Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - Page 8 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ

दूसरे दिन शुक्रवार था और कालेज जल्दी छूटता था. छुट्टी होने पर मैंने होटल आकर अपना सूटकेस बांधा और नये घर में आ गया. हेमन्त अभी नहीं आया था. मैंने घर जमाना शुरू कर दिया जिससे हेमन्त आने पर जल्दी से जल्दी अपना असली काम शुरू किया जा सके. बेडरूम में दो पलंग अलग अलग थे. मैंने वे जोड़ दिये. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कोई नई दुल्हन हूं जो अपने पिया का इंतजार कर रही हो. मैंने खूब नहाया, बदन पर खुशबूदार पाउडर लगाया और सिर्फ एक जांघिया और हाफ़पैंट पहन कर हेमन्त का इंतजार करने लगा.

हेमन्त को रिझाने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझकर मैंने नंगा रखा था. हाफ़पैंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांगें आधे से ज्यादा दिख रही थीं. विक्स धो डालने से कुछ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. हेमन्त के आने के समय तक मैं पूरा कामातुर हो चुका था.
-
आखिर बेल बजी और दौड़ कर मैंने हेमन्त के लिये दरवाजा खोला. उसने मेरा अधनंगा बदन और हाफ़पैंट में से साफ़ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उसकी आंखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उसने अपने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहाने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लें और सूटकेस में से उसके कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूं. मैंने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार करने लगा.

दस मिनट बाद हेमन्त फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ टावेल लपेटे हुए था. मैं बेडरूम में बैठकर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आकर बेडरूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुड़ा.

उसका गठा हुआ सुडौल शरीर में देखता ही रह गया. गोरी तगड़ी जांघे, मजबूत पेशियों वाली बांहें, पुष्ट छाती और उनपर भूरे रंग के निपल. उसके निपल काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जितने बड़े. टॉवेल में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे कि कोई बड़ा डंडा अंदर से टिका कर लगाया हो.

हेमन्त मेरी ओर बढ़ा और मुझे बांहों में भर के चूमने लगा. उसके बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते ढकेलता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटककर मेरे ऊपर चढ़ बैठा. फ़िर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूमने लगा. मेरा मुंह अपनी जीभ से खोलकर उसने अपनी लंबी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाटने लगा. मैंने भी उसकी जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठाई की तरह लग रही थी.

चूमते चूमते वह अपने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फ़िरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी छाती को उसने सहलाया और फ़िर हाथ से मेरी जांघे दबाने लगा. फ़िर झुक कर मेरे गुलाबी निपल चूसने लगा. मेरे निपल जरा जरा से हैं, किसमिस जैसे, पर उसकी जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.

"क्या निपल हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत!" कहकर उसने मेरी हाफ़पैंट उसने खींच कर निकाल दी और फ़िर उठ कर मेरे सामने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आंखों से ऐसे देखने लगा जैसे कच्चा चबा जायेगा.

मेरे शरीर पर अब सिर्फ एक तंग छोटा सफ़ेद पैंटी जैसा जांघिया था जिसमें से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था.

"वा यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा." कहते हुए उसने आखिर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया.

मेरा शिश्न जांघिये से छूटते ही टन्न से खड़ा हो गया. हेमन्त ने उसे देखकर सीटी बजाई और बोला. "वा मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा." सच में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड़ा दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चस सकता.

मेरा लंड मैंने बहुत बार नापा था. डेढ़ इंच मोटा और साढ़े पांच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाड़ा. मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देखकर हेमन्त का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ़ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उसने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया.

मेरी झांटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. हेमन्त उनमें उंगलियां चलाते हुए बोला. "तू तो माल है मेरी जान, खा जाने को जी करता है, अब चखना पड़ेगा नहीं तो मैं पागल हो जाऊंग." झुककर उसने बड़े प्यार से मेरे सुपाड़े को चूमा और अपने गालों, आंखों और होंठों पर घुमाने लगा. फ़िर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाटने लगा.

उसकी खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठा और बोला. "हेमन्त मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड़ जाऊंगा."

वह जीभ से पूरे लंड को चाटता हुआ बोला. "तो झड़ जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूं, चल तुझे चूस ही डालता हूं, अब नहीं रहा जाता मुझसे."
और उसने अपना मुंह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूसने लगा. 

मुझे जो सुख मिला वह कल्पना के बाहर था. मैंने कसमसा कर उसका सिर पकड़कर अपने पेट पर दबा लिया और गांड उचका उचका कर उसके मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. हेमन्त की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाड़े को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी.

मैंने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इसलिये इस मीठे खेल को और न सह सका और दो ही मिनट में झड़ गया. "हाय यार, ऊ ऽ मां ऽ मर गया " कहकर मैं लस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और हेमन्त आंखें बंद करके बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगड़ते हुए बूंद बूंद को बड़ी अधीरता से निगलने लगा.

आखिर जब उसने मुझे छोड़ा तो मैं पूरा लस्त हो गया था. "मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठाई मैं ही लूंगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैंने." कहते हुए हेमन्त उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतरकर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देखकर उसने आंख मारी और अपना टॉवेल उतार कर फेक दिया.

"अब देख, तेरे लिये मैं क्या उपहार लाया हूँ!"

उसका लंड टॉवेल की गिरफ्त से छूटकर उछल कर थिरकने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देखता ही रह गया.

दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उसके पेट से सटकर खड़ा था. लंड की जड़ में घनी काली झांटें थी. हेमन्त के पूरे चिकने शरीर पर बालों की कमी उन झांटों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोटियां लटक रही थीं. उस लंड को देखकर मेरा सिर चकराने लगा और मुंह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.

"देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिये. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूं? आज से यह बस तेरे लिये है." हेमन्त अपने लंड को प्यार से अपनी मुट्ठी में भर कर सहलाता हुआ बोला.

मैं उस हसीन मस्त लौड़े को देखकर पथरा सा गया था. चुपचाप मैं उठा और जाकर हेमन्त के सामने घुटने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आखिर वह मेरे लिये कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करू. चूसूं या फ़िर सीधा अपनी गांड में ले लें !

मेरे चेहरे पर के भाव देखकर हेमन्त मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला. "यार, तू चूस ले पहले, इतना गाढ़ा वीर्य पिलाऊंगा कि रबड़ी भी उसके सामने फ़ीकी पड़ जाएगी. और असल में अभी इससे अगर तुझे चोदूंगा तो जरूर तेरी फ़ट जाएगी. तू नहीं झेल पायेगा. अपनी जान की नाजुक गांड मैं फ़ाड़ना नहीं चाहता.

आखिर रोज मारनी है। एक बार झड़ने के बाद जब थोड़ा जोर कम हो जाये इस मुस्टंडे का, तो फ़िर मारूगा तेरी प्यार से." और वह अपना सुपाड़ा मेरे गालों और मुंह पर बड़े लाड़ से रगड़ने लगा.

मैंने हेमन्त के लंड को हाथ में लिया. वह ऐसा थिरक रहा था जैसे कि कोई जिंदा जानवर हो. उसकी नसें सूज कर रस्सी जैसी फूल गई थीं. सुपाड़े की बुरी तरह तनी हुई लाल चमड़ी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी. सुपाड़े के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोती जैसी बूंद भी चमक रही थी. पास से उसकी घनी झांटें भी बहुत मादक लग रही थीं, एक एक घुघराला बाल साफ़ दिख रहा था.

मैं अब और न रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाटने लगा. पहले तो मैंने उस अमृत सी बूंद को जीभ की नोक से उठा लिया और फ़िर पूरे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाटने लगा जैसे कि आइसक्रीम की कैंडी . 
 
हेमन्त ने एक सुख की आह भरी और मेरे सिर को पकड़कर अपने पेट पर दबाना शुरू किया. "मजा आ गया यार, बड़ा मस्त चाटता है तू, अब मुंह में ले ले मेरे राजा, चूस ले."

मैं भी उस रसीले लंड की मलाई का स्वाद लेने को उत्सुक था इसलिये मैंने अपने होंठ खोले और सुपाड़ा मुंह में लेने की कोशिश की. वह इतना बड़ा था कि दो तीन बार कोशिश करने पर भी मुंह में नहीं समा रहा था और मेरे दांत बार बार उसकी नाजुक चमड़ी में लगने से हेमन्त सिसक उठता था.
आखिर हेमन्त ने बांये हाथ में अपना लौड़ा पकड़ा और दाहिने से मेरे गालों को दबाते हुए बोला. "लगता है मेरे यार ने कभी लंड नहीं चूसा, चल तुझे सिखाऊं, पहले तू अपने होंठों से अपने दांत ढक ले. शाब्बा ऽस. अब मुंह खोल. इतना सा नहीं राजा! और खोल! समझ डेन्टिस्ट के यहां बैठा है."

उसका हाथ मेरे गालों को कस कर पिचका कर मेरा मुंह खोलने लगा और साथ ही मैंने भी पूरी शक्ति से अपना मुंह बा दिया. ठीक मौके पर हेमन्त ने सुपाड़ा थोड़ा दबाया और मेरे मुंह में सरका दिया. पूरा सुपाड़ा ऐसे मेरे मुंह में भर गया जैसे बड़ा लड्डु हो. उस मुलायम चिकने लड्डु को मैं चूसने लगा.

हेमन्त ने अब लंड पर से हाथ हटा लिया और मेरे बालों में उंगलियां प्यार से चलाता हुआ मुझे प्रोत्साहित करने लगा. मैंने उसके लंड का डंडा हाथ में लिया और दबाने लगा. ढाई इंच मोटे उस सख्त नसों से भरे हुए डंडे को हाथ में लेकर ऐसा लगता था जैसे किसी मोटी ककड़ी को पकड़ा हुआ हूं.

अपनी जीभ मैंने उसके सुपाड़े की सतह पर घुमाई तो हेमन्त हुमक उठा और दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़कर अपनी ओर खींचता हुआ बोला. "पूरा ले ले मुंह में अनिल राजा, निगल ले, पूरा लेकर चूसने में और मजा आयेगा."

मैंने अपना गला ढीला छोड़ा और लंड और अंदर लेने की कोशिश की. बस तीन चार इंच ही ले पाया. मेरा मुंह पूरा भर गया था और सुपाड़ा भी गले में पहुंच कर अटक गया. हेमन्त ने अब अधीर होकर मेरा सिर पकड़ा और अपने पेट पर भींच लिया. वह अपना पूरा लंड मेरे मुंह में घुसेड़ने की कोशिश कर रहा था.

पर गले में सुपाड़ा फंसने से मैं गोंगियाने लगा. लंड मुंह में लेकर चूसने में मुझे बहुत मजा आ रहा था पर अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दम घुट जायेगा. मुझे छटपटाता देख हेमन्त ने अपनी पकड़ ढीली कर दी. ।

"चल कोई बात नहीं मेरे यार, पहली बार है, अगली बार पूरा ले लेना. अब चल, पलंग पर चल. वहां आराम से लेट कर तुझे अपना लंड चुसवाता हूँ" कहता हुआ हेमन्त पलंग पर बैठ गया. पीछे सरककर वह सिरहाने से सट कर आराम से लेट गया और मुझे अपनी जांघ पर सिर रख कर लिटा लिया. उसका लंड अभी भी मैंने मुंह में लिया हुआ था और चूस रहा था.

"देख अब मैं तेरे मुंह में सड़का लगाता हूं, तू चूसता रह, जल्दी नहीं करना मेरे राजा, आराम से चूस, तू भी मजा ले, मैं भी लेता हूं." कहकर उसने मेरे मुंह के बाहर निकले लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और मेरे सिर को दूसरे हाथ से थाम कर सहारा दिया. फ़िर वह अपनी हाथ आगे पीछे करता हुआ सटासट सड़का लगाने लगा.

जैसे उसका हाथ आगे पीछे होता, सुपाड़ा मेरे मुंह में और फूलता और सिकुड़ता. मैं हेमन्त की जांघ पर सिर रखे उसकी आंखों में आंखें डालकर मन लगाकर उसका लौड़ा चूसने लगा. हेमन्त बीच बीच में झुककर मेरा गाल चूम लेता. उसकी आंखों में अजब कामुकता और प्यार की खुमारी थी. पंद्रह बीस मिनट तक वह सड़का लगाता रहा. जब भी वह झड़ने को होता तो हाथ रोक लेता. बड़ा जबरदस्त कंट्रोल था अपनी वासना पर, मंजा हुआ खिलाड़ी था.

वह तो शायद रात भर चुसवाता पर अब मैं ही बहुत अधीर हो गया था. मेरा लंड भी फ़िर से खड़ा होने लगा था. हेमन्त का वीर्य पीने को मैं आतुर था. आखिर जब फ़िर से वह झड़ने के करीब आया तो मैंने बड़ी याचना भरी नजरों से उसकी ओर देखा.
उसने मेरी बात मान ली. "ठीक है, चल अब झड़ता हूं, तैयार रहना मेरे दोस्त, एक बूंद भी नहीं छोड़ना, मस्त माल है, तू खुशकिस्मत है, सब को नहीं पिलाता मैं अपने लौड़े की मलाई." कह कर वह जोर जोर से हस्तमैथुन करने लगा. अब उसके दूसरे हाथ का दबाव भी मेरे सिर पर बढ़ गया था और लंड मेरे मुंह में और गहराई तक ठूसता हुआ वह सपासप मुट्ठ मार रहा था.

अचानक उसके मुंह से एक सिसकी निकली और उसका शरीर ऐंठ सा गया. सुपाड़ा अचानक मेरे मुंह में एकदम फूला जैसे गुब्बारा फूलकर फ़टने वाला हो. फ़िर गरम गरम घी जैसी बूंदें मेरे मुंह में बरसने लगीं. शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने मलाई का नल खोल दिया हो इसलिये मैं उन्हें मुंह से न निकलने देने के चक्कर में सीधा निगलता गया, जबकि मेरी इच्छा यह हो रही थी कि उन्हें जीभ पर लू और चबूं.

जब लंड का उछलना कुछ कम हुआ तब जाकर मैंने अपनी जीभ उसके छेद पर लगाई और बूंदों को इकट्ठा करने लगा. चम्मच भर माल जमा होने पर मैंने उसे चखा. मानों अमृत था. गाढ़ा गाढ़ा पिघले मक्खन सा, खारा और कुछ कसैला. मैंने उस चिपचिपे दृव्य को अपनी जीभ पर खूब घुमाया और जब वह पानी हो गया तो निगल लिया. तब तक हेमन्त का लंड एक और चम्मच माल मेरी जीभ पर उगल चुका था.

पांच मिनट लगे मुझे मेरे यार के इस अमूल्य उपहार को निगलने में. हेमन्त का लंड अब ठंडा होकर सिकुड़ने लगा था पर मैं उसे तब तक मुंह में लेकर प्यार से चूसता रहा जब तक वह बिलकुल नहीं मुरझा गया. आखिर जब मैंने उसे मुंह से निकाला तो हेमन्त ने मुझे खींच कर अपने साथ बिठा लिया और मेरा चुंबन लेते हुए बोला, "मेरे राजा, मेरी जान, तू तो लंड चूसने में एकदम हीरा है, मालूम है, साले नए नौसिखिये छोकरे शुरू में बहुत सा वीर्य मुंह से निकल जाने देते हैं पर तूने तो एक बूंद नहीं बेकार की." मैं उसकी इस शाबासी पर कुछ शरमा गया और उसे चूमने लगा.

अब हम आपस में लिपटकर अपने हाथों से एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे. चुंबन जारी थे. एक दूसरे के लंड चूसने की प्यास बुझने के बाद हम दोनों ही अब चूमा चाटी के मूड़ में थे. पहले तो हमने एक दूसरे के होंठों का गहरा चुंबन लिया. हेमन्त की पूंछ मेरे ऊपरी होंठ पर गड़कर बड़ी मीठी गुदगुदी कर रही थी.
फ़िर हमने अपना मुंह खोला और खुले मुंह वाले चुंबन लेने लगे. अब मजा और बढ़ गया. हेमन्त ने अपनी जीभ मेरे होंठों पर चलाई और फ़िर मेरे मुंह में डाल दी और मेरी जीभ से लड़ाने लगा. मैंने भी जीभ निकाली और कुछ देर हम हंसते हुए सिर्फ़ जीभ लड़ाते रहे. फ़िर एक दूसरे की जीभ मुंह में लेकर चूसने का सिलसिला शुरू हुआ.

हेमन्त के मुंह के रस का स्वाद पहली बार मुझे ठीक से मिला और मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं उसकी जीभ गोली जैसे चूसने लगा. उसे भी मेरा मुंह बहुत मीठा लगा होगा क्योंकि वह भी मेरी जीभ बार बार अपने होंठों में दवा कर चूस लेता.

हेमन्त ने सहसा प्यार से मुझे डांट कर कहा "साले मादरचोद, मुंह खोल और खुला रख, जब तक मैं बंद करने को न कहूं, खुला रखना" और फ़िर मेरे खुले मुंह में उसने अपनी लंबी जीभ डाली और मेरे दांत, मसूड़े, जीभ, तालू और आखिर में मेरा गला अंदर से चाटने लगा. उसे मैंने मन भर कर अपने मुंह का स्वाद लेने दिया. फ़िर उसने भी मुझे वही करने दिया.
अब हम दोनों के लंड फ़िर तन कर खड़े हो गये थे. एक दूसरे के लंडों को मुट्ठी में पकड़कर हम मुठिया रहे थे. बड़ा मजा आ रहा था.

"अब क्या करें यार?" मैंने पूछा. हंस कर मेरा चुम्मा लेते हुए हेमन्त बोला. "अब तो असली काम शुरू होगा मेरी जान, गांड मारने का."

"आज ही?" मैंने थोड़ा डर कर पूछा. मुझे उसके मतवाले लंड को देखकर मरवाने की इच्छा तो हो रही थी पर गांड में दर्द का भय भी था.

"हां राजा, आज ही, इसीलिये तो दोपहर में सोये थे, आज रात भर जाग कर मस्ती करेंगे, कल तो छुट्टी है, देर तक सोयेंगे. पहली बार गांड मरा रहा है तू, कल आराम मिल जायेगा!" हेमन्त की प्यार भरी जोर जबरदस्ती पर मैंने भी जब यह सोचा कि अपनी गांड मरवाने के साथ साथ मैं भी हेमन्त की मोटी ताजी गांड मार सकेंगा तो मेरा डर कम हुआ और साथ साथ एक अजीब खुमार लंड में चढ़ गया.

"पहले तू मरवाएगा या मैं मरवाऊं?" हेमन्त ने अपना लौड़ा मुठियाते हुए पूछा. मेरी झिझक देखकर फ़िर खुद ही बोला. "चल तू ही मार ले. तेरे मस्त लंड से चुदवाने को मरी जा रही है मेरी गांड, साली बहुत कुलबुला रही है तेरा लौड़ा देखकर, बिलकुल चूत जैसी पुकपुका रही है"
 
वह ओंधे मुंह बिस्तर पर लेट गया और अपने चूतड़ हिला कर मुझे रिझाता हुआ बोला. "देख अब मेरे चूतड़ तेरे हैं, जो करना है कर, तेरी गांड तो बहुत प्यारी है यार, बिलकुल लौंडियों जैसी, मेरे चूतड़ जरा बड़े हैं, भारी भरकम. देख अच्छे लगते हैं तुझे या नहीं."

मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उसके चूतड़ सहलाने लगा. पहली बार किसी की गांड इतनी पास से साफ़ देख रहा था, और वह भी किसी औरत की नहीं बल्कि एक हट्टे कट्टे नौजवान की. हेमन्त के चूतड़ बहुत भारी भरकम थे पर पिलपिले नहीं थे. गठे हुए मांस पेशियों से भरे, चिकने और गोरे उन नितंबों को देख मेरे लंड ने ही अपनी राय पहले जाहिर की और कस कर और तन्ना कर खड़ा हो गया. दोनों चूतड़ों के बीच गहरी लकीर थी और गांड का छेद भूरे रंग के एक बंद मुंह सा लग रहा था.
उसमें उंगली करने का मेरा मन हुआ और मैंने उंगली अपने मुंह से गीली कर के धीरे से उसमें डाली. मुझे लगा कि मुश्किल से जाएगी पर उसकी गांड में बड़ी आसानी से वह उतर गई. उसका गुदाद्वार अंदर से बड़ा कोमल था. मेरे उंगली करते ही हेमन्त ने हुमक कर कहा. "हा ऽ य यार मजा आ गया, और उंगली कर ना, इधर उधर चला. ऐसा कर जाकर मक्खन ले आ, फ़िज़ में रखा है. मक्खन लगा कर उंगली कर, मस्त फ़िसलेगी"

मैं जाकर मक्खन ले आया. थोड़ा उंगली पर लिया और उसके गुदा में चुपड़ दिया. "दो उंगली डाल मेरे राजा, प्लीज़.!" मैंने उंगली अंदर घुमाई और फ़िर धीरे से दूसरी भी डाल दी. फ़िर उन्हें अंदर बाहर करने लगा. मेरी उंगलियां आराम से मक्खन से चिकने उस मुलायम छेद में घुस रही थीं जैसे गांड नहीं, किसी युवती की चूत हो.

न रहकर मैंने झुककर उसके नितंबों को चूम लिया. फ़िर चूमता हुआ और जीभ से चाटता हुआ उसके छेद की ओर बढ़ा. मुंह छेद के पास लाकर मैंने उंगलियां निकाल ली और उन्हें सुंघा. नहाते हुए अपनी ही गांड में उंगली कर के मैंने बहुत बार सुंघा था, आज हेमन्त की गांड की वह मादक गंध मुझे बड़ी मतवाली लगी.

"चुम्मा दे दे यार उसे, बिचारी तेरी जीभ के लिये तड़प रही है." हेमन्त ने मजाक किया. वह मेरी ओर देख रहा था कि गांड चूसने से मैं कतराता हूं या नहीं. मैं तो अब उस गांड की पूजा करना चाहता था, इसलिये तुरंत अपने होंठ उसके गुदा पर रख दिये और चूसने लगा.

उस सौंधे स्वाद से जो आनंद मिला वह क्या कहूं. हेमन्त ने भी अपने हाथों से अपने ही चूतड़ फैला कर अपना गुदा खोला. मैं देखकर हैरान रह गया. मुझे लग रहा था कि जैसा सबका होता है वैसा छोटा सकरा भूरा छेद होगा. पर हेमन्त का छेद तो किसी चूत जैसा खुल गया. उसके अंदर की गुलाबी कोमल झलक देख कर मैंने उसमें जीभ डाल दी. मक्खन से चिकनी उस गांड को चूसने में ऐसा आनंद आया जैसे कोई मिठाई खाकर भी नहीं आता.

"शाब्बास मेरे राजा, मस्त चाटता है तू गांड, जरा जीभ और अंदर डाल. जीभ से चोद दे यार." जीभ डाल डाल कर मैंने उसकी गांड को खूब चाटा और चूसा. बीच में प्यार से उसमें नाक डाल कर सूंघता पड़ा रहा. अंत में मन नहीं माना तो मुंह में उसके नितंब क मांस भरकर उसे दांतों से हल्के हल्के काटने लगा.

हेमन्त बोला. "गांड खाना चाहता है मेरी? खिला दूंगा यार वह भी, क्या याद करेगा तू." अपनी गांड भरपूर चुसवा कर हेमन्त ने मुझे पास खींच कर जोर जोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फ़िर बोला. "चढ़ जा यार, मार ले मेरी, अब नहीं रहा जाता. मस्त गीली है गांड तेरे चूसने से, मक्खन भी लगा है, आराम से घुस जाएगा तेरा लौड़ा"
मैं हेमन्त के कूल्हों के दोनों ओर घुटने जमा कर बैठा और अपना सुपाड़ा उसके गुदा में दबा दिया. हेमन्त ने अपने चूतड़ पकड़ कर खींच रखे थे इसलिये बड़े आराम से उसके खुले छेद में सप्प से मेरा शिश्नाग्र अंदर हो गया. उस मुलायम छेद के सुखद स्पर्श से मैं और उत्तेजित हो उठा और एक धक्के में अपना लंड जड़ तक हेमन्त की गांड में उतार दिया.
मुझे बहुत अच्छा लगा, थोड़ा आश्चर्य भी हुआ. मुझे लगा था कि गांड में लंड डालने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. यहां तो वह आसानी से पूरा अंदर हो गया था. मैं समझ गया कि मेरा यार काफ़ी मरवा चुका है.
अब उसने चूतड़ छोड़े और अपना छल्ला सिकोड़ कर मेरा लंड गांड से पकड़ लिया. अब मजा आया मुझे. उसकी गांड ने कस कर ऐसे मेरे लंड को पकड़ा हुआ था जैसे मुट्ठी में दबा लिया हो. मैं हेमन्त के ऊपर लेट गया और बेतहाशा उसकी चिकनी पीठ और मांसल कंधे चूमने लगा.
"मेरे राजा, बहुत प्यारा है तेरा लंड, बड़ा मस्त लग रहा है गांड में, है थोड़ा छोटा पर एकदम सख्त है, लोहे जैसा. मार यार, गांड मार मेरी" उसके कहते ही मैं धीरे धीरे मजे लेकर उसकी गांड मारने लगा. मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि किसी मर्द की गांड मारना इतना सुखद अनुभव होगा. उसकी गांड एकदम कोमल और गरम थी और मेरे लंड को प्यार से पकड़े हुए थी. मैंने अपनी बाहें हेमन्त के शरीर के नीचे घुसा कर उसकी छाती को बांहों में भर लिया और जोर जोर से गांड मारने लगा.
"शाबास मेरे राजा, मार और जोर से, और मेरे निपल दबा यार प्लीज़, समझ औरत के हैं. मुझे मजा आता है यार निपल मसले जाने पर, और देख झड़ना नहीं साले नहीं तो मार खाएगा." हेमन्त के चमड़ीले बेरों जैसे निपल दबाता
और उंगलियों में लेकर मसलता हुआ में एक चित्त होकर उसकी गांड को भोगने लगा. मख्खन से चिकनी गांड में लंड इतना मस्त फ़िसल रहा था कि मैं जल्द ही बिलकुल झड़ने के करीब आ गया. किसी तरह अपने आप को मैंने रोका और हांफ़ता हुआ पड़ा रहा.
मेरे इस संयम पर खुश होकर हेमन्त ने अपना सिर घुमाया और अपना हाथ पीछे करके मेरी गर्दन में डालकर मेरे सिर को पास खींच लिया. "इनाम मिलना चाहिये तुझे मेरी जान, चुम्मा दूंगा मस्त रसीला, अपने मुंह का रस चखाऊंगा तुझे. चुम्मा लेते हुए गांड मार अपने यार की."
मैमे अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये और पास से उसकी वासना भरी आंखों में एक प्रेमी की तरह झांकता हुआ उसका मुंह चूसने लगा. उसके मुंह के रस का स्वाद किसी सुंदरी के मुंह से ज्यादा मीठा लग रहा था. जल्द ही खुले मुंह में घुस कर हमारी जीभे लड़ने लगीं और एक दूसरे की जीभ चूसते हुए हमने फ़िर संभोग शुरू कर दिया. गांड में मेरे लंड के फ़िर गहरे घुसते ही हेमन्त चहक उठा. "मार साली को जोर से, फुकला कर दे, मां कसम, इतना मजा बहुत दिन में आया मेरी जान. घंटा भर मार मेरी राजा प्लीज़.."
घंटे भर तो नहीं पर बीस मिनट मैंने जरूर हेमन्त की गांड मारी होगी. अपने चूतड़ उछाल उछाल कर पूरे जोरों से हेमन्त की गांड में मैं लंड पेलता और फ़िर सुपाड़े तक बाहर खींच लेता. मेरी जांघे उसके नितंबों से टकराकर 'सट 'सट सट आवाज कर रही थीं. आखिर कामसुख के अतिरेक से मेरा संयम जवाब दे गया और उसकी जीभ चूसते हुए मैं कस कर झड़ गया.
 
हेमन्त ने मेरे लंड को अपने चूतड़ों की गहराई में पूरा झड़ जाने दिया और फ़िर मुझे अपनी पीठ से उतार कर उठ बैठा. उसकी आंखें अब वासना से लाल हो चुकी थीं. उसका लंड उछल उछल कर फुफ़कार रहा था.
बिना कुछ कहे उसने मुझे बिस्तर पर ओंधा लिटा दिया और फ़िर मेरी गांड पर टूट पड़ा. मेरे नितंबों को चाटता हुआ

और चूमता हुआ वह उन्हें ऐसे मसल रहा था जैसे चूचियां हों. मस्ती में उसने जोर से मेरे नितंब को काट खाया. मेरी हल्की सी चीख निकल गयी. फ़िर झुक कर सीधा मेरा गुदा चूसने लगा. अपने हाथों से मेरे नितंब खींच कर उसने मेरी गांड खोली और उसमें अपनी जीभ उतार दी. हेमन्त की लंबी जीभ गहरी मेरे चूतड़ों में गयी और मैं सुख से सिहर उठा.
"यार अब तू ही मेरे लंड पर मक्खन लगा. तेरे मुलायम हाथों से जरा लौड़ा और मस्त होगा साला, देख तो कैसा उछल रहा है तेरी गांड लेने को. जा मख्खन ले आ यार" हेमन्त ने मुझपर से उठाते हुए कहा.
पर मैं उठकर पहले टेबल के पास गया और स्केल ले कर आया. मन में बहुत कुतूहल था कि उस मतवाले लंड की
आखिर साइज़ क्या है! मैं स्केल से हेमन्त का लंड नापने लगा. वह मुस्करा दिया. "नाप ले मेरी रानी. आखिर गांड में लेना है, तुझे भी गर्व होगा कि इतना बड़ा तूने लिया है."
उसका शिश्न पूरा सवा आठ इंच लंबा था. डंडे की मोटाई दो इंच से थोड़ी ज्यादा थी और सुपाड़ा तो करीब करीब ढाई इंच के व्यास का था. मेरे कौमार्य को कुछ ही देर में भंग करने को मचलते उस हथियार को मैंने फ़िर एक बार चूमा और फ़िर हथेली पर ढेर सा मख्खन लेकर उसके लंड में चुपड़ने लगा. लोहे के डंडे जैसे उस लौड़े को हाथ में लेकर उसकी फूली नसों को महसूस करके जहां एक तरफ़ मेरी वासना फ़िर भड़कने लगी वहीं मन में डर सा लगने लगा. घोड़े के लंड जैसे इस लौड़े को क्या मैं ले पाऊंगा?
पांच मिनिट मालिश करवा कर हेमन्त की सहनशक्ति भी जाती रही. उसने मुझे फ़िर बिस्तर पर मुंह के बल पटका और मेरे गुदा में मख्कन लगाना शुरू किया. दो तीन लोंदे उसने अंदर डाल दिये और फ़िर मेरे शरीर के दोनों ओर घुटने टेक कर बैठ गया. "बस मेरी रानी, अब नहीं रहा जाता, तैयार हो जा अपनी कुंवारी गांड मरवाने को. ऐसा कर अपने चूतड़ जरा खुद ही फ़ैला, इससे आसानी से अंदर जायेगा, तुझे तकलीफ़ भी कम होगी"
मैंने अपने चूतड़ फैलाये और मेरे गुदा पर उसके सुपाड़े का स्पर्श महसूस करके आंखें बंद करके प्रतीक्षा करने लगा. आज मुझे महसूस हो रहा था कि सुहागरात में पहली बार लंड चूत में लेते हुए दुल्हन पर क्या बीतती होगी. दिल जोरों से धड़क रहा था. बहुत डर लग रहा था. पर छूट कर भागने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी.
हेमन्त ने हौले हौले लंड पेलना शुरू किया. अपनी धधकती वासना के बावजूद वह बड़े प्यार से लंड अंदर डाल रहा था. पर मेरा गुदा अपने आप सिकुड़कर मानों अंदर घुसने वाले शत्रु को रोक रहा था. हेमन्त ने मुझे समझाया "यार अनिल, मेरी रानी, गांड खोल, जैसे टट्टी के समय करता है, तब घुसेगा अंदर आसानी से नहीं तो तकलीफ़ देगा तुझे मेरी जान."
मैंने जोर लगाया और गांड ढीली छोड़ी. एक सेकंड में मौका देखकर हेमन्त ने मंजे खिलाड़ी जैसे सुपाड़ा पचाक से अंदर कर दिया. मेरा गुदा ऐसा दुखा जैसे फ़ट गया हो. मैं चीख पड़ा. हेमन्त इसके लिये तैयार था, मेरा मुंह दबोच कर उसने मेरी चीख बंद कर दी. मैं छटपटाने लगा. आंखों में आंसू आ गये. हेमन्त ने लंड पेलना बंद किया और एक हाथ मेरे पेट के नीचे डाल कर मेरा लंड सहलाने लगा.
"बस मेरे राजा, हो गया, रो मत, हाथी तो चला गया, अब पूंछ आराम से जायेगी. तू गांड मत सिकोड़ ढीली छोड़ पांच मिनिट में ऐसा मरवाएगा कि कोई रंडी भी क्या चुदवाती होगी." कहकर वह मेरी गर्दन चूमने लगा. उसकी मीठी पुचकार ने और मेरे लंड में होती मीठी चुदासी ने आखिर अपना जादू दिखाया. मेरी यातना कम हुई और मैंने सिसकना बंद करके गांड ढीली छोड़ी. बहुत राहत मिली.
"बस अब दो मिनिट में पूरा डालता हूं, दुखे तो बताना, मैं रुक जाऊंगा." कहकर हेमन्त ने इंच इंच लंड मेरे चूतड़ों के बीच पेलना शुरू किया. आधा तो मैंने ले लिया और फ़िर दर्द होने से सिसक पड़ा. वह रुक गया. कुछ देर बाद दो इंच और डाला तो मुझे लगा कि पूरी गांड ट्रंस ढूंस कर किसीने भर दी हो. अंदर जगह ही नहीं थी.
हेमन्त कुछ देर और धीरे धीरे लंड पेलने की कोशिश करता रहा पर अब वह अंदर नहीं जा रहा था. वह जोर लगाता तो मुझे बहुत दर्द होता था. एकाएक उसने मेरा मुंह दबोचा और एक शक्तिशाली झटके से बचा हुआ तीन चार इंच का डंडा एक ही बार में अंदर गाड़ दिया. मुझे लगा कि जैसे मेरी गांड फ़ट गयी.
 
मैं तिलमिला उठा और चीखने की कोशिश करता हुआ हाथ पैर मारने लगा. हेमन्त ने अब मुझे पूरी तरह दबोच लिया था और मेरे ऊपर ऐसे चढ़ गया था जैसे शेर हिरन पर शिकार के लिये चढ़ जाता है. उसका लौड़ा जड़ तक मेरी गांड में उतर गया था. मेरे तन कर खुले खिंचे गुदा के छल्ले पर उसकी झांटें महसूस हो रही थीं.
दो मिनिट बाद जब उसने हाथ मेरे मुंह से हटाया तो मैं कराह कर सिसकने लगा. गांड में भयानक दर्द हो रहा था. मुझे चूम चूम कर और मेरा लंड मुठिया मुठिया कर उसने मुझे चुप कराया. "सारी मेरी जान पर आखिर के तीन इंच इसी तरह जबरदस्ती पेलने पड़ते हैं नहीं तो रात निकल जाती है उसे अंदर डालने में. असल में वहां तेरी आंत में बेंड है और उसके आगे जाने में लंड बहुत दर्द देता है. आज अब तेरी सील टूट गयी, मालूम है, वहां तेरी आंत अब सीधी हो गयी होगी. अब दर्द इतना नहीं होगा. अब बस मत रो मेरी जान, अब मजा ही मजा है." कह कर वह मेरा सिर अपनी ओर घमा कर मझे चमने लगा और मेरे आंस अपनी जीभ से चाटने लगा.
उसकी आंखों में बेहद प्यार और तीव्र कामुकता थी. धीरे धीरे मेरा दर्द कम हुआ और लंड भी कस कर खड़ा हो गया. दर्द तो अब भी हो रहा था पर गांड में अब एक अजीब मादक खुमार सा भर गया था. इसका प्रमाण यह था कि अचानक मेरा गुदा अपने आप सिकुड़ कर हेमन्त के लंड को पकड़ने लगा.
"आ गया रास्ते पर चल अब मारने दे, और न तड़पा." हंस कर वह बोला. मैं भी शरमा सा गया और आंसू भरी आंखों से उसकी आंखों में देखकर उसे चूम कर मुस्करा दिया. हेमन्त ने मेरे मुंह पर अपने होंठ दबा दिये और एक गहरा चुंबन लेता हुआ वह धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर करने लगा. मेरी गांड की चुदाई शुरू हो चुकी थी.
आधे घंटे तक हेमन्त ने मेरी मारी. दो तीन आसन उसने इन आधे घंटों में मुझे सिखा दिये. पहले कुछ देर मुझपर चढ़ कर वह बड़े सधे अंदाज में मेरी मारता रहा. धीरे धीरे रफ़्तार भी बढ़ाई. जब लंड आराम से पच पच पच' की सेक्सी आवाज के साथ मेरी गांड में फ़िसलने लगा तब कुछ देर और मारने के बाद वह उठा और मुझे पकड़ कर चलाता हुआ दीवार तक ले गया.
गांड में लंड लेकर चलना भी एक अलग अनुभव था. हर कदम के साथ मेरे चूतड़ जब डोलते थे तो लंड गांड में रोल होता था. दुखता भी था और मजा भी आता था. हेमन्त ने मुझे दीवार से मुंह के बल सटा कर खड़ा किया और फ़िर खड़े खड़े ही मेरी मारी. अब तक मेरे गुदा में दर्द कम हो गया था और लबालब भरे मख्खन के कारण उसका लौड़ा आराम से घचघच फ़िसल रहा था. "पसंद आया आसन मेरे राजा? या लेटे लेटे लेने में अंजा आया?" उसने मेरी गांड में लंड पेलते हुए पूछा.
मुझे बहुत मजा आ रहा था. "यार तुम उलटा लटकाकर भी मारो तो मुझे मजा आयेगा. क्या शाही लौड़ा है तेरा मेरे राजा! मैं तो फ़िदा हो गया." मैंने भाव विभोर होकर उससे कहा. हेमन्त हंस दिया पर मेरी बात उसे बहुत अच्छी लगी यह साफ़ था क्योंकि उसने और जोश से मेरी मारना शुरू कर दिया.
फ़िर वह मुझे टेबल तक ले गया और मुझे झुक कर टेबल का आधर लेकर खड़े होने को कहा. मैं टेबल का किनारा पकड़ कर झुक कर खड़ा हुआ और वह मेरे पीछे खड़ा खड़ा मेरी मारता रहा. "ये खजुराहो स्टाइल है. देखी है ना वो मूर्ति? फ़र्क सिर्फ यह है कि उसमें एक मर्द औरत को ऐसे चोदता है." उसके कंट्रोल की मैंने दाद दी, इतने तन कर खड़े लंड के बावजूद वह बड़ा मजा ले लेकर सधी हुई लय से मुझे आसन सिखा सिखा कर मेरी मार रहा था.
उसके बाद मुझे फ़िर बिस्तर पर ले गया. बिस्तर पर मुझे कोहनियों और घुटनों पर कुतिया स्टाइल में खड़ा किया और पीछे से मेरे ऊपर चढ़ कर कुत्ते जैसी मेरी मारने लगा. अब उसके हाथ मेरे बदन को भींचे हुए थे और वह घुटने टेक कर आधा वजन मेरे ऊपर देता हुआ मेरी मार रहा था. "यह आखरी आसन है यार. अब मैं सह नहीं सऊंगा. वैसे पशुसंभोग का यह आसन मराने वाले के लिये जरा कठिन है. वजन सहना पड़ता है, जैसे कुतिया कुत्ते का या घोड़ी घोड़े का सहती है."
 
मैं अब कामुकता में डूबा हुआ हांफ़ते हुए कुतिया जैसे मरवा रहा था. इतना मजा आ रहा था कि मैंने सोचा कि अगर हेमन्त मेरे ऊपर पूरा चढ़ जाये तो क्या मजा आयेगा. मैंने उससे कहा तो वह जोर से सांस लेता हुआ बोला कि बस दो मिनिट बाद. असल में उसके स्खलन का समय करीब आ रहा था.
कुछ देर बाद उसकी सांस और तेज चलने लगी. मुझे बोला "संभाल राजा, गिरना नहीं" और उचक कर उसने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर देते हुए अपनी टांगें उठा कर मेरी जांघों के इर्द गिर्द फंसा लीं और मुझ पर चढ़ कर हचक हचक कर मेरी गांड चोदने लगा. उसका पचहत्तर किलो वजन मेरे ऊपर आ गया और मैं लड़खड़ा गया.
अब वह पूरे जोर से लंड करीब करीब पूरा बाहर निकालकर और फ़िर अंदर पेलते हुए मुझे चोद रहा था. मेरे ऊपर वह ऐसे चढ़ा था जैसे घोड़े पर सवार चढ़ता है! उसके इन शक्तिशली धक्कों को मैं न सह पाया और चार पांच प्रहारों के बाद मुंह के बल बिस्तर पर गिर गया. हेमन्त मुझे चोदता रहा और अगले ही क्षण वह भी झड़ गया. उसके गर्म वीर्य का फुआरा मेरी गांड में छूटा और मैं धन्य हो गया. ।
कुछ देर सुस्ताने पर उसने धीरे से अपना लंड मेरी चुदी गांड के बाहर निकाला. वह अब सिकुड़ गया था पर उसपर हेमन्त का वीर्य लगा हुआ था. मेरा लंड भी अब तन्नाया हुआ था, उसे देखकर वह बोला "जल्दी आ जा मेरे यार, सिक्सटी नाइन कर लेते हैं."
फ़िर बोला. "मेरा झड़ गया तो क्या हुआ, उसपर काफ़ी मलाई लगी है, चूस ले." हम एक दूसरे के लंड मुंह में लेकर लेट गये. मेरी गांड का स्वाद लगे उस लौड़े का स्वाद ज्यादा ही मतवाला हो गया था. जब तक मैंने उसका वीर्य से लिपटा लंड साफ़ किया, उसने भी बड़ी सफ़ाई से मेरा लंड चूस कर मुझे झड़ा दिया.
घड़ी में देखा तो रात के दो बज गये थे. चार पांच घंटे कैसे निकल गये पता ही नहीं चला. हम दोनों तृप्त थे, लिपट कर एक दूसरे को चूमते हुए पति पत्नी की तरह सो गये. मेरी गांड अब ऐसे दुख रही थी जैसे किसीने उसे घूसों से अंदर से पीटा हो. हेमन्त को बताया तो वह हंसने लगा. "तेरा कौमार्य भंग हुआ है, सील टूटी है तो दुखेगा ही! पर
आज दोपहर तक ठीक हो जायेगा. तू नींद की गोली ले ले और सो जा."
सोते समय उसने मुझे समझाया. "यार गांड मारने के बाद लंड हमेशा चूस कर साफ़ करना, पोंछना नहीं, अरे यह तो हमारे शरीर का अमृत है, इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिये. शुरू में गांड में से निकले लंड को चूसने में थोड़ा गंदा लगता है पर फ़िर आदत हो जाती है. वैसे सेक्स में शरीर की कोई भी चीज़ गंदी नहीं होती." मैंने उसे बताया कि मेरी गांड में से निकला उसका लंड चूसने में मुझे जरा भी गंदा नहीं लगा था.
हम सुबह दस बजे सो कर उठे. दोनों के लंड फ़िर खड़े थे. गांड में होते दर्द के बावजूद मैं तो इतना आतुर था कि फ़िर कामक्रीड़ा में जुट जाना चाहता था पर उसने कहा कि अब दोपहर को करेंगे. बहुत बार करने से लंड थक जायेगा
तो सुख की वह धार निकल जायेगी.
चाय पीकर हम नहाने गये. हेमन्त बोला. "तू चल, मैं पांच मिनट में आता हूं, जरा सामान जमा लू." मैं बाथरूम गया. शावर लगाया और नहाने लगा. इअने में हेमन्त अंदर आया. "यार सामान बाद में जमा लेंगे, अपनी रानी के साथ नहा तो लूं." और मुझे बांहों में भरकर चूमने लगा.
हमने खूब नहाया और मजा किया. एक दूसरे को साबुन लगाया, मालिश की और एक दूसरे के बदन को ठीक से देखा और टटोला. दोनों के लंड खड़े हो गये थे पर हमने अपने आप पर काबू रखा.
नहाते समय पेशाब लगी तो एक दूसरे के सामने ही हम मूते. मैं जब मूत रहा था तो उसने धार में अपना हाथ रख दिया. "मस्त लगता है गरम गरम, तू भी देख़" मैंने भी उसके मूत्र की तेज धार हाथ में ली तो वह गरम गरम फुहार मन में एक अजीब गुदगुदी कर गयी. जरा भी अटपटा नहीं लगा. वह अचानक मूतते मूतते रुका और मेरे सामने बैठकर मेरी धार अपने शरीर पर लेने लगा. मैंने हड़बड़ा कर मूतना बंद कर दिया तो बोला. "रुक क्यों गये राजा? मूत मेरे ऊपर, मेरे चेहरे पर धार डाल, मुझे बहुत अच्छा लगता है."
मैंने फ़िर मूतना शुरू किया. वह हिल डुल कर उस धार को अपने चेहरे और होंठों पर लेते हुए बैठ गया. मेरा मूतना


खत्म होते होते उसने अचानक मुंह खोल कर कुछ बूंदें अंदर भी ले लीं. जीभ निकालकर चाटता हुआ बोला. "मस्त स्वाद है यार, खारा खरा." मैं अब तैश में था. मैं उसके सामने बैठ गया और उसे भी वैसा ही करने को कहा.
जब उसके मूत की मोटी तेज धार मेरे चेहरे को भिगोने लगी तो मैंने मन को कड़ा कर के मुंह खोला. आधी धार अंदर गयी और उस गरम गरम खारे कसैले स्वाद से मेरा लंड और उछलने लगा. मुंह खोलने के पहले मैं थोड़ा परेशान था कि अगर गंदा लगे तो मेरे चेहरे के भाव से हेमन्त नाखुश न हो जाये पर यहां तो उलटा ही हुआ, मुझे ऐसा मजा आया कि उसका मूत खतम होने पर मैं कुछ निराश हो गया कि वह और क्यों नहीं मूता.
 
मूतना खतम होने पर हम दोनों शावर के नीचे खूब नहाये. जब बदन सुखाते हुए बाहर आये तो मैं तो उससे लिपट लिपट जाना चाहता था पर उसने मुझे शांत होने को कहा. बोला कि सामान जमा लें और फ़िर थोड़ी पढ़ाई कर लें. फ़िर दोपहर का खाना खाकर मस्ती करेंगे.
हम दोपहर को बाहर खाना खाकर वापस आये तो लंड तने लेकर. सीधे कपड़े उतारे और एक दूसरे से लिपट गये. हम सोफे पर बैठकर चूमा चाटी कर रहे थे तभी हेमन्त ने कहा, "चल यार गांड मारते हैं. लंड ऐसे खड़े हैं कि जो पहले मरवाएगा उसे बहुत मजा आयेगा. तू बिना झड़े घंटे भर मरवा सकता है? बोल? मरवाता है तो एक मस्त
आसन तुझे दिखाता हूं."
मैं बहुत उत्तेजित था और झड़ना चाहता था. पर इस हालत में हेमन्त के उस मोटे ताजे लंड से मराने की कल्पना मुझे बड़ी प्यारी लग रही थी. मैंने किसी तरह उछलते लंड को थोड़ा शांत किया और तैयार हो गया. हेमन्त सोफे पर बैठ गया और उसके कहने पर मैं उसके बाजू में खड़ा हो गया. बड़े प्यार से उसने मेरे गुदा में मक्खन लगाया और मैंने उसके लौड़े पर.
फ़िर वह टांगें फैला कर बैठ गया और मुझे उसकी तरफ़ पीठ करके अपनी टांगों के बीच खड़ा कर लिया. "गोद में बिठा कर मारूगा मेरी रानी. अब झुक जा और गांड खोल ले."
मैं थोड़ा झुका और अपने हाथों से अपने चूतड़ फैलाये. हेमन्त ने सुपाड़ा छेद पर जमाया और बोला. "गांड ढीली छोड़"
मैंने जैसे ही गुदा ढीला किया, पक्क से उसने एक बार में सुपाड़ा अंदर कर दिया. एक दर्द की टीस मेरे गुदा में उठी पर कल से दर्द कम था और मजा भी बहुत आया. अब उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींचा और बोला. "मेरे लौड़े को अंदर ले ले और बैठ जा मेरी गोद में."
कहने को आसान था पर इस सूली पर चढ़ने में दो मिनिट लग गये. कल की मराई से मेरी गांड खुल जरूर गयी थी पर अब भी उसके लंड की मोटाई के हिसाब से काफ़ी टाइट थी. उसकी गोद में बैठने की कोशिश करते हुए एक एक इंच करके लंड मैंने कैसे अंदर लिया, मैं ही जानता हूं. जब आखरी तीन इंच बचे तो उसने जोर से मेरी कमर पकड़ कर खींचा और पूरा लंड सटाक से अंदर लेकर मैं धम्म से उसकी गोद में बैठ गया. फ़िर से गांड में कस कर दर्द हुआ और न चाहते हुए भी मैं हल्का सा चीख उठा. फ़िर सारी बोला.
उसने मुझे बांहों में कसा और मेरे गालों को चूमता हुआ मुझे प्यार करने लगा. "सारी मत बोल यार, जितना चिल्लाना है उतना चिल्ला. तेरे कुंवारेपन की निशानी है, मुझे तो बहुत मजा आता है जब तू कसमसाता है. अच्छ
लगता है के मेरा लंड इतना बड़ा है कि तेरे जैसे प्यारे गांडू को ठीक से चोद सकता है."
दर्द के बावजूद मैं सुख में डूबा हुआ था. उसने एक हाथ से मेरे लंड को सहलाना शुरू किया और दूसरे से मेरे निपल हौले हौले मसलने लगा. मैंने मुंह घुमाया और हम दोनों एक दीर्घ चुंबन में जुट गये. वह अब धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर अपने लंड को मेरे पेट के अंदर मुठियाता हुआ मेरी गांड मार रहा था.
मुझे इतना मजा आ रह था कि मेरी आंखें पथरा गई थीं. मेरी उत्तेजना देख कर हेमन्त का लंड मचलकर मेरी गांड में और गहरा घुस गया. आखिर उससे न रहा गया और वह मुझे वहीं सोफे पर पटक कर मेरे ऊपर चढ़ बैठा और


हुमक हुमक कर मेरी गांड मारने लगा.
पूरे प्रयास के बावजूद वह अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाया और दस मिनिट में ही झड़ गया. मेरा लंड अब इतना उत्तेजित था कि उसके पूरा झड़ते ही मैं उसे हटाकर उठ बैठा और उसे पलटकर उसपर चढ़ने की कोशिश करने लगा.
"दस मिनिट रुक यार, मुझे दम लेने दे, फ़िर मैं जैसे कहूं वैसे मार मेरी गांड . आज तेरे इस मस्ताने लौड़े से मन भर कर मरवाऊंगा. बस थोड़ा लंड खड़ा हो जाने दे" मुझे रोकते हुए हेमन्त बोला.
तब तक मैं हेमन्त के भारी भरकम चूतड़ सहलाता रहा. उसकी गांड में मक्खन लगाया और उसने मेरे लंड को चिकना किया. जब उसका लंड फ़िर कुछ उठने लगा तो वह उठा और सोफ़े की पीठ पकड़कर झुककर खड़ा हो गया.
"अब डाल यार अंदर धीरे धीरे और मार मेरी खडे खडे" अपनी गांड ढीली करता हुआ वह बोला.
मैंने तुरंत उसकी गांड में लंड डाल दिया. धीरे धीरे नहीं, एक ही बार में सट से. वह थोड़ा हुमका और फ़िर बोला. "चल कोई बात नहीं, आज तो तू तैश में है, पर राजा कल से धीरे धीरे डालना और घंटे भर मारना. आज भी कम से कम आधे घंटे मार यार नहीं तो सब मजा किरकिरा हो जायेगा."
उसके चूतड़ पकड़कर पंजों के बल खड़े होकर मैंने उसकी मारना शुरू कर दी. पहले स्ट्रोक थोड़े धीमे थे पर फ़िर उसके कहने से मैं घचाघच चोदने लगा. मेरा पेट बार बार उसके नितंबों से टकराता और फ़च फ़च फ़च आवाज होती. बीच बीच में मैं रुक जाता जिससे झड़ न जाऊ. अति वासना के बावजूद अब मैं अपने आप पर कंट्रोल कर पा रहा था इसलिये उसकी खूब देर मार पाया जैसी उसकी इच्छा थी.
 
कुछ देर बाद वह खुद ही चलकर दीवार से मुंह के बल सट कर खड़ा हो गया और मुझसे खड़े खड़े गांड मरवायी.
आखिर इसी आसन में मैं झड़ गया.
थक कर मैं पलंग पर लेट गया. हेमन्त मेरे पास बैठ गया और मेरे पैर उठाकर अपनी गोद में रख लिये. मेरे पैरों और तलवों को सहलाता हुआ हेमन्त बोला. "यार तू तो बड़ा सुंदर है ही, तेरे पैर भी बड़े खूबसूरत हैं. एकदम चिकने और
कोमल, तलवे तो देख, बच्चों जैसे गुलाबी हैं." और मेरे पैर उठाकर वह उन्हें चूमने लगा.
मैं सुख से सिकर उठा. मेरे पैरों को वह बार बार चूम रहा था. बीच में मेरे तलवे चाट लेता. मेरी उंगलियों को भी उसने मुंह में लकर चूसा. उसका एकदम तन्नाकर खड़ा हो गया था.
मुझसे न रहा गया. मैंने हेमन्त के पैर खींचकर अपने मुंहसे लगा लिये और उन्हें वेताशा चूमने और चाटने लगा. उसके पैर बड़े थे, पर एकदम चिकने और साफ़. मुझे उसके गोरे तलवे चाटने में बहुत मजा आया.
हम दोनों फ़िर मस्त हो गये थे. चुदाई का एक नया दौर शुरू होने ही वाला था. पर फ़िर हेमन्त ने उठकर कहा, "अभी नहीं यार, अब बाद में शाम को मैं तेरे पैरों को चोदूंगा. अभी सो ले. नहीं तो चोद चोद कर हम दोनों बुरी तरह थक जायेंगे."
एक दूसरे के लंड हमने चूस कर साफ़ किये और फ़िर कुछ देर आराम किया. घंटे भर सो भी लिये.
था. शाम तक वह खुद पढ़ता रहा और मुझे भी
मैं सो कर उठा तो वह पढ़ रहा था. वह पढ़ाई का भी पक्का पढ़वाया.
रात को हमने वहीं खाना बनाया. खाना खाकर फ़िर पढ़ाई की और नहाकर हम फ़िर कामक्रीड़ा में जुट गये.
हेमन्त मुझसे बोला. "इधर आ यार चप्पल पहनकर और इस स्टूल पर खड़ा हो जा, दीवाल का सहारा ले कर." मुंह दीवाल की ओर करके मैं खड़ा हो गया. बड़ी उत्सुकता थी कि मेरा यार अब क्या गुल खिलायेगा!


१६
वह खुद स्टूल के पास नीचे घुटने टेक कर बैठ गया. "अब अपने पंजों के बल खड़ा हो जा." मेरी ऐड़ियां अब मेरी चप्पलों से ऊपर उठ गयी थीं. बड़े प्यार से उसने अपना लंड मेरे पांव के तलवे और चप्पल के बीच घुसेड़ा. फ़िर बोला. "अब नीचे हो जा. खड़ा हो जा मेरे लौड़े पर अपने तलवे और चप्पल के बीच दबा ले."
उसके कड़े लंड के मेरे तलवों पर होते स्पर्श से मुझे मजा आ गया. मैं पैर हिला कर उसकी मालिश करने लगा. मेरे पैर पकड़कर हेमन्त अब अपना लंड मेरे तलवों और चप्पल के बीच पेलने लगा. "देख इसे कहते हैं पैरों को चोदना. बहुत मजा आता है, खास कर जब तेरे जैसे चिकने पैरों वाला कोई मिल जाये."
मेरे दोनों पैरों और चप्पलों को हेमन्त ने मन भर कर चोदा. झड़ने के करीब आकर रुक गया और बोला. "अब बंद करते हैं या नहीं तो यहीं तेरी चप्पलों में झड़ जाऊंगा. वैसे उसमें भी मजा है, पर अब मैं तो तेरी गांड मारूंगा."
हमने अब अपने लंड और गुदा मख्खन से चिकने कर लिये कि बीच में न रुकना पड़े. मुझे गोद में लेकर हेमन्त मुझे प्यार करने लगा.
कुछ देर की चूमाचाटी के बाद उसने मुझे चित बिस्तर पर लिटाया और मेरे सीधे खंबे से खड़े लंड को प्यार से चूसा. चूसते चूसते वह उलटी तरफ़ से मेरी छाती के दोनों ओर घुटने टेक कर मेरे ऊपर आ गया. मुझे लगा कि लंड चुसवाना चाहता है पर थोड़ा सिमटकर जब वह उकडू हुआ तो उसके चूतड़ मेरे मुंह पर लहरा रहे थे. गांड का छेद खुल और बंद हो रहा था.
मैं समझ गया कि मुझसे गांड चुसवाना चाहता है. मैंने उसके नितंबों को दबाते हुए उसका गुदा चूसना शुरू कर दिया. उसे इतना मजा आया कि वह अपना पूरा वजन देकर मेरे मुंह पर ही बैठ गया.
दस मिनिट बाद वह उठा और झुक कर मेरे पेट के दोनों ओर पैर जमा कर तैयार हो गया. मेरी ओर मुंह कर के मेरा लंड उसने अपने गुदा पर जमाया और उसे अंदर लेता हुआ नीचे बैठ गया. मेरा लौड़ा उसकी चिकनी खुली गांड में आसानी से घुस गया. पूरा लंड अंदर लेकर उसके चूतड़ मेरे पेट पर टिक गये. हेमन्त ने फ़िर दोनों पैर उठाकर मेरे चेहरे पर रखे और हाथ बिस्तर पर टेक कर ऊपर नीचे होते हुए खुद ही अपनी गांड मराने लगा.
उसके पैर मेरे मुंह पर थे. अपने तलवे मेरे गालों और मुंह पर रगड़ता हुआ वह बोला. "ले अब यार, जरा मन भर कर मेरे पैरों को चाट और चूस. मुंह में ले. मजा कर. मैं भी मन भर कर आराम से अपनी गांड से तेरे लंड को चोदता हूं."
मेरे लिये तो मानों खजाने का दरवाजा खुल गया. यहां हेमन्त की गांड का मुलायम तपता घर्षण मेरे लंड को अपूर्व सुख दे रहा था उधर मेरे मुंह पर टिके उसके पैर मुझे मदहोश कर रहे थे. मैंने हाथों से पकड़कर उन्हें मुंह से लगा लिया और बेतहाशा चूमने और चाटने लगा. बीच में उसके पैरों की उंगलियां और अंगूठा मुंह में लेकर चूसने लगता.
हेमन्त ने तरसा तरसा कर आधे घंटे मुझे इस मीठी छुरी से हलाल किया और फ़िर जोर जोर से अपनी गांड से चोदते हुए मुझे झड़ाया. मैं इतनी जोर से झड़ा कि मेरा शरीर कांप गया.
इस बार हेमन्त ने एक और करम मेरे ऊपर किया. मेरा स्खलन होने के बाद भी मुझे चोदना बंद नहीं किया, बल्कि ऊपर नीचे उछलता हुआ मेरे लंड को अपने गांड में लिये मरवाता रहा. लंड अब भी खड़ा था पर झड़ने के बाद सुपाड़ा बहुत संवेदनशील हो गया था. इसलिये उसपर गांड का घर्षण मुझे सहन नहीं हुआ. जब भी वह ऊपर नीचे होता, मैं सिसकारी भरते हुए तड़प तड़प जाता पर वह हरामी हंसते हुए मेरे लंड को अपनी गांड की म्यान से रगड़ता रहा. मुझे ऐसा निचोड़ा कि मैं किसी काम का नहीं रहा, करीब करीब बेहोश की हो गया. वह तभी रुका जब मेरा लंड बिलकुल मुरझा कर उसकी गांड से बाहर आ गया.
 
मुझे ओंधा पटककर उसने मेरी गांड मारना शुरू कर दी. जब हेमन्त आखिर झड़ा तो शांत होने पर मुझसे बोला.


"मजा आ गया रानी. एक बात देखी तूने? तू पैरों का दीवाना है लगता है. फूट ऐतिश है तुझे. कैसा गरमा जाता है। जब मैं तेरे पैर चूमता हूं या तू मेरे तलवे चाटता है."
उस रात हमने एक बार और संभोग किया और फ़िर सो गये. यह सिक्सटी नाइन का आसन था और इस बार मैंने उसका लंड काफ़ी हद तक मुंह में ले ही लिया. बस तीन चार इंच बाहर बचे होंगे. गले तक लंड निगलकर चूसना और खास कर गले में सुपाड़े के टाइट फ़िट होने से दम घुटना ये दोनों अनुभव बहुत मादक थे. हेमन्त ने तो आराम से मेरा लंड पूरा निगल कर चूसा. बोला. "अब जल्दी सिखाना पड़ेगा मेरी रानी को पूरा लौड़ा मुंह में लेना."
दूसरे दिन से हमारा जीवन धीरे धीरे एक कामुकता की लय में बंध गया. मैं हेमन्त की पत्नी जैसे उसकी सेवा करने लगा. उसके कपड़े धोता, सामान बटोरता और बाकी सब छोटे छोटे काम करता. सुबह हेमन्त मुझे संभोग नहीं करने देता था क्योंकि कॉलेज जाने की जल्दी रहती थी. बस एक साथ नहाना, चूमा चाटी करना, एक दूसरे के ऊपर मूतना इत्यादि बातें बाथरूम में होती थीं.
रात को खाने के बाद संभोग शुरू होता तो फ़िर तीन चार घंटे नहीं रुकता. एकाध बार हम सिक्सटी नाइन करते या
और तरह तरह से अपने यार के लंड चूस कर वीर्य पान करते पर बाकी अधिकतर समय जोर जोर से गांड मारने और मरवाने में जाता. गांड मारना हमारे लिये एक ऐसा खेल था कि उसे जोर जोर से वर्जिश सी करते हुए करने में हमें बड़ा मजा आता था. उछल उछल कर हम पूरे जोरों से एक दूसरे की मारते थे.
हां कभी कभी प्यार से गोद में बिठाकर हौले हौले चूमाचाटी करते हुए गांड चोदना भी बहुत प्यारा लगता था. इसमें अक्सर मैं हेमन्त की गोद में होता पर एक दो बार वह भी मेरा लंड अपनी गांड में लेकर मेरी गोद में बैठ जाता. इस आसन में हम कोई पाॉडी साथ साथ पढ़ते या फ़िर एक ब्लू फ़िल्म देखते.
दोपहर को कॉलेज से वापस आकर भी खाना खाने के बाद दो घंटे पढ़ाई होती थी. इस बारे में वह पक्का था. हां दो तीन घंटे की इस पढ़ाई में हम कुछ मजा कर लेते थे और वह भी ऐसी कि पढ़ाई भी तेज होती थी.
हेमन्त ने ही इस तरह की पढ़ाई की शुरुआत की. एक दिन जब मैं टेबल कुर्सी पर बैठ कर रिपोर्ट लिख रहा था तो वह उठ कर आया और मुझे चूम कर प्यार से बोला. "अगर तू हाथ न रोकने का और लिखते रहने का वायदा करेगा तो एक मस्त आसन दिखाता हूं. तू बस लिखता जा. देख क्या फ़टाफ़ट पढ़ाई होती है. लंड में होते चुदासी के सुख से पढ़ाई ज्यादा तेज होती है अगर ठीक से कान्सन्ट्रेट किया जाये. बोल है तैयार?"
मेरे हामी भरते ही वह टेबल के नीचे घुस गया और मेरे सामने आराम से बैठकर मेरा तना हुआ लंड हाथ में लेकर कुछ देर उसे मुठियाया. फ़िर अपना मुंह खोल कर पूरा लंड निगल लिया. उसके बाद बस वैसे ही बैठा रहा, मेरा लंड उसने चूसा नहीं. अपनी आंखों से इशारा किया कि मैं लिखता रहूं. उसके गरम गीले तपते मुंह का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था. मैंने पढ़ाई शुरू कर दी.
एक घंटे में मेरी इतनी पढ़ाई हुई जैसी दो घंटों में नहीं होती. बस अपने आप पर इतना कंट्रोल करना था कि ऊपर नीचे होकर उसके मुंह को चोदने की इच्छा दबाता रहूं. घंटे भर बाद रिपोर्ट खतम होने पर आखिर जब मुझसे न रहा गया तो मैंने पेन नीचे रखकर हेमन्त का सिर अपने पेट पर दबाया और कुर्सी में बैठा बैठा उसके मुंह को चोदता हुआ
झड़ गया.
बाद में उसे चूमते हुए मैंने कहा कि मैं भी उसे वैसा ही सुख देना चाहता हूं. उसके लिये लंड पूरा मुंह में लेना सीखना बहुत जरूरी था. उसी रात उसने मुझे सिखाया. खड़ा लंड मुंह में लेने में कठिनाई होती थी इसलिये उसने मेरी गांड मारने के बाद अपना मुरझाया लंड मेरे मुंह में दिया और पलंग पर लेट गया. तीन चार इंच की वह लुल्ली मैं आराम से पूरी मुंह में लेकर चूसता रहा.
दस मिनिट बाद जब उसका खड़ा होना शुरू हुआ तो उसने मुझे आगाह किया. "अब घबराना नहीं अनिल राजा. गले में जायेगा तो गला ढीला छोड़ना. देख कैसा हलक तक उतर जायेगा."


जब उसका मोटा सुपाड़ा आखिर मेरे गले में उतरा तो कुछ देर मेरा दम घुटा और सांस लेने में भी तकलीफ़ होने लगी. जब मैं लंड निकालने की कोशिश करने लगा तो मेरा यार मुझे पटककर मेरे ऊपर अपना वजन देकर लेट गया. उसे हटाना असंभव था. आखिर मैंने हार मान ली और चुपचाप गला ढीला छोड़ने की कोशिश करने लगा.
दो मिनिट में मेरा गला एकदम ढीला पड़ गया और दम घुटना भी बंद हो गया. हेमन्त का लौड़ा अब जड़ तक मेरे मुंह में उतर चुकाथा और मेरी नाक और होंठ उसकी झांटों में समा गये थे. अब सहसा मैंने महसूस किया कि दम भी नहीं घुट रहा है और उस मोटे ताजी ककड़ी को चूसने में भी मजा आ रहा है. प्यार से मैंने अपने हाथ उसके चूतड़ों के इर्द गिर्द जकड़ लिये और गांड में उंगली करते हुए चूसने लगा.
"सीख गया मेरा यार, चल अब इनाम ले ले अपना, चूस डाल. और लगे हाथ गला चुदवा भी ले" और मेरे मुंह को उसने किसी चूत की तरह चोद डाला. चोद कर इनाम स्वरूप अपना गाढ़ा वीर्य मुझे पिलाया तभी उसने मुझे छोड़ा.
 
इसके बाद बारी बारी से हम पढ़ाई के समय एक दूसरे का लंड चूसते. उसके सामने बैठ कर अपना चेहरा उसकी घनी झांटों में छुपा कर उसका लंड पूरा निगल कर वह सुख मिलता कि कहा नहीं जा सकता. हां, मुझे चुपचाप लंड मुंह में लेकर बैठने की प्रैक्टिस करना पड़ी क्योंकि शुरू के दो तीन दिन में उसका लंड चूसने को ऐसा तरस जाता कि चूस कर उसे पढ़ाई पूरी होने के पहले ही सिर्फ आधे घंटे में ही झड़ा देता.
एक दूसरे के बदन के लिये हमारी हवस का एक और चरण पूरा हुआ जब एक दूसरे के मूत्र को सिर्फ शरीर पर या
चेहरे पर लेने के बजाय हमने उसे पीना शुरू कर दिया.
पहल मैंने ही की. अब तक बहुत किताबों में और फ़िल्मों में मैं देख चुका था कि कैसे प्रेमी युगल अपने साथी का मूत्र बड़ी आसानी से पी जाते हैं. मैं भी यह करना चाहता था पर थोड़ा डरता था.
आखिर एक दिन जब टेबल के नीचे बैठकर मेरी बारी उसका लंड चूसने की थी तो मैं तैश में आ गया. उस दिन मैंने लगातर ढाई घंटे की पढ़ाई उससे कराई थी, बिना उसे झड़ाये. बाद में वह ऐसा झड़ा कि चार पांच चम्मच भर कर अपनी मलाई मेरे मुंह में उगली. फ़िर तृप्ति की सांस लेता हुआ वह मेरे मुंह से लंड निकाल कर कुर्सी से उठने की कोशिश करने लगा.
मैंने उसे नहीं छोड़ा बल्कि कस कर पकड़ लिया और झड़ा हुआ लौड़ा चूसता ही रहा.
"छोड़ दे यार, क्या कर रहा है? मुझे पिशाब लगी है जोर की. छोड़ नहीं तो तेरे मुंह में ही कर दूंगा." उसकी बात को अनसुनी करके मैं चूसता ही रहा. आंखें उठा कर उसकी आंखों में झांका और उसे आंख मार दी.
वह समझ गया. वासना से उसकी आंखें लाल हो गयीं. कुर्सी पर बैठ कर मेरे बाल बिखेरता हुआ वह बोला. "तो यह मूड है तेरा? देख, एक बार शुरू करूंगा तो रुकेंगा नहीं, पूरा पीना पड़ेगा. और नीचे नहीं गिराना साले नहीं तो बहुत मारूंगा."
उसे शायद डर था कि मैं बिचक न जाऊं इसलिये उसने मेरा सिर अपने पेट पर कस कर दबाया और मूतने लगा. उसका लंड मेरे गले तक उतरा हुआ था ही, सीधे गरमागरम मूत की तेज मोटी धार मेरे गले में उतरने लगी. मैं निहाल हो गया. मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि पूछो मत. गटागट उस खारे शरबत को मैं पीने लगा. इतने चाव से मैं
पी रहा था कि उसने भी देखा कि जबरदस्ती की जरूरत नहीं है और अपना हाथ हटाकर मेरे गाल पुचकारता हुआ
आराम से मूतने लगा.
उसे जोर की पेशाब लगी थी, दो गिलास तो जरूर मूता होगा. मूतना खतम होते होते वह भी तैश में आ गया. उसका लंड फ़िर खड़ा हो गया था और उसने लगे हाथ बैठे बैठे मेरा मुंह चोद डला. दूसरी बार उसका वीर्य पीकर मैं उठा और उसे कुर्सी से उठाकर वहीं जमीन पर पटककर उसकी गांड मार ली. वह दो बार झड़ कर लस्त हो गया था इसलिये चुपचाप जमीन पर पड़ा पड़ा मरवाता रहा. उसके गुदाज मांसल शरीर को भोगना मुझे तब ऐसा लग रहा


था जैसे किसी औरत को भोग रहा हूं. वह भी आज किसी औरत की तरह बिलकुल शांत पड़ा पड़ा मरवा रहा था.
उसका भी मेरे शरीर की ओर कितना आकर्षण था यह उसने तुरंत दिखा दिया. उसी रात सिक्सटीनाइन करने के बाद उसने तो मेरे मुंह में मूता ही, साथ साथ मुझसे भी मुतवा लिया. एक दूसरे से लिपटे हुए बिस्तर पर पड़े पड़े ही हम एक दूसरे के मुंह में मूतते रहे. वह मेरा मूत इतने चाव से पी रहा था कि खतम होने पर भी छोड़ने को तैयार नहीं हुई. इसके बाद सिक्सटी नाइन के तुरंत बाद अपने साथी के मुंह में मूतना हमारा एक प्रिय कार्यक्रम बन गया.
मेरे बाल पहले ही काफ़ी लंबे थे. हेमन्त के कहने पर मैंने बाल कटाना बंद कर दिया. उसका कहना था कि मेरी लड़कियों जैसी सूरत उससे और प्यारी लगती है. शायद वह बाद में मुझे लड़की रूप में देखना चाहता था.
हमारे संभोग का अगला मादक मोड़, खास कर मेरे लिये एक बड़ा कामुक क्षण, करीब एक माह बाद आया. अब तक हम रोज के क्रिया कलाप में ढल चुके थे. मैं बहुत खुश था. समझ में नहीं आता था कि हेमन्त के बिना कैसे इतने दिन रहा.
एक माह में मेरी ऐसी हालत हो गयी कि एक दिन गांड मराते हुए मैंने हेमन्त से कहा, "यार हेमन्त, मेरे राजा, कितना अच्छा होता अगर मैं लड़की होता. तुझसे शादी करके जिंदगी भर तेरी सेवा करता. जनम भर तेरा लंड मेरी गांड में होता!"
वह बोला. "तो क्या हुआ, लड़की तू अभी भी बन सकता है. बस छोरियों जैसे कपड़े पहन ले. बाल तेरे अब अच्छे बढ़ गये हैं, थोड़े और बढ़ा ले, एकदम चिकनी छोकरी लगेगा."
"और लंड और मम्मे?" मैंने पूछा.
"नकली चूचियां लगा लेना, पैडेड ब्रेसियर पहन लेना. लंड तो तेरा बहुत प्यारा है मेरी जान. तूने वे शी मेल वाले फ़ोटो देखे हैं ना? क्या चिकनी छोकरियां लगती हैं पर सब मस्त लंड वाली होती हैं. उनसे संभोग में एक साथ नर
और मादा संभोग का आनंद आता है. तू वैसा बन सकता है चाहे तो. मेरी वैसे चूतों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। सिवा एक चूत के. उससे मैं बहुत प्यार करता हूं. वैसे तू चाहे तो मेरे साथ चल कर हमारे गांव में रह सकता है, मेरी पत्नी बनकर न सही, मेरी भाभी बनकर.'
 
Back
Top