hotaks444
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भाभी ने सर उठाया और कांपते हाथ से अपने ससुर का लण्ड पकड़ा. पकड़ते ही वह गनगना गयी. मामाजी भी सिहर उठे. भाभी धीरे धीरे मामाजी के गरम, मोटे लण्ड को हिलाने लगी. मामाजी भाभी की एक चूची को दबा दबा का मज़ा देने लगे.
कुछ देर बाद मामाजी बोले, "बहु, गरमी लग रही होगी तुझे. साड़ी उतार के आराम से बैठ. मैं भी तो तेरी जवानी को अच्छे से देखूं! मेरा बेटा तो रोज़ ही देखता है."
भाभी कुछ बोलने वाली थी, पर डाँट के डर से उठी और जल्दी से अपनी साड़ी उतार कर ज़मीन पर रख दी. फिर मामाजी की पास बैठ कर उनका लण्ड हिलाने लगी. मामाजी ने फिर भाभी की चूची दबानी शुरु की. फिर बोले, "बहु, ब्लाऊज़ के ऊपर से दबा का मज़ा नही आ रहा. ज़रा अपना ब्लाऊज़ उतार दे."
भाभी ने बिना कुछ कहे अपना ब्लाऊज़ भी उतार दिया. मामाजी ने भाभी के ब्रा को थोड़ा ऊपर खींचकर उनकी चूचियों को नंगा किया और मज़े से उन्हे दबाने लगे. भाभी को तो अब बहुत मज़ा आ रहा था. उन्होने खुद अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा उतार दी. अब भाभी कमर के ऊपर पूरी तरह नंगी थी.
मामाजी बोले, "यह अच्छा किया तूने बहु. अब मै अच्छी तरह तुझे मज़ा दे पाऊंगा. सुन, मन करे तो तू मेरा लण्ड चूस सकती है. बलराम तुझे अपना लण्ड चुसाता है कि नही?"
भाभी बोली, "जी बाबूजी, चुसाते हैं." बोलकर भाभी मामाजी के लण्ड पर झुक गयी और अपने नरम होठों मे भरकर चूसने लगी. मामाजी भी भाभी की गोल, नरम चूचियों को प्यार से दबाने और मसलने लगे जिससे भाभी मस्ती मे कराहने लगी.
मामाजी ने अपनी बनियान उतार दी और पूरे नंगे हो गये. खेतों मे मेहनत किया हुआ कठोर शरीर था उनका. उन्होने फिर भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खींच कर खोल दिया. भाभी खुद ही अपनी पेटीकोट उतार कर नंगी हो गयी और मज़े ले ले कर अपने ससुर का लण्ड चूसने लगी. मामाजी उसकी एक चूची को मसल रहे थे, और अपनी दूसरी चूची के निपल को वह खुद ही छेड़ रही थी.
यह सब नज़ारा देखते देखते मुझे भी बहुत जोश चढ़ गया था. मैने भी अपनी ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दी और अपने नंगे कंवारे चूचियों को अपने हाथों से मसलने लगी. मैने अपनी साड़ी भी उतार दी और पेटीकोट को उठाकर एक हाथ से अपनी गर्म चुत मे उंगली करने लगी.
उधर मामाजी से और रहा नही गया. उन्होने भाभी को बिस्तर पर लिटाया और उसके दोनो पाँव फांक करके उस पर चढ़ गये. अपना काला, मोटा लण्ड भाभी की चुत पर रखा और एक जोरदार धक्का मार कर पूरा अंदर पेल दिया. भाभी मस्ती मे चिहुक उठी. "ओहह!! धीरे, बाबूजी! मै कहीं भागी जा रही हूँ क्या?"
"आया मज़ा, बहु?" मामाजी ने पूछा और कमर चलाकर भाभी को चोदने लगे. भाभी बोली,"जी बाबूजी, बहुत मज़ा आ रहा है." बोलकर उसने मामाजी को सीने से चिपका लिया और उनके होंठ पीने लगी.
इस तरह कुछ देर मामाजी अपनी बहु को जोरदार ठाप देते रहे और उसके होठों और चूचियों को पीते रहे. भाभी का पारा बहुत ऊपर चढ़ चुका था. वह मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी और कमर उठा उठा कर अपने ससुर के ठापों का जवाब देने लगी. "आहहह!! ऊहहह!! बाबूजी, कितना मज़ा आ रहा है! आहहह!! और जोर से पेलो मेरी चुत को, मेरे राजा!!" वह चिल्लाने लगी.
मामाजी ने अपनी पेलने की स्पीड बढ़ा दी और भाभी को दमदार ठाप देते हुए बोले, "छिनाल, तुझे यही चाहिये था ना? इसी के लिये तू मेले मे उन दो आदमीयों से चूची दबवा रही थी. उनका लौड़ा लेने के लिये पागल हो गयी थी. छिनाल, तेरे जैसी चुदैल की भूख कभी एक पति से नही बुझती. अब से तुझे हम बाप-बेटा इतना चोदेंगे कि बाहर के किसी की ज़रूरत महसूस नही होगी."
भाभी भी मस्ती की चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी. अपना कमर उचका उचका कर मामाजी का लण्ड ले रही थी और बोल रही थी, "हाँ मेरे चोदू ससुरजी! एक लण्ड से मेरी भूख नही मिटती है! मैं दो दिन से बहुत से लण्ड ले रही हूँ! आहहह!! मुझे दिन रात लण्ड चाहिये, मेरे राजा!! और जोर से चोदो मुझे बाबूजी! और जोर से!! ओफ़्फ़्फ़्फ़!! कितना मज़ा आ रहा है!! चोद चोद कर अपनी बहु को रंडी बना दो, बाबूजी!! आहहह!! मै गयी, बाबूजी, मै गयी!!!"
बोलकर भाभी झड़ने लगी. मामाजी ने अपनी बहु को सीने से चिपका लिया और अपना लौड़ा भाभी की चुत मे पूरा ठूँसकर उसके गर्भ मे अपनी मलाई भरने लगे.
तूफ़ान शांत होने पर दोनो एक दुसरे से लिपट के लेटे रहे.
इधर मै भी जोर जोर से अपनी नंगी चूचियों को दबा रही थी और तीव्र गति से अपनी चुत मे उंगली कर रही थी. मै इतने जोर से झड़ी कि मेरी चीख निकल गयी.
मेरी चीख सुनकर मामाजी बोले, "बहु, दरवाज़े के बाहर कोई है क्या?"
भाभी मामाजी के नीचे लेटे अपनी चुत मे उनके लौड़े और उसके पानी का मज़ा लेती हुई बोली, "वीणा होगी, बाबूजी."
मामाजी उठकर बैठ गये और बोले, "वीणा! हाय यह क्या हो गया! उसने तो सब देख लिया होगा!"
भाभी बोली, "आप घबराइये नही, बाबूजी. वीणा भी बहुत खेल खाई हुई है. दो दिन से मेरे साथ वह भी खूब चूत मरा रही है."
भाभी झट से नंगी ही उठकर दरवाज़े के पास आयी और दरवाज़ा खोल कर मुझे पकड़ लिया. मुझे भागने का मौका ही नही मिला. मुझे खींचकर अंदर ले जाते हुए बोली, "ननद रानी, बाहर खड़े ससुर-बहु की चुदाई देखकर क्यों तरस रही हो. अंदर आकर खेलो हमारे साथ!"
मेरे बदन पर सिर्फ़ मेरा पेटीकोट था. मामाजी बिस्तर पर नंगे लेटे मेरे कंवारे चूचियों को ललचाई आँखों से देख रहे थे. मुझे इस तरह अध-नंगा देख कर उनके सुस्त लण्ड मे फिर ताओ आने लगा. वह नंगे ही उठकर आये और मुझे पकड़ कर बिस्तर पर ले गये. इधर भाभी ने झट से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मेरा पेटीकोट ज़मीन पर गिर गया. मैं मामाजी के सामने मादरजात नंगी हो गयी.
मैं हाथों से अपनी चुत और चूचियों को छुपाती हुई बोली, "भाभी, छोड़ो मुझे!"
भाभी हंस कर बोली, "साली, छुपके मेरी चुदाई देख रही थी! अब तेरी चुदाई होगी ताकि तू किसी को कुछ बोल ना सके. ले, चूस बाबूजी का लण्ड. चूसकर खड़ा कर!" और मेरे सर को जबरदस्ती मामाजी के लण्ड पर झुका दिया.
मामाजी का लण्ड सुस्त होकर भी 6-7 इंच लंबा और काफ़ी मोटा था. मैने उलटी आने का नाटक किया. भाभी ने जबरदस्ती मामाजी का ढीला लण्ड पकड़ कर मेरे मुँह मे ठूँस दिया और बोली, "ननद रानी, इतना नाटक किसको दिखाने के लिये कर रही हो? मेरे सामने तुमने जंगल मे मज़े लेकर रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश का लण्ड चूसा था. कल रात तो तुमने विश्वनाथजी का भी लौड़ा चूसा था और मज़े ले लेकर उनकी मलाई खाई थी! अब चूसो अपने मामाजी का लण्ड!"
मैं मामाजी का ढीला लण्ड चूसने लगी. जवानी की मस्ती तो मुझे चढ़ ही चुकी थी और लौड़े की मादक खुशबू मेरे नाक मे जाकर मुझे और मस्त बनाने लगी. पर मैं मामाजी के सामने रंडी की तरह पेश नही आना चाहती थी.
मामाजी चौंक कर बोले, "वीणा, तुमने कल उन चारों का लण्ड चूसा था?"
भाभी हंसकर बोली, "अब आपसे क्या छुपाना बाबूजी! जिस दिन हम दोनो मेले मे खो गये थे, उस दिन रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश ने जंगल मे ले जाकर हम दोनो का सामुहिक बलात्कार किया था. कल तो देर रात तक वह चारों और विश्वनाथजी मेरी और वीणा की चुदाई करते रहे. आप तो नशे मे टुन्न हो गये थे इसलिये आप को कुछ पता नही चला."
मामाजी की हैरानी बढ़ती ही जा रही थी. "बहु, यह तू क्या कह रही है? तुम दोनो तो बहुत बड़ी छिनालें हो!"
मैने चिढ़कर कहा, "भाभी, यह क्यों नही बताती कि रमेश और उसके ३ दोस्तों ने कल मामीजी को भी चोदा था?"
मामाजी बोले, "क्या!! कौशल्या (मेरी मामी) भी शामिल थी इस सब में?"
भाभी बोली, "बाबूजी, आपको क्या लगता है, सासुमाँ विश्वनाथजी के साथ अपने पीहर क्यों गयी है? रास्ते भर उनसे चोदवाने के इरादे से."
सुनकर मामाजी को बहुत गुस्सा आ गया. वैसे मेरे चुसाई से उनका लौड़ा फिर खड़ा हो गया था. वह बोले, "हे भगवान!! एक से एक रंडीयाँ बसी है मेरे घर मे! और विश्वनाथ मेरा दोस्त होकर मेरे साथ ऐस कैसे कर सकता है!"
भाभी ने मामाजी के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख दिये और उनके मुँह मे एक चूची घुसाकर बोली, "बाबूजी, आप गुस्सा क्यों होते हैं? जैसे आपको मौका मिला तो आपने अपनी बहु को चोद लिया. वैसे ही मौका मिलने पर विश्वनाथजी और उन चारों बदमाशों ने वीणा, सासुमाँ और मुझे चोद लिया. मौका मिला है इसलिये सासुमाँ भी विश्वनाथजी से चुदवा रही होगी."
सुनकर मामाजी का गुस्सा ठंडा हो गया और वह भाभी की नंगी चूचियों को दबाने और चूसने लगे. दो दो नंगी औरतों के आक्रमण के आगे उनका गुस्सा टिक नही सका.
मैने कहा, "मामाजी, यह सोचिये कि कितना अच्छा हुआ. अब मामी भी चुद गयी है, इसलिये घर जाकर आप भाभी को खुले आम चोदेंगे तो भी वह कुछ नही बोलेंगी."
कुछ देर बाद मामाजी बोले, "बहु, गरमी लग रही होगी तुझे. साड़ी उतार के आराम से बैठ. मैं भी तो तेरी जवानी को अच्छे से देखूं! मेरा बेटा तो रोज़ ही देखता है."
भाभी कुछ बोलने वाली थी, पर डाँट के डर से उठी और जल्दी से अपनी साड़ी उतार कर ज़मीन पर रख दी. फिर मामाजी की पास बैठ कर उनका लण्ड हिलाने लगी. मामाजी ने फिर भाभी की चूची दबानी शुरु की. फिर बोले, "बहु, ब्लाऊज़ के ऊपर से दबा का मज़ा नही आ रहा. ज़रा अपना ब्लाऊज़ उतार दे."
भाभी ने बिना कुछ कहे अपना ब्लाऊज़ भी उतार दिया. मामाजी ने भाभी के ब्रा को थोड़ा ऊपर खींचकर उनकी चूचियों को नंगा किया और मज़े से उन्हे दबाने लगे. भाभी को तो अब बहुत मज़ा आ रहा था. उन्होने खुद अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा उतार दी. अब भाभी कमर के ऊपर पूरी तरह नंगी थी.
मामाजी बोले, "यह अच्छा किया तूने बहु. अब मै अच्छी तरह तुझे मज़ा दे पाऊंगा. सुन, मन करे तो तू मेरा लण्ड चूस सकती है. बलराम तुझे अपना लण्ड चुसाता है कि नही?"
भाभी बोली, "जी बाबूजी, चुसाते हैं." बोलकर भाभी मामाजी के लण्ड पर झुक गयी और अपने नरम होठों मे भरकर चूसने लगी. मामाजी भी भाभी की गोल, नरम चूचियों को प्यार से दबाने और मसलने लगे जिससे भाभी मस्ती मे कराहने लगी.
मामाजी ने अपनी बनियान उतार दी और पूरे नंगे हो गये. खेतों मे मेहनत किया हुआ कठोर शरीर था उनका. उन्होने फिर भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खींच कर खोल दिया. भाभी खुद ही अपनी पेटीकोट उतार कर नंगी हो गयी और मज़े ले ले कर अपने ससुर का लण्ड चूसने लगी. मामाजी उसकी एक चूची को मसल रहे थे, और अपनी दूसरी चूची के निपल को वह खुद ही छेड़ रही थी.
यह सब नज़ारा देखते देखते मुझे भी बहुत जोश चढ़ गया था. मैने भी अपनी ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दी और अपने नंगे कंवारे चूचियों को अपने हाथों से मसलने लगी. मैने अपनी साड़ी भी उतार दी और पेटीकोट को उठाकर एक हाथ से अपनी गर्म चुत मे उंगली करने लगी.
उधर मामाजी से और रहा नही गया. उन्होने भाभी को बिस्तर पर लिटाया और उसके दोनो पाँव फांक करके उस पर चढ़ गये. अपना काला, मोटा लण्ड भाभी की चुत पर रखा और एक जोरदार धक्का मार कर पूरा अंदर पेल दिया. भाभी मस्ती मे चिहुक उठी. "ओहह!! धीरे, बाबूजी! मै कहीं भागी जा रही हूँ क्या?"
"आया मज़ा, बहु?" मामाजी ने पूछा और कमर चलाकर भाभी को चोदने लगे. भाभी बोली,"जी बाबूजी, बहुत मज़ा आ रहा है." बोलकर उसने मामाजी को सीने से चिपका लिया और उनके होंठ पीने लगी.
इस तरह कुछ देर मामाजी अपनी बहु को जोरदार ठाप देते रहे और उसके होठों और चूचियों को पीते रहे. भाभी का पारा बहुत ऊपर चढ़ चुका था. वह मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी और कमर उठा उठा कर अपने ससुर के ठापों का जवाब देने लगी. "आहहह!! ऊहहह!! बाबूजी, कितना मज़ा आ रहा है! आहहह!! और जोर से पेलो मेरी चुत को, मेरे राजा!!" वह चिल्लाने लगी.
मामाजी ने अपनी पेलने की स्पीड बढ़ा दी और भाभी को दमदार ठाप देते हुए बोले, "छिनाल, तुझे यही चाहिये था ना? इसी के लिये तू मेले मे उन दो आदमीयों से चूची दबवा रही थी. उनका लौड़ा लेने के लिये पागल हो गयी थी. छिनाल, तेरे जैसी चुदैल की भूख कभी एक पति से नही बुझती. अब से तुझे हम बाप-बेटा इतना चोदेंगे कि बाहर के किसी की ज़रूरत महसूस नही होगी."
भाभी भी मस्ती की चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी. अपना कमर उचका उचका कर मामाजी का लण्ड ले रही थी और बोल रही थी, "हाँ मेरे चोदू ससुरजी! एक लण्ड से मेरी भूख नही मिटती है! मैं दो दिन से बहुत से लण्ड ले रही हूँ! आहहह!! मुझे दिन रात लण्ड चाहिये, मेरे राजा!! और जोर से चोदो मुझे बाबूजी! और जोर से!! ओफ़्फ़्फ़्फ़!! कितना मज़ा आ रहा है!! चोद चोद कर अपनी बहु को रंडी बना दो, बाबूजी!! आहहह!! मै गयी, बाबूजी, मै गयी!!!"
बोलकर भाभी झड़ने लगी. मामाजी ने अपनी बहु को सीने से चिपका लिया और अपना लौड़ा भाभी की चुत मे पूरा ठूँसकर उसके गर्भ मे अपनी मलाई भरने लगे.
तूफ़ान शांत होने पर दोनो एक दुसरे से लिपट के लेटे रहे.
इधर मै भी जोर जोर से अपनी नंगी चूचियों को दबा रही थी और तीव्र गति से अपनी चुत मे उंगली कर रही थी. मै इतने जोर से झड़ी कि मेरी चीख निकल गयी.
मेरी चीख सुनकर मामाजी बोले, "बहु, दरवाज़े के बाहर कोई है क्या?"
भाभी मामाजी के नीचे लेटे अपनी चुत मे उनके लौड़े और उसके पानी का मज़ा लेती हुई बोली, "वीणा होगी, बाबूजी."
मामाजी उठकर बैठ गये और बोले, "वीणा! हाय यह क्या हो गया! उसने तो सब देख लिया होगा!"
भाभी बोली, "आप घबराइये नही, बाबूजी. वीणा भी बहुत खेल खाई हुई है. दो दिन से मेरे साथ वह भी खूब चूत मरा रही है."
भाभी झट से नंगी ही उठकर दरवाज़े के पास आयी और दरवाज़ा खोल कर मुझे पकड़ लिया. मुझे भागने का मौका ही नही मिला. मुझे खींचकर अंदर ले जाते हुए बोली, "ननद रानी, बाहर खड़े ससुर-बहु की चुदाई देखकर क्यों तरस रही हो. अंदर आकर खेलो हमारे साथ!"
मेरे बदन पर सिर्फ़ मेरा पेटीकोट था. मामाजी बिस्तर पर नंगे लेटे मेरे कंवारे चूचियों को ललचाई आँखों से देख रहे थे. मुझे इस तरह अध-नंगा देख कर उनके सुस्त लण्ड मे फिर ताओ आने लगा. वह नंगे ही उठकर आये और मुझे पकड़ कर बिस्तर पर ले गये. इधर भाभी ने झट से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मेरा पेटीकोट ज़मीन पर गिर गया. मैं मामाजी के सामने मादरजात नंगी हो गयी.
मैं हाथों से अपनी चुत और चूचियों को छुपाती हुई बोली, "भाभी, छोड़ो मुझे!"
भाभी हंस कर बोली, "साली, छुपके मेरी चुदाई देख रही थी! अब तेरी चुदाई होगी ताकि तू किसी को कुछ बोल ना सके. ले, चूस बाबूजी का लण्ड. चूसकर खड़ा कर!" और मेरे सर को जबरदस्ती मामाजी के लण्ड पर झुका दिया.
मामाजी का लण्ड सुस्त होकर भी 6-7 इंच लंबा और काफ़ी मोटा था. मैने उलटी आने का नाटक किया. भाभी ने जबरदस्ती मामाजी का ढीला लण्ड पकड़ कर मेरे मुँह मे ठूँस दिया और बोली, "ननद रानी, इतना नाटक किसको दिखाने के लिये कर रही हो? मेरे सामने तुमने जंगल मे मज़े लेकर रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश का लण्ड चूसा था. कल रात तो तुमने विश्वनाथजी का भी लौड़ा चूसा था और मज़े ले लेकर उनकी मलाई खाई थी! अब चूसो अपने मामाजी का लण्ड!"
मैं मामाजी का ढीला लण्ड चूसने लगी. जवानी की मस्ती तो मुझे चढ़ ही चुकी थी और लौड़े की मादक खुशबू मेरे नाक मे जाकर मुझे और मस्त बनाने लगी. पर मैं मामाजी के सामने रंडी की तरह पेश नही आना चाहती थी.
मामाजी चौंक कर बोले, "वीणा, तुमने कल उन चारों का लण्ड चूसा था?"
भाभी हंसकर बोली, "अब आपसे क्या छुपाना बाबूजी! जिस दिन हम दोनो मेले मे खो गये थे, उस दिन रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश ने जंगल मे ले जाकर हम दोनो का सामुहिक बलात्कार किया था. कल तो देर रात तक वह चारों और विश्वनाथजी मेरी और वीणा की चुदाई करते रहे. आप तो नशे मे टुन्न हो गये थे इसलिये आप को कुछ पता नही चला."
मामाजी की हैरानी बढ़ती ही जा रही थी. "बहु, यह तू क्या कह रही है? तुम दोनो तो बहुत बड़ी छिनालें हो!"
मैने चिढ़कर कहा, "भाभी, यह क्यों नही बताती कि रमेश और उसके ३ दोस्तों ने कल मामीजी को भी चोदा था?"
मामाजी बोले, "क्या!! कौशल्या (मेरी मामी) भी शामिल थी इस सब में?"
भाभी बोली, "बाबूजी, आपको क्या लगता है, सासुमाँ विश्वनाथजी के साथ अपने पीहर क्यों गयी है? रास्ते भर उनसे चोदवाने के इरादे से."
सुनकर मामाजी को बहुत गुस्सा आ गया. वैसे मेरे चुसाई से उनका लौड़ा फिर खड़ा हो गया था. वह बोले, "हे भगवान!! एक से एक रंडीयाँ बसी है मेरे घर मे! और विश्वनाथ मेरा दोस्त होकर मेरे साथ ऐस कैसे कर सकता है!"
भाभी ने मामाजी के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख दिये और उनके मुँह मे एक चूची घुसाकर बोली, "बाबूजी, आप गुस्सा क्यों होते हैं? जैसे आपको मौका मिला तो आपने अपनी बहु को चोद लिया. वैसे ही मौका मिलने पर विश्वनाथजी और उन चारों बदमाशों ने वीणा, सासुमाँ और मुझे चोद लिया. मौका मिला है इसलिये सासुमाँ भी विश्वनाथजी से चुदवा रही होगी."
सुनकर मामाजी का गुस्सा ठंडा हो गया और वह भाभी की नंगी चूचियों को दबाने और चूसने लगे. दो दो नंगी औरतों के आक्रमण के आगे उनका गुस्सा टिक नही सका.
मैने कहा, "मामाजी, यह सोचिये कि कितना अच्छा हुआ. अब मामी भी चुद गयी है, इसलिये घर जाकर आप भाभी को खुले आम चोदेंगे तो भी वह कुछ नही बोलेंगी."