XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 15 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

कॉलबेल की आवाज फ्लैट में गूंजी।
पारसनाथ ने उसी पल आंखें खोलीं । वो कुर्सी पर बैठा हुआ था। मोना चौधरी सामने सोफे पर लेटी हुई थी, वो भी उठ बैठी। पारसनाथ से नजरें मिलीं।।
। “उठो और बाथरूम या दूसरे कमरे में चली जाओ।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।।

“मोना चौधरी मैं हूं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मेरे लिए वो भी मोना चौधरी है और तुम भी।” पारसनाथ का स्वर सख्त हो गया। मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा फिर टेबल पर रखा अपना मोबाइल उठाते हुए दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई। पारसनाथ उसे तब तक देखता रहा, जब तक वो निगाहों से ओझल न हो गई। तभी बेल पुनः बजी।

पारसनाथ उठा और आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

सामने मोना चौधरी खड़ी थी।

आओ मोना चौधरी ।” पारसनाथ ने शांत स्वर में कहा।

“तुमने दरवाजा कैसे खोल लिया ।” मोना चौधरी ने भीतर आते हुए कहा-“मैं तो बंद करके गई थी।”

पारसनाथ दरवाजा बंद करके पलटा।। मोना चौधरी कुर्सी पर बैठती कह उठी।
“बहुत थक गई।” उसने गहरी सांस ली–“परंतु हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। हमें इस मुद्दे पर बात करानी चाहिए।” एकाएक ही वो गम्भीर होती गई—“मैं अभी देवराज चौहान, जगमोहन, बांके और रुस्तम राव से...।” ।

“हमारी तब फोन पर बात हुई थी।” पारसनाथ की निगाह मोना चौधरी पर थी। ।

“हां, हुई थी।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा–“तुम दूसरी वाली मोना चौधरी से मिले?”

“नहीं।” पारसनाथ ने झूठ कहा-“राधा और सितारा ने उसे देखा ।”

और जगमोहन को किसने देखा?”

राधा ने। महाजन ने, मोना चौधरी ने।”

“वो जगमोहन महाजन को ले गया?”

“हां ।”
परंतु वो मोना चौधरी मैं नहीं थी ।” मोना चौधरी के दांत भिंच गए–“वो जगमोहन भी नहीं था। मेरी और जगमोहन की सूरत में वे दोनों बहरुपिए थे। शायद जथूरा के भेजे बहरुपिए। हमें पागल बना देना चाहता है जथूरा।”

“वो दोनों जथूरा के भेजे थे?” पारसनाथ ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।

तो और किसके भेजे होंगे वो तो...।”

“अगर वो दोनों जथूरा के बहरुपिए थे तो उन्होंने आपस में झगड़ा क्यों किया?” पारसनाथ बोला।

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। वो पारसनाथ को देखने लगी फिर बोली ।

“क्या कहना चाहते हो पारसनाथ?” ।

“वो मोना चौधरी, वो जगमोहन अगर जथूरा के भेजे थे तो उन्होंने आपस में झगड़ा क्यों किया?” |

मोना चौधरी के माथे पर बल नजर आने लगे। वो पारसनाथ को ही देख रही थी।

“तुम जगमोहन से मिली, वो देवराज चौहान, बांके और रुस्तम राव के पास था।”

हां था।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया। इसका मतलब वो असली जगमोहन था।

” सही कहा।” ।

“फिर तुम नकली मोना चौधरी होनी चाहिए।”

ये क्या कह रहे हो पारसनाथ?”
गलत क्या कह दिया मैंने। ये तो तुम भी मानती हो कि जथूरा के बनाए मोना चौधरी और जगमोहन आपस में नहीं लड़ सकते। वह लड़े तो उनमें एक तो असली होना चाहिए।” पारसनाथ शांत स्वर में कह उठा।

“तुम ठीक कहते हो पारसनाथ, परंतु मैं असली मोना चौधरी

| “ये बात तुम साबित नहीं कर सकती।”

“मैं मोना चौधरी हूं। इसमें साबित करने की क्या जरूरत है। तुम्हें क्या हो गया है पारसनाथ?”
 
तभी कमरे में छिपी खड़ी मोना चौधरी वहां आ पहुंची। दोनों मोना चौधरी की नजरें मिलीं। एक-दूसरे को देखा। पारसनाथ सतर्क नजर आने लगा था।

जरा भी फर्क नहीं ।” कमरे से निकलकर आने वाली मोना चौधरी कह उठी–“बिल्कुल मेरे जैसी।”

। “कौन हो तुम?” वहां पहले से खड़ी मोना चौधरी गुर्रा उठी।

“ये तुम बताओगी कि तुम कौन हो?” पारसनाथ फौरन कह उठा।

“तुम दोनों एक-दूसरे को देखकर दुविधा में हो तो, मेरी दुविधा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। मुझे नहीं मालूम कि तुम दोनों में असली मोना चौधरी कौन-सी है। इसलिए मैं बीच मैं नहीं आऊंगा। इस बात का फैसला तुम दोनों को ही करना होगा।” पारसनाथ गम्भीर था—“तुम दोनों के फैसले के दौरान, मेरा यहां रहना भी ठीक नहीं ।”

दोनों मोना चौधरी एक-दूसरे को खा जाने वाली निगाहों से देखी जा रही थीं।

मैं जा रहा हूं।” कहने के साथ ही पारसनाथ आगे बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।

पारसनाथ अभी घर पहुंचा ही था कि मोना चौधरी का फोन आ गया।

“वो भाग गई।” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी—“पहले उसने लड़ाई की, जब हारने लगी तो भाग गई। वो ही नकली थी।”

“तुम कौन-सी हो?"

“मैं वही हूं पारसनाथ, जिससे तुम फ्लैट पर आकर मिले थे।”

तुम्हारा मतलब कि मुम्बई से आने वाली नकली थी?

” सही कहा तुमने ।” पारसनाथ के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे।

हमें महाजन की तलाश करनी चाहिए।”

“मुझे कैसे पता चले कि भागने वाली असली मोना चौधरी थी या तुम हो।” पारसनाथ बोला।

मैं ही असली...।

” “मैं यकीन नहीं कर सकता।”

“तो कैसे करोगे।” उधर से मोना चौधरी ने गहरी सांस ली–“किसी पर तो यकीन करोगे ही।”

“मैं तुमसे फिर बात करूंगा।” पारसनाथ ने सोच-भरे स्वर में कहा।।

“पारसनाथ, ये वक्त बर्बाद करने लायक नहीं है। महाजन खतरे में है। वो...।”

“मुझे तो सारे हालात ही खतरे से भरे नजर आ रहे हैं।” पारसनाथ ने खुरदरे, चुभते स्वर में कहा।

“मुझे जगमोहन पर शक है पारसनाथ। जथूरा की आड़ में वो ही हमारे साथ खेल खेल रहा...।”

“अब मुझे किसी पर भरोसा नहीं रहा। कोई भी नकली हो सकता है। मैंने अपनी आंखों से दो-दो मोना चौधरी देखी हैं और मैं नहीं समझ पाया कि कौन-सी असली है। अब मुझे खतरे से भरे हालातों का एहसास हुआ है।” ।

“मैं हीं मोना चौधरी हूँ, तुम्हें कैसे समझाऊं ।”

सुबह बात करेंगे।”

“ठीक है, तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं तो न सही। अपने पर तो है। तुम महाजन को ढूंढ़ो। मैं अपने तौर पर महाजन को तलाश करती हूं। जितनी देर होगी, महाजन उतना ही खतरे में फंसता चला जाएगा।”

“महाजन को जगमोहन ले गया है?”

“हां ।”

“कौन-सा जगमोहन? एक ही वक्त में दो-दो जगमोहन हमें नजर आए। एक से मैं बात कर रहा था। वो मुम्बई में देवराज चौहान के पास था। दूसरा जगमोहन महाजन के पास आया और नगीना का पता पूछ रहा था। उससे तुम्हारा झगड़ा भी हुआ। अब तुम किसे असली जगमोहन मानती हो। पहले ये बात तो स्पष्ट हो ।”

“जिससे मेरा झगड़ा हुआ, वो ही असली जगमोहन था।” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी-“वो ही...।” ।

मेरे खयाल में असली वो था, जिससे मेरी बात हुई ।”

मोना चौधरी की आवाज नहीं आई।
 
जब तक मुझे ये न पता लगे कि महाजन को कौन ले गया है, तब तक उसे तलाश नहीं किया जा सकता।” पारसनाथ बोला_“मेरे खयाल में तुम ये बखूबी समझ रही हो कि मुझे किसी पर भरोसा नहीं। जब तक हालात ठीक न हों, मुझे फोन मत करना ।”

ये कैसे सम्भव है?”

पारसनाथ ने फोन बंद कर दिया। उसके चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।

पारसनाथ ने अपनी पत्नी सितारा को फोन किया जो इस वक्त राधा के पास थी।

हैलो ।” सितारा की नींद से भरी आवाज कानों में पड़ी। नींद में हो।” पारसनाथ ने पूछा।

अब नहीं हूं।” सितारा का सतर्क स्वर उसके कानों में पड़ा-“कहो ।”

राधा के पास हो?

” हां, क्या बात है?

” मोना चौधरी तो नहीं आई तुम्हारे पास?
” नहीं।” ।

“तुम्हारे पास जो भी मोना चौधरी आए, वो नकली मोना चौधरी होगी। उसे भीतर मत आने देना, बेशक वो जो भी कहे ।”
समझ गई।” । इस वक्त दो-दो मोना चौधरी, अलग-अलग जगहों पर नजर आ रही हैं।”
ओह—ये कैसे हो रहा है?”
बताऊंगा। इस वक्त तुम सतर्क रहना ।” पारसनाथ ने फोन बंद किया और नींद लेने की तैयारी करने लगा।

सुबह के आठ बज रहे थे। रेस्टोरेंट के सफाई कर्मचारी आकर, अपने काम पर लग चुके थे। रेस्टोरेंट के किचन में भी, खाना बनाने का काम शुरू हो चुका था।

पांच मिनट ही बीते कि पारसनाथ के कानों में कदमों की आहटें पड़ीं।

उसने फौरन आंख खोली और उठ बैठा। अगले ही पल पारसनाथ के होंठ सिकुड़ गए। सामने मोना चौधरी खड़ी थी।

तुम?” पारसनाथ के होंठों से निकला।

“मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकी।

” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कहते कुर्सी पर बैठ गई–“मुझे वहां से भागना पड़ा।”

‘हैरानी है कि तुम मुकाबले से डरकर भाग खड़ी हुईं।” पारसनाथ बोला।।

मेरे खयाल में उसकी सहायता अदृश्य ताकतें कर रही हैं। वो जथूरा की बनाई मोना चौधरी है।” मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर कहा-“उसके एक घूसे में, दस घूसों जितना दम है।”

पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

तो तुम कहना चाहती हो कि तुम असली मोना चौधरी हो।” पारसनाथ ने उसे घूरा।।
 
मोना चौधरी ने अजीब-सी नजरों से पारसनाथ को देखा।

तुम पागल तो नहीं हो।” मोना चौधरी ने तेज स्वर में कहा-“मैं असली मोना चौधरी हूं। क्या हो गया है तुम्हें?”

पारसनाथ मुस्करा पड़ा। मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

अभी मोना चौधरी का फोन आया।”

“मोना चौधरी?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

जो इस वक्त फ्लैट में है। उसने बताया कि तुम उसका मुकाबला नहीं कर सकीं और भाग गईं। वो अपने को असली मोना चौधरी कह रही थी। उसे गायब हो चुके महाजन की भी बहुत चिंता हो रही थी।”

वो कमीनी, जथूरा की कोई चाल है।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।

साबित करो कि वो जथूरा की चाल है और तुम असली हो।” पारसनाथ बोला।।

“इस बात को साबित करने के लिए वक्त लगेगा।” मोना चौधरी बोली-“अभी हालात ठीक नहीं...।”

तो जब हालात ठीक हो जाएं तो तब आना।”

क्या मतलब?” ।

“यहां से चली जाओ और दोबारा तब आना जब खुद को असली मोना चौधरी साबित कर सको।”

“होश में आओ पारसनाथ।”

“मैं होश में ही हूं।” पारसनाथ की आवाज में कठोरता आ गई–“निकल जाओ यहां से ।”

मोना चौधरी दांत भींचे पारसनाथ को देखने लगी। पारसनाथ का व्यवहार, उसके प्रति पूरी तरह रूखा था।

“तो मैं जाऊं?" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा।

बेशक और दोबारा तभी मेरे पास आना, जब तुम ये साबित कर सको कि तुम ही असली मोना चौधरी हो।”

“दोनों को सामने खड़ा करके तुम ही क्यों नहीं पहचान लेते कि कौन-सी असली है।” मोना चौधरी बोली।

“मेरे लिए ये सम्भव नहीं।” पारसनाथ ने इंकार में सिर हिलाया और मुस्करा पड़ा।

क्यों?”

क्योंकि नकली, असली से भी बढ़िया है। जथूरा सच में कमाल का है।”

“मैं समझ सकती हूं कि तुम कैसी स्थिति से गुजर रहे हो।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“जा रही हूँ मैं...।”

पारसनाथ उसे देखता रहा। मोना चौधरी पलटी और बाहर निकल गई। ‘मेरा दिमाग खराब होता जा रहा है। पारसनाथ बड़बड़ा उठा।
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मखानी नाराज था शौहरी से। रात बीत गई थी। शौहरी ने उसकी इच्छा को पूरा न किया था।

मखानी चार बार पुकारने पर शौहरी की बात का जवाब देता। इस वक्त मखानी जगमोहन के रूप में था और सड़क किनारे फुटपाथ पर पेड़ की छाया में बैठा था। सड़क पर से ट्रेफिक आ-जा रहा था।

मखानी।” शौहरी की फुसफुसाहट, उसके कान में पड़ी। मैं नाराज हूं तेरे से।” मखानी ने मुंह फुलाकर कहा।

जानता हूं। लेकिन तेरे नाराज होने से कुछ नहीं होगा। खुश रहना सीख ।”

“रात बीत गई और तूने लड़की नहीं दिलाई मुझे ।”

“कमला रानी बहुत व्यस्त है, वरना मैं तो...” ।

“तू झूठ बोलता है।” ।

मैं तेरे से क्यों झूठ बोलूंगा मखानी। मैंने तो तेरे को खुश करने का पूरा इंतजाम कर लिया था।”

फिर किया क्यों नहीं?”

बताता हूं—सुन, कमला रानी मिन्नो बनकर खुले में आ गई है। हर पल उसे सबके सामने रहना पड़ रहा है कि उसके साथी उसे देखकर चक्कर खा जाएं। वो असली मिन्नो के सामने भी गई। परसू तब वहां था।” ।

“ये सब करने का क्या फायदा?”

“ये कि मिन्नो को उसके साथियों का सहारा न मिले। परसू अब इस चक्कर में पड़ गया है कि असली कौन है।”

“थोड़ी देर के लिए कमला रानी मेरे पास जा जाती तो क्या हर्ज था।”

उसे तो एक मिनट की भी फुर्सत नहीं।

” मिन्नो को भी पकड़कर वहां पहुंचा देते, जहां नगीना, महाजन है।”

ये इतना भी आसान नहीं । मिन्नो पर काबू पाना आसान होता तो ये काम पहले ही हो जाता ।”

मैं कमला रानी की सहायता कर देता हूं।

” तू करेगा?"

क्यों नहीं ।”

“ठहर, भौरी से बात करता हूं।” शौहरी की आवाज कानों में पड़ी, फिर खामोशी छा गई।

कुछ देर बाद शौहरी की फुसफसाहट पुनः कानों में पड़ी। मखानी, तेरा काम बन गया।
 
कुछ देर बाद शौहरी की फुसफसाहट पुनः कानों में पड़ी। मखानी, तेरा काम बन गया।

” कैसे?”

“तू कमला रानी की सहायता कर। लेकिन भौरी कहती है कि तू कहीं काम भूलकर कमला रानी के साथ न चिपक जाए।”

काम के बाद चिपलूंगा।”

“ठीक है। चल तेरे को कमला रानी के पास ले चलता हूं।”

“तेरे को पता है वो कहां है?”

सब पता है। क्या नहीं पता मेरे को ।”

“वो मुझे पहचानेगी कैसे?”

मैं हूं तेरे साथ, फिक्र क्यों करता है। लेकिन पहले काम। उसके बाद बाकी कुछ।”

सुन लिया—सुन लिया। बार-बार मत कह ।”
…………………………………………………

मोना चौधरी ने कॉफी बनाई और पूंट भरा। तभी कॉलबेल बजी।।
कॉफी का प्याला थामे, मोना चौधरी दरवाजे के पास पहुंची और दरवाजा खोला।
सामने जगमोहन खड़ा था। दोनों की नजरें मिलीं।

कमला रानी।” तभी भौरी का स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़ा-“ये मखानी है, तेरे को बताया था मैंने।” ।

हां, याद है।” मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान उभरी।

कैसा लगा ये तेरे को?” ।

“बढ़िया।” मोना चौधरी जगमोहन को देखते मुस्करा रही थी।

“सोएगी इसके साथ?” ।

“मैं तो अभी से बे-सब्र हो रही हूं।” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली। ।

“लेकिन पहले तेरे को मिन्नो को पकड़ना है। एक बार वो तेरे हाथों से बच निकली।” ।

अब सामने पड़ी तो वो भाग नहीं सकेगी।”

मखानी तेरी सहायता करेगा उसे पकड़ने में। इसमें जग्गू जैसा दम और चालाकियां भरी पड़ी हैं।”

“समझ गई।” कमला रानी ने सिर हिलाया और जगमोहन से बोली-“भीतर आ जाओ मखानी ।” ।

जगमोहन मुस्कराया और भीतर आ गया। कमला रानी ने दरवाजा बंद किया।

तू मुझे अच्छा लगा।” कमला रानी मुस्करा रही थी।

“तू भी मुझे अच्छी लगी।” मखानी बोला–“मैं तो तेरे को पाने के लिए कब का तड़प रहा हूं।”

आग इधर भी लगी है।” कमला रानी ने तड़प भरे स्वर में कहा।।

“तो सोचती क्या है, अभी...।” ।

भौरी कहती है कि पहले मिन्नो को पकड़ना है। उसके बाद हम प्यार करेंगे।”

“मिन्नो है कहां?” ।

पता नहीं। सुबह मेरे सामने पड़ी थी। मेरा मुकाबला नहीं कर सकी तो भाग निकली।”

“तूने उसे जकड़ लेना था, वो...।”

मौका ही कहां दिया उसने । फुर्तीली है। पर अब नहीं छोडूंगी। एक बार सामने आने दे।”

जगमोहन आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठता कह उठा।
मैं ये काम जल्दी पूरा करना चाहता हूं, कमला रानी।”

“मुझे तो तेरे से भी जल्दी है, पर क्या करू, भौरी की बात माननी पड़ती है। तू शौहरी की बात नहीं मानता?”

“मानता हूं। वो दोनों भी चक्कर में हैं।”

चक्कर?”

शौहरी और भौरी भी मिलने के चक्कर में हैं। एक-दूसरे को चारा फेंकते रहते हैं।” मखानी हंसकर बोला।

“ऐ मखानी।” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी-“तू मेरी पोल क्यों खोलता है?"

“इसमें गलत क्या है?”

“नहीं, तू मेरी बात नहीं करेगा। करेगा तो आगे से तू मेरे बारे में कुछ नहीं जान पाएगा।”

“ठीक है। तेरी बात नहीं करता।”

“शौहरी ने मना कर दिया, उसकी बात क्यों की?” कमला रानी मुस्कराई। ।

“पागल है वो। तू बैठ मेरे पास बातें तो कर ही सकते हैं हम।

जब मैं जवान हुआ करता था तो बहुत मौज करता था।”
 
“मौज तो मैंने भी की ।” कमला रानी बोली-“पर तेरे जितनी नहीं। मुझे कम ही मौके हाथ लगे।” ।

जवानी के वो दिन भी क्या दिन...।

” ठीक उसी समय कॉलबेल बजी।। दोनों ने दरवाजे की तरफ देखा। कौन आ गया?" मखानी बोला।

“तू पीछे कमरे में चला जा। मैं देखती हूं।” कमला रानी कॉफी का घूट भरके बोली।

जगमोहन उठा और पीछे वाले कमरे में चला गया।

कमला रानी ने कॉफी का मग टेबल पर रखा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई। दरवाजा खोला, तो जोरों से चौंकी। फिर संभली ।
| सामने मोना चौधरी खड़ी थी।

“तो तू आ गई फिर ।” कमला रानी गुर्रा उठी।

तूने मुझे पलक झपकते ही घर से बेघर कर दिया ।” मोना चौधरी कठोर स्वर में बोली-“मेरी पहचान वाले मुझे पहचानने से इंकार कर रहे हैं। आखिर तू चाहती क्या है?”

कमला रानी मुस्कराई।
जो मैं चाहती हूं, वो ही होके रहेगा। तू अपने को बचा नहीं सकती मिन्नो ।”

मैं तेरे से आराम से बात करना चाहती हूं।”

“ठीक है, भीतर आ-जा। आराम से बात कर ले।”

मोना चौधरी उसे शक-भरी निगाहों से देखती भीतर आ गई। अपने ही घर में जैसे वो पराई हो गई थी।

कमला रानी ने दरवाजा बंद किया और पलटकर कह उठी। “ये तेरा ही घर है। आराम से बैठ ।”

होंठ भींचे मोना चौधरी ने कमला रानी को देखा। “एक मेहमान भी आया है, उससे नहीं मिलेगी।”

मेहमान ।”

मखानी ।” कमला रानी ऊंचे स्वर में बोली-“देख तो, कौन आया है।” ।

दूसरे कमरे से मखानी वहां आ पहुंचा। मोना चौधरी जगमोहन के डुप्लीकेट को देखते ही चौंकी।

इससे तो मैं रात मिला था।” मखानी बोला—“जब महाजन को उठाया था।”

मोना चौधरी के दांत भिंच गए।

मैं नहीं जानती थी कि तुम दोनों मिले हुए हो।”

“हम कालचक्र का ही हिस्सा हैं।” एकाएक कमला रानी बोली-“इसलिए हमारी तारें एक-दूसरे से बंधी हैं, क्यों मखानी?”
“तूने ठीक कहा कमला रानी।”

एकाएक मोना चौधरी को लगा, उसने यहां आकर गलती कर दी है। वो सतर्क हो चुकी थी।

“सारा झंझट ही तेरा और देवराज चौहान का है। दोनों में से एक मर जाए तो जथूरा खुश हो जाएगा ।” मखानी बोला।।
“लेकिन जथूरा की ताकत, पूर्व जन्म वाले इंसान पर तब काम करेगी, जब वो पूर्वजन्म में होगा। यही वजह है कि अभी तुम लोग बचे हुए हो।” कमला रानी मुस्कराई–“लेकिन अब तू फंस गई मोना चौधरी ।”

। “क्या मतलब?” मोना चौधरी ने क्रोध भरी नजरों से दोनों को देखा ।।
 
कमला रानी ने मखानी को देखा, आंखें नचाईं, फिर कह उठी।
चल मखानी इसे मतलब समझा देते हैं।” मोना चौधरी फुर्ती से दरवाजे की तरफ दौड़ी।

“वो देख–भागी...।” मखानी के होंठों से निकला।

मोना चौधरी दरवाजे तक पहुंच चुकी थी। परंतु दरवाजा खोलने का उसे मौका न मिल सका। | कमला रानी फुर्ती से उसके पास पहुंच चुकी थी और उसके सिर के बाल कसकर पकड़ लिए।
मोना चौधरी के होंठों से कराह निकली।

“अब तू नहीं भाग सकती। डरपोक कहीं की। मुकाबला नहीं कर सकती तो भागती है।”

तो तूने ही देवराज चौहान की पत्नी नगीना को उठाया था।” मोना चौधरी दांत किटकिटा उठी।

बहुत देर से समझी तू तो ।” कमला रानी हंसी।। मैंने महाजन को...।” पास पहुंचता मखानी कह उठा।।

“कहां हैं वे दोनों?” मोना चौधरी अपने बालों को छुड़ाने की चेष्टा में बोली।।

“ये तो हम तेरे को नहीं बताएंगे, लेकिन तेरे को भी वहीं पहुंचा देते हैं। फिर उसने पुकारा–“शौहरी ।”

“क्या है?” शौहरी की झल्लाहट भरी फुसफुसाहट उसके कानों में पड़ी।

बेहोश कर दे इसे?”

“तू बातें बहुत करता है और काम कम करता है।”

मेरा मतलब है इसे भी वहीं पहुंचाने का इंतजाम कर लिया है या फिर अभी...।” ।

“मैंने पिशाचों को बुला लिया है। वो पहुंचते ही होंगे। तू बेहोश कर मिन्नो को ।” |

मोना चौधरी खुद को आजाद नहीं करा पा रही थी। कमला रानी उसके सिर के बाल छोड़ने को तैयार नहीं थी और पकड़ ऐसी मजबूत थी कि बाल उखड़ जाए, परंतु कमला रानी की मुट्ठी ढीली न हो।

मखानी ने मोना चौधरी का सिर थामा और जोर से दरवाजे पर मारा। तेज आवाज उभरी।।

मोना चौधरी के होंठों से चीख निकली। | अगली बार मखानी ने एक साथ दो बार उसका सिर, दरवाजे से टकराया। बेदम होती मोना चौधरी उसी पल बेहोश होकर नीचे गिरती चली गई। कमला रानी ने उसके सिर के बाल छोड़ दिए थे।
| मखानी ने नीचे पड़ी मोना चौधरी को चैक किया।

वो बेहोश थी। कितना आसान था इस पर काबू पाना।” कह उठा मखानी।

“मौके की बात थी। पकड़ में आ गई। वरना कम नहीं है ये।” कमला रानी हंसी और मखानी को देखा।

ऐसे मत देख। अभी पिशाचों को आकर, इसे ले जाने दे। कुछ और इंतजार कर ले ।”

कमला रानी ने गहरी सांस ली। तभी कॉलबेल बजी। दोनों की नजरें मिलीं।

मखानी ने नीचे पड़ी मोना चौधरी को थोड़ा-सा इस तरफ घसीटा कि दरवाजा खुले तो वो दरवाजे की ओट में आ जाए। खुद भी उसके पास ही खड़ा हो गया और कमला रानी को दरवाजा खोलने का इशारा किया।
| कमला रानी ने दरवाजा खोला।।

सामने नंदराम खड़ा था। सामने के फ्लैट में रहने वाला नंदराम।

मोन्ना चौधरी सब ठीक तो है नी। बोत ठक-ठक की आवाजें आ रही थीं नी ।” ।

“ओह, नंदराम, माई डार्लिंग।” मोना चौधरी के चेहरे में, कमला रानी गहरी सांस लेकर कह उठी।।

माई डार्लिंग?” नंदराम चौंका–“वड़ी सब ठीक तो है नी ।”

“हां, मेरी जान सब ठीक है। तेरे पास दो बियर हैं, फ्रिज में। एकदम चिल्ड।”

“तेरे को कैसे पता नी?” नंदराम सकपकाया।

अभी मेरे को कहने वाला था कि मारते हैं बियर। तेरी बीवी घर पर नहीं है।”

तू तो सब जानती है वड़ी।”

ओह माई डार्लिंग–नंदराम ।”

नंदराम घबराकर दो कदम पीछे हुआ।

ये तेरे को आज किया हो गया है नी । तू मेरे को डार्लिंग बोल रही है।”

“ये ही तो तू चाहता है।” कमला रानी ने गहरी सांस ली–“आ, भीतर आ जा ।”

क...क्यों—नी?” नंदराम हड़बड़ाया। “मेरे पास दो बीयर हैं। एकदम ठंडी। पास-पास बैठ के बियर मारेंगे।”

वो—ठक-ठक...।”

वो भी करेंगे। ठक-ठक भी होगी। तू आ तो भीतर।”
नंदराम ने दोनों हाथों से पेट पकड़ लिया। वो पलटकर अपने फ्लैट के दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

“नंदराम।” पीछे से कमला रानी ने पुकारा।

“सांई। मेरे पेट में मरोड़ उठ रहा है नी। तेरी बात सुनकर तबीयत बोत खराब हो गई।” दरवाजा खोला नंदराम घबराहट भरे स्वर में कह उठा–“मेरे कू दो दिन पूरा आराम करना पड़ेगा।” कहकर नंदराम ने दरवाजा बंद कर लिया।

कमला रानी ने भी दरवाजा बंद किया।

“तू तो बोत रोमांटिक बातें करती है।” मखानी मुस्कराकर कह उठा।

अपनी जवानी में मैं कम रोमांटिक नहीं थी। बस, बुढ़ापे ने सारा जोश ठंडा कर दिया था।” कमला रानी ने गहरी सांस ली।
अब तो फिर तू जवान हो गई है।”

कुछ देर बाद तेरे को जवानी का जलवा दिखाऊंगी।” कमला रानी ने आंख दबाकर कहा।।

मखानी ने ठंडी आह भरी। तभी कमरे में दो काली-काली परछाइयां नजर आने लगीं। फिर वो परछाइयां बेहोश पड़ी मोना चौधरी पर छा गईं।
देखते-ही-देखते मोना चौधरी का शरीर सिकुड़ने लगा। वो शरीर इस हद तक सिकुड़ गया कि बिंदु बनकर उन परछाइयों में गुम हो गया और वो परछाइयां लुप्त हो गईं।

अब वहां मोना चौधरी नहीं थी। मखानी और कमला रानी ने एक-दूसरे को देखा। “आ कमला रानी, मेरी बांहों में...।”
 
“मखानी।” उसी पल उसके कानों में, शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी।

क्या है?" मखानी ने उखड़े स्वर में कहा। अब जान ले कि तेरे को अगला काम क्या करना...।”

मैं नहीं करूंगा।” मखानी गुस्से से चीखा।

क्या? तेरे को फिर बूढ़ा बना दूं।” ।

ऐसी जवानी का क्या फायदा कि तू मजे लेने नहीं देता। जवान बनाकर तू अपने काम ही लिए जा रहा है। मुझे भी अपना काम करने दे। पेट भरा हो तो मैं शांति से काम करूंगा तेरे ।”

बहुत बेसब्र है तू।”

“बूढ़े से जवान हुआ हूं, मैं चैक कर लें कि ये जवानी असली है कि नकली। बेचारी कमला रानी भी मेरे बिना तड़प-तड़प के जी रही है। उसकी आग भी तो बुझानी है। तेरे को अपने कामों की पड़ी है।”

“मेरे काम जब तक तू करेगा तब तक ही तेरी जवानी कायम रहेगी। ये बात समझ ले।”

जानता हूं मैं। अब तू चुप हो जा। मुझे ये काम कर लेने दे।

” कर ले ।”

तो क्या तू आंखें फाड़कर देखता रहेगा कि हम क्या कर रहे हैं। तू जा यहां से ।” मखानी झल्लाया।

“मैं नहीं जा सकता।”

क्यों?”

“जब तक तेरे भीतर हूं, तू जवान रहेगा। नहीं तो मर जाएगा। बोल जाऊँ?”

“नहीं। तू-तू मेरे भीतर ही रह।” मखानी घबराकर बोला। शौहरी की आवाज नहीं आई। मखानी का चेहरा पसीने से भरने लगा।

“क्या हुआ?” कमला रानी ने उसे देखा।

शौहरी ने ऐसी बात कही कि मैं ठंडा हो गया हूं।” मखानी ने मुंह लटकाकर कहा।

फिक्र क्यों करता है।” कमला रानी पास आ पहुंची—उसका हाथ थामा–“तेरे को अभी गर्म कर देती हूं।” ।

“हो गया गर्म ।” मखानी ने कहा और कमला रानी पर झपट पड़ा।

“मिल गई शांति?” शौहरी की आवाज मखानी के कानों में पड़ी।

“मजा आ गया। जवानी के वो दिन फिर से याद आ गए।” मखानी ने लम्बी आह भरकर कहा।।

“अब भी तो तू जवान है। जग्गू के रूप में है तू।” शौहरी ने शरारत भरे स्वर में कह।

ये तो कमला रानी बताएगी।” मखानी ने मोना चौधरी के बहरुप की तरफ देखा–“क्यों, जवान हूँ मैं?”

बहुत ।” कमला रानी ने छाती पर हाथ रखकर कहा-“तूने तो मेरी जान ही ले ली थी।”

तेरी जान लेकर मैं क्या करूंगा। पर अभी दिल नहीं भरा।”

मखानी।” शौहरी की आवाज पुनः सुनाई दी–“होश में आ। काम की सोच।”

“आराम का वक्त भी तो मिलना चाहिए।”

अभी आराम नहीं मिलेगा। कालचक्र गति में है। कोई भी आराम नहीं कर सकता।” ।

कब आराम करने को मिलेगा?

” जब कालचक्र थम जाएगा।

” कब थमेगा?” ।

जब सारे काम पूरे हो जाएंगे। लेकिन अगले काम के साथ तेरे को खुशी भी होगी।”

“कोई लड़की मिलेगी क्या?” मखानी के होंठों से निकला। ।

“अगला काम तू कमला रानी के साथ मिलकर करेगा।” शौहरी की आवाज सुनाई दी।

“सच?” मखानी ने खुश होकर कमला रानी को देखा। कमला रानी मुस्कराई।।

लेकिन तुम दोनों सिर्फ मेरा कहा काम करोगे, और कुछ नहीं करना है। समझ गए?

काम बता ।” मखानी बोला।

जग्गू को देवा के पास से दूर करना है। कोई शक्ति उसे कालचक्र की हरकतों का भी पूर्वाभास करा रही है, जो कि ठीक नहीं है। देवा कभी भी कालचक्र के खिलाफ कोई चाल चल सकता है। देवा को मौका नहीं मिलना चाहिए।” ।

लेकिन वो दोनों तो मुम्बई में हैं।” कमला रानी ने कहा।

“मैं तुम दोनों को पलों में मुम्बई पहुंचा दूंगा।”

ये सब करना कैसे है, तुमने सोचा है कुछ।” ।

हां। जग्गू को भटकाकर देवा से दूर ले जाना है। मैं बताता हूं ये कैसे होगा। मेरी बात सुन लो, परंतु मौके पर तुम लोगों को जो ठीक लगे, वही करना। काम को हर हाल में पूरा होना चाहिए।”

। “जब तक भौरी मुझे इजाजत नहीं देगी, मैं ये काम नहीं करूंगी।” कमला रानी बोल पड़ी।

“भौरी की ‘हां है।” शौहरी की आवाज आई। तभी भौरी की आवाज, कमला रानी के कानों में पड़ी।
शौहरी की बात मान । मेरी सहमति है उसकी बातों में ।

” “ठीक है।”
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उस वक्त सुबह के नौ बज रहे थे।
जगमोहन नहा-धोकर किचन में जा पहुंचा था कि नाश्ता तैयार करे। देवराज चौहान अभी नहाने-धोने में व्यस्त था। बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव, रात यहीं पर सो गए थे। आधी रात तो उन्हें यहां ही हो गई थी। वो दोनों अभी नींद में थे। जगमोहन ने उन्हें उठाने की चेष्टा भी नहीं की थी।

किचन में काम में व्यस्त जगमोहन, अपनी ही सोचों में उलझा हुआ था, देवराज चौहान ठीक कह रहा था कि उनके पास करने को कुछ नहीं है। उनके सामने ऐसा कोई दुश्मन नहीं है कि जिसका वे मुकाबला कर सके। पूर्वजन्म की शक्तियों का मामला था। जथूरा का मामला था जो कि अपनी विद्या में ताकत रखता था और भरसक इस प्रयत्न में था कि वे लोग पूर्वजन्म की यात्रा न कर सकें। मोना चौधरी और देवराज चौहान के ग्रहों के अनुसार, अगर वो पूर्वजन्म की यात्रा करते हैं तो वो जथूरा के लिए नुकसानदेह हो सकती है।

परंतु जथूरा की कोई दुश्मन शक्ति उसे जथूरा की हरकतों का पूर्वाभास करा रही थी कि वो पूर्वजन्म की यात्रा करें। वे सब इन्हीं बातों में बुरी तरह उलझ चुके थे।

जथूरा ने कालचक्र उन पर छोड़ दिया था।

और कालचक्र उनके ही रूप ओढ़कर, कुछ इस तरह काम कर रहा था कि उनकी समझ ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था। अब इस बात की उलझन होने लगी थी कि कौन बहरूप है, कौन असली है। ये हालात खतरनाक थे। कभी भी, किसी के भीतर का गुस्सा फूट सकता था और वो दूसरे पर जानलेवा वार कर सकता था। जथूरा उनमें और मोना चौधरी में झगड़ा करवा देना चाहता था। परंतु वे सतर्क थे कि झगड़ा न हो। जथूरा की चालों को समझ चुके थे।

लेकिन किसी के भी सब्र का बांध, कभी भी टूट सकता था। ‘साला जथूरा।' जगमोहन बडबडाया-नज़र भी तो नहीं आता।

“तूने मुझसे कुछ कहा जग्गू?” पोतेबाबा की आवाज जगमोहन ने सुनी।

जगमोहन चौंककर पलटा। नजरें घुमाईं। किचन खाली था।

तो तू आ गया पोतेबाबा ।” जगमोहन ने कहा और अपने काम में व्यस्त हो गया। उसके होंठ भिंच गए थे।

“मुझे तो तेरे भले के लिए बार-बार तेरे पास आना पड़ता है।”

“जथूरा से मिलवा दो एक बार ।”

“वो पूर्वजन्म में है। अभी बाहर नहीं आ सकता।” पोतेबाबा की आवाज आई।

“हमसे डरकर वो सामने नहीं आ रहा।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।

“ये सोचकर तू खुश होता है तो मैं तेरी खुशी में बाधा नहीं डालूंगा।” पोतेबाबा कहने के साथ हंसा।

तू कमीना है।”

“तू मुझे कुछ भी कह, बुरा नहीं मानूंगा।”

जथूरा का कालचक्र क्या कर रहा है, हम सब समझ चुके हैं। हम आपस में झगड़ेंगे नहीं ।”

“ये तो अच्छी बात है। दुश्मन एक हो तो सबको एक हो जाना चाहिए। लेकिन कालचक्र को कोई भी नहीं समझ सकता।”

क्यों?”

क्योंकि कालचक्र का रुख कभी भी मोड़ा नहीं जा सकता है। जथूरा स्वयं कालचक्र को संभाल रहा है। कालचक्र से जरूरत पड़ने पर एक नहीं ढेरों काम लिए जा सकते हैं। कालचक्र को कोई भी ठीक से नहीं समझ सकता।”

“तुम समझ सकते हो?”

“नहीं, कालचक्र कब क्या करेगा, ये बात वो ही जान सकता है, जो कालचक्र को संभाल रहा हो। जथूरा कालचक्र को संभाल रहा है। वो ही कालचक्र को आदेश दे रहा है कि अब उसे क्या करना है।” पोतेबाबा का सुनाई देने वाला स्वर शांत था—“वैसे अब जथूरा को खास चिंता नहीं रही इस बात की कि तुम लोग पूर्वजन्म में प्रवेश कर पाते हो या नहीं।”

" “क्यों—अब क्या हो गया?" ।

“जथूरा ने देवा और मिन्नो के ग्रहों से बचने का रास्ता निकाल लिया है।”

फिर तो जथूरा को चाहिए कि कालचक्र का काम बंद कर दे।”

जथूरा इतना भी निश्चिंत नहीं हुआ कि ऐसा कर दे।” उस शक्ति का पता लगा, जो मुझे पूर्वाभास करा रही है।”

नहीं। वो चालाक शक्ति है। अपना एहसास नहीं होने दे रही। पकड़ में आने से पहले ही बच निकलती है।”

मेरे पास क्यों आया?”

यूं ही, बातें करने, सोचा तेरे से बात करके, मन को कुछ बहला लेता हूं।”
 
“तू कमीना है।” ।

पोतेबाबा के हंसने की आवाज गूंजी।

“अपनी तारीफ सुनकर हंसता है।”

मुझे तेरी बातों पे गुस्सा नहीं आएगा।”

क्यों?”

क्योंकि मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं। तेरा अपना हूं।”

“तू क्या है, मैं जानता हूं।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा-“हम क्या करते हैं, जथूरा को खबर रहती है?”

पूरी तरह।

” “कैसे?”
कालचक्र ने अपनी छाया तुम पर छोड़ रखी है। पल-पल की खबर कालचक्र में तुम्हारी हरकतें रिकॉर्ड होकर जथूरा तक... ।”

“क्या होकर?”

रिकॉर्ड होकर। पूर्वजन्म के कुछ हिस्से ने बहुत तरक्की कर ली है। ये अब पहले वाली दुनिया नहीं रही। जथूरा के हिस्से वाली जगह पर, मशीनों से काम होता है। सच में जथूरा महान है।”

“मशीनों से काम होता है और साथ में कालचक्र जैसी शक्तियां भी काम करती हैं?” जगमोहन ठिठक गया।

“हां। ये सब जथूरा की देन है। उसी ने ही मेहनत करके, अपने लोगों को यहां तक पहुंचाया। वो बहुत प्यारा इंसान है। अपने लोगों की बहुत देखभाल करता है। तभी तो उसके लिए हर कोई जान देने को तैयार रहता है।”

“मेरे सामने जथूरा की तारीफ मत कर।” जगमोहन का स्वर सख्त हो गया।

“मैंने कुछ गलत नहीं कहा।”

उसके बारे में सही बातें भी मत कर।”

“तेरे को नहीं अच्छा लगता तो नहीं करता। लेकिन ये जरूर कहूंगा कि तुम लोगों ने पूर्वजन्म में प्रवेश किया तो मारे जाओगे।”

“अब उस तरह की बातें न करके, इस तरह की बातें करके मुझे रोकना चाहते हो?” जगमोहन ने व्यंग से कहा। ।

“तेरा दिमाग उलटा है। सीधी बात को भी गलत तरीके से लेगा।” पोतेबाबा की आवाज कानों में पड़ी-“मैंने सच कहा है। पूर्वजन्म में प्रवेश किया तो इस बात का एहसास हो जाएगा।” पोर्तबाबा का स्वर गम्भीर था।

“मैं तेरी बेकार की बातों का भरोसा नहीं करता। एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता हूं।”

तभी देवराज चौहान ने वहां प्रवेश किया। उसने सिगरेट सुलगा रखी थी। सिगरेट के धुएं में पोते बाबा का दाढ़ी वाला चेहरा चमक उठा। देवराज चौहान की तीखी निगाह पोतेबाबा के चेहरे की धुएं से भरी आकृति पर जा टिकी।

“अब क्या कह रहा है ये?” देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा। *

“ये इस बात की कोशिश में है कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश न करें।” जगमोहन बोला।

“इस वक्त मैं जथूरा के हक में ये बात नहीं कर रहा। तुम लोगों के भले के लिए कह रहा हूं।” पोतेबाबा के चेहरे के होंठ हिले।।

“तुमने हमारा भला कब से सोचना शुरू कर दिया?” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।

“नादान हो, नहीं समझोगे।” इसके साथ ही पोतेबाबा का चेहरा दरवाजे की तरफ जाते दिखा।

देवराज चौहान उसे देखता रहा। वो बाहर निकल गया।

“हम घिरे पड़े हैं जथूरा की चालों से ।” देवराज चौहान कह उठा।।

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव अभी तक नींद में थे।
देवराज चौहान और जगमोहन ने नाश्ता समाप्त किया और कॉफी के प्याले अपनी तरफ सरका लिए।

“हमें सोहनलाल को सम्पर्क में रखना चाहिए। पूर्वजन्म का होने के नाते, वो भी हर मामले से जुड़ा है।”

“फोन कर लो उसे ।”

उसे ये भी बताना होगा कि रात मोना चौधरी यहां आई थी और दूसरी दिल्ली में थी। और महाजन को भी बेहोश करके नगीना भाभी के पास पहुंचा दिया गया।” उठते हुए जगमोहन कह उठा–“पारसनाथ की तो बुरी हालत होगी। वो समझ नहीं पा रहा होगा कि किसे असली समझे और किसे नकली। पहले पारसनाथ को फोन करता हूं, शायद कोई नई बात पता चले ।”

जगमोहन फोन के पास पहुंचा और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगा।

दो-तीन बार नम्बर मिलाने पर पारसनाथ से बात हो सकी। "हैलो ।” उसका स्वर नींद से भरा था।

नींद में हो।” जगमोहन बोला।

ओह, तुम ।” पारसनाथ का संभला स्वर कानों में पड़ा-“कोई नई बात?”

“नहीं। यहीं पूछने के लिए तुम्हें फोन किया।” |

“मैं परेशान हो चुका हूं इस बात से कि असली मोना चौधरी कौन-सी है।”

पूरी बात बताओ।”

पारसनाथ ने मोना चौधरी से वास्ता रखते, अपने सारे हालात बता दिए।

“तुम तो सच में मुश्किल में हो। इसमें मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।” ।

“कोई भी कुछ नहीं कर सकता।” पारसनाथ के गहरी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा।

महाजन की कोई खबर?

” जरा भी नहीं ।”

मेरा पूर्वाभास मुझे इस बात का एहसास करा चुका है कि महाजन नगीना भाभी के पास ही बेहोश पड़ा है।”

वो जगह कौन-सी है?”

नहीं जानता। बंद करता हूं, फिर बात करूंगा।” जगमोहन ने फोन बंद करके, सोहनलाल का नम्बर मिलाया।

कई बार बेल होने पर भी सोहनलाल ने उधर से बात नहीं की।

“सोहनलाल से बात नहीं हो पा रही। वो कॉल रिसीव नहीं कर रहा...।”

पारसनाथ ने क्या कहा?” देवराज चौहान ने पूछा। जगमोहन ने बताकर कहा।

मैं सोहनलाल के पास जा रहा हूं। पता नहीं वो अपने घर पर है भी या नहीं।” । | देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि जगमोहन के चेहरे के बदलते भाव देखकर ठिठक गया। |

जगमोहन के मस्तिष्क में बिजलियां सी कौंधीं। दोनों हाथों से उसने सिर को थाम लिया। आंखें बंद होती चली गईं। मस्तिष्क में जैसे धमाके फूट रहे थे। फिर उसके मस्तिष्क ने वो ही समुद्र के किनारे वाली जगह देखी। लहरों के चट्टानों से टकराने की आवाजें उसे स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। हवा से पेड़ों के पत्ते और टहनियां हिल रही थीं। वो ही चट्टानें और हरी घास से भरी जगह। नगीना और महाजन उसी जगह बेहोश पड़े थे, जहां उन्हें वो पहले भी देख चुका था। परंतु अब वहां कोई तीसरा भी बेहोश पड़ा था। वो कुछ हट के था। जगमोहन का मस्तिष्क उसे स्पष्ट देख पा रहा था। वो कोई युवती थी। उलझन में घिरा वो आगे बढ़ा और पास जा पहुंचा। वो मोना चौधरी थी। उसने पहचान लिया–वो...।
तभी उसके मस्तिष्क में उठी बिजलियां थमती चली गईं। सब कुछ शांत हो गया।
 
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