XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 2 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

पैसा नीचे भिजवा दे।” नीचे?” कार में हूँ मैं।” “परंतु हुआ क्या जो...” ।

कुछ नहीं हुआ। मैं पागल हो गया था। तू पैसा भिजवा जल्दी ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया।
फोन जेब में डाला। चेहरे पर उलझन नाच रही थी।

और यही वो पल था कि उसके मस्तिष्क में पुनः तूफान उठ खड़ा हुआ।

बिजलियां-सी चमकी दिमाग में और आंखें बंद होती चली गईं। परंतु इस बार उसके सिर की हालत पहले से बेहतर रही। मस्तिष्क में बहुत बड़ा चौराहा चमका। ट्रैफिक आ-जा रहा था। नेताजी सुभाष मार्ग का बोर्ड लगा दिखा, जिसके पास ही घना पेड़ था। वहां रेड लाइट पर रुका ट्रैफिक दिखा। एक युवक मोटरसाइकिल पर हैलमेट पहने दिखा, वो ग्रीन लाइट होने का इंतजार कर रहा था। उसने गुलाबी कमीज पहनी थी। तभी पीछे से एक तेज रफ्तार से कार आई और वेग के साथ उस युवक की मोटरसाइकिल से टकराई। टक्कर इतनी जबर्दस्त थी कि युवक मोटरसाइकिल छोड़कर डिवाइडर के पार उछलकर गिरा और वहां जाती कार युवक के ऊपर चढ़ती चली गई।

उसी पल जगमोहन की आंखें खुल गईं। वो गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। चेहरे पर गहरी उलझन के भाव थे।

'नेताजी सुभाष मार्ग का चौराहा।' जगमोहन बड़बड़ा उठा। इसके साथ ही उसने कार स्टार्ट की, बैक की और कार को बाहर ले जाता चला गया। उस पैसे का भी इंजार न किया जो रमजान भाई भेज रहा था।

जगमोहन की हालत अजीब-सी हो रही थी। दिमाग घूमा हुआ था। वो नहीं जानता था कि उसके साथ क्या हो रहा है, परंतु एक हादसे से ये तो उसे महसूस हो गया कि भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास उसे पहले हो रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अब भी ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा था। इस वक्त जगमोहन नेताजी सुभाष मार्ग के व्यस्त चौराहे पर, सड़क के पास फुटपाथ पर खड़ा था। कुछ दूरी पर उसे घने पेड़ की छाया में, नेताजी सुभाष मार्ग वाला वो बोर्ड लगा दिखाई दे रहा था, जो उसके मस्तिष्क में चमका था।
यही वो चौराहा था जो उसके मस्तिष्क में दिखाई दिया था।

वो ऐसी जगह खड़ा था, जहां पास ही रेड लाइट होने पर वाहन रुक रहे थे। उसकी बेचैन निगाह बार-बार रुकने वाले वाहनों पर जा रही थी, परंतु गुलाबी कमीज वाला मोटरसाइकिल सवार अभी तक उसे नहीं दिखा था। वो पता भी कर चुका था कि इस चौराहे पर कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ? परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ था।

कहीं ये सब उसका वहम तो नहीं? नहीं, वहम नहीं है। उसने सब कुछ तो मस्तिष्क में स्पष्ट देखा था।

पहली बार जब मस्तिष्क में युवती का एक्सीडेंट दिखा था तो, वो बात भी सही निकली थी फिर ये वाली बात कैसे गलत हो सकती है। लेकिन वो गुलाबी कमीज वाला...।
अगले ही पल जगमोहन की आंखें फैलती चली गईं।

वो-वो। वो ही था। गुलाबी कमीज वाला। वैसा ही हैलमेट पहने हुए था। मस्तिष्क ने इसी की तो छवि देखी थी। अभी-अभी वो मोटरसाइकिल पर सवार हुआ रेड लाइट पर आ रुका था। उसके आगे दो कारें थीं। दाईं तरफ एक कार थी। बाईं तरफ सड़क के बीच का फुटपाथ था। वो फुटपाथ के पास था। उसके पीछे की तरफ अभी तक कोई वाहन नहीं आया था।

एक्सीडेंट होने वाला है। जगमोहन के मस्तिष्क में कौंधा।।

अगले ही पल जगमोहन तेजी से उसकी तरफ दौड़ा। रुके वाहनों के बीच में से होता उसके पास जा पहुंचा और उसका कंधा पकड़कर, ऊंचे स्वर में उससे कह उठा।

“सुनो, तुम्हारा एक्सीडेंट होने वाला है।” “पागल हो तुम क्या?” हैलमेट पहने युवक ने उसे देखा।

“मैं सच कह रहा हूं।” जगमोहन चीखा–“पीछे से तेज रफ्तार से आती कार तुम्हें टक्कर मारेगी और तुम डिवाडर के पार सड़क पर गिरोगे और तुम्हारे ऊपर से कार निकलेगी। ये होने वाला है।”

“तुम कोई ठग हो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला ।” ।

“मेरी बात मानो और यहां से हट जाओ।” जगमोहन का स्वर गुस्से से भर गया। । पास में मौजूद कार का ड्राइवर हंसकर कह उठा।

“तुम तो ऐसे बता रहे हो, जैसे सब कुछ पहले ही अपनी आंखों | से देख चुके हो।” । “हां-मैंने देखा है।” जगमोहन तेज स्वर में बोला–“तभी तो
कहा है कि...।”

“चलो जाओ यहां से।” मोटरसाइकिल पर सवार युवक कह उठा।

“मेरी बात का यकीन करो, ये सब अभी होने वाला है।” जगमोहन की आवाज में गुस्सा आ गया।

बकवास मत करो।” जगमोहन का खून खौल उठा। तभी जगमोहन के कानों में एक फुसफुसाहट पड़ी।

“तुम क्यों मेरा खेल खराब कर रहे हो?" जगमोहन ने चिहुंककर आस-पास देखा। परंतु कोई न दिखा।

कौन है?” जगमोहन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला। मोटरसाइकिल वाला, कार ड्राइवर हैरानी से जगमोहन को देखने लगे।

“पागल है सच में, ये तो।” कार सवार कह उठा। । “सुन लिया।” वो फुसफुसाहट पुनः जगमोहन के कानों में पड़ी—“ये तुझे पागल कह रहे हैं।”

कौन हो तुम?”

“मैं...। मैं तो पोतेबाबा हूं।”
 
पोतेबाबा? कौन पोतेबाबा?” “जथूरा का सेवक ।” ।

मैं नहीं जानता जथूरा को ।” जगमोहन गुस्से से कह उठा। कानों में कोई हंसा। जगमोहन होंठ भींचे युवक से पुनः कह उठा।
हट जाओ यहां से। तुम मरने वाले हो। रेड लाइट अभी पार कर जाओ मेरी बात...।” ।

“चले जाओ पागल इंसान।” वो युवक गुस्से से कह उठा।

तुम मेरी बात मानते क्यों...।” अगले ही पल जगमोहन की आंखें फैल गईं। वो पीछे देख रहा था।
पीछे, वो ही कार तेजी से बढ़ी चली आ रही थी, जो उसके मस्तिष्क में दिखी थी।

वो आ गई। वो ही कार ।” जगमोहन के होंठों से निकला। युवक ने भी पीछे देखा। जगमोहन तेजी से पीछे हटता चिल्लाया।

“मोटरसाइकिल छोड़कर पीछे हट जाओ। तुम्हारा बुरा एक्सीडेंट होने वाला है।”

युवक वहीं, मोटरसाइकिल पर बैठा रहा। पास आने पर भी उस कार की रफ्तार कम नहीं हुई थी।

जगमोहन वहां से हटकर वापस फुटपाथ पर चढ़ आया। वो परेशान-सा कार को देख रहा था। उसने युवक को देखा जो मोटरसाइकिल पर बैठा, पीछे आती कार को देख रहा था।

“हमारे तैयार किए हादसों को रोक पाना आसान नहीं होता।” वो ही फुसफुसाहट पुनः जगमोहन के कानों में पड़ी।

जगमोहन की निगाह पुनः आस-पास घूमी। कोई न दिखा।

उसकी निगाह पुनः कार पर जा टिकी । आंखें फैल चुकी थीं जगमोहन की।

ठीक तभी वो कार रफ्तार से मोटरसाइकिल से जा टकराई।

जगमोहन की आंखों ने वो ही देखा जो उसका मस्तिष्क पहले देख चुका था।

टक्कर लगते ही युवक का शरीर जोरों से उछला और मोटरसाइकिल छोड़कर पास के डिवाइडर को फलांग कर दूसरी तरफ सड़क पर जा गिरा कि तभी सामने से आती कार उसके ऊपर चढ़ती चली गई।

जगमोहन ने आंखें बंद कर लीं। जो बुरी घटना को रोकना चाहता था वो ही घट गई थी।

जगमोहन ठगा-सा खड़ा उधर ही देखता रहा। आगे बढ़ने की | चेष्टा न की। यहीं से उसे युवक का कुचला शरीर नजर आ रहा

था। जगमोहन ने गहरी सांस लेकर आंखें खोली और थके से अंदाज में उस तरफ बढ़ गया, जहां उसने कार खड़ी की थी। एक्सीडेंट रोज ही होते थे। रोज ही लोग मरते थे, परंतु जगमोहन के लिए दुख की बात ये थी कि होने वाली घटना का उसे पहले पता चल रहा था, परंतु वो चाहकर भी वक्त रहते, बुरी घटना को बचा न
पा रहा था।

पहले उस युवती ने भी उसकी बात नहीं मानी।

अब उस युवक ने भी उसकी बात नहीं मानी थी। | इसी बात का दुख हो रहा था जगमोहन को।
 
उखड़े मन से जगमोहन अपनी कार में जा बैठा। मस्तिष्क में उथल-पुथल मची हुई थी कि आखिर उसके साथ ये सब क्या हो रहा है? क्यों उसे पहले ही, होने वाले हादसों का आभास होने लगा है? ।
परंतु इस बात का जवाब उसके पास नहीं था।

मन दुखी था कि सब कुछ पहले पता होते हुए भी वो उस युवती और उस युवक की जान नहीं बचा पाया। परंतु इसमें उसका भी दोष नहीं था। उन्होंने उसकी बात मानी होती तो, वो अवश्य बच गए होते।

जगमोहन कार स्टार्ट करने लगा कि उसी पल उसके कानों में फुसफुसाहट पड़ी।

कर ली तूने अपनी?” जगमोहन चिहुंका।।

युवक की मौत के साथ ही इस रहस्यमय आवाज को तो बिल्कुल ही भूल गया था।

जगमोहन ने कार में निगाह मारी। परंतु दिखा कोई भी नहीं। । “मुझे ढूंढ रहा है?” वो आवाज पुनः उसके कानों में पड़ी—“मैं तेरे पास, आगे वाली सीट पर बैठा हूं। पहले ही आकर बैठ गया था, क्योंकि मैं जानता था कि अब तू वापस कार में ही आएगा।”

जगमोहन ने सीट पर निगाहे मारी। लेकिन वो खाली नजर आई।

मैं तेरे को नजर नहीं आऊंगा। क्योंकि मैंने अदृश्य होने की दवा खा रखी है।” वो आवाज पुनः सुनाई दी।

“तू है कौन?” जगमोहन के माथे पर बल पड़ गए थे। “पोतेबाबा ।”

मैं तेरे को नहीं जानता।” । बताया तो मैं जथूरा का सेवक हूं।” “मैं जथूरा को नहीं जानता।” जगमोहन ने कहा। “वो मेरा मालिक है।” “सामने आकर बात कर ।” जगमोहन के होंठ भिंच गए। “नहीं आ सकता।”

क्यों?” “तू मुझे देख सके, इसके लिए मुझे चांदी के कलश में रखी दवा खानी होगी।”

चांदी के कलश में रखी दवा?” “हां। वहां पर चांदी और सोने के कलश रखे हुए हैं। सोने के कलश में रखी दवा खाने से, इंसान अदृश्य हो जाता है और चांदी के कलश में रखी दवा खाने से, उसकी अदृश्यता समाप्त हो जाती है, वो पुनः दिखने लगता है। अब तो दोनों दवाएं खत्म होने वाली हैं। दोबारा बनवाऊंगा वापस जाकर ।” जगमोहन के कानों में पड़ने वाली आवाज शांत और सामान्य थी। जैसे दोस्ती में बात चल रही हो।

“तेरी बात सुनकर मुझे हैरानी हुई।”

मेरे लिए ये सब साधारण बातें हैं।” “तू मेरे पास क्यों आया?”

तेरे भले के लिए।” कैसा भला?”

जथूरा के कामों में अड़चन मत बन। वरना बुरा भुगतेगा।” अब उस आवाज में धमकी का पूट आ गया था।

जगमोहन के चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे।
 
मैं जथूरा को नहीं जानता और फिर मैंने क्या किया है?” “तूने उन हादसों को रोकने की चेष्टा की?”

हां की।”

ये ही हमारे कामों में अड़चन डालना है। तू जथूरा के कामों को रोकने की चेष्टा कर रहा है।”

मैं समझा नहीं ।” जगमोहन भारी तौर पर उलझन में दिखने लगा।

जथूरा हादसों का देवता है। तुम्हारी दुनिया में होने वाले बुरे एक्सीडेंट को जथूरा ही तो तैयार करता है।”

“हमारी दुनिया में?” जगमोहन ने अजीब-से स्वर में पूछा-“तुम कौन-सी दुनिया से हो?”

चंद पल कार में गहरी खामोशी रही।

कहां हो तुम?” जगमोहन बोला।

यहीं हूं।” पास वाली सीट से आवाज आई।

जवाब दो, तुम किस दुनिया की बात कर रहे हो?” ।

मैंने तो सोचा था जग्गू कि तूने मुझे पहचान लिया होगा।”

“जग्गू?” जगमोहन चिहुंक उठा। क्योंकि ये उसके पूर्वजन्म का नाम था।

हैरान हो गए।” “त...तुम पूर्वजन्म से हो?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। अब तूने ठीक पहचाना। मैं पूर्वजन्म की दुनिया से वास्ता रखता हूं। तब दुनिया का काफी बड़ा हिस्सा जमीन में धंस कर बच गया था और वहां भी जीवन था। हम सब बच गए और अपने कामों में लगे रहे। इस दुनिया में आने का रास्ता हमने तैयार कर लिया, तेरे को मेरी याद आई क्या?”

नहीं ।” जथूरा को तो न भूला होगा?

” मुझे याद नहीं वो ।”

“वक्त आने पर सब याद आ जाएगा तुझे जग्गू। मेरा तो ये कहना है कि तू जथूरा के रास्तों में मत आ। इस दुनिया में होने वाले हादसों को जथूरा ही तैयार करता है और तू उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा है।”

अब जगमोहन कुछ समझा।

जथूरा हमारी दुनिया में हादसे क्यों करवाता है?”

क्या करे वो, वो भी मजबूर है। हादसों का देवता है वो तो हादसों को ही जन्म देगा।”

“मेरे को कैसे पता चल जाता है कि कोई हादसा होने वाला है?”

जथूरा की दुश्मन शक्ति होगी कोई, जो भविष्य की तस्वीर | तुझे दिखाकर, हादसों को रुकवाने की चेष्टा कर रही होगी।”

“उसने मुझे ही क्यों चुना?”

“तेरे को इस लायक समझा होगा उस शक्ति ने, लेकिन वो बेवकूफ है।”

क्यों?" ।

जथूरा से कोई टक्कर नहीं ले सकता। ये ही बात तेरे को समझाने आया हूं। जथूरा के रास्ते से हट जा ।”

“तू पूर्वजन्म से आया है?”

हां ।”

“जथूरा इस वक्त कहां है?"

पूर्वजन्म की दुनिया में। वो भला इस दुनिया में क्यों आएगा। उसके तो हजारों सेवक हैं, हर काम करने को ।”

जगमोहन खुद को अजीब-सी स्थिति में महसूस कर रहा था।
 
सबसे ज्यादा कंपा देने वाली बात तो ये थी कि वो पुनः पूर्वजन्म के मामलों में उलझ बैठा था। तो क्या एक बार फिर पूर्वजन्म की दुनिया का सफर शुरू होने वाला है? ।

किस सोच में पड़े गया तू?”

“मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा।”
तेरा दिमाग जो भी देखे, उसे तूने रोकने की कोशिश नहीं करनी है।” ।

जरूरी तो नहीं कि मैं तेरी बात मानूं।” ।

जरूरी है। नहीं मानेगा तो बुरा भुगतेगा।” इस बार आवाज में ककर्शता आ गई थी।

“तू मुझे धमकी देता है।”

“हम जो कहते हैं वो करके दिखाने की भी हिम्मत रखते हैं।” पोतेबाबा की आवाज में कठोरता आ गई थी—“जो भी हमारा खेल खराब करने की कोशिश करेगा, भुगतेगा।”

मुझे ऐसी धमकियां सुनने की आदत नहीं है।” । “बेवकूफ इंसान, तेरा जीना मुहाल हो जाएगा अगर तू जथूरा के रास्ते में आया। मत भूल कि जथूरा एक्सीडेंट का देवता है। वो कहीं भी तेरे साथ हादसा पेश करके तेरी जान ले लेगा। जथूरा अमर है। असीमित ताकत है उसके पास। उसे अपने देवता का आशीर्वाद प्राप्त है। कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता। उसने बड़ी-से-बड़ी विद्या ग्रहण कर रखी है। तू उसके बाल बराबर भी नहीं है।”

जगमोहन खामोश रहा।

“अपने काम से मतलब रखो। जो हादसा भी तेरे दिमाग में आए, उसे भूल जा। जथूरा ने मुझे भेजा है कि तुझे सावधान कर

" “वो मुझे सावधान क्यों कर रहा है?" ।

“क्योंकि जथूरा पर, तेरा एहसान है। इसलिए वो सीधे-सीधे तेरी जान नहीं लेना चाहता ।” पोतेबाबा की आवाज सुनाई दी।

“कैसा एहसान?” ।

ये तो मैं भी नहीं जानता, जथूरा ने मुझे जो कहा, वो तेरे को बता दिया। संभल जा, वक्त अभी हाथ में है।”
जगमोहन चुप रहा। सोचों में गुम रहा।

तभी बगल वाली सीट का दरवाजा खुला, चंद पलों बाद दरवाजा बंद हो गया।

“जा रहा हूँ मैं ।” इस बार पोतेबाबा की आवाज दूर से आई–“अब जथूरा के रास्ते में कभी न आना ।”

उसके बाद कोई आवाज नहीं आई। जगमोहन ठगा-सा बैठा, उसी दरवाजे को देखे जा रहा था।

मस्तिष्क में एक साथ इतने विचार इकट्ठे हो गए थे कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या सोच रहा है। जथूरा, पोतेबाबा । होने वाले हादसों का उसे पहले ही आभास हो जाना। ये सब क्या हो रहा है उसके साथ? कभी-कभी तो उसे लगता कि वो सपने से बाहर निकला है। सब ठीक है। जैसे कुछ भी नहीं हुआ।

लेकिन उथल-पुथल मच चुकी थी। उसके साथ जो भी हो रहा है, वो सपना नहीं, हकीकत है। तभी जगमोहन चौंका। उसका फोन बजने लगा था।

हैलो ।” जगमोहन ने फोन निकालकर बात की। “क्या हो गया है तुझे?” रमजान भाई की आवाज कानों में पड़ी—“किशन पैसा लेकर नीचे पहुंचा तो तू वहां नहीं मिला?”

जगमोहन ने गहरी सांस ली। “सब ठीक तो है?” रमजान भाई की आवाज कानों में पड़ी।

“हां, ठीक ही है। पैसा मैं एक-दो दिन में फिर किसी वक्त ले लूंगा।”

“तू ठिकाना बता, किशन वहीं पहुंचा देता...।”
 
संभाल के रख। मैं ले जाऊंगा।”
जगमोहन बंगले पर पहुंचा।
वो देवराज चौहान को जल्द-से-जल्द आपबीती बताना चाहता था। मन में व्याकुलता दूंस-ठूसकर भरी हुई थी। परंतु मुख्य द्वार बंद मिला। स्पष्ट था कि देवराज चौहान बंगले पर नहीं था। जगमोहन ने गहरी सांस ली और पास ही रखे गमलों की कतार पर नजरें गईं। वो आगे बढ़ा और एक खास गमले के नीचे रखी चाबी निकाली और मुख्य दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया। मन में, जगमोहन का अजीब-सा हाल हो रहा था इस वक्त।

देवराज चौहान मौजूद नहीं था कि उसे सब कुछ बताकर मन को हल्का कर सके। उसने देवराज चौहान को फोन किया।

कहो।” उधर से देवराज चौहान की आवाज आई। मैं रमजान भाई के पास...।” पेमेंट दी उसने?” हां...वो...।” “कोई परेशानी तो नहीं हुई?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा। “नहीं हुई। रमजान भाई की तरफ से कोई समस्या नहीं आई–मैं...।”

जल्दी में हूं, तुम्हें फिर फोन करूंगा।” “सुनो तो...।” जगमोहन ने कहना चाहा। परंतु उधर से देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।

जगमोहन मन-ही-मन और उखड़ गया कि देवराज चौहान ने उसकी बात नहीं सुनी। परंतु ये भी जानता था कि देवराज चौहान इस वक्त कहीं फंसा होगा, तभी उससे ज्यादा बात नहीं कर पाया।

जगमोहन कुर्सी पर आ बैठा और बीती सारी बातें याद करने लगा।
पोतेबाबा। जथूरा।
और वो कौन है जो उसे पहले ही, होने वाले हादसों का आभास करा देता है?
पोतेबाबा ने कहा था कि वो जथूरा की कोई दुश्मन शक्ति होगी।

परंतु वो शक्ति उससे क्या चाहती है? | जगमोहन उठा और किचन में जा पहुंचा। इन सब बातों ने उसका दिमाग खराब कर दिया था। उसने चाय बनाई और इन बातों को अपने से दूर करने की चेष्टा की, परंतु सफल नहीं हो सका। सब कुछ उसे अजीब-सा लग रहा था। कभी उसे यकीन होता तो कभी उस यकीन पर अविश्वास की छाया मंडराने लगती।
उसने चाय समाप्त की। वक्त देखा। शाम के साढे चार बज रहे थे। कुछ आराम करने की सोची। वो चाहता था कि घंटा भर नींद आ जाए, ताकि जब नींद से उठे तो दिमाग हल्का हो उसका। बेडरूम में पहुंचा। जूते उतारे और बेड पर जा लेटा। कपड़े चेंज करने के बारे में सोचा भी नहीं।
आंखें बंद कर लीं।

परंतु दिमाग में चैन कहां। सब कुछ सोचों के तौर पर, उसके दिमाग में गुडमुड़ हो रहा था।
वो परेशान हो उठा कि उसे चैन क्यों नहीं मिल रहा? तभी पुनः बिजलियां-सी कौंधीं उसके दिमाग में। आंखें पहले से ही बंद थीं।

जगमोहन की छठी इंद्री को संकेत मिल गया था कि फिर उसका मस्तिष्क कुछ देखने जा रहा है।

अगले ही पल उसके मस्तिष्क ने ‘मीरा नाइट क्लब' का साइन बोर्ड चमकते देखा। उसके बाद उसे बड़ी-सी घड़ी दिखी, जिसमें रात के 11.30 बज रहे थे। क्लब में काफी लोग दिखे। फिर उसके मस्तिष्क में बार काउंटर के पास खड़ा एक व्यक्ति दिखा। उसने रिवॉल्वर निकाली, देखी, फिर उसे वापस जेब में रखा और पलटकर तेजी से क्लब के बाहर की तरफ बढ़ गया। उसके बाद जगमोहन के मस्तिष्क ने बोरीवली की एक सड़क देखी, जिस पर फ्लैट बने हुए थे। उस व्यक्ति को उसने कार से बाहर निकलते देखा। सामने ही फ्लैटों के नम्बर, 144, 145, 146 लिखे दिखे। फिर वो आदमी 146 नम्बर के फ्लैट की बेल बजाता दिखा। दरवाजा खोलने वाली औरत थी, वो उसे देखते ही बोली “आज आपने बहुत देर लगा दी' जवाब में आदमी ने जेब से रिवॉल्वर निकालते हुए कहा–'तू मेरी वफादार नहीं। जिस बच्चे को तूने पैदा किया है, वो मेरा नहीं है। औरत हैरानी से कह उठी-‘ये आप क्या कह...।' और उस आदमी ने उस पर गोली चला दी। वो नीचे जा गिरी। आदमी भीतर गया और एक बेड पर सोए छोटे से बच्चे को गोलियों से भून दिया।

जगमोहन की आंखें खुल गईं। हड़बड़ाकर वो उठ बैठा।। उसकी सांसें तेजी से चल रही थीं। अजीब-से ढंग से वो सामने की दीवार को देखे जा रहा था।
 
मीरा नाइट क्लब। रात 11.30 बजे। जगमोहन बडबड़ा उठा–‘वो...वो आदमी वहां से बोरीवली के फ्लैट पर जाएगा और अपनी पत्नी व बच्चे को गोली से मार देगा।

जगमोहन कुछ पल चुप रहा।

नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। क्या करूं, क्या उस औरत को पहले से ही आगाह कर दें कि आज रात उसका पति उसे गोली मार देगा?' जगमोहन बड़बड़ाया नहीं, ऐसा करने का कोई फायदा नहीं । वो औरत उसकी बातों पर यकीन नहीं करेगी। पहले कौन-सा उस युवती या उस मोटरसाइकिल वाले युवक ने उसकी बातों पर यकीन किया था। सबने उसे ही पागल समझा। वो औरत भी उसे पागल ही कहेगी...तो क्या करे?”

जगमोहन बेड से उतरा और कमरे में चहलकदमी करने लगा।
उसने मन-ही-मन सोचा कि क्यों न वो खामोशी से बैठ जाए, जो होता है होता रहे। लेकिन उसके मन को ये बात जंची नहीं। कुछ बुरा होने वाला था और उसे पहले ही मालूम हो गया था तो उसे उस हादसे को रोकना चाहिए, ये उसका इंसानी फर्ज बनता था। परंतु कैसे...कैसे करे...कैसे रोके?

जगमोहन देर तक इसी चिंता में घुलता रहा।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 
मीरा नाइट क्लब।। रात के 10.45 बजे।

जगमोहन ने कार को क्लब की पार्किंग में खड़ा किया और भीतर प्रवेश कर गया।

क्लब में शाम की रौनक जवान थी। तेज प्रकाश ने वहां दिन का उजाला कर रखा था। जगमोहन क्लब के उस हिस्से में पहुंचा जहां बार था। वो काफी बड़ा हाल था। एक तरफ फ्लोर पर बैंड का इंतजाम था। मध्यम-सा मीठा म्यूजिक चल रहा था। दो जोड़े वहां पर थिरक रहे थे। टेबल के पास लगी कुर्सियों पर पचास से ज्यादा लोग व्हिस्की का मजा ले रहे थे। सौ के करीब लोग दीवारों के साथ रखे ऊंचे स्टूलों पर बैठे थे या गिलास थामे खड़े बातें कर रहे थे। छत और दीवारें सजावट से भरी हुई थीं। हर तरफ रंगीन और मजा लेने वाला माहौल था।

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। वो उस चेहरे को तलाशने की चेष्टा कर रहा था जिसे उसके मस्तिष्क ने देखा था। परंतु इतनी भीड़ में जैसे उसे ढूंढ़ पाना आसान नहीं था। | जगमोहन बार काउंटर पर पहुंचा। | उस स्टूल को देखा, जहां उसके दिमाग ने उस व्यक्ति को बैठे देखा था।

जगमोहन उस खाली स्टूल के बगल वाले स्टूल पर बैठ गया। “यहां क्या करने आया है तू?” कानों में पोतेबाबा की फुसफुसाहट पड़ी।
| जगमोहन ने गहरी सांस लेकर आसपास नजर घुमाई।
“तू जानता है कि मैंने अदृश्य रहने वाली दवा खा रखी है, नजर नहीं आऊंगा।” पोतेबाबा का स्वर पुनः कानों में पड़ा।

जगमोहन ने बार काउंटर के उस तरफ मौजूद बार मैन से कहा।
लार्ज बियर ।”

पेमेंट सर। नियम के मुताबिक पेमेंट पहले ली जाती है, दो सौ पचास रुपये सर ।” ।

जगमोहन ने उसे पैसे दिए।
“बोल...बता, तू यहां क्यों आया है?” पोतेबाबा का स्वर पुनः कानों में पड़ा।

बियर पीने।” जगमोहन ने लापरवाही से कहा।

झूठ मत बोल।

” इसमें झूठ क्या है?” “मैं जानता हूं कि तू यहां क्यों आया है?”

बता, क्यों आया हूं?” “चालाक मत बने ।”

मेरा दिमाग खराब मत कर।” “जथूरा ने मुझे फिर से भेजा है तेरे पास कि तेरे को फिर समझाऊं। तू सुधरेगा नहीं जग्गू?”

“मेरा दिमाग मत खा। चला जा यहां से ।” जगमोहन ने बुरा-सा मुंह बनाया। । तभी बार मैन ने बियर का मग जगमोहन के सामने रख दिया।
जगमोहन ने मग उठाकर घूट भरा।

“तू मुझसे इस तरह बात मत कर। पोतेबाबा से कोई भी इस तरह बात नहीं करता।”

चला जा यहां से?" । “मैं तेरे को चेताने आया हूं कि मना करने के बाद भी तू फिर जथूरा के मामले में दखल दे रहा है।”
मेरे को समझाना छोड़ दे तू।” तेरा भला है इसमें ।”

मैं जानता हूं कि मेरा भला किसमें है।” जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा-“मैं तेरी बातों की परवाह नहीं करता।”

तो तू नहीं मानेगा?” नहीं ।” “जथूरा से कह दूं तेरी बात?” “कह दे। मैं उससे डरता नहीं ।” पोतेबाबा की आवाज नहीं आई।
 
जगमोहन ने पुनः बियर का पूंट भरा और वहीं से हाल में मौजूद लोगों पर नजरें दौड़ाईं।

किसे ढूंढ़ रहा है?” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी।

अपने दोस्त को।” ।

“चालाक मत बन। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू यहां क्यों आया है। इस बार पोतेबाबा की आवाज में गुस्सा था।

जानता है तो मेरा क्या कर लेगा?”

जथूरा ने मना किया है तेरे को कुछ कहने को, वरना तेरा दिमाग मैं अभी ठीक कर देता।”

जो खुद दूसरों को न दिखता हो, वो मेरा क्या बिगाड़ पाएगा।” जगमोहन बोला।

“भूल में है तू। मैं इस वक्त नजर नहीं आ रहा। वैसे मैं अभी भी सब कुछ कर सकता हूं।”

“मैं तेरी बातों से डरने वाला नहीं ।”

तभी एक व्यक्ति बार काउंटर पर पहुंचा और पैग बनाने के लिए कहा। उसके हाथ में सिगरेट थमी थी। उसने कश लिया और धुआं छोड़ा। वो ढेर सारा धुआं जगमोहन की तरफ ही आया।

जगमोहन के सामने से निकला वो ढेर-सा धुआं। अगले ही पल जगमोहन चौंका। उसकी आंखें सिकुड़ीं।

धुएं के बीच उसे चेहरे की आकृति महसूस हुई। कंधे भी दिखे। वो चौड़े कंधे वाले बूढ़े की आकृति थी। जिसके सिर के बाल पीछे की तरफ थे और चेहरे पर छाती तक जाती दाढ़ी थी। उसकी आंखें चमकदार थीं। गले में मालाएं पहनी थीं और कानों में कुंडल। वो एक प्रभावशाली व्यक्तित्त्व-भरा चेहरा था।

तभी धुआं वहां से आगे सरक गया। वो आकृति लुप्त हो गई।

“तूने मुझे देख ही लिया।” पोतेबाबा की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

तो तू धुएं में नजर आता है?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े। ।

“हां, धुएं में मेरी आकृति नजर आने लगती है। धुएं में अदृश्यता लुप्त हो जाती है।”
जगमोहन ने बियर का चूंट भरा।

“मेरी सलाह मान ले । जथूरा के रास्ते में मत आ ।” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी।

मैं किसी के रास्ते में नहीं आ रहा । अपना काम कर रहा हूं मैं।”

तू जथूरा का काम बिगाड़ने की चेष्टा में है। पहले भी तू दो बार कोशिश कर चुका है। लेकिन सफल नहीं हुआ।”

“अब सफल हो जाऊंगा।” जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।

तो ये बात है, तू नहीं मानेगा?

” नहीं ।”

जथूरा नाराज हो गया तो वो तेरे लिए भी कोई हादसा तैयार कर देगा।” इस बार पोतेबाबा की आवाज़ में धमकी थी।
 
“मैं जथूरा की परवाह नहीं करता।”

जाता हूं, अब जो होगा, उसका जिम्मेवार तू ही होगा।” उसके बाद पोतेबाबा की आवाज नहीं आई।

जगमोहन की नजरें वहां नजर आ रहे व्यक्तियों के चेहरों पर फिर रही थीं, वो उस व्यक्ति को ढूंढ़ रहा था, जिसका चेहरा उसके मस्तिष्क ने देखी थी। जिसके लिए वो यहां आया था। तभी उसकी निगाह बार काउंटर के पीछे वाली दीवार पर पड़ी, जहां पर बड़ी सी वो ही वाल क्लॉक लगी हुई थी, जो उसके मस्तिष्क ने पहले ही देखी थी। उस घड़ी पर इस वक्त 11.15 हो रहे थे। अजीब बातें हो रहीं थीं उसके साथ।

अदृश्य पोतेबाबा जाने कैसी रहस्यमय ताकत था, धुएं में जिसकी आकृति नजर आने लगती थी। वो उस पर नजर रख रहा था। वो यहां आया तो पोतेबाबा भी उसके पास आ पहुंचा। वो चाहता था कि वो इन कामों में दखल न दे। होने वाले हादसे को रोकने की चेष्टा न करे।

जथूरा! ये सब उसकी पूर्वजन्म की दुनिया में से थे।

जगमोहन ये सोचकर सिहर-सा उठा कि क्या ये सब बातें पुनः उसके पूर्वजन्म में जाने की तैयारी के लिए हो रही हैं? परंतु वो अकेला तो कभी नहीं गया, पूर्वजन्म में । हमेशा देवराज चौहान के साथ गया। मोना चौधरी भी तब पूर्व जन्म के रास्तों पर ही मिलती थी। बाकी लोग भी तो होते थे। फिर इस बार वो ही क्यों? इसका जवाब जगमोहन के पास नहीं था। जगमोहन ने पुनः घड़ी को देखा। 11.20 हो चुके थे। उसे घड़ी में तब 11.30 का हुआ वक्त दिखा था। परेशान-से जगमोहन ने हर तरफ निगाहें घुमाईं। अगले ही पल जगमोहन का दिल धड़का। आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

वो ही व्यक्ति जिसे उसका मस्तिष्क पहले देख चुका था, आ रहा था इस तरफ।

जगमोहन उसे देखता रह गया। उस व्यक्ति के चेहरे पर गम्भीरता और क्रोध नजर आ रहा था। वो उसके पास वाले स्टूल पर आ बैठा और हजार का नोट बार टैंडर की तरफ बढ़ाता बोला।
“लार्ज पैग, बढ़िया ब्रांड का ।”

जगमोहन ने महसूस किया कि उसने पहले भी पी रखी है। | इस वक्त जगमोहन का दिमाग तेजी से काम कर रहा था। ये व्यक्ति अब यहां से सीधा अपने घर जाएगा और अपनी पत्नी और बच्चे को शूट कर देगा।

लेकिन जगमोहन इस हादसे को होने से रोकना चाहता था। उस औरत और बच्चे की जिंदगी बचाना चाहता था।

हैलो ।” एकाएक जगमोहन ने कहा।

उस व्यक्ति ने जगमोहन को देखा।

“आपका पैग।”

उस व्यक्ति ने नजरें घुमाईं तो बार मैन को तैयार गिलास रखते पाया। उसने गिलास उठाया और एक ही सांस में खत्म करके पुनः बार मैन से कह उठा।
“एक और।” साथ ही उसने हजार का नोट खाली गिलास के | नीचे रख दिया।

। “लोग मुझे पालकी वाला के नाम से जानते हैं।” जगमोहन बोला–“मैं भविष्यज्ञाता हूं
।”
“तो?” उसने बेमन से कहा।

“मैं लोगों के चेहरों का हाल देखकर, उनका भविष्य और भूतकाल बता सकता हूं।”

बकवास है।” नशे में उसकी आवाज भारी हो रही थी।

“आजमा लो।” जगमोहन सतर्कता से उससे बात कर रहा था।

कैसे?”

मैं तुम्हारे बारे में कई बातें बता सकता हूं।” ।
 
Back
Top