hotaks444
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थोड़ी देर बाद विमल को होश आता है और खुद को अलग करता है.
'क्या बात है मासी? इतनी परेशान क्यूँ हो? बताओ ना. बताओ किस तरह मैं आपकी परेशानी दूर कर सकता हूँ.'
'कुछ नही बेटा, तुम से इतने साल दूर रही हूँ, अब मिले हैं तो दिल भर आया है. आ अपनी माँ....सी के कलेजे से लग जा'
विमल के कानों में तो झगड़े की वो आवाज़ अभी तक गूँज रही थी. एक मर्दाना आवाज़ भी थी उसमे, तभी मासी ने उसे कमरे में नही घुसने दिया, यानी डॅड कमरे में थे और मासी के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे. ज़बरदस्ती का ख़याल आते ही उसे गुस्सा चढ़ जाता है और वो सुनीता को खुद से अलग करता है और उसकी आँखों में घूर्ने लगता है. विमल की आँखों की चुभन सुनीता सह सही नही जाती और वो नज़रें झुका लेती है.
विमल : क्या डॅड आपके साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे?
सुनीता उसके सवाल से चोंक उठती है खुद को संभालती है और
'ये क्या बेहुदगि भरी बात कर रहा है तू, अपने डॅड के बारे में ऐसा बोलता है तुझे शरम नही आती.'
विमल : आती है, बहुत आती है, उन्हें अपना डॅड कहने में भी शरम आती है. अगर आप उनके साथ मर्ज़ी से होती, तो मुझे इतना दुख ना होता, पर ज़बरदस्ती मैं बर्दाश्त नही कर सकता. और मुझ से ये झूठ मत बोलो कि उस वक्त वो कमरे में नही थे. इस घर में रात के इस वक़्त दो ही आदमी हैं, मैं और डॅड, मैं बाहर था तो जाहिर है डॅड अंदर थे,तभी आपने मुझे कमरे में घुसने नही दिया.'
सुनीता : तुझे मेरी कसम, अगर इस बात का ज़िकरा तूने कभी किसी के सामने अपने मुँह से निकाला. ग़लती इंसान से ही होती है और तेरे डॅड कोई भगवान नही, जो ग़लती ना करे.
विमल देखता ही रह जाता है की मासी उसके डॅड को बचा रही है. वो अपनी नज़रें झुका लेता है.
सुनीता उसके करीब जाती है और उसे अपने सीने से लगा लेती है.
सुनीता के सीने से लग जाने पे क्यूँ विमल को अद्भूत सा सकुन मिलता है, इतना तो कभी अपनी माँ के सीने से लग कर नही मिला था. उसके दिल से बाप के लिए उठी नफ़रत गायब हो जाती है, बस सुनीता के जिस्म से उठनेवाली सुगंध उसकी नस नस में समाने लगती है. सुनीता की भी बरसों से प्यासी ममता को प्यार की छींटे मिलने लगती है, उसकी पकड़ विमल पे और सख़्त हो जाती है. थोड़ी देर बाद वो विमल को अपने सामने करती है और फिर उसके चेहरे को चुंबनो से भरने लगती है. अचानक दोनो के होंठ एक दूसरे को छू जातेहैं और वहीं रुक जाते हैं. हर तरफ एक सन्नाटा सा छा जाता है. होंठों का कंपन बढ़ जाता है और विमल के हाथ सुनीता के नितंबों पे कस कर उसे अपनी तरफ खिच लेते हैं. सुनीता के बाँहें विमल के गले से लिपट जाती हैं.
जैसे ही विमल उसे अपनी तरफ दबाता है उसका खड़ा लंड सुनीता की चूत से टकरा जाता है. दोनो कहीं और पहुँच जाते हैं . होंठ से होंठ चिपके हुए थे और जिस्म से जिस्म चिपके हुए थे.
ये अहसास दोनो को एक अंजानी मंज़िल की तरफ खींचने लगता है. होंठ बस होंठ की नर्मी महसूस करते रहते हैं उनके बीच और कोई हरकत नही होती. समा वहीं बंद हो के रह जाता है.
कितनी ही देर दोनो ऐसे ही खड़े रहे और फिर अचानक सुनीता को एक झटका लगता है और वो दुनिया में वापस आती है. झटके से खुद को विमल से अलग करती है. विमल की आँखों मे एक अजीब सी चाहत देख कर घबरा जाती है . 'नही बेटा ये ग़लत है"
कह कर दरवाजे की सिटकनी खोलती है और कमरे से बाहर निकल वहीं दीवार के सहारे खड़ी हो जाती है. उसके दिमाग़ में हथोडे बजने लगते हैं, ये क्या हो गया, अपने बेटे के साथ वो ऐसा कैसे कर सकती है, सोचते सोचते आँखें आँसू से भर जाती हैं. टाँगों में जैसे जान ही नही रहती और वो दीवार से घिसटती हुई वहीं बैठ जाती है.
विमल को भी झटका लगता है, ये क्या हुआ था, एक तड़प उसके दिल और जिस्म में भर जाती है. कितनी देर वो ऐसे ही खड़ा रहता है और फिर कमरे से बाहर निकल कर देखता है कि सुनीता वहीं दीवार के सहारे बैठी रो रही थी.
विमल उसके पास जाता है और उसके आँसू पोंछ कर उसे उठाता है. सुनीता को अब भी वो चाहत उसकी आँखों में नज़र आती है और वो हिल के रह जाती है. विमल उसे सहारा दे कर उसके कमरे तक ले जाता है.
'मासी दरवाजा अंदर से बंद कर लो' गहरी नज़रों से सुनीता को देखता है और फिर सर झुका कर अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है. ऐसा लग रहा था जैसे अपनी टाँगों को हुकुम दे रहा हो किसी तरह अपने कमरे तक जाने के लिए.
पत्थर की मूर्ति बनी सुनीता उसे जाता हुआ देखती रहती है और आँखों से मोती टपकते रहते हैं.
विमल किसी तरह अपने कमरे में पहुँच कर बिस्तर पे गिर पड़ता है और जो हुआ उसे सोचता रहता है. नींद किस चिड़िया का नाम है ये वो भूल चुका था.
'क्या बात है मासी? इतनी परेशान क्यूँ हो? बताओ ना. बताओ किस तरह मैं आपकी परेशानी दूर कर सकता हूँ.'
'कुछ नही बेटा, तुम से इतने साल दूर रही हूँ, अब मिले हैं तो दिल भर आया है. आ अपनी माँ....सी के कलेजे से लग जा'
विमल के कानों में तो झगड़े की वो आवाज़ अभी तक गूँज रही थी. एक मर्दाना आवाज़ भी थी उसमे, तभी मासी ने उसे कमरे में नही घुसने दिया, यानी डॅड कमरे में थे और मासी के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे. ज़बरदस्ती का ख़याल आते ही उसे गुस्सा चढ़ जाता है और वो सुनीता को खुद से अलग करता है और उसकी आँखों में घूर्ने लगता है. विमल की आँखों की चुभन सुनीता सह सही नही जाती और वो नज़रें झुका लेती है.
विमल : क्या डॅड आपके साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे?
सुनीता उसके सवाल से चोंक उठती है खुद को संभालती है और
'ये क्या बेहुदगि भरी बात कर रहा है तू, अपने डॅड के बारे में ऐसा बोलता है तुझे शरम नही आती.'
विमल : आती है, बहुत आती है, उन्हें अपना डॅड कहने में भी शरम आती है. अगर आप उनके साथ मर्ज़ी से होती, तो मुझे इतना दुख ना होता, पर ज़बरदस्ती मैं बर्दाश्त नही कर सकता. और मुझ से ये झूठ मत बोलो कि उस वक्त वो कमरे में नही थे. इस घर में रात के इस वक़्त दो ही आदमी हैं, मैं और डॅड, मैं बाहर था तो जाहिर है डॅड अंदर थे,तभी आपने मुझे कमरे में घुसने नही दिया.'
सुनीता : तुझे मेरी कसम, अगर इस बात का ज़िकरा तूने कभी किसी के सामने अपने मुँह से निकाला. ग़लती इंसान से ही होती है और तेरे डॅड कोई भगवान नही, जो ग़लती ना करे.
विमल देखता ही रह जाता है की मासी उसके डॅड को बचा रही है. वो अपनी नज़रें झुका लेता है.
सुनीता उसके करीब जाती है और उसे अपने सीने से लगा लेती है.
सुनीता के सीने से लग जाने पे क्यूँ विमल को अद्भूत सा सकुन मिलता है, इतना तो कभी अपनी माँ के सीने से लग कर नही मिला था. उसके दिल से बाप के लिए उठी नफ़रत गायब हो जाती है, बस सुनीता के जिस्म से उठनेवाली सुगंध उसकी नस नस में समाने लगती है. सुनीता की भी बरसों से प्यासी ममता को प्यार की छींटे मिलने लगती है, उसकी पकड़ विमल पे और सख़्त हो जाती है. थोड़ी देर बाद वो विमल को अपने सामने करती है और फिर उसके चेहरे को चुंबनो से भरने लगती है. अचानक दोनो के होंठ एक दूसरे को छू जातेहैं और वहीं रुक जाते हैं. हर तरफ एक सन्नाटा सा छा जाता है. होंठों का कंपन बढ़ जाता है और विमल के हाथ सुनीता के नितंबों पे कस कर उसे अपनी तरफ खिच लेते हैं. सुनीता के बाँहें विमल के गले से लिपट जाती हैं.
जैसे ही विमल उसे अपनी तरफ दबाता है उसका खड़ा लंड सुनीता की चूत से टकरा जाता है. दोनो कहीं और पहुँच जाते हैं . होंठ से होंठ चिपके हुए थे और जिस्म से जिस्म चिपके हुए थे.
ये अहसास दोनो को एक अंजानी मंज़िल की तरफ खींचने लगता है. होंठ बस होंठ की नर्मी महसूस करते रहते हैं उनके बीच और कोई हरकत नही होती. समा वहीं बंद हो के रह जाता है.
कितनी ही देर दोनो ऐसे ही खड़े रहे और फिर अचानक सुनीता को एक झटका लगता है और वो दुनिया में वापस आती है. झटके से खुद को विमल से अलग करती है. विमल की आँखों मे एक अजीब सी चाहत देख कर घबरा जाती है . 'नही बेटा ये ग़लत है"
कह कर दरवाजे की सिटकनी खोलती है और कमरे से बाहर निकल वहीं दीवार के सहारे खड़ी हो जाती है. उसके दिमाग़ में हथोडे बजने लगते हैं, ये क्या हो गया, अपने बेटे के साथ वो ऐसा कैसे कर सकती है, सोचते सोचते आँखें आँसू से भर जाती हैं. टाँगों में जैसे जान ही नही रहती और वो दीवार से घिसटती हुई वहीं बैठ जाती है.
विमल को भी झटका लगता है, ये क्या हुआ था, एक तड़प उसके दिल और जिस्म में भर जाती है. कितनी देर वो ऐसे ही खड़ा रहता है और फिर कमरे से बाहर निकल कर देखता है कि सुनीता वहीं दीवार के सहारे बैठी रो रही थी.
विमल उसके पास जाता है और उसके आँसू पोंछ कर उसे उठाता है. सुनीता को अब भी वो चाहत उसकी आँखों में नज़र आती है और वो हिल के रह जाती है. विमल उसे सहारा दे कर उसके कमरे तक ले जाता है.
'मासी दरवाजा अंदर से बंद कर लो' गहरी नज़रों से सुनीता को देखता है और फिर सर झुका कर अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है. ऐसा लग रहा था जैसे अपनी टाँगों को हुकुम दे रहा हो किसी तरह अपने कमरे तक जाने के लिए.
पत्थर की मूर्ति बनी सुनीता उसे जाता हुआ देखती रहती है और आँखों से मोती टपकते रहते हैं.
विमल किसी तरह अपने कमरे में पहुँच कर बिस्तर पे गिर पड़ता है और जो हुआ उसे सोचता रहता है. नींद किस चिड़िया का नाम है ये वो भूल चुका था.