hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
ससुरजी ने कुछ देर सासुमाँ को चोदा फिर कहा, "कौशल्या, मुझे तो तुम्हारी यह योजना ठीक नही लग रही. माँ-बेटे का संबंध बहुत ही गलत बात है. पर जो तुम्हे ठीक लगे करो."
सासुमाँ मेरे नीचे लेटे मेरे चूतड़ों को मसल रही थी और मेरी चूत चाट रही थी. मैं उनके ऊपर लेटे उनकी चूत की चुदाई देख रही थी. ससुरजी का ठाप लेती हुई वह बोली, "देखना, जब तुम्हारे दोनो बेटे...तुम्हारे सामने...अपनी माँ को चोदेंगे...तुम्हे देखने मे बहुत मज़ा आयेगा."
ससुरजी मुंह से जो भी कहें, अपनी पत्नी को अपने बेटों के चुदवाने की कल्पना करके उनको काफ़ी मज़ा आया था. सासुमाँ के टांगों को पकड़ के जोरों की ठाप लगाने लगे.
सासुमाँ भी मज़े लेते हुए बोली, "हाय, बहुत जबरदस्त चोदाई कर रहे हो मेरे राजा!! और चोदो मुझे! आह!! मज़ा आ गया बहु के साथ तुमसे चुदवाने मे! मैं हमारे बेटों से चुदुंगी सुनकर...लगता है तुमको...कुछ ज़्यादा ही चढ़ गयी है."
"हाँ कौशल्या!" ससुरजी हांफ़ते हुए बोले, "अब मुझसे रुका नही जा रहा. मैं सच मे देखना चाहता हूँ बलराम तुम्हारी चूत कैसे मारता है. आह!! ले साली रंडी! अपने बेटे से चुदवाना चाहती है! ले मेरा लन्ड!"
"हाय राजा! बस थोड़ी देर और पेलो!" सासुमाँ लगभग चीखकर बोली, "मैं बस झड़ने वाली हूँ! हाय! आह!! पेलो और जोर से!! उम्म!! आह!! चोद डालो!! हाय!!" बोलकर वह झड़ने लगी.
ससुरजी भी दमदार ठुकाई करते हुए सासुमाँ की चूत मे झड़ने लगे. "आह!! ले साली रंडी!! ले अपने गर्भ मे!! आह!! कुतिया, कल तु अपने बेटे का पानी ले रही होगी अपने गर्भ मे!! आह!! आह!! आह!! आह!!"
जब ससुरजी झड़ गये तो सासुमाँ के बगल मे लेट गये. मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे लिया और चाट के साफ़ करने लगी. लन्ड पर उनका वीर्य और सासुमाँ की चूत का पानी लगा हुआ था. कुछ देर चूसने के बाद मैं सासुमाँ के ऊपर से उतर गयी और ससुरजी के दूसरी तरफ़ लेट गई.
रात भर सासुमाँ और मैं नंगे ही ससुरजी से ऐसे लिपटे रहे जैसे हम उनकी दो बीवियाँ हों.
वीणा, यह थी घर पर हमारे दूसरे दिन की कहानी. आगे की खबर अगले ख़त मे लिखूंगी.
बहुत सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी
**********************************************************************
मीन भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं अपनी चूत मे एक हाथ से बैंगन पेलने लगी और दूसरे हाथ से जवाब लिखने लगी. जवाब लिखकर मैने डाक मे डाल दी.
**********************************************************************
मेरी प्यारी भाभी,
तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत मज़ा आया, और सच कहूं तो बहुत ईर्ष्या भी हुई. भाभी, तुम बुरा नही मानना पर यह कोई इन्साफ़ है कि तुम्हारे घर पर एक से एक लन्ड हैं लेने के लिये और मेरे घर पर बस यह बैंगन है?
मेरा जवाब मिलने मे देर हो तो भी तुम अपने घर पर हो रहे दिलचस्प घटनाओं के बारे मे लिखते रहना. मुझे उम्मीद है जब तक तुम्हारी अगली चिट्ठी आयेगी तुम किशन से चुद चुकी होगी.
तुम्हारी वीणा
**********************************************************************
अगले दिन मीना भाभी की एक और चिट्ठी आयी. रोज़ की तरह मैं चिट्ठी और एक मोटे से बैंगन को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. आजकल नीतु को शक होने लगा था कि अखिर मीना भाभी मुझे रोज़ चिट्ठी क्यों भेजती है. इसलिये मुझे सारी चिट्ठीयां छुपाकर रखनी पड़ती थी. अगर उसने पढ़ ली तो शायद उसका दिमाग ही खराब जायेगा!
खैर, अपने एकमात्र साथी, महाशय बैंगन को लेकर मैं भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.
**********************************************************************
मेरी प्यारी ननद रानी,
तुम्हारा ख़त मिला. औरत-औरत के संभोग मे बहुत रस होता है. तुम होती तो मैं ज़रूर तुम्हारे साथ समलैंगिक संभोग करती. पर एक सुझाव देती हूँ - ठीक लगे तो आज़माना. तुम्हारी छोटी बहन नीतु अब काफ़ी बड़ी हो गयी है. उस उम्र के किशोरी लड़कियों को मर्द और औरत दोनो बहुत चाव से भोगते हैं. देखो अगर तुम उसे पटा सको. कम से कम तुम्हे जवानी का मज़ा लेने के लिये एक साथी तो मिल जयेगा!
मुझे पता है कि तुम मेरी कहानी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो. यहाँ रोज़ इतना कुछ होता है, सोचती हूँ तुम्हे रोज़ एक ख़त लिखूं. आज के ख़त मे मैं तुम्हे अपने तीसरे दिन के कारनामों के बारे मे बताती हूँ.
हमारा पूरा दिन घर के काम मे गुज़र गया. तुम्हारे बलराम भैया का पाँव अब ठीक हो रहा है, पर डाक्टर ने उन्हे बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी है. खाना पीना उन्हे सब बिस्तर पर ही दिया जाता है. बाथरूम जाने के अलावा वह बिस्तर से नही उठते हैं और कभी अपने कमरे के बाहर नही आते हैं.
दोपहर के खाने के बाद तुम्हारी मामीजी बोली, "बहु, तु अभी जाकर किशन को पटाने की कोशिश कर. वह अपने कमरे मे होगा."
मैने खुश होकर कहा, "ठीक है माँ! अभी जाती हूँ!"
"और हाँ, दरवाज़ा पूरा बंद नही करना. हम बाहर से देखेंगे. तेरे ससुरजी को देखने का बहुत मन है."
"जी, माँ." मैने जवाब दिया.
तुम्हारे मामाजी बोले, "जैसे बस मुझे ही मन है! तुम्हे जैसे बहु को चुदते देखकर मज़ा नही आयेगा?"
"मैने कब कहा मुझे मज़ा नही आयेगा?" सासुमाँ बोली, "मै भी देखूंगी अपने लाडले बेटे को अपनी भाभी की चूत मारते हुए."
"और यह सब देखते हुए तुम अपनी भी चूत मराओगी." ससुरजी बोले.
"हाय, यह क्या कह रहे हो तुम?" सासुमाँ बोली.
"कौशल्या, जब बहु और किशन अन्दर चुदाई कर रहे होंगे, मैं तुम्हे पीछे से कुतिया बना के चोदुंगा. बहुत मज़ा आयेगा." ससुरजी बोले.
"पागल हो गये हो तुम?" सासुमाँ बोली, "घर पर इतने लोग हैं! किसी ने देख लिया तो?"
ससुरजी बोले, "मैं गुलाबी को कोई काम देकर हाज़िपुर बाज़ार भेजता हूँ. उसे आने मे दो घंटे तो लगेंगे. बलराम तो खाने के बाद सो जायेगा. वैसे भी वह अपने कमरे से बाहर नही निकलता है. और घर मे है ही कौन? देखना खुले आम नंगे होकर चुदाने मे बहुत मज़ा आयेगा तुम्हे."
सासुमाँ बोली, "ठीक है पर मैं सारे कपड़े नही उतारूंगी. मेरी साड़ी उठाकर तुम पीछे से चोद लेना."
ससुरजी हारकर बोले, "ठीक है, भाग्यवान! जैसा तुम ठीक समझो."
गुलाबी के बाज़ार जाने के बाद तुम्हारे मामा, मामी, और मैं किशन के कमरे के पास गये. उसका दरवाज़ा बंद था, पर दरवाज़े के फांको से साफ़ दिख रहा था कि वह फिर कोई अश्लील कहानियों की किताब पड़ रहा है. मैने दरवाज़ा खटकाया तो उसने किताब छुपा दी और आकर दरवाज़ा खोला. सासुमाँ और ससुरजी बाहर रुक गये और मैं किशन के कमरे के अन्दर आ गयी. मैने दरवाज़ा ठेल कर बंद कर दिया पर कुंडी नही लगाई ताकि बाहर से अन्दर का दृश्य बिना असुविधा के देखा जा सके.
मुझे देखकर किशन की आंखें चमक उठी और पजामे मे उसके लौड़ा ताव खाने लगा. मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और उसके तकिये के नीचे से छुपाई हुई किताब निकाली.
"देवरजी, फिर तुम गंदी किताबें पढ़ रहे हो?" मैने पन्नों को उलट-पुलटकर पूछा. इस किताब के बीच मे कुछ तसवीरें थी जिसमे नंगे आदमी-औरत चुदाई कर रहे थे. "अब जब तुमने अपनी भाभी के जलवे देख लिये हैं, तुम्हे यह सब देखने की क्या ज़रूरत है?"
"भाभी, वह तो ऐसे ही..." किशन बोला.
"अच्छा बताओ, मैं देखने मे अच्छी हूँ या यह विलायती छिनाल?" मैने एक चुदाई की तस्वीर दिखाकर कहा.
"भाभी, आप बहुत सुन्दर हैं! आप जैसी कोई नही है!" किशन बोला.
सुनकर मैं मुस्कुरा दी, और पिछले दिन की तरह मैने अपना आंचल सीने से गिरा दिया था. फिर मैने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. और फिर ब्रा भी उतारकर रख दी.
किशन मेरी चूचियों को आंखों से ही पीने लगा. पजामे मे उसका लौड़ा बिलकुल तना हुआ था. अपने गोलाइयों को अपने हाथों से मसलते हुए मैने कहा, "देवरजी, मेरी चूचियां इस विलायती चुदैल से अच्छी हैं?"
"हाँ...हाँ भाभी." किशन थूक गटक कर बोला, "आपके दूध बहुत सुन्दर है. कल हाथ लगाकर मुझे बहुत अच्छा लगा था."
"यह सब किताबें पढ़नी बंद कर दोगे तो अपनी भाभी का एक एक अंग जितना जी चाहे देख सकोगे." मैने कहा.
"भाभी, मैं यह सब किताबें और नही पढ़ुंगा." किशन बोला और उसने अपने दोनो हाथ मेरे दो चूचियों पर रख दिये.
मैं मज़े से सिहर उठी, पर उसके हाथ हटाकर मैने कहा, "देवरजी, याद है न कल क्या हुआ था? जोश जोश मे अपना पानी अपने पजामे मे ही गिरा दोगे, तो मेरी प्यास कैसे बुझाओगे?"
"भाभी, आज पानी नही निकलेगा." किशन बोला और फिर मेरे चूचियों पर हाथ रखने लगा.
"रुको, देवरजी." मैने उसके हाथ हटाकर कहा, "पहले, तुम्हारे जोश का कुछ इलाज किया जाये, फिर जितना चाहे मेरी चूचियों को मसल लेना. चलो, अपना पजामा उतारो."
किशन शरमाकर मेरे सामने खड़ा रहा, तो मैने मुस्कुराकर कहा, "देवरजी, मर्द होकर औरत से शरमा रहे हो? मेरी चूचियां तो देख ली, अब मुझे अपना लौड़ा दिखाओ."
मैने उसके पजामे का नाड़ा खींचकर खोल दिया और उसका पजामा ज़मीन पर गिर गया. उसका लन्ड उसके चड्डी को जैसे फाड़कर बाहर आ रहा था. मैने उसके चड्डी को खींचकर नीचे उतार दी तो उसका खड़ा लन्ड उछलकर हिलने लगा. किशन ने अपना पजामा और चड्डी अपने पाँव से अलग कर दिये. उसने पजामे के ऊपर सिर्फ़ एक बनियान पहना था. मैने उसके बनियान को सीने के ऊपर चढ़ा दिया. फिर उसके कमर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा. फिर उसके खड़े लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया.
सासुमाँ मेरे नीचे लेटे मेरे चूतड़ों को मसल रही थी और मेरी चूत चाट रही थी. मैं उनके ऊपर लेटे उनकी चूत की चुदाई देख रही थी. ससुरजी का ठाप लेती हुई वह बोली, "देखना, जब तुम्हारे दोनो बेटे...तुम्हारे सामने...अपनी माँ को चोदेंगे...तुम्हे देखने मे बहुत मज़ा आयेगा."
ससुरजी मुंह से जो भी कहें, अपनी पत्नी को अपने बेटों के चुदवाने की कल्पना करके उनको काफ़ी मज़ा आया था. सासुमाँ के टांगों को पकड़ के जोरों की ठाप लगाने लगे.
सासुमाँ भी मज़े लेते हुए बोली, "हाय, बहुत जबरदस्त चोदाई कर रहे हो मेरे राजा!! और चोदो मुझे! आह!! मज़ा आ गया बहु के साथ तुमसे चुदवाने मे! मैं हमारे बेटों से चुदुंगी सुनकर...लगता है तुमको...कुछ ज़्यादा ही चढ़ गयी है."
"हाँ कौशल्या!" ससुरजी हांफ़ते हुए बोले, "अब मुझसे रुका नही जा रहा. मैं सच मे देखना चाहता हूँ बलराम तुम्हारी चूत कैसे मारता है. आह!! ले साली रंडी! अपने बेटे से चुदवाना चाहती है! ले मेरा लन्ड!"
"हाय राजा! बस थोड़ी देर और पेलो!" सासुमाँ लगभग चीखकर बोली, "मैं बस झड़ने वाली हूँ! हाय! आह!! पेलो और जोर से!! उम्म!! आह!! चोद डालो!! हाय!!" बोलकर वह झड़ने लगी.
ससुरजी भी दमदार ठुकाई करते हुए सासुमाँ की चूत मे झड़ने लगे. "आह!! ले साली रंडी!! ले अपने गर्भ मे!! आह!! कुतिया, कल तु अपने बेटे का पानी ले रही होगी अपने गर्भ मे!! आह!! आह!! आह!! आह!!"
जब ससुरजी झड़ गये तो सासुमाँ के बगल मे लेट गये. मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे लिया और चाट के साफ़ करने लगी. लन्ड पर उनका वीर्य और सासुमाँ की चूत का पानी लगा हुआ था. कुछ देर चूसने के बाद मैं सासुमाँ के ऊपर से उतर गयी और ससुरजी के दूसरी तरफ़ लेट गई.
रात भर सासुमाँ और मैं नंगे ही ससुरजी से ऐसे लिपटे रहे जैसे हम उनकी दो बीवियाँ हों.
वीणा, यह थी घर पर हमारे दूसरे दिन की कहानी. आगे की खबर अगले ख़त मे लिखूंगी.
बहुत सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी
**********************************************************************
मीन भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं अपनी चूत मे एक हाथ से बैंगन पेलने लगी और दूसरे हाथ से जवाब लिखने लगी. जवाब लिखकर मैने डाक मे डाल दी.
**********************************************************************
मेरी प्यारी भाभी,
तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत मज़ा आया, और सच कहूं तो बहुत ईर्ष्या भी हुई. भाभी, तुम बुरा नही मानना पर यह कोई इन्साफ़ है कि तुम्हारे घर पर एक से एक लन्ड हैं लेने के लिये और मेरे घर पर बस यह बैंगन है?
मेरा जवाब मिलने मे देर हो तो भी तुम अपने घर पर हो रहे दिलचस्प घटनाओं के बारे मे लिखते रहना. मुझे उम्मीद है जब तक तुम्हारी अगली चिट्ठी आयेगी तुम किशन से चुद चुकी होगी.
तुम्हारी वीणा
**********************************************************************
अगले दिन मीना भाभी की एक और चिट्ठी आयी. रोज़ की तरह मैं चिट्ठी और एक मोटे से बैंगन को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. आजकल नीतु को शक होने लगा था कि अखिर मीना भाभी मुझे रोज़ चिट्ठी क्यों भेजती है. इसलिये मुझे सारी चिट्ठीयां छुपाकर रखनी पड़ती थी. अगर उसने पढ़ ली तो शायद उसका दिमाग ही खराब जायेगा!
खैर, अपने एकमात्र साथी, महाशय बैंगन को लेकर मैं भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.
**********************************************************************
मेरी प्यारी ननद रानी,
तुम्हारा ख़त मिला. औरत-औरत के संभोग मे बहुत रस होता है. तुम होती तो मैं ज़रूर तुम्हारे साथ समलैंगिक संभोग करती. पर एक सुझाव देती हूँ - ठीक लगे तो आज़माना. तुम्हारी छोटी बहन नीतु अब काफ़ी बड़ी हो गयी है. उस उम्र के किशोरी लड़कियों को मर्द और औरत दोनो बहुत चाव से भोगते हैं. देखो अगर तुम उसे पटा सको. कम से कम तुम्हे जवानी का मज़ा लेने के लिये एक साथी तो मिल जयेगा!
मुझे पता है कि तुम मेरी कहानी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो. यहाँ रोज़ इतना कुछ होता है, सोचती हूँ तुम्हे रोज़ एक ख़त लिखूं. आज के ख़त मे मैं तुम्हे अपने तीसरे दिन के कारनामों के बारे मे बताती हूँ.
हमारा पूरा दिन घर के काम मे गुज़र गया. तुम्हारे बलराम भैया का पाँव अब ठीक हो रहा है, पर डाक्टर ने उन्हे बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी है. खाना पीना उन्हे सब बिस्तर पर ही दिया जाता है. बाथरूम जाने के अलावा वह बिस्तर से नही उठते हैं और कभी अपने कमरे के बाहर नही आते हैं.
दोपहर के खाने के बाद तुम्हारी मामीजी बोली, "बहु, तु अभी जाकर किशन को पटाने की कोशिश कर. वह अपने कमरे मे होगा."
मैने खुश होकर कहा, "ठीक है माँ! अभी जाती हूँ!"
"और हाँ, दरवाज़ा पूरा बंद नही करना. हम बाहर से देखेंगे. तेरे ससुरजी को देखने का बहुत मन है."
"जी, माँ." मैने जवाब दिया.
तुम्हारे मामाजी बोले, "जैसे बस मुझे ही मन है! तुम्हे जैसे बहु को चुदते देखकर मज़ा नही आयेगा?"
"मैने कब कहा मुझे मज़ा नही आयेगा?" सासुमाँ बोली, "मै भी देखूंगी अपने लाडले बेटे को अपनी भाभी की चूत मारते हुए."
"और यह सब देखते हुए तुम अपनी भी चूत मराओगी." ससुरजी बोले.
"हाय, यह क्या कह रहे हो तुम?" सासुमाँ बोली.
"कौशल्या, जब बहु और किशन अन्दर चुदाई कर रहे होंगे, मैं तुम्हे पीछे से कुतिया बना के चोदुंगा. बहुत मज़ा आयेगा." ससुरजी बोले.
"पागल हो गये हो तुम?" सासुमाँ बोली, "घर पर इतने लोग हैं! किसी ने देख लिया तो?"
ससुरजी बोले, "मैं गुलाबी को कोई काम देकर हाज़िपुर बाज़ार भेजता हूँ. उसे आने मे दो घंटे तो लगेंगे. बलराम तो खाने के बाद सो जायेगा. वैसे भी वह अपने कमरे से बाहर नही निकलता है. और घर मे है ही कौन? देखना खुले आम नंगे होकर चुदाने मे बहुत मज़ा आयेगा तुम्हे."
सासुमाँ बोली, "ठीक है पर मैं सारे कपड़े नही उतारूंगी. मेरी साड़ी उठाकर तुम पीछे से चोद लेना."
ससुरजी हारकर बोले, "ठीक है, भाग्यवान! जैसा तुम ठीक समझो."
गुलाबी के बाज़ार जाने के बाद तुम्हारे मामा, मामी, और मैं किशन के कमरे के पास गये. उसका दरवाज़ा बंद था, पर दरवाज़े के फांको से साफ़ दिख रहा था कि वह फिर कोई अश्लील कहानियों की किताब पड़ रहा है. मैने दरवाज़ा खटकाया तो उसने किताब छुपा दी और आकर दरवाज़ा खोला. सासुमाँ और ससुरजी बाहर रुक गये और मैं किशन के कमरे के अन्दर आ गयी. मैने दरवाज़ा ठेल कर बंद कर दिया पर कुंडी नही लगाई ताकि बाहर से अन्दर का दृश्य बिना असुविधा के देखा जा सके.
मुझे देखकर किशन की आंखें चमक उठी और पजामे मे उसके लौड़ा ताव खाने लगा. मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और उसके तकिये के नीचे से छुपाई हुई किताब निकाली.
"देवरजी, फिर तुम गंदी किताबें पढ़ रहे हो?" मैने पन्नों को उलट-पुलटकर पूछा. इस किताब के बीच मे कुछ तसवीरें थी जिसमे नंगे आदमी-औरत चुदाई कर रहे थे. "अब जब तुमने अपनी भाभी के जलवे देख लिये हैं, तुम्हे यह सब देखने की क्या ज़रूरत है?"
"भाभी, वह तो ऐसे ही..." किशन बोला.
"अच्छा बताओ, मैं देखने मे अच्छी हूँ या यह विलायती छिनाल?" मैने एक चुदाई की तस्वीर दिखाकर कहा.
"भाभी, आप बहुत सुन्दर हैं! आप जैसी कोई नही है!" किशन बोला.
सुनकर मैं मुस्कुरा दी, और पिछले दिन की तरह मैने अपना आंचल सीने से गिरा दिया था. फिर मैने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. और फिर ब्रा भी उतारकर रख दी.
किशन मेरी चूचियों को आंखों से ही पीने लगा. पजामे मे उसका लौड़ा बिलकुल तना हुआ था. अपने गोलाइयों को अपने हाथों से मसलते हुए मैने कहा, "देवरजी, मेरी चूचियां इस विलायती चुदैल से अच्छी हैं?"
"हाँ...हाँ भाभी." किशन थूक गटक कर बोला, "आपके दूध बहुत सुन्दर है. कल हाथ लगाकर मुझे बहुत अच्छा लगा था."
"यह सब किताबें पढ़नी बंद कर दोगे तो अपनी भाभी का एक एक अंग जितना जी चाहे देख सकोगे." मैने कहा.
"भाभी, मैं यह सब किताबें और नही पढ़ुंगा." किशन बोला और उसने अपने दोनो हाथ मेरे दो चूचियों पर रख दिये.
मैं मज़े से सिहर उठी, पर उसके हाथ हटाकर मैने कहा, "देवरजी, याद है न कल क्या हुआ था? जोश जोश मे अपना पानी अपने पजामे मे ही गिरा दोगे, तो मेरी प्यास कैसे बुझाओगे?"
"भाभी, आज पानी नही निकलेगा." किशन बोला और फिर मेरे चूचियों पर हाथ रखने लगा.
"रुको, देवरजी." मैने उसके हाथ हटाकर कहा, "पहले, तुम्हारे जोश का कुछ इलाज किया जाये, फिर जितना चाहे मेरी चूचियों को मसल लेना. चलो, अपना पजामा उतारो."
किशन शरमाकर मेरे सामने खड़ा रहा, तो मैने मुस्कुराकर कहा, "देवरजी, मर्द होकर औरत से शरमा रहे हो? मेरी चूचियां तो देख ली, अब मुझे अपना लौड़ा दिखाओ."
मैने उसके पजामे का नाड़ा खींचकर खोल दिया और उसका पजामा ज़मीन पर गिर गया. उसका लन्ड उसके चड्डी को जैसे फाड़कर बाहर आ रहा था. मैने उसके चड्डी को खींचकर नीचे उतार दी तो उसका खड़ा लन्ड उछलकर हिलने लगा. किशन ने अपना पजामा और चड्डी अपने पाँव से अलग कर दिये. उसने पजामे के ऊपर सिर्फ़ एक बनियान पहना था. मैने उसके बनियान को सीने के ऊपर चढ़ा दिया. फिर उसके कमर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा. फिर उसके खड़े लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया.