hotaks444
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यार बना प्रीतम - भाग (8)
गतान्क से आगे........
तैयार हो जा, जलेगा थोड़ा पर मज़ा भी आएगा और अचानक मेरी आँतों में गरम पानी भर'ने लगा. वह जल भी रहा था. पहले तो मैं समझा नहीं कि क्या हो रहा है पर फिर पता चला कि प्रीतम मेरी गान्ड में मूत रहा है.
उस गरम खारे पानी का जादू ही कुच्छ और था. लग रहा था कि तप'ता अनीमा ले रहा हूँ. खारा होने की वजह से वह जल भी रहा था. गांद मरवा मरवा'कर अंदर से थोड़ी छिल गयी थी और इसीलिए जल रही थी. अप'ने चप्पल से भरे मुँह से मैं थोड कराहा पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरा लंड और तंन गया. पूरा मूत कर ही वह रुका. एक लीटर मूत ज़रूर मेरी आँतों में भर दिया था उस'ने. फिर मेरा लंड सहलाता हुआ प्रीतम बोला.
मज़ा आया मेरे यार? तेरा लंड कैसा सिर तन कर खड है देख . अब मेरी मारेगा राजा? मैने सिर हिला'कर हां कहा क्योंकि मुँह में तो चप्पल थी.
फिर अब पूरी चप्पल मुँह में देता हूँ. और फिर उसे खा जा मेरे यार. मैं जान'ता हूँ की तू कब से ये कर'ने को मारा जा रहा है पर साला शरमाता है. मैने इसी लिए यह घिसी पुरानी पतली चप्पल मँगवाई थी. बिलकुल पतली है. तुझे पहली बार खा'ने को यही अच्छी है, तकलीफ़ नहीं होगी. मैं भी कब से सोच रहा हूँ की मेरी रानी मेरी चप्पालों पर इतना मार'ती है, और उसे आज तक मैं चप्पल खिला नहीं पाया. आज ख़ाले, चप्पल खा कर फिर मेरी गान्ड मार, जैसे मारनी हो, मैं कुच्छ नहीं कहूँगा.
मैं सुन कर मचल गया. डर भी लगा. यह मेरी कब की फेंटसी थी कि मेरे यार, मेरे स्वामी प्रीतम की चप्पल खा जाउ. पर रब्बर की चप्पल खाना कोई माऊली बात नहीं है. मैं कुच्छ कहना चाह'ता था कि यह कैसे होगा पर मुँह भरा होने से बोल नहीं पाया. वह फिर बोला. मैने उसके मन
की बात भाँप ली थी. मेरा लंड अब ऐसा खड़ा था कि सूज कर फट जाएगा. उसे हल्के से दबा कर वह बोला.
पर एक शर्त है यार, चप्पल निगल'ने तक तू लंड ऐसा ही रखेगा. मस्ती में तू मन लगा'कर खाएगा यह मैं जान'ता हूँ पर एक बार अगर झड गया तो फिर नहीं खा पाएगा. इस'लिए तेरी मुश्कें बाँध कर रखूँगा जब तक तू चप्पल चबा चबा कर निगल ना ले. बोल है मंजूर? उस'की आँखों में उत्कट कामवासना धधक रही थी. जितनी आस मेरे मन में थी उतनी ही लालसा उसे मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की थी. मैं तुरंत तैयार हो गया. वैसे मुझे लग'ता है कि वह जिस मूड में था उस'में अगर मैं इनकार भी कर'ता तो वह ज़ोर ज़बरदस्ती से मुझे चप्पल खिला कर ही रहता. मेरे हां कह'ने पर वह बोला.
अब मैं लंड निकाल'ता हूँ पर तू अपनी गान्ड का छल्ला सिकोड लेना. मूत अभी भरा रह'ने दे. चप्पल मुँह में पूरी लेने पर फिर मूत निकाल देना. और एक बात, तू सोच रह होगा कि चप्पल धीरे धीरे टुकडे कर के भी खाई जा सक'ती है, पर उस'में वह मज़ा कहाँ मेरी रानी? पूरी मुँह में ठूंस कर धीरे धीरे चूस चूस कर चबा चबा कर खाएगा तो स्वर्ग में पहुँच जाएगा.
उस'ने लंड मेरे गुदा से बाहर खींचा और मैने झट गान्ड सिकोड ली. जलन भी बहुत हो रही थी पर वह जलन मेरी वासना की अग्नि को और धधका रही थी. मेरे पास प्रीतम बाथ रूम के फर्श पर बैठ गया और रेशम की रस्सी से मेरे हाथ और पैर कस कर बाँध दिए. फिर मेरा सिर उस'ने अपनी गोद में रख लिया और चप्पल का बचा हिस्सा पकड़'कर दबाता हुआ मेरे मुँहे में चप्पल ठूंस'ने लगा.
अब मुँह और खोल यार, नाटक ना कर. ढीला छोड गालों को, दो मिनिट में अंदर डाल'ता हूँ. आधी से ज़्यादा चप्पल मेरे मुँह में थी ही. उस'ने एक हाथ मेरे सिर के पीछे रखा और दूसरे हाथ में चप्पल की हील को लेकर उसे दुहरा फोल्ड कर'के कस कर दबाया. उस'के शक्तिशाली हाथों के दबाव ने जादू किया. कच्छ से पूरी चप्पल मेरे मुँह में समा गयी और मेरे होंठ उनपर बंद हो गये.
चप्पल के मुडे तुडे रब्बर के दबाव से मेरे गाल बुरी तरह से फूल गये थे और बहुत दुख रहे थे. अब मैं डर गया. मज़ा तो आ रहा था पर बहुत तकलीफ़ हो रही थी. चप्पल मेरे मुँह में ऐसी भरी थी कि जैसे गाल फाड़ देगी. मुझसे ना रहा गया और मैं मुँह खोल कर प्रीतम की चप्पल बाहर निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा.
वह मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की कितनी तैयारी से आया था यह अब मुझे मालूम हुआ. उस'ने तुरंत वह बड रब्बर का बैंड तान'कर मेरे सिर पर से डाला और बैंड को फैला'कर मेरे मुँह पर सरका दिया. रब्बर का वह चौड़ा बैंड कस कर मेरे मुँह को बंद कर'ता हुआ अपनी जगह फिट बैठ गया. एक तृप्ति की साँस लेकर वह बोला.
अब ठीक है, मुझे मालूम था कि तू पहली बार चप्पल पूरी मुँह में लेने के बाद छूट'ने की कोशिश करेगा इस'लिए मैने झन्झट ही ख़तम कर दी. अब तू कुच्छ नहीं कर सकता. जब पूरी चप्पल खा लेगा तभी च्छुटक़ारा मिलेगा. मैं पूरा असहाय था. हाथ पैर कस कर बँधे हुए थे, मुँह में चप्पल थी और रब्बर के बैंड ने मेरा मुँह ऊपर से जकड रखा था. मैं बिलकुल एक असहाय गुड्डा बन गया था.
मुझे उठा'कर उस'ने टायलेट पर बिठाया जिससे मैं गान्ड में भरा मूत निकाल सकूँ. नल से एक पाइप लगा'कर पाइप को गान्ड के थोड़ा अंदर डाल कर तेज पानी के धार से उस'ने मेरी आंतेन धोई और एक बार मुझे फिर नहलाया. फिर बदन तौलिया से पोंच्छ कर मेरा मुश्कें बँधा शरीर गुड्डे जैसा उठा'कर बाहर ले गया और पलंग पर प्यार से लिटा दिया.
अब खा आराम से राजा, तब तक मैं अप'ने इस गुड्डे से खेल'ता हूँ. मैं चप्पल खा'ने की कोशिश कर'ने लगा. उस'के लिए उसे चबाना ज़रूरी था. पर रब्बर का बैंड इस कदर मेरे मुँह को जकड़ा था कि जबड़े चला'ने में भी मुझे बड़ी मेहनत करना पड़'ती थी. दस मिनिट कोशिश कर'ने पर मैं लस्त हो गया. चप्पल का बस एक छ्होटा टुकड़ा मैं दाँतों से तोड़ पाया था. वह मेरी गान्ड चूस रहा था और उस'में उंगली कर रहा था. मुँह उठ कर बोला.
देखा मैं तुझे कितना प्यार कर'ता हूँ! मुझे पता था कि तू मेरे चप्पल का इतना दीवाना है कि दस बीस मिनिट में चबा चबा कर खा लेगा. मज़े ले लेकर तू धीरे धीरे खाए इस'लिए रब्बर के बैंड से तेरा मुँह कस दिया है मैने. अब दो तीन घंटे मज़ा कर. वे तीन घंटे मुझे हमेशा याद रहेंगे. भयानक असहनीय वासना में डूबा हुआ मैं किसी तरह उस'के पसीने और तलवों की खुशबू में सनी उस'की चप्पल खा'ने में लगा था और वह मुझसे ऐसे खेल रहा था जैसे बच्चे गुड्डे से खेलते हैं. मेरे शरीर को सहला और मसल रहा था, गान्ड पर चूंटी काट रहा था और चूतड भॉम्पू जैसे दबा रहा था.
फिर मेरी गान्ड में मुँह डाल कर चूस'ने में लग गया. बीच बीच में कस के वह काट खाता या गुदा को मुँह में लेकर चबा'ने लगता. काफ़ी देर मेरी गान्ड चूस'ने के बाद उस'ने आख़िर मेरी गान्ड में अपना लंड घुसेड और चोद'ने लगा.
घंटे भर उस'ने बिना झाडे मेरी मारी. तरह तरह के आसन आज़माए. मुझपर चढ'कर मारी, फिर मुझे गोद में बिठा कर मेरे गाल, आँखें और माथा बुरी तरह से चूमते हुए नीचे से उच्छल उच्छल कर मेरी मारी, बीच में मुझे दीवार से आना था और प्रीतम ने उनका भी खूब स्वाद लिया. मेरे पाँव अप'ने मुँह पर लगा'कर वह मेरे पाँव और चप्पलें चाट'ता रहा और आख़िर आख़िर में उन्हें मुँह में लेकर चूस'ने और चबा'ने लगा. बोला.
रानी, अब किसी दिन तेरी चप्पालों का भी स्वाद लेना पड़ेगा. लग'ता है कि मैं भी तेरी चप्पलें खा जाउ. पर किसी ख़ास दिन तक रुकना पड़ेगा! ख़ास दिन क्या था यह कुच्छ नहीं बताया. उसका हर कामकर्म मेरी वासना बढ़ा रहा था. मैं अब रो रहा था पर अति सुख से. मेरे आँसू वह चाट'ता जाता और मेरी आँखों में देख'ता जाता.
मुझे याद नहीं कितना समय बीत गया पर आख़िर मैने कोशिश कर'के उस'की चप्पल के टुकडे तोड़ लिए. टुकडे मैं मिठायी की तरह चबा'ने लगा. उन'में से रब्बर और उस'के पसीने का मिला जुला रस निकल रहा था. बिलकुल लगदा बन कर जब मैने पहला टुकड़ा निगला तब वह ऐसे गरमाया कि हचक हचक कर मेरी मार'ने लगा.
खा ली साले मेरी चप्पल? स्वाद आया भोसड़ी वाले गान्डू? मेरे राजा, अब देख मैं कितनी चप्पलें तुझे खिलाता हूँ. ऐसी मीठी मीठी गालियाँ देता हुआ वह ऐसा झाड़ा की सिसक'ने लगा. दस मिनिट तक उसका लंड अपना वीर्य मेरी आँत में उगल'ता रहा. आख़िर लस्त होकर वह बेहोश सा हो गया.
मैं अब जल्दी जल्दी चप्पल खा रहा था. टुकडे. अब आसानी से टूट रहे थे. जब आखरी टुकडे का लगदा मैने निगला तो कुच्छ देर वैसे ही पड़ा रहा. ज़बडे दुख रहे थे पर एक असीम सन्तोष मेरे अंदर था. अप'ने मुँह से अब मैने गोंगियाँ शुरू कर दिया.
प्रीतम ने रब्बर बैंड मेरे मुँह से निकाला और मेरे हाथ पैर खोल दिए. मैने जबड़े सहलाए और फिर उठ'कर बिना कुच्छ कहे प्रीतम पर टूट पड़ा. उसे वहीं फर्श पर ऑंढा पटक'कर मैं उसपर चढ गया. मंद मंद मुस्कराता हुआ वह आँखें बंद कर'के शांत पड़ा रहा मानो कह रहा हो कि जो करना हो कर ले यार.
मैने उस'की गान्ड में लंड डाला तो उस'के मुँह से एक सुख की सिस'की निकली. मेरा लंड अब इतना सूज गया था की अपनी ढीली गान्ड के बावजूद उसे मज़ा आ गया होगा. उस'के शरीर को बाँहों में भर'कर मैं घचाघाच उस'की गान्ड मार'ने लगा.
मैने आधे घंटे उस'की मारी. अपनी पूरी शक्ति से उस'के चूतडो में लंड अंदर बाहर किया. पहले मुझे लगा था कि दो मिनिट में झड जाऊँगा पर आज मेरे भाग्य में लग'ता है असीमित सुख लिखा था. इतनी देर खड़ा रह'ने की वजह से लंड जैसे झड़ना ही भूल गया था. आख़िर मैने कस कर उस'की छा'ती दबाई और चूचुक मरोड कर ऐसे धक्के लगाए कि वह भी कराह उठा. उस'की पीठ और गर्दन पर दाँत जमा'कर मैं ऐसा झाड़ा की मानो जान ही निकल गयी. बाद में जब हम वापस पलंग पर जा कर आराम कर रहे थे तब प्रीतम ने प्यार से मुझे बाँहों में भर'कर चूमते हुए कहा.
देखा रानी? चप्पल खा'ने से तेरा कैसा खड़ा हो गया? आज मुझे गान्ड मरा'ने में बहुत मज़ा आया. बस, अब देख'ता जा, मैं कैसे कैसे तुझे और चप्पलें खिलाता हूँ! आज के बाद चप्पालों की कमी नहीं होगी तुझे, बस तेरे ऊपर है कि कितनी खा सक'ता है मैने उसका चूचुक मुँह में लेकर चूसते हुए पूचछा कि और क्या है उस'के मन में चप्पालों के बारे में. वह बोला.
टाइम लगेगा तुझे तैयार कर'ने में. पर मैं चाह'ता हूँ कि धीरे धीरे तू पूरी जोड़ी मुँह में लेना सीख ले. और वे भी मोटी मोटी हाई हील वाली. तब आएगा असली मज़ा, तुझे भी और तुझे खिला'ने वालों को भी. आज की तो ज़रा सी पतली वाली थी, बच्चा भी खा ले ऐसी! मैं पड़ा पड़ा यह सोच'ता रहा कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मुँह में लेकर कैसा लगेगा! मन में गुदगुदी होने लगी. मैं कहाँ जान'ता था कि मेरे भाग्य में अब क्या क्या लिखा है!
एक महीने में प्रीतम मुझे अपनी दो जोड़ी चप्पलें खिला चुका था. मैं उनका ऐसा भक्त हो गया था कि कभी कभी अकेले में उन्हें खा'ने की कोशिश कर'ता था. एक बार पकड़ा गया तो प्रीतम ने दो करारे तमाचे लगाए. वह सच में बहुत नाराज़ हो गया था, उस'की आँखों में गुस्सा उतर आया था, उसे यह बरदाश्त नहीं हुआ कि मैं इतना कामुक कार्य, वह भी प्रीतम का मनपसंद, उस'की पीठ पीछे करूँ.
मुझे लगा कि अब वह दो चप्पलें एक साथ मुझे खिलाना शुरू कर देगा. इस कल'पना से ही कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मेरे मुँह में ठूँसी हैं, मुझे डर और उत्तेजना की अजीब अनुभूति होती थी. पर उस'ने ऐसा नहीं किया. मेरे पूच्छ'ने पर बोला कि मौके पर सब हो जाएगा. हम एक दिन बाजार जा'कर प्रीतम के लिए कुच्छ और चप्पलें खरीद लाए. उस'ने सारी मेरी पसंद से लीं. बोला
तुझे खानी हैं राजा, मज़ा भी तुझे ही लेना है, तू पसंद कर. मैने तीन जोड़ा सादे सपाट सोल वाली और तीन लेडीz स्टाइल हाई हील लिए. कुच्छ पतले पट्टे की थी और कुच्छ मोटे पट्टे की. पर थी सब महँगी वाली, एकदम नरम मुलायम रब्बर की. पैसे भी प्रीतम ने दिए जबकि मैं देना चाह'ता था. आख़िर मैं खा'ने वाला था! पर वह नहीं माना, बोला मेरी रानी को मेरी तरफ से ये तोहफा है.
प्रीतम के पैरों में उन चप्पालों की कल'पना कर'के मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ की दुकान में से निकलना मेरे लिए मुश्किल हो गया. मेरी हालत देख'कर घर वापस आने के बाद प्रीतम ने सारी चप्पलें निकाल'कर बिस्तर पर सिराहा'ने रखीं और मेरा मुँह उन'में दबा'कर मेरी गान्ड मारी. पूरे समय मैं बेतहाशा उन चप्पालों को चाट'ता और चूम'ता रहा जो अब मेरे यार के पैरों में सज'ने वाली थी और फिर मेरे पेट में जा'कर मेरी भूख मिटा'ने वाली थी. चप्पालों से सजी वह सेज मुझे सुहागरात की फूलों से सजी सेज जैसी लग रही थी.
प्रीतम का परिवार और अर्धनारी की चाह
हमारा यह संभोग अब ऐसा निखरा कि ह'में एक दूसरे से अलग रह'ने में तकलीफ़ होने लगी. हमेशा चिपटे रहते. एक माह में मेरी ऐसी हालत हो गयी कि एक दिन गान्ड मराते हुए मैने प्रीतम से कहा.
यार प्रीतम, मेरे राजा, कितना अच्च्छा होता अगर मैं लड़'की होता. तुझसे शादी कर'के जिंदगी भर तेरी सेवा करता. जनम भर तेरा लंड मेरी गान्ड में होता! वह बोला.
तो क्या हुआ, लड़'की तू अभी भी बन सक'ता है. बस छ्होरियों जैसे कपड़े पहन ले. बाल तेरे अब अच्छे बढ गये हैं, थोड़े और बढ़ा ले, एकदम चिकनी छ्हॉकरी लगेगा.
और लंड और मम्मे? मैने पूच्छा.
शुरू में नकली चूचियाँ लगा लेना, पैडेड ब्रेसियार पहन लेना. लंड तो तेरा बहुत प्यारा है मेरी जान. तूने वे शी मेल वाले फोटो देखे हैं ना? क्या चिकनी छ्हॉकरियाँ लग'ती हैं पर सब मस्त लंड वाली होती हैं. उनसे संभोग में एक साथ नर और मादा संभोग का आनंद आता है. तू वैसा बन सक'ता है चाहे तो. मेरी वैसे चूतो में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है सिवा एक चूत के. उससे मैं बहुत प्यार कर'ता हूँ. और अगर तू सच में मेरी सेवा करना चाह'ता है तो एक उपाय है. तू चाहे तो जिंदगी भर मेरे साथ चल कर रह सक'ता है, मेरी पत्नी बन'कर ना सही, मेरी भाभी बन'कर. मेरा दिल धडक'ने लगा. वह मज़ाक नहीं कर रहा था.
तेरा बड़ा भाई है क्या? उस'की शादी नहीं हुई अब तक? मैने पूच्छा. वह हंस कर बोला.
कहो तो मेरा भाई है, कहो तो मामा है और कहो तो मेरा डैडी है. और जिस चूत का मैने ज़िक्र किया, वह पता है किस'की चूत है? मेरी मा की चूत! मैं चकरा गया.
ठीक से ब'ता ना यार! मैने उससे आग्रह किया.
चल पूरी कहानी बताता हूँ. टाइम लगेगा, इस'लिए चल, सोफे पर बैठते हैं आराम से. मुझे उठा कर वा वैसे ही सोफे पर ले गया और मुझे गोद में ले कर बैठ गया. मेरे चूतडो के बीच अब भी उसका लॉडा गढ़ा हुआ था. धीरे धीरे अप'ने लंड को मेरी गान्ड में मुठियाते हुए मुझे बार बार प्यार से चूमते हुए उस'ने अपनी कहानी बताई. मस्त परिवार प्यार की कहानी थी.
प्रीतम की मा प्रभा की शादी बस नाम की हुई थी. उसका पति कभी साथ नहीं रहा. प्रभा अक्सर माय'के आ जा'ती. असल में बचपन से उस'के पिता उसे चोदा करते थे. प्रभा को उनसे चुद'ने में इतना मज़ा आता था कि वह अप'ने पति के साथ नहीं रह पा'ती थी. अप'ने बाबूजी से चुदवा वह वह मस्ती में आ जा'ती थी. जब वह सोलह साल की थी तभी अप'ने पिता से उसे बच्चा पैदा हुआ, प्रदीप. सबको उस'ने यही बताया कि उस'के पति की संतान है, असलियत बस कुच्छ ही लोगों को मालूम थी. एक अर्थ से प्रीतम प्रभा का बेटा था और दूसरे अर्थ से छोटा भाई. उस'के बाद प्रभा पति को छोड कर हमेशा को अप'ने बाबूजी के घर आ गयी.
क्रमशः................
गतान्क से आगे........
तैयार हो जा, जलेगा थोड़ा पर मज़ा भी आएगा और अचानक मेरी आँतों में गरम पानी भर'ने लगा. वह जल भी रहा था. पहले तो मैं समझा नहीं कि क्या हो रहा है पर फिर पता चला कि प्रीतम मेरी गान्ड में मूत रहा है.
उस गरम खारे पानी का जादू ही कुच्छ और था. लग रहा था कि तप'ता अनीमा ले रहा हूँ. खारा होने की वजह से वह जल भी रहा था. गांद मरवा मरवा'कर अंदर से थोड़ी छिल गयी थी और इसीलिए जल रही थी. अप'ने चप्पल से भरे मुँह से मैं थोड कराहा पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरा लंड और तंन गया. पूरा मूत कर ही वह रुका. एक लीटर मूत ज़रूर मेरी आँतों में भर दिया था उस'ने. फिर मेरा लंड सहलाता हुआ प्रीतम बोला.
मज़ा आया मेरे यार? तेरा लंड कैसा सिर तन कर खड है देख . अब मेरी मारेगा राजा? मैने सिर हिला'कर हां कहा क्योंकि मुँह में तो चप्पल थी.
फिर अब पूरी चप्पल मुँह में देता हूँ. और फिर उसे खा जा मेरे यार. मैं जान'ता हूँ की तू कब से ये कर'ने को मारा जा रहा है पर साला शरमाता है. मैने इसी लिए यह घिसी पुरानी पतली चप्पल मँगवाई थी. बिलकुल पतली है. तुझे पहली बार खा'ने को यही अच्छी है, तकलीफ़ नहीं होगी. मैं भी कब से सोच रहा हूँ की मेरी रानी मेरी चप्पालों पर इतना मार'ती है, और उसे आज तक मैं चप्पल खिला नहीं पाया. आज ख़ाले, चप्पल खा कर फिर मेरी गान्ड मार, जैसे मारनी हो, मैं कुच्छ नहीं कहूँगा.
मैं सुन कर मचल गया. डर भी लगा. यह मेरी कब की फेंटसी थी कि मेरे यार, मेरे स्वामी प्रीतम की चप्पल खा जाउ. पर रब्बर की चप्पल खाना कोई माऊली बात नहीं है. मैं कुच्छ कहना चाह'ता था कि यह कैसे होगा पर मुँह भरा होने से बोल नहीं पाया. वह फिर बोला. मैने उसके मन
की बात भाँप ली थी. मेरा लंड अब ऐसा खड़ा था कि सूज कर फट जाएगा. उसे हल्के से दबा कर वह बोला.
पर एक शर्त है यार, चप्पल निगल'ने तक तू लंड ऐसा ही रखेगा. मस्ती में तू मन लगा'कर खाएगा यह मैं जान'ता हूँ पर एक बार अगर झड गया तो फिर नहीं खा पाएगा. इस'लिए तेरी मुश्कें बाँध कर रखूँगा जब तक तू चप्पल चबा चबा कर निगल ना ले. बोल है मंजूर? उस'की आँखों में उत्कट कामवासना धधक रही थी. जितनी आस मेरे मन में थी उतनी ही लालसा उसे मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की थी. मैं तुरंत तैयार हो गया. वैसे मुझे लग'ता है कि वह जिस मूड में था उस'में अगर मैं इनकार भी कर'ता तो वह ज़ोर ज़बरदस्ती से मुझे चप्पल खिला कर ही रहता. मेरे हां कह'ने पर वह बोला.
अब मैं लंड निकाल'ता हूँ पर तू अपनी गान्ड का छल्ला सिकोड लेना. मूत अभी भरा रह'ने दे. चप्पल मुँह में पूरी लेने पर फिर मूत निकाल देना. और एक बात, तू सोच रह होगा कि चप्पल धीरे धीरे टुकडे कर के भी खाई जा सक'ती है, पर उस'में वह मज़ा कहाँ मेरी रानी? पूरी मुँह में ठूंस कर धीरे धीरे चूस चूस कर चबा चबा कर खाएगा तो स्वर्ग में पहुँच जाएगा.
उस'ने लंड मेरे गुदा से बाहर खींचा और मैने झट गान्ड सिकोड ली. जलन भी बहुत हो रही थी पर वह जलन मेरी वासना की अग्नि को और धधका रही थी. मेरे पास प्रीतम बाथ रूम के फर्श पर बैठ गया और रेशम की रस्सी से मेरे हाथ और पैर कस कर बाँध दिए. फिर मेरा सिर उस'ने अपनी गोद में रख लिया और चप्पल का बचा हिस्सा पकड़'कर दबाता हुआ मेरे मुँहे में चप्पल ठूंस'ने लगा.
अब मुँह और खोल यार, नाटक ना कर. ढीला छोड गालों को, दो मिनिट में अंदर डाल'ता हूँ. आधी से ज़्यादा चप्पल मेरे मुँह में थी ही. उस'ने एक हाथ मेरे सिर के पीछे रखा और दूसरे हाथ में चप्पल की हील को लेकर उसे दुहरा फोल्ड कर'के कस कर दबाया. उस'के शक्तिशाली हाथों के दबाव ने जादू किया. कच्छ से पूरी चप्पल मेरे मुँह में समा गयी और मेरे होंठ उनपर बंद हो गये.
चप्पल के मुडे तुडे रब्बर के दबाव से मेरे गाल बुरी तरह से फूल गये थे और बहुत दुख रहे थे. अब मैं डर गया. मज़ा तो आ रहा था पर बहुत तकलीफ़ हो रही थी. चप्पल मेरे मुँह में ऐसी भरी थी कि जैसे गाल फाड़ देगी. मुझसे ना रहा गया और मैं मुँह खोल कर प्रीतम की चप्पल बाहर निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा.
वह मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की कितनी तैयारी से आया था यह अब मुझे मालूम हुआ. उस'ने तुरंत वह बड रब्बर का बैंड तान'कर मेरे सिर पर से डाला और बैंड को फैला'कर मेरे मुँह पर सरका दिया. रब्बर का वह चौड़ा बैंड कस कर मेरे मुँह को बंद कर'ता हुआ अपनी जगह फिट बैठ गया. एक तृप्ति की साँस लेकर वह बोला.
अब ठीक है, मुझे मालूम था कि तू पहली बार चप्पल पूरी मुँह में लेने के बाद छूट'ने की कोशिश करेगा इस'लिए मैने झन्झट ही ख़तम कर दी. अब तू कुच्छ नहीं कर सकता. जब पूरी चप्पल खा लेगा तभी च्छुटक़ारा मिलेगा. मैं पूरा असहाय था. हाथ पैर कस कर बँधे हुए थे, मुँह में चप्पल थी और रब्बर के बैंड ने मेरा मुँह ऊपर से जकड रखा था. मैं बिलकुल एक असहाय गुड्डा बन गया था.
मुझे उठा'कर उस'ने टायलेट पर बिठाया जिससे मैं गान्ड में भरा मूत निकाल सकूँ. नल से एक पाइप लगा'कर पाइप को गान्ड के थोड़ा अंदर डाल कर तेज पानी के धार से उस'ने मेरी आंतेन धोई और एक बार मुझे फिर नहलाया. फिर बदन तौलिया से पोंच्छ कर मेरा मुश्कें बँधा शरीर गुड्डे जैसा उठा'कर बाहर ले गया और पलंग पर प्यार से लिटा दिया.
अब खा आराम से राजा, तब तक मैं अप'ने इस गुड्डे से खेल'ता हूँ. मैं चप्पल खा'ने की कोशिश कर'ने लगा. उस'के लिए उसे चबाना ज़रूरी था. पर रब्बर का बैंड इस कदर मेरे मुँह को जकड़ा था कि जबड़े चला'ने में भी मुझे बड़ी मेहनत करना पड़'ती थी. दस मिनिट कोशिश कर'ने पर मैं लस्त हो गया. चप्पल का बस एक छ्होटा टुकड़ा मैं दाँतों से तोड़ पाया था. वह मेरी गान्ड चूस रहा था और उस'में उंगली कर रहा था. मुँह उठ कर बोला.
देखा मैं तुझे कितना प्यार कर'ता हूँ! मुझे पता था कि तू मेरे चप्पल का इतना दीवाना है कि दस बीस मिनिट में चबा चबा कर खा लेगा. मज़े ले लेकर तू धीरे धीरे खाए इस'लिए रब्बर के बैंड से तेरा मुँह कस दिया है मैने. अब दो तीन घंटे मज़ा कर. वे तीन घंटे मुझे हमेशा याद रहेंगे. भयानक असहनीय वासना में डूबा हुआ मैं किसी तरह उस'के पसीने और तलवों की खुशबू में सनी उस'की चप्पल खा'ने में लगा था और वह मुझसे ऐसे खेल रहा था जैसे बच्चे गुड्डे से खेलते हैं. मेरे शरीर को सहला और मसल रहा था, गान्ड पर चूंटी काट रहा था और चूतड भॉम्पू जैसे दबा रहा था.
फिर मेरी गान्ड में मुँह डाल कर चूस'ने में लग गया. बीच बीच में कस के वह काट खाता या गुदा को मुँह में लेकर चबा'ने लगता. काफ़ी देर मेरी गान्ड चूस'ने के बाद उस'ने आख़िर मेरी गान्ड में अपना लंड घुसेड और चोद'ने लगा.
घंटे भर उस'ने बिना झाडे मेरी मारी. तरह तरह के आसन आज़माए. मुझपर चढ'कर मारी, फिर मुझे गोद में बिठा कर मेरे गाल, आँखें और माथा बुरी तरह से चूमते हुए नीचे से उच्छल उच्छल कर मेरी मारी, बीच में मुझे दीवार से आना था और प्रीतम ने उनका भी खूब स्वाद लिया. मेरे पाँव अप'ने मुँह पर लगा'कर वह मेरे पाँव और चप्पलें चाट'ता रहा और आख़िर आख़िर में उन्हें मुँह में लेकर चूस'ने और चबा'ने लगा. बोला.
रानी, अब किसी दिन तेरी चप्पालों का भी स्वाद लेना पड़ेगा. लग'ता है कि मैं भी तेरी चप्पलें खा जाउ. पर किसी ख़ास दिन तक रुकना पड़ेगा! ख़ास दिन क्या था यह कुच्छ नहीं बताया. उसका हर कामकर्म मेरी वासना बढ़ा रहा था. मैं अब रो रहा था पर अति सुख से. मेरे आँसू वह चाट'ता जाता और मेरी आँखों में देख'ता जाता.
मुझे याद नहीं कितना समय बीत गया पर आख़िर मैने कोशिश कर'के उस'की चप्पल के टुकडे तोड़ लिए. टुकडे मैं मिठायी की तरह चबा'ने लगा. उन'में से रब्बर और उस'के पसीने का मिला जुला रस निकल रहा था. बिलकुल लगदा बन कर जब मैने पहला टुकड़ा निगला तब वह ऐसे गरमाया कि हचक हचक कर मेरी मार'ने लगा.
खा ली साले मेरी चप्पल? स्वाद आया भोसड़ी वाले गान्डू? मेरे राजा, अब देख मैं कितनी चप्पलें तुझे खिलाता हूँ. ऐसी मीठी मीठी गालियाँ देता हुआ वह ऐसा झाड़ा की सिसक'ने लगा. दस मिनिट तक उसका लंड अपना वीर्य मेरी आँत में उगल'ता रहा. आख़िर लस्त होकर वह बेहोश सा हो गया.
मैं अब जल्दी जल्दी चप्पल खा रहा था. टुकडे. अब आसानी से टूट रहे थे. जब आखरी टुकडे का लगदा मैने निगला तो कुच्छ देर वैसे ही पड़ा रहा. ज़बडे दुख रहे थे पर एक असीम सन्तोष मेरे अंदर था. अप'ने मुँह से अब मैने गोंगियाँ शुरू कर दिया.
प्रीतम ने रब्बर बैंड मेरे मुँह से निकाला और मेरे हाथ पैर खोल दिए. मैने जबड़े सहलाए और फिर उठ'कर बिना कुच्छ कहे प्रीतम पर टूट पड़ा. उसे वहीं फर्श पर ऑंढा पटक'कर मैं उसपर चढ गया. मंद मंद मुस्कराता हुआ वह आँखें बंद कर'के शांत पड़ा रहा मानो कह रहा हो कि जो करना हो कर ले यार.
मैने उस'की गान्ड में लंड डाला तो उस'के मुँह से एक सुख की सिस'की निकली. मेरा लंड अब इतना सूज गया था की अपनी ढीली गान्ड के बावजूद उसे मज़ा आ गया होगा. उस'के शरीर को बाँहों में भर'कर मैं घचाघाच उस'की गान्ड मार'ने लगा.
मैने आधे घंटे उस'की मारी. अपनी पूरी शक्ति से उस'के चूतडो में लंड अंदर बाहर किया. पहले मुझे लगा था कि दो मिनिट में झड जाऊँगा पर आज मेरे भाग्य में लग'ता है असीमित सुख लिखा था. इतनी देर खड़ा रह'ने की वजह से लंड जैसे झड़ना ही भूल गया था. आख़िर मैने कस कर उस'की छा'ती दबाई और चूचुक मरोड कर ऐसे धक्के लगाए कि वह भी कराह उठा. उस'की पीठ और गर्दन पर दाँत जमा'कर मैं ऐसा झाड़ा की मानो जान ही निकल गयी. बाद में जब हम वापस पलंग पर जा कर आराम कर रहे थे तब प्रीतम ने प्यार से मुझे बाँहों में भर'कर चूमते हुए कहा.
देखा रानी? चप्पल खा'ने से तेरा कैसा खड़ा हो गया? आज मुझे गान्ड मरा'ने में बहुत मज़ा आया. बस, अब देख'ता जा, मैं कैसे कैसे तुझे और चप्पलें खिलाता हूँ! आज के बाद चप्पालों की कमी नहीं होगी तुझे, बस तेरे ऊपर है कि कितनी खा सक'ता है मैने उसका चूचुक मुँह में लेकर चूसते हुए पूचछा कि और क्या है उस'के मन में चप्पालों के बारे में. वह बोला.
टाइम लगेगा तुझे तैयार कर'ने में. पर मैं चाह'ता हूँ कि धीरे धीरे तू पूरी जोड़ी मुँह में लेना सीख ले. और वे भी मोटी मोटी हाई हील वाली. तब आएगा असली मज़ा, तुझे भी और तुझे खिला'ने वालों को भी. आज की तो ज़रा सी पतली वाली थी, बच्चा भी खा ले ऐसी! मैं पड़ा पड़ा यह सोच'ता रहा कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मुँह में लेकर कैसा लगेगा! मन में गुदगुदी होने लगी. मैं कहाँ जान'ता था कि मेरे भाग्य में अब क्या क्या लिखा है!
एक महीने में प्रीतम मुझे अपनी दो जोड़ी चप्पलें खिला चुका था. मैं उनका ऐसा भक्त हो गया था कि कभी कभी अकेले में उन्हें खा'ने की कोशिश कर'ता था. एक बार पकड़ा गया तो प्रीतम ने दो करारे तमाचे लगाए. वह सच में बहुत नाराज़ हो गया था, उस'की आँखों में गुस्सा उतर आया था, उसे यह बरदाश्त नहीं हुआ कि मैं इतना कामुक कार्य, वह भी प्रीतम का मनपसंद, उस'की पीठ पीछे करूँ.
मुझे लगा कि अब वह दो चप्पलें एक साथ मुझे खिलाना शुरू कर देगा. इस कल'पना से ही कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मेरे मुँह में ठूँसी हैं, मुझे डर और उत्तेजना की अजीब अनुभूति होती थी. पर उस'ने ऐसा नहीं किया. मेरे पूच्छ'ने पर बोला कि मौके पर सब हो जाएगा. हम एक दिन बाजार जा'कर प्रीतम के लिए कुच्छ और चप्पलें खरीद लाए. उस'ने सारी मेरी पसंद से लीं. बोला
तुझे खानी हैं राजा, मज़ा भी तुझे ही लेना है, तू पसंद कर. मैने तीन जोड़ा सादे सपाट सोल वाली और तीन लेडीz स्टाइल हाई हील लिए. कुच्छ पतले पट्टे की थी और कुच्छ मोटे पट्टे की. पर थी सब महँगी वाली, एकदम नरम मुलायम रब्बर की. पैसे भी प्रीतम ने दिए जबकि मैं देना चाह'ता था. आख़िर मैं खा'ने वाला था! पर वह नहीं माना, बोला मेरी रानी को मेरी तरफ से ये तोहफा है.
प्रीतम के पैरों में उन चप्पालों की कल'पना कर'के मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ की दुकान में से निकलना मेरे लिए मुश्किल हो गया. मेरी हालत देख'कर घर वापस आने के बाद प्रीतम ने सारी चप्पलें निकाल'कर बिस्तर पर सिराहा'ने रखीं और मेरा मुँह उन'में दबा'कर मेरी गान्ड मारी. पूरे समय मैं बेतहाशा उन चप्पालों को चाट'ता और चूम'ता रहा जो अब मेरे यार के पैरों में सज'ने वाली थी और फिर मेरे पेट में जा'कर मेरी भूख मिटा'ने वाली थी. चप्पालों से सजी वह सेज मुझे सुहागरात की फूलों से सजी सेज जैसी लग रही थी.
प्रीतम का परिवार और अर्धनारी की चाह
हमारा यह संभोग अब ऐसा निखरा कि ह'में एक दूसरे से अलग रह'ने में तकलीफ़ होने लगी. हमेशा चिपटे रहते. एक माह में मेरी ऐसी हालत हो गयी कि एक दिन गान्ड मराते हुए मैने प्रीतम से कहा.
यार प्रीतम, मेरे राजा, कितना अच्च्छा होता अगर मैं लड़'की होता. तुझसे शादी कर'के जिंदगी भर तेरी सेवा करता. जनम भर तेरा लंड मेरी गान्ड में होता! वह बोला.
तो क्या हुआ, लड़'की तू अभी भी बन सक'ता है. बस छ्होरियों जैसे कपड़े पहन ले. बाल तेरे अब अच्छे बढ गये हैं, थोड़े और बढ़ा ले, एकदम चिकनी छ्हॉकरी लगेगा.
और लंड और मम्मे? मैने पूच्छा.
शुरू में नकली चूचियाँ लगा लेना, पैडेड ब्रेसियार पहन लेना. लंड तो तेरा बहुत प्यारा है मेरी जान. तूने वे शी मेल वाले फोटो देखे हैं ना? क्या चिकनी छ्हॉकरियाँ लग'ती हैं पर सब मस्त लंड वाली होती हैं. उनसे संभोग में एक साथ नर और मादा संभोग का आनंद आता है. तू वैसा बन सक'ता है चाहे तो. मेरी वैसे चूतो में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है सिवा एक चूत के. उससे मैं बहुत प्यार कर'ता हूँ. और अगर तू सच में मेरी सेवा करना चाह'ता है तो एक उपाय है. तू चाहे तो जिंदगी भर मेरे साथ चल कर रह सक'ता है, मेरी पत्नी बन'कर ना सही, मेरी भाभी बन'कर. मेरा दिल धडक'ने लगा. वह मज़ाक नहीं कर रहा था.
तेरा बड़ा भाई है क्या? उस'की शादी नहीं हुई अब तक? मैने पूच्छा. वह हंस कर बोला.
कहो तो मेरा भाई है, कहो तो मामा है और कहो तो मेरा डैडी है. और जिस चूत का मैने ज़िक्र किया, वह पता है किस'की चूत है? मेरी मा की चूत! मैं चकरा गया.
ठीक से ब'ता ना यार! मैने उससे आग्रह किया.
चल पूरी कहानी बताता हूँ. टाइम लगेगा, इस'लिए चल, सोफे पर बैठते हैं आराम से. मुझे उठा कर वा वैसे ही सोफे पर ले गया और मुझे गोद में ले कर बैठ गया. मेरे चूतडो के बीच अब भी उसका लॉडा गढ़ा हुआ था. धीरे धीरे अप'ने लंड को मेरी गान्ड में मुठियाते हुए मुझे बार बार प्यार से चूमते हुए उस'ने अपनी कहानी बताई. मस्त परिवार प्यार की कहानी थी.
प्रीतम की मा प्रभा की शादी बस नाम की हुई थी. उसका पति कभी साथ नहीं रहा. प्रभा अक्सर माय'के आ जा'ती. असल में बचपन से उस'के पिता उसे चोदा करते थे. प्रभा को उनसे चुद'ने में इतना मज़ा आता था कि वह अप'ने पति के साथ नहीं रह पा'ती थी. अप'ने बाबूजी से चुदवा वह वह मस्ती में आ जा'ती थी. जब वह सोलह साल की थी तभी अप'ने पिता से उसे बच्चा पैदा हुआ, प्रदीप. सबको उस'ने यही बताया कि उस'के पति की संतान है, असलियत बस कुच्छ ही लोगों को मालूम थी. एक अर्थ से प्रीतम प्रभा का बेटा था और दूसरे अर्थ से छोटा भाई. उस'के बाद प्रभा पति को छोड कर हमेशा को अप'ने बाबूजी के घर आ गयी.
क्रमशः................