hotaks444
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"बेशरम! तुने देखा मैं नंगा सो रहा हूँ फिर भी झाड़ू लगाने लग गयी?" ससुरजी बोले, "शरीफ़ औरत की तरह बाहर क्यों नही चली गयी?"
"का करें, मालिक! बहुत काम है ना आज! मालकिन बोली बहुत देर हो गयी है. सब काम जल्दी खतम करो." गुलाबी ने सफ़ाई दी.
"बेहया औरत!" ससुरजी गुस्से से बोले, "तेरी नीयत पर मुझे पहले से ही शक था."
"ई का कह रहे हैं, मालिक?" गुलाबी ने पूछा, "हम तो कुछ किये ही नही!"
"तुने कुछ नही किया तो यह इतना खड़ा कैसे हुआ?"
"मालिक," गुलाबी सकुचाते हुए बोली, "ई तो होता है...मरद लोगन के साथ...मेरे मरद को भी सुबह-सुबह होता है!"
"लड़की, तु मुझे बेवकूफ़ समझी है, क्या?" ससुरजी तेवर दिखाकर बोले, "तेरे मरद का खड़ा होने के साथ साथ ऊपर से नीचे तक गीला भी हो जाता है क्या?"
गुलाबी अपनी सुन्दर, काली काली आंखें नीची करके खड़ी रही. ससुरजी ने चादर के अन्दर अपना हाथ डाला और गुलाबी को देखते हुए अपने लौड़े को धीरे धीरे सहलाने लगे.
"गुलाबी, जब मैं सो रहा था तु आखिर कर क्या रही थी?" ससुरजी ने पूछा.
"मालिक, हम थोड़ा हाथ लगाये थे." गुलाबी ने कहा.
"बस हाथ ही लगाया था?"
"जी, मालिक." गुलाबी ने कहा.
"कैसा लगा मेरा लौड़ा तुझे?" ससुरजी ने पूछा, "रामु जैसा है या उससे बड़ा है?"
"आपका उससे थोड़ा बड़ा है." गुलाबी ने जवाब दिया.
"फिर तो हाथ लगाकर देखने की उत्सुकता हो ही सकती है." ससुरजी बोले.
"हमसे गलती हो गयी, मालिक. माफ़ कर दीजिये." गुलाबी ने कहा.
"अरे माफ़ क्यों नही करुंगा?" ससुरजी बोले, "तु जवान लड़की है. जवानी मे गलती तो हो ही जाती है. पर बात क्या है पहले समझूं तो सही!"
"मालिक, हम हाथ मे लेकर हिलाये भी थे." गुलाबी ने थोड़ी देर बाद जोड़ा.
"हूं. बहुत शरारती है तु तो!" ससुरजी बोले, "तो यह बता मेरा लन्ड गीला कैसे हो गया."
"हमरा हाथ गीला था ना, मालिक. अभी हाथ धोकर आये थे. इसलिये." गुलाबी ने कहा. दो ही दिन मे छोकरी कैसी झूठी और चालबाज़ हो गयी थी!
"ओहो! तुने मेरे लन्ड को मुंह मे तो नही लिया होगा?" ससुरजी ने पूछा.
गुलाबी ने अपने दोनो हाथ अपने गालों पर रखा और बोली, "हाय दईया! मालिक, हम तो अपने मरद का भी मुंह मे नही लेते!"
"अपने मरद का नही लेती है, पर किसी और का तो ले सकती है?"
"नही, मालिक." गुलाबी ने अपना नाटक जारी रखा, "हम सादी-सुदा औरत हैं. किसी और मरद को हाथ भी नही लगाते हैं."
"साली चुदैल!" रामु इधर बड़बड़ाया, "लन्ड चूस चूसकर उसका मलाई निकाल के खाती है, और मालिक के सामने सराफत की देवी बन रही है!"
मैं भी गुलाबी के नाटक को देख के मुंह दबाकर हंस रही थी.
"तु पराये मर्द को हाथ नही लगाती तो क्या हुआ." ससुरजी मज़ा लेते हुए बोले, "पराये मर्द तो तुझे हाथ लगाते ही होंगे?" उनका हाथ अभी भी चादर के नीचे अपने लन्ड को सहला रहा था.
"नही, मालिक." गुलाबी बोली, "इससे पहिले कि पराया मरद हमें हाथ लगाये हम अपनी जान न दे दें!"
ससुरजी सुनकर बहुत जोर से हंसने लगे.
हंसी रुकी तो वह बोले, "कल की लौंडिया, तु इतना नाटक कैसे सीख गयी रे?"
"ह-हम का बोले हैं, मालिक?" गुलाबी ने घबराकर पूछा.
"पराया मर्द तुझे हाथ नही लगाता, तो तु किशन और बलराम के साथ आजकल क्या किये फिर रही है?" ससुरजी ने पूछा.
गुलाबी को काटो तो खून नही. चुपचाप आंखें नीची किये खड़ी रही.
"तु क्या समझी, इस घर मे जो होता है मुझे खबर नही रहती?" ससुरजी ने कहा, "मुझे पता है कि तु सुबह-शाम किशन और बलराम के कमरे मे जाकर उनसे रोज़ चुदवा रही है. अभी 6 महीने नही हुए रामु तुझे ब्याह कर इस घर मे लाया है. और तु इतने मे इतनी बड़ी छिनाल बन गयी है?"
गुलाबी के आंखों मे आंसू आ गये. वह बुत की तरह खड़ी रही.
उसे देखकर ससुरजी बोले, "अरे गुलाबी, तु तो रोने लग गयी!"
"हम ऐसी लड़की नही थे, मालिक." वह सुबक सुबक कर बोली, "पहिले बड़े भैया खेत मे हमरी इज्जत लूटने की कोसिस किये....फिर भाभी हमको समझाई....कि सब सादी-सुदा औरतें....पराये मरद से मजा लेती हैं...वही हमको किसन भैया के साथ....मुंह काला करवाई....और बड़े भैया भी हमरी इज्जत लूटे...हम अच्छी लड़की हैं मालिक...हम छिनाल नही हैं!"
"साली चुगलखोर! बाबूजी के सामने हमारी सारी पोल खोल रही है." मैने रामु को कहा, "बाहर आये तो ऐसा मज़ा चखाऊंगी की ज़िंदगी भर नही भूलेगी."
तुम्हारे मामाजी ने गुलाबी का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास पलंग पर बिठाया.
उसके कोमल से हाथ को अपने नंगे सीने पर रखकर बोले, "अरे मैने तुझे छिनाल कहा तो इसमे रोने वाली क्या बात हो गयी, हाँ? तुझे बलराम और किशन के साथ मज़ा करना है तो कर ना. यही तो उमर है तेरी जवानी का मज़ा लेने की!"
गुलाबी ससुरजी के बगल मे बैठी सुबकती रही. कभी कभी उसकी नज़र चादर मे ढके ससुरजी के खड़े लन्ड पर जा रही थी.
"अरे तु अब भी रोये जा रही है!" ससुरजी बोले, "मीना बहु ने कुछ गलत तो नही सिखाया तुझे! सब शादी-शुदा औरतें पराये मर्दों से चुदवाती हैं. बहु खुद भी बहुत लोगों से चुदवाती है, मैं नही जानता क्या? मैं सब खबर रखता हूँ."
"फिर हम...किसन भैया और बड़े भैया से...करवाये तो आप हमे इतना सब काहे बोले?" गुलाबी ने सुबकते हुए पूछा.
"ओफ़्फ़ो! पागल लड़की!" ससुरजी उसके गालों को सहला कर बोले, "तुझे उनसे चुदवाने से मैं कब मना कर रहा हूँ! मैं तो बस यह कह रहा हूँ तुझे झूठ बोलने की क्या ज़रुरत थी?"
"हम का झूठ बोले?" गुलाबी ने सुबक कर पूछा.
"यही की जब मैं सो रहा था तुने मेरा लन्ड नही चूसा था."
"हाँ, चुसे थे, मालिक." गुलाबी ने हारकर मान लिया.
"क्यों चूसी थी?"
"हमे बहुत मन हुआ, मालिक." गुलाबी ने अपने आंसुओं मे से मुस्कुराकर कहा, "बहुत बड़ा है आपका औज़र. बड़े भैया जैसा."
"अच्छा!" ससुरजी ने कहा. उन्होने अपना हाथ गुलाबी की चूचियों पर रखा और चोली के ऊपर से थोड़ा दबाकर बोले, "बता तो कैसे चूसा तुने मेरा लन्ड."
गुलाबी की नज़र कभी ससुरजी के चेहरे पर जाती तो कभी उनके चादर मे ढके लन्ड पर. पर वह कुछ नही बोली.
"क्या हुआ, गुलाबी?" ससुरजी उसके चूचियों को अब आराम से दबाते हुए बोले, "दिखा ना तु कैसे मेरा लन्ड चूस रही थी."
"नही, मालिक. हम ई नही कर सकते हैं." गुलाबी बोली.
"क्यों?"
"आप तो हमरे पिता समान हैं, मालिक."
"छोकरी, तुने कभी अपने बाप का लौड़ा चूसा है?"
"नही मालिक."
"तो फिर अपना पिता समझकर ही चूस ले." ससुरजी बोले.
"हाय मालिक, हमको सरम आ रही है!" गुलाबी बोली.
"चूतमरानी! जब मैं सो रहा था तो तुने बिना शरम के मेरा लन्ड चूसा. अब तुझे शरम आ रही है?" ससुरजी ने गुलाबी का मुंह पकड़कर जबरदस्ती अपने लौड़े की तरफ़ झुका दिया और बोले, "चल चूस जल्दी से! तुम औरतों के नखरों से तो मैं बाज आया!"
गुलाबी ने चुपचाप ससुरजी के कमर के ऊपर से चादर हटा दिया. ससुरजी का मोटा, सांवले रंग का लन्ड तनकर खड़ा था. उसे पकड़कर उसने धीरे से अपने मुंह मे ले लिया और अपना सर ऊपर-नीचे करके चूसने लगी.
"आह!!" ससुरजी ने मस्ती की आह भरी, "कितना अच्छा लन्ड चूसती है रे तु, गुलाबी! बलराम और किशन का चूस चूसकर तु तो बहुत महिर हो गयी है! आह!!"
गुलाबी ने कुछ देर चुपचाप लन्ड चूसना जारी रखा. ससुरजी कभी कराहते और कभी मज़े मे आहें भर रहे थे.
कुछ देर बाद गुलाबी को बोले, "गुलाबी, बहुत दिनो से तेरी चूचियों को देखने का मन है. ज़रा अपनी चोली उतार दे ना."
"का करें, मालिक! बहुत काम है ना आज! मालकिन बोली बहुत देर हो गयी है. सब काम जल्दी खतम करो." गुलाबी ने सफ़ाई दी.
"बेहया औरत!" ससुरजी गुस्से से बोले, "तेरी नीयत पर मुझे पहले से ही शक था."
"ई का कह रहे हैं, मालिक?" गुलाबी ने पूछा, "हम तो कुछ किये ही नही!"
"तुने कुछ नही किया तो यह इतना खड़ा कैसे हुआ?"
"मालिक," गुलाबी सकुचाते हुए बोली, "ई तो होता है...मरद लोगन के साथ...मेरे मरद को भी सुबह-सुबह होता है!"
"लड़की, तु मुझे बेवकूफ़ समझी है, क्या?" ससुरजी तेवर दिखाकर बोले, "तेरे मरद का खड़ा होने के साथ साथ ऊपर से नीचे तक गीला भी हो जाता है क्या?"
गुलाबी अपनी सुन्दर, काली काली आंखें नीची करके खड़ी रही. ससुरजी ने चादर के अन्दर अपना हाथ डाला और गुलाबी को देखते हुए अपने लौड़े को धीरे धीरे सहलाने लगे.
"गुलाबी, जब मैं सो रहा था तु आखिर कर क्या रही थी?" ससुरजी ने पूछा.
"मालिक, हम थोड़ा हाथ लगाये थे." गुलाबी ने कहा.
"बस हाथ ही लगाया था?"
"जी, मालिक." गुलाबी ने कहा.
"कैसा लगा मेरा लौड़ा तुझे?" ससुरजी ने पूछा, "रामु जैसा है या उससे बड़ा है?"
"आपका उससे थोड़ा बड़ा है." गुलाबी ने जवाब दिया.
"फिर तो हाथ लगाकर देखने की उत्सुकता हो ही सकती है." ससुरजी बोले.
"हमसे गलती हो गयी, मालिक. माफ़ कर दीजिये." गुलाबी ने कहा.
"अरे माफ़ क्यों नही करुंगा?" ससुरजी बोले, "तु जवान लड़की है. जवानी मे गलती तो हो ही जाती है. पर बात क्या है पहले समझूं तो सही!"
"मालिक, हम हाथ मे लेकर हिलाये भी थे." गुलाबी ने थोड़ी देर बाद जोड़ा.
"हूं. बहुत शरारती है तु तो!" ससुरजी बोले, "तो यह बता मेरा लन्ड गीला कैसे हो गया."
"हमरा हाथ गीला था ना, मालिक. अभी हाथ धोकर आये थे. इसलिये." गुलाबी ने कहा. दो ही दिन मे छोकरी कैसी झूठी और चालबाज़ हो गयी थी!
"ओहो! तुने मेरे लन्ड को मुंह मे तो नही लिया होगा?" ससुरजी ने पूछा.
गुलाबी ने अपने दोनो हाथ अपने गालों पर रखा और बोली, "हाय दईया! मालिक, हम तो अपने मरद का भी मुंह मे नही लेते!"
"अपने मरद का नही लेती है, पर किसी और का तो ले सकती है?"
"नही, मालिक." गुलाबी ने अपना नाटक जारी रखा, "हम सादी-सुदा औरत हैं. किसी और मरद को हाथ भी नही लगाते हैं."
"साली चुदैल!" रामु इधर बड़बड़ाया, "लन्ड चूस चूसकर उसका मलाई निकाल के खाती है, और मालिक के सामने सराफत की देवी बन रही है!"
मैं भी गुलाबी के नाटक को देख के मुंह दबाकर हंस रही थी.
"तु पराये मर्द को हाथ नही लगाती तो क्या हुआ." ससुरजी मज़ा लेते हुए बोले, "पराये मर्द तो तुझे हाथ लगाते ही होंगे?" उनका हाथ अभी भी चादर के नीचे अपने लन्ड को सहला रहा था.
"नही, मालिक." गुलाबी बोली, "इससे पहिले कि पराया मरद हमें हाथ लगाये हम अपनी जान न दे दें!"
ससुरजी सुनकर बहुत जोर से हंसने लगे.
हंसी रुकी तो वह बोले, "कल की लौंडिया, तु इतना नाटक कैसे सीख गयी रे?"
"ह-हम का बोले हैं, मालिक?" गुलाबी ने घबराकर पूछा.
"पराया मर्द तुझे हाथ नही लगाता, तो तु किशन और बलराम के साथ आजकल क्या किये फिर रही है?" ससुरजी ने पूछा.
गुलाबी को काटो तो खून नही. चुपचाप आंखें नीची किये खड़ी रही.
"तु क्या समझी, इस घर मे जो होता है मुझे खबर नही रहती?" ससुरजी ने कहा, "मुझे पता है कि तु सुबह-शाम किशन और बलराम के कमरे मे जाकर उनसे रोज़ चुदवा रही है. अभी 6 महीने नही हुए रामु तुझे ब्याह कर इस घर मे लाया है. और तु इतने मे इतनी बड़ी छिनाल बन गयी है?"
गुलाबी के आंखों मे आंसू आ गये. वह बुत की तरह खड़ी रही.
उसे देखकर ससुरजी बोले, "अरे गुलाबी, तु तो रोने लग गयी!"
"हम ऐसी लड़की नही थे, मालिक." वह सुबक सुबक कर बोली, "पहिले बड़े भैया खेत मे हमरी इज्जत लूटने की कोसिस किये....फिर भाभी हमको समझाई....कि सब सादी-सुदा औरतें....पराये मरद से मजा लेती हैं...वही हमको किसन भैया के साथ....मुंह काला करवाई....और बड़े भैया भी हमरी इज्जत लूटे...हम अच्छी लड़की हैं मालिक...हम छिनाल नही हैं!"
"साली चुगलखोर! बाबूजी के सामने हमारी सारी पोल खोल रही है." मैने रामु को कहा, "बाहर आये तो ऐसा मज़ा चखाऊंगी की ज़िंदगी भर नही भूलेगी."
तुम्हारे मामाजी ने गुलाबी का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास पलंग पर बिठाया.
उसके कोमल से हाथ को अपने नंगे सीने पर रखकर बोले, "अरे मैने तुझे छिनाल कहा तो इसमे रोने वाली क्या बात हो गयी, हाँ? तुझे बलराम और किशन के साथ मज़ा करना है तो कर ना. यही तो उमर है तेरी जवानी का मज़ा लेने की!"
गुलाबी ससुरजी के बगल मे बैठी सुबकती रही. कभी कभी उसकी नज़र चादर मे ढके ससुरजी के खड़े लन्ड पर जा रही थी.
"अरे तु अब भी रोये जा रही है!" ससुरजी बोले, "मीना बहु ने कुछ गलत तो नही सिखाया तुझे! सब शादी-शुदा औरतें पराये मर्दों से चुदवाती हैं. बहु खुद भी बहुत लोगों से चुदवाती है, मैं नही जानता क्या? मैं सब खबर रखता हूँ."
"फिर हम...किसन भैया और बड़े भैया से...करवाये तो आप हमे इतना सब काहे बोले?" गुलाबी ने सुबकते हुए पूछा.
"ओफ़्फ़ो! पागल लड़की!" ससुरजी उसके गालों को सहला कर बोले, "तुझे उनसे चुदवाने से मैं कब मना कर रहा हूँ! मैं तो बस यह कह रहा हूँ तुझे झूठ बोलने की क्या ज़रुरत थी?"
"हम का झूठ बोले?" गुलाबी ने सुबक कर पूछा.
"यही की जब मैं सो रहा था तुने मेरा लन्ड नही चूसा था."
"हाँ, चुसे थे, मालिक." गुलाबी ने हारकर मान लिया.
"क्यों चूसी थी?"
"हमे बहुत मन हुआ, मालिक." गुलाबी ने अपने आंसुओं मे से मुस्कुराकर कहा, "बहुत बड़ा है आपका औज़र. बड़े भैया जैसा."
"अच्छा!" ससुरजी ने कहा. उन्होने अपना हाथ गुलाबी की चूचियों पर रखा और चोली के ऊपर से थोड़ा दबाकर बोले, "बता तो कैसे चूसा तुने मेरा लन्ड."
गुलाबी की नज़र कभी ससुरजी के चेहरे पर जाती तो कभी उनके चादर मे ढके लन्ड पर. पर वह कुछ नही बोली.
"क्या हुआ, गुलाबी?" ससुरजी उसके चूचियों को अब आराम से दबाते हुए बोले, "दिखा ना तु कैसे मेरा लन्ड चूस रही थी."
"नही, मालिक. हम ई नही कर सकते हैं." गुलाबी बोली.
"क्यों?"
"आप तो हमरे पिता समान हैं, मालिक."
"छोकरी, तुने कभी अपने बाप का लौड़ा चूसा है?"
"नही मालिक."
"तो फिर अपना पिता समझकर ही चूस ले." ससुरजी बोले.
"हाय मालिक, हमको सरम आ रही है!" गुलाबी बोली.
"चूतमरानी! जब मैं सो रहा था तो तुने बिना शरम के मेरा लन्ड चूसा. अब तुझे शरम आ रही है?" ससुरजी ने गुलाबी का मुंह पकड़कर जबरदस्ती अपने लौड़े की तरफ़ झुका दिया और बोले, "चल चूस जल्दी से! तुम औरतों के नखरों से तो मैं बाज आया!"
गुलाबी ने चुपचाप ससुरजी के कमर के ऊपर से चादर हटा दिया. ससुरजी का मोटा, सांवले रंग का लन्ड तनकर खड़ा था. उसे पकड़कर उसने धीरे से अपने मुंह मे ले लिया और अपना सर ऊपर-नीचे करके चूसने लगी.
"आह!!" ससुरजी ने मस्ती की आह भरी, "कितना अच्छा लन्ड चूसती है रे तु, गुलाबी! बलराम और किशन का चूस चूसकर तु तो बहुत महिर हो गयी है! आह!!"
गुलाबी ने कुछ देर चुपचाप लन्ड चूसना जारी रखा. ससुरजी कभी कराहते और कभी मज़े मे आहें भर रहे थे.
कुछ देर बाद गुलाबी को बोले, "गुलाबी, बहुत दिनो से तेरी चूचियों को देखने का मन है. ज़रा अपनी चोली उतार दे ना."