे पर, सड़क के पास फुटपाथ पर खड़ा था। कुछ दूरी पर उसे घने पेड़ की छाया में, नेताजी सुभाष मार्ग वाला वो बोर्ड लगा दिखाई दे रहा था, जो उसके मस्तिष्क में चमका था।
यही वो चौराहा था जो उसके मस्तिष्क में दिखाई दिया था।
वो ऐसी जगह खड़ा था, जहां पास ही रेड लाइट होने पर वाहन रुक रहे थे। उसकी बेचैन निगाह बार-बार रुकने वाले वाहनों पर जा रही थी, परंतु गुलाबी कमीज वाला मोटरसाइकिल सवार अभी तक उसे नहीं दिखा था। वो पता भी कर चुका था कि इस चौराहे पर कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ? परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ था।
कहीं ये सब उसका वहम तो नहीं? नहीं, वहम नहीं है। उसने सब कुछ तो मस्तिष्क में स्पष्ट देखा था।
पहली बार जब मस्तिष्क में युवती का एक्सीडेंट दिखा था तो, वो बात भी सही निकली थी फिर ये वाली बात कैसे गलत हो सकती है। लेकिन वो गुलाबी कमीज वाला...।
अगले ही पल जगमोहन की आंखें फैलती चली गईं।
वो-वो। वो ही था। गुलाबी कमीज वाला। वैसा ही हैलमेट पहने हुए था। मस्तिष्क ने इसी की तो छवि देखी थी। अभी-अभी वो मोटरसाइकिल पर सवार हुआ रेड लाइट पर आ रुका था। उसके आगे दो कारें थीं। दाईं तरफ एक कार थी। बाईं तरफ सड़क के बीच का फुटपाथ था। वो फुटपाथ के पास था। उसके पीछे की तरफ अभी तक कोई वाहन नहीं आया था।
एक्सीडेंट होने वाला है। जगमोहन के मस्तिष्क में कौंधा।।
अगले ही पल जगमोहन तेजी से उसकी तरफ दौड़ा। रुके वाहनों के बीच में से होता उसके पास जा पहुंचा और उसका कंधा पकड़कर, ऊंचे स्वर में उससे कह उठा।
“सुनो, तुम्हारा एक्सीडेंट होने वाला है।” “पागल हो तुम क्या?” हैलमेट पहने युवक ने उसे देखा।
“मैं सच कह रहा हूं।” जगमोहन चीखा–“पीछे से तेज रफ्तार से आती कार तुम्हें टक्कर मारेगी और तुम डिवाडर के पार सड़क पर गिरोगे और तुम्हारे ऊपर से कार निकलेगी। ये होने वाला है।”
“तुम कोई ठग हो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला ।” ।
“मेरी बात मानो और यहां से हट जाओ।” जगमोहन का स्वर गुस्से से भर गया। । पास में मौजूद कार का ड्राइवर हंसकर कह उठा।
“तुम तो ऐसे बता रहे हो, जैसे सब कुछ पहले ही अपनी आंखों | से देख चुके हो।” । “हां-मैंने देखा है।” जगमोहन तेज स्वर में बोला–“तभी तो
कहा है कि...।”
“चलो जाओ यहां से।” मोटरसाइकिल पर सवार युवक कह उठा।
“मेरी बात का यकीन करो, ये सब अभी होने वाला है।” जगमोहन की आवाज में गुस्सा आ गया।
बकवास मत करो।” जगमोहन का खून खौल उठा। तभी जगमोहन के कानों में एक फुसफुसाहट पड़ी।
“तुम क्यों मेरा खेल खराब कर रहे हो?" जगमोहन ने चिहुंककर आस-पास देखा। परंतु कोई न दिखा।
कौन है?” जगमोहन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला। मोटरसाइकिल वाला, कार ड्राइवर हैरानी से जगमोहन को देखने लगे।
“पागल है सच में, ये तो।” कार सवार कह उठा। । “सुन लिया।” वो फुसफुसाहट पुनः जगमोहन के कानों में पड़ी—“ये तुझे पागल कह रहे हैं।”
कौन हो तुम?”
“मैं...। मैं तो पोतेबाबा हूं।”