XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 34 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

“जरूरी तो नहीं कि देवराज चौहान और मोना चौधरी, पोतेबाबा की बात माने।"

“जरूरी तो नहीं, परंतु मजबूरी हो सकती है।"

"कैसी मजबूरी?”

“पूर्वजन्म की जमीन पर पहुंचने के बाद, वापसी के लिए दरवाजे तभी खुलेंगे, जब पूर्वजन्म का कोई बिगड़ा काम संवार दिया जाए। ऐसे में देवराज चौहान और मोना चौधरी को कोई काम तो ठीक करना ही होगा। अगर वो जथुरा को आजाद नहीं कराते तो, कोई और बिगड़ा काम तलाशना होगा।” । __

“इसका मतलब वे जथूरा को आजाद कराने पर मान भी सकते हैं।” सोहनलाल ने कहा।

जगमोहन ने 'हां' में सिर हिलाया। सोबरा ने गिलास उठाकर खाली किया और वापस रख दिया। जगमोहन ने सोबरा से कहा।

“जथूरा ने तुम्हारा हक मारा और तुमने उसे कैद में पहुंचा दिया। तुम दोनों ही एक जैसे हो। न तो तुम कम हो, न ही जथूरा
कम है। उसने गलत किया तो तुमने भी गलत किया।”

सोबरा मुस्कराया।

“कब से कैद में है जथूरा?” सोहनलाल ने पूछा।

“पचास सालों से।” सोबरा बोला—“जथूरा और मुझमें ये फर्क है कि उसने मुझे मजबूर किया कि मैं ऐसा कुछ करूं। अगर वो मुझे मेरा हक दे देता तो मैं ऐसा क्यों करता।” ___

“ये तुम भाइयों का मामला है। इससे हमारा कोई मतलब नहीं।"
सोहनलाल बोला।

“मतलब तो अनजाने में पैदा हो गया है।"

“वो कैसे?"

"देवा-मिन्नो, जथूरा को आजाद कराने के लिए कल उस तिलिस्मी पहाड़ी की तरफ रवाना होंगे।" ___

“तुम्हें कैसे पता?"

"मेरे खबरी जथूरा के महल में मौजूद हैं। वो मुझे खबर देते हैं वहां की।”

"ओह।"

"कोई भी कम नहीं है।” जगमोहन ने मुंह बनाया।

“तुम दोनों को देवा और मिन्नो की चिंता करनी चाहिए।” सोबरा ने दोनों को देखा।

"क्यों?"

"क्योंकि महाकाली ऐसा जाल बिछा रही है कि देवा-मिन्नो जथूरा तक पहुंचने से पहले ही जान गंवा बैठें।"

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“तुम महाकाली को ऐसा करने से रोको।” सोहनलाल ने कहा।

“मैंने पहले ही कहा है कि महाकाली पर किसी का बस नहीं। वो सिर्फ अपना काम करती है। किसी की सुनती नहीं। महाकाली को किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता। इस वक्त भी वो उसी तिलिस्मी पहाड़ी पर मौजूद, देवा और मिन्नो की मौत का जाल बुन रही है। उनके साथ जो भी होगा, उसका भी यही हाल होगा।" सोबरा ने कहा।

"तुम महाकाली को रोको सोबरा।" जगमोहन गुर्रा उठा।

“ये अब सम्भव नहीं, परंतु तुम्हें सलाह दे सकता हूं।” सोबरा शांत स्वर में बोला।

"कैसी सलाह?" जगमोहन के दांत भिंच चुके थे। __

“तुम देवा और मिन्नो को रोक सकते हो।" सोबरा का स्वर शांत था।

जगमोहन के माथे पर बल पड़े। सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। फिर बोला। “सना।"

“समझ भी रहा हूं।" जगमोहन का स्वर तीखा हो गया—

“ये वजह है कि इसने हमें अपने पास बुलाया।"
सोबरा मुस्करा पड़ा।

“ये महाकाली को नहीं रोकेगा, परंतु हमें कह रहा है कि हम देवराज चौहान और मोना चौधरी को रोकें।"

"मुझे तो ये दोनों भाई ही कुछ ज्यादा समझदार लगते हैं।" सोहनलाल ने कहा।
 
सोबरा मुस्कराकर उन्हें देखता रहा।

“तुम अपने को चालाक समझते हो सोबरा।” जगमोहन बोला।

"ऐसी तो कोई बात नहीं है।” सोबरा ने कहा।

“तुमने कैसे सोच लिया कि हम देवराज चौहान और मोना चौधरी को रोकेंगे।”

"रोकना पड़ेगा।”

"क्यों?

“नहीं तो महाकाली के जाल में फंसकर वे दोनों जान गंवा देंगे।" सोबरा ने कहा।

"फिर तू महाकाली से क्यों नहीं कह देता कि... "

"मैंने पहले ही कहा है कि महाकाली को अपनी मर्जी से नहीं चलाया जा सकता।"

“परंतु तेरे कहने पर ही तो उसने जथूरा को कैद कर रखा है।"

"बेशक।”

"फिर तू महाकाली से कहेगा तो वो तेरी बात क्यों नहीं मानेगी?" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

"मैं क्यों कहूंगा। मैं तो चाहता ही नहीं कि जथूरा आजाद हो।" जगमोहन व सोहनलाल की नजरें सोबरा पर थीं।

"ऐसा है तो तू देवराज चौहान और मोना चौधरी की चिंता क्यों कर रहा है?" _
 
"मैं क्यों कहूंगा। मैं तो चाहता ही नहीं कि जथूरा आजाद हो।" जगमोहन व सोहनलाल की नजरें सोबरा पर थीं।

"ऐसा है तो तू देवराज चौहान और मोना चौधरी की चिंता क्यों कर रहा है?" ___

“मुझे उन दोनों से ज्यादा इस बात की चिंता है कि जथूरा आजाद न हो सके। देवा और मिन्नो, कहीं जथरा को आजाद न करा लें। वैसे इस बात की आशा एक प्रतिशत भी नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूं देवा और मिन्नो अपने नाम का तिलिस्म तोड़ने के लिए
आगे बढ़े ही नहीं। पोतेबाबा की चेष्टा बेकार चली जाए।” । ___

“इसलिए तुम हमें कह रहे हो कि हम देवा-मिन्नो को रोकें कि वो ये काम न करें। ___

"दोनों ही बातें हैं। ये तो तय है कि वो आगे बढ़े तो महाकाली के फंदे में फंसकर जान गंवा बैठेंगे।"

“पक्के हरामी हो।"

“गाली मत दो।” सोबरा ने जगमोहन को घूरा।

"ये गाली नहीं तमगा है।"

“मेरी बात मानोगे तो फायदे में रहोगे। देवा और मिन्नो बच जाएंगे।" सोबरा शांत स्वर में बोला। __

"मेरे खयाल में तुम इस बात से घबरा रहे हो कि देवराज चौहान और मोना चौधरी कहीं तिलिस्म तोड़कर जथूरा को आजाद न करा लें।"

सोबरा ने नानिया को देखा।

"नानिया! तुम समझाओ इन्हें कि मेरा क्या मतलब है।” सोबरा बोला।

"देखो सोबरा।” नानिया बोली—“सोहनलाल को मैं समझाऊंगी नहीं, क्योंकि ये बहुत समझदार है। रही बात जगमोहन की तो, इसे मैं समझा नहीं सकती, क्योंकि ये सिरे से ही बेवकूफ है।”

सोबरा ने नानिया को देखा। नानिया ने दूसरी तरफ मुंह फेर लिया।

"बहुत समझदार हो गई लगती है तू।” सोबरा का स्वर तीखा हो गया।

"क्यों न होऊंगी। तूने कालचक्र में मुझे रानी साहिबा बनाकर रखा था। बातें करनी क्यों नहीं आएंगी मुझे। (नानिया के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़े अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'पोतेबाबा')

"नानिया अब मेरी है।” सोहनलाल बोला।

"होगी। मुझे इससे कोई मतलब नहीं।” सोबरा ने कहा—“मैं चाहता हूं तुम लोग देवा-मिन्नो को रास्ते पर ले आओ कि वो जथूरा को आजाद कराने की न सोचें।” ___

“बेहतर होगा कि तुम महाकाली को समझाओ।” जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा। ___

“लगता है, बात नहीं बनेगी।” सोबरा कह उठा—“देवा-मिन्नो की लाशें ही साथ लेकर अपनी दुनिया में जाओगे।"

“बकवास मत कर।” जगमोहन गुर्राया। तभी सोहनलाल कह उठा।
“अगर हम देवराज चौहान और मोना चौधरी को समझाना चाहें तो हमें उनके पास जाना होगा।"

“तो तुम तैयार हो मेरी बात मानने के लिए।” सोबरा ने उसे देखा। ___

“तैयार भी हो जाएं तो जैसा कि तुमने कहा है कि देवराज चौहान व मोना चौधरी कल सुबह महाकाली की उस पहाड़ी की तरफ जाने वाले हैं तो हमें उनके पास पहुंचने में बहुत वक्त लगेगा। शायद, तब तक वो पहाड़ी पर पहुंच भी जाएं।”

"उसकी फिक्र मत करो। उन तक पहुंचने का रास्ता में बना दूंगा।"

"कैसे?"

"तिलिस्मी पहाड़ी के उल्टी तरफ से, तुम लोगों को भीतर प्रवेश करा दूंगा। उल्टी तरफ से तिलिस्मी पहाड़ी का रास्ता तय करोगे तो तुममें से किसी को कुछ नहीं होगा। खतरा नहीं आएगा। परंतु जब पलटकर आगे बढ़ना चाहोगे तो कदम-कदम पर खतरे होंगे। बहरहाल तुम लोग उल्टी तरफ से भीतर प्रवेश करके, देवा और मिन्नो को तिलिस्मी रास्तों पर तलाश कर सकते हो। उन्हें समझा सकते हो। रोक सकते हो। अगर ये काम तुमने कर दिखाया तो महाकाली तुम लोगों को पहाड़ी से सुरक्षित बाहर निकाल लेगी और सब ठीक रहेगा।"

जगमोहन कुछ कहने लगा कि तभी वहां महाकाली की आवाज गूंजी।
“सोबरा।"

“ओह, महाकाली।” सोबरा तनिक सीधा हुआ।

"मैंने सब इंतजाम कर दिए हैं। देवा-मिन्नो ने तिलिस्मी पहाड़ी में प्रवेश किया तो बच नहीं सकेंगे।"

“ये तो अच्छी खबर सुनाई।"

जगमोहन, सोहनलाल और नानिया की निगाह उस चमकते बिंदु पर जा टिकी थी, जो फर्श से कुछ फुट ऊपर हवा में इधर-उधर डोल रहा था।

“देवा-मिन्नो के साथ बेला, भंवर सिंह, नीलसिंह, परसू व त्रिवेणी भी जा रहे हैं।"

“वो भी मरेंगे महाकाली।” सोबरा बोला।
 
"अवश्य। परंतु बुरी खबर भी है।"

"वो क्या?"

"उनके साथ जथूरा की बेटी तवेरा भी...।"

"ये बात मैं जानता हूं महाकाली।" सोबरा कह उठा।

"नीलकंठ के बारे में भी जानता है?"

“नीलकंठ?" सोबरा चौंका—“नीलकंठ का इस मामले से क्या वास्ता?"

“वो मिन्नो को चाहता था।” महाकाली की आवाज सुनाई दे रही थी।

"जानता हूं।"

“उसकी चाहत ने अब फिर जोर मारा है। मिन्नो को कोई खतरा न हो, इसलिए वो मिन्नो के साथ हो गया है।"

“परंतु नीलकंठ तो समाधि में...।"

"वो समाधि में ही है, परंतु अपनी शक्तियां उसने मिन्नो के साथ कर दी हैं।"

“तो ये बात है। तूने उसे समझाया नहीं।" ___

"मेरी बात तो सुनने को तैयार नहीं। लेकिन वो मिन्नो को बचा नहीं सकेगा।” महाकाली के स्वर में क्रोध आ गया था। ___

“नीलकंठ को बीच में नहीं आना चाहिए था।” सोबरा ने गम्भीर स्वर में कहा। ___

“मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस तरह कोई भी महाकाली का मुकाबला नहीं कर सकता। .. "

तभी जगमोहन कह उठा।

"मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं महाकाली।"

“बोल जग्गू।” महाकाली की आवाज आई।

“तुम मुझे जानती हो?"

"मैं सबको जानती हूं। मुझसे कुछ भी छिपा नहीं है। बता, क्या बात है?"

“ये जथूरा और सोबरा की बात है। दो भाइयों का मामला है। तुम इनके बीच में क्यों आती हो?" जगमोहन बोला। -

“सोबरा की वजह से मुझे आना पड़ा। वरना, ऐसे कामों की मुझे फुर्सत ही कहां है।" महाकाली की आवाज आई।

“सोबरा को मना कर... "

“सोबरा का एक एहसान था मुझ पर, उसी कारण सोबरा की बात मानकर ये काम कर रही हूं।"

सोबरा के होंठों पर शांत मुस्कान टिकी थी।

"देवराज चौहान का क्या करेगी तू?"

“वो सब कल सुबह जथूरा को आजाद कराने के लिए चल रहे हैं। उस तिलिस्मी पहाडी पर आएंगे, जहां मैंने जथरा को कैद कर रखा है।” महाकाली की आवाज कानों में पड़ रही थी।

"तू देवराज चौहान से डरती है?" ।

“मैं क्यों डरूंगी देवा-मिन्नो से। वो मेरे लिए कोई अहमियत नहीं रखते।" ___

"तो फिर उन्हें मुसीबत में डालने का इंतजाम क्यों करके आई है?" जगमोहन बोला। __

_क्योंकि जथूरा की आजादी का तिलिस्मी ताला मैंने देवा-मिन्नो के नाम से बांध दिया था। मैंने सोचा दोनों में झगड़ा है, तो कभी दोनों इकट्ठे होंगे ही नहीं और जथूरा की आजादी का तिलिस्मी ताला हमेशा बंद रहेगा। परंतु पोतेबाबा दोनों को इकट्ठा करके यहां ले आया। देवा-मिन्नो जथूरा को आजाद कराने की चाह रखते हैं।" __

“इसका मतलब तुझे डर है कि दोनों जथूरा को आजाद करा लेंगे।"

महाकाली की आवाज नहीं आई। कुछ पल शांति रही फिर महाकाली की आवाज आई।

“सारा खेल देवा-मिन्नो के ग्रहों का है। इन दोनों के ग्रह जब इकट्ठे हो जाएं तो ये कठिन से कठिन काम को भी सरलता से कर लेते हैं। सिर्फ इसी बात से मुझे तनिक चिंता है।"

“मतलब कि तू डरती है दोनों से।"

“ऐसा मत बोल।"

"मेरी बात मानेगी?"

"कह।"

"देवा-मिन्नो या उनके किसी साथी की जान मत लेना। जथूरा को आजाद कर दे।”

"मैं तेरी बात क्यों मानूं?"

"शराफत के नाते।

“यहां सिर्फ कर्म चलते हैं। शराफत नहीं चलती।” महाकाली की आवाज में हंसी आ गई—“देवा-मिन्नो रुकने को तैयार नहीं। वो जानते हैं कि महाकाली की कैद में है जथूरा, फिर भी वो आगे बढ़ने को तैयार हैं तो मैं पीछे क्यों हटूं?" ।

"देवराज चौहान और मोना चौधरी के ग्रह मिलकर तुझे हरा देंगे।"
 
“महाकाली को तु जानता नहीं, वरना ऐसा न कहता।"

"तू ताकतवर है तो कमजोर से क्यों झगड़ा करती है।"

“जग्गू, तू मुझे बातों में लपेटने की कोशिश कर रहा है। लेकिन मैं तेरी बातों में आने वाली नहीं।"

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

"तेरे को देवा-मिन्नो की चिंता है तो तू उन्हें मेरी तिलिस्मी पहाड़ी की तरफ जाने से रोक क्यों नहीं लेता?" ।

"तू देवराज चौहान और मोना चौधरी को जानती है?"

"कुछ-कुछ।”

"तो ये नहीं जानती कि देवराज चौहान एक बार फैसला ले ले तो उसे रोकना कठिन है।"

"तो ये बात है।" ___ "देवराज चौहान भी जानता होगा कि जथूरा को आजाद कराने में, महाकाली नाम के खतरे को पार करना पड़ेगा।"

___ “अब जान चुका है वो।" __

"फिर भी वो इस काम के लिए तैयार हो गया है तो उसे रोका नहीं जा सकता।"

महाकाली की छोटी सी हंसी गूंजी।
"फिर तो ये अच्छी बात है कि तू और गुलचंद सोबरा के पास आ गए।"

"क्यों?"

“उनकी लाशें ले जाने वाला कोई तो चाहिए होगा।” महाकाली ने व्यंग से कहा।

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“तू बहुत बड़ी बात कह गई महाकाली।” सोहनलाल कह उठा।

"मेरी बात तू देख लेना गुलचंद ।”

"मैं शर्त नहीं लगा रहा। लेकिन तूने बड़ी बात कह दी। देवराज चौहान को मारना इतना भी आसान नहीं है।"

"मैं तेरे को उसकी मौत दिखा के रहूंगी।"

"बहुत घमंड है खुद पर।"

"ये घमंड नहीं, मेरी ताकतें हैं, जबकि देवा, मिन्नो साधारण इंसान हैं। वो मर के ही रहेंगे।"

तभी जगमोहन बोला।
“महाकाली, मुझे देवराज चौहान की चिंता है। लेकिन तू सब ठीक कर सकती है।”

“वो कैसे?" ___

“पूर्वजन्म में प्रवेश करने पर देवराज चौहान और मोना चौधरी को यहां का एक बिगड़ा काम ठीक करना पड़ता है। तभी उनकी वापसी के दरवाजे खुलते हैं। हो सकता है ये काम करना, इसी वजह से देवराज चौहान की मजबूरी रहा हो।"

"फिर?

“तू कोई दूसरा बिगड़ा काम बता दे। मैं देवराज चौहान को उस काम पर लगाने की चेष्टा करूंगा।"

"ये नियम के खिलाफ है।”

“क्या मतलब?"

“बाहर से आए लोगों को इस दुनिया की कोई जानकारी देने पर मनाही है।

"मनाही है, कौन मना करता है?"

“हमारे भी बड़े हैं, जो हम पर नजर रखे हुए हैं। वो हमें इस बात की इजाजत नहीं देंगे। देवा-मिन्नो अगर इसी दुनिया में होते तो उन्हें हर प्रकार की जानकारी दी जा सकती थी।"

“तेरे को कहीं तो मेरा साथ देना होगा।"

"ये सम्भव नहीं।"

“सोबरा तो हमें बता सकता है कि...।"

“ये भी नहीं बता सकता। इस दुनिया की बात बाहरी लोगों से करना, सबके लिए मना है।
 
"
"हम भी तो कभी इसी दुनिया का हिस्सा थे।"

“जब थे, तब थे। अब बाहरी दुनिया में जन्म ले चुके हो। ये दुनिया तुम लोगों से दूर हो चुकी है।"

“तो फिर बार-बार, किसी-न-किसी बहाने, हमारा पूर्वजन्म में प्रवेश क्यों होता है?"

"क्योंकि तुम सबके तार पूर्वजन्म से बंधे हैं। तुम लोगों के ढेरों अधूरे काम थे, जो आज भी अधूरे पड़े हैं। उन्हें पूरा करने के लिए तुम लोगों को पूर्वजन्म का फेरा लगाना ही पड़ता है।" महाकाली की आवाज गूंज रही थी।

सोहनलाल और नानिया की निगाह चमकते बिंदु पर टिकी थी।

सोबरा शांत मुस्कान के साथ अपनी जगह पर बैठा था।

"ये बात है तो तुम देवराज चौहान की जान ले लोगी तो फिर अधूरे काम कैसे पूरे होंगे?"

"होगे। दोबारा जन्म कराया जाएगा देवराज चौहान का।"

"कौन कराएगा?"

"बड़ी शक्तियां। जो जीवन और मृत्यु का हिसाब रखती हैं। जब तक देवा-मिन्नो के पूर्वजन्म के अधूरे काम पूरे नहीं होते, उन्हें जन्म लेते रहना होगा। ऐसा ही लिखा है बड़ी ताकतों ने।"

"तो ये सिलसिला नहीं रुकेगा?"

“जब काम खत्म हो जाएंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।" महाकाली की आवाज गूंज रही थी।

"ऐसी बात है तो तुम्हें, चाहिए कि हमें सहयोग दो, ताकि हमारे काम जल्दी पूरे हों।” ___

“महाकाली से कभी सहयोग की आशा मत रखना। मझे अपने कर्म बहत प्यारे हैं। अपने कमों के सहारे मैंने भी अपनी मंजिल पानी है, मुझे अभी बहुत ऊंचे जाना है। मेरा लम्बा सफर बाकी है।"

तभी सोहनलाल ने जगमोहन से कहा। "इससे बात करने का कोई फायदा नहीं।"

“गुलचंद ठीक कहता है। मुझसे बात करने का कोई फायदा नहीं। मैं तुम्हारे किसी काम न आ सकूँगी। अपना कर्म करो। इस वक्त तुम दोनों का कर्म ये है कि देवा-मिन्नो का रास्ता बदल दो।" महाकाली की आवाज आई।

जगमोहन होंठ भींचे रहा। सोहनलाल व्याकुल दिखा। सोहनलाल को परेशान देखकर नानिया कह उठी। “तुम क्यों चिंता करते हो, तुम तो खतरे में नहीं हो।"

"देवराज चौहान है।” सोहनलाल ने नानिया को देखा।

"क्या इस बात से तुम्हें फर्क पड़ता है?"

“हां। देवराज चौहान को कुछ नहीं होना चाहिए। वो मेरा पुराना दोस्त है।"

"तो ये बात है।"

तभी महाकाली ने सोबरा से कहा। “तुम आराम से रहो सोबरा। जथूरा मेरी कैद में सुरक्षित है।"

"मुझे तुम पर पूरा भरोसा है महाकाली।” सोबरा ने मुस्कराकर कहा।
“अब मैं जाती हूं।" तभी सबके देखते ही देखते वो चमकीला बिंदु गायब हो गया।
 
जगमोहन ने सोबरा से कहा।
“तुम अगर महाकाली के बढ़ते कदमों को रोक दोगे तो मैं तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा।"

"कभी नहीं, ये नहीं हो सकता। मैं जथूरा को आजाद नहीं देखना चाहता। तुम्हारे सामने एक ही रास्ता है कि तुम देवा से मिलो
और उसे समझाओ कि ये रास्ता उसके हक में सही नहीं है।" । ___

“वो मेरी बात नहीं मानेगा। खतरे को समझने के बाद ही उसने रास्ता चुना होगा।"

इसी पल नानिया ने सोबरा से कहा। "अगर हम तुम्हारी बात न माने तो तुम क्या करोगे?"

“वाह नानिया, तू तो पूरी तरह इनके साथ हो गई।"

“मैं सोहनलाल से ब्याह करने वाली हूं।" ।

“जरूर कर। तुझे कौन रोकता है।” सोबरा ने हंसकर कहा।

"मेरी बात का जवाब दे सोबरा।"

"मेरी बात नहीं मानोगे तो, मैं कुछ भी नहीं करूंगा। समझाना मेरा काम है।”

“तो हम अभी यहां से जथूरा की नगरी, देवराज चौहान के पास जाना चाहते हैं।" जगमोहन ने कहा।

“मैं तुम लोगों को जाने नहीं दूंगा। मेरी नगरी में तुम लोग कहीं भी जा सकते हो, परंतु नगरी से बाहर नहीं जा सकते।"

"क्यों?"

“क्योंकि तुम लोग मेरी बात नहीं मान रहे। देवा-मिन्नो को आगे बढ़ने से रोक नहीं रहे।" ___

“महाकाली ने तुम्हें विश्वास दिलाया है कि देवराज चौहान जिंदा नहीं बचेगा। ऐसे में तुम्हें इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि हमने तुम्हारी बात मानी कि नहीं। हमें कैद में रखकर तुम्हें क्या मिलेगा।"

“महाकाली अपना काम कर रही है और मैं अपना।”

"मुझे लगता है कि तुम किसी चिंता में हो।” सोहनलाल बोला।

"कुछ चिंता तो है मुझे जो तुम्हें कह रहा हूं कि देवा-मिन्नो को आगे बढ़ने से रोको।"

"अपनी चिंता के बारे में बताओगे नहीं?" सोबरा ने कुछ पल सबको देखा फिर शांत स्वर में कह उठा।

"आज सुबह ही मैंने भविष्य में झांकने की चेष्टा की।"

“भविष्य में?"

“हां। मैं अपनी ताकतों के दम पर भविष्य में झांक सकता हूं। कम-से-कम होने वाली बातों की खबर मैं पहले पा सकता हूं। जब बहुत जरूरी होता है तो मुझे भविष्य में देखना पड़ता है। आज जब जथूरा की कैद के सिलसिले में भविष्य में देखा तो मुझे कुछ भी नजर नहीं आया। सब कुछ धुंधला-धुंधला सा रहा।” सोबरा ने कहा।

"तो इसलिए तम बुरी आशंका में घिर गए।"

“शायद, ये ही बात है।"

"ये बात तुम्हें महाकाली को बतानी चाहिए थी।"

“महाकाली को मैं खामखाह चिंतित नहीं करना चाहता था। मैं नहीं चाहता कि मेरी बात सुनकर वो परेशान हो जाए और जो इंतजाम वो कर रही है, उसमें चूक जाए। परंतु ये बात सच है कि महाकाली से कोई जीत नहीं पाया।”

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

“तुम तीनों जाओ।” सोबरा ने कहा और चांदी का गिलास उठाकर एक ही सांस में खाली कर दिया— “बहुत बात हो गई है हमारे बीच । तुम दोनों को ये भी समझा दिया है कि अगर देवा-मिन्नो को आगे बढ़ने से नहीं रोका तो उनकी मौत हो जाएगी। उन्हें रोकना चाहते हो तो मैं तुम्हें तिलिस्मी पहाड़ी के उस रास्ते से भीतर प्रवेश करा दूंगा कि आगे बढ़ते हुए भीतर कहीं देवा-मिन्नो से मिलो और उन्हें वहीं से वापस ले जाओ। याद रखो, वहां से तुम लोग आगे बढ़ते हुए, पहाड़ी के ऊपरी छोर से बाहर निकलोगे। अगर वापस पलटे तो महाकाली की ताकतें तुम्हें खतरे में डाल देंगी।" । ___

"तुम्हारा मतलब कि तुम हमें उल्टे रास्ते से पहाड़ी के भीतर प्रवेश कराओगे।" जगमोहन बोला।

"ठीक समझे।" जगमोहन खामोश रहा। नानिया सोबरा से कह उठी।

“हमें कुछ सोचने का मौका दो सोबरा।"

“अवश्य । महल में रहकर सोच लो। परंतु ज्यादा वक्त नहीं है। सुबह तक फैसला कर लेना। यहां से बाहर निकलोगे तो बाहर खड़े पहरेदार तुम तीनों को वहां पहुंचा देंगे, जहां, यहां आने पर तुम लोग ठहरे थे।"

जगमोहन, सोहनलाल व नानिया बिना कुछ कहे बाहर निकल गए।

एक पहरेदार उन्हें उसी कमरे में छोड़ गया था। अब वहां उनके अलावा कोई नहीं था। जगमोहन, सोहनलाल के चेहरों पर सोचों के भाव दौड़ रहे थे।

"देवराज चौहान, मोना चौधरी, बाकी सब भारी खतरे में हैं।" जगमोहन कह उठा—“कल सुबह वो सब जथूरा को आजाद कराने, तिलिस्मी पहाड़ी की तरफ रवाना होने वाले हैं और उधर महाकाली ने उनकी मौत के सब इंतजाम कर दिए हैं। समझ में नहीं आता कि हम इस मामले को कैसे ठीक करें।" ___

“सब हालात जानने के बाद ही देवराज चौहान ये काम करने को तैयार हुआ होगा।” सोहनलाल बोला।

"हां, देवराज चौहान ने पहले सब हालात जाने होंगे।”

"तो देवराज चौहान को सफलता दिखी होगी, तभी वो तैयार..."

“सोहनलाल ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा—“इस काम के लिए तैयार होना, देवराज चौहान की मजबूरी भी हो सकती है।" ____

क्योंकि पूर्वजन्म में आकर कोई एक बिगड़ा काम संवारने पर ही, हमारी वापसी के दरवाजे खुलेंगे।"
जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया।

"हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल है कि हमें अब क्या करना चाहिए?"

“सोबरा हमें देवराज चौहान के पास नहीं पहुंचने देगा। वो कहता है हम उसकी नगरी से बाहर नहीं जा सकते। एक तरह से हम सोबरा के कैदी बनकर रह गए हैं। हमारे सामने कोई भी रास्ता नहीं बचा।"

नानिया बोल पड़ी। "मैं रास्ता बताऊं?"

"कहो।” सोहनलाल ने उसे देखा।

"हमें सोबरा की बात मान लेनी चाहिए कि हम तिलिस्मी पहाड़ी के भीतर जाकर उन्हें समझाएंगे।"

“वो समझने वाले नहीं।" जगमोहन बोला।

"तो हमने कौन-सा समझाना है। इस तरह कम-से-कम देवराज चौहान के साथ तो हो जाएंगे।"

“ये ठीक कहती है।” सोहनलाल बोला। जगमोहन के चेहरे पर सोचें उछलीं।

"इस तरह हम सोबरा की कैद में रहने से बच भी सकते हैं और देवराज चौहान के पास भी पहुंच सकते हैं।"

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

"तुम खामोश क्यों हो। मन में कुछ है तो कहो।"

"शायद यही एक रास्ता बचा है हमारे पास।" जगमोहन कह उठा।

“मैंने ठीक कहा न?" नानिया खुशी से बोली।

“तुमने बिल्कुल ठीक कहा।” सोहनलाल मुस्कराया।

"तो चलो, सोबरा से कह देते हैं कि...।"

"अभी नहीं।" जगमोहन कह उठा—“रात का वक्त है हमारे पास। हम इस बारे में और सोचेंगे। सोबरा से सुबह बात करेंगे।"
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मोमो जिन्न एकाएक ठिठका तो लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा भी ठिठक गए। (इन तीनों के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जथूरा' एवं 'पोतेबाबा' ।)

* गहरा अंधेरा छाया हुआ था। आकाश में चंद्रमा और तारे नजर आ रहे थे। ठंडी हवा चल रही थी। परंतु लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा लगातार चलते रहने की वजह से पसीने से तर-बतर थे।

दोनों गहरी-गहरी सांसें लेने लगे।

जबकि मोमो जिन्न गर्दन एक तरफ करके, हौले-हौले सिर हिलाने लगा। स्पष्ट था कि जथूरा के सेवक उसे कोई नया निर्देश
दे रहे थे। इस दौरान मोमो जिन्न की आंखें बंद हो गई थीं। ___

चंद्रमा की रोशनी में लक्ष्मणदास और सपन चड्ढा की नजरें मिलीं। __ “सपन।” लक्ष्मणदास मुंह लटकाकर बोला—“मुझे तो बहुत भूख लग रही है।"

"मझे भी।"

“यहां तो खाने को कुछ भी नहीं है। जंगल जैसी जगह, ऊपर से घना अंधेरा।"

“मोमो जिन्न ने हमें बुरा फंसा दिया।" _“पहले ये कितना अच्छा था जब इसके भीतर इंसानी इच्छाएं आ गई थीं। यार बनकर रह रहा था। खुद भी खाता था और हमें भी खिलाता था। कितने प्यार से बोलता था।” लक्ष्मण दास ने गहरी सांस लेकर कहा।

“अब तो कड़क रहता है।"

“खुद को हमारा मालिक कहता है।"

“जबर्दस्ती मालिक बन गया हमारा। कितना अच्छा बिजनेस करते थे हम । अमीर हैं हम। परंतु मोमो जिन्न ने हम पर कब्जा करके, हमें फकीर से भी बुरा बना दिया। भूखे पेट रहना पड़ रहा


___ “बहुत कमीना है ये।"

_ “बहुत ही कमीना। कहता है कि जिन्न झूठ नहीं बोलते, परंतु इसने सब कुछ हमें झूठ बोला। हमें सोबरा के पास ले जा रहा था। कहता था सोबरा से कहकर, हमें वापस हमारी दुनिया में भिजवा देगा। कसमें खाता था। हम दोनों भोले हैं जो इसकी बात मानते रहें। अब कहता है, सोबरा के पास नहीं जाना है।" ___

"क्योंकि इसके भीतर जो इंसानी इच्छाएं आई थीं, वो गायब हो गई हैं। ये फिर से असली जिन्न बन गया।"

“लेकिन हमारी तो मुसीबत बढ़ गई। यहां तो पेट भरने के लाले पड़ गए हैं।"

सपन चड्ढा थोड़ा करीब आया। मोमो जिन्न पर नजर मारी। मोमो जिन्न अभी भी सुनने-सुनाने में व्यस्त था।

“लक्ष्मण भाग चलते हैं।"

"ये जिन्न हमें भागने देगा तब न।"

"ये बातों में व्यस्त है। मौका अच्छा है।"

“पागल न बन। इसकी नजर हम पर ही है।"

"तो क्या करें?”

"रात को भागेंगे। इससे कहते हैं कि हम थक गए हैं। हमें नींद आ रही है, उसके बाद...।"

"लेकिन जिन्न को तो नींद आती नहीं। ये जागता रहेगा।"

"ओह, ये तो मैं भूल गया था।” ।

"जब तक इसके साथ रहेंगे, ये हमें नचाता रहेगा।"

“मेरे खयाल में हमें नींद लेने का नाटक करना चाहिए और रात को मौका पाते ही खिसक लेंगे।"

"लेकिन जाएंगे कहां?”

"ये बाद में सोचेंगे। पहले इससे तो पीछा छूटे।"

"वो देख, शायद उसकी बातें खत्म हो गई हैं।" मोमो जिन्न सिर हिलाकर इन दोनों की तरफ पलटा।

“तुम दोनों एक-दूसरे के कान में क्या खुसर-फुसर कर रहे हो।" मोमो जिन्न ने दोनों को गहरी निगाहों से देखा। ____

“खुसर-फुसर?" लक्ष्मण दास जल्दी से कह उठा-"क्या कह रहे हो, हम तो एक-दूसरे की थकान और भूख के बारे में...।" ___

"फिर भूख।” मोमो जिन्न मुंह बनाकर कह उठा—"तुम इंसानों की ये बुरी समस्या है कि बात-बात पर कुछ खाने को कहते हो। शुक्र है कि बनाने वाले ने जिन्नों को पेट की बीमारी नहीं लगाई।"

“ये बीमारी तो तुम्हें भी लगी थी, जब तुम जलेबियां-रबड़ी-तरबूज खाते थे और हम तुम्हारी इच्छाएं पूरी करते थे। भूल गए तुम कि तुम्हें सिल्क का कुर्ता-पायजामा भी सिलवाकर... "

“ये बातें मत करो।”

“क्यों-क्या हम गलत... ।”

"बीच में, कुछ वक्त के लिए, किसी ने मेरे भीतर इंसानी इच्छाएं भर दी थीं।" मोमो जिन्न मुंह बनाकर बोला—“तभी तो मेरी इच्छा खाने-पीने और कपड़े पहनने की हुई।"

"तब तुम अपने मतलब को, हमारे यार बन गए थे।"

“वो वक्त मुझे याद मत दिलाओ।"

"क्यों?" सपन चड्ढा ने तीखे स्वर में कहा।

“जिन्न को ये सब सुनना अच्छा नहीं लगता।” मोमो जिन्न ने गहरी सांस ली।

"तब तुमने हमसे वादे भी किए थे।"

“तुमने हमें वापस हमारी दुनिया में पहुंचाने का वादा किया था।"

"तब हम तुम्हारी इच्छाओं के बारे में ढोल पीट देते तो ये बात जथूरा के सेवकों को पता चल जाती। वे तुम्हें मार देते। हमने अपना मुंह बंद रखकर तुम्हारा भला किया और तुम एहसानफरामोश हो कि सब भूल गए।"

"खामोश।” मोमो जिन्न कठोर स्वर में बोला—“जिन्न कभी एहसानफरामोश नहीं होता।”

"लेकिन तुम हो।”

"अपनी जुबान को लगाम दो।"

“तुम कमीने-झूठे-मक्कार... "

मोमो जिन्न गुस्से से आगे बढ़ा और सपन चड्ढा की गर्दन थाम ली।
सपन चड्ढा को अपनी सांस रुकती सी महसूस हुई।

“ये क्या कर रहे हो।" लक्ष्मण दास हड़बड़ाकर बोला—“ये मर जाएगा।"

"इसने मेरे साथ बदतमीजी की।”

“वो तो ठीक है लेकिन जो बातें कही हैं, उसमें कुछ भी झूठ नहीं है।” ___

“तब मुझमें इंसानी इच्छाएं थीं। मुझे अपने अच्छे-बुरे का पता नहीं था।" ___

"लेकिन तुमने हमसे वादे तो किए थे। तब भी तो तुम जिन्न

“म... मेरा गला।” सपन चड्ढा फंसे स्वर में बोला।

“पहले इसका गला छोड़ो।"

मोमो जिन्न ने सपन चड्ढा का गला छोड़ दिया। सपन चड्ढा गला मसलता, गहरी-गहरी सांसें लेने लगा।

"तुम हमें धोखे में रखकर यहां ले आए। लक्ष्मणदास ने कहा।

"तम दोनों मेरे गलाम हो।" ।

"हम किसी के गलाम नहीं हैं।" लक्ष्मणदास गुस्से से कह उठा।

“परंतु तुम हो। जिन्न या तो खुद गुलाम बनता है या बनाता है। मैंने तुम दोनों को.... "

“लक्ष्मण।” सपन चड्ढा गहरी सासें लेता कह उठा—“ये बहुत बड़ा कमीना है।" ___

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।"

"तुम्हारी ये हिम्मत कि मोमो जिन्न से इस तरह बात करो।" मोमो जिन्न सख्त स्वर में बोला।

“तुम इसी लायक हो।”

“ओफ्फ—मैंने तुम दोनों को अपना गुलाम बनाकर अपनी इज्जत खराब कर ली है।"

“तुमने जो हमसे वादे किए, वो अब कहां गए। तुम स्वयं ही बेइज्जत जिन्न हो। वरना जिन्न तो ऐसे होते हैं कि जो कह देते हैं मरते दम तक अपना कहा पूरा करते हैं। तुम तो...।"

“आज तक तुम कितने जिन्नों से मिले हो जो ये बात कह रहे हो।” मोमो जिन्न ने दोनों को घूरा।

“ये बात हम तुम्हें नहीं बताएंगे।"

“सीक्रेट है।"

"क्या चाहते हो तुम दोनों?" मोमो जिन्न गम्भीर था।

“हम, वापस अपनी दुनिया में जाना चाहते हैं। तुमने वादा किया था कि हमें हमारी दुनिया में पहुंचा दोगे।

“पहुंचा दूंगा। परंतु कुछ समय बाद ।"

“तुम अब भी झूठ बोल रहे हो।"

“जिन्न को झूठा मत कहो।”

“तुम इस वक्त हमें महाकाली की तिलिस्मी पहाड़ी पर ले जा रहे हो। वहां हम मर गए तो तुम अपना वादा कैसे पूरा करोगे।"
मोमो जिन्न खामोश रहा।

“लक्ष्मण, तुम इसकी किसी बात का भरोसा मत करना।" ___

"कहने की क्या जरूरत है। मैं तो पहले ही भरोसा नहीं कर रहा। सिर्फ इसे भुगत रहा हूं।"

“पहले कहा करता था कि मैं तुम्हारे लिए जान दे दूंगा। इसकी बातों में आकर हम इसे जलेबी-रबड़ी-तरबूज खिलाते रहे। सिल्क के कपड़े सिलवाकर देते रहे और अब... " __

"जिन्न के बारे में कैसी बातें कर रहे हो।” मोमो जिन्न बोला—"मुझे तो घिन आ रही है।"

“तेरे को तो टापू पर अपने हिस्से का खाना भी खिलाया था। तब तू डकार मारा करता था।" __

“छी-छी—कैसी बातें करते हो। भला जिन्न भी कभी डकार मारते

__ “तुम मारते थे।"

"ओह कितना बुरा बन गया था मैं। जाने किस शैतान ने मुझमें इंसानी इच्छाएं भर दी थीं।"

“देख तो कैसा शरीफ जिन्न बन रहा है अब तो।"

"मेरा तो दिल करता है कि पटकी दे दूं इसे।"

"कमीना है ये।”
 
"तुम दोनों मुझसे बहुत दुखी लगते हो।” मोमो जिन्न गम्भीर स्वर में कह उठा। ___

“क्या ये बात तेरे को अब पता चली है। हम तो आत्महत्या करने की सोच रहे हैं।" __

“मुझे मालूम है इंसान आत्महत्या कर लेते हैं। ठीक है, तुम दोनों भी कर लो।"

“क्या?" लक्ष्मण दास हड़बड़ाया।

“हम आत्महत्या कर लें?" सपन चड्ढा को कुछ कहते न सूझा।

"तुम ही तो कह रहे थे।"

“वो तो...वो तो यूं ही उदाहरण वाली बात थी। हमने ये तो नहीं कहा कि हम आत्महत्या करने जा रहे हैं।" ___

“क्या मुसीबत है।" लक्ष्मण दास बड़बड़ा उठा—“इस जिन्न ने तो हमारी इज्जत उतार दी।”

"

"दिल छोटा न करो।” मोमो जिन्न बोला—“मैं तुम दोनों को वापस तुम्हारी दुनिया में पहुंचा दूंगा।"

"कब?”

"सिर्फ एक काम पूरा होने के बाद।"

“कौन-सा काम?"

“जथूरा तिलिस्मी पहाड़ी के भीतर कहीं कैद है। उसे वहां से आजाद कराना है।”

"तो हम क्या करें।"

"हमारा इस बात से क्या वास्ता?"

"तुम लोगों को मेरे साथ रहना है। ऐसा जथूरा के सेवकों ने मुझे आदेश दिया है। क्यों, ये तो वो ही जानते होंगे। और जिन्न अपने मालिक से मिले आदेशों को हर हाल में पूरा करता है।" __

“लेकिन तुम तो जथूरा के गुलाम हो। उसके सेवकों के नहीं। और जथूरा कैद में है। तुमने बताया।" __

“जथूरा की गैरमौजूदगी में, जथूरा के सेवक मुझे आदेश देने का हक रखते हैं। मेरे लिए एक ही बात है। अभी-अभी मुझें बताया गया है कि कल सुबह देवा-मिन्नो-बेला, भंवर सिंह-त्रिवेणी, नील सिंह, परस, कमला रानी, मखानी, तवेरा, गरुड़ वगैरहा, महाकाली की तिलिस्मी पहाड़ी की तरफ रवाना हो रहे हैं कि जथूरा को आजाद करा सकें। हमें तिलिस्मी पहाड़ी के पहले, एक खास जगह रुकने को कहा गया है और उन सबके वहां पहुंचने पर, उनका साथ देने को कहा है।” ___

“नई मुसीबत।” लक्ष्मण दास बड़बड़ाया।

“हम भला इस मामले में उनका क्या साथ देंगे।" सपन चड्ढा बोला— “हम वहां मारे जाएंगे।” ।

“मैं तुम दोनों की रक्षा करूंगा।" मोमो जिन्न बोला।

"तुम हम दोनों को यहीं छोड़ दो। तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी। हम लुढ़कते-ठोकरें खाते किसी तरह अपनी दुनिया में पहुंच जाएंगे।" ___

“नादान हो जो ऐसी बातें कर रहे हो। अभी तक इस बात को नहीं समझे कि तुम दोनों इस वक्त नई दुनिया में आ चुके हो। यहां से वापस चले जाना, आसान नहीं है। देवा और मिन्नो ही तुम्हें वापस ले जा सकते हैं।”

“तुम नहीं।"

“जथूरा चाहे तो मैं भी तुम दोनों को वापस तुम्हारी दुनिया में पहुंचा सकता हूं।” मोमो जिन्न ने कहा—“अब ये सब बातें छोड़ो
और यहां से चलो। हमें अभी आगे चलना है।"

“मेरे में जरा भी हिम्मत नहीं है चल पाने की।"

"मेरा भी यही हाल है।"
 
“महाकाली की तिलिस्मी पहाड़ी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। उससे पहले ही एक जगह पर हमें ठहर जाना है। वहां पर आराम कर लेना। वो लोग कल दिन ढले ही वहां पहुंचेंगे।" मोमो जिन्न ने कहा—“चलो यहां से।"

लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा की नजरें मिलीं। __“इसे कहने का कोई फायदा नहीं होगा। ये अपनी बात मनवा के ही रहेगा।" सपन चड्ढा बोला।

“चलो। वहां हमें आराम करने का काफी वक्त मिलेगा।"

फिर वे तीनों अंधेरे में चल पड़े। मोमो जिन्न दो कदम आगे चल रहा था।

“वहां आराम करते हुए जब ये लापरवाह होगा तो हम भाग जाएंगे।" सपन चड्ढा धीमे से कह उठा।

“मैं भी यही सोच रहा हूं।" लक्ष्मण दास फुसफुसाया।

"जिन्न कभी लापरवाह नहीं होते।” आगे जाता मोमो जिन्न कह उठा—“इसलिए तुम दोनों भाग नहीं सकते।"
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आधी रात का वक्त हो रहा था।

जथूरा के महल के उस हॉल में चुप्पी ठहरी हुई थी। वहां देवराज चौहान, नगीना, मोना चौधरी, रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर, महाजन, पारसनाथ, मखानी और कमला रानी मौजूद थे।

कुछ नींद में थे तो कुछ जाग रहे थे।

जागने वालों में से देवराज चौहान, मोना चौधरी, मखानी और कमला रानी थे। हॉल की रोशनी मध्यम थी कि नींद लेने में उन्हें परेशानी न हो।

मखानी ने हर तरफ नजरें घुमाईं। मोना चौधरी को उसने टहलते पाया। देवराज चौहान सोफे जैसी कुर्सी पर टांगें पसारे बैठा था।

मखानी आहिस्ता से कमला रानी के पास सरक आया। जो कि लेटी छत को देखती सोच रही थी।

“क्या है?" कमला रानी ने मखानी को देखा।

मखानी ने दांत फाड़े।

"सोचने दे, पीछे हो जा।” कमला रानी कह उठी।

"तू रात के अंधेरे में कितनी खूबसूरत लगती है।" मखानी ने दांत फाड़कर कहा।

"अच्छा।” कमला रानी ने व्यंग-भरी नजरों से उसे देखा—“कहीं अब तू बाथरूम की तरफ जाने को तो नहीं कहने वाला।"

"ओह, तूने तो मेरे दिल की बात पकड़ ली।"

“मूड खराब मत कर।” |

"चल ना।” मखानी ने आग्रह किया।

"बिल्कुल नहीं।”

"तो यहीं पर... "

"सीधा हो जा। मैं मशीन नहीं हूं। दिन में दो बार तूने कर लिया था।"

"सिर्फ दो बार ही तो किया।"

“तो क्या दस-बीस बार करेगा।"

“कम-से-कम तीन-चार बार तो होना चाहिए।” मखानी ने मुंह लटकाकर कहा।

"तु इंसान है या जानवर, जो...।"

"तेरे को तो पता ही है कि मैं क्या हूं। स्वाद तू चख चुकी है।" मखानी बोला—“क्या पता आने वाले वक्त में कब मौका मिलता है। इसलिए पहले ही पेट भरकर रख लं तो ठीक रहेगा।"

इसी पल शौहरी की आवाज कानों में पड़ी। “मखानी! तू बहुत लालची हो गया है।"

"तेरे को क्या, मैं कमला रानी को पटा रहा हूं तो तुझे क्यों जलन होती है।"
 
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