hotaks444
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फ़िर जब हम बस से उतरे तो उसने चँचलता से हमें अपना लोअर दिखाया, जिसमें शायद उसका लँड खडा था और उठा हुआ था!
"देख साले..."
"अबे क्या हुआ?"
"क्या बताऊँ यार, साला मेरे बगल में वो लौंडा नहीं था एक?"
"हाँ था तो... क्या हुआ?"
"अरे यार, साला मेरा लँड पकड के सहला रहा था मादरचोद... देखो ना खडा करवा के छोड गया..." आकाश ने बताया तो मैं तो कामुक हो उठा और कुणाल हँसने लगा मगर मुझे लगा कि शायद वो भी कमुक हो गया था!
"अबे, तूने मना नहीं किया?" कुणाल ने पूछा!
"मना कैसे करता, बडा मज़ा आ रहा था... हाहाहाहा..."
"बडा हरामी है तू... " मैने कहा!
"तो उतर क्यों गया? साले के साथ चला जाता ना.." कुणाल ने कहा!
"अबे अब ऐसे में इतना ही मज़ा लेना चाहिये..."
"वाह बेटा, मज़ा ले लिया... मगर लौंडे के हाथ में क्या मज़ा मिला?"
"अबे, लँड तो ठनक गया ना... उसको क्या मालूम, हाथ किसका था... हाहाहा..."
"हाँ बात तो सही है..." कुणाल ने कहा फ़िर बोला "तो साले की गाँड में दे देता..."
"अबे बस में कैसे देता, अगर साला कहीं और मिलता तो उसकी गाँड मार लेता..."
मैं तो पूरा कामुक हो चुका था और हम तीनों के ही लँड खडे हो चुके थे मगर मैं फ़िर भी शरीफ़ स्ट्रेट बनने का नाटक कर रहा था! पर दिल तो कुछ और ही चाह रहा था! मैने बात जारी रखी!
"तेरा क्या पूरा ताव में आ गया था?"
"हाँ और क्या, साला सही से पकड के रगड रहा था... पूरा आँडूओं तक सहला रहा था!" जब आकाश ने कहा तो मुझे उस लडके से जलन हुई जिसको आकाश का लँड थामने को मिला था मैं तो उस वक़्त उस व्हाइट टाइट लोअर में सामने की तरफ़ के उभार को देख के ही मस्त हो सकता था!
शायद कुणाल को भी उस गे एन्काउंटर की बात से मस्ती आ गयी थी क्योंकि उसके बाद वो ना सिर्फ़ उसकी बात करता रहा बल्कि उसकी फ़िज़िकैलिटी भी बढ गयी थी! मुझे आकाश के बारे में एक ये भी चीज़ पसंद थी कि उसकी आँखों में देसी कामुकता और चँचल मर्दानेपन के साथ साथ एक मासूमियत भी थी और एक बहुत हल्की सी शरम की झलक जो उस समय अपने चरम पर थी!
"यार कहीं जगह मिले तो लँड पर हाथ मार कर हल्का हो जाऊँ... साला पूरा थका गया है..."
"अबे, क्या सडक पर मुठ मारेगा?" कुणाल ने कहा!
"अबे तो क्या हुआ, जो देखेगा, समझेगा कि मूत रहा हूँ... हेहेहे..."
उसको ग्लॉवज लेने थे सो ले लिये! फ़िर हम थोडा बहुत इधर उधर घूमे! अब मुझे आकाश के जिस्म की कशिश और कटैली लग रही थी! एक दो बार जब वो चलते चलते मेरे आगे हुआ तो मैने करीब से उसकी गाँड की गदरायी फ़ाँकें देखीं! वो कसमसा कसमसा के हिल रही थीं और उसका लोअर अक्सर उसकी जाँघों के पिछले हिस्से पर पूरा टाइट हो जा रहा था! कभी मैं उसके लँड की तरफ़ देखता, इन्फ़ैक्ट एक दो बार आकाश ने मुझे उसका लँड देखते हुये पकड भी लिया, मगर वो कुछ बोला नहीं!
"क्यों, अगर कोई तेरा लँड पकड लेता तो क्या करता?" उसने मुझसे पूछा!
"पता नहीं यार..."
"पता नहीं क्या?"
"मतलब अगर मज़ा आता तो पकडा देता मैं भी..."
"साला हरामी है ये भी" कुणाल बोला!
"मगर अब वो बन्दा कहाँ मिलेगा, बस साला कहीं किसी और का थाम के मस्ती ले रहा होगा" कुणाल फ़िर बोला!
"हाँ यार, ये भी चस्का होता है"
"हाँ, जैसे तुझे पकडवाने का चस्का लग गया है, उसको पकडने का होगा... हाहाहाहा..." मैने कहा!
"मगर सच यार, मज़ा तो बहुत आया... सर घूम गया! एक दो बार दिल किया, साले को खोल के थमा दूँ..." आकाश ने बडे कामातुर तरीके से कहा! अब वो अक्सर बात करते समय मुझे मुस्कुरा के देखता था!
"अबे वो लौंडा था कैसा?" कुणाल ने पूछा!
"था तो गोरा चिकना सा... तूने नहीं देखा था? मेरे सामने की तरफ़ तो था..." मुझे तो उस लडके की शक्ल याद आ गयी क्योंकि मैने उसको गौर से देखा था!
"हाँ अगर चिकना होता तो मैं तो साले को अगले स्टॉप पर उतार के उसकी गाँड में लौडा दे देता!" कुणाल बोला!
"वाह साले, तू तो हमसे भी आगे निकला" आकाश बोला!
"क्यों साले, तू नहीं मार लेता अगर वो साला तेरे सामने अपनी गाँड खोल देता?"
जब बस आयी तो हम चढ गये! इस बार भी भीड थी मगर किसी ने इस बार हम तीनों में से किसी का लँड नहीं थामा! अब तो हल्का हल्का अँधेरा भी होने लगा था और इस बार आकाश का जिस्म मेरे जिस्म से चिपका हुआ था! इस बार मुझसे रहा ना गया! मैने चुपचाप अपना एक हाथ नीचे किया और उसके ऊपरी हिस्से को हल्के से आकाश की जाँघ से चिपका के कैजुअली रगडने दिया! कहीं से कोई रिएक्शन नहीं हुआ! मैने सोचा था कि अगर वो अजनबी लडके को थमा सकता है तो ट्राई मारने में क्या हर्ज है और वो उस समय ठरक में भी था! मैने अपने हाथ, यानी अपनी हथेली के ऊपरी हिस्से से उसकी जाँघ को सहलाया तो मुझे मज़ा आया और एक्साइटमेंट भी हुआ! जब वो कुछ बोला नहीं तो मुझे प्रोत्साहन मिला! मैं उसकी तरफ़ नहीं देख रहा था बस मेरे हाथ चल रहे थे! धीरे धीरे मैने सही से सहलाना शुरु किया और फ़िर मेरी उँगलियाँ शुरु में केअरलेसली उसके लँड के सुपाडे के पास पहुँची तो उसके लोअर में लँड महसूस करके मैं विचलित हो उठा, उसका लँड अब भी खडा था!
मैने अगले स्टॉप की हलचल के बाद सीधा अपनी हथेली से उसका लँड रगडना शुरु किया और बीच बीच में उसको अपनी उँगलियों से पकडना भी शुरु कर दिया तो वो फ़िर से मस्त हो गया! मैने एक दो बार उसकी तरफ़ देखा तो उसके चेहरे पर सिर्फ़ कामुकता के भाव दिखे! मुझे ये पता नहीं था कि उसको ये बात मालूम थी कि वो मेरा हाथ था! मैं अब आराम से उसका लँड पकड के दबा रहा था! फ़ाइनली जब हमारा स्टॉप आया तो हम उतर गये! मगर तब तक आकाश और मैं दोनो ही पूरे कामुक हो चुके थे!
"क्यों, अब तो कोई नहीं मिला ना साले?" कुणाल ने उतरते हुये पूछा तो मुझे आकाश की ऐक्टिंग के हुनर का पता चला!
"नहीं बे, अब हमेशा कोई मिलेगा क्या? वो तो कभी कभी की बात होती है..." अब मैं समझा कि उसको मालूम था कि वो हाथ मेरा था और शायद उसको इसमें कोई आपत्ति नहीं थी! मगर कुणाल हमारे साथ ही लगा रहा! अब मैं आकाश की चाहत के लिये तडपने लगा था! अँधेरा हो चुका था और मेरे पास आकाश को ले जाने के लिये कोई जगह नहीं थी! हमने चाय पी और इस दौरान आकाश और मैं एक दूसरे को देखते रहे! फ़ाइनली हमें वहाँ से जाना ही पडा!
अगले कुछ दिन मेरी आकाश के साथ उस टाइप की कोई बात नहीं हो पायी! राशिद भैया को नौकरी मिल गयी तो वो रिज़ाइन करने चले गये और काशिफ़ को अलीगढ छोड आये! उन्होने कहा कि वो जब वापस आयेंगे तो कुछ दिन मेरे साथ रहकर मकन ढूँढेगे और इस बीच मुझे कोई अच्छा मकान मिले तो मैं उनके लिये बात कर लूँ! अब तक कुणाल, आकाश, विनोद और मैं काफ़ी क्लोज हो गये थे! शायद हम सबको एक ही चाहत, जिस्म की चाहत ने बाँध रखा था, जिससे हम एक दूसरे की तरफ़ बिना कहे आकर्षित थे!
एक दिन मैं लौटा तो दीपयान गली के नुक्कड पर खडा सिगरेट पीता मिला! जैसे ही उसने मुझे आते देखा उसने मुसकुरा के सिगरेट छिपाने की कोशिश की!
"पी लो बेटा, ये सब जवानी की निशानी हैं... शरमाओ मत..." मैने कहा!
"आओ ना, ऊपर आओ... आराम से बैठ के पियो..." उस समय वो स्कूल की नीली पैंट में अपनी कमसिन अल्हड जवानी समेटे बडा मस्त लग रहा था! वो ऊपर आ कर तुरन्त फ़्री होकर बैठ गया और उसके बैठने में मैने उसकी टाँगों के बीच उसका खज़ाना उभरता हुआ देखा! उसकी पैंट जाँघों पर टाइट थी! उसकी हल्की ग्रे आँखें और भूरे बाल, साथ में गोरा कमसिन चिकना चेहरा मस्त थे! साला शायद अँडरवीअर नहीं पहने था जिस कारण उसके लँड की ऑउटलाइन भी दिख रही थी!
"क्यों भैया, अकेले बडा मज़ा आता होगा रहने में?"
"मज़ा क्या आयेगा यार?"
"मतलब, जो मर्जी करो..."
"हाँ वो तो है..."
"काश, मैं भी अकेले रह सकता..."
"क्यों क्या करते?"
"चूत चोदता, खूब रंडियाँ ला ला कर..." वो बिन्दास बोला!
"क्यों?"
"क्योंकि... बस ऐसे ही..."
"अबे खडा भी होता है?"
"पूरा खम्बा है भैया..."
"तुम्हारा गोरा होगा..."
"हाँ भरपूर गुलाबी है..."
मैने नोटिस किया कि लडका शरमा नहीं रहा था और इन सब में बढ चढ के हिस्सा ले रहा था!
"क्यों बेटा रंडी चोदने का आइडिआ कब से है?"
"हमेशा से है.."
"अच्छा? स्कूल में यही सब सीखते हो?"
"और क्या, हमारे स्कूल में बडे मादरचोद लडके हैं... शरीफ़ लडकों की तो गाँड मार ली जाती है..."
"अच्छा? बडा हरामी स्कूल है..."
"अरे भैया, गवर्न्मेंट स्कूल में और क्या होगा... बस समझो 'सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी'..."
मुझे उसकी बातों में मज़ा आ रहा था, इन्फ़ैक्ट मेरी कामुकता हल्के हल्के बढती जा रही थी! इतनी पास में बैठा, इतनी एक्साइटेड तरह से बात करता हुआ, ये चिकना पहाडी लडका बडा सुंदर और कामातुर लग रहा था!
"क्यों तुझे कैसे पता कि लडको की गाँड मारी जाती है?"
"एक दो की तो मैं भी लगा चुका हूँ... एक साला तो गाँडू है... खुद ही पटाता है और स्कूल के मैदान के साइड वाली झाडियों में लडकों से गाँड मरवाता है!"
"क्या कह रहा है यार... तूने गाँड मारी?"
"बहुत बार मारी है भैया... तभी तो अब लँड, चूत ढूँढने लगा है... गाँड के बाद चूत का मज़ा देखना है..."
"देख साले..."
"अबे क्या हुआ?"
"क्या बताऊँ यार, साला मेरे बगल में वो लौंडा नहीं था एक?"
"हाँ था तो... क्या हुआ?"
"अरे यार, साला मेरा लँड पकड के सहला रहा था मादरचोद... देखो ना खडा करवा के छोड गया..." आकाश ने बताया तो मैं तो कामुक हो उठा और कुणाल हँसने लगा मगर मुझे लगा कि शायद वो भी कमुक हो गया था!
"अबे, तूने मना नहीं किया?" कुणाल ने पूछा!
"मना कैसे करता, बडा मज़ा आ रहा था... हाहाहाहा..."
"बडा हरामी है तू... " मैने कहा!
"तो उतर क्यों गया? साले के साथ चला जाता ना.." कुणाल ने कहा!
"अबे अब ऐसे में इतना ही मज़ा लेना चाहिये..."
"वाह बेटा, मज़ा ले लिया... मगर लौंडे के हाथ में क्या मज़ा मिला?"
"अबे, लँड तो ठनक गया ना... उसको क्या मालूम, हाथ किसका था... हाहाहा..."
"हाँ बात तो सही है..." कुणाल ने कहा फ़िर बोला "तो साले की गाँड में दे देता..."
"अबे बस में कैसे देता, अगर साला कहीं और मिलता तो उसकी गाँड मार लेता..."
मैं तो पूरा कामुक हो चुका था और हम तीनों के ही लँड खडे हो चुके थे मगर मैं फ़िर भी शरीफ़ स्ट्रेट बनने का नाटक कर रहा था! पर दिल तो कुछ और ही चाह रहा था! मैने बात जारी रखी!
"तेरा क्या पूरा ताव में आ गया था?"
"हाँ और क्या, साला सही से पकड के रगड रहा था... पूरा आँडूओं तक सहला रहा था!" जब आकाश ने कहा तो मुझे उस लडके से जलन हुई जिसको आकाश का लँड थामने को मिला था मैं तो उस वक़्त उस व्हाइट टाइट लोअर में सामने की तरफ़ के उभार को देख के ही मस्त हो सकता था!
शायद कुणाल को भी उस गे एन्काउंटर की बात से मस्ती आ गयी थी क्योंकि उसके बाद वो ना सिर्फ़ उसकी बात करता रहा बल्कि उसकी फ़िज़िकैलिटी भी बढ गयी थी! मुझे आकाश के बारे में एक ये भी चीज़ पसंद थी कि उसकी आँखों में देसी कामुकता और चँचल मर्दानेपन के साथ साथ एक मासूमियत भी थी और एक बहुत हल्की सी शरम की झलक जो उस समय अपने चरम पर थी!
"यार कहीं जगह मिले तो लँड पर हाथ मार कर हल्का हो जाऊँ... साला पूरा थका गया है..."
"अबे, क्या सडक पर मुठ मारेगा?" कुणाल ने कहा!
"अबे तो क्या हुआ, जो देखेगा, समझेगा कि मूत रहा हूँ... हेहेहे..."
उसको ग्लॉवज लेने थे सो ले लिये! फ़िर हम थोडा बहुत इधर उधर घूमे! अब मुझे आकाश के जिस्म की कशिश और कटैली लग रही थी! एक दो बार जब वो चलते चलते मेरे आगे हुआ तो मैने करीब से उसकी गाँड की गदरायी फ़ाँकें देखीं! वो कसमसा कसमसा के हिल रही थीं और उसका लोअर अक्सर उसकी जाँघों के पिछले हिस्से पर पूरा टाइट हो जा रहा था! कभी मैं उसके लँड की तरफ़ देखता, इन्फ़ैक्ट एक दो बार आकाश ने मुझे उसका लँड देखते हुये पकड भी लिया, मगर वो कुछ बोला नहीं!
"क्यों, अगर कोई तेरा लँड पकड लेता तो क्या करता?" उसने मुझसे पूछा!
"पता नहीं यार..."
"पता नहीं क्या?"
"मतलब अगर मज़ा आता तो पकडा देता मैं भी..."
"साला हरामी है ये भी" कुणाल बोला!
"मगर अब वो बन्दा कहाँ मिलेगा, बस साला कहीं किसी और का थाम के मस्ती ले रहा होगा" कुणाल फ़िर बोला!
"हाँ यार, ये भी चस्का होता है"
"हाँ, जैसे तुझे पकडवाने का चस्का लग गया है, उसको पकडने का होगा... हाहाहाहा..." मैने कहा!
"मगर सच यार, मज़ा तो बहुत आया... सर घूम गया! एक दो बार दिल किया, साले को खोल के थमा दूँ..." आकाश ने बडे कामातुर तरीके से कहा! अब वो अक्सर बात करते समय मुझे मुस्कुरा के देखता था!
"अबे वो लौंडा था कैसा?" कुणाल ने पूछा!
"था तो गोरा चिकना सा... तूने नहीं देखा था? मेरे सामने की तरफ़ तो था..." मुझे तो उस लडके की शक्ल याद आ गयी क्योंकि मैने उसको गौर से देखा था!
"हाँ अगर चिकना होता तो मैं तो साले को अगले स्टॉप पर उतार के उसकी गाँड में लौडा दे देता!" कुणाल बोला!
"वाह साले, तू तो हमसे भी आगे निकला" आकाश बोला!
"क्यों साले, तू नहीं मार लेता अगर वो साला तेरे सामने अपनी गाँड खोल देता?"
जब बस आयी तो हम चढ गये! इस बार भी भीड थी मगर किसी ने इस बार हम तीनों में से किसी का लँड नहीं थामा! अब तो हल्का हल्का अँधेरा भी होने लगा था और इस बार आकाश का जिस्म मेरे जिस्म से चिपका हुआ था! इस बार मुझसे रहा ना गया! मैने चुपचाप अपना एक हाथ नीचे किया और उसके ऊपरी हिस्से को हल्के से आकाश की जाँघ से चिपका के कैजुअली रगडने दिया! कहीं से कोई रिएक्शन नहीं हुआ! मैने सोचा था कि अगर वो अजनबी लडके को थमा सकता है तो ट्राई मारने में क्या हर्ज है और वो उस समय ठरक में भी था! मैने अपने हाथ, यानी अपनी हथेली के ऊपरी हिस्से से उसकी जाँघ को सहलाया तो मुझे मज़ा आया और एक्साइटमेंट भी हुआ! जब वो कुछ बोला नहीं तो मुझे प्रोत्साहन मिला! मैं उसकी तरफ़ नहीं देख रहा था बस मेरे हाथ चल रहे थे! धीरे धीरे मैने सही से सहलाना शुरु किया और फ़िर मेरी उँगलियाँ शुरु में केअरलेसली उसके लँड के सुपाडे के पास पहुँची तो उसके लोअर में लँड महसूस करके मैं विचलित हो उठा, उसका लँड अब भी खडा था!
मैने अगले स्टॉप की हलचल के बाद सीधा अपनी हथेली से उसका लँड रगडना शुरु किया और बीच बीच में उसको अपनी उँगलियों से पकडना भी शुरु कर दिया तो वो फ़िर से मस्त हो गया! मैने एक दो बार उसकी तरफ़ देखा तो उसके चेहरे पर सिर्फ़ कामुकता के भाव दिखे! मुझे ये पता नहीं था कि उसको ये बात मालूम थी कि वो मेरा हाथ था! मैं अब आराम से उसका लँड पकड के दबा रहा था! फ़ाइनली जब हमारा स्टॉप आया तो हम उतर गये! मगर तब तक आकाश और मैं दोनो ही पूरे कामुक हो चुके थे!
"क्यों, अब तो कोई नहीं मिला ना साले?" कुणाल ने उतरते हुये पूछा तो मुझे आकाश की ऐक्टिंग के हुनर का पता चला!
"नहीं बे, अब हमेशा कोई मिलेगा क्या? वो तो कभी कभी की बात होती है..." अब मैं समझा कि उसको मालूम था कि वो हाथ मेरा था और शायद उसको इसमें कोई आपत्ति नहीं थी! मगर कुणाल हमारे साथ ही लगा रहा! अब मैं आकाश की चाहत के लिये तडपने लगा था! अँधेरा हो चुका था और मेरे पास आकाश को ले जाने के लिये कोई जगह नहीं थी! हमने चाय पी और इस दौरान आकाश और मैं एक दूसरे को देखते रहे! फ़ाइनली हमें वहाँ से जाना ही पडा!
अगले कुछ दिन मेरी आकाश के साथ उस टाइप की कोई बात नहीं हो पायी! राशिद भैया को नौकरी मिल गयी तो वो रिज़ाइन करने चले गये और काशिफ़ को अलीगढ छोड आये! उन्होने कहा कि वो जब वापस आयेंगे तो कुछ दिन मेरे साथ रहकर मकन ढूँढेगे और इस बीच मुझे कोई अच्छा मकान मिले तो मैं उनके लिये बात कर लूँ! अब तक कुणाल, आकाश, विनोद और मैं काफ़ी क्लोज हो गये थे! शायद हम सबको एक ही चाहत, जिस्म की चाहत ने बाँध रखा था, जिससे हम एक दूसरे की तरफ़ बिना कहे आकर्षित थे!
एक दिन मैं लौटा तो दीपयान गली के नुक्कड पर खडा सिगरेट पीता मिला! जैसे ही उसने मुझे आते देखा उसने मुसकुरा के सिगरेट छिपाने की कोशिश की!
"पी लो बेटा, ये सब जवानी की निशानी हैं... शरमाओ मत..." मैने कहा!
"आओ ना, ऊपर आओ... आराम से बैठ के पियो..." उस समय वो स्कूल की नीली पैंट में अपनी कमसिन अल्हड जवानी समेटे बडा मस्त लग रहा था! वो ऊपर आ कर तुरन्त फ़्री होकर बैठ गया और उसके बैठने में मैने उसकी टाँगों के बीच उसका खज़ाना उभरता हुआ देखा! उसकी पैंट जाँघों पर टाइट थी! उसकी हल्की ग्रे आँखें और भूरे बाल, साथ में गोरा कमसिन चिकना चेहरा मस्त थे! साला शायद अँडरवीअर नहीं पहने था जिस कारण उसके लँड की ऑउटलाइन भी दिख रही थी!
"क्यों भैया, अकेले बडा मज़ा आता होगा रहने में?"
"मज़ा क्या आयेगा यार?"
"मतलब, जो मर्जी करो..."
"हाँ वो तो है..."
"काश, मैं भी अकेले रह सकता..."
"क्यों क्या करते?"
"चूत चोदता, खूब रंडियाँ ला ला कर..." वो बिन्दास बोला!
"क्यों?"
"क्योंकि... बस ऐसे ही..."
"अबे खडा भी होता है?"
"पूरा खम्बा है भैया..."
"तुम्हारा गोरा होगा..."
"हाँ भरपूर गुलाबी है..."
मैने नोटिस किया कि लडका शरमा नहीं रहा था और इन सब में बढ चढ के हिस्सा ले रहा था!
"क्यों बेटा रंडी चोदने का आइडिआ कब से है?"
"हमेशा से है.."
"अच्छा? स्कूल में यही सब सीखते हो?"
"और क्या, हमारे स्कूल में बडे मादरचोद लडके हैं... शरीफ़ लडकों की तो गाँड मार ली जाती है..."
"अच्छा? बडा हरामी स्कूल है..."
"अरे भैया, गवर्न्मेंट स्कूल में और क्या होगा... बस समझो 'सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी'..."
मुझे उसकी बातों में मज़ा आ रहा था, इन्फ़ैक्ट मेरी कामुकता हल्के हल्के बढती जा रही थी! इतनी पास में बैठा, इतनी एक्साइटेड तरह से बात करता हुआ, ये चिकना पहाडी लडका बडा सुंदर और कामातुर लग रहा था!
"क्यों तुझे कैसे पता कि लडको की गाँड मारी जाती है?"
"एक दो की तो मैं भी लगा चुका हूँ... एक साला तो गाँडू है... खुद ही पटाता है और स्कूल के मैदान के साइड वाली झाडियों में लडकों से गाँड मरवाता है!"
"क्या कह रहा है यार... तूने गाँड मारी?"
"बहुत बार मारी है भैया... तभी तो अब लँड, चूत ढूँढने लगा है... गाँड के बाद चूत का मज़ा देखना है..."