hotaks444
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दूसरे दिन शुक्रवार था और कालेज जल्दी छूटता था. छुट्टी होने पर मैंने होटल आकर अपना सूटकेस बांधा और नये घर में आ गया. हेमन्त अभी नहीं आया था. मैंने घर जमाना शुरू कर दिया जिससे हेमन्त आने पर जल्दी से जल्दी अपना असली काम शुरू किया जा सके. बेडरूम में दो पलंग अलग अलग थे. मैंने वे जोड़ दिये. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कोई नई दुल्हन हूं जो अपने पिया का इंतजार कर रही हो. मैंने खूब नहाया, बदन पर खुशबूदार पाउडर लगाया और सिर्फ एक जांघिया और हाफ़पैंट पहन कर हेमन्त का इंतजार करने लगा.
हेमन्त को रिझाने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझकर मैंने नंगा रखा था. हाफ़पैंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांगें आधे से ज्यादा दिख रही थीं. विक्स धो डालने से कुछ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. हेमन्त के आने के समय तक मैं पूरा कामातुर हो चुका था.
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आखिर बेल बजी और दौड़ कर मैंने हेमन्त के लिये दरवाजा खोला. उसने मेरा अधनंगा बदन और हाफ़पैंट में से साफ़ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उसकी आंखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उसने अपने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहाने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लें और सूटकेस में से उसके कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूं. मैंने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार करने लगा.
दस मिनट बाद हेमन्त फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ टावेल लपेटे हुए था. मैं बेडरूम में बैठकर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आकर बेडरूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुड़ा.
उसका गठा हुआ सुडौल शरीर में देखता ही रह गया. गोरी तगड़ी जांघे, मजबूत पेशियों वाली बांहें, पुष्ट छाती और उनपर भूरे रंग के निपल. उसके निपल काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जितने बड़े. टॉवेल में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे कि कोई बड़ा डंडा अंदर से टिका कर लगाया हो.
हेमन्त मेरी ओर बढ़ा और मुझे बांहों में भर के चूमने लगा. उसके बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते ढकेलता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटककर मेरे ऊपर चढ़ बैठा. फ़िर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूमने लगा. मेरा मुंह अपनी जीभ से खोलकर उसने अपनी लंबी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाटने लगा. मैंने भी उसकी जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठाई की तरह लग रही थी.
चूमते चूमते वह अपने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फ़िरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी छाती को उसने सहलाया और फ़िर हाथ से मेरी जांघे दबाने लगा. फ़िर झुक कर मेरे गुलाबी निपल चूसने लगा. मेरे निपल जरा जरा से हैं, किसमिस जैसे, पर उसकी जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.
"क्या निपल हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत!" कहकर उसने मेरी हाफ़पैंट उसने खींच कर निकाल दी और फ़िर उठ कर मेरे सामने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आंखों से ऐसे देखने लगा जैसे कच्चा चबा जायेगा.
मेरे शरीर पर अब सिर्फ एक तंग छोटा सफ़ेद पैंटी जैसा जांघिया था जिसमें से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था.
"वा यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा." कहते हुए उसने आखिर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया.
मेरा शिश्न जांघिये से छूटते ही टन्न से खड़ा हो गया. हेमन्त ने उसे देखकर सीटी बजाई और बोला. "वा मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा." सच में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड़ा दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चस सकता.
मेरा लंड मैंने बहुत बार नापा था. डेढ़ इंच मोटा और साढ़े पांच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाड़ा. मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देखकर हेमन्त का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ़ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उसने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया.
मेरी झांटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. हेमन्त उनमें उंगलियां चलाते हुए बोला. "तू तो माल है मेरी जान, खा जाने को जी करता है, अब चखना पड़ेगा नहीं तो मैं पागल हो जाऊंग." झुककर उसने बड़े प्यार से मेरे सुपाड़े को चूमा और अपने गालों, आंखों और होंठों पर घुमाने लगा. फ़िर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाटने लगा.
उसकी खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठा और बोला. "हेमन्त मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड़ जाऊंगा."
वह जीभ से पूरे लंड को चाटता हुआ बोला. "तो झड़ जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूं, चल तुझे चूस ही डालता हूं, अब नहीं रहा जाता मुझसे."
और उसने अपना मुंह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूसने लगा.
मुझे जो सुख मिला वह कल्पना के बाहर था. मैंने कसमसा कर उसका सिर पकड़कर अपने पेट पर दबा लिया और गांड उचका उचका कर उसके मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. हेमन्त की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाड़े को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी.
मैंने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इसलिये इस मीठे खेल को और न सह सका और दो ही मिनट में झड़ गया. "हाय यार, ऊ ऽ मां ऽ मर गया " कहकर मैं लस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और हेमन्त आंखें बंद करके बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगड़ते हुए बूंद बूंद को बड़ी अधीरता से निगलने लगा.
आखिर जब उसने मुझे छोड़ा तो मैं पूरा लस्त हो गया था. "मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठाई मैं ही लूंगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैंने." कहते हुए हेमन्त उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतरकर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देखकर उसने आंख मारी और अपना टॉवेल उतार कर फेक दिया.
"अब देख, तेरे लिये मैं क्या उपहार लाया हूँ!"
उसका लंड टॉवेल की गिरफ्त से छूटकर उछल कर थिरकने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देखता ही रह गया.
दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उसके पेट से सटकर खड़ा था. लंड की जड़ में घनी काली झांटें थी. हेमन्त के पूरे चिकने शरीर पर बालों की कमी उन झांटों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोटियां लटक रही थीं. उस लंड को देखकर मेरा सिर चकराने लगा और मुंह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.
"देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिये. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूं? आज से यह बस तेरे लिये है." हेमन्त अपने लंड को प्यार से अपनी मुट्ठी में भर कर सहलाता हुआ बोला.
मैं उस हसीन मस्त लौड़े को देखकर पथरा सा गया था. चुपचाप मैं उठा और जाकर हेमन्त के सामने घुटने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आखिर वह मेरे लिये कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करू. चूसूं या फ़िर सीधा अपनी गांड में ले लें !
मेरे चेहरे पर के भाव देखकर हेमन्त मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला. "यार, तू चूस ले पहले, इतना गाढ़ा वीर्य पिलाऊंगा कि रबड़ी भी उसके सामने फ़ीकी पड़ जाएगी. और असल में अभी इससे अगर तुझे चोदूंगा तो जरूर तेरी फ़ट जाएगी. तू नहीं झेल पायेगा. अपनी जान की नाजुक गांड मैं फ़ाड़ना नहीं चाहता.
आखिर रोज मारनी है। एक बार झड़ने के बाद जब थोड़ा जोर कम हो जाये इस मुस्टंडे का, तो फ़िर मारूगा तेरी प्यार से." और वह अपना सुपाड़ा मेरे गालों और मुंह पर बड़े लाड़ से रगड़ने लगा.
मैंने हेमन्त के लंड को हाथ में लिया. वह ऐसा थिरक रहा था जैसे कि कोई जिंदा जानवर हो. उसकी नसें सूज कर रस्सी जैसी फूल गई थीं. सुपाड़े की बुरी तरह तनी हुई लाल चमड़ी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी. सुपाड़े के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोती जैसी बूंद भी चमक रही थी. पास से उसकी घनी झांटें भी बहुत मादक लग रही थीं, एक एक घुघराला बाल साफ़ दिख रहा था.
मैं अब और न रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाटने लगा. पहले तो मैंने उस अमृत सी बूंद को जीभ की नोक से उठा लिया और फ़िर पूरे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाटने लगा जैसे कि आइसक्रीम की कैंडी .
हेमन्त को रिझाने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझकर मैंने नंगा रखा था. हाफ़पैंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांगें आधे से ज्यादा दिख रही थीं. विक्स धो डालने से कुछ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. हेमन्त के आने के समय तक मैं पूरा कामातुर हो चुका था.
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आखिर बेल बजी और दौड़ कर मैंने हेमन्त के लिये दरवाजा खोला. उसने मेरा अधनंगा बदन और हाफ़पैंट में से साफ़ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उसकी आंखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उसने अपने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहाने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लें और सूटकेस में से उसके कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूं. मैंने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार करने लगा.
दस मिनट बाद हेमन्त फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ टावेल लपेटे हुए था. मैं बेडरूम में बैठकर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आकर बेडरूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुड़ा.
उसका गठा हुआ सुडौल शरीर में देखता ही रह गया. गोरी तगड़ी जांघे, मजबूत पेशियों वाली बांहें, पुष्ट छाती और उनपर भूरे रंग के निपल. उसके निपल काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जितने बड़े. टॉवेल में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे कि कोई बड़ा डंडा अंदर से टिका कर लगाया हो.
हेमन्त मेरी ओर बढ़ा और मुझे बांहों में भर के चूमने लगा. उसके बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते ढकेलता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटककर मेरे ऊपर चढ़ बैठा. फ़िर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूमने लगा. मेरा मुंह अपनी जीभ से खोलकर उसने अपनी लंबी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाटने लगा. मैंने भी उसकी जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठाई की तरह लग रही थी.
चूमते चूमते वह अपने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फ़िरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी छाती को उसने सहलाया और फ़िर हाथ से मेरी जांघे दबाने लगा. फ़िर झुक कर मेरे गुलाबी निपल चूसने लगा. मेरे निपल जरा जरा से हैं, किसमिस जैसे, पर उसकी जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.
"क्या निपल हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत!" कहकर उसने मेरी हाफ़पैंट उसने खींच कर निकाल दी और फ़िर उठ कर मेरे सामने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आंखों से ऐसे देखने लगा जैसे कच्चा चबा जायेगा.
मेरे शरीर पर अब सिर्फ एक तंग छोटा सफ़ेद पैंटी जैसा जांघिया था जिसमें से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था.
"वा यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा." कहते हुए उसने आखिर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया.
मेरा शिश्न जांघिये से छूटते ही टन्न से खड़ा हो गया. हेमन्त ने उसे देखकर सीटी बजाई और बोला. "वा मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा." सच में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड़ा दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चस सकता.
मेरा लंड मैंने बहुत बार नापा था. डेढ़ इंच मोटा और साढ़े पांच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाड़ा. मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देखकर हेमन्त का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ़ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उसने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया.
मेरी झांटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. हेमन्त उनमें उंगलियां चलाते हुए बोला. "तू तो माल है मेरी जान, खा जाने को जी करता है, अब चखना पड़ेगा नहीं तो मैं पागल हो जाऊंग." झुककर उसने बड़े प्यार से मेरे सुपाड़े को चूमा और अपने गालों, आंखों और होंठों पर घुमाने लगा. फ़िर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाटने लगा.
उसकी खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठा और बोला. "हेमन्त मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड़ जाऊंगा."
वह जीभ से पूरे लंड को चाटता हुआ बोला. "तो झड़ जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूं, चल तुझे चूस ही डालता हूं, अब नहीं रहा जाता मुझसे."
और उसने अपना मुंह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूसने लगा.
मुझे जो सुख मिला वह कल्पना के बाहर था. मैंने कसमसा कर उसका सिर पकड़कर अपने पेट पर दबा लिया और गांड उचका उचका कर उसके मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. हेमन्त की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाड़े को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी.
मैंने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इसलिये इस मीठे खेल को और न सह सका और दो ही मिनट में झड़ गया. "हाय यार, ऊ ऽ मां ऽ मर गया " कहकर मैं लस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और हेमन्त आंखें बंद करके बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगड़ते हुए बूंद बूंद को बड़ी अधीरता से निगलने लगा.
आखिर जब उसने मुझे छोड़ा तो मैं पूरा लस्त हो गया था. "मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठाई मैं ही लूंगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैंने." कहते हुए हेमन्त उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतरकर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देखकर उसने आंख मारी और अपना टॉवेल उतार कर फेक दिया.
"अब देख, तेरे लिये मैं क्या उपहार लाया हूँ!"
उसका लंड टॉवेल की गिरफ्त से छूटकर उछल कर थिरकने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देखता ही रह गया.
दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उसके पेट से सटकर खड़ा था. लंड की जड़ में घनी काली झांटें थी. हेमन्त के पूरे चिकने शरीर पर बालों की कमी उन झांटों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोटियां लटक रही थीं. उस लंड को देखकर मेरा सिर चकराने लगा और मुंह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.
"देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिये. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूं? आज से यह बस तेरे लिये है." हेमन्त अपने लंड को प्यार से अपनी मुट्ठी में भर कर सहलाता हुआ बोला.
मैं उस हसीन मस्त लौड़े को देखकर पथरा सा गया था. चुपचाप मैं उठा और जाकर हेमन्त के सामने घुटने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आखिर वह मेरे लिये कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करू. चूसूं या फ़िर सीधा अपनी गांड में ले लें !
मेरे चेहरे पर के भाव देखकर हेमन्त मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला. "यार, तू चूस ले पहले, इतना गाढ़ा वीर्य पिलाऊंगा कि रबड़ी भी उसके सामने फ़ीकी पड़ जाएगी. और असल में अभी इससे अगर तुझे चोदूंगा तो जरूर तेरी फ़ट जाएगी. तू नहीं झेल पायेगा. अपनी जान की नाजुक गांड मैं फ़ाड़ना नहीं चाहता.
आखिर रोज मारनी है। एक बार झड़ने के बाद जब थोड़ा जोर कम हो जाये इस मुस्टंडे का, तो फ़िर मारूगा तेरी प्यार से." और वह अपना सुपाड़ा मेरे गालों और मुंह पर बड़े लाड़ से रगड़ने लगा.
मैंने हेमन्त के लंड को हाथ में लिया. वह ऐसा थिरक रहा था जैसे कि कोई जिंदा जानवर हो. उसकी नसें सूज कर रस्सी जैसी फूल गई थीं. सुपाड़े की बुरी तरह तनी हुई लाल चमड़ी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी. सुपाड़े के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोती जैसी बूंद भी चमक रही थी. पास से उसकी घनी झांटें भी बहुत मादक लग रही थीं, एक एक घुघराला बाल साफ़ दिख रहा था.
मैं अब और न रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाटने लगा. पहले तो मैंने उस अमृत सी बूंद को जीभ की नोक से उठा लिया और फ़िर पूरे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाटने लगा जैसे कि आइसक्रीम की कैंडी .